ओरछा के राम मंदिर और चतुर्भज मंदिर दर्शन के बाद वहाँ के महल देखने के लिए आगे बढ़े। धूप तेज हो गयी थी। सड़क किनारे की दुकाने खुलने लगी थीं। दुकानदार ग्राहकों का इंतज़ार करने लगे थे। गर्मी के चलते वातावरण अलसाया सा लग रहा था। पास ही थे इसलिए पैदल ही चल दिए। सोचा महल देखने के बाद गाड़ी बुला लेंगे। फिर बाक़ी का ओरछा घूमेंगे।
आगे बढ़ने पर हमने अपने ड्राइवर संजय को फ़ोन किया और कहा -'तुम भी आ जाओ। गाड़ी यहीं महल के पास खड़ी कर दो। साथ में घूम लो ओरछा।' पर संजय को मेरा प्रस्ताव कुछ जंचा नहीं। बोले -'हम यहीं हैं। गाड़ी पर। आप घूम के आइए।'
अपन पवन के साथ महल की तरफ़ बढ़े। शुरुआत में ही एक जगह टिकट मिल रही थी। ओरछा के सभी पर्यटन स्थल के लिए प्रवेश पत्र। (शायद )पचास रुपए की थी टिकट। पैसे पवन ने अपने पास से दिए। हमारे देने के लिए हो गए चार सौ पचास रुपए।
महलों के प्रांगण में तीन महल अग़ल-बग़ल बने हुए हैं। जहांगीर महल, शीश महल और राजमहल। सबसे पहले अपन जहांगीर महल को देखने के लिए आगे बढ़े।
महल के प्रवेश द्वार पर ही पर्यटन विभाग के लोग बैठे थे। जहांगीर महल की तरह ऊँधती मुद्रा में। टिकट देखकर अंदर जाने दिया और फिर ऊँधने लगे।
जहांगीर महल का निर्माण बुंदेला राजा बीर सिंह देव ने मुग़ल बादशाह जहांगीर के ओरछा आगमन के समय उनके सम्मान में करवाया था। सत्रहवीं शताब्दी में बनवाए गए इस तीन मंज़िला इमारत में कुल २३६ कमरे हैं जिनमें १३६ भूमिगत हैं। जहांगीर महल को हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक के रूप में भी मान्यता मिली। महल के कमरों में पेंटिंग्स के अवशेष दिखते हैं। अधिकतर चित्र रामायण महाभारत की कथाओं के लगते हैं। जब बना होगा महल तो कितना खूबसूरत और आकर्षक रहा होगा।
जहांगीर महल देखकर लगा कि पुराने जमाने में राजा महाराजाओं के सम्मान में कितना खर्च होता था। वर्षों की अवधि में बना होगा जहांगीर महल उसकी अगवानी के लिए। खर्च की परम्परा आज भी जारी है। किसी मंत्री के दौरे में रातों-रात सड़क और दीगर निर्माण रातों-रात हो जाते हैं। अधिकतर मंत्री-संतरी भी पुराने जमाने के राजे-महाराजे की तरह ही महसूस करते हैं।
जहाँगीर महल से निकलकर बाहर लगी पानी की मशीन से पानी पीकर बगल में ही बने शीशमहल का बाहर से ही दीदार किया। इस महल का निर्माण सन् 1706 में ओरछा के महाराज उद्देत सिंह ने करवाया था जो अन्यंत बलशाली एवं वीर थे। कहते हैं कि तत्कालीन मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ने इनकी वीरता से प्रभावित होकर अपनी तलवार इन्हें भेंट की थी जो आज भी ओरछा राज्य के शस्त्रालय में रखी हुई है। शीशमहल का निर्माण वास्तव में एक अतिथि गृह के रूप में करवाया गया था। विभिन्न रंगों के कांच जड़ित होने के कारण ही इसका नाम शीशमहल रखा गया था। इस महल में शाही एवं अन्य कीमती सामान लगा हुआ था जो धीरे-धीरे गायब होता गया। महल के अन्दर भव्य विशाल कक्ष एवं स्नानगृह आदि उस समय के राजाओं की विलासिता के परिचायक हैं।
आजकल शीश महल का देखरेख मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग करता है। अपन को यहाँ रहना तो था नहीं सो इसे बाहर से ही देखते हुए बगल में स्थित ओरछा के राजमहल की तरफ बढ़ गए।
अपने प्राचीन वैभव का निरंतर बखान करता हुआ ओरछा का विशाल राजमहल एक मिसाल है। इस ऐतिहासिक महल का निर्माण भी महाराज वीरसिंह जू देव ने सन् 1616 ई. में करवाया था। महल के प्रवेश द्वार पर अनमने भाव से टिकट देखने वालों के अलावा अन्दर लगभग सन्नाटा था। राजमहल के अलग-अलग भाग के बाहर आडियो लिंक के माध्यम इमारतों का परिचय दिया गया था। आडियो लिंक स्कैन करके मोबाइल में खोलकर इमारत का विवरण सुनते हुए आप महल भ्रमण कर सकते हैं।
कुछ आडियो लिंक खुर्ची हुई होने के कारण डाउनलोड नहीं हुई। राजमहल के अलग-अलग हिस्से घूमते हुए उनके किस्से सुने। जनानखाना, नहानघर, निपटानघर , रनिवास , पूजाघर , नौकरों के रहने की जगह और तमाम रिहायशी इलाके देखे । अधिकतररिहायशी कमरों की छतों, दीवारों पर हिन्दू धर्म की कथाओं से जुड़े चित्र बने हुए थे । पुराने हो जाने के चलते चित्रों का रंग फीका पड़ गया था लेकिन अंदाज लगता था कि जब बने होंगे चित्र तो कितने खूबसूरत लगते होंगे । अफसोस कि इस शानदार महल और चित्र बनाने वालों के नाम का कहीं कुछ पता नहीं चलता ।
चतुर्भज मंदिर बनवाने वाली रानी जी की इच्छा थी उनके महल के कमरे के झरोखे से मूर्ति के दर्शन हो सकें। रानी के महल के कमरे के खिड़की से देखने पर सामने स्थित चतुर्भज मंदिर की मूर्ति साफ़ दिखती है। अलबत्ता कैमरे की नजर से जब मूर्ति देखने की कोशिश की तो फोटो आया नहीं।
उस समय के नहानघर और निपटानघर भी देखने को मिले। निपटानघर तो आजकल इन्डियन स्टाइल के खुले में बने शौचालय सरीखे बने थे। पहली मंजिल पर बने इन शौचालयों की सफाई उस समय के कामगार करते होंगे। शौचालयों की यह व्यवस्था शहरों में तो पिछ्ली सदी के आखिर तक रही। नहाने के साझा नहानघर सरीखे बने थे। उनमें पानी जमा करके लोग नहाने होंगे।
महल की बनावट इस तरह की थी कि हवा का आवागमन सुचारू रहे। एक संकरे से रास्ते से ऊपर की तरफ जाते हुए हवा सरसराती हुई आती महसूस हुई। कितने कुशल रहे होंगे इसको बनाने वाले कारीगर जिनके बारे में आज कुछ पता नहीं।
राजमहल से बाहर निकलकर हम आगे की तरफ आये। पवन को फोन किया तो पता चला कि वो किसी दूसरे टूरिस्ट को ओरछा दर्शन करा रहे हैं। थोड़ी देर में आएंगे।
समय का उपयोग करने के लिए अपन सामने से अन्दर घुसे। यह हिस्सा देखने से रह गया था। सामने से दीवाने आम दिखा। दीवाने आम में आम जनता आती होगी। राजा-महाराजा उनकी फ़रियाद सुनते होंगे। मौके-मूड के हिसाब से निर्णय लेते होंगे।
हमने जब देखा दीवाने आम तब वह राजा के रूप में तो कोई नहीं था। अलबत्ता फरियादी वाली जगह पर दो कुत्ते ऊँघ रहे थे। शायद उनकी यही मांग रही होगी कि जहाँपनाह हमको इस विकट गर्मी में यहाँ से निकाला न जाए। चुपचाप पड़े रहने दिया जाए। उनके तसल्ली से पड़े रहने के अंदाज से लग रहा था कि उनकी फ़रियाद दीवाने आम ने मंजूर कर ली थी।
दीवाने आम से बाहर आकर अपन इधर-उधर घूमते हुए अपने ऑटो ड्राइवर पवन का इन्तजार कर रहे थे कि हमको देखकर किसी ने पूछा –“क्या आप अनूप जी हैं?” पता चला कि सवाल करने वाली हमारी श्रीमती जी की सहेली और हमारी फेसबुक मित्र Hina Srivastava जी हैं। हिना जी उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग में कार्यरत हैं। उनके गाये एक गीत को 16 लाख लोग देख चुके हैं। वे अपने परिवार के साथ ओरछा घूमने आई थीं। कानपुर में रहने वाले फेसबुक मित्रों की पहली मुलाक़ात ओरछा में हुई। शायद इसी को संयोग कहते हैं।
किले से बाहर निकलते हुए गुजरात से ओरछा दर्शन करने आये एक परिवार के लोगों के अनुरोध पर हमने उनका फोटो खीचा। बाद में मेहनताने के रूप में उन्होंने हमको भी अपने साथ खडा करके फोटो खिंचवाया। इसके बाद वे अन्दर की तरफ चले गए। अपन बाहर निकल आये। पवन अपने ऑटो के साथ हमारा इन्तजार कर रहे थे।
(राममंदिर और चतुर्भुज मंदिर से सम्बद्ध पोस्ट कमेंट बॉक्स में )
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