फ़ुरसतिया
हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै
Tuesday, September 21, 2004
तीन सौ चौंसठ अंग्रेजी दिवस बनाम एक हिंदी दिवस
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हिंदी दिवस आया -चला गया.पता ही नहीं चला.हम कुछ लिखे भी नहीं .अब चूंकि शीर्षक उडाया हुआ( ठेलुहा .कहते हैं कि यह हमारा है उनके दोस्त बताते हैं...
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Saturday, September 18, 2004
ब्लाग को ब्लाग ही रहने दो कोई नाम न दो
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हम भावविभोर हैं. हमारा स्वागत हुआ.हार्दिक.हमारा कंठ अवरुद्द है.धन्यवाद तक नहीं फूटा हमारा मुंह से.सही बात तो यह कि हम अचकचा गये. देबाशीषजी ....
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Monday, September 13, 2004
गालियों का सांस्कृतिक महत्व
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" आयाहै मुझे फिर याद वो जालिम गुजरा जमाना बचपन का" हास्टल के दिन.पढाई की ऊब को निजात पाने के लिये लडके अपने-अपने कमरों से बाहर निक...
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Wednesday, September 08, 2004
हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?
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ब्लाग क्या है?इसपर विद्घानों में कई मत होंगे.चूंकि हम भी इस पाप में शरीक हैं अत: जरूरी है कि बात साफ कर ली जाये.हंस के संपादकाचार्य राजे...
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Saturday, September 04, 2004
नहीं जीतते- क्या कर लोगे?
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कल लखनऊ में कानून और व्यवस्था का भरत मिलाप हो गया. काफी खून बह गया.पुलिस खुश कि गोली नहीं चली.बेचारा जो दरोगा समझाने की कोशिश में था वो पह...
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Friday, August 27, 2004
फुरसतिया बनाम फोकटिया
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जब मैनें देखादेखी ब्लाग बनाने की बात सोची तो सवाल उठा नाम का.सोचा फुरसत से तय किया जायेगा.इसी से नाम हुआ फुरसतिया.अब जब नाम हो गया तो...
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Friday, August 20, 2004
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अब कबतक ई होगा ई कौन जानता है
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