http://web.archive.org/web/20140419215724/http://hindini.com/fursatiya/archives/252
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिये
By फ़ुरसतिया on March 5, 2007
आज होली तो हो ली। रंग बरसा। भीग गई तमाम चुनरवालियां। जो नहीं
भीगीं वे जीन्स टाप में थीं। बहरहाल, इस भीगा भागी की धींगामस्ती से बाहर
निकल के आओ चलें कुछ बोल बतिया लिया जाये। जो हुआ वह कह सुन लिया जाये। अरे
कोई सीरियस बात नहीं। हल्का-फुल्का होगा -बस नीरज रोहिल्ला टाइप। बहुत हुआ तो गिरिराज जोशी टाइप हो जायेगा।
बात गिरिराज का हुयी तो सुना जाये कि कल गिरिराज होली झोंक में कदकाठी में अपने से दस गुने गुरुदेव को वैसे ही उठा लिये जैसे सेंन्सेक्स मंहगाई को उठाये घूमता है। गुरुजी, चिल्लाये- अरे क्या करता है वत्स! क्या तुमने मुझे मेरे नाम(समीर) के समान हल्का समझ रखा है। अरे मैंने तेरे नामानुरुप (गिरिराज) वजन धारण कर रखा है ताकि चिट्ठाजगत से मुझे कोई हिला न सके। तू तो अपने गुरु को ही उखाड़ रहा है। मुझे उतार दे बेटा मैं वायदा करता हूं कि अगले साल तुझे तरकश के इनाम के लिये नामांकित तो करवा ही दूंगा। इस वर्ष इसलिये नहीं करवा पाया कि मेरा एक वोट कट जाता।
गिरिराज गुरुजी के बारे में निर्णय लेते इससे पहले ही उसका मोबाइल बजा और उसने गुरुदेव को ऐसे ही पटक दिया जैसे पंजाब और उत्तराखंड में मतदाताऒं ने सत्तासीन दल की सरकार को पटक दिया। गुरुदेव की चोटों और हाय चेले ये तूने क्या क्या ,मार ही डाला की उपेक्षा करते हुये अपने मोबाइल के संदेश को अटकते हुये पढ़ना शुरु किया। वहां लिखा था-
गुरुदेव को चैन नहीं पड़ा और उन्होंने पूछा -क्या बेटा कोई हमारा संदेश आया है क्या जिसमें मुझे उड़नतश्तरी की वर्षगांठपर बधाई दी गयी है? मैंने लोगों तुम्हारा भी नम्बर दिया था कि शरमाने वाले यहां भी अपने संदेश भेज सकते हैं। ऐसा मैंने इसलिये भी किया था कि कभी-कभी लाइन व्यस्त हो जाती है। या मे्री नयी पोस्ट से उत्साहित होकर लोगों ने तुमको यह कहने के लिये संदेश भेजा है – अपने गुरु की तरह ऐसा लिखना सीखो।
गिरिराज झल्लाते हुये बोले- नहीं गुरुदेव ये किसी भुवनेश ढाबे वाले का विज्ञापन है जो खुले में लगता है। इस लिये सूरज और चांद दोनों हैं पैकेज में। इसका मतलब कोई लाइन होटल है। लाइन होटल आम तौर पर राजमार्ग में होते हैं। ट्रक वाले अक्सर वहीं खाना खाते हैं। यह होटल होली के दिन खुला है इसीलिये शायद प्रचार कर रहा है।
गुरुदेव ने पूछा- देखो कौन है ढाबे वाला! अगर कहीं आसपास हो तो चला जाये। पहले दिन सुना है फ्री में खिलाते हैं ।
गिरिराज बोले- अरे गुरुदेव, ये भुवनेश हैं जिसने मेसेज भेजा है। वो तो वकालत पढ़ रहा है। वो काहे के लिये ढाबा खोलेगा! लेकिन गुरुदेव ये बताओ कि एस.एम.एस.(SMS) का मतलब क्या होता है?
गुरुदेव बोले- एस.एम.एस. बोले तो शार्ट मेसेज सर्विस। छोटी संदेश सेवा।
गिरिराज जिज्ञासित हुये- गुरुदेव इसका हिंदी में कुछ बतायें जैसे एस.एम.एस है।
गुरुदेव बोले- बेटा, हिंदी में तो बढ़िया और बेहतर बनेगा। SMS मतलब- सुनो मियां सुनो या सुनो मोहतरमा सुनो। या सुनो मालिक सुनो या कोई बनारसी कह सकता हैं सुन मर्दे सुन!
गिरिराज ने पहले तो भावातिरेक में उत्साहित होकर गुरुदेव का चेहरा चूमने के लिये मुंह ऊपर उठाया लेकिन लोग क्या कहेंगे और रंग लगा है सोचकर गुरुदेव के चरण स्पर्श कर लिये। देवताऒं ने इस भाव-भीने गुरु चेला मिलन पर रंग वर्षा की। स्वामी जी अपना सिंथेसईज़र लेते आये और बजाने का प्रयास करने लगे। रत्नाजी अपनीरसोई में नये पकवान बनाने चलीं गयीं। बेजी ने सारा को इस आदर्श गुरुभक्ति के लिये पत्र लिखना शुरु कर दिया। मानोसी अपने अनूपदा से अमेरिका फोन करके पूछने लगीं -आपके कोई ऐसा चेला क्यों नहीं है? अनूपदा ने कहा -मानोसी अभी बाद में बतायेंगे। आजकल मैं जरा बिजी हूं। मेरे यहां सोमदादा, कुंवर बेचैन जी आये हुये हैं। मैं उनकी आवभगत में बेचैन हूं। मानोसी ने भुनभुनाते हुये फोन पटक दिया और फिर दुबारा जीतू को हड़काते हुये फोन करके कहने लगीं- ये नारद में ऐसा इन्तजाम किया जाये कि जैसे ही मैं इधर कुछ सोचूं वैसे ही वह उधर प्रकाशित हो जाये।
जीतू ने एक आदर्श सेवा प्रदाता की तरह अभी देखता हूं कहकर फोन रख दिया और वे तमाम ग्रीटिंगों का जवाब देने के लिये कट-पेस्ट तकनीक के प्रयोग में जुट गये।
उधर से राकेश खंडेलवालजी का मेल आता दिखा। उसमें उनकी नयी कविता का लिंक था और नीचे लिखा था-
समीरजी बोले-अरे राकेश भाई, काहे पैदल मार्च करते हैं। थके हुये हैं तो कुछ देर सुस्ता लीजिये। और दूरी-वूरी देखनी है तो गूगल-अर्थ देखिये। ऐसे किससे-किससे पूछेंगे। ई भारत तो है नहीं जहां हर गली नुक्कड़ पर रास्ता बताने वाले फुरसतिये बैठे हैं।
मार्च की बात सुनते ही चेला गिरिराज बोला-गुरुदेव ये बताओ कि ये मसिजीवी जी ट्रेन के पटरी के बगल काहे चल रहे हैं।
समीरलाल ने अपने सर के बचे हुये बालों को सहलाते हुए कहा- यह समझना बड़ा मुश्किल है। वैसे एक तात्कालिक कारण तो यह है कि यह इनके ट्रैक बदलने से संबधित है। ये इंजीनियरिंग से साहित्य की दुनिया में आये। यह टैक बदलना हुआ। इसीलिये दॊ ट्रैक के पास खडे़ हो गये कि देखो हमने ट्रैक बदला। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि ये धमकी है कि अगर हमें सीरियसली न लिया गया तो देख लो यह ट्रैक बगल में है। पीछे गाड़ी आ रही है। ऐसा ही कुछ समझ में आता है। वैसे तुम जीतू से पूछो शायद कुछ बता पायें।
गिरिराज ने फोनो फ्रेंड की तरह कहा- कंप्यूटरजी जीतू जी को फोन लगाया जाये। फोन लगते ही जीतू की आवाज आ रही थी-
नारद में दम है क्योंकि संचालक यहां हम हैं।
बगल के कमरे से अमित की आवाज भी गूंज रही थी- परिचर्चा एक बम है, क्योंकि मंदक यहां हम हैं।
उधर तमाम हिंदी ब्लागरों की सम्मिलित आवाजे आ रहीं थीं- हिंदी ब्लागिंग में दम है, लेकिन ब्लागर यहां कम हैं।
इस दम, बम, कम, हम से उबरते हुये गिरिराज ने पूछा- जीतू जी क्या आप मेरी आवाज सुन पा रहे हैं?
जीतेंन्द्र ने भनभनाते हुये कहा- अरे गिरिराज मैंने तुमको कितनी बार समझाया कि कविता हमारे पल्ले नहीं पड़ती। तुम फिर हमसे टिप्पणी के लिये काहे कहते हो? हमसे जिद मत करो। हम समझ पाते नहीं कविता-वविता। और बिना समझे हम केवल महिला ब्लागरों की कविताऒं की तारीफ़ करते हैं या फिर नये लोगों। तुम न महिला हो न नये इसलिये भैये हमसे ये पाप न करवाऒ। माना कि तेरी कविता में दम है/ लेकिन समझ यहां कम है।
गिरिराज मुस्कराते हुये बोले- ऐसे नहीं है जीतू भाई , हम आपसे तारीफ़ करने के लिये थोड़ी ही कह रहे हैं। हम तो यह जानना चाहते हैं कि मसिजीवी जी ट्रैक के किनारे-किनारे क्यों चल रहे हैं।
जीतू कुछ जवाब दें इसके पहले ही समीरलाल जी ने सवाल उठाया जीतू से- जीतू भाई, ये ठेलुहा, रोजनामचा, नौ-दो,ग्यारह वगैरह में लिखा-पढ़ी होती थी सब खतम हो गयी क्या?
जीतू बोले-और क्या? सबको पुरातात्विक सामग्री बनने का शौक है। सो बन रहे हैं। पुरातात्विक सामनों का वैसे भी दाम अच्छा मिलता है। लेकिन बताओ समीरभाई, ये बेंगाणी बन्धु कहां गये हैं? दिख नहीं रहे हैं।
समीरलाल उवाच- हम भी खोज रहे हैं उनको। हमारे ब्लाग-पोस्ट पर उनकी टिप्पणी अभी तक नहीं आयी। लेकिन मुझे लगता है वे गिनीज आप वर्ल्ड रिकार्ड में यह दर्ज कराने गये हैं कि एक परिवार के सबसे ज्यादा ब्लागिंग करने वाले लोग बेंगाणी परिवार से हैं। एक बार जब यह रिकार्ड बन जायेगा तब अपनी पत्नियों से भी अनुरोध करके ब्लाग लिखवाना शुरू कर देंगे। एक नया रिकार्ड बनेगा।
इस बीच तमाम सवाल उछलने लगे।
नीलिमा का मन लिंकित क्यों है?
सृजन शिल्पी का मन चिंतित क्यों है?
आशीष अभी तक कुंवारा क्यों हैं?
गिरिराज अपने गुरु का इतना प्यारा क्यॊ है?
इसी तरह के तमाम सवाल उछलने लगे हवा में। हम इन सबके जवाब देंगे लेकिन एक ब्रेक के बाद। आप को भी कुछ पूछना हो तो पूछ लें। हम सब बतायेंगे। आप संकोच का त्याग करें। त्यागी व्यक्ति सदैव महान कहलाता है।
अच्छा तो फिर मिलते हैं ब्रेक के बाद। अपना सवाल पूछना न भूलें।
मेरी पसंद
बात गिरिराज का हुयी तो सुना जाये कि कल गिरिराज होली झोंक में कदकाठी में अपने से दस गुने गुरुदेव को वैसे ही उठा लिये जैसे सेंन्सेक्स मंहगाई को उठाये घूमता है। गुरुजी, चिल्लाये- अरे क्या करता है वत्स! क्या तुमने मुझे मेरे नाम(समीर) के समान हल्का समझ रखा है। अरे मैंने तेरे नामानुरुप (गिरिराज) वजन धारण कर रखा है ताकि चिट्ठाजगत से मुझे कोई हिला न सके। तू तो अपने गुरु को ही उखाड़ रहा है। मुझे उतार दे बेटा मैं वायदा करता हूं कि अगले साल तुझे तरकश के इनाम के लिये नामांकित तो करवा ही दूंगा। इस वर्ष इसलिये नहीं करवा पाया कि मेरा एक वोट कट जाता।
गिरिराज गुरुजी के बारे में निर्णय लेते इससे पहले ही उसका मोबाइल बजा और उसने गुरुदेव को ऐसे ही पटक दिया जैसे पंजाब और उत्तराखंड में मतदाताऒं ने सत्तासीन दल की सरकार को पटक दिया। गुरुदेव की चोटों और हाय चेले ये तूने क्या क्या ,मार ही डाला की उपेक्षा करते हुये अपने मोबाइल के संदेश को अटकते हुये पढ़ना शुरु किया। वहां लिखा था-
मक्के की रोटी, नींबू का अचार,
सूरज की किरनें, खुशियों की बहार,
चांद की चांदनी, अपनों का प्यार
मुबारक हो आपको, होली का त्योहार!
भुवनेश
गुरुदेव को चैन नहीं पड़ा और उन्होंने पूछा -क्या बेटा कोई हमारा संदेश आया है क्या जिसमें मुझे उड़नतश्तरी की वर्षगांठपर बधाई दी गयी है? मैंने लोगों तुम्हारा भी नम्बर दिया था कि शरमाने वाले यहां भी अपने संदेश भेज सकते हैं। ऐसा मैंने इसलिये भी किया था कि कभी-कभी लाइन व्यस्त हो जाती है। या मे्री नयी पोस्ट से उत्साहित होकर लोगों ने तुमको यह कहने के लिये संदेश भेजा है – अपने गुरु की तरह ऐसा लिखना सीखो।
गिरिराज झल्लाते हुये बोले- नहीं गुरुदेव ये किसी भुवनेश ढाबे वाले का विज्ञापन है जो खुले में लगता है। इस लिये सूरज और चांद दोनों हैं पैकेज में। इसका मतलब कोई लाइन होटल है। लाइन होटल आम तौर पर राजमार्ग में होते हैं। ट्रक वाले अक्सर वहीं खाना खाते हैं। यह होटल होली के दिन खुला है इसीलिये शायद प्रचार कर रहा है।
गुरुदेव ने पूछा- देखो कौन है ढाबे वाला! अगर कहीं आसपास हो तो चला जाये। पहले दिन सुना है फ्री में खिलाते हैं ।
गिरिराज बोले- अरे गुरुदेव, ये भुवनेश हैं जिसने मेसेज भेजा है। वो तो वकालत पढ़ रहा है। वो काहे के लिये ढाबा खोलेगा! लेकिन गुरुदेव ये बताओ कि एस.एम.एस.(SMS) का मतलब क्या होता है?
गुरुदेव बोले- एस.एम.एस. बोले तो शार्ट मेसेज सर्विस। छोटी संदेश सेवा।
गिरिराज जिज्ञासित हुये- गुरुदेव इसका हिंदी में कुछ बतायें जैसे एस.एम.एस है।
गुरुदेव बोले- बेटा, हिंदी में तो बढ़िया और बेहतर बनेगा। SMS मतलब- सुनो मियां सुनो या सुनो मोहतरमा सुनो। या सुनो मालिक सुनो या कोई बनारसी कह सकता हैं सुन मर्दे सुन!
गिरिराज ने पहले तो भावातिरेक में उत्साहित होकर गुरुदेव का चेहरा चूमने के लिये मुंह ऊपर उठाया लेकिन लोग क्या कहेंगे और रंग लगा है सोचकर गुरुदेव के चरण स्पर्श कर लिये। देवताऒं ने इस भाव-भीने गुरु चेला मिलन पर रंग वर्षा की। स्वामी जी अपना सिंथेसईज़र लेते आये और बजाने का प्रयास करने लगे। रत्नाजी अपनीरसोई में नये पकवान बनाने चलीं गयीं। बेजी ने सारा को इस आदर्श गुरुभक्ति के लिये पत्र लिखना शुरु कर दिया। मानोसी अपने अनूपदा से अमेरिका फोन करके पूछने लगीं -आपके कोई ऐसा चेला क्यों नहीं है? अनूपदा ने कहा -मानोसी अभी बाद में बतायेंगे। आजकल मैं जरा बिजी हूं। मेरे यहां सोमदादा, कुंवर बेचैन जी आये हुये हैं। मैं उनकी आवभगत में बेचैन हूं। मानोसी ने भुनभुनाते हुये फोन पटक दिया और फिर दुबारा जीतू को हड़काते हुये फोन करके कहने लगीं- ये नारद में ऐसा इन्तजाम किया जाये कि जैसे ही मैं इधर कुछ सोचूं वैसे ही वह उधर प्रकाशित हो जाये।
जीतू ने एक आदर्श सेवा प्रदाता की तरह अभी देखता हूं कहकर फोन रख दिया और वे तमाम ग्रीटिंगों का जवाब देने के लिये कट-पेस्ट तकनीक के प्रयोग में जुट गये।
उधर से राकेश खंडेलवालजी का मेल आता दिखा। उसमें उनकी नयी कविता का लिंक था और नीचे लिखा था-
चलते चलते थक गया हुए आबले पांव
आखिर कितनी दूर है प्रीतम तेरा गांव
समीरजी बोले-अरे राकेश भाई, काहे पैदल मार्च करते हैं। थके हुये हैं तो कुछ देर सुस्ता लीजिये। और दूरी-वूरी देखनी है तो गूगल-अर्थ देखिये। ऐसे किससे-किससे पूछेंगे। ई भारत तो है नहीं जहां हर गली नुक्कड़ पर रास्ता बताने वाले फुरसतिये बैठे हैं।
मार्च की बात सुनते ही चेला गिरिराज बोला-गुरुदेव ये बताओ कि ये मसिजीवी जी ट्रेन के पटरी के बगल काहे चल रहे हैं।
समीरलाल ने अपने सर के बचे हुये बालों को सहलाते हुए कहा- यह समझना बड़ा मुश्किल है। वैसे एक तात्कालिक कारण तो यह है कि यह इनके ट्रैक बदलने से संबधित है। ये इंजीनियरिंग से साहित्य की दुनिया में आये। यह टैक बदलना हुआ। इसीलिये दॊ ट्रैक के पास खडे़ हो गये कि देखो हमने ट्रैक बदला। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि ये धमकी है कि अगर हमें सीरियसली न लिया गया तो देख लो यह ट्रैक बगल में है। पीछे गाड़ी आ रही है। ऐसा ही कुछ समझ में आता है। वैसे तुम जीतू से पूछो शायद कुछ बता पायें।
गिरिराज ने फोनो फ्रेंड की तरह कहा- कंप्यूटरजी जीतू जी को फोन लगाया जाये। फोन लगते ही जीतू की आवाज आ रही थी-
नारद में दम है क्योंकि संचालक यहां हम हैं।
बगल के कमरे से अमित की आवाज भी गूंज रही थी- परिचर्चा एक बम है, क्योंकि मंदक यहां हम हैं।
उधर तमाम हिंदी ब्लागरों की सम्मिलित आवाजे आ रहीं थीं- हिंदी ब्लागिंग में दम है, लेकिन ब्लागर यहां कम हैं।
इस दम, बम, कम, हम से उबरते हुये गिरिराज ने पूछा- जीतू जी क्या आप मेरी आवाज सुन पा रहे हैं?
जीतेंन्द्र ने भनभनाते हुये कहा- अरे गिरिराज मैंने तुमको कितनी बार समझाया कि कविता हमारे पल्ले नहीं पड़ती। तुम फिर हमसे टिप्पणी के लिये काहे कहते हो? हमसे जिद मत करो। हम समझ पाते नहीं कविता-वविता। और बिना समझे हम केवल महिला ब्लागरों की कविताऒं की तारीफ़ करते हैं या फिर नये लोगों। तुम न महिला हो न नये इसलिये भैये हमसे ये पाप न करवाऒ। माना कि तेरी कविता में दम है/ लेकिन समझ यहां कम है।
गिरिराज मुस्कराते हुये बोले- ऐसे नहीं है जीतू भाई , हम आपसे तारीफ़ करने के लिये थोड़ी ही कह रहे हैं। हम तो यह जानना चाहते हैं कि मसिजीवी जी ट्रैक के किनारे-किनारे क्यों चल रहे हैं।
जीतू कुछ जवाब दें इसके पहले ही समीरलाल जी ने सवाल उठाया जीतू से- जीतू भाई, ये ठेलुहा, रोजनामचा, नौ-दो,ग्यारह वगैरह में लिखा-पढ़ी होती थी सब खतम हो गयी क्या?
जीतू बोले-और क्या? सबको पुरातात्विक सामग्री बनने का शौक है। सो बन रहे हैं। पुरातात्विक सामनों का वैसे भी दाम अच्छा मिलता है। लेकिन बताओ समीरभाई, ये बेंगाणी बन्धु कहां गये हैं? दिख नहीं रहे हैं।
समीरलाल उवाच- हम भी खोज रहे हैं उनको। हमारे ब्लाग-पोस्ट पर उनकी टिप्पणी अभी तक नहीं आयी। लेकिन मुझे लगता है वे गिनीज आप वर्ल्ड रिकार्ड में यह दर्ज कराने गये हैं कि एक परिवार के सबसे ज्यादा ब्लागिंग करने वाले लोग बेंगाणी परिवार से हैं। एक बार जब यह रिकार्ड बन जायेगा तब अपनी पत्नियों से भी अनुरोध करके ब्लाग लिखवाना शुरू कर देंगे। एक नया रिकार्ड बनेगा।
इस बीच तमाम सवाल उछलने लगे।
नीलिमा का मन लिंकित क्यों है?
सृजन शिल्पी का मन चिंतित क्यों है?
आशीष अभी तक कुंवारा क्यों हैं?
गिरिराज अपने गुरु का इतना प्यारा क्यॊ है?
इसी तरह के तमाम सवाल उछलने लगे हवा में। हम इन सबके जवाब देंगे लेकिन एक ब्रेक के बाद। आप को भी कुछ पूछना हो तो पूछ लें। हम सब बतायेंगे। आप संकोच का त्याग करें। त्यागी व्यक्ति सदैव महान कहलाता है।
अच्छा तो फिर मिलते हैं ब्रेक के बाद। अपना सवाल पूछना न भूलें।
मेरी पसंद
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिये-अंसार कम्बरी
शर्त यह है कि तुम कुछ कहो तो सही।
चाहे मधुवन में पतझार लाना पड़े
चाहे मरुस्थल में शबनम उगाना पड़े
मैं भगीरथ सा आगे चलूंगा मगर
तुम पतित पावनी सी बहो तो सही।
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिये
शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही।
पढ़ सको तो मेरे मन की भाषा पढो़
मौन रहने से अच्छा है झुंझला पढ़ो
मैं भी दशरथ सा वरदान दूंगा मगर
युद्ध में कैकेयी से रहो तो सही।
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिये
शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही।
हाथ देना न सन्यास के हाथ में
कुछ दिन तो रहो उम्र के साथ में
एक भी लांछ्न सिद्ध होगा नहीं
अग्नि में जानकी सी दहो तो सही।
क्या नहीं कर सकूंगा तुम्हारे लिये
शर्त ये है कि तुम कुछ कहो तो सही।
Posted in बस यूं ही | 16 Responses
राजीव जी के साथ कविता सुनने गये थे
सोचा था वहाँ कोई कवियत्री मिलेगी
होली के दिन अपनी तबियत खिलेगी
न मिली कवियत्री, न मिली कविता
होली का ये दिन, बगैर रंग के ही बिता
होली है
वैसे मसीजिवी ट्रैन किनारे क्यों चल रहे हैं
बहुत खूब कवरेज किया गया, आभार!! अगर होली पर भी हम नहीं खदेडे गये तो कब मौका लगेगा फिर?
आपने अपना काम बखूबी अंजाम दिया, बहुत साधुवाद!! हा हा!!
होली मुबारक, हमे भी झेलो उड़न तश्तरी पर-होरियाये टुन्नू भेंटे चिठ्ठा चिठ्ठा… http://udantashtari.blogspot.com/2007/03/blog-post_05.html पर
दो दिन होली का आनन्द लेने में व्यस्त थे. ओफिस से गूम होने का अच्छा बहाना भी था. बस इसीलिए आपको दिखे नहीं
होली है..
रंग-गणितीय पोस्ट…। मजा आ गया और आखिरी कविता तो
बहुत सुंदर लगी…समीर भाई कल आपके टुन्नू ने भी कइयों को
लपेटा था अब लो फुरसतिया जी ने फुरसत निकाला और गढ़ दी
गीता…।
अच्छा तो हम सिर्फ़ महिला ब्लॉगरों की कविताओं और नए ब्लॉगरों पर कमेन्ट करते है।
(एक राज की बात बता दें, हमे कविता पल्ले तो नही पढती है, लेकिन नाम बदल कर कविता करने मे मजा बहुत आता है। हीही…..बुरा ना मानो होली है)
चोर की दाढी में तिनका….. हे हे बुरा ना मालो होली है
मसिजीवी का धन्यवाद जो सेलीब्रिटी बन जाने के बाद भी उन्होंने ट्रैक के किनारे होने का स्पष्टीकरण दे दिया।
Holi ki aapko aur saare sathiyon ko shubhkamnayein.
देर से इस होली पुराण को बांचने पर भी पूरा मजा आया।
वाह वाह क्या खूब कहा है।
पूरी कविता लिख भेजने के लिये धन्यवाद !
सादर
रिपुदमन पचौरी
Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..मुझे/तुम्हें वहीं ठहर जाना था