कल शाहजहांपुर आना हुआ। सुबह टहलने निकले। सड़क पर लोग कम थे। शायद जल्दी हो अभी। साढ़े पांच ही तो बजे थे।
कई परिचित मिले। कुछ फैक्ट्री के , कुछ शहर के। कुछ लोगों ने कहा-'आप अब यहीं आ जाईये फिर से।' उनको पता नहीं था अपन रिटायर हो दो महीने पहले।
लोगों से मिलते ,हाल-चाल पूछते बताते सड़क पर टहलते रहे कुछ देर। सामने से शाहजहाँपुर मार्निंग वाकर्स ग्रुप के Inderjeet Sachdev जी आते दिखे। बाद में Dr Anil Trehan त्रेहन जी भी साइकिल पर आते दिखे। ये दोनों बुजुर्ग युवाओ वाले जोश से शाहजहांपुर मार्निंग वाकर्स ग्रुप को लगातार सक्रिय और उत्साह से लबरेज रखते हैं। खुशी और उत्साह के किसी भी मौके को बिना सेलिब्रेट किये जाने नहीं देते। तय हुआ कि उनसे उनके ठीहे पर मुलाकात होगी।
आगे जाकर लौट लिए। एक बेंच पर बैठा एक आदमी आत्मालाप कर रहा था। रुककर सुना तो कह रहा था -'औरत के लिए उसका आदमी बिंदी, लिपिस्टिक, आलता लाता है। उनके टिकुली सिंगार के खर्च उठाता है। खिलाता पिलाता है। इसलिए औरतों को अपने आदमियों को पतिपरमेश्वर मानना चाहिए। '
हमने रुककर उसकी बात सुनी तो हमसे अपनी बात के समर्थन की अपेक्षा की उसने। हमको श्रोता समझकर उसने 'उनकी' ही तरह पूछा भी -"मानना चाहिए कि नहीं ?"
हमें लगा कि अगर हम रुके तो मनवा के ही छोड़ेगा। अपन बिना समर्थन दिए आगे बढ़ गए।
मैदान में पानी और पिछले दिनों हुई प्रदर्शनी का कचरा जमा था। बीच में घास भी दिख रही थी। साफ होगा धीरे-धीरे। कभी हमने यहां पुस्तक मेला लगवाने की सोची थी। लेकिन पहले कोरोना ने समय खा लिया और बाद में दीगर कामों में उलझ गए।
मार्निंग वाकर्स ग्रुप के ठीहे पर पहुंचे तो साथी लोग माला, शाल, पटका ले आये थे। हमको पकड़कर माला पहना दी, पटका पहना दिया और सभी के साथ फोटो भी हो गयी। जो बाद में आया उसने भी पहनी माला के साथ फोटो खिंचाई। अपन गर्दन झुकाए खड़े रहे। माला पहनने में गर्दन झुक ही जाती है।
सामने Saif Aslam Khan की बेंच नम्बर सात पर बैठे दो आदमी एक-दूसरे की तरफ झुके बतियाने में मशगूल थे।
शाहजहांपुर मार्निंग वाकर्स ग्रुप के साथी हमेशा सम्मान करने वाले समानों से लैस रहते हैं। कोई भी खुशी का अवसर मिला, सम्बंधित सदस्य को सम्मानित करने का अवसर नहीं चूकते।
फोटोबाजी के बाद वक्तव्य भी हुए एक-एक मिनट के। किसी ने नाम गलत बोल दिया तो रिकार्डिंग दुबारा हुई।
बाढ़ आई हुई है शहर में आजकल। शहर के कई इलाके पानी में डूबे हैं। शारदा डैम का पानी छोड़ा गया है। लोगों के घरों में पानी भरा है। लोग बाढ़ से और चोरों से अपने घर का सामान बचाने की जुगत में लगे हैं। पता चला आज कुछ पानी कम हुआ है।
'जस की तस धर दीन चदरिया' की तर्ज पर सम्मान -सामान वहीं छोड़कर वापस आ गए। चाय पीते हुए पानी बरसने की आवाज सुनाई दी। बाहर निकलकर देखा तो सड़क भीग रही है। मैदान भीग रहा है। बिल्डिंग भीग रही हैं। जहाँ तक देखो सब भीगता दिखा।
भीगने से याद आया कि पिछले दिनों 'मेरे राम का मुकुट भीग रहा है' शीर्षक से बहुत कुछ लिखा गया। फ़ोटो सहित। हम उस बारे में कुछ न लिखेंगे।
फिलहाल हमको तो सामने की भीगती सड़क पर साइकिल पर भीगता जाता इंसान दिख रहा है। भीगने के नाम पर शेर भी याद आ गया। मुलाहिजा फरमाएं :
"तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह
भीग तो पूरा गए, पर हौसला बना रहा। "
आपको भी कोई शेर याद आ रहा तो सुना दीजिए। इरशाद कह रहे हैं।
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