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ब्लाग चोरी से बचने के कुछ सुगम उपाय
By फ़ुरसतिया on February 3, 2007
हिंदी ब्लाग जगत में आजकल बमचक मची है। एक कोई भैया मैथिली शरण
गुप्त जी हैं नयी दिल्ली में उन्होंने हमारी कुछ दूसरे साथियों की पोस्टें
पूरी की पूरी अपनी दो साईटों में लगा दीं। जिस शराफ़त से उन्होंने सबके जवाब
दिये हैं उससे लगता है कि उनसे जो हुआ अनजाने में हुआ और शायद उनको
अन्दाजा भी नहीं होगा कि इसकी ऐसी प्रतिक्रिया होगी। उन्होंने कुछ की
पोस्टें हटा दीं हैं और कुछ लोगों से अनुमति लेने के लिये लिखा है। बहरहाल,
हमने अपनी जो राय थी वह कल चिट्ठाचर्चा में और फिर आजअक्षरग्राम पर
जाहिर कर दी है। इस बारे में देखते हैं क्या होगा आगे। जो होगा अच्छा ही
होगा यही मानते हुये हम इस पर अपनी कुछ फुरसतिया राय जाहिर करना चाहते हैं।
हमने देखा कि सबसे ज्यादा हल्ला मचाने वाले लोग वे लोग थे जिनकी पोस्ट मैथिलीजी ने अपनी साइट पर नहीं लगाईं। जीतेंद्र के सारे जुगाड़ धरे के धरे रह गये, ई-पंडित का पोथा छुआ तक नहीं गया और उड़नतश्तरीं ऐसे ही चक्कर मारती रही-दोनों में से किसी साइट पर लैंड नहीं की। संजय को भी लोगों ने यही समझाया जो जोगलिखी वही होगी। उनको निराशा ने इतना घेरा कि वे आकर चौपाल में अपना रोना रोने लगे- लुटेरे दिन में भी मजाक करते हैं।
सबके रोने देख कर मुझे राजा जनक की याद आ रही थी। राजधानी दिल्ली में अभी कुछ दिन पहले एक दिन में ११००० हजार शादियां हुईं थीं। उसी तरह की उस समय की राजधानी मिथिला में अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर में शुरुआती दौर में जब राजा शिव धनुष न तोड़ पाये तो राजा जनक विलाप करते हुये बोले:-
जीतेंद्र ने तो बीच बाजार में गगरी लुटा दी। जबकि दुनिया गवाह है कि जबसे गगरी सभ्यता शुरु हुयी तबसे उससे सम्बन्धित सारे कारोबार का क्षेत्र पनघट रहता आया है। इधर किसी मर्दाने टाइप के सुपात्र ने गगरी फोड़ी और फिनिशिंग टच देने के लिये बाली उमरिया वाली नायिका की बहियां भी मरोड़ दीं इधर एक गाना हो गया। बीच बजरिया तो बहुत दिन पहले हुई यही सुनी थी एक वारदात- बीच बजरिया खटमल काटे, कैसे निकालूं चोली से।
हालांकि इसमें भी हमें भाव साम्य नहीं दिखाता। इसमें भी कुछ तकनीकी लोचा है। खटमल तो चारपाइयों में पाया जाता है। तो क्या पुराने जमाने में नायिकायें चारपाई लाद के बाजार जाती थीं।
इसी तरह पंडितजी बोले गांव वालों खबरदार डाकू आ गये। अब डाकू गांव में आ ही गये हैं तो हम क्या कर लेंगे! गांव में कोई ठाकुर, वीरू, जय तो हैं नहीं जो किड़बिड़-किड़बिड़ करते डाकुओं को भगा देंगे। अब ठाकुर लोग शहर के फार्म-फ्लैट में रहते हैं और जय-वीरू की पीढ़ी के लोग किसी महानगर के विकास में खून जलाते, पसीना बहाते हुये अपना अमूल्य योगदान देते हुये जी रहे हैं।
और संजय बेंगाणी बोले- दिन दहाड़े लुटेरों का मजाक। अब ये बात कुछ हजम नहीं हुई। क्या लुटेरों को दिन में मजाक करने पर पाबंदी है। पूरी दुनिया में करोड़ों-अरबॊं रुपये इधर-उधर करने वाले दिन-रात मीडिया चैनेल में मजाक करते रहते हैं। ही-ही करते हैं तो उनको जब कोई नहीं रोकता तो इन निरीह लुटेरे भाई को मजाक करने क्या रोकना जिन्होंने हमारे अंदर यह अहसास जगाया कि हममें भी कुछ ऐसा है जो लूट लिये जाने काबिल है।
समीरलाल काअफसोस काबिले गौर रहा। बेचारे सबेरे से नहा -धोकर बबुआ बने अपने लुटने-चोरी जाने का इंतजार करते रहे। करते रहे ,करते रहे। सुबह से हो गयी शाम। कोई पोस्ट नहीं लुटी। पहले तो समीरभाई ने सोचा कि दिल्ली से कनाडा तक चोर को आते-आते कुछ तो समय लगेगा। शायद चोर कनाड़ा की सड़कों की बर्फ भी समेटता आ रहा हो। उनकी -अंखडियां झांई पड़ीं, पंथ निहारि-निहारि/जीभड़ियां छाला पड्या चोर पुकारि-पुकारि। वे इंतजार करते रहे यह सोचकर सारे लोगों के ब्लाग लूटता हुआ चोर अंत में आयेगा स्वर्णकमल विजेता के ब्लाग को इज्जत से लूटने। लेकिन उनके ब्लाग की इज्जत महरौली के लौह स्तम्भ की तरह जस की तस बनी रही। कोई मौसम का बदलाव उसे कम न कर सका। और वे अपने ब्लाग की इज्जत को उसी तरह देखते रहे जैसे एक दिन पर दिन जवान होती बेटी का बाप पैसे के अभाव में बेटी के हाथ पीले न कर पाने पर देखता है। अब वे जीवन से निराश होकर डा. दीवान हरबंश के पास जाने की उमर तो वे पार कर चुके हैं लिहाज उन्होंने अपने ब्लाग को लूटने के लिये आवाहन किया-भागो,भागो डाकू आये। भागने की हड़बड़ी में वे अपनी बात पूरी कह नहीं पाये। बड़े-बड़े लोग भागने की हड़बड़ी में ऊटपटांग हरकते करते आये हैं। भगवान खुद गज को ग्राह से बचाने के लिये नंगे पैर स्वर्ग से धरतीलोक भागते चले आये, जबकि हमारे कई दोस्त ऐसें हैं जिनको भाभियां एक कमरे से दूसरे कमरे नंगे पैर आने पर उलटा लौटा देती हैं-जाइये पहले चप्पल पहन कर आइये! वर्ना वे अगर हड़बड़ी में न होते तो लिखते- भागो,भागो डाकू आये, चलो भाग के अपना ब्लाग लुटवायें।
हमने तो कह दिया था कि हमें लुटने का कोई दुख नहीं है| हम तो लेकिन हमारी साईट के स्वामीजी हमारी पोस्ट को मैथिलीजी की साइट से उसी तत्परता से उठा लाये जिस तत्परता से घर से भागकर प्रेमी के साथ शादी रचाती नाबालिक लड़की को उसका बाप विवाह मंडप से उठा लाये और दुलराते हुये कन्या से कहे- बेटी, तेरे लिये अच्छा लड़का ढ़ूंढेंगे।
बहरहाल, हम तो मानते हैं कि हमारे मैथिलीजी अपने नामाराशि मैथिली शरण गुप्त की भावना से हिंदी की सेवा करना चाहते हैं और कामना करते हैं:-
वैसे अगर हमें इनको चोर साबित ही करना होगा तो हम कहेंगे कि ये उस टाइप के चोर हैं जिस टाइप का ऒ.हेनरी की एक कहानीमें बताया गया है। इसमें एक चोर एक घर में लूटने के लिये घुसता है तो पता चलता है कि घर का मालिक गठिया से ग्रस्त है और इसी लिये अपना एक हाथ नहीं उठा पाता। चोर को भी गठिया की बीमारी होती है। फिर दोनों गठिया के बारे में तमाम इलाजों के बारे में बतियाते रहते हैं और एक नये तेल की खोज में निकल जाते हैं। घर वाला कहता है -लगता है मैं पैसे घर में ही भूल गया। इस पर चोर उसे अपने साथ ले जाते हुये कहता है- मैं कहता हूं न छोड़ो उसे पैसे हैं मेरे पास!
मुझे लगता है मैथिलीजी के और अन्य साथी ब्लागरों की दर्द एक ही है। और सब मिलकर इसका इलाज खोजेंगे।
वैसे तो किसी भी लेखक यह लेखक के लिये बड़ी खुशी की बात है उसका लिखा लोग पढ़ें-चाहे चुरा-चुरा के ही सही। नोबल पुरस्कार विजेता लेखक गैबरीला मार्खेज अपने जीवन के सबसे आल्हादित करने वाले अनुभवों में एक उस अनुभव को मानते हैं जब उन्होंने देखा कि उनकी किताब ‘हन्ड्रेड यीयर्स इन सालूट्यूड’ को लड़के दस भागों में बांट-बांट करके पढ़ रहे थे। लेकिन हमारे तमाम साथी जो चाहते हैं कि उनका ब्लाग बिना उनकी अनुमति के कोई चुरा न सके तो उसके कुछ तरीके हमने खोजे हैं। अगर आप अपने ब्लाग को इस लायक समझते हैं उसकी चोरी की जा सकती है तो इन तरीकों को आजमाने के बारे में विचार करें। ये तरीके हालांकि हमने खोजे हैं लेकिन इनको अगर आप अपना बनाकर भी अपनाते/प्रचार करते हैं तो हमें कोई एतराज नहीं होगा। दुनिया के तमाम लोकगीत उनके रचयिताऒं के नाम के बगैर गाये जा रहे हैं।
२. पहले उपाय की पूरी सफलता के लिये जरूरी है कि आप अपना ब्लाग बन्द करने के पहले उसका पासवर्ड बदल दें और बदला हुआ पासवर्ड उसी तरह बिसरा दें जिस तरह चुनाव जीता हुआ आम नेता अपने इलाके की जनता और इलाके को भूल जाता है। अगर आपने पासवर्ड बदला नहीं तो आपके दोस्त जिनको आपने तकनीकी सहायता के लिये अपना पासवर्ड बताया है आपके नाम से खुटुर-पुटुर कर सकते हैं और आपमें दुबारा ब्लाग लिखने की इच्छा के कीटाणु भारत में चेचक, मलेरिया ,टी.बी., पोलियो की बीमारियों के कीटाणुऒं के तरह वापस सक्रिय हो सकते हैं।
३. दूसरा उपाय जगत प्रसिद्ध चिर सनातन आलस्य और शर्म के सिद्धान्त पर आधारित है। आपका सुनने में अटपटा लग रहा होगा कि आलस्य और शर्म का कैसा मिलन! क्योंकि आलसी तो बेशर्म होता है। लेकिन हम आपको बतायें यह सच है। जब गांगुली और चैपेल मिल सकते हैं, लोकतांत्रिक अमेरिका राजतांत्रिक अरब देशों से जुड़े रह सकते हैं तो आलस्य और शर्म ने कौन आपकी भैंस खोली है जो आप इनको मिलने नहीं देना चाहते। आप से भले तो वे जाट हैं जो ऊंची-नीची जातियों वाले प्रेमियों को भले ही काट के मार दें लेकिन उनको अलग नहीं करते। आप इस बात को अच्छी तरह समझने के लिये पहले दोनों सिद्धान्त अच्छी तरह समझ लें तब हो सकता है आप हमारी बात से हमसे ज्यादा सहमत हो सकें।
आलस्य का सिद्धान्त: इस सिद्धान्त को भारत में मलूकदास के सिद्दान्त (अजगर करे न चाकरी….)के रूप में सबसे पहले पहचाना गया। लेकिन बाद में हम गफलत में रहे और अंग्रेज लोगों ने इसे विद्युतधारा न्यूनतम प्रतिरोध के रास्ते में बहती है(करेंट फालोस द लीस्ट रेजिस्टेंट पाथ’) के वैज्ञानिक सिद्धान्त का जामा पहना दिया। इससे साबित होता है कि बिजली जो बहुत चपल मानी जाती है वह भी लम्बे रास्ते से जाने में डरती है। शार्टकट ही अपनाती है।
इसी सिद्धान्त का सहारा लेते हुये कोई भी चोरी अपनी चुरायी चीज को बिना कुछ मशक्कत किये हिल्ले लगाना चाहता है। ऐसे ही जो आपके ब्लाग से कुछ चुरायेगा और अगर पूरा का पूरा जस का तस छापना चाहेगा तो वह उस पर कोई भी अतिरिक्त मेहनत करने से बचना चाहेगा।
शर्म का सिद्धान्त: यह एक जन सिद्धान्त है। जैसे बेईमान से अधिकारी भी अपने मातहतों से ईमानदारी की अपेक्षा करता है वैसे ही बड़े से बड़ा चोर भी अपनी चोरी पकड़े जाने से डरता है। भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता ,नौकरशाह भी अपनी हराम की कमाई को अपनी मेहनत की कमाई ही बताते हैं और पकड़े जाने पर उनकी आय से अधिक जो भी सम्पत्ति उनके यहां पायी जाती है उसे वे अपने अपने पिता, अंकल, आंटी द्वारा गिफ़्ट में दिया बताते हैं। रंगे हाथो घूस लेते पकड़े जाने वाले भी कहते हैं कि उन्हें गलत फंसाया गया है। इस सिद्धान्त को अमली जामा पहनाया हमारे मोहल्ले के कल्लू ढाबे वाले ने। कल्लू पहलवान ने अपने होटल के सारे बरतनों पर गुदवा दिया था- यह बरतन मेरा नहीं है इसे मैं कल्लू ढाबे वाले के यहां से चुराकर लाया हूं। अब किस माई के लाल में हिम्मत होगी कि वे दस रुपये के गिलास के लिये अपनी लाखों की इज्जत का फालूदा निकवायें।
आलस्य और शर्म का सिद्धान्त
४. उदासीनता का सिद्धान्त:यह सिद्धान्त गीता के निष्काम कर्म के सिद्धान्त की चोरी करके बना है। इसमें आप अपने ढेर सारे ब्लाग खोल लीजिये और उनके पोस्टिंग करना भूल जाइये जैसे कभी दुष्यन्त शकुन्तला को बिसरा गया था। आप उनमें पोस्टिंग ही नहीं करेंगे तो चोरी कौन करेगा, काहे की करेगा? हिंदी के तमाम ब्लागर्स इसी नीति का अनुसरण करते हुये अपने ब्लाग की चोरी बचाये हुये हैं। अब भला बताइये कौन माई का लाल चोर है जो जीतेन्द्र के याहू३६०, लाइवजरनल, रेडिफमेल और सिन्धीब्लाग से कुछ चुराकर कहीं कुछ पोस्ट कर दे। जगदीश व्योम जी की भी ब्लाग-बारात महीनों से चल रही है बिना लुटे। सिर्फ इसी उदासीनता के सिद्धान्त के चलते। इसमें ज्यादा पुख्तापन लाने के लिये आप अपना पासवर्ड उसी तरह भूल जाइये जिस तरह आजकल की राजनीति में प्रवेश करने के पहले लोग अपनी नैतिकता, देशनिष्ठा , ईमानदारी का विसर्जन करके तब शुरुआत करते हैं और हो सके तो समय की कमी का ‘ताजगी प्रदाता द्रव’ भी छिड़क लीजिये।
५. जैसा बोले वैसा लिखें: जैसे आम तौर पर अगड़म-बगड़म चेहरे-मोहरे वाला भारतीय नौजवान भी अपनी जीवन-संगिनी की कल्पना करते हुये महामहिम कलाम साहब की हमेशा ऊंचे सपने देखने वाली बात मानकर स्वप्न-सुंदरी से नीचे की कल्पना को खारिज कर देता है वैसे ही अपना नाम भी मुश्किल से लिख पाने में समर्थ ब्लाग- चोर भी ऐसे किसी भी ब्लाग से चोरी नहीं करना चाहेगा जिसमें वर्तनी की चूक होगी। तो आप भी ब्लाग-चोर की भावुक मानसिक कमजोरी का शोषण करें और अपने ब्लाग में ढेर सारी वर्तनी की कमियां कर दें।
अगर आप बेंगाणी बन्धुऒं की तरह बिंदास लिखते हैं या आशीष की नकल मारते हैं तो आपका आधा काम तो हो गया समझिये। जो कुछ कमी रह गयी उसे आप प्रयास करके दूर करिये। लिखने में वर्तनी की अधिक से गलतियां करने का प्रयास करिये। जो लोग अपनी गलतियां सुधारने के लिये कुछ साथियों की सहायता लेते थे वे अपने रोल आपस में बदल सकते हैं। अब वर्तनी सही लिखना सिखाने वाला साथी अपने चेले से गलत वर्तनी सीखने का गंडा बंधवा सकता है। लोगों को थोड़ा मेहनत करनी पड़ेगी वर्ना एक ई-स्वामी की पुरानी सुलेमानी टकसाली भाषा और कालीचरण के बिंदास भोपाली अंदाज से भी नकल मार सकते हैं।
अच्छा और सही लिखने वालों को यह सुझाव थोड़ा अटपटा लगेगा कि जानते-बूझते कैसे गलत लिखें लेकिन उनसे हमारा यही कहना है कि वे बेकार की भावुकता में न पड़ें। चोरी बचाने के लिये कुछ तो प्रयास करना पड़ेगा। उनके दिल को दिलासा देने के लिये मैं एक ठोस बोले तो सालिड बहाना बताता हूं,‘जब हम अपने चारों तरफ़ पूरी दुनिया को गलत करते देखते हैं और खुद भी कई बार अनुसरण करते हैं और उससे भी आत्मा नहीं कचोटती तो गलत लिखने से ही कौन सा आसमान टूट जायेगा। उसमें तो आत्मा भी ‘इन्वाल्व’ नहीं होती। भाषा और आत्मा में कोई कांटा तो भिड़ा नहीं होता। भाषा की आत्मा से कौनौ रिश्तेदारी थोड़ी है।’
वैसे इस सिद्धान्त का पालन करने में ज्यादा मुश्किल नहीं होनी चाहिये। आप बस जैसा बोलते हैं वैसा लिखने का प्रयास करें। आपके गलत वर्तनी लिखने का अपराधबोध इस गर्व बोध के पीछे छिप जायेगा कि आपके जीवन में दोहरापन नहीं है। आप जैसा कहते हैं वैसा करें भले न लेकिन जैसा बोलते हैं वैसा लिखने तक की प्रगति आप कर चुके हैं।
६.क्लिष्टता का सिद्धांत:यह सिद्धान्त उन लोगों के लिये ज्यादा मुफ़ीद है जो लिखने के साथ-साथ अपने ज्ञान का बोझा भी ढोते हैं। ऐसे ज्ञान-कुली टाइप के लोग अपनी ‘लेखन-सवारी’ के आगे-आगे अपने ज्ञान-पायलट दौड़ा देते हैं। ये ‘ज्ञान-पायलट’ दुनिया-जहान में अपनी ‘लेखन-सवारी’ के आने की सूचना देते हुये उनका डंका पीटते चलते हैं। जैसे किसी नेता की शान में गुस्ताखी हो जाने पर नेता से ज्यादा खून उसके शागिर्दों का खौलता है ऐसे ही लेखकों के लेखन के बारे में कुछ भी कहने पर उनके ‘ज्ञान-पायलट’ टीन-टप्पर की तरह तुरंत सुलग जाते हैं। ऐसे लोगों के लिये ब्लाग चोरी बचाना बड़ा सुगम उपाय है। वे जितनी क्लिष्ट भाषा लिखते हैं उसमें थोड़ी सी क्लिष्टता , बस दाल में नमक बराबर, और मिला दें तो बस उनका काम पक्का समझिये। फिर तो उनके ब्लाग पर चोरी करने वाला उसी तरह बिदकेगा जिस तरह से कानपुर में कोई भी विदेशी निवेशक पूंजी निवेश से घबराता है।
इस तरह की भाषा का नमूना मेरी जानकारी में फिलहाल अभी ब्लाग जगत में कोई नहीं है। ऐसी भाषा दुर्लभ है लेकिन इसकी पहचान यही है कई बार पढ़ने बावजूद आपको यह बिल्कुल न समझ में आये। ऐसी भाषा को ‘राजभाषा‘ नहीं ‘महाराज-भाषा’ कहा जाता। इसका एक उदाहरण मैं श्रीलाल शुक्ल जी के एक लेख से देता हूं:-
७.तारीफ़ में आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त:तारीफ़ में आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त मुख्यत: इस नियम पर आधारित है कि व्यक्ति को अपना सारा काम खुद करना चाहिये। यह पश्चिमी अवधारणा है अत: इसी घालमेल में निजता का सिद्धान्त भी मिल गया। इसके तहत आप अपनी पोस्टों में अपनी खूब तारीफ़ लिखिये। खूबसूरत न हों तो अपनी ढेर सारे फोटुयें भी लगाइये यह मानकर कि खूबसूरती देखने वाले की आंखों मे बसती है। जब आप अपनी तारीफ़ करेंगे और उसमें आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त हो जायेंगे तो निजता का सिद्धान्त अपने आप लगने लगता है। फिर लोग आपको इतना भी तंग नहीं करना चाहें कि आपके ब्लाग की तरफ़ मुंह उठाकर भी सांस लें। अगर कोई आपके ब्लाग की चोरी करेगा तो उसकी साइट का भी यही हाल होगा यह मानते हुये लोग अपनी आपकी साइट से चोरी करने के विचार से हाथ खींच लेंगे जैसे भारत सरकार देश के सर्व शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कार्यक्रमों से अपने हाथ खींचती जा रही है।
८. ईमेल का सिद्धान्त:आप अगर सच में कुछ अच्छा लिखने की कबिलियत रखते हैं और ऊपर बताये सभी उपायों से कोई भी आपको जंचता नहीं है तो आप इस तरीके को अमल में ला सकते हैं। आप अपना कोई सबसे अच्छा लेख/कविता अपने ब्लाग पर पोस्ट कर दें और यह सूचना चिपका दें
मैं ऐसा लिखता हूं जिसको इस तरह का पढ़ना हो वो मुझे मेल करे हम मेल से लेख/कविता भेजूंगा। फिर आपके पास जो मेल आयें उनको अपनी रचनायें भेजें। जब तक आपके पास पाठकों के मेल नहीं आते तब तक आप स्वयं ही सौ-पचास ई-मेल बनाकर खुद को भेजें और इसका प्रचार अपनी साइट पर करें। प्रचार की सामग्री लोग नहीं चुराते। फिर आपके सदस्य बढ़ते जायेंगे। यह तरीका कारगर तरीका है और इस तरीक से आप एक बड़े समूह का संचालन भी कर सकते हैं। समूह के संचालन की प्रक्रिया समझने के लिये आप याहू कविता ग्रुप की गतिविधियां देख सकते हैं। अनूप भार्गव जी बड़ी सफलता से इसे चला रहे हैं।
९. ब्लागनाद और यू-ट्यूब का सिद्धान्त: आप अपना चिट्ठा बोलकर पोस्ट करें। यू-ट्यूब में रिकार्ड करके पोस्ट करें। किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं कि आपकी रचना चुराकर पोस्ट करे। लोग अपना लिखा हुआ पोस्ट कर नहींपाते आपका बोला हुआ कौन पोस्ट करेगा। इस तरकीब में सम्भावित सफलता की प्रतिशत आपकी आवाज की खराबी के समानुपाती होता है। जितनी रद्दी आपकी आवाज होगी ,आपका ब्लाग चोरी की सम्भावना से उतना ही बचा रहेगा।
१०.इधर-उधर, यहां -वहां का सिद्धान्त: आप प्रयास करें कि आप अपनी सरल से सरल बात किसी के भी यहां तक कि आपके भी समझ में न आये। इसके लिये तमाम उपाय हैं। आप एक बात को तीन-चार बार पांच-छह तरीके से लिखें। हिंदी के बीच में गलत अंग्रेजी लिखें। गलत अंग्रेजी में सलत फांसिसी के उद्धरण लिखें जिसमें रूसी परिस्थितियों के हवाले से जर्मनी की घटनाऒं का इटली के मौसम के मद्देनर कनाडाई अंदाज में विश्लेषण हो। लोग अमेरिकन अंदाज में आपके ब्लाग को ‘ओह क्या कूड़ा है’(व्हाट अ रबिश) कहकर आगे बढ़ लेंगे। चोरी जैसी बात सोचने के बजाय आपके ब्लाग से दूर अति दूर जाने में उनको जन्नत के सुख की प्राप्ति महसूस होगी।
ये कुछ सुगम उपाय हैं जिनमें से आप अपने लिये कोई एक उपाय छांटकर अमल में ला सकते हैं। इन उपायों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आपने कितनी ईमानदारी से इन उपायों पर अमल किया।
अगर आपने इनमें से किसी भी उपाय को अमल में लाने का तय किया है तो आपसे अनुरोध है कि अपने अनुभवों से हमें जरूर लाभान्वित करें ताकि हम उनको दूसरों को भी बता सकें।
अगर आपको इन सभी उपायों को अपनाने के बावजूद भी ब्लाग-चोरी से निजात नहीं मिली तो आप हमें लिखें आपके लिये सम्भव है हम कुछ और बेहतर उपाय बता सकें।
हमने देखा कि सबसे ज्यादा हल्ला मचाने वाले लोग वे लोग थे जिनकी पोस्ट मैथिलीजी ने अपनी साइट पर नहीं लगाईं। जीतेंद्र के सारे जुगाड़ धरे के धरे रह गये, ई-पंडित का पोथा छुआ तक नहीं गया और उड़नतश्तरीं ऐसे ही चक्कर मारती रही-दोनों में से किसी साइट पर लैंड नहीं की। संजय को भी लोगों ने यही समझाया जो जोगलिखी वही होगी। उनको निराशा ने इतना घेरा कि वे आकर चौपाल में अपना रोना रोने लगे- लुटेरे दिन में भी मजाक करते हैं।
सबके रोने देख कर मुझे राजा जनक की याद आ रही थी। राजधानी दिल्ली में अभी कुछ दिन पहले एक दिन में ११००० हजार शादियां हुईं थीं। उसी तरह की उस समय की राजधानी मिथिला में अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर में शुरुआती दौर में जब राजा शिव धनुष न तोड़ पाये तो राजा जनक विलाप करते हुये बोले:-
तजहु आस निज-निज ग्रह जाहू,साथियों ने भी बहुत देर तक अपने लुटने का इंतजार किया। पलक-पांवड़े बिछाये इन्तजार करते रहे कि उनकी कोई तो पोस्ट चोरी जाये। लेकिन लगता है चोर गुणवत्ता के प्रति कुछ ज्यादा ही सजग है। वे हड़बड़ी में नहीं हैं कि जो भी पोस्ट दिखी नारद में उसे तहाकर उठाया और अपनी साइट के सो रूम में सजा दिया। उसमें देबाशीश के धैर्य का अंश है जो पत्रिका तभी निकालेंगे जब वे कवर स्टोरी के साथ-साथ कामा, फुलस्टाप भी देख लेंगे। ये नहीं तब कोई तीर आया तो उठाया तरकश और छोड़ दिया हवा में।
लिखा न विधि वैदेहि विवाहू।
जीतेंद्र ने तो बीच बाजार में गगरी लुटा दी। जबकि दुनिया गवाह है कि जबसे गगरी सभ्यता शुरु हुयी तबसे उससे सम्बन्धित सारे कारोबार का क्षेत्र पनघट रहता आया है। इधर किसी मर्दाने टाइप के सुपात्र ने गगरी फोड़ी और फिनिशिंग टच देने के लिये बाली उमरिया वाली नायिका की बहियां भी मरोड़ दीं इधर एक गाना हो गया। बीच बजरिया तो बहुत दिन पहले हुई यही सुनी थी एक वारदात- बीच बजरिया खटमल काटे, कैसे निकालूं चोली से।
हालांकि इसमें भी हमें भाव साम्य नहीं दिखाता। इसमें भी कुछ तकनीकी लोचा है। खटमल तो चारपाइयों में पाया जाता है। तो क्या पुराने जमाने में नायिकायें चारपाई लाद के बाजार जाती थीं।
इसी तरह पंडितजी बोले गांव वालों खबरदार डाकू आ गये। अब डाकू गांव में आ ही गये हैं तो हम क्या कर लेंगे! गांव में कोई ठाकुर, वीरू, जय तो हैं नहीं जो किड़बिड़-किड़बिड़ करते डाकुओं को भगा देंगे। अब ठाकुर लोग शहर के फार्म-फ्लैट में रहते हैं और जय-वीरू की पीढ़ी के लोग किसी महानगर के विकास में खून जलाते, पसीना बहाते हुये अपना अमूल्य योगदान देते हुये जी रहे हैं।
और संजय बेंगाणी बोले- दिन दहाड़े लुटेरों का मजाक। अब ये बात कुछ हजम नहीं हुई। क्या लुटेरों को दिन में मजाक करने पर पाबंदी है। पूरी दुनिया में करोड़ों-अरबॊं रुपये इधर-उधर करने वाले दिन-रात मीडिया चैनेल में मजाक करते रहते हैं। ही-ही करते हैं तो उनको जब कोई नहीं रोकता तो इन निरीह लुटेरे भाई को मजाक करने क्या रोकना जिन्होंने हमारे अंदर यह अहसास जगाया कि हममें भी कुछ ऐसा है जो लूट लिये जाने काबिल है।
समीरलाल काअफसोस काबिले गौर रहा। बेचारे सबेरे से नहा -धोकर बबुआ बने अपने लुटने-चोरी जाने का इंतजार करते रहे। करते रहे ,करते रहे। सुबह से हो गयी शाम। कोई पोस्ट नहीं लुटी। पहले तो समीरभाई ने सोचा कि दिल्ली से कनाडा तक चोर को आते-आते कुछ तो समय लगेगा। शायद चोर कनाड़ा की सड़कों की बर्फ भी समेटता आ रहा हो। उनकी -अंखडियां झांई पड़ीं, पंथ निहारि-निहारि/जीभड़ियां छाला पड्या चोर पुकारि-पुकारि। वे इंतजार करते रहे यह सोचकर सारे लोगों के ब्लाग लूटता हुआ चोर अंत में आयेगा स्वर्णकमल विजेता के ब्लाग को इज्जत से लूटने। लेकिन उनके ब्लाग की इज्जत महरौली के लौह स्तम्भ की तरह जस की तस बनी रही। कोई मौसम का बदलाव उसे कम न कर सका। और वे अपने ब्लाग की इज्जत को उसी तरह देखते रहे जैसे एक दिन पर दिन जवान होती बेटी का बाप पैसे के अभाव में बेटी के हाथ पीले न कर पाने पर देखता है। अब वे जीवन से निराश होकर डा. दीवान हरबंश के पास जाने की उमर तो वे पार कर चुके हैं लिहाज उन्होंने अपने ब्लाग को लूटने के लिये आवाहन किया-भागो,भागो डाकू आये। भागने की हड़बड़ी में वे अपनी बात पूरी कह नहीं पाये। बड़े-बड़े लोग भागने की हड़बड़ी में ऊटपटांग हरकते करते आये हैं। भगवान खुद गज को ग्राह से बचाने के लिये नंगे पैर स्वर्ग से धरतीलोक भागते चले आये, जबकि हमारे कई दोस्त ऐसें हैं जिनको भाभियां एक कमरे से दूसरे कमरे नंगे पैर आने पर उलटा लौटा देती हैं-जाइये पहले चप्पल पहन कर आइये! वर्ना वे अगर हड़बड़ी में न होते तो लिखते- भागो,भागो डाकू आये, चलो भाग के अपना ब्लाग लुटवायें।
हमने तो कह दिया था कि हमें लुटने का कोई दुख नहीं है| हम तो लेकिन हमारी साईट के स्वामीजी हमारी पोस्ट को मैथिलीजी की साइट से उसी तत्परता से उठा लाये जिस तत्परता से घर से भागकर प्रेमी के साथ शादी रचाती नाबालिक लड़की को उसका बाप विवाह मंडप से उठा लाये और दुलराते हुये कन्या से कहे- बेटी, तेरे लिये अच्छा लड़का ढ़ूंढेंगे।
बहरहाल, हम तो मानते हैं कि हमारे मैथिलीजी अपने नामाराशि मैथिली शरण गुप्त की भावना से हिंदी की सेवा करना चाहते हैं और कामना करते हैं:-
मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारे आरती,कुछ गलतफहमियां भले हुयी हों लेकिन हम उनको चोर भी नहीं मानते- चोर तो बकौल श्रीलाल शुक्ल, ‘वे होते हैं जो किसी बच्चे तक के पैर फड़फड़ा देने से चुपचाप जिस रास्ते आते हैं उसी रास्ते वापस चले जाते हैं।’ यहां तो परस्पर संवाद हो रहा है। हम उनको डकैत भी नहीं मानते क्योंकि डकैत अपने पक्ष में सबूत देते नहीं देते। पूरे देश में देखिये कौन डकैत अपनी डकैती को जस्टीफ़ाई करता है। सब लगे हैं लूटने में। अब जब ये दोनों में से कोई नहीं हैं तो हम क्या इन्हें बीच की स्थिति का मान लें। नहीं हम ई सब नहीं करते। वो हल्का डा.सुनील दीपक का है।
भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती(हिंदी)।
वैसे अगर हमें इनको चोर साबित ही करना होगा तो हम कहेंगे कि ये उस टाइप के चोर हैं जिस टाइप का ऒ.हेनरी की एक कहानीमें बताया गया है। इसमें एक चोर एक घर में लूटने के लिये घुसता है तो पता चलता है कि घर का मालिक गठिया से ग्रस्त है और इसी लिये अपना एक हाथ नहीं उठा पाता। चोर को भी गठिया की बीमारी होती है। फिर दोनों गठिया के बारे में तमाम इलाजों के बारे में बतियाते रहते हैं और एक नये तेल की खोज में निकल जाते हैं। घर वाला कहता है -लगता है मैं पैसे घर में ही भूल गया। इस पर चोर उसे अपने साथ ले जाते हुये कहता है- मैं कहता हूं न छोड़ो उसे पैसे हैं मेरे पास!
मुझे लगता है मैथिलीजी के और अन्य साथी ब्लागरों की दर्द एक ही है। और सब मिलकर इसका इलाज खोजेंगे।
वैसे तो किसी भी लेखक यह लेखक के लिये बड़ी खुशी की बात है उसका लिखा लोग पढ़ें-चाहे चुरा-चुरा के ही सही। नोबल पुरस्कार विजेता लेखक गैबरीला मार्खेज अपने जीवन के सबसे आल्हादित करने वाले अनुभवों में एक उस अनुभव को मानते हैं जब उन्होंने देखा कि उनकी किताब ‘हन्ड्रेड यीयर्स इन सालूट्यूड’ को लड़के दस भागों में बांट-बांट करके पढ़ रहे थे। लेकिन हमारे तमाम साथी जो चाहते हैं कि उनका ब्लाग बिना उनकी अनुमति के कोई चुरा न सके तो उसके कुछ तरीके हमने खोजे हैं। अगर आप अपने ब्लाग को इस लायक समझते हैं उसकी चोरी की जा सकती है तो इन तरीकों को आजमाने के बारे में विचार करें। ये तरीके हालांकि हमने खोजे हैं लेकिन इनको अगर आप अपना बनाकर भी अपनाते/प्रचार करते हैं तो हमें कोई एतराज नहीं होगा। दुनिया के तमाम लोकगीत उनके रचयिताऒं के नाम के बगैर गाये जा रहे हैं।
ब्लाग चोरी से बचने के कुछ सुगम उपाय
१. सबसे पहला उपाय न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी के प्रसिद्ध सिद्धान्त पर आधारित है। अगर आप सही में चाहते हैं कि आपके ब्लाग पोस्ट की कोई चोरी न कर सके तो सबसे सुगम उपाय है कि आप तुरंत लिखना बन्द कर दें। आप जैसे ही लिखना बंद कर देंगे आपके ब्लाग की चोरी भी तुरंत बंद हो जायेगी।२. पहले उपाय की पूरी सफलता के लिये जरूरी है कि आप अपना ब्लाग बन्द करने के पहले उसका पासवर्ड बदल दें और बदला हुआ पासवर्ड उसी तरह बिसरा दें जिस तरह चुनाव जीता हुआ आम नेता अपने इलाके की जनता और इलाके को भूल जाता है। अगर आपने पासवर्ड बदला नहीं तो आपके दोस्त जिनको आपने तकनीकी सहायता के लिये अपना पासवर्ड बताया है आपके नाम से खुटुर-पुटुर कर सकते हैं और आपमें दुबारा ब्लाग लिखने की इच्छा के कीटाणु भारत में चेचक, मलेरिया ,टी.बी., पोलियो की बीमारियों के कीटाणुऒं के तरह वापस सक्रिय हो सकते हैं।
३. दूसरा उपाय जगत प्रसिद्ध चिर सनातन आलस्य और शर्म के सिद्धान्त पर आधारित है। आपका सुनने में अटपटा लग रहा होगा कि आलस्य और शर्म का कैसा मिलन! क्योंकि आलसी तो बेशर्म होता है। लेकिन हम आपको बतायें यह सच है। जब गांगुली और चैपेल मिल सकते हैं, लोकतांत्रिक अमेरिका राजतांत्रिक अरब देशों से जुड़े रह सकते हैं तो आलस्य और शर्म ने कौन आपकी भैंस खोली है जो आप इनको मिलने नहीं देना चाहते। आप से भले तो वे जाट हैं जो ऊंची-नीची जातियों वाले प्रेमियों को भले ही काट के मार दें लेकिन उनको अलग नहीं करते। आप इस बात को अच्छी तरह समझने के लिये पहले दोनों सिद्धान्त अच्छी तरह समझ लें तब हो सकता है आप हमारी बात से हमसे ज्यादा सहमत हो सकें।
आलस्य का सिद्धान्त: इस सिद्धान्त को भारत में मलूकदास के सिद्दान्त (अजगर करे न चाकरी….)के रूप में सबसे पहले पहचाना गया। लेकिन बाद में हम गफलत में रहे और अंग्रेज लोगों ने इसे विद्युतधारा न्यूनतम प्रतिरोध के रास्ते में बहती है(करेंट फालोस द लीस्ट रेजिस्टेंट पाथ’) के वैज्ञानिक सिद्धान्त का जामा पहना दिया। इससे साबित होता है कि बिजली जो बहुत चपल मानी जाती है वह भी लम्बे रास्ते से जाने में डरती है। शार्टकट ही अपनाती है।
इसी सिद्धान्त का सहारा लेते हुये कोई भी चोरी अपनी चुरायी चीज को बिना कुछ मशक्कत किये हिल्ले लगाना चाहता है। ऐसे ही जो आपके ब्लाग से कुछ चुरायेगा और अगर पूरा का पूरा जस का तस छापना चाहेगा तो वह उस पर कोई भी अतिरिक्त मेहनत करने से बचना चाहेगा।
शर्म का सिद्धान्त: यह एक जन सिद्धान्त है। जैसे बेईमान से अधिकारी भी अपने मातहतों से ईमानदारी की अपेक्षा करता है वैसे ही बड़े से बड़ा चोर भी अपनी चोरी पकड़े जाने से डरता है। भ्रष्ट से भ्रष्ट नेता ,नौकरशाह भी अपनी हराम की कमाई को अपनी मेहनत की कमाई ही बताते हैं और पकड़े जाने पर उनकी आय से अधिक जो भी सम्पत्ति उनके यहां पायी जाती है उसे वे अपने अपने पिता, अंकल, आंटी द्वारा गिफ़्ट में दिया बताते हैं। रंगे हाथो घूस लेते पकड़े जाने वाले भी कहते हैं कि उन्हें गलत फंसाया गया है। इस सिद्धान्त को अमली जामा पहनाया हमारे मोहल्ले के कल्लू ढाबे वाले ने। कल्लू पहलवान ने अपने होटल के सारे बरतनों पर गुदवा दिया था- यह बरतन मेरा नहीं है इसे मैं कल्लू ढाबे वाले के यहां से चुराकर लाया हूं। अब किस माई के लाल में हिम्मत होगी कि वे दस रुपये के गिलास के लिये अपनी लाखों की इज्जत का फालूदा निकवायें।
आलस्य और शर्म का सिद्धान्त
इसमें आप उपरोक्त दोनों सिद्धान्तों की मूल भावना का उपयोग करते हुये पोस्ट लिखें। जैसे मैं अपने ब्लाग के लिये जब पोस्ट लिखूंगा तो हर पैराग्राफ़ के शुरू में लिख दूंगा। यह पोस्ट मेरी लिखी हुई नहीं है। इसे फुरसतिया ने लिखा है। फुरसतिया ब्लागजगत के नामी लेखक हैं और महाब्लागर की उपाधि से नवाजे जाते हैं जिससे वे उसी तरह बिदकते हैं जैसे गांगुली को देखकर कभी चैपेल बिदकते थे।अब जब हर पैरा में यह लिखा होगा तो बड़े से बड़ा बेशर्म भी इसे अपनी साइट में जस का तस नहीं छापना चाहेगा। और उसका आलस्य का सिद्धान्त उसे हर पैरा से इस लिखे हुये को हटाने से रोकेगा। जिन साथियों को अपनी पोस्ट की सुरक्षा की ज्यादा ही चिंता है वे इसे पैरा के शुरु और आखिरी दोनो जगहों पर या फिर हर एक लाइन के बाद लिख सकते हैं।
४. उदासीनता का सिद्धान्त:यह सिद्धान्त गीता के निष्काम कर्म के सिद्धान्त की चोरी करके बना है। इसमें आप अपने ढेर सारे ब्लाग खोल लीजिये और उनके पोस्टिंग करना भूल जाइये जैसे कभी दुष्यन्त शकुन्तला को बिसरा गया था। आप उनमें पोस्टिंग ही नहीं करेंगे तो चोरी कौन करेगा, काहे की करेगा? हिंदी के तमाम ब्लागर्स इसी नीति का अनुसरण करते हुये अपने ब्लाग की चोरी बचाये हुये हैं। अब भला बताइये कौन माई का लाल चोर है जो जीतेन्द्र के याहू३६०, लाइवजरनल, रेडिफमेल और सिन्धीब्लाग से कुछ चुराकर कहीं कुछ पोस्ट कर दे। जगदीश व्योम जी की भी ब्लाग-बारात महीनों से चल रही है बिना लुटे। सिर्फ इसी उदासीनता के सिद्धान्त के चलते। इसमें ज्यादा पुख्तापन लाने के लिये आप अपना पासवर्ड उसी तरह भूल जाइये जिस तरह आजकल की राजनीति में प्रवेश करने के पहले लोग अपनी नैतिकता, देशनिष्ठा , ईमानदारी का विसर्जन करके तब शुरुआत करते हैं और हो सके तो समय की कमी का ‘ताजगी प्रदाता द्रव’ भी छिड़क लीजिये।
५. जैसा बोले वैसा लिखें: जैसे आम तौर पर अगड़म-बगड़म चेहरे-मोहरे वाला भारतीय नौजवान भी अपनी जीवन-संगिनी की कल्पना करते हुये महामहिम कलाम साहब की हमेशा ऊंचे सपने देखने वाली बात मानकर स्वप्न-सुंदरी से नीचे की कल्पना को खारिज कर देता है वैसे ही अपना नाम भी मुश्किल से लिख पाने में समर्थ ब्लाग- चोर भी ऐसे किसी भी ब्लाग से चोरी नहीं करना चाहेगा जिसमें वर्तनी की चूक होगी। तो आप भी ब्लाग-चोर की भावुक मानसिक कमजोरी का शोषण करें और अपने ब्लाग में ढेर सारी वर्तनी की कमियां कर दें।
अगर आप बेंगाणी बन्धुऒं की तरह बिंदास लिखते हैं या आशीष की नकल मारते हैं तो आपका आधा काम तो हो गया समझिये। जो कुछ कमी रह गयी उसे आप प्रयास करके दूर करिये। लिखने में वर्तनी की अधिक से गलतियां करने का प्रयास करिये। जो लोग अपनी गलतियां सुधारने के लिये कुछ साथियों की सहायता लेते थे वे अपने रोल आपस में बदल सकते हैं। अब वर्तनी सही लिखना सिखाने वाला साथी अपने चेले से गलत वर्तनी सीखने का गंडा बंधवा सकता है। लोगों को थोड़ा मेहनत करनी पड़ेगी वर्ना एक ई-स्वामी की पुरानी सुलेमानी टकसाली भाषा और कालीचरण के बिंदास भोपाली अंदाज से भी नकल मार सकते हैं।
अच्छा और सही लिखने वालों को यह सुझाव थोड़ा अटपटा लगेगा कि जानते-बूझते कैसे गलत लिखें लेकिन उनसे हमारा यही कहना है कि वे बेकार की भावुकता में न पड़ें। चोरी बचाने के लिये कुछ तो प्रयास करना पड़ेगा। उनके दिल को दिलासा देने के लिये मैं एक ठोस बोले तो सालिड बहाना बताता हूं,‘जब हम अपने चारों तरफ़ पूरी दुनिया को गलत करते देखते हैं और खुद भी कई बार अनुसरण करते हैं और उससे भी आत्मा नहीं कचोटती तो गलत लिखने से ही कौन सा आसमान टूट जायेगा। उसमें तो आत्मा भी ‘इन्वाल्व’ नहीं होती। भाषा और आत्मा में कोई कांटा तो भिड़ा नहीं होता। भाषा की आत्मा से कौनौ रिश्तेदारी थोड़ी है।’
वैसे इस सिद्धान्त का पालन करने में ज्यादा मुश्किल नहीं होनी चाहिये। आप बस जैसा बोलते हैं वैसा लिखने का प्रयास करें। आपके गलत वर्तनी लिखने का अपराधबोध इस गर्व बोध के पीछे छिप जायेगा कि आपके जीवन में दोहरापन नहीं है। आप जैसा कहते हैं वैसा करें भले न लेकिन जैसा बोलते हैं वैसा लिखने तक की प्रगति आप कर चुके हैं।
६.क्लिष्टता का सिद्धांत:यह सिद्धान्त उन लोगों के लिये ज्यादा मुफ़ीद है जो लिखने के साथ-साथ अपने ज्ञान का बोझा भी ढोते हैं। ऐसे ज्ञान-कुली टाइप के लोग अपनी ‘लेखन-सवारी’ के आगे-आगे अपने ज्ञान-पायलट दौड़ा देते हैं। ये ‘ज्ञान-पायलट’ दुनिया-जहान में अपनी ‘लेखन-सवारी’ के आने की सूचना देते हुये उनका डंका पीटते चलते हैं। जैसे किसी नेता की शान में गुस्ताखी हो जाने पर नेता से ज्यादा खून उसके शागिर्दों का खौलता है ऐसे ही लेखकों के लेखन के बारे में कुछ भी कहने पर उनके ‘ज्ञान-पायलट’ टीन-टप्पर की तरह तुरंत सुलग जाते हैं। ऐसे लोगों के लिये ब्लाग चोरी बचाना बड़ा सुगम उपाय है। वे जितनी क्लिष्ट भाषा लिखते हैं उसमें थोड़ी सी क्लिष्टता , बस दाल में नमक बराबर, और मिला दें तो बस उनका काम पक्का समझिये। फिर तो उनके ब्लाग पर चोरी करने वाला उसी तरह बिदकेगा जिस तरह से कानपुर में कोई भी विदेशी निवेशक पूंजी निवेश से घबराता है।
इस तरह की भाषा का नमूना मेरी जानकारी में फिलहाल अभी ब्लाग जगत में कोई नहीं है। ऐसी भाषा दुर्लभ है लेकिन इसकी पहचान यही है कई बार पढ़ने बावजूद आपको यह बिल्कुल न समझ में आये। ऐसी भाषा को ‘राजभाषा‘ नहीं ‘महाराज-भाषा’ कहा जाता। इसका एक उदाहरण मैं श्रीलाल शुक्ल जी के एक लेख से देता हूं:-
“जहां तक सम्पत्ति के किसी अन्तरण के निबन्धन निर्दिष्ट करते हैं कि उस सम्पत्ति से उदभूत आय (क) अन्तरक के जीवन से, या (ख) अन्तरण की तारीख से अठारह वर्ष की कालावधि से अधिक कालावधि तक पूर्णता: या भागत: संचित की जायेगी, वहां एतस्मिनपश्चात यथा- उपबन्धित के सिवाय ऐसा आदेश वहां तक शून्य होगा जहां तक कि वह कालावधि जिसके दौरान में संचय करना निर्दिष्ट है, पूर्वोक्त कालावधियों में से दीर्घतर कालावधि से अधिक हो और ऐसी अन्तिमवर्णित कालावधि का अन्त होने पर सम्पत्ति और उसकी आय इस प्रकार व्ययनित की जायेगी मानो वह कालावधि जिसके दौरान में संजय करना निदिष्ट किया गया है, बीत गयी है।”यह भाषाई नमूना भारत सरकार के विधि मंत्रालय के एक प्रकाशन से लिया गया था। जाहिर है ऐसी भाषा पढ़ने के लिये नहीं पूजने के लिये लिखी जाती है। आप ऐसी भाषा का अभ्यास कर लीजिये फिर देखिये आपका ब्लाग की सामग्री न रहकर पूजा स्थल बन जायेगा। लोग मत्था टेककर आपके ब्लाग को प्रणाम करने लगेंगे। आपके ब्लाग को देखते ही चोर के अन्दर इतनी पवित्र भावनायें भर जायेंगी कि चोरी जैसी निक्रष्ट भावना उस तरफ़ मुंह भी नहीं कर पायेगी।
७.तारीफ़ में आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त:तारीफ़ में आत्मनिर्भरता का सिद्धान्त मुख्यत: इस नियम पर आधारित है कि व्यक्ति को अपना सारा काम खुद करना चाहिये। यह पश्चिमी अवधारणा है अत: इसी घालमेल में निजता का सिद्धान्त भी मिल गया। इसके तहत आप अपनी पोस्टों में अपनी खूब तारीफ़ लिखिये। खूबसूरत न हों तो अपनी ढेर सारे फोटुयें भी लगाइये यह मानकर कि खूबसूरती देखने वाले की आंखों मे बसती है। जब आप अपनी तारीफ़ करेंगे और उसमें आत्मनिर्भरता की स्थिति को प्राप्त हो जायेंगे तो निजता का सिद्धान्त अपने आप लगने लगता है। फिर लोग आपको इतना भी तंग नहीं करना चाहें कि आपके ब्लाग की तरफ़ मुंह उठाकर भी सांस लें। अगर कोई आपके ब्लाग की चोरी करेगा तो उसकी साइट का भी यही हाल होगा यह मानते हुये लोग अपनी आपकी साइट से चोरी करने के विचार से हाथ खींच लेंगे जैसे भारत सरकार देश के सर्व शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कार्यक्रमों से अपने हाथ खींचती जा रही है।
८. ईमेल का सिद्धान्त:आप अगर सच में कुछ अच्छा लिखने की कबिलियत रखते हैं और ऊपर बताये सभी उपायों से कोई भी आपको जंचता नहीं है तो आप इस तरीके को अमल में ला सकते हैं। आप अपना कोई सबसे अच्छा लेख/कविता अपने ब्लाग पर पोस्ट कर दें और यह सूचना चिपका दें
मैं ऐसा लिखता हूं जिसको इस तरह का पढ़ना हो वो मुझे मेल करे हम मेल से लेख/कविता भेजूंगा। फिर आपके पास जो मेल आयें उनको अपनी रचनायें भेजें। जब तक आपके पास पाठकों के मेल नहीं आते तब तक आप स्वयं ही सौ-पचास ई-मेल बनाकर खुद को भेजें और इसका प्रचार अपनी साइट पर करें। प्रचार की सामग्री लोग नहीं चुराते। फिर आपके सदस्य बढ़ते जायेंगे। यह तरीका कारगर तरीका है और इस तरीक से आप एक बड़े समूह का संचालन भी कर सकते हैं। समूह के संचालन की प्रक्रिया समझने के लिये आप याहू कविता ग्रुप की गतिविधियां देख सकते हैं। अनूप भार्गव जी बड़ी सफलता से इसे चला रहे हैं।
९. ब्लागनाद और यू-ट्यूब का सिद्धान्त: आप अपना चिट्ठा बोलकर पोस्ट करें। यू-ट्यूब में रिकार्ड करके पोस्ट करें। किसी माई के लाल की हिम्मत नहीं कि आपकी रचना चुराकर पोस्ट करे। लोग अपना लिखा हुआ पोस्ट कर नहींपाते आपका बोला हुआ कौन पोस्ट करेगा। इस तरकीब में सम्भावित सफलता की प्रतिशत आपकी आवाज की खराबी के समानुपाती होता है। जितनी रद्दी आपकी आवाज होगी ,आपका ब्लाग चोरी की सम्भावना से उतना ही बचा रहेगा।
१०.इधर-उधर, यहां -वहां का सिद्धान्त: आप प्रयास करें कि आप अपनी सरल से सरल बात किसी के भी यहां तक कि आपके भी समझ में न आये। इसके लिये तमाम उपाय हैं। आप एक बात को तीन-चार बार पांच-छह तरीके से लिखें। हिंदी के बीच में गलत अंग्रेजी लिखें। गलत अंग्रेजी में सलत फांसिसी के उद्धरण लिखें जिसमें रूसी परिस्थितियों के हवाले से जर्मनी की घटनाऒं का इटली के मौसम के मद्देनर कनाडाई अंदाज में विश्लेषण हो। लोग अमेरिकन अंदाज में आपके ब्लाग को ‘ओह क्या कूड़ा है’(व्हाट अ रबिश) कहकर आगे बढ़ लेंगे। चोरी जैसी बात सोचने के बजाय आपके ब्लाग से दूर अति दूर जाने में उनको जन्नत के सुख की प्राप्ति महसूस होगी।
ये कुछ सुगम उपाय हैं जिनमें से आप अपने लिये कोई एक उपाय छांटकर अमल में ला सकते हैं। इन उपायों की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि आपने कितनी ईमानदारी से इन उपायों पर अमल किया।
अगर आपने इनमें से किसी भी उपाय को अमल में लाने का तय किया है तो आपसे अनुरोध है कि अपने अनुभवों से हमें जरूर लाभान्वित करें ताकि हम उनको दूसरों को भी बता सकें।
अगर आपको इन सभी उपायों को अपनाने के बावजूद भी ब्लाग-चोरी से निजात नहीं मिली तो आप हमें लिखें आपके लिये सम्भव है हम कुछ और बेहतर उपाय बता सकें।
Posted in बस यूं ही | 25 Responses
इतना बड़ा ज्ञान और फ्री में बाँट गये…आप महान हैं. हम तो इस पर ऐसी फीस लगाते कि लोग पैसे देने के बाद भी कहते कि भईया, छुट्टॆ आप ही रख लो, इतना बढ़ियां आईटम देने के लिये.
मेरा शायद चोरी मे, बकौल आपके बैंगाणी बंधुओं की तरह, इसी वर्तनी की गल्तियों की वजह से सेलेक्शन नहीं हो पाया जो अब आपको पढ़कर पता चला. इस पर ज्यादा प्रकाश तो माननीय मैथली भाई ही दे पायेंगे और आजकल वर्तनी इंस्पेक्टर विनय भी दर्शन देना बंद कर दिये हैं हमसे नाराज हो गये दिखता है.
मानो न मानो, ऐसा ही लिखते रहो, चोरी डाका तो अपनी जगह है, जब विश्व हिन्दी साहित्य का इतिहास रचा जायेगा, वो भी आपको उठा ले जायेंगे..मेरा विश्वास करो.
जारी रहो, धन्नो को क्या सोचना कि कौन उठा ले जायेगा…बस अपना काम करते रहो. बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामना.
वो भॊ होल सेल में।
जो लुट गये उनको लुटने का गम है और जो नहीं लुटे उन्हे न लुटने का। आप ने सभी की मौज ले ली ।
बहुत खूब
–इसे मुस्की बाबू (पहली टिप्पणी देखो, तिन बात मुस्कियाये हैं) उर्फ़ उन्मुक्त जी से कॉपी राईट करा लो…पेटेंट…जो भी इस सिद्धांत का पालन करेगा..आपको रायल्टी देगा…बहुत अटकेंगे इसमें. इस पर श्रीलाल जी का नरेशन भी जबरदस्त रहा, अभी भी समझने की कोशिश कर रहा हूँ…
अच्छी मौज ली है जी, ब्लॉग चोरी रोकने के ये उपाय ब्लॉगिंग की लत छोड़ने के लिए भी कारगर हैं।
वाह!!
बेंगाणी बन्धू वैसे ही बदनाम है जैसे गुजरात के मुख्यमंत्री, जब कोई और मुद्दा नहीं मिलता तो वर्तनी की भूलें ही सही. ये बात और है की विनय की तमाम टिप्पणीयाँ आज भी हमने हटायी नहीं है, तथा उनके मीन-मेख अभियान का मन से स्वागत किया. कितनो ने ऐसी हिम्मत दिखाई? हमने नहीं कहा निंदक नीयरे राखिये. हमने कहा सच्ची आलोचना करनी है तो मंच पर खड़े हो कर करो.
मेरा मानना है अनजान व्यक्ति द्वारा चोरी किये जाने पर हल्ला मचाना सही था. बिना अनुमति लिए हिन्दी की सेवा करना गलत था. मांगेंगे तो पुरा चिट्ठा आपका है. ले जाईये.
आपको जानकर हर्ष होगा तरकश से सारे तीर सोच समझ कर ही छोड़े जा रहे है, तभी तरकश अपना खर्च खुद उठाने लायक हो गया है. भविष्य में होने वाली कमाई को संजाल पर हिन्दी के विकास में लगाया जाएगा. इसलिए जो योगदान देना चाहे उसके लिए तरकश के दरवाजे खुले है.
चोरी तो उनके घर होती है जो साधन सम्पन्न होते हैं… जैसे फुरसतिया चाचु आप! अपने तो ठन ठन हैं।
निरंतर तो नगीना है, पर कहते हैं ना सोया हुआ कुम्भकरण भी किस काम का!
तीरें गांडीव से ना भी छुटे, चल तो दनादन रही है।
आपने इस लेख को उन सिद्धान्तों पर आधारित रखा/लिखा है या नहीं? जिन के बारे में आप बता रहे हैं लेख में। कहीं ऐसा ना हो कि आपका यह लेख भी कहीं चोरी हो जाये या ये सिद्धान्त ही चोरी हो जाये!!!!
बहुत मजा आया लेख पढ़ कर और हमने आजमाना शुरू कर दिया है, अब दूसरी योग्यता तो है नहीं हममें सो सिद्धान्त क्रमांक 3 से 5 को आजमाने का निश्चय किया है।
आज तरकश साफ़ करने रखा हुआ है।
@ समीरजी, टिप्पणी, बधाई और शुभकामनाऒं के लिये शुक्रिया। श्रीलाल शुक्ल का लिखा ‘नैरेशन’ समझ में आये तो हमें भी बताना।
@ जगदीश जी, शुक्रिया। होल सेल का मजा ही कुछ और है।
@ श्रीश शर्मा ‘ई-पंडित’,पंकज बेंगाणी,चिंता न करो कुछ दिन बाद तुम्हारी बंदरगीरी भी लुटेगी। निरंतर आने वाला है। तरकश तो शानदार चल ही रहा है बधाई!
@ संजय बेंगाणीहम किसी को छोड़ने के लिये थोड़ी साथ पकड़ते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री को हम जितना जानते हैं वो अखबार से और मीडिया से। वे उतने ही हमारे हैं जितने कि किसी दूसरे भारतवासी के। गुजरात में होने के कारण वे आपके कुछ और नजदीक हो गये। अगर आपको उनको सही मानते हैं उनके बारे में अच्छी बातें बताते रहिये। बेंगाणी बन्धु कम से कम हमारी निगाह में बदनाम नहीं हैं। उनके प्रयासों की हम सराहना करते हैं। लेकिन एक पाठक की हैसियत से उनका लिखे पर अपनी राय रखना हमारा अधिकार है। तरकश आगे और प्रगति करे यह मेरी शुभकामना है। आपकी इस बात से हम सहमत हैं कि जहां तक संभव हो सके किसी का लेख छापने से पहले उससे पूछ लेना चाहिये। मेरे लिखे पर मेरा अधिकार है। और अगर मेरा लेख कोई मेरी अनुमति के बिना भी छापता तो इस पर मुझे कोई एतराज नहीं है। कहने का मतलब सबको मेरी तरफ़ से खुली छूट है ,जब तक वह उसका दुरुपयोग नहीं करता। लेकिन चूंकि मैं स्वामीजी द्वारा चलाई साइट पर लिखता हूं इसलिये यहां पोस्ट हुये लेख के बारे में स्वामी जी का निर्णय अंतिम होगा। बुरा मानना हम न जाने कब का त्याग चुके हैं। और भी गम हैं जमाने में….।
@ शुऐब,आशा है अब तक लेख पढ़ लिया होगा!
@ सागर भाई, पसंद का शुक्रिया! प्रयासों में सफलता के लिये शुभकामनायें!
@ जीतेंद्र,जवाब का इंतजार है।
@ हिंदी ब्लागर इंतजार है आपकी शुभकामनाऒं के सफल होने का!
अनूप जी, श्रीलाल जी का उद्धरण तो वास्तव में पूजनीय है। आपसे अनुरोध है कि तनिक इसका अंग्रेज़ी में रूपांतरण तो कर देते, ताकि इसकी भाषा के साथ साथ आशय भी सर्वबोधगम्य हो जाये। नहीं तो इसको एक पहेली के रूप में ही रख दें और हो जाय परीक्षा हम हिन्दी पाठकों (और लेखकों) की!
अनूप जी समझ मे नही आता कि किस मूंह से आपका शुक्रिया अदा करूं। बाकई जानकारी से भरपूर जानदार लेख था।
इसीलिए हम डायरी-वायरी से काम चला लेते हैं. जो चीज एक बार चुरा ली गई हो, उसे चुराकर कोई अपनी भद्द थोड़े न पिटवाएगा.
श्रीलाल शुक्ल वाला अंश तो लगता है भगवान भी लाल रंग से रिमार्क लिखकर वापस दे दें – कि कृपया मादरे हिंद में तर्जुमा करें अन्यथा आपको बदजुबानी और बदगुमानी के अलहदा सूचकों की श्रेणी में रखा जायगा