Saturday, July 27, 2024

दक्षिणेश्वर मंदिर और बेलूर मठ



कालीघाट मंदिर देखने के बाद हम लोग दक्षिणेश्वर मंदिर देखने गए। वीआइपी मंदिर प्रांगण में अंदर तक गाड़ी चली गयी। लेकिन पानी बरस रहा था। तेज, झमाझम। लिहाज़ा गाड़ी में ही बैठे रहे काफ़ी देर।
प्रकृति के सामने इंसान का कोई वीआइपी पना नहीं चलता।
वैसे हमको धर्मस्थलों में पूजा के लिहाज़ से कोई श्रद्धा नहीं है। पूजा-चोर हैं अपन। आमतौर पर घर वालों के साथ किसी मंदिर जाना भी होता है तो या तो फ़टाक से निकल आते हैं या फिर बाहर ही खड़े रहते हैं -ड्राइवरों की तरह ! लेकिन घरवालों के साथ जाना तो पड़ता ही है कभी-कभी।
पानी थोड़ा हल्का हुआ तो हम लोग आगे बढ़े। सुरक्षा जाँच के समय मोबाइल जेब में बरामद हुआ। लौटा दिए गए। वापस आकर मोबाइल गाड़ी में रखा फिर दर्शन के लिए।
मंदिर प्रांगण में दर्शनार्थी लोगों की भीड़ जमा थी। मुख्य द्वार से मंदिर तक लोग लाइन में लगे थे।
इस मंदिर की मुख्य देवी, भवतारिणी है, जो हिन्दू देवी काली माता ही है। यह कलकत्ता के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है, और कई मायनों में, कालीघाट मन्दिर के बाद, सबसे प्रसिद्ध काली मंदिर है। इसे वर्ष 1854 में जान बाजार की रानी रासमणि ने बनवाया था।
यह मन्दिर, प्रख्यात दार्शनिक एवं धर्मगुरु, स्वामी रामकृष्ण परमहंस की कर्मभूमि रही है, वर्ष 1857-68 के बीच, स्वामी रामकृष्ण इस मंदिर के प्रधान पुरोहित रहे। तत्पश्चात उन्होंने इस मन्दिर को ही अपना साधनास्थली बना लिया। कई मायनों में, इस मन्दिर की प्रतिष्ठा और ख्याति का प्रमुख कारण है, स्वामी रामकृष्ण परमहंस से इसका जुड़ाव।
मंदिर के भीतरी भाग में चाँदी से बनाए गए कमल के फूल जिसकी हजार पंखुड़ियाँ हैं, पर माँ काली शस्त्रों सहित भगवान शिव के ऊपर खड़ी हुई हैं। काली माँ का मंदिर नवरत्न की तरह निर्मित है और यह 46 फुट चौड़ा तथा 100 फुट ऊँचा है।
मंदिर में 12 गुंबद हैं। मंदिर के चारों ओर भगवान शिव के बारह मंदिर स्थापित किए गए हैं।
दर्शन करके वापस आने पर भी पानी बरस ही रहा था। बीच-बीच में रुक भी जाता था। लेकिन बरसने-रुकने का सिलसिला जारी रहा। हम लोगों ने मंदिर के पास ही स्थित कैफ़ेटेरिया में नाश्ता किया। ताज्जुब की बात कि वहाँ चाय या लस्सी मौजूद नहीं थी। छोले भटूरे खाकर काम चला।
दक्षिणेश्वर मंदिर से निकलकर हम लोग बेलूर मठ देखने के लिए निकले। किसी ने ड्राइवर को बता दिया कि वहाँ रास्ते में जाम लगा है। उसने बिना मठ देखे वापस लौटने की सलाह दी। लेकिन हम लोगों ने कहा -'चलो, जहां जाम होगा, वहाँ देखा जाएगा।'
रास्ते में कहीं कोई जाम नहीं मिला। कुछ देर में हम लोग बेलुर मठ के मुख्य द्वार पर थे।
यह रामकृष्ण मिशन और रामकृष्ण मठ का मुख्यालय है। इस मठ के भवनों की वास्तु में हिन्दू, इसाई तथा इस्लामी तत्वों का सम्मिश्रण है जो धर्मो की एकता का प्रतीक है। इसकी स्थापना 1887 में स्वामी विवेकानन्द ने की थी। यह मठ भारत के प्रमुख पर्यटनस्थलों में से एक है, तथा स्वामी रामकृष्ण परमहंस, रामकृष्ण मिशन तथा स्वामी विवेकानंद के विश्वभर में विस्तृत श्रद्धालुओं हेतु एक पवित्र तीर्थस्थल के समान महत्व रखता है।
मठ में म्यूजियम और मंदिर और दीगर इमारतें थी। साफ़-सुथर स्थल।
मंदिर जो बने थे उनमें विवेकानंद जी और रामकृष्ण परमहंस जी की मूर्तियाँ लगीं थीं। मंदिर खुलने का समय अलग-अलग। जब विवेकानंद मंदिर खुला तब रामकृष्ण मंदिर बंद। पता चला कि रामकृष्ण मंदिर साढ़े ग्यारह बजे खुलेगा। तब तक लपककर अपन लोग विवेकानंद मंदिर देख आए। वहाँ पास ही बहती हुगली नदी पूरी लबालब भरी थी। स्टीमर भी दिखा नदी में। नदी में कपड़े धोने की मनाही का बोर्ड लगा था। कुछ लोग नदी में डुबकियाँ लगाते दिखे।
रामकृष्ण मंदिर खुलने का समय साढ़े ग्यारह बजे था। बताया गया कि पाँच मिनट के लिए खुलेगा। हाल में मोबाइल चलाने और फ़ोटो लेने की मनाही। वहाँ सुरक्षा के लिए तैनात लोग चुप रहने और फ़ोटो न लेने के लिए बार-बार आग्रह कर रहे थे। हाल में भीड़ जमा हो गयी थी।
हमारे अग़ल-बग़ल में एक स्कूल के बच्चे बैठे थे। उनको गर्मी लग रही होगी। एक बालिका ने पतला सा आइसक्रीम खाने वाली चम्मचों से बना पंखा निकाला और झलने लगी। पंखा दिल के आकार का था। उसमें दिल की फ़ोटो भी बनी थी। ऐसी जैसी सोशल मीडिया में दिल के आकार की ईमोजी बनी होती है। थोड़ी देर में पंखा बग़ल वाले वाले लड़के के हाथ में आ गया। वह खुद के और अग़ल-बग़ल की लड़कियों-लड़कों को दिल की आकार के पंखे से हवा करता रहा। अपन चुपचाप मंदिर के पट खुलने का इंतज़ार करते रहे।
स्कूल के बच्चों में एक बच्चा व्हीलचेयर पर था। उसके दोस्त उसको साथ लेकर आए थे। बच्चे का नाम पारिजात। उसने बताया कि उसको किशोर कुमार के गीत पसंद हैं। खुद रवींद्र संगीत गाता है। बच्चे से और बात करते तब तक उसके दोस्त उसकी व्हील चेयर रैम्प की तरफ़ ले गए जिससे वह भी अंदर आ सके।
मंदिर के पट खुलने पर हमने रामकृष्ण जी की मूर्ति के दर्शन किए और बाहर निकल आए।
बाहर आकर वहीं मौजूद दुकान से सबने नारियल का पानी पिया। पानी पीकर नारियल से निकली मुलायम गरी खाते-खाते वापस लौट लिए।

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