आजकल मुझे कन्हैयालाल नंदन की कविता सूरज की पेशीबार-बार याद आ रही है:-
विजय शंकर पांडे उन चंद बेहद ईमानदार आई.ए.एस. अधिकारियों में माने जाते हैं जो शासन के बेईमान अधिकारियों के खिलाफ लगातार मुहिम छेड़ते रहे हैं । उनकी ईमानदारी की लोग मिसाल देते हैं। जैसा सुना जाता है कि वे अपने कलक्टर के कार्यकाल के दौरान अपने बंगले में उगी फसल का पैसा भी सरकारी खजाने में जमा कराते रहे। जिन जगहों में रहे वहां की नौकरशाही परेशान हो जाती थी इन सिरफरे ईमानदार साहब से। समयपालन होने लगता। लखीमपुर में जब डी.एम. थे तो उगाही करने वाले दफ्तरों के कर्मचारियों पर अंकुश लगाने के लिये नियम बनाया था कि कार्य के दौरान इतने रुपये से अधिक किसी के पास पाये गये तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। बहुतों के खिलाफ की भी।फतेहपुर में पोस्टिंग के दौरान अपने अनुभव लिखते हुये तफसील से बताया कि गुंडा तत्वों का मनोबल कैसे ध्वस्तकियाजा सकता है। कैसे जनता में आत्मविश्वास जगाया जा सकता है। ऐसे सिरफिरे नौकरशाह की नौकरी कभी सुकूनदेह नहीं रही। लगातार उनके तबादले होते रहे। महत्वहीन पदों पर भेजे जातेरहे।
अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक- इस बीच ८,अगस्त ,२००५ को जारी शासनादेश के अनुसार निजी मतदान के द्वारा किसी को अधिकारी को भ्रष्ट बताने को दुराचरण करार दे दिया गया है। मतलब अब एशोसियेशन किसी को अपने विवेक से भ्रष्ट ठहराने का काम करेगी तो गैरकानूनी काम होगा।इस बीच विजयशंकर पांडे को भी एक जांच में फंसाया गया था। कुछ अनियमितताओं को लेकर जांच की गई थी ।जांच में वे निर्दोष पाये गये थे लेकिन रिपोर्ट को स्वीकृत करने वाले अधिकारियों को भी भ्रष्ट अधि कारी के रूप में चिन्हित कर चुके थे लिहाजा शायद रिपोर्ट में फेर बदल किया गया । तथा अब उनके खिलाफ कार्रवाई की कवायद चल रही है। कल गिरफ्तारी की भी अफवाह रही। जिसके लिये पांडेजी का कहना है- “मैं तो गिरफ्तारी के लिये तैयार बैठा हूं ।कोई आये तो।”
श्री पांडे ने हाईकोर्ट में शरण लेकर अपने खिलाफ चल रही सतर्कता जांच में हेराफेरी व खुद को फंसाये जाने का आरोप लगाते हुये पूरे प्रकरण की जांच सी.बी.आई. से कराने की गुहार की है।उनकी याचिका पर आज सुनवाई होने वाली है। आगे क्या होगा यह समय बतायेगा। लेकिन यह तय है कि ईमानदारी का परचम लहराने का खामियाजा श्री पांडे को तो भुगतना पड़ रहा है।
भारत में आई.ए.एस. लाबी सबसे ताकतवर मानी जाती है। देश के सबसे जहीन लोग इस सेवा में आते रहे हैं। इन जहीन लोगों का बहुमत या तो श्री पांडे के खिलाफ होगा या निर्लिप्त-यह सोचकर कि यह तो पांडेजी का मामला है वे खुद निपटेंगे-व्हाट कैन आई डू?
शासन के लोग बतायेंगे कि उनके खिलाफ मामला चल रहा है लिहाजा हम कुछ नहीं कह सकते हैं। अखबार को कल से दूसरा मसाला मिल जायेगा। उनको भी तो अपना अखबार चलाना है। पूरी दुनिया को देखना है। कहां तक एक ईमानदार माने जाने वाले अधिकारी का साथ देते रहें?
हरिशंकर परसाई जी ने कहीं लिखा है- लोग कहते हैं कानून अंधा होता है लेकिन यह सच नहीं है। कानून काना होता है। यह जिधर मन होता है उधर देखता है।
लोग कहते हैं कि जब पड़ोसी के घर में आग लगने पर आप सोचते हैं कि आप तो सुरक्षित हैं तब यह भी सोच लेना चाहिये कि अगला जलने वाला घर आपका भी हो सकता है।
लोग कहते हैं कि ब्लाग में बड़ी ताकत होती है। क्या सच में ऐसा है?
मेरी पसंद
तुम्हारा हर काफिला
मतलब की सुरंग से गुजरता है
हर कदम
फायदे के राजमार्ग पर
पड़ता है।
तुम ,
अभी बदले नहीं,
इसीलिये बहुमत में हो।
-अनूप शुक्ला
नजरों के ओछेपन जब इतिहास रचाते हैं,ये अंधकार की पंचायत में सूरज की पेशी का मामला आजकल चल रहा है। महाभ्रष्ट आई.ए.एस. अफसरों को प्रतिवर्ष चिन्हित करने की मुहिम छेड़ने वाले उ.प्र. के वरिष्ठ नौकरशाह श्री विजय शंकर पांडे के खिलाफ शासन हरकत में आ गया है। कुछ और लिखने के पहले थोड़ी जानकारी विजयशंकर पांडे के बारे में।
पिटे हुये मोहरे पन्ना-पन्ना भर जाते हैं,
बैठाये जाते हैं सच्चों पर पहरे तगड़े,
अंधकार की पंचायत में सूरज की पेशी,
किरणें ऐसे करें गवाही जैसे परदेसी ,
सरेआम नीलाम रोशनी ऊंचे भाव चढ़े,
भरी धार लगता है जैसे बालू बीच खड़े।
विजय शंकर पांडे उन चंद बेहद ईमानदार आई.ए.एस. अधिकारियों में माने जाते हैं जो शासन के बेईमान अधिकारियों के खिलाफ लगातार मुहिम छेड़ते रहे हैं । उनकी ईमानदारी की लोग मिसाल देते हैं। जैसा सुना जाता है कि वे अपने कलक्टर के कार्यकाल के दौरान अपने बंगले में उगी फसल का पैसा भी सरकारी खजाने में जमा कराते रहे। जिन जगहों में रहे वहां की नौकरशाही परेशान हो जाती थी इन सिरफरे ईमानदार साहब से। समयपालन होने लगता। लखीमपुर में जब डी.एम. थे तो उगाही करने वाले दफ्तरों के कर्मचारियों पर अंकुश लगाने के लिये नियम बनाया था कि कार्य के दौरान इतने रुपये से अधिक किसी के पास पाये गये तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। बहुतों के खिलाफ की भी।फतेहपुर में पोस्टिंग के दौरान अपने अनुभव लिखते हुये तफसील से बताया कि गुंडा तत्वों का मनोबल कैसे ध्वस्तकियाजा सकता है। कैसे जनता में आत्मविश्वास जगाया जा सकता है। ऐसे सिरफिरे नौकरशाह की नौकरी कभी सुकूनदेह नहीं रही। लगातार उनके तबादले होते रहे। महत्वहीन पदों पर भेजे जातेरहे।
लोग कहते हैं कानून अंधा होता है लेकिन यह सच नहीं है। कानून काना होता है। यह जिधर मन होता है उधर देखता है।- हरिशंकर परसाई
बात यहीं तक नहीं रही। उन्होंने आईएएस एशोसियेशन के माध्यम उ.प्र. के
भ्रष्टतम अधिकारियों को चिन्हित करने का काम किया। इनमें भूतपूर्व
मुख्यसचिव श्री अखंड प्रताप सिंह भी थे जिनके खिलाफ रिटायर होने के बाद ही
मुकदमा शुरु हो सका। वर्तमान मुख्यसचिव को भी आईएएस एशोसियेशन ने महाभ्रष्ट
अधिकारी के रूप में चिन्हित किया था।इस बार भी यहप्रक्रिया शुरु होने वाली थी।अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक- इस बीच ८,अगस्त ,२००५ को जारी शासनादेश के अनुसार निजी मतदान के द्वारा किसी को अधिकारी को भ्रष्ट बताने को दुराचरण करार दे दिया गया है। मतलब अब एशोसियेशन किसी को अपने विवेक से भ्रष्ट ठहराने का काम करेगी तो गैरकानूनी काम होगा।इस बीच विजयशंकर पांडे को भी एक जांच में फंसाया गया था। कुछ अनियमितताओं को लेकर जांच की गई थी ।जांच में वे निर्दोष पाये गये थे लेकिन रिपोर्ट को स्वीकृत करने वाले अधिकारियों को भी भ्रष्ट अधि कारी के रूप में चिन्हित कर चुके थे लिहाजा शायद रिपोर्ट में फेर बदल किया गया । तथा अब उनके खिलाफ कार्रवाई की कवायद चल रही है। कल गिरफ्तारी की भी अफवाह रही। जिसके लिये पांडेजी का कहना है- “मैं तो गिरफ्तारी के लिये तैयार बैठा हूं ।कोई आये तो।”
श्री पांडे ने हाईकोर्ट में शरण लेकर अपने खिलाफ चल रही सतर्कता जांच में हेराफेरी व खुद को फंसाये जाने का आरोप लगाते हुये पूरे प्रकरण की जांच सी.बी.आई. से कराने की गुहार की है।उनकी याचिका पर आज सुनवाई होने वाली है। आगे क्या होगा यह समय बतायेगा। लेकिन यह तय है कि ईमानदारी का परचम लहराने का खामियाजा श्री पांडे को तो भुगतना पड़ रहा है।
भारत में आई.ए.एस. लाबी सबसे ताकतवर मानी जाती है। देश के सबसे जहीन लोग इस सेवा में आते रहे हैं। इन जहीन लोगों का बहुमत या तो श्री पांडे के खिलाफ होगा या निर्लिप्त-यह सोचकर कि यह तो पांडेजी का मामला है वे खुद निपटेंगे-व्हाट कैन आई डू?
जब
पड़ोसी के घर में आग लगने पर आप सोचते हैं कि आप तो सुरक्षित हैं तब यह भी
सोच लेना चाहिये कि अगला जलने वाला घर आपका भी हो सकता है।
देश की यह सबसे जहीन ,ताकतवर लाबी -”यू सो मी द फेस ,आई विल सो यू द
रूल” के स्वर्णिम नियम का अनुपालन करते हुये शानदार ढंग से काम करती है। शासन के लोग बतायेंगे कि उनके खिलाफ मामला चल रहा है लिहाजा हम कुछ नहीं कह सकते हैं। अखबार को कल से दूसरा मसाला मिल जायेगा। उनको भी तो अपना अखबार चलाना है। पूरी दुनिया को देखना है। कहां तक एक ईमानदार माने जाने वाले अधिकारी का साथ देते रहें?
हरिशंकर परसाई जी ने कहीं लिखा है- लोग कहते हैं कानून अंधा होता है लेकिन यह सच नहीं है। कानून काना होता है। यह जिधर मन होता है उधर देखता है।
लोग कहते हैं कि जब पड़ोसी के घर में आग लगने पर आप सोचते हैं कि आप तो सुरक्षित हैं तब यह भी सोच लेना चाहिये कि अगला जलने वाला घर आपका भी हो सकता है।
लोग कहते हैं कि ब्लाग में बड़ी ताकत होती है। क्या सच में ऐसा है?
मेरी पसंद
तुम्हारा हर काफिला
मतलब की सुरंग से गुजरता है
हर कदम
फायदे के राजमार्ग पर
पड़ता है।
तुम ,
अभी बदले नहीं,
इसीलिये बहुमत में हो।
-अनूप शुक्ला
Posted in बस यूं ही | 2 Responses
ब्लागमंडल मे किसी ने टिप्पणी की थी की भारत का नुकसान पढे लिखों ने ज्यादा किया है! १६ आने सच बात है.
हम सब अलग-अलग मामलों मे किसी ना किसी बहुमत या अल्पमत वालों मे शरीक होते हैं मगर एक बहुमत मे सभी शरीक हैं की भारत मे ईमानदार सरकारी पदाधिकारी अल्पसंख्यक हैं.