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फुरसतिया का इंटरव्यू
By फ़ुरसतिया on March 12, 2007
आज तरकश पर अपना इंटरव्यू
सुना। मजा आया। सोचा आवाज कुछ और अच्छी होती। अफलातूनजी नाराज कि पसंदगी
में मैंने उनकी जगह प्रत्यक्षाजी को तरजीह दी। लेकिन यह तो समझो भाई कि जब
रैपिड फायरिंग हो रही हो तो दिमाग काम नहीं करता- सच ही बोलता है।
उड़नतश्तरी और जो न कह सके में जो न कह सके मुझे कहना ही था काहे से ऐसा हम
लिखित बयानी कर चुके हैं।
हमारे कुछ दोस्तों ने कहा कि हमारी श्रीमती जी ने हमें ‘आउटकास्ट’ कर दिया। यह तो सहज सामान्य क्रिया है। दिन-प्रतिदिन का अभ्यास फलीभूत हुआ इंटरव्यू में भी। जब हमारी श्रीमतीजी बतिया रहीं थीं खुशी से खुशी-खुशी तब हम दूसरे कमरे में चले गये। हमारे सामने वो झूठ नहीं बोल पातीं।
खुशी ने पूछा- हमारा ‘प्रेम-विवाह’ हुआ या ‘जुगाड-विवाह’(लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज)। पत्नी की चिंता थी कि कहीं हम भावविभोर होकर ‘प्रेम-विवाह’ न कह दें। उनकी चिंता वाजिब भी थी। जो आज तक न हुआ उससे शुरुआत को कोई कैसे सच मान ले। हमने जब जुगाड़-विवाह वाले आप्शन को लाक किया तो हमें लगा पत्नीश्री ने छ्ह लाख चालीस हजार का चेक काट के हमें थमा दिया- जाओ मौज करो टाइप। लगातार दस-बारह चैन की सांसे ले ली गयीं।
हमने अपने ब्लाग का नाम फुरसतिया कैसे रखा। इस पर मैंने बताया कि हमने ऐसे ही रैपिड फ़ायर टाइप सवाल की तरह नाम रखा। पहले एक ब्लाग बनाया था ठेलुहा नाम से। फिर उसका पासवर्ड खो गया। इसके बाद उसे इंद्र अवस्थी ने लूट लिया। फिर हम फुरसतिया को अंगीकार करके लिखा-पढ़ी के ब्लाग-समुद्र में कूद पड़े-छपाक। अभी तक तैर-उतरा रहे हैं।
एक सवाल जो हमसे पूछा गया कि हमारी भूमिका अभिभावक की है तो कैसा लगता है। हमारा जवाब था जो कि सच भी है -बहुत वाहियात लगता है। और यह सच है। अक्सर तो हंसी भी आती है कि भाई लोग कैसे-कैसे मामूली मसलों पर किड़बिड़-किड़बिड़ करने लगते हैं और बड़ी श्रद्धा पूर्वक मय तर्क-सबूत मोर्चा संभाल लेते हैं। अब यह बात अलग है कि जैसे ही बोरे हो जाते हैं, सफेद झंडा फहरा कर कुछ ब्रेक ले लेते हैं -अच्छा फिर लड़ते हैं ब्रेक के बाद टाइप!
मुझे लगता है कि लोग जब एक दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से परिचित नहीं होते तो भ्रम फैलने की गुंजाइश कम रहती है। मिलने-जुलने, बोलने-बतियाने से संदेह-कटुता की धूल झड़ती रहती है। जिन लोगों से आप मिल चुके हैं उनके कहे-लिखे को आप बेहतर समझ सकते हैं। यह भी एक शोध का विषय है कि देखा जाये कि जो लोग आपस में मिले नहीं हैं वे कितना लड़ते/बहसते हैं, उन लोगों के मुकाबले जो मिल-मिला चुके हैं।
पिछ्ले दो-तीन दिन जब कुछ लोगों के तेवर बड़े तीखे थे ऐसे में खुशी के इस पाडकास्ट ने सारी कटुता सेना को तिड़ी-बिड़ी कर दिया। ऐसा नहीं कि इसमें कुछ ऐतिहासिक उपदेश प्रवचन है लेकिन जब कुतर्कों की मारा-मारी चल रही हो तो ऐसी खूबसूरत आवाज सुनकर लोग सोचेंगे कि कहां हम अपना समय बरबाद कर रहे थे।
रही-सही कसर कल दिल्ली में हुयी ब्लागर्स मीट ने पूरी कर दी। अब कुछ दिन सारे बहसिये शान्त रहेंगे।
भाई लोगों ने पिछली बहस का कूड़ा अपने-अपने ब्लाग से धो-पोंछ दिया। अच्छा है। लेकिन मुझे लगता है कि इस सब को हटाना नहीं चाहिये। दफ़्तरी आदमी हूं इसलिये मेरा मानना है कि खराब माने जाने वाले कामों का भी रिकार्ड मिटाना नहीं चाहिये। यह इसलिये भी जरूरी है ताकि आगे के लिये सनद रहे कि हम यह करतूते कर चुके हैं।
सागर की शिकायत थी कि कोई बुजुर्ग उनके बीच में नहीं आया जब उनके खिलाफ़ लिखा पढ़ी हो रही थी।
मैंने इस बारे में बहुत सोचा। मुझे लगता है ब्लाग की दुनिया आभासी दुनिया है। कौन किसका बुजुर्ग है यहां। अगर ब्लाग लेखन की बात करो तो हम दूसरे लोगों से मात्र एकाध साल सीनियर हैं। उम्र की बात करो तो जिन घुघूती बासती के ब्लाग पर आरोप-कबड्डी हो रही थी वे बुजुर्ग महिला हैं। उनको दुख देकर,वहां मारने-पीटने तक की बात करते हुये आप किससे अपेक्षा करते हैं कि वहां बीच-बचाव करे।
एक बात और समझनी चाहिये कि जितने भी ब्लागर हैं उनके नेट से जुड़ने के समय अलग-अलग हैं। कोई हमेशा नहीं जुड़ा रहता कि इधर आपने कुछ लिखा दन से उसने पढ़ लिया। और फिर यह कोई हाथापाई का भी मामला नहीं है आप अकेले पड़ गये तो मारे जायेंगे। टिप्पणियां हैं- हो रही हैं। आप भी करो। किसी ने आपके खिलाफ़ कुछ लिखा और आप वह नहीं हैं तो उससे आपको विचलित होने की क्या जरूरत? टिप्पणी कोई बंसती नहीं है जो कुछ देर रुक गयी, जवाब नहीं दिया गया तो वीरू मारा जायेगा। आप आराम से करें कमेंट। अपना नजरिया अच्छी तरह खुद समझकर पोस्ट लिखें। कौनौ हड़बड़ी तो है नहीं। न आप कहीं जा रहे हैं न हम।
मेरा सुझाव है कि किसी भी आक्रामक टिप्पणी जवाब तुरन्त देने की बजाय एक दिन बाद दिया जाये। आत्म संयम कोई कमजोरी की निशानी नहीं है। मानोसी की हाइपर तकनीक बच्चों पर ही नहीं सब पर लागू होती है।
नेट एक क्लिक पर आपको पोस्ट करने की सुविधा देता है। यह इसकी सामर्थ्य है। हर सामर्थ्य के साथ उसकी सीमा भी जुड़ी होती है। सो नेट की भी सीमा है। जहां आपने किसी दूसरे के ब्लाग पर कुछ कमेंट किया तो फिर उससे आपका अधिकार गया। फिर उसे हटाना न हटाना उस ब्लाग मालिक के हाथ में होता है। आपकी कोई फूहड़ टिप्पणी अनन्तकाल तक आपका मुंह बिराती रहेगी। बाद में आपके अफसोस का तिरपाल उसे चाहे जितना ढंके लेकिन जिसको मन आयेगा दूसरों को दिखायेगा -ई देखो फलाने कहिन रहैं।
बहरहाल, देखिये हम कहां से कहां पहुंच गये। खुशी के इस पाडकास्टिंग से हम खुश हो गये। इसका विधा का व्यापक उपयोग होना चाहिये। जैसा साथियों ने बताया कि अगर हो सके तो हर हफ़्ते लोगों के इंटरव्यू लिये जायें। इससे तरकश की लोकप्रियता में इजाफ़ा होगा और हम दूसरे लोगों के बारे में जानेंगे।
मेरी पसंद में आज एक कविता की कानपुर के प्रसिद्ध गीतकार उपेन्द्र जी के एक प्रसिद्ध गीत की कुछ पंक्तियां जो हमें पिछले हफ्ते विनोद श्रीवास्तव नें सुनाईं। वे हमारे घर आये थे। हमने उनके दो गीत रिकार्ड भी किये।
संबंधित कड़ियां:
१.खुशी का पाडकास्ट
२. ये पीला वासन्तिया चांद
३.फुरसतिया बनाम फोकटिया
४. मानसी का लेख
५. दिल्ली हिंदी ब्लागर्स भेंटवार्ता विवरण
मेरी पसंद
हमारे कुछ दोस्तों ने कहा कि हमारी श्रीमती जी ने हमें ‘आउटकास्ट’ कर दिया। यह तो सहज सामान्य क्रिया है। दिन-प्रतिदिन का अभ्यास फलीभूत हुआ इंटरव्यू में भी। जब हमारी श्रीमतीजी बतिया रहीं थीं खुशी से खुशी-खुशी तब हम दूसरे कमरे में चले गये। हमारे सामने वो झूठ नहीं बोल पातीं।
खुशी ने पूछा- हमारा ‘प्रेम-विवाह’ हुआ या ‘जुगाड-विवाह’(लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज)। पत्नी की चिंता थी कि कहीं हम भावविभोर होकर ‘प्रेम-विवाह’ न कह दें। उनकी चिंता वाजिब भी थी। जो आज तक न हुआ उससे शुरुआत को कोई कैसे सच मान ले। हमने जब जुगाड़-विवाह वाले आप्शन को लाक किया तो हमें लगा पत्नीश्री ने छ्ह लाख चालीस हजार का चेक काट के हमें थमा दिया- जाओ मौज करो टाइप। लगातार दस-बारह चैन की सांसे ले ली गयीं।
हमने अपने ब्लाग का नाम फुरसतिया कैसे रखा। इस पर मैंने बताया कि हमने ऐसे ही रैपिड फ़ायर टाइप सवाल की तरह नाम रखा। पहले एक ब्लाग बनाया था ठेलुहा नाम से। फिर उसका पासवर्ड खो गया। इसके बाद उसे इंद्र अवस्थी ने लूट लिया। फिर हम फुरसतिया को अंगीकार करके लिखा-पढ़ी के ब्लाग-समुद्र में कूद पड़े-छपाक। अभी तक तैर-उतरा रहे हैं।
एक सवाल जो हमसे पूछा गया कि हमारी भूमिका अभिभावक की है तो कैसा लगता है। हमारा जवाब था जो कि सच भी है -बहुत वाहियात लगता है। और यह सच है। अक्सर तो हंसी भी आती है कि भाई लोग कैसे-कैसे मामूली मसलों पर किड़बिड़-किड़बिड़ करने लगते हैं और बड़ी श्रद्धा पूर्वक मय तर्क-सबूत मोर्चा संभाल लेते हैं। अब यह बात अलग है कि जैसे ही बोरे हो जाते हैं, सफेद झंडा फहरा कर कुछ ब्रेक ले लेते हैं -अच्छा फिर लड़ते हैं ब्रेक के बाद टाइप!
मुझे लगता है कि लोग जब एक दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से परिचित नहीं होते तो भ्रम फैलने की गुंजाइश कम रहती है। मिलने-जुलने, बोलने-बतियाने से संदेह-कटुता की धूल झड़ती रहती है। जिन लोगों से आप मिल चुके हैं उनके कहे-लिखे को आप बेहतर समझ सकते हैं। यह भी एक शोध का विषय है कि देखा जाये कि जो लोग आपस में मिले नहीं हैं वे कितना लड़ते/बहसते हैं, उन लोगों के मुकाबले जो मिल-मिला चुके हैं।
पिछ्ले दो-तीन दिन जब कुछ लोगों के तेवर बड़े तीखे थे ऐसे में खुशी के इस पाडकास्ट ने सारी कटुता सेना को तिड़ी-बिड़ी कर दिया। ऐसा नहीं कि इसमें कुछ ऐतिहासिक उपदेश प्रवचन है लेकिन जब कुतर्कों की मारा-मारी चल रही हो तो ऐसी खूबसूरत आवाज सुनकर लोग सोचेंगे कि कहां हम अपना समय बरबाद कर रहे थे।
रही-सही कसर कल दिल्ली में हुयी ब्लागर्स मीट ने पूरी कर दी। अब कुछ दिन सारे बहसिये शान्त रहेंगे।
भाई लोगों ने पिछली बहस का कूड़ा अपने-अपने ब्लाग से धो-पोंछ दिया। अच्छा है। लेकिन मुझे लगता है कि इस सब को हटाना नहीं चाहिये। दफ़्तरी आदमी हूं इसलिये मेरा मानना है कि खराब माने जाने वाले कामों का भी रिकार्ड मिटाना नहीं चाहिये। यह इसलिये भी जरूरी है ताकि आगे के लिये सनद रहे कि हम यह करतूते कर चुके हैं।
सागर की शिकायत थी कि कोई बुजुर्ग उनके बीच में नहीं आया जब उनके खिलाफ़ लिखा पढ़ी हो रही थी।
मैंने इस बारे में बहुत सोचा। मुझे लगता है ब्लाग की दुनिया आभासी दुनिया है। कौन किसका बुजुर्ग है यहां। अगर ब्लाग लेखन की बात करो तो हम दूसरे लोगों से मात्र एकाध साल सीनियर हैं। उम्र की बात करो तो जिन घुघूती बासती के ब्लाग पर आरोप-कबड्डी हो रही थी वे बुजुर्ग महिला हैं। उनको दुख देकर,वहां मारने-पीटने तक की बात करते हुये आप किससे अपेक्षा करते हैं कि वहां बीच-बचाव करे।
एक बात और समझनी चाहिये कि जितने भी ब्लागर हैं उनके नेट से जुड़ने के समय अलग-अलग हैं। कोई हमेशा नहीं जुड़ा रहता कि इधर आपने कुछ लिखा दन से उसने पढ़ लिया। और फिर यह कोई हाथापाई का भी मामला नहीं है आप अकेले पड़ गये तो मारे जायेंगे। टिप्पणियां हैं- हो रही हैं। आप भी करो। किसी ने आपके खिलाफ़ कुछ लिखा और आप वह नहीं हैं तो उससे आपको विचलित होने की क्या जरूरत? टिप्पणी कोई बंसती नहीं है जो कुछ देर रुक गयी, जवाब नहीं दिया गया तो वीरू मारा जायेगा। आप आराम से करें कमेंट। अपना नजरिया अच्छी तरह खुद समझकर पोस्ट लिखें। कौनौ हड़बड़ी तो है नहीं। न आप कहीं जा रहे हैं न हम।
मेरा सुझाव है कि किसी भी आक्रामक टिप्पणी जवाब तुरन्त देने की बजाय एक दिन बाद दिया जाये। आत्म संयम कोई कमजोरी की निशानी नहीं है। मानोसी की हाइपर तकनीक बच्चों पर ही नहीं सब पर लागू होती है।
नेट एक क्लिक पर आपको पोस्ट करने की सुविधा देता है। यह इसकी सामर्थ्य है। हर सामर्थ्य के साथ उसकी सीमा भी जुड़ी होती है। सो नेट की भी सीमा है। जहां आपने किसी दूसरे के ब्लाग पर कुछ कमेंट किया तो फिर उससे आपका अधिकार गया। फिर उसे हटाना न हटाना उस ब्लाग मालिक के हाथ में होता है। आपकी कोई फूहड़ टिप्पणी अनन्तकाल तक आपका मुंह बिराती रहेगी। बाद में आपके अफसोस का तिरपाल उसे चाहे जितना ढंके लेकिन जिसको मन आयेगा दूसरों को दिखायेगा -ई देखो फलाने कहिन रहैं।
बहरहाल, देखिये हम कहां से कहां पहुंच गये। खुशी के इस पाडकास्टिंग से हम खुश हो गये। इसका विधा का व्यापक उपयोग होना चाहिये। जैसा साथियों ने बताया कि अगर हो सके तो हर हफ़्ते लोगों के इंटरव्यू लिये जायें। इससे तरकश की लोकप्रियता में इजाफ़ा होगा और हम दूसरे लोगों के बारे में जानेंगे।
मेरी पसंद में आज एक कविता की कानपुर के प्रसिद्ध गीतकार उपेन्द्र जी के एक प्रसिद्ध गीत की कुछ पंक्तियां जो हमें पिछले हफ्ते विनोद श्रीवास्तव नें सुनाईं। वे हमारे घर आये थे। हमने उनके दो गीत रिकार्ड भी किये।
संबंधित कड़ियां:
१.खुशी का पाडकास्ट
२. ये पीला वासन्तिया चांद
३.फुरसतिया बनाम फोकटिया
४. मानसी का लेख
५. दिल्ली हिंदी ब्लागर्स भेंटवार्ता विवरण
मेरी पसंद
प्यार एक राजा है-उपेन्द्र, कानपुर
जिसका बहुत बड़ा दरबार है
पीड़ा जिसकी पटरानी है
आंसू राजकुमार है।
Posted in सूचना | 14 Responses
हालाँकि यह और बेहतर हो सकता था, हम पुरा संतुष्ट नहीं है. फिर भी सिख रहे हैं।
हाँ इस विधा का व्यापक प्रयोग होना चाहिए. और भविष्य मे होगा भी.
हम सब कई प्रयोग करते रहते हैं, कई बार असफलता हाथ लगती कई बार सफलता हाथ लगती है।
तरकश के बारे में कह सकता हुँ कि, कई बार पता चल जाता है कि यह प्रयोग नही चल रहा है, तो उसे धीरे से बन्द कर दिया जाता है।
और कई बार शुरूआती असफलता मिलने पर भी यकीन हो जाता है कि यह प्रयोग चलेगा ही चलेगा, तरकश पॉडकास्ट ऐसा ही प्रयोग था।
ऑडियो मिक्सींग और रिकोर्डिंग में हमारा अनुभव काम आ रहा है. खुशी बहुत मेहनत करती है, यह भी सच है. पर यह एक टीमवर्क है, जिसमें समीरजी से लेकर संजयभाई तथा अन्य भी बहुत से लोग जुडते हैं।
खुशी अपने ब्लोग पर “कैसे होता है तरकश पॉडकास्ट” यह लिखने वाली है, उम्मीद है इससे अन्य लोगों को मदद मिलेगी.
कुछ वाक्यांश अधिक प्रभावशाली/विचारणीय हैं -
लेकिन यह तो समझो भाई कि जब रैपिड फायरिंग हो रही हो तो दिमाग काम नहीं करता- सच ही बोलता है। – स्वीकरोक्ति।
हमारे सामने वो झूठ नहीं बोल पातीं – तो आपने उनकी बातों को झूठ साबित करने में कोई कसर नहीँ छोड़ी।
जो आज तक न हुआ उससे शुरुआत को कोई कैसे सच मान ल – रहस्योद् घाटन ।
बहरहाल इंटरव्यू अच्छा था और प्रस्तुति भी शानदार!
नाराजगी का प्रश्न नहीं उठता। किसी प्रिय ने किसी को पसन्द किया तो उसमें अप्रिय तो कुछ हो ही नहीं सकता। हमे प्रत्यक्षा से ‘अदेखाई’ हो रही थी। अदेखाई का मतलब खुशी से पूछिए-यह शब्द हिन्दी वाले समझ तो रहे होंगे लेकिन गुजराती में प्रचलित शब्द है,इसलिए खुशी से पूछिए । एक और सवाल(रैपिड फ़ायर) जो आप आधा समझे और खुशी तो पूरा नहीं समझ रही थी – उस पर कभी और।
cucool वाला मामला तो तुम पूरी तरह पचा गए, (अच्छा भौजी बगल मे थी, तभी)
वैसे एक बात कहूं, तुम तो ‘आउटडेटेड’ हो गए अब, अब लोग तुम्हारे ब्लॉग पर आएंगे सिर्फ़ भौजी का पॉडकास्ट सुनने। बकिया का हमे नही पता, हम तो ऐसा ही करिबै।
बहुत अच्छा पॉडकास्ट था, बहुत मजा आया। इससे चिट्ठाकार परिवार के सदस्यों को और जानने का मौका मिलेगा।
सुकुलाइन ने समां बांध दिया. क्या सह्ज-स्वाभाविक और उत्फ़ुल्ल अंदाज़. क्या आवाज़ और क्या डिक्शन की क्लैरिटी . ऊपर से सुंदर साहित्यिक गीत का गायन. सब कुछ फ़र्स्ट क्लास फ़र्स्ट .
सुकुल जी लगता है टेन्शनिया गये. जवाब अच्छे दिये पर किसी नवोढ़ा की तरह लजाते हुए. ऊपर से हस्की-सी आवाज़ उनकी प्रिय हीरोइन रानी मुखर्जी जैसी . दो बार सुना पूरे कन्सन्ट्रेशन के साथ तब पूरी बात समझ में आई.
पूरा साक्षात्कार बहुत अच्छा लगा. खुशी को बहुत-बहुत साधुवाद और बधाई!
-बाकि तो पॉडकास्ट बहुत मस्त रहा, आनन्द आ गया.
आशीष गर्ग
आपका गुनगुनाना , भई मज़ा आ गया । अब एक फुल लेंग्थ गीत हो जाय आपकी मधुर आवाज़ में। हम इंतज़ार में हैं ।
और अफलातून जी ‘अदेखाई ‘ क्या होता है , वैसे हमारा नाम , बकौल समीर जी , आपके साथ लिया गया यही बहुत है हमारे लिये ।
@राजीवजी, आपकी नजर कमाल की है। वैसे दोनों बातों के खुलासे मेरी पोस्ट ये पीला बासन्तिया चांद तथा पति एक आइटम होता है में किये गये हैं।
@अफलातूनजी, अब मौज लेने पर भी सफ़ाई दी जायेगी? ऐसे तो न थे बनारसी। ‘अदेखाई’ के बारे में बताया जाये।
@जीतेंद्र, cool वाले मामले में हमने जो कहा वह सच ही थी। झूठ बोले के हम मामला हाट कैसे करते। बाकी हम पाडकास्टिंग कैसे करायेंग इत्ते बड़े लेख की बताऒ!
@प्रियंकरजी, हम टेंसनियाये नहीं थे। सब कुछ नार्मल था। हमारी आवाज को तरकश टीम कितना सहायता करती! वैसे एक बात है कि लोग कहते हैं कि पुराने जमाने के ‘कारवां गुजर गया’ वाले घराने के कवि घंटों अपना मेकअप बिगाड़ते थे ताकि लुटे-पिटे लग सकें। हमें लगता है कुछ ऐसा ही प्रयास तरकश वालों ने तो नहीं किया कि महिला बिरादरी की आवाज अच्छी आ सके। महिला दिवस तुरन्त ही गुजरा था न!
@उन्मुक्तजी, आपकी प्रतिक्रिया पढ़ा दी गयी है। वहां खुशी ने भी बांच ली होगी। खुश होंगी।
@समीरलाल,धन्यवाद, आप भी भावुकता के पाले में चले गये।
@जगदीश भाटिया, शुक्रिया।
@पंडितजी, शुक्रिया और क्या दे सकते हो हमें सिवाय बुजुर्गियत के। हमें स्वीकर है-मजबूरी में ही सही।
@आशीष, शुक्रिया।
@प्रत्यक्षाजी,धन्यवाद। आपकी तारीफ़ टिप्पणी सुमनजी तक पहुंचा दी गयी। फुल लेंग्थ गीत की फरमाइश भी।
मिलकर खोशी हेई