Tuesday, February 14, 2006

वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है

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वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है

विष्णुजी बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते थक गये थे। उनके उलटने-पुलटने से शेषनाग भी उसी तरह फुंफकार रहे थे जिस तरह चढ़ाई पर चढ़ते समय कोई पुराना ट्रक ढेर सारा धुंआ छोड़ता है। वे सबेरे से बोर हो रहे थे। अचानक सामने से नारद जी चहकते हुये आते दिखे। नारद जी को देककर विष्णुजी ने वैसी ही मुस्कान धारण कर ली जैसी कि अपने चुनाव क्षेत्र से आये कार्यकर्ता को देखकर सांसद लोग धारण कर लेते हैं। विष्णुजी माहौल की गम्भीरता तथा औपचारिकता का चीरहरण करके तार-तार करते हुये बोले- क्या बात है नारद !तुम्हारा चेहरा तो किसी टीवी चैनेल के एंकर की तरह चमक रहा है जिसने वह कलई पहली बार खोली है जिसे दुनिया पहले से जानती है।
नारदजी नारद के मैनेजिंग डायरेक्टर की तरह हेंहेंहें करते हुये बोले- प्रभो आप भी न! मसखरी करना तो कोई आपसे सीखे। कितने युग बीत गये कृष्णावतार को लेकिन आपका मन उन्हीं बालसुलभ लीलाओं में रमता है।
नारदजी के मुंह से ‘आप भी न!‘ सुनकर विष्णुजी को अपनी तमाम गोपियां,सहेलियां याद आ गयीं जो उनकी शरारतों पर पुलकते हुये -‘उन्हें आप भी न ‘का उलाहना देती थीं।
हां,नारद सच कहते हो। आखिर रमें भी क्यों न। मेरा सबसे शानदार कार्यकाल तो कृष्णावतार का ही रहा। उस दौर में कितना आंनद किया मैंने। मेरे भाषणों की एकमात्र किताब -गीता भी, उसी दौर में छपी। मेरा मन आज भी उन्हीं स्मृतियों में रमता है। बालपन की शरारतों को याद करके मन उसी तरह भारी हो जाता है जिस तरह किसी भी प्रवासी का मन होली-दीवाली भारी होने का रिवाज है। विष्णुजी पीताम्बर से सूखी आंख पोछने लगे।
यह ‘अंखपोछवा’ नाटक देखना न पड़े इसलिये नारदजी नजरे नीची करके क्षीरसागर में, बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है, का सजीव प्रसारण देखने लगे।
विष्णुजी ने अपना नाटक पूरा करने के बाद जम्हुआई लेते हुये नारदजी से कहा- और नारद जी कुछ नया ताजा सुनाया जाय। न हो तो मृत्युलोक का ही कथावाचनकरिये। क्या हाल हैं वहां पर जनता-जनार्दन का?
नारदजी गला खखारकर बिना भूमिका के शुरू हो गये:-
महाराज पृथ्वीलोक में इन दिनों फरवरी का महीना चल रहा है। आधा बीत गया है। आधा बचा है। वह भी बीत ही जायेगा। जब आधा बीत गया तो बाकी आधे को कैसे रोका जा सकता है! हर तरफ बसंत की बयार बह रही है। लोग मदनोत्सव की तैयारी में जुटे हैं। कविगण अपनी यादों के तलछट से खोज-खोजकर बसंत की पुरानी कवितायें सुना रहे हैं। कविताओं की खुशबू से कविगण भावविभोर हो रहे हैं। कविताओं की खुशबू हवा में मिलकर के नथुनों में घुसकर उन्हें आनन्दित कर रही है। वहीं कुछ ऊंचे दर्जे की खुशबू कतिपय श्रोताओं के ऊपर से गुजर रही हैं। ये देखिये ये कविराज ने ये कविता का ‘ढउआ’(बड़ी पतंग) उड़ाया तथा शुरू हो गये:-
स्वागत है ऋतुराज तुम्हारा,स्वागत है ऋतुराज।
ऋतुराज के मंझे में वे आगे साज/ बाज /आज/ काज /खाज /जहाज की सद्धी(धागा)जोड़ते हुये ढील देते जा रहे हैं। उधर से दूसरी कविता की पतंग उड़ी है जिनमें बनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है के पुछल्ले के साथ दिगंत/संत/महंत/अनंत/कहंत/हंत/दंत घराने का धागा जुड़ा है। पतंग-ढउवे का जोडा़ झितिज में चोंच लड़ा रहा है। दोनों की लटाई से धागे की ढील लगातार मिल रही थी तथा वे हीरो-हीरोईन की तरह एक दूसरे के चक्कर काट रहे हैं। दोनों एकदूसरे से चिपट-लिपट रहे हैं। गुत्थमगुत्था हो रहे हैं। तथा सरसराते हुये फुसफुसा रहे हैं-हम बने तुम इक दूजे के लिये।
और प्रभो, मैं यह क्या देख रहा हूं । दोनों के सामने एक पेड़ की डाल आ गयी है। वे पेड़ की डाल में फंस के रहे गये हैं। पेड़ की डाल कुछ उसी तरह से है जिस तरह जाट इलाके का बाप अपने बच्चों को प्रेम करते हुये पकड़ लेने पर फड़फडा़ता है तथा उनको घसीट के पंचायत के पास ले जाता है ताकि पंचायत से न्याय कराया जा सके।
विष्णुजी बोले यार नारद ये क्या तुम क्रिकेट की कमेंट्रीनुमा बसंत की कमेंट्री सुना रहे हो? ये तो हर साल का किस्सा है। कुछ नया ताजा हो तो सुनाओ। ‘समथिंग डिफरेंट’ टाइप का।
नारदजी घाट-घाट का पानी पिये थे। वे समझगये कि विष्णुजी ‘वेलेंटाइन डे’ के किस्से सुनना चाह रहे थे।लेकिन वे सारा काम थ्रू प्रापर चैनेल करना चाहते थे। लिहाजा वे विष्णुजी को खुले खेत में ले गये जिसे वे प्रकृति की गोद भी कहा करते थे।
सरसों के खेत में तितलियां देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरह मंडरा रहीं हैं ।हर पौधा तितलियों को देखकर थरथरा रहा है। भौंरे भी तितलियों के पीछे शोहदों की तरह मंडरा रहे हैं। आनंदातिरेक से लहराते अलसी के फूलों को बासंती हवा दुलरा रही है। एक कोने में खिली गुलाब की कली सबकी नजर बचाकर पास के गबरू गेंदे के फूल पर पसर सी गयी है। अपना कांटा गेंदे के फूल को चुभाकर नखरियाते तथा लजाते हुये बोली-हटो,क्या करते हो ? कोई देख लेगा।
गेंदे ने कली की लालिमा चुराकर कहा- काश! तुम हमेशा मुझसे ऐसे ही कहती रहती -छोडो़ जी कोई देख लेगा।
कली उदास हो गयी। बोली- ऐसा हो नहीं सकता। हमारा तुम्हारा कुल,गोत्र,प्रजाति अलग है। हम लोग एक दूजे के नहीं हो सकते। हम तुम दो सामान्तर रेखाओं की तरह हैं जो साथ-साथ चलने के बावजूद कभी नहीं मिलती।
गेंदा बोला-काश हमारे यहां भी अनूपभार्गव की तरह कोई कारसाज होता जो हमारे तुम्हारे बीच प्यार का लंब डालकर हमारा गठबंधन करा देता।हमारे मिलन का रास्ता तैयार कर देता।
पास के खेत में खड़े जौं के पौधे की मूंछें (बालियां) गेंदे – गुलाब का प्रेमालाप सुनते हुये थरथरा रहीं थीं।खेत में फसल की रक्षा के लिये खड़े बिजूके के ऊपर का कौवा भी बिना मतलब भावुक होकर कांव-काव करने लगा।
नारदजी इस प्रेमकथा को आगे खींचते लेकिन विष्णुजी को जमुहाई लेते देख गीयर बदल लिया तथा वेलेंटाइन डे के किस्से सुनाने लगे।
महाराज आज पूरे देश में वेलेंटाइन डे की डटा बिखरी है। जिधर देखो उधर वेलेंटाइन के अलावा कुछ नहीं दिखता। सब तरफ इलू-इलू की लू चल रही है तथा वातावरण में भयानक गर्मी व्याप्त है। भरी फरवरी में जून का माहौल हो रहा है। लोग अपने कपडे़ उतारने उसी तरह व्याकुल हैं जिस तरह अमेरिका तमाम दुनिया में लोकतंत्र की स्थापना को व्याकुल रहता है।
सारे लोग अपने-अपने प्यार का स्टाक क्लीयर कर रहे हैं। जो सामने दिखा उसी पर प्यार उडे़ले दे रहे हैं। गलियों में,बहारों में,छतों में ,दीवारों में,सड़कों में, गलियारों में,चौबारों में प्यार ही प्यार अंटा पड़ा है। हर तरफ प्यार की बाढ़ सी आ रखी है। टेलीविजन, इंटरनेट, अखबार, समाचार सब जगह प्यार ही प्यार उफना रहा है। तमाम लोगों के प्यार की कहानियां छितरा रहीं हैं।टेलीविजन का कोई चैनेल शिवशैनिक के प्यार का अंदाज बता रहा है तो इंटरनेट की कोई साइट लालू यादव-राबड़ी देवी की प्रेमकथा बता रहा है। पूरा देश सब कुछ छोड़कर कमर कसकर वेलेंटाइन डे मनाने में जुट गया है। वेलेंटाइन के शंखनाद से डरकर अभाव, दैन्य,गरीबी तथा तमाम दूसरे दुश्मन सर पर रखकर नौ दो ग्यारह हो गये हैं।
विष्णुजी बोले -लेकिन यह वेलेंटाइन डे हमने तो कभी नहीं मनाया। नारदजी के पास जवाब तैयार था- महाराज ,आपके समय की बात अलग थी। समय इफरात था आपके पास। जब मन आया प्रेम प्रदर्शन शुरू कर दिया। लतायें थीं,कुंज थीं संकरी गलियां थीं। जहां मन आया ,कार्य प्रगति पर है ,का बोर्ड लगाकर रासलीला शुरू कर दी। जितना कर सके किया बाकी अगले दिन के लिये छोड़ दिया। कोई हिसाब नहीं मांगता था। साल भर प्यार की नदी में पानी बहता था। लेकिन आज ऐसा नहीं हो सकता।प्यार की नदियां सूख गयीं हैं । अब सप्लाई टैंकों से होती है। साल भर इकट्ठा किया प्यार। वेलेंटाइन डे वाले दिन सारा उड़ेल दिया। छुट्टी साल भर की। एक दिन में जितना प्यार बहाना हो बहा लो। ये थोडी़ की सारा साल प्यार करते रहो।दूसरे ‘डे’ को भी मौका देना है। फादर्स डे,मदर्स डे,प्रपोजल डे, चाकलेट डे,स्लैप डे(तमाचा दिवस) आदि-इत्यादि।जिस रफ्तार से ‘डेस’ की संख्या कुकुरमुत्तों की तरह बढ़ रही है उससे कुछ समय बाद साल में दिन कम होंगे ,डे ज्यादा। मुंमई की खोली की तरह एक-एक दिन में पांच-पांच सात-सात ‘डेस’ अँटे पड़े होंगे।
विष्णुजी बंबई का जिक्र सुनते ही यह सोच कर घबरा गये कि कोई उनका संबंध दाउद की पार्टी से न जोड़ दे।वे बोले कैसे मनाते हैं- वेलेंटाइन दिवस?
नारदजी बोले-मैंने तो कभी मनाया नहीं भगवन! लेकिन जितना जानता हूं बताता हूं। लोग सबेरे-सबेरे उठकर मुंह धोये बिना जानपहचान के सब लोगों को” हैप्पी वेलेंटाइन डे” बोलते हैं। हैप्पी तथा सेम टू यू की मारामारी मची रहती है।दोपहर होते होते तुमने मुझे इतनी देर से क्यों किया । जाओ बात नहीं करती की शिकवा शिकायत शुरू हो जाती है। शाम को सारा देश थिरकने लगता है। नाचने में अपने शरीर के सारे अंगों को एक-दुसरे से दूर फेंकना होता है। स्प्रिंग एक्शन से फेंके गये अंग फिर वापस लौट आते हैं। दांत में अगर अच्छी क्वालिटी का मंजन किया हो तो दांत दिखाये जाते हैं या फिर मुस्कराया जाता है। दोनों में से एक का करना जरूरी है। केवल हांफते समय, सर उठाकर कोकाकोला पीते समय या पसीना पोंछते समय छूट मिल सकती है।
तमाम टेलीविजन तरह-तरह के सर्वे करते हैं। जैसे इस बार सर्वे हो रहा है।देश का सबसे सेक्सी हीरो कौन है-शाहरुख खान, आमिरखान, सलमान खान या अभिषेकबच्चन । हीरो अकेले नहीं न रह सकता लिहाजा यह भी बताना पड़ेगा-सबसे सेक्सी हीरोइन कौन है-रानी मुकर्जी ,ऐश्वर्या राय ,प्रीतिजिंटा या सानिया मिर्जा । देश का सारा सेक्स इन आठ लोगों में आकर सिमट गया है। अब आपको एसएमएस करके बताना है कि इनमें सबसे सेक्सी कौन है। आपको पूरी छूट है कि आप जिसे चाहें चुने लेकिन इन आठ के अलावा कोई और विकल्प चुनने की आजादी नहीं है आपके पास।करोड़ों के एसएमएस अरबों के विज्ञापन बस आपको बताना है कि सबसे सेक्सी जोड़ा कौन है?
चुनना चार में ही है।ऐसी आजादी और कहां? जो जोड़ा चुना जायेगा उसका हचक के प्रचार होगा। प्रचारके बाद दुनिया के सबसे जवान देश के नवजवान लोग देश के इस सबसे सेक्सी जोड़े को अपने सपनों में ओपेन सोर्से प्रोग्राम की तरह मुफ्त में डाउनलोड करके अपना काम चलायेंगे।
कम्प्यूटर की भाषा से विष्णुजी को उसी तरह अबूझ लगती है जिसतरह क्रिकेटरों,हिदीं सिनेमा वालों को हिंदी। वे झटके से बोले-अच्छा तो नारद अब तुम चलो। मैं भी चलता हूं लक्ष्मी को हैप्पी वेलेंटाइन डे बोलना है।
नारदजी टेलीविजन पर टकटकी लगाये हुये सर्वे में भाग लेने के लिये अपने मोबाइल पर अंगुलियां फिराने लगे। वोटिंग लाइन खुली थीं । आप भी काहे को पीछे रहें।
मेरी पसंद
हुई है रात की कालिख जरा ज्यादा यहां गहरी
तुम्हारी ज़ुल्फ़ कुछ ज्यादा घनेरी हो गई होगी
न आई याद है कोई, मुझे मुमकिन ये लगता है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ की पेचीदगी में खो गई होगी
बहुत दिन हो गये आई नहीं है भोर गलियों में
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शायद सो गई होगी
पता है. इसलिये सावन गया है इस बरस सूखा
घटा, ज़ुल्फ़ें तुम्हारी देख वापस हो गई होगी
थिरकती बूँद पानी के तेरी ज़ुल्फ़ों में , कहती है
कोई बदली कभी इनमें शबिस्तां हो गई होगी
तुम्हारी ज़ुल्फ़ को देखा तो कुछ अशआर कह डाले
पता मुझको न चल पाया गज़ल खुद हो गई होगी.
-राकेश खण्डेलवाल

10 responses to “वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है”

  1. Pankaj Narula
    Anoop ji
    Subah aap se baat na ho saki, us ke liye muaafi. Abhi lunch time mein pad raha hun. Baaki Sheshnaag ka pooraney truck se kisi ne pehli baar compare kiya hoga. Sahi hai.
    - Pankaj
  2. eswami
    जीतू भाई का कमेंट:
    सही है गुरु, सही ढूंढ लाये हो, विष्णुजी को वैलेन्टाइन डे मना लिया। धीरे से लिखो,कंही प्रवीण तोगडिया या बाल ठाकरे से पढ लिया तो गजब हो जायेगा। सारे इन्टरनैट कैफ़े के कम्प्यूटर ना तोड़ डालें, तुम्हारे इस ब्लॉग के चक्कर में।
    बकिया लेख तो झकास है, बहुत मौज आयी पढने में, इसका अगला भाग भी होना चाहिये। लो, अब झेलो हमारी तरफ़ से तुम्हारे लिये वैलेन्टाइन डे की गिफ़्ट
  3. eswami
    इस बार काल दीवस हम इस दिन के अस्तित्व क ही पूरी तरह् इग्नोर कर के मनाया हूँ. खुशी है की वेलेन्टाईन के अवसर पर एक मजेदार लेख पढने को मिला.
  4. प्रत्यक्षा
    विष्णु नारद संवाद और वसंतोत्सव के जलवे….आप ही लिख सकते थे महाराज !
  5. आशीष
    बाकी सब तो ठीक है लेकिन हमारे समझ मे ये नही आया कि जितु भाइ का कमेँट फुरसतियाजी के चिठ्ठे पर चिपकने से मना क्योँ कर देता है.
  6. mj
    bahut badiya. ish saal to aap dhoni ki tarah ballebaji kar rahe ho. ek se bad kar ek pariyan..
  7. Manoshi
    वाह अनूप जी| आपकी पसंद की कविता भी दिवसानुसार ही रही|
  8. indra awasthi
    मेरी पसन्द:
    जिस तरह चढ़ाई पर चढ़ते समय कोई पुराना ट्रक ढेर सारा धुंआ छोड़ता है।
    वेलेंटाइन के शंखनाद से डरकर अभाव, दैन्य,गरीबी तथा तमाम दूसरे दुश्मन सर पर रखकर नौ दो ग्यारह हो गये हैं।
    लोग सबेरे-सबेरे उठकर मुंह धोये बिना जानपहचान के सब लोगों को” हैप्पी वेलेंटाइन डे” बोलते हैं। हैप्पी तथा सेम टू यू की मारामारी मची रहती है।दोपहर होते होते तुमने मुझे इतनी देर से क्यों किया । जाओ बात नहीं करती की शिकवा शिकायत शुरू हो जाती है।
  9. फ़ुरसतिया » कलियों ने कहा भौंरे से
    [...] बसंती को सफलता पूर्वक भागते देखकर हम फिर बाग में गये। देखा बसंत बिखरा हुआ है। प्रमाण स्वरूप एक भौंरा दिखा जो एक कली के चारो तरफ मंडरा रहा था। कली मौज के मूड में थी। बोली तुम अभी तो बगल की कली के ऊपर मंडरा रहे थे। इधर कैसे आये? [...]
  10. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] की हार नहीं होती 3.आपका संकल्प क्या है? 4.वनन में बागन में बगर्‌यो बसंत है 5.मेरे अब्बा मुझे चैन से पढ़ने नहीं [...]

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