Tuesday, July 16, 2024

कॉलेज स्ट्रीट मतलब किताबों का मोहल्ला


कल एक बार फिर कोलकाता आना हुआ। पहली बार आना हुआ था 10 जुलाई, 1983 को। 41 साल पहले। साइकिल से। इलाहाबाद से कन्याकुमारी के भारत दर्शन साइकिल यात्रा के मौक़े पर। उस समय कोलकता के दोस्तों ने शहर घुमाया था। कई जगहें घूमीं थीं। बाद में भी आते रहे। कोलकता की तमाम जगहें घूमी। हर बार तमाम जगहें बाक़ी रह जाती देखने को। हर बार सोचते कि अगली बार घूमेंगे।
ऐसी ही एक जगह यहाँ की कॉलेज स्ट्रीट है। पिछली बार तो आधे रास्ते से लौट गये। भीड़ और जाम के चलते जाना हो नहीं पाया। वह कमी इस बार पूरी हुई।
कॉलेज स्ट्रीट में कोलकाता का विख्यात पुस्तक बाज़ार है। यह भारत और एशिया का सबसे बड़ा पुस्तक बाजार माना जाता है। बंगाली में इसे ‘ बोई पाड़ा’ कहते हैं जिसका मतलब है ‘पुस्तकों का मोहल्ला/किताब टोला।’हर तरफ़ किताबें ही किताबें।
‘पुस्तक सरणी’ भी कहते हैं कॉलेज स्ट्रीट को।
कॉलेज स्ट्रीट में सड़क के दोनों किनारे छोटी-बड़ी गुमटियों में सैकड़ों किताबों की दुकानें हैं। नई पुरानी किताबों से अटी-पटी दुकानें। किसी भी दुकान के सामने खड़े हो जाने पर दुकानदार ग्राहक का स्वागत करते हुए किताबें दिखाने लगते। लेकिन हम लोगों को किताबें लेनी कम दुकानें देखनी ज़्यादा थीं। हम लोग दुकान दर दुकान देखते कॉलेज स्ट्रीट घूमते रहे।
कॉलेज स्ट्रीट की किताबों की दुकानों की शुरुआत 1817 में हुई। मतदान 207 साल पहले। सड़क के दोनों तरफ़ कई कॉलेज होने के कारण सड़क का नाम पड़ा -‘कॉलेज स्ट्रीट।’ कॉलेज स्ट्रीट पर स्थित प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी की शुरुआत भी 1817 में हुई। तब इसका नाम हिंदू कॉलेज था। बाद में 1855 में इसका नाम प्रेसीडेंसी कॉलेज हुआ। 2010 में विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद यह प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय बन गया। सड़क की दूसरी तरफ़ हिंदू स्कूल है जिसकी शुरुआत भी 1817 में हुई थी।
कई प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान भी कॉलेज स्ट्रीट पर हैं।
क़रीब 900 मीटर लंबी सड़क के दोनों तरफ़ किताबों की दुकानें हैं। नई पुरानी किताबें। लोग यहाँ किताबें ख़रीदने-बेचने आते हैं। बंगला, अंग्रेज़ी और हिन्दी की किताबें रखी मिलती हैं।
किताबों की ख़रीद में मोलभाव खूब होता है। स्टीफ़न हाकिंग की ब्रीफ़ आंसर्स टु बिग क्वेशचन्स (brief answers to big questions ) जिसकी मूल क़ीमत 650 रुपये लिखी थी हम लोगों ने एक सौ रुपये में ख़रीदी। एक दुकान पर भुगतान का स्कैनर दुकान की गुमटी के ऊपर के पल्ले पर चिपका था। ऐसे जैसे मुँह देखने के लिए शीशा कमरे की छत पर लगा हो। भुगतान करने में बड़ी मशक़्क़त करनी पड़ी।
एक जगह हर किताब सौ रुपये की मिल रही थी।
किताबों की दुकानों पर तरह-तरह की किताबें पलटते , देखते रहे। किसी ने माना नहीं किया। एक दुकानदार सड़क की तरफ़ पीठ लिए अपना लंच करता रहा, हम उसकी दुकान की किताब पलटते रहे।
तमाम प्रसिद्ध लेखकों की कालजयी किताबें दुकानों पर एक के ऊपर एक लगीं थीं। हर तीसरी किताब लेने का मन किया लेकिन हम मन को रोकते-टाँकते रहे। समझाते रहे कि पहले पास की किताबें जो पढ़ने को बकाया हैं , उनको पढ़ लो फिर ख़रीदना नई किताबें। जहाज़ पर ले जाए जाने वाले वजन की सीमा ने भी बाधा पैदा की किताब ख़रीदने में।
स्टीफ़न हाकिंग की एक किताब विश्व प्रसिद्ध गणितीय समस्याओं के हल गणितीय रूप में पेश करने से सम्बन्धित थी। कुछ देर पलटकर वापस धर दी किताब। समझ की सीमा से बाहर लगी किताब।
हिन्दी की किताबें अधिक दिखी नहीं। अलबत्ता एक जगह लिखा ज़रूर था -‘यहाँ हिन्दी का किताब मिलता है।’ मतलब कि इलाक़ा बदलने के साथ ‘किताब’ का लिंग परिवर्तन हो गया। हिन्दी की किताबों में भी लेखकों के कहानी संग्रह /कविता संग्रह मुख्य थे। वे किताबें भी नई थीं यानि मोलभाव की गुंजाइश नहीं थी। कुछ देर में दुकान से बाहर आ गये।
बहुत देर तक कॉलेज स्ट्रीट की दुकानों पर किताबें देखते, पलटते, पढ़ते, वापस रखते टहलते रहे। वर्षों से कॉलेज स्ट्रीट देखने की तमन्ना को पूरा होने की ख़ुशी महसूस करते रहे। हर दुकान एक जैसी होते हुए भी अपने में अनूठी लगती। पुस्तक मोहल्ला ही अपने में अनूठा है।
काफ़ी देर कॉलेज स्ट्रीट के दोनों तरफ़ टहलने के बाद इस इरादे से वापस लौटे कि फिर आना है। जल्द ही। अगली बार किताबों। की ख़रीद भी करेंगे। खूब सारी। तब तक किताबों की बातें ही सही।

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