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बाल गिरते क्यों हैं?
By फ़ुरसतिया on February 6, 2007
कल समीरलाल जी की बाल आरती पढ़ी!
समीरलाल जी गिरते बालों की महिमा बखान रहे हैं:-
अगर प्रार्थना करने से गिरने वाला ठहरने लगे, पतनशील का उत्थान होने लगे तो कहने ही क्या?
कल्पना करिये ऐसा होने लगता है कि जो झड़ रहा है, गिर रहा है, पतित हो रहा है वह अगर ‘मनौना‘ करने से ठहरने लगे तब क्या होगा!
जहां-जहां गिरवाट हो रही है वहां-वहां इस तरह की आरती गायी जाने लगेगी। शिक्षा का स्तर गिर रहा है, सारे अध्यापाकों को बाहर करके वहां आरती का टेप बजा दो-
नैतिकता की चिरौरी करके आदमी गिरते हुये नैतिक स्तर को टुकुर-टुकुर ताकता रहेगा- गिर लेव कुछ दिन और! अभी जहां प्रार्थना पर कारर्वाई हुयी सीधे आसमान में टांग दी जायेगी नैतिकता। आम आदमी उसे छू तक नहीं पायेगा इतना ऊंचा स्तर हो जायेगा नैतिकता का।
देश के सारे रक्षा उत्पादन के काम में लगे कारखाने बंद कर दिये जायेंगे, फौज के जवान वापस बुला लिये जायेंगे, सेनायें बैरकों में बिनाका गीतमाला सुनने पहुंच जायेगी। कारण अब देश की सुरक्षा आरतियों से की जायेगी। उधर जहां किसी देश की फौज ने हमारे देश पर हमला करने के लिये इधर कूच किया वहीं हम उसके ऊपर प्रार्थनाऒं की झड़ी लगा देंगे। उनकी महिमा गाकर उनका आक्रमण का इरादा चौपट कर देंगे। ह्रदय परिवर्तन हो जायेगा उनका और वे अपनी तोपें, हथियार रिसाइकिल बिन में डालकर वापस चले जायेंगे।
तमाम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से मुकाबला करने के लिये जुगत-पसीना बहाने की कोई दरकार नहीं रहेगी। जहां किसी विदेशी कम्पनी से कोई देशी कम्पनी पिटी वो
दौड़ के जायेगा किसी कवि के पास और फटाक से लिखवा लायेगा एक ठो आरती और लगा के लाउडस्पीकार विदेशी कम्पनी के गेट पर बजा देगा:-
भारत जो हार जाता है ऐन टाइम पर क्रिकेट में उसकी समस्या भी हल हो जायेगी। बालर इधर से गेंद फेंकेगा उधर पीछे से विकेट कीपर बैट्समैन के लिये आरती बुदबुदा देगा:-
ब्लाग में चोरी से हलकान ब्लागर लिखेगा:-
अपने ब्लाग की चोरी कराने का उत्सुक ब्लागर शायद हायकू लिखेगा-
हां, तो हम बात कर रहे थे-बाल गिरते क्यों हैं?
तो भाई ,सबसे पहली बात तो बाल इसलिये गिरते हैं कि वे चढ़ते हैं। जो चढ़ेगा ऊपर वो नीचे भी उतरेगा। और अगर कायदे से नहीं उतरेगा तो गिरेगा भी। और ज्यादा हालात खराब हुये तो झड़ेगा भी।
गिरने और झड़ने में अन्तर होता है। गिरना तो ये हुआ कि आप कायदे से नहीं उतरे तो कहीं इधर-उधर टकराकर नीचे आ गये पके आम की तरह। लेकिन झड़ने का मतलब अब टिकने का माद्दा समाप्त। अब बूता ही नहीं है कि टिक सकें। जैसे जब क्रिकेट में खिलाड़ी एक-एक करके आउट होते हैं तो विकेट गिरते हैं और जब एक साथ आउट होते हैं तो विकेटों की झड़ी लग जाती है। जब एकाध विधायक पार्टी बदलता है तो ह्रदय परिवर्तन होता है। लेकिन जब ढेर सारे विधायक झड़ते हैं तो सत्ता परिवर्तन होता है। ये झड़े हुये विधायक टोकरी में रखी सब्जी की तरह होते हैं जो कीमत दे ले जाये। जैसे मन आये वैसे हिलाये-डुलाये-पकाये-खाये।
आदमी को सबसे ज्यादा चिंता सर से गिरते बालों की होती। सर के बालों की मानव के शरीर में सबसे ऊंची सतह पर होते हैं। जब वे गिरते हैं तो ऊर्जा रूपान्तरण होता है। बालों की स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में बदलती है। यह ऊर्जा-रूपान्तरण एक बार शुरू हुआ तो फिर रुकता नहीं। एक बार जब सर से बाल गिरना शुरू होने पर रोके नहीं रुकते। और उनकी अर्चना करके रोकना तो और भी मुश्किल होता है। बाल तभी झड़ते हैं जब कमजोर होते हैं और कमजोर होकर झड़ते हुये को प्रार्थना करने नहीं रोका जा सकता।
बाल आजकल जल्दी क्यों झड़ जाते हैं। देखते सर के बालों का ‘झउआ’(गुच्छा) किसी ‘(ढौवे) कनकौवे‘ सा लुट जाता है। दूर-दूर तक फैला ‘केश-साम्राज्य’ समाजवाद के गढ़ ‘रूस’ सा ढह जाता है। जहां उंगलियां तक बड़ी मुश्किल से घुसती थीं वहां अब हवा तक हाईवे पर गाड़ियों सी सरसराती हुई, इठलाते हुये फैशन परेड करती हैं।
लोग कहते हैं यह सब तेल-फुलेल,शैम्पू-वैम्पू,डाई-वाई की साजिश है। तेल तो सदियों से लगता आया है। लोग लगाते रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है बालों के साथ समस्या यह हुई कि वे बेचारे बार-बार उजड़े,कटे । नित नयी-नयी स्टाइल में सजाये जाने से ऊब जाते हैं।थक जाते हैं। आज ये सामान कल वो आइटम इससे उनके मनोबल पर विपरीत असर पड़ता होगा। आज एक कंपनी का शैम्पू लगा रहे हैं, कल विरोधी कंपनी की उत्पाद इससे उन पर तनाव बढ़ता होगा। किसी बाल एक कंपनी की बची हुई डाई दूसरी कंपनी की डाई के आते ही उलझ पड़ती होगी। बाल एक दूसरे से टकराते होंगे। और इसी टकराहट में कमजोर हो जाते होंगें। और जो एक बार कमजोर हुआ उसे गिरने-झड़ने से कौन रोक सकता है!
ये ‘नैनो टेक्नालाजी’ का जमाना है। खोज करने पर कारण भी शायद पता चले कि बाल क्यों गिरते हैं। ऐसा कैसे होता है कि आदमी कायदे से बुढ़ा भी नहीं पाता और बाल कहते हैं- खुश रहना देश के यारों, अब हम तो सफर करते हैं।
कारण शायद यह भी हो कि बाल खोपड़ी के ऊपर होते हैं। नीचे दिमाग की गर्मी और खुदुर-फुदुर उसे परेशान करती रहती हो। विपरीत विचारों की रगड़-घसड़ से उत्पन्न तनाव उत्पन्न से बालों का ब्लड-प्रेशर इतना बढ़ जाता होगा कि उनका हार्ट फेल हो जाता हो। या फिर यह भी कि शायद दिमाग का कोई अंग उनसे कहता होगा कि इतना पैसा तुम पर खर्चा हो गया और अब तुम इसे चुकाऒगे कैसे! और वे बेचारे कर्ज की नदी में आकंठ डूबे चुपचाप विदर्भ के किसानों की तरह सामूहिक आत्महत्या कर लेते होंगे। अपने ऊपर चढ़ती हुई हर डाई उन्हें अपने ऊपर कर्जे के फंदे सी लगती होगी और वे धुलती हुई डाई के साथ ही सामूहिक जल समाधि ले लेते होंगे। जिसने जीवन की आशा त्याग दी , लड़ने से मुंह चुराया वह किसी की चिरौरी पर कैसे अपना इरादा बदल देगा!
बाल पहले उमर का बैरोमीटर हुआ करते थे। जिसके सिर पर जितनी सफ़ेदी वह उतना बुजुर्ग। अब बालों के हाथ से यह काम छिन गया है। वे बेरोजगार हो गये। वे केवल शोभा की वस्तु हो गये। अब हर आदमी अपने को दूसरे से कम उमर का साबित करने में पगलाया घूम रहा है।
बालों की गिरने की समस्या इसलिये है कि अब बालों को कोई पूछता नहीं। बालों की कोई पहचान नहीं। बालों की औकात उसकी चमक से नहीं सर पर लगी डाई से और शैम्पू से तय होती है। जितना मंहगा शैम्पू उतने अच्छे बाल! जिन्दगी भर इधर-उधर, इस-उस तरह से रहते-रहते बाल तो बाल क्या आदमी तक झड़ जाता है।
इसलिये अगर बालों को गिरने से रोकना है तो उनकी आरती मत उतारिये। आरती पत्थरों और मूर्तियों की उतारी जाती है। पत्थर और मूर्तियां बेजान होती हैं। जबकि बाल आपके साथ सांस लेते हैं। आपके साथ स्पंदित होते हैं। बालों को गिरने से बचाने के लिये आप उन्हें अपना अपनापन दीजिये। उन्हें प्यार से सहेजिये। सहलाइये। दुलराइये। पुचकारिये।
इसके बाद भी अगर बाल आपके सर से समर्थन वापस लेते हैं तो आप परेशान न हों। शुक्र मनायें कि आपका सर तो सलामत हैं। जब तक आपके पास आपका सर बचा हुआ है तब तक उस पर बालों के बने रहने की सम्भावनायें भी हुई हैं। जैसे सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है वैसे ही हर गंजे के सर पर भी बालों की खेती की संभावनायें बनी रहती हैं! उम्मीद पर दुनिया कायम है!
मेरी पसंद
समीरलाल जी गिरते बालों की महिमा बखान रहे हैं:-
हे प्रभु, हे बाल मेरे,
अपना गिरना रोकिये
इस तरह न बीच
भव सागर में
हमको झोंकिये.
जिसमें खुद ठहरने का बूता नहीं वह प्रार्थना से कैसे रुकेगा? जो उखड़ रहा है वह प्रार्थना की ‘लेई’ से और अर्चना के ‘फ़ेवीकोल‘ से कैसे जमेगा?
समीरलाल जी को प्रार्थना की शक्ति पर बड़ा भरोसा है। वे गिरते हुये से प्रार्थना कर रहे हैं- आप मत गिरें। अरे भाई जिसमें खुद ठहरने का बूता नहीं वह प्रार्थना से कैसे रुकेगा? जो उखड़ रहा है वह प्रार्थना की ‘लेई’ से और अर्चना के ‘ फ़ेवीकोल ‘ से कैसे जमेगा?अगर प्रार्थना करने से गिरने वाला ठहरने लगे, पतनशील का उत्थान होने लगे तो कहने ही क्या?
कल्पना करिये ऐसा होने लगता है कि जो झड़ रहा है, गिर रहा है, पतित हो रहा है वह अगर ‘मनौना‘ करने से ठहरने लगे तब क्या होगा!
जहां-जहां गिरवाट हो रही है वहां-वहां इस तरह की आरती गायी जाने लगेगी। शिक्षा का स्तर गिर रहा है, सारे अध्यापाकों को बाहर करके वहां आरती का टेप बजा दो-
हे प्रभो आनन्ददातालोग पूछेंगे शिक्षा का स्तर अभी तक उठा क्यों नहीं दिन-पर-दिन गिर क्यों रहा है। जवाब आयेगा- साहब,प्रार्थना तो कर रहे हैं पता नहीं काहे अभी तक कुछ कार्यवाही नहीं हुयी। लगता है प्रभु भी आनन्द मगन हैं बसन्त के मौसम में!
ज्ञान हमको दीजिये
शीघ्र सारे दुर्गुणों को
दूर हमसे कीजिये।
नैतिकता की चिरौरी करके आदमी गिरते हुये नैतिक स्तर को टुकुर-टुकुर ताकता रहेगा- गिर लेव कुछ दिन और! अभी जहां प्रार्थना पर कारर्वाई हुयी सीधे आसमान में टांग दी जायेगी नैतिकता। आम आदमी उसे छू तक नहीं पायेगा इतना ऊंचा स्तर हो जायेगा नैतिकता का।
देश के सारे रक्षा उत्पादन के काम में लगे कारखाने बंद कर दिये जायेंगे, फौज के जवान वापस बुला लिये जायेंगे, सेनायें बैरकों में बिनाका गीतमाला सुनने पहुंच जायेगी। कारण अब देश की सुरक्षा आरतियों से की जायेगी। उधर जहां किसी देश की फौज ने हमारे देश पर हमला करने के लिये इधर कूच किया वहीं हम उसके ऊपर प्रार्थनाऒं की झड़ी लगा देंगे। उनकी महिमा गाकर उनका आक्रमण का इरादा चौपट कर देंगे। ह्रदय परिवर्तन हो जायेगा उनका और वे अपनी तोपें, हथियार रिसाइकिल बिन में डालकर वापस चले जायेंगे।
तमाम बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से मुकाबला करने के लिये जुगत-पसीना बहाने की कोई दरकार नहीं रहेगी। जहां किसी विदेशी कम्पनी से कोई देशी कम्पनी पिटी वो
दौड़ के जायेगा किसी कवि के पास और फटाक से लिखवा लायेगा एक ठो आरती और लगा के लाउडस्पीकार विदेशी कम्पनी के गेट पर बजा देगा:-
हे मेरे प्रतिद्वंदी भाई
अब तो यहां से फूटिये
जो लूटना था लूट चुके
अब और तो न लूटिये!
जब आप जायेंगे यहां से
तब मेरी लुटिया बचेगी
अन्यथा मर जायेंगे हम
जीते-जी चुटिया कटेगी।
जितने
आतंकवादी हैं उनके कान में एक बार जहां उनकी आरती का कैसेट बजा नहीं कि वे
भागते हुये आयेंगे और देश की मुख्यधारा में छ्पाक से कूदकर तैरने लगेंगे।
जितने आतंकवादी हैं उनके कान में एक बार जहां उनकी आरती का कैसेट बजा
नहीं कि वे भागते हुये आयेंगे और देश की मुख्यधारा में छ्पाक से कूदकर
तैरने लगेंगे। कारगिल में हजारों जवान कुर्बान हो गये। तमाम पैसे बरबाद हो
गये। लड़ाई-झगड़े, गोलाबारी का विकल्प त्याग कर अगर हम पाकिस्तानी सैनिकों को
चोटी के नीचे से ही ‘प्रस्थान आरती’ सुना देते तो वे वापस अपने देश चले जाते चुपचाप! भारत जो हार जाता है ऐन टाइम पर क्रिकेट में उसकी समस्या भी हल हो जायेगी। बालर इधर से गेंद फेंकेगा उधर पीछे से विकेट कीपर बैट्समैन के लिये आरती बुदबुदा देगा:-
हे मेरे बैटिंग बहादुरबल्लेबाज गेंद के विकेट तक पहुंचते ही पवेलियन की तरफ़ चल देगा।
अब तो पवेलियन जाइये
पद्दी करा ली है बहुत अब
कुछ आराम भी फर्माइये!
ब्लाग में चोरी से हलकान ब्लागर लिखेगा:-
हे चोर देवता नमस्कारइतना पढ़ते ही चोर अपनी चोरी की आदत को छोड़ कर अपने सारे मौसेरे भाइयों के साथ रोज आपके ब्लाग पर फर्शी सलाम करा करेगा-वाह, क्या लिखते हैं आप। मजा आ गया!
लिखने-पढ़ने से नहीं किंतु
चोरी से तुमने किया प्यार!
तुम भी अच्छा लिख लेते यदि
थोड़ी से मेहनत कर लेते
खुद भी अच्छा लगता तुमको
हम भी वाह-वाह कर देते।
कहने से मानोंगे नहीं किंतु
तुम इसको भी ले जाओगे
लेकिन यह भैया समझि लेव
फिर बाद बहुत पछताओगे।
ब्लाग तुम्हारा ‘ब्लाक’ बनेगा
फिर बदनामी भी तुम झेलेगो
ये उचक-फुचकन सब भूलोगे
और नौ-नौ अंसुअन रोओगे।
इस लिये तुम्हें समझाते हैं
ये चोरी अच्छी बात नहीं
आओ रोज यहीं पढ़ने
इससे अच्छी सौगात नहीं।
अपने ब्लाग की चोरी कराने का उत्सुक ब्लागर शायद हायकू लिखेगा-
ये ब्लाग मेरा
तेरी बाट जोहता
चोरी करो न! कुछ भी कहें
ये मेरे सारे साथी
तुम डरो न!
अब आ आओ
हमें तुम चुराऒ
जल्दी करो न!
यह
अपने देश का राष्ट्रीय चरित्र है। गली की गंदगी को कोसते हुये हम सारी
दुनिया के देशों में सफाई की महिमा का बखान करते हुये वापस घर में घुस जाते
हैं।
ओह-हो! हम कहां से कहां आ गये! बाल हो रही थी बालों की और हम पहुंच गये
चोरों के यहां। वैसे यह अपने देश का राष्ट्रीय चरित्र है। गली की गंदगी को
कोसते हुये हम सारी दुनिया के देशों में सफाई की महिमा का बखान करते हुये
वापस घर में घुस जाते हैं। वैसे ही हम बालों के गिरने की बात शुरु करके न
जाने क्या-क्या लिख गये।हां, तो हम बात कर रहे थे-बाल गिरते क्यों हैं?
तो भाई ,सबसे पहली बात तो बाल इसलिये गिरते हैं कि वे चढ़ते हैं। जो चढ़ेगा ऊपर वो नीचे भी उतरेगा। और अगर कायदे से नहीं उतरेगा तो गिरेगा भी। और ज्यादा हालात खराब हुये तो झड़ेगा भी।
गिरने और झड़ने में अन्तर होता है। गिरना तो ये हुआ कि आप कायदे से नहीं उतरे तो कहीं इधर-उधर टकराकर नीचे आ गये पके आम की तरह। लेकिन झड़ने का मतलब अब टिकने का माद्दा समाप्त। अब बूता ही नहीं है कि टिक सकें। जैसे जब क्रिकेट में खिलाड़ी एक-एक करके आउट होते हैं तो विकेट गिरते हैं और जब एक साथ आउट होते हैं तो विकेटों की झड़ी लग जाती है। जब एकाध विधायक पार्टी बदलता है तो ह्रदय परिवर्तन होता है। लेकिन जब ढेर सारे विधायक झड़ते हैं तो सत्ता परिवर्तन होता है। ये झड़े हुये विधायक टोकरी में रखी सब्जी की तरह होते हैं जो कीमत दे ले जाये। जैसे मन आये वैसे हिलाये-डुलाये-पकाये-खाये।
आदमी को सबसे ज्यादा चिंता सर से गिरते बालों की होती। सर के बालों की मानव के शरीर में सबसे ऊंची सतह पर होते हैं। जब वे गिरते हैं तो ऊर्जा रूपान्तरण होता है। बालों की स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में बदलती है। यह ऊर्जा-रूपान्तरण एक बार शुरू हुआ तो फिर रुकता नहीं। एक बार जब सर से बाल गिरना शुरू होने पर रोके नहीं रुकते। और उनकी अर्चना करके रोकना तो और भी मुश्किल होता है। बाल तभी झड़ते हैं जब कमजोर होते हैं और कमजोर होकर झड़ते हुये को प्रार्थना करने नहीं रोका जा सकता।
बाल तभी झड़ते हैं जब कमजोर होते हैं और कमजोर होकर झड़ते हुये को प्रार्थना करने नहीं रोका जा सकता।
जैसे मुंह चुराकर घर से भागते किसी को पीछे से रुक जाओ मत जाऒ कहने से
कोई फरक नहीं पड़ता। भागते हुये को रोकने के लिये उससे तेज भागकर उसका
रास्ता रोकना पड़ता है। अर्चना की आवाजें तो उसे और तेज भागने को उकसाती
हैं।बाल आजकल जल्दी क्यों झड़ जाते हैं। देखते सर के बालों का ‘झउआ’(गुच्छा) किसी ‘(ढौवे) कनकौवे‘ सा लुट जाता है। दूर-दूर तक फैला ‘केश-साम्राज्य’ समाजवाद के गढ़ ‘रूस’ सा ढह जाता है। जहां उंगलियां तक बड़ी मुश्किल से घुसती थीं वहां अब हवा तक हाईवे पर गाड़ियों सी सरसराती हुई, इठलाते हुये फैशन परेड करती हैं।
लोग कहते हैं यह सब तेल-फुलेल,शैम्पू-वैम्पू,डाई-वाई की साजिश है। तेल तो सदियों से लगता आया है। लोग लगाते रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है बालों के साथ समस्या यह हुई कि वे बेचारे बार-बार उजड़े,कटे । नित नयी-नयी स्टाइल में सजाये जाने से ऊब जाते हैं।थक जाते हैं। आज ये सामान कल वो आइटम इससे उनके मनोबल पर विपरीत असर पड़ता होगा। आज एक कंपनी का शैम्पू लगा रहे हैं, कल विरोधी कंपनी की उत्पाद इससे उन पर तनाव बढ़ता होगा। किसी बाल एक कंपनी की बची हुई डाई दूसरी कंपनी की डाई के आते ही उलझ पड़ती होगी। बाल एक दूसरे से टकराते होंगे। और इसी टकराहट में कमजोर हो जाते होंगें। और जो एक बार कमजोर हुआ उसे गिरने-झड़ने से कौन रोक सकता है!
जिसने जीवन की आशा त्याग दी , लड़ने से मुंह चुराया वह किसी की चिरौरी पर कैसे अपना इरादा बदल देगा!
इन सारे उत्पादों के विज्ञापन देखिये। ये एक-एक बाल को अलग-अलग दिखाते
हैं। गोया हर बाल दूसरे से जुदा है। हम इस अलगाव पर फिदा हो जाते हैं। और
इसी फिदा-फिदायी में पता ही नहीं चलता कि कितन बाल सर के किस कोने से
कैसे-कब जुदा हो गये। पहले लगता है सब कुछ चार्ल्स डार्विन के हिसाब से हो
रहा है -वही बचेगा जो मजबूत होगा (सर्वाइवल आफ द फिटेस्ट)। लेकिन धीरे-धीरे
पता चलता है कि कोई नहीं बचा। सब अकेले-अकेले चले गये। पहले बालों की चोटी
बांधने की परम्परा थी। बाल एक साथ रहते थे। संगठित रहते थे। संगठन में
शक्ति होती है न! बचे रहते थे। अब हर बालों की अलग दुनिया है। हर बाल दूसरे
बाल से जुदा है। अकेला है। अगल का बाल चला जाता है, बगल वाले पता नहीं
चलता।ये ‘नैनो टेक्नालाजी’ का जमाना है। खोज करने पर कारण भी शायद पता चले कि बाल क्यों गिरते हैं। ऐसा कैसे होता है कि आदमी कायदे से बुढ़ा भी नहीं पाता और बाल कहते हैं- खुश रहना देश के यारों, अब हम तो सफर करते हैं।
कारण शायद यह भी हो कि बाल खोपड़ी के ऊपर होते हैं। नीचे दिमाग की गर्मी और खुदुर-फुदुर उसे परेशान करती रहती हो। विपरीत विचारों की रगड़-घसड़ से उत्पन्न तनाव उत्पन्न से बालों का ब्लड-प्रेशर इतना बढ़ जाता होगा कि उनका हार्ट फेल हो जाता हो। या फिर यह भी कि शायद दिमाग का कोई अंग उनसे कहता होगा कि इतना पैसा तुम पर खर्चा हो गया और अब तुम इसे चुकाऒगे कैसे! और वे बेचारे कर्ज की नदी में आकंठ डूबे चुपचाप विदर्भ के किसानों की तरह सामूहिक आत्महत्या कर लेते होंगे। अपने ऊपर चढ़ती हुई हर डाई उन्हें अपने ऊपर कर्जे के फंदे सी लगती होगी और वे धुलती हुई डाई के साथ ही सामूहिक जल समाधि ले लेते होंगे। जिसने जीवन की आशा त्याग दी , लड़ने से मुंह चुराया वह किसी की चिरौरी पर कैसे अपना इरादा बदल देगा!
बाल पहले उमर का बैरोमीटर हुआ करते थे। जिसके सिर पर जितनी सफ़ेदी वह उतना बुजुर्ग। अब बालों के हाथ से यह काम छिन गया है। वे बेरोजगार हो गये। वे केवल शोभा की वस्तु हो गये। अब हर आदमी अपने को दूसरे से कम उमर का साबित करने में पगलाया घूम रहा है।
बाल
पहले उमर का बैरोमीटर हुआ करते थे। जिसके सिर पर जितनी सफ़ेदी वह उतना
बुजुर्ग। अब बालों के हाथ से यह काम छिन गया है। वे बेरोजगार हो गये। वे
केवल शोभा की वस्तु हो गये।
कुछ महिलायें जितना शोध दूसरी महिलाऒं की सही उमर जानने के लिये करती
हैं उतनी अगर देश के वैज्ञानिक करने लगें तो कई असाध्य बीमारियों का इलाज
पता चल जाये। अब आपको पता ही नहीं चलता कब आपसे ड्योढ़ी उमर का कोई शक्स
आपकी बुजुर्गियत को नमन करके आपका आशीर्वाद झटक कर ले गया। अब उमर का
खुलासा होने पर आशीर्वाद का कोई ‘बुक एडजस्ट मेंट’ तो होता नहीं। वो तो जो गया सो गया।बालों की गिरने की समस्या इसलिये है कि अब बालों को कोई पूछता नहीं। बालों की कोई पहचान नहीं। बालों की औकात उसकी चमक से नहीं सर पर लगी डाई से और शैम्पू से तय होती है। जितना मंहगा शैम्पू उतने अच्छे बाल! जिन्दगी भर इधर-उधर, इस-उस तरह से रहते-रहते बाल तो बाल क्या आदमी तक झड़ जाता है।
इसलिये अगर बालों को गिरने से रोकना है तो उनकी आरती मत उतारिये। आरती पत्थरों और मूर्तियों की उतारी जाती है। पत्थर और मूर्तियां बेजान होती हैं। जबकि बाल आपके साथ सांस लेते हैं। आपके साथ स्पंदित होते हैं। बालों को गिरने से बचाने के लिये आप उन्हें अपना अपनापन दीजिये। उन्हें प्यार से सहेजिये। सहलाइये। दुलराइये। पुचकारिये।
इसके बाद भी अगर बाल आपके सर से समर्थन वापस लेते हैं तो आप परेशान न हों। शुक्र मनायें कि आपका सर तो सलामत हैं। जब तक आपके पास आपका सर बचा हुआ है तब तक उस पर बालों के बने रहने की सम्भावनायें भी हुई हैं। जैसे सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है वैसे ही हर गंजे के सर पर भी बालों की खेती की संभावनायें बनी रहती हैं! उम्मीद पर दुनिया कायम है!
मेरी पसंद
चाह रहा था कुछ गाऊंगाडा.प्रतीक मिश्र, कानपुर
सुधियों ने बेसुध कर डाला। मन्द-मन्द शीतल झोंको ने
कुछ-कुछ वातावरण बनाया,
सुखद याद के चौरे पर, पल
में, अरुणिम गुलाब मुस्काया।
पल में बिजली चमकी नभ पर
पल में कजरारे घन छाये,
पल में सब कुछ सजल हो गया
आंखों में आंसू भर आये।
चाह रहा था लहर लिखूंगा
मौसम मे बुदबुद कर डाला।
चाह रहा था कुछ गाऊंगा
सुधियों ने बेसुध कर डाला।
Posted in बस यूं ही | 14 Responses
हिन्दी चिठ्ठाजगत के दो महारथी इस समस्या पर विचार कर रहे है। मुझे लग रहा है कि अब इस पर अनुगूंज का आयोजन किया जा सकता है जिसका विषय होगा “बालो की समस्याये और उसका निवारण”।
मुझे अब तक आश्चर्य है कि हर दिवार पर ‘गुप्त रोगो’ या ‘बवासीर का शर्तिया इलाज’ करने वाले धन्वंतरि के अवतारों का इस समस्या पर ध्यान क्यों नही गया ? विदेशी षडयंत्र के कारण इन महान वैद्यों का प्रतिभा पलायन तो नही हो गया ? हो सकता है कि बाबा आमदेव जिस तरह विदेशों मे योग का प्रसार कर रहे हैं, दूसरे स्वामी जिस तरह विदेशो मे धर्म प्रसार कर रहे है उस तरह ये वैद्य भी विदेशों मे ‘गुप्त रोगों’ या ‘बवासीर का शर्तिया इलाज’ कर रहे हों।
खैर हम भी विषय से भटक गये थे। मूल समस्या थी कि बाल गिरते क्यो है ? अब बाल है तो गिरेंगे भी। गीता मे भगवान कृष्ण ने कहा है कि इस दुनिया मे जो आया है उसे एक दिन जाना है। इसमे इतना दुखी होने की जरूरत नही है।
बालो के गिरने से कुछ लाभ भी है। गंजा इंसान बालो के प्रत्यारोपण के बहाने कोर्ट मे हाजिर होने से बच सकता है जैसा सल्लू भाई ने किया था। गंजा इंसान बेखौफ लड़कियों को घूर सकता है क्योकि लड़कियां उनकी तरफ कोई तवज्जो नहीं देती और बीबी को भी बेवफाई की आशंका नही रहती। आप किसी रेस्तरां में खाने मे गिरे बाल से पता कर सकते है कि खाना बनाने वाला जवान है बुढा !
ये लो बालो पर हम टिप्पणी लिखने बैठे और पूरी पोष्ट लिख मारी ! वैसे मुझे क्या फर्क पढता है, मेरे सीर पर पूरे बाल है वो भी काले।
वो फुरसतियाजी, समीर जी या जितु भाई जैसे बु.. का सरदर्द है
वाह, क्या दूर की कौडी लाएं है!
बाकि तो लगता है अब से समीरलालजी आपको दस बार पुछ कर कुछ लिखेंगे.
उन्होने लिखा नहीं कि इधर से जवाबी तीर चला.
धन्य है आप जो बखुबी बाल की खाल निकाल सकते है.
मगर हर बार वाली बात नहीं थी. शायद अपेक्षाएं बढ़ गई है.
कारण अब देश की सुरक्षा आरतियों से की जायेगी। उधर जहां किसी देश की फौज ने हमारे देश पर हमला करने के लिये इधर कूच किया वहीं हम उसके ऊपर प्रार्थनाऒं की झड़ी लगा देंगे।
हम इन दिनों क्या कर रहे हैं, दुश्मनों के सामने आरती ही तो गा रहे हैं।
दुश्मन देव है कि रीझता ही नहीं समीर लाल जी के बेवफ़ा बालों की तरह।
Second Last पैरा में सब आपकी बताई सलाह मानने लगे तो शैम्पू की कंपनियाँ बन्द हो जायेगी।
मजेदार लेख रहा और हायकी भी।
जिसको देखो वही थाल लेकर पूजा का आरति गाये
लोरेयेल के रेवलोन के, गोदरेज औ” प्राक्टर गेम्बल
इन सबके आशीष, नवा कर मस्तक अपने शीश चढ़ाये
भरी जवानी में बाल साथ छोडकर जा रहे है। अब जा रहे हैं तो जाओ … हमें क्या. हम तो पत्नी को कहते हैं, गंजापन विद्वता की निशानी होता है। देखो जितना गंजा हो रहा हुँ तुम उतनी सोभाग्यशाली होती जा रही हो।
शाहरुख की पिक्चर लगी, पहले दिन अच्छी हिट चली. अगले दिन अमिताभ की रिलिज हो गई, शाहरुख की पिक्चर पिट गई. अब से आपकी रिलिज का टाईम देखकर पोस्ट किया करेंगे.
वैसे हमें लगता है कि आपने हमारी पोस्ट चोरी जाने से बचवाने के लिये यह लिखा है ताकि चोर हमारा घर छोड़ आपके यहाँ नजर गड़ाये और आपकी सुरक्षा व्यवस्था तो सुपर है ही, कैसे चोरी होगी. बहुत साधुवाद.
“बालों को गिरने से बचाने के लिये आप उन्हें अपना अपनापन दीजिये। उन्हें प्यार से सहेजिये। सहलाइये। दुलराइये। पुचकारिये।“
इसे पढ़ते समय मुझे लगा कि मैं पढ़ रहा हूँ आजकल के मार्डन माँ-बाप को दिया गया आख्यान :” बालों (बच्चों) को गिरने (बिगड़ने) से बचाने के लिये आप उन्हें अपना अपनापन दीजिये। उन्हें प्यार से सहेजिये। सहलाइये। दुलराइये। पुचकारिये।“
-हमारे जमाने में तो ऐसा नहीं होता था, सीधे दो थप्पड़ पड़ते थे और तब भी न समझे तो छड़ी से पिटाई. कब तक नहीं सुधरोगे.
रही बात भागकर पकड़ने की तो धर्म ग्रंथों में कहीं लिखा है जिसका सार यह समझ में आता है कि यदि कोई गाली बके तो उसे समझाओ (चिरोरी करो, आरती करो), उस पर भी न मानें, तो उसे मारो और अगर वह तुमसे ताकतवर हो, तो पत्थर मारकर भाग जाओ.
-सो अभी आरती गाये लेते हैं, नहीं संभला तो यज्ञ करवायेंगे, फिर तंत्र मंत्र टोटका और फिर भी नहीं, तो अमरीका का हाथ थाम लेंगे, प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लानटेशन) का रास्ता तो है ही!! हम मंजिल प्राप्ति के लिये अहिंसा से शुरु होकर हिंसा मार्ग अपनाते हुये घोर तांडव तक जाने में विश्वास रखते हैं, अब मंजिल जहाँ भी मिल जाये.
–बहुत बढ़िया, लिखते रहें, पुनः बधाई.
आशावाद की चरम सीमा की सरलतम व्याख्या तो आपके लेख के उपसंहार में निहित है
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जब तक आपके पास आपका सर बचा हुआ है तब तक उस पर बालों के बने रहने की सम्भावनायें भी हुई हैं। जैसे सब कुछ लुट जाने के बाद भी भविष्य बचा रहता है वैसे ही हर गंजे के सर पर बालों खेती की संभावनायें बनी रहती हैं!
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अब समीरजी से ऐसी आशा तो नहीं थी परन्तु शोहरत चीज ही ऐसी होती है कब किसके पैर फिसल जायें कौन जाने. अरे भाई हम भी वैद्यजी के समान साश्वत सत्य बोलनें की मुद्रा में कहते हैं, “घोर कलयुग आ गया है, धर्म का नाम तो रसातल में चला गया है”
सोचता हूं अगर ये टिप्पणी समीरानन्दजी के ब्लाग पर चिपका दूं और गलती से कोई और पढ ले तो आफताब के प्रकट होने की दर ब्लाग पर आयी टिप्पणियों की संख्या के समानुपाती होगी. अब आप बतायें कि क्या इसे “नीरज का केश घनत्व निर्धारण नियम” कहा जा सकता है?
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बाद में ढेर सारी इस्माईली लगा दी हैं, इसलिये अन्यथा न लें.
@संजय बेंगाणी,समीरलालजी कभी लिखने के पहले किसी से पूछते नहीं। लिख लेने के बाद बताते हैं देखो ये लिखा है। पूछेंगे तो लिखना बंद करना पड़ेगा उनको। ऐसे तीरों को तो वे कामदेव की पुष्पवर्षा के समान ग्रहण करते हैं। लेख का स्तर बहुत मेहनत से गिराया गया क्योंकि कल ही राजीव टंडन ने फर्माइश की थी कि कोई कम अच्छा लेख लिखूं! अब एक कनपुरिया दूसरे कनपुरिया का आग्रह कैसे टाल सकता है भाई! और देखिये इस बात की तारीफ़ भी उन्होंने।
@सागर भाई पसंद का शुक्रिया!शैम्पू की कंपनियां तो न जाने कब बंद होंगी! वे शायद सारे बालों के झड़ने के बाद ही बंद होंगी!
@राकेशजी बाल तो गुल खिलाते ही रहते हैं। ये तो हमारी ध्वजा है!
@शुयेब उनके बालों के बारे में खुदा से बात करो जरा अगली मुलाकात में!
@पंकज दिल बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है कि गंजापन विद्वता की निशानी है!
@ समीरलालजीतांडव तक मत जाओ भाईजी, इधर ही अहिंसा से निपटारा हो जायेगा!पत्थर मारकर भागने की अदा त्याग दो! अब तो बड़े बन जाइये!
@राजीव टंडन पसंद का शुक्रिया! यह सही है कि यही आशावाद है- दम बनी रहे घर चूता है तो चूने दो!
@ नीरज रोहिल्ला आपके “नीरज का केश घनत्व निर्धारण नियम” की पुष्टि सारे ब्लागर अब तक करने लगे होंगे और अपने-अपने ब्लाग पर आटोमैटिक बाल काउंटर लगवा लिये होंगे।