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घायल की गति घायल जाने
By फ़ुरसतिया on February 3, 2007
[ऒ.हेनरी, प्रख्यात अमेरिकी कहानी लेखक 'विलियम सिडनी
पोर्टर' का उपनाम है। उनका जन्म ११ सितम्बर, १८६२ के दिन ग्रीन्सबरो एन.सी.
में हुआ और मृत्यु ५ जून, १९१० को न्यूयार्क में। पन्द्रह वर्ष की उम्र
में हेनरी ने स्कूल छोड़ दिया लेकिन पढ़ने-लिखने की आतुरता नहीं छूटी।
ऒ.हेनरी ने मानवीय संवेदनाऒं की अद्भुत कहानियां लिखीं हैं।अपनी पिछ्ली पोस्ट में मैंने ऒ. हेनरी की एक चोर की कहानी का जिक्र किया था। वह कहानी यहां आपके लिये प्रस्तुत है।]
चोर ने खिड़की के भीतर पैर जल्दी से रखा और कुछ दर तक प्रतीक्षा करने लगा। अपने हुनर के प्रति आदरभाव रखने वाला हर चोर कोई चीज उठाने से पहले यह
कदम उठाता ही है।
यह मकान किसी का निजी निवासगृह था। तख्ते से ढंके हुए सामने के दरवाजे और संवारे बोस्टन के सदाबहार पौधों को देखकर चोर ने जान लिया कि घर की
मालकिन समुद्र के किनारे किसी बरामदे में बैठी हुई किसी सहृदय नाविक से कह रही होगी, कि उसके एकाकी और पीड़ित हृदय को किसी ने नहीं पहचाना।
तीसरे मंजिल की सामने वाली खिड़कियों में रोशनी देखकर और मौसम का अंदाजा लगाते हुए वह समझ गया कि घर का मालिक लौटकर आ गया है और जल्दी ही रोशनी बुझाकर सो जायेगा। उस समय मालिक मकान छत पर के बगीचों और टाइपिस्ट लड़कियों का क्षणिक आनन्द छोड़कर अपनी जीवन-संगिनी की बाट जोहने लगते हैं ताकि नैतिक और सामाजिक स्थिरता प्राप्त हो सके।
चोर ने एक सिगरेट जलायी। उंगलियों की ओट में जलती हुई दियासलाई के प्रकाश में उसका चेहरा चमक उठा। वह तीसरी किस्म का चोर था।
चोरों की यह तीसरी किस्म अभी तक न पहचानी गयी है, न स्वीकार की गयी है। पुलिस के द्वारा अभी दो किस्में ही लोकप्रिय हुई हैं। उनका वर्गीकरण काफ़ी आसान है। कालर उनकी विशेष पहचान है।
जब कोई ऎसा चोर जो कालर नहीं पहनता हो, पकड़ा जाता हैं, तब उसे सबसे हल्के दर्जे का पतित, एकदम दुराचारी और दुष्ट कहा जाता है। उस पर यह भी सन्देह
किया जाता है कि सन १८७८ में हैने-सी नामक थानेदार की जेब से हथकड़ियां चुरा कर गिरफ़्तारी से बचने कि लिए भाग जाने वाला उद्दण्ड अभियुक्त वही है।
दूसरी जानी-पहचानी किस्म का चोर वह है जो कालर पहनता है। वह अपने वास्तविक जीवन में जुआरी होता है। दिन में वह सदा एक सज्जन बना रहता है।
सही सूट पहनकर नाश्ता करता है और दीवार पर कागज लगाने वाला बना फ़िरता है। पर रात होते ही अपना चोरी का नीच धंधा अपना लेता है। उसकी मां ओसन ग्रीव की प्रतिष्ठित और अत्यन्त धनवान औरत होती है और जेल की कोठरी में प्रवेश करते ही वह कील-कांटों और पुलिस गजट की मांग करता है। अमरीका के हर राज्य में उसकी एक पत्नी और हर प्रान्त में एक मंगेतर होती है। जिन महिलाओं का पांच-पांच डाक्टरो द्वारा इलाज भी असफ़ल हो जाये और उसके बाद एक ही खुराक में जिन्हें काफ़ी चैन पड़ जाये और एक पूरी बोतल में तो पूरा आराम, उन्हीं की तस्वीरों को अदल-बदल कर अखबार वाले उसकी शादी के समाचार छापते है।
इस चोर ने एक नीला स्वेटर पहिन रखा था। वह न जुआरी किस्म का था और न नरक के कीड़ो जैसा। उसका वर्गीकरण करने में तो पुलिस भी पेशोपेश में पड़ जाती। उन्होंने अभी तक ऎसे कुलीन और विनीत चोरों के बारे में सुना तक नहीं था जो अपने दर्जे से न अधिक और न कम हैं।
तो इस तीसरे किस्म के चोर ने अब खोज शुरू की। उसने नकाब या काला चश्मा या रबर के जूते-कुछ भी नहीं पहन रखे थे। उसकी जेब में एक तमंचा था और वह चिन्तामग्न एक पीपरमेंट की गोली चूस रहा था।
गर्मियों की धूल से बचाने के लिए फ़र्नीचर पर गिलाफ़ चढ़े हुए थे। सोना-चांदी वहां से दूर किसी बैंक के तहखाने में होंगे। चोर को कोई विशेष रकम प्राप्त होने की आशा नहीं थी। उसका निर्दिष्ट स्थान तो वह हल्की रोशनी वाला कमरा था, जहां घर का मालिक, अपने एकाकीपन का जैसे-तैसे उपचार करके, सन्तोषपूर्वक, गहरी नींद में सो रहा था। वहां से कुछ मामूली माल ही हाथ आने की आशंका थी, जिसे वाजिबी, व्यावसायिक लाभ कहा जा सकता है, जैसे कुछ रेजगारी, कोई घड़ी या जड़ाऊ पिन वगैरह और, सिंगारदान पर कुछ नोट, एक पट्टा, चाबियां, दो-तीन पोकर के खेल के टोकन, मसली हुई सिगारें, रेशमी बालों का एक गुलाबी बो और सवेरे खुमारी उतारने के लिए सोडा-लेमन की बन्द बोतल-यही सब चींजे रखी थी। पास ही पलंग पर एक आदमी सोया था।
चोर ने सिंगारदान की तरफ़ को-तीन कदम बढ़ाये। एकाएक बिस्तर में पड़े हुए आदमी के मुंह से एक चीख जैसी कराह निकली और उसने अपनी आंखे खोल दी। उसका दाहिना हाथ तकिये के नीचे गया, पर वहीं रह गया।
बातचीत के लहजे में चोर में कहा, चुपचाप पड़े रहो।” तीसरे दर्जे के चोर फ़ुंफ़कारते नहीं। बिस्तर में पड़े हुए नागरिक ने चोर की पिस्तौल के गोल मुंह की ओर देखा और चुपचाप पड़ा रहा।
चोर ने आदेश दिया,”अब अपने दोनों हाथ ऊंचे करो।”
बिना दर्द-दांत निकालने वाले दंत-चिकित्सक की तरह दिखने वाले इस नागरिक के एक छोटी नुकीली, भूरी सफ़ेद दाढ़ी थी। वह समृद्ध प्रतिष्ठित, चिड़चिड़ा और नाराज लगता था। अपने बिस्तर पर ही बैठ कर उसने अपना दाहिना हाथ सिर से ऊंचा उठा लिया।
चोर ने हुक्म दिया “दूसरा हाथ भी। हो सकता है कि तुम दोनों हाथ चला सकते हों और अभी बायें हाथ से गोली दाग दो। तुम दो तक तो गिन सकते हो? क्यों?
ज्ल्दी करो।”
अपने मुंह की रेखाओ को विकृत करते हुए नागरिक ने कहा,”दूसरा हाथ नही उठा सकता।”
“क्यों? क्या तकलीफ़ है?”
“कन्धे में गठिया है?”
“सूजन भी है?”
“थी; पर अब चली गयी है।”
चोर, एकाध क्षण उसकी तरफ़ पिस्तौल किये खड़ा रहा। उसने सिंगारदान पर पड़े हुए माल पर एक नजर फ़ेंकी और फ़िर कुछ हक्का-बक्का होकर बिस्तरे पर बैठे
आदमी की ओर देखा। तभी, उसका मुंह भी ऎंठ कर विरूप होने लगा।
नागिरक ने दर्द के साथ कहा,”वहां खड़े-खड़े मुंह क्या बनाते हो? चोरी करने आये हो तो करते क्यों नहीं? इधर-उधर कुछ माल बिखरा तो है?”
खींसे निपोरते हुए चोर बोला, “माफ़ करना। तुम्हारी हालत से मुझे भी धक्का पहुंचा है। तुम्हें जानकर खुशी होगी कि गठिया और मैं पुराने दोस्त हैं। मेरे भी बायें हाथ में गठिया था। मेरी जगह और कोई होता तो बायां हाथ न उठाने पर तुम्हें जरूर गोली मार देता।”
नागरिक ने पूछा, “तुम्हारे गठिया कब से है?”
“चार बरस से। मेरे ख्याल से अभी क्या हुआ है? एक बार तुम्हें यह लग जाये फ़िर तो जिन्दगी भर तुम गठिया गये-मेरा तो यही विश्वास है।”
नागरिक ने पूछा,”सांप का तेल कभी इस्तेमाल किया?”
चोर ने कहा,”सेरों! जितने सापों का तेल मैंने काम में लिया, उतने अगर एक पंक्ति मे जमाकर दिये जायें तो शनि नक्षत्र तक आठ बार पहुंच सकते है। और उसकी सरसराहट वालपरेसो- इण्डियाना तक सुनाई दे सकती है।”
नागरिक बोला,”कुछ लोग चाइसलम की गोलियां काम में लेते हैं।”
चोर ने कहा,”बहुत! पांच महीने तक ली हैं। कोई फ़ायदा नहीं। जिस साल मैने फ़िंकलहम एक्सट्रेक्ट, गाइलीड बाम और पोल्टिस और पांट पेन पल्वेराइजर का प्रयोग किया, उस साल कुछ राहत हुई। पर मेरे ख्याल से तो जेब में अखरोट रखना कारगर हो गया।”
नागरिक ने पूछा,”तुम्हें सुबह ज्यादा तकलीफ़ होती है या रात में?”
चोर बोला, “रात में-जब मैं अधिक व्यस्त होता हूं। अच्छा अब अपना हाथ नीचा कर लो। मेरे ख्याल से अब तुम-! अच्छा, तुमने कभी ब्लिझरस्टाक का
ब्लड-बिल्डर काम में लिया?”
“नहीं, कभी नहीं! तुम्हें दर्द के दौरे आते हैं या हमेशा एक-सा दर्द रहता है?”
चोर, बिस्तर के पैताने पर बैठ गया अपने घुटनों पर पिस्तौल रख ली। उसने कहा,”मेरे तो टीस उठती है। जब मुझे उसकी कोई उम्मीद नहीं होती तभी दर्द होने लगता है। क्या बताऊं, मेरे ख्याल से डांक्टरों के पास भी इसका कोई इलाज नहीं है।”
“यही हालत यहां है। मैनें भी करीब एक हजार डांलर खर्च कर दिये हैं, पर कोई फ़ायदा नहीं तुम्हारा गठिया कभी सूजता है?”
“हां, सवेरे। और जब बरसात आने वाली होती है तब। हे भगवान!”
नागरिक ने कहा,”मेरे भी। मैं तुम्हें बता सकता हूं कि टेबल की चद्दर के नाप के बादल का टुकड़ा कब फ़्लोरिडा से उठकर न्यूयार्क की तरफ़ रवाना हो रहा है और अगर मैं किसी थियेटर के पास से गुजरता हूं, जहां मेटिनी खेल हो रहा है तो, उसके सीलेपन से मेरे बांये हाथ में वैसा दर्द होता है जैसे दांतो में होता है।”
“बिल्कुल ठीक।”
चोर ने अपनी पिस्तौल की तरफ़ देखा और खिसयाते हुये आसानी से उसे जेब में डाल लिया। उसने विवशता से कहा,” यह तो बताओ, कभी तारपीन का मालिश किया है?”
कुछ गुस्से से नागरिक बोला,”हट, यह तो होटल के मक्खन का मालिश करने के बराबर है।”
सहमति प्रकट करते हुये चोर ने कहा,”जरूर, यह तो बिल्ली के द्वारा उंगली के खरोंच लगा देने पर छोटे मुन्नों के लगाने लायक मरहम हैं। मैं तुम्हें बताता हूं। हमारी एक ही तकलीफ़ है और इसको हल्का करने का एक ही उपाय मैं जानता हूं। क्या? वही स्वास्थ्यप्रद, सुधार करने वाली, गम दूर करने वाली शराब! कहो, है न ठीक! माफ़ करना! जल्दी से कपड़े पहिन कर कुछ पीने के लिए बाहर चलें! इतनी बेतकल्लुफ़ी के लिए माफ करना, पर-उफ़! लो फ़िर हो गया।”
नागरिक ने कहा,”एक हफ़्ते से मैं बिना किसी की मदद के कपड़े भी नहीं पहन सकता हूं,। थामस तो सो गया होगा, अब।”
चोर ने कहा,”बाहर निकलों, मैं तुम्हें कपड़े पहना दूंगा।”
ज्वर की तरह उस नागरिक में फ़िर अपनी आदत लौट आयी। उसने अपनी अधपकी दाढ़ी पर हाथ फ़ेरा और कहने लगा,”अजीब बात है।”
चोर बोला,” यह रहा तुम्हारा कमीज! पहन लो। मैं एक आदमी को जानता हूं जो कहता था कि ऊमबैरी आइन्टमैण्ट से वह दो हफ़्तों में इतना अच्छा हो गया कि
दोनों हाथों से टाई बांधने लगा।”
ज्यों ही दरवाजे से बाहर निकले नागरिक घूमकर वापिस जाने लगा।
उसने समझाया,”लगता है कि पैसे भूल गया हू। कल रात सिंगारदान पर रखे थे।”
चोर ने उसकी दाहिनी बांह पकड़ ली।
उसने बड़े मजे से कहा,” मैं कहता हूं चलो ना! छोड़ो उसे! मेरे पास दाम हैं।कभी जैतून और विन्टरग्रीन का तेल का प्रयोग किया है?”
-ऒ हेनरी
चोर ने खिड़की के भीतर पैर जल्दी से रखा और कुछ दर तक प्रतीक्षा करने लगा। अपने हुनर के प्रति आदरभाव रखने वाला हर चोर कोई चीज उठाने से पहले यह
कदम उठाता ही है।
यह मकान किसी का निजी निवासगृह था। तख्ते से ढंके हुए सामने के दरवाजे और संवारे बोस्टन के सदाबहार पौधों को देखकर चोर ने जान लिया कि घर की
मालकिन समुद्र के किनारे किसी बरामदे में बैठी हुई किसी सहृदय नाविक से कह रही होगी, कि उसके एकाकी और पीड़ित हृदय को किसी ने नहीं पहचाना।
तीसरे मंजिल की सामने वाली खिड़कियों में रोशनी देखकर और मौसम का अंदाजा लगाते हुए वह समझ गया कि घर का मालिक लौटकर आ गया है और जल्दी ही रोशनी बुझाकर सो जायेगा। उस समय मालिक मकान छत पर के बगीचों और टाइपिस्ट लड़कियों का क्षणिक आनन्द छोड़कर अपनी जीवन-संगिनी की बाट जोहने लगते हैं ताकि नैतिक और सामाजिक स्थिरता प्राप्त हो सके।
चोर ने एक सिगरेट जलायी। उंगलियों की ओट में जलती हुई दियासलाई के प्रकाश में उसका चेहरा चमक उठा। वह तीसरी किस्म का चोर था।
चोरों की यह तीसरी किस्म अभी तक न पहचानी गयी है, न स्वीकार की गयी है। पुलिस के द्वारा अभी दो किस्में ही लोकप्रिय हुई हैं। उनका वर्गीकरण काफ़ी आसान है। कालर उनकी विशेष पहचान है।
जब कोई ऎसा चोर जो कालर नहीं पहनता हो, पकड़ा जाता हैं, तब उसे सबसे हल्के दर्जे का पतित, एकदम दुराचारी और दुष्ट कहा जाता है। उस पर यह भी सन्देह
किया जाता है कि सन १८७८ में हैने-सी नामक थानेदार की जेब से हथकड़ियां चुरा कर गिरफ़्तारी से बचने कि लिए भाग जाने वाला उद्दण्ड अभियुक्त वही है।
दूसरी जानी-पहचानी किस्म का चोर वह है जो कालर पहनता है। वह अपने वास्तविक जीवन में जुआरी होता है। दिन में वह सदा एक सज्जन बना रहता है।
सही सूट पहनकर नाश्ता करता है और दीवार पर कागज लगाने वाला बना फ़िरता है। पर रात होते ही अपना चोरी का नीच धंधा अपना लेता है। उसकी मां ओसन ग्रीव की प्रतिष्ठित और अत्यन्त धनवान औरत होती है और जेल की कोठरी में प्रवेश करते ही वह कील-कांटों और पुलिस गजट की मांग करता है। अमरीका के हर राज्य में उसकी एक पत्नी और हर प्रान्त में एक मंगेतर होती है। जिन महिलाओं का पांच-पांच डाक्टरो द्वारा इलाज भी असफ़ल हो जाये और उसके बाद एक ही खुराक में जिन्हें काफ़ी चैन पड़ जाये और एक पूरी बोतल में तो पूरा आराम, उन्हीं की तस्वीरों को अदल-बदल कर अखबार वाले उसकी शादी के समाचार छापते है।
इस चोर ने एक नीला स्वेटर पहिन रखा था। वह न जुआरी किस्म का था और न नरक के कीड़ो जैसा। उसका वर्गीकरण करने में तो पुलिस भी पेशोपेश में पड़ जाती। उन्होंने अभी तक ऎसे कुलीन और विनीत चोरों के बारे में सुना तक नहीं था जो अपने दर्जे से न अधिक और न कम हैं।
तो इस तीसरे किस्म के चोर ने अब खोज शुरू की। उसने नकाब या काला चश्मा या रबर के जूते-कुछ भी नहीं पहन रखे थे। उसकी जेब में एक तमंचा था और वह चिन्तामग्न एक पीपरमेंट की गोली चूस रहा था।
गर्मियों की धूल से बचाने के लिए फ़र्नीचर पर गिलाफ़ चढ़े हुए थे। सोना-चांदी वहां से दूर किसी बैंक के तहखाने में होंगे। चोर को कोई विशेष रकम प्राप्त होने की आशा नहीं थी। उसका निर्दिष्ट स्थान तो वह हल्की रोशनी वाला कमरा था, जहां घर का मालिक, अपने एकाकीपन का जैसे-तैसे उपचार करके, सन्तोषपूर्वक, गहरी नींद में सो रहा था। वहां से कुछ मामूली माल ही हाथ आने की आशंका थी, जिसे वाजिबी, व्यावसायिक लाभ कहा जा सकता है, जैसे कुछ रेजगारी, कोई घड़ी या जड़ाऊ पिन वगैरह और, सिंगारदान पर कुछ नोट, एक पट्टा, चाबियां, दो-तीन पोकर के खेल के टोकन, मसली हुई सिगारें, रेशमी बालों का एक गुलाबी बो और सवेरे खुमारी उतारने के लिए सोडा-लेमन की बन्द बोतल-यही सब चींजे रखी थी। पास ही पलंग पर एक आदमी सोया था।
चोर ने सिंगारदान की तरफ़ को-तीन कदम बढ़ाये। एकाएक बिस्तर में पड़े हुए आदमी के मुंह से एक चीख जैसी कराह निकली और उसने अपनी आंखे खोल दी। उसका दाहिना हाथ तकिये के नीचे गया, पर वहीं रह गया।
बातचीत के लहजे में चोर में कहा, चुपचाप पड़े रहो।” तीसरे दर्जे के चोर फ़ुंफ़कारते नहीं। बिस्तर में पड़े हुए नागरिक ने चोर की पिस्तौल के गोल मुंह की ओर देखा और चुपचाप पड़ा रहा।
चोर ने आदेश दिया,”अब अपने दोनों हाथ ऊंचे करो।”
बिना दर्द-दांत निकालने वाले दंत-चिकित्सक की तरह दिखने वाले इस नागरिक के एक छोटी नुकीली, भूरी सफ़ेद दाढ़ी थी। वह समृद्ध प्रतिष्ठित, चिड़चिड़ा और नाराज लगता था। अपने बिस्तर पर ही बैठ कर उसने अपना दाहिना हाथ सिर से ऊंचा उठा लिया।
चोर ने हुक्म दिया “दूसरा हाथ भी। हो सकता है कि तुम दोनों हाथ चला सकते हों और अभी बायें हाथ से गोली दाग दो। तुम दो तक तो गिन सकते हो? क्यों?
ज्ल्दी करो।”
अपने मुंह की रेखाओ को विकृत करते हुए नागरिक ने कहा,”दूसरा हाथ नही उठा सकता।”
“क्यों? क्या तकलीफ़ है?”
“कन्धे में गठिया है?”
“सूजन भी है?”
“थी; पर अब चली गयी है।”
चोर, एकाध क्षण उसकी तरफ़ पिस्तौल किये खड़ा रहा। उसने सिंगारदान पर पड़े हुए माल पर एक नजर फ़ेंकी और फ़िर कुछ हक्का-बक्का होकर बिस्तरे पर बैठे
आदमी की ओर देखा। तभी, उसका मुंह भी ऎंठ कर विरूप होने लगा।
नागिरक ने दर्द के साथ कहा,”वहां खड़े-खड़े मुंह क्या बनाते हो? चोरी करने आये हो तो करते क्यों नहीं? इधर-उधर कुछ माल बिखरा तो है?”
खींसे निपोरते हुए चोर बोला, “माफ़ करना। तुम्हारी हालत से मुझे भी धक्का पहुंचा है। तुम्हें जानकर खुशी होगी कि गठिया और मैं पुराने दोस्त हैं। मेरे भी बायें हाथ में गठिया था। मेरी जगह और कोई होता तो बायां हाथ न उठाने पर तुम्हें जरूर गोली मार देता।”
नागरिक ने पूछा, “तुम्हारे गठिया कब से है?”
“चार बरस से। मेरे ख्याल से अभी क्या हुआ है? एक बार तुम्हें यह लग जाये फ़िर तो जिन्दगी भर तुम गठिया गये-मेरा तो यही विश्वास है।”
नागरिक ने पूछा,”सांप का तेल कभी इस्तेमाल किया?”
चोर ने कहा,”सेरों! जितने सापों का तेल मैंने काम में लिया, उतने अगर एक पंक्ति मे जमाकर दिये जायें तो शनि नक्षत्र तक आठ बार पहुंच सकते है। और उसकी सरसराहट वालपरेसो- इण्डियाना तक सुनाई दे सकती है।”
नागरिक बोला,”कुछ लोग चाइसलम की गोलियां काम में लेते हैं।”
चोर ने कहा,”बहुत! पांच महीने तक ली हैं। कोई फ़ायदा नहीं। जिस साल मैने फ़िंकलहम एक्सट्रेक्ट, गाइलीड बाम और पोल्टिस और पांट पेन पल्वेराइजर का प्रयोग किया, उस साल कुछ राहत हुई। पर मेरे ख्याल से तो जेब में अखरोट रखना कारगर हो गया।”
नागरिक ने पूछा,”तुम्हें सुबह ज्यादा तकलीफ़ होती है या रात में?”
चोर बोला, “रात में-जब मैं अधिक व्यस्त होता हूं। अच्छा अब अपना हाथ नीचा कर लो। मेरे ख्याल से अब तुम-! अच्छा, तुमने कभी ब्लिझरस्टाक का
ब्लड-बिल्डर काम में लिया?”
“नहीं, कभी नहीं! तुम्हें दर्द के दौरे आते हैं या हमेशा एक-सा दर्द रहता है?”
चोर, बिस्तर के पैताने पर बैठ गया अपने घुटनों पर पिस्तौल रख ली। उसने कहा,”मेरे तो टीस उठती है। जब मुझे उसकी कोई उम्मीद नहीं होती तभी दर्द होने लगता है। क्या बताऊं, मेरे ख्याल से डांक्टरों के पास भी इसका कोई इलाज नहीं है।”
“यही हालत यहां है। मैनें भी करीब एक हजार डांलर खर्च कर दिये हैं, पर कोई फ़ायदा नहीं तुम्हारा गठिया कभी सूजता है?”
“हां, सवेरे। और जब बरसात आने वाली होती है तब। हे भगवान!”
नागरिक ने कहा,”मेरे भी। मैं तुम्हें बता सकता हूं कि टेबल की चद्दर के नाप के बादल का टुकड़ा कब फ़्लोरिडा से उठकर न्यूयार्क की तरफ़ रवाना हो रहा है और अगर मैं किसी थियेटर के पास से गुजरता हूं, जहां मेटिनी खेल हो रहा है तो, उसके सीलेपन से मेरे बांये हाथ में वैसा दर्द होता है जैसे दांतो में होता है।”
“बिल्कुल ठीक।”
चोर ने अपनी पिस्तौल की तरफ़ देखा और खिसयाते हुये आसानी से उसे जेब में डाल लिया। उसने विवशता से कहा,” यह तो बताओ, कभी तारपीन का मालिश किया है?”
कुछ गुस्से से नागरिक बोला,”हट, यह तो होटल के मक्खन का मालिश करने के बराबर है।”
सहमति प्रकट करते हुये चोर ने कहा,”जरूर, यह तो बिल्ली के द्वारा उंगली के खरोंच लगा देने पर छोटे मुन्नों के लगाने लायक मरहम हैं। मैं तुम्हें बताता हूं। हमारी एक ही तकलीफ़ है और इसको हल्का करने का एक ही उपाय मैं जानता हूं। क्या? वही स्वास्थ्यप्रद, सुधार करने वाली, गम दूर करने वाली शराब! कहो, है न ठीक! माफ़ करना! जल्दी से कपड़े पहिन कर कुछ पीने के लिए बाहर चलें! इतनी बेतकल्लुफ़ी के लिए माफ करना, पर-उफ़! लो फ़िर हो गया।”
नागरिक ने कहा,”एक हफ़्ते से मैं बिना किसी की मदद के कपड़े भी नहीं पहन सकता हूं,। थामस तो सो गया होगा, अब।”
चोर ने कहा,”बाहर निकलों, मैं तुम्हें कपड़े पहना दूंगा।”
ज्वर की तरह उस नागरिक में फ़िर अपनी आदत लौट आयी। उसने अपनी अधपकी दाढ़ी पर हाथ फ़ेरा और कहने लगा,”अजीब बात है।”
चोर बोला,” यह रहा तुम्हारा कमीज! पहन लो। मैं एक आदमी को जानता हूं जो कहता था कि ऊमबैरी आइन्टमैण्ट से वह दो हफ़्तों में इतना अच्छा हो गया कि
दोनों हाथों से टाई बांधने लगा।”
ज्यों ही दरवाजे से बाहर निकले नागरिक घूमकर वापिस जाने लगा।
उसने समझाया,”लगता है कि पैसे भूल गया हू। कल रात सिंगारदान पर रखे थे।”
चोर ने उसकी दाहिनी बांह पकड़ ली।
उसने बड़े मजे से कहा,” मैं कहता हूं चलो ना! छोड़ो उसे! मेरे पास दाम हैं।कभी जैतून और विन्टरग्रीन का तेल का प्रयोग किया है?”
-ऒ हेनरी
Posted in कहानी, मेरी पसंद | 16 Responses
हयात बेच रहा था वो मयफरोश न था |
Kahani aisi bhi, ant aisa bhee….mere liye to thoda hat kar aur naya naya sa tha ek ek mod ek ek vakya…
अब इस का जवाब मत देना – आपकी ऊंगलियों को और दिमाग को भी आराम की जरूरत है!
@कालीगुलाजी, पसन्द का शुक्रिया!
@रवि भाई, यह कहानी ओ.हेनरी की कहानी का अनुवाद है। ओ.हेनरी जी सन १९१० में चले गये। अब उनकी रचनाऒं पर कोई कापीराइट नहीं है। वे जनता के लेखक हो गये। कम से कम इस कहानी को पोस्ट करने में कोई चोरी नहीं है। वो जो सिंड्रोम हुआ उसके बारे में एक लेख लिखिए न!
@रवीन्द्र भारतीयजी, पसन्द का शुक्रिया।
@स्वामीजी,प्रतिक्रिया के लिये शुक्रिया!
इनकी कुछ कहानियोँ का हिन्दी रूपांतर पूर्वकाल में विविध भारते के “हवामहल” कार्यक्रम में भी प्रसारित हुआ है।
जवाब के लिए तो आपने मना किया है परंतु आपको धन्यवाद. तो दे ही सकता हूँ? बहरहाल बहुत बहुत धन्यवाद. कुछ आराम फरमाने के बाद ही लिख रहा हूँ
वैसे, आप कब से साइकियाट्रिस्ट बन गए?
भाई फुरसतिया,
मैं फिर से स्वीकारता हूँ कि मैं अपने व्यंग्य को समझाने में असफल रहा – इस बार भी. दरअसल आप यहाँ और मैं रचनाकार में ओ-हेनरी से लेकर भारतेंदु, परसाईँ, धूमिल और अविनाश तक की रचनाएँ साभार, अनुमति / बगैर अनुमति छापते हैं तो उसके पीछे सर्वजन हिताय वाली ही भावना होती है – और यही मैं उपर्युक्त टिप्पणी में कहना चाहता था.
चलिए, इसी बहाने आपसे एक अनुरोध – अगर आपके पास उपलब्ध हो तो ओ-हेनरी की एक और कहानी – कोई तीस साल पहले पढ़ी थी – जिसमें एक निराश्रित व्यक्ति आश्रय के लिए जेल जाना चाहता है और वह बहुत सा गैर कानूनी काम करता है परंतु जेल जा नहीं पाता , और जैसे ही वह कोई अच्छा काम करता है, जेल में चला जाता है- फिर से पढ़वाएँ तो वाकई मजा आए.
रवि भाई, आपकी बात सही है। आपके आदेश का पालन जल्द ही होगा! बाकी टिप्पणी में मौज-मजा नहीं होगा तो पढे़गा कौन!:) आप सिंड्रोम के बारे में लिखिये न!