Friday, September 27, 2024

बेहटा बुजुर्ग का जगन्नाथ मंदिर



भीतरगाँव का ईंटों का मंदिर (विवरण का लिंक कमेंट में) देखने के बाद अगली मंज़िल थी भीतरगाँव के पास ही बेहटा बुजुर्ग गाँव में स्थित जगन्नाथ मंदिर।
भीतरगाँव से बेहटा बुजुर्ग गाँव तीन-चार किलोमीटर दूर है। गुप्तकालीन इँटो के मंदिर के सामने की दुबली-पतली सड़क के दोनों तरफ़ दुकानों के सामने खड़े लोग सड़क को और दुबला बना रहे थे।
दुकानों का सिलसिला थोड़ी दूर पर ही खतम हो गया। आगे सड़क ख़ाली थी।
हमारी कार के आगे स्कूल से लौटते हुए दो बच्चे दिखे । एक लड़की, एक लड़का। दोनों अलग-अलग साइकिल पर । पीछे से आती कार देखकर बच्चे थोड़ा ठिठक से गए। साइकिल से उतर गए। लेकिन हमने गाड़ी उनके आगे नहीं निकाली। धीरे होते हुए रुक से गए। बच्चों ने इसे अपने आगे चलने का इशारा समझा और फिर से साइकिल पर सवार होकर चल दिए।
दोनों शायद बहन-भाई रहे होंगे। लड़की बड़ी थी। बच्चा उसके पीछे-पीछे उचक-उचककर साइकिल चलाता जा रहा था।
थोड़ा आगे चलकर मुख्य सड़क आ गयी। आगे थोड़ी दूर पर दायीं तरफ़ मुड़कर बाएँ मुड़े और कुछ दूर पर ही वह मंदिर आ गया जिसे देखने हम आए थे।
गाड़ी खड़ी करके वहाँ से गुजरती एक बच्ची से मंदिर के बारे में पता किया। पता चला यही जगन्नाथ मंदिर है। बच्ची स्कूल ड्रेस में थी। तुरंत ही स्कूल से वापस लौटी थी। माथे और होंठ के ऊपर पसीने की बूँदे चमक रही थीं। बच्ची कक्षा सात में पास ही स्कूल में पढ़ती है। मंदिर के बारे में –‘हाँ यही है मंदिर‘ बताकर वह बग़ल स्थित घर चली गयी।
बेहटा बुजुर्ग स्थित मंदिर भगवान जगन्नाथ का मंदिर है। मंदिर की आकृति भगवान जगन्नाथ के रथ के आकार की है। कितना पुराना है यह मंदिर इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता। कुछ लोग कहते हैं कि यह मंदिर 4200 सौ वर्ष पुराना है।
बस इतना ही पता लग पाया कि मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार 11वीं सदी में हुआ था। उसके पहले कब और कितने जीर्णोद्धार हुए या इसका निर्माण किसने कराया जैसी जानकारियां आज भी अबूझ पहेली बनी हुई हैं।
मंदिर के बारे में बताया जाता है की इस जगन्नाथ मंदिर की ख़ासियत यह है कि बरसात से 7 दिन पहले इसकी छत से बारिश की कुछ बूंदे अपने आप ही टपकने लगती हैं। जितनी बड़ी बूँदे उतनी अधिक बारिश। देर तक बूँदों का टपकना मतलब देर तक बारिश होना।
हालांकि इस रहस्य को जानने के लिए कई बार प्रयास हो चुके हैं पर तमाम सर्वेक्षणों के बाद भी मंदिर के निर्माण का समय तथा बारिश की बूँदों से मानसून के अनुमान का रहस्य वैज्ञानिक पता नहीं लगा सके। लेकिन बारिश की जानकारी पहले से लग जाने से किसानों को जरूर सहायता मिलती है।
बारिश की पूर्व सूचना देने के कारण जगन्नाथ मंदिर को लोग 'मानसून मंदिर'भी कहते हैं।
आसपास के लोगों की यह भी मान्यता है कि मंदिर के ऊपर लगे चक्र के कारण आसपास के इलाक़े आकाशीय बिजली के प्रकोप से बचे हुए हैं।
मंदिर के बाहर ही पुरातत्व विभाग का सूचना पट्ट लगा है जिससे पता चलता है कि यह पुरानी इमारत है। इसके अलावा मंदिर की और कोई जानकारी देने वाला कोई बोर्ड नहीं लगा था।
मंदिर के अंदर पहुँचते ही तेज बारिश शूरु हो गयी। मंदिर के अहाते में स्थित एक कमरे के बरामदे के बाहर खड़े होकर हम बारिश का जलवा देखते रहे। अहाते में पड़े एक तख़्त पर बैठा एक बच्चा मोबाइल पर कोई गेम खेल रहा था। उसकी बहन अंदर कमरे में मोबाइल में व्यस्त थी। वहीं बैठी एक बुजुर्ग महिला बार-बार समय पूछ रही थी।
महिला को हमने समय बताया ढाई बजाने वाले हैं। उसने शायद सुना नहीं। फिर समय पूछा। हमने फिर बताया। तीसरी बार उसने पूछा –‘साढ़े बारह बज गए?’ हमने फिर बताया। उसको सुनाई नहीं दिया। बच्चे ने बताया –‘ऊँचा सुनती हैं दादी।‘
अबकी बार पूछने पर मैंने ऊँची आवाज़ में समय बताया- ‘ढाई बज गये।‘ इस बार दादी जी ने सुन लिया। लेकिन 'साढ़े बारह' की जगह 'ढाई' बज जाने पर उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। उनके चेहर पर समय के प्रति निर्लिप्तता का भाव पसरा था।
अलबत्ता समय बताने के मेहनताने के रूप में उन्होंने अंदर की तरफ़ आकार बैठ जाने को कहा।
हम तख़्त के बग़ल से होते अंदर की तरफ़ आ गए। कुछ देर बच्चे से बात करते रहे। इस बीच पानी धीमे होता हुआ बंद हो गया।
फिर हमने मंदिर को देखा। बाहर हमारे अलावा कोई था नहीं मंदिर में। अंदर अलबत्ता पुजारी जी जगन्नाथ जी की पूजा करते हुए दिखे। उनकी पूजा में तल्लीनता देखकर हमको व्यवधान डालने की हिम्मत नहीं। मंदिर के चारों तरह परिक्रमा करके कुछ देर वहीं खड़े रहे। फिर बाहर आ गए।
बाहर आते हुए पुजारी जी के घर के बाद मंदिर के शुरू में भी एक छोटा मंदिर है। यह मंदिर शिव मंदिर है। मठ के आकार का मंदिर।
एक ही अहाते में रथ के आकार का मंदिर और मठ के आकार का मंदिर।
बाहर निकलते हुए हम सोच रहे थे कि लगभग 4200 वर्ष पुराना मंदिर की बनते समय न जाने कितनी ख्याति रही होगी। बाद में जीर्णोद्दार भी कराया गया होगा तो प्रमुख मंदिर होने के कारण ही ऐसा हुआ होगा। इतना प्रसिद्ध मंदिर आज अकेले में चुपचाप खड़ा है रमानाथ जी की कविता पंक्तियों को याद करते हुए:
भीड़ में भी रहता हूँ ,वीरान के सहारे
जैसे कोई मंदिर ,किसी गाँव के किनारे।
मंदिर से बाहर आकर फिर हम गाँव के बाहर हो लिए और शहर की तरफ़ वापस चल दिए।

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