Monday, August 06, 2007

हिंदुस्तान अमरीका बन जाये तो कैसा होगा

http://web.archive.org/web/20140419215216/http://hindini.com/fursatiya/archives/315

हिंदुस्तान अमरीका बन जाये तो कैसा होगा

Akshargram Anugunjये अनुगूंज भी बड़ा बवाल है। तेईस ठो हो चुकीं लेकिन अब फिर से बाइसवीं करायेंगे आलोक। विषय भी क्या सनसनाता हुआ- हिंदुस्तान अमरीका बन जाये तो कैसा होगा। अरे कैसा होगा- वैसा ही होगा जैसा मंजूरे खुदा होगा।
वैसे ये सब मामला उल्टा-पुलटा लग रहा है। अनुगूंज का नंबर पीछे हो रहा है। भारत को अमरीका बनाया जा रहा है। मतलब अमरीका भारत बनेगा। तो का अमरीका की भी अनुगूंज के तरह उलटी गिंनती शुरू हो गयी।
हिंदुस्तान अमेरिका बन जायेगा तो कैसा रहेगा इस बारे में तो सबसे बेहतर तो वही बता पायेंगे जिनको दोनों देशों के बारे में पता है। हम का बता पायेंगे जिसको अपने देश का ही पूरा अंदाजा नहीं है। पहले सोचा कि घर बैठे अमेरिका बन जाने की बात सोचकर उछ्लकर बल्ले-बल्ले करने लगूं लेकिन श्रीलाल शुक्ल की रागदरबारी का डायलाग याद आ गया-नंगा के चुतरे मां बिरवा जाम तो नंगा नाचै लाग, सोचिस की छांह होई।
अव्वल तो हम ,चाहे इसे बाई डिफ़ाल्ट कहें या बाई मजबूरी,अपि स्वर्ण्मयी लंका न मे रोचते/जननी जन्मभूमि स्वर्गादपि गरीयसी टाइप के आइटम हैं। हमारे सबसे पसंदीदा शेरों में से एक शेर है -मैं कतरा सही मेरा वजूद तो है/ हुआ करे जो समंदर मेरी तलाश में है या फ़िर यह भी कि वो खरीदना चाहता का कांसा (भिक्षा पात्र) मेरा/ मैं उसके ताज की कीमत लगा के लौट आया। और भी तमाम झमाझम डायलाग है जिनकी बौछार करते हुये मैं यह कहना चाहता था कि मैं इस विचार को ही सिरे से नकारता हूं कि भारत कभी अमेरिका बने।
हर मशीन का अपना एक चरित्र होता है। वह एक खास पैटर्न पर ही काम करती हैं। मशीने आदमी से कम नखरे बाज नहीं होती। उनसे काम लेने के लिये उनके नखरे समझने की कला आनी चाहिये।
आलोक कुमार के ताऊ श्री विज्ञान शंकर जी हमारे महाप्रबंधक रहे करीब एक साल। रिटायर होकर अभी दिल्ली में हैं। वे अद्भुत ज्ञानी पुरुष हैं। वे मशीनों तक के बारे में कहा करते थे- हर मशीन का अपना एक चरित्र होता है। वह एक खास पैटर्न पर ही काम करती हैं। मशीने आदमी से कम नखरे बाज नहीं होती। उनसे काम लेने के लिये उनके नखरे समझने की कला आनी चाहिये। दो व्यक्तियों, संस्थानों की तुलना करने के विचार से विज्ञानशंकर जी हमेशा असहमत रहे। उनका मानना है कि दो विभिन्न संदर्भ पटल (फ़्रेम आफ़ रेफ़रेन्स) वाली वस्तुओं की तुलना करना दोनों के साथ अन्याय करना है। इसे कभी सही नताजे हासिल नहीं होते।
जब व्यक्ति, वस्तु, संस्था जैसी छोटी इकाइयों के तुलना की बात को ही हम सही नहीं मानते तो दो देशों का कैसे तुलनात्मक अध्ययन करें। कैसे बतायें कि क्या होगा अगर भारत अमेरिका बन जायेगा। यह विचार ही ऐसा है जिसकी कल्पना मात्र से लोग घबरा के सू-सू करने लगे। इसका प्रभाव ज्ञानियों व अगड़म-बगड़म शैली के आलोचकों पर एक ही समय में अलग-अलग हुआ। ज्ञानीजन जहां मात्र नब्बे साल में हमारी चौथी पीढ़ी को मंच पे ले आये-( पर अनूप IV शुक्ल ने बीचबचाव में कहा है कि किसी भी विवाद को फुर्सत से निपटा लिया जाये) वहीं अगड़म-बगड़म शैली के विचारक ज्ञानदत्तजी से अगले साढ़े पांच सौ साल तक ड्यूटी बजवा रहे हैं-(2577 में ज्ञानदत्तजी, जो लैस कोलस्ट्रोल और मोर मार्निंग स्ट्रोल के बूते स्वस्थ हैं और करीब पांच सौ साल के हो लिये हैं, अमेरिका में यह कहते पाये जाते हैं कि इंगलिश भारतीय भाषा है।)
जिस प्रस्ताव के विचार मात्र में इतना झाम है उसके कार्यन्वयन की कल्पना कितनी भयानक बोले तो हाऊ हारेबल टाइप होगी। समझ लीजिये। इसलिये हम तो भैया यही कहते हैं कि इस अमेरिकागिरी के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते। इसमें तमाम झमेले हैं। इस विचार का विरोध करते हुये कुछ झमेलों का खुलासा करने का प्रयास किया गया है।
अमेरिका का अमेरिकापन तभी तक है जब तक हिंदमहासागर और अटलांटिक सागर के बीच की दूरी बरकरार है। दूरी मिटते ही वो बेचारा कौड़ी का तीन हो जायेगा।
१. जैसे ही भारत अमेरिका बना, अमेरिका में भब्भड़ मच जायेगा। तब न ग्रीन कार्ड होगा न फ़्रीन कार्ड। सारे भारत के लोग भाग-भाग के झोला-झंडा लिये अमेरिका पहुंच जायेंगे। सारे बिहारी बच्चे दिल्ली की लड़कियों के बजाय न्यूयार्क की लड़कियां देखते हुये आई.ए.एस. का इम्तहान देंगे। अमेरिका का अमेरिकापन तभी तक है जब तक हिंदमहासागर और अटलांटिक सागर के बीच की दूरी बरकरार है। दूरी मिटते ही वो बेचारा कौड़ी का तीन हो जायेगा। अभी तो वहां हमारे देश के लोग कम संख्या में हैं इसलिये थोड़ा अमेरिकी टाइप बनने की कोशिश करते हैं। जहां यहां से रेले के रेले पहुंचे वहां वैसे ही हर तरफ़ भारतीयों के मेले लगे दिखेंगे। सब तरफ़ आनंद की बयार बहेगी।
२. बाहर से आये लोग हमेशा से अंदर के लोगों के मुकाबले मेहनती होते हैं। जो भारतीय वहां जायेंगे वे अपना परिवार साथ लेकर नहीं जायेंगे। कोई और काम न होने की वजह से कुछ दिन में ही मार मेहनत करके वे अमेरिकियों के छक्के क्या अट्ठे छुड़ा देंगे। तमाम काम अपनी तरह से करेंगे। कोई अमेरिकी अंग्रेजी में पिनपिनायेगा – व्हाट आर यू डूइंग मैन इट्स अगेन्स्ट ला। आई एम गोइन्ग टु सू यू। जवाब शायद छोटे पहलवान वाली स्टाइल में दिया जाये- अबे चिमिरखी दास, ज्यादा सू-सू न करो नहीं तो पड़ेगा एक कन्टाप तो सारी फ़ंटूसी पिल्ल से निकल पड़ेगी। हम गंजहें हैं जहां रहते हैं वहां अपना कानून चलाते हैं। जब तक हम हैं यही चलेगा। तफ़रीह करने आये हैं कोई खूंटा गाड़ने नहीं। जितने दिन हैं अपना कानून धो-पोंछकर तहाकर रखो। जब चले जायें तब आराम से फ़हराना। और हां, ये सींकिया बदन लिये घूमते हो,मर्द के नाम पर कलंक है। शाम को अखाड़े आना सेहत सुधर जायेगी।
३. अमेरिका के जितने हाई वे हैं वे सब के सब साल भर में कई बार लो-वे में बदल जायेंगे। जहां बरसात खतम हुई सारे चौड़े रास्तों पर गड्डे खोदकर बल्ली गाड़कर रामलीला का तम्बू तन जायेगा। इधर से १५० किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से आती गाड़ी सड़क पर अवरोध देखकर चीं-चीं करके ब्रेक मारेगी। खिड़की से सर बाहर निकालने पर उसे जनक विलाप सुनाई देगा- लिखा न विधि वैदेहि विवाहू/तजहु आस निज-निज ग्रह जाहू। वो हार्न दे-देकर हलकान हो जायेगा उसके पीछे गाड़ियों की मीलों लंबी कतार लग जायेगी और उसे परशुराम की आवाज सुनाई देगी -रे सठ सुनेसि सुभाव न मोरा। दूसरी तरफ़ लगी गाड़ियों की कतार वाला कोई मोबाइल वाला ट्रैफ़िक वाले को बुलायेगा। वह बेचारा आने से मना कर देगा क्योंकि उसने पहले ही लक्ष्मण का रोष वीडियो कैमरे पर देख सुन लिया है- जौ राउर अनुशासन पाऊं/कंदुक इव ब्रह्मांड उठाऊं/ कांचे घट जिमि डारौं फ़ोरी। वो बेचारा इसकी कल्पना मात्र से सिहर जायेगा । आने से साफ़ मना कर देगा। सारा जाम सियावर रामचंद्र के जय के साथ ही समाप्त होगा।
अब चूंकि भारत के सारे प्रांतों के लोग अमेरिका जायेंगे तो कुछ हाईवे माता के भक्त भी घेरेंगे। कुछ गणपति बप्पा मोरिया वाले भाई। तमाम जगह बात-बात पर ईंट बजा देने वाले आंदोलनकारी। बची-खुची जमीन पर बाबा लोग अपने तम्बू तानकर अमेरिकनों का परलोक सुधार देंगे। वैसे भी जब भारतीय वहां पहुंचेंगे बहुतायत में तो उनका परलोक ही सुधरने लायक बचेगा। उनके लोक का तो टोटल हो जायेगा। कुछ जगह हनुमान भक्तों और ढाबे वालों को तो चाहिये ही हो्गी।
जो लोग इस खामख्याली में हैं कि अमेरिका का कानून बहुत सख्त है सबको जेल में भर देगा। उनका ख्याल भारतीयों के वहां पहुंचते ही ट्विन टावर के तरह ढह जायेगा। अमेरिका का कानून चाहे जितना सख्त हो भारतीय उसे वहां पहुंचते ही या तो मुलायम और मानवीय बना देंगे या फिर छेनी-हथौड़ी से चकनाचूर कर देंगे।
जो लोग इस खामख्याली में हैं कि अमेरिका का कानून बहुत सख्त है सबको जेल में भर देगा। उनका ख्याल भारतीयों के वहां पहुंचते ही ट्विन टावर के तरह ढह जायेगा। अमेरिका का कानून चाहे जितना सख्त हो भारतीय उसे वहां पहुंचते ही या तो मुलायम और मानवीय बना देंगे या फिर छेनी-हथौड़ी से चकनाचूर कर देंगे। तब शायद नाजुक मिजाज अमेरिकी अनुरोध करें- हमारी सुरक्षा के लिये हमें जेल दो। हम इन भारतीयों का मुकाबला नहीं कर सकते।
४. जब देश के लोग जायेंगे तो देश की संस्कृति के रक्षक भी तो जायेंगे कि नहीं। सुना है वहां बहुत चूमा-चाटी है। खुले आम चिपका-चपकौवल चलती है। जहां यहां के मेरठ , हरियाणा के जाट वहां पहुंचे और उधर से सैनिक लोग उनकी सारी मस्ती हवा हो जायेगी। जगह-जगह गोरे लोगों को कान-पकड़वा कर मुर्गा बनवाते हुये बहादुर लोग दिखेंगे। फ़्रेंडशिप बैंड की जगह राखी बैंड बंधवा देंगे। तमाम अमेरिकन लोग आई लव यू माई डार्लिंगभूल-भाल के बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा हैं। सारे अमेरिका में भारतीय संस्कृति की बयार बहने लगेगी।
५.तमाम अमेरिकी जमीन पर भारतीय भू माफ़िया कब्जा कर लेंगे। जब कोई अमेरिकन इस पर अपना एतराज जतायेगा कि यह उसकी जमीन है तो भारतीय बिल्डर उस जमीन पर बनी इमारत की तराई करते हुये परमहंस वाले अंदाज में प्रवचनियायेगा- अयं निज: परोवेति, गणना लघु चेत शाम/ उदार चरितांनाम वसुधैव च कुटुम्बकम।यह मेरा है वह पराया है यह छोटों का दर्शन है। उदार चरित वालों के लिये वसुधा ही कुटुम्ब के समान है। यह सब हमारा है। हमने मेहनत करके इधर नींव खोद ली ईंटे जमा लीं। तुम बगल में अपना तंबू लगा लो। कुछ ईंटे बचीं हैं हमसे ले लो, खरीद दाम पर दे देंगे।
इसकी वैचारिक व्याख्या करते हुये कोई समझदार मासूम अमेरिकी लोगों को समझायेगा। बन्धुओं वस्तुत: यह तुम्हारे ही विश्व को सुधारने के दर्शन का विस्तार है। तुम वियतनाम गये उसे नेस्तनाबूद करने, अफ़गानिस्तान गये दुश्मनों का संहार करने, ईराक गये उसको लोकतांत्रिक बनाने। हर जगह असफ़ल से रहे। मजा नहीं आया न तुमको न उन लोगों को। बहुत पैसा बरबाद कर दिया। तमाम जाने चलीं गयीं। इसीलिये हम तुम्हारा बौद्धिक करने आये हैं कि यह सारा क्रियाकर्म कम खर्चे में कैसे किया जा सकता है घर बैठे। जैसे ही सिखा देंगे वैसे ही चले जायेंगे जैसे तुम चले थे दूसरे देशों में अपना काम करके।
इलाहाबाद और गया के पंडे राबर्ट और जूलिया को जमशेदपुर, दरभंगा के रामदयाल, बरसातीराम का वंसज साबित कर देंगे। वे अगली फ़्लाइट से भारत अपनी जड़ों की तलाश में सरपट भागते चले आयेंगे। इंडियन एअर लाइंस के बल्ले-बल्ले होंगे।
६. भारतीय व्यक्ति स्वभाव से ही अतीतजीवी होता है। जब भारतीय जन वहां छा जायेंगे तो सारे अमेरिकियों का अतीत तलाशा जायेगा। यहां से कुछ मौलवी जी और पंडितजी लोग भी जायेंगे। वे अपने इलाके के सारे बिछड़े हुये लोगों को मिलायेंगे। इलाहाबाद और गया के पंडे राबर्ट और जूलिया को जमशेदपुर, दरभंगा के रामदयाल, बरसातीराम का वंसज साबित कर देंगे। वे अगली फ़्लाइट से भारत अपनी जड़ों की तलाश में सरपट भागते चले आयेंगे। इंडियन एअर लाइंस के बल्ले-बल्ले होंगे। जमशेदपुर, दरभंगा पहुंचते -पहुंचते उनकी इतनी जड़ खुद जायेगी कि वे जड़ीभूत होकर यहीं कहीं टिककर शायद हिंदी में ब्लाग लिखते हुये दो संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन करने लगें।
७. पंडितजी लोग तीसरी पत्नी के चौथे पति के पांचवे बच्चों की परंपरा कीऐसी कम तैसी ज्यादा कर देंगे। ऐसे सारे कर्मों को कुकर्म बताकर धर्म की स्थापना में जुट जायेंगे। तलाक की मैगी नूडल टाइप दुईमिन्टिया अवधारणा की जगह तलाक का बीरबल की खिचड़ी वाला पैकेज चलाया जायेगा। मतलब कि अमेरिका के लोगों को दुनिया की सारी नेमतें मिल जायेंगी लेकिन तलाक नहीं मिल पायेगा। बिना शादी के साथ रहने वालों के कान गरम करने के लिये हमारे वीर बालक हैं ही। साल भर में सारे अमेरिका गायन्ति देवा किलकीत कानि वाले माहौल में सांस लेने लगेंगे। एक बीबी का एक पति।इस संस्कार की स्थापना होते ही अमेरिका जाने वाले भारतीयों की संख्या में महती गिरावट होगी। हर जाने वाला यही सोचेगा /गी जब एक ही के के साथ रहना है तो भारत ही क्या बुरा है।
क्या बुरा है।
८. अभी अमेरिकी बहुत डरपोंक हैं। एक ठो इमारत गिरी पूरी दुनिया में पटाखे बाजी करने लगे। जरा सा पाउडर मिला कुछ लिफ़ाफ़ों में सारे देश के आफ़िस बंद कर दिये। भारत से जो लोग जायेंगे वे उनको बहादुरी का पाठ पढ़ायेंगे। कैसे दंगों के बीच जिया जाता है, कैसे हजारों लोगों के मरने के बावजूद संयम से पेश आया जाता है। कैसे अपने दुश्मन को माफ़ किया जाता है। यह सारे पाठ पढ़ाये जायेंगे। हो सकता है कि इस पर झमाझम बहसें हों और वहां के लोग यह साबित करते हुये बताने की कोशिश करें अपने दु्श्मनों को माफ़ करना कमजोरी है। लेकिन जब बहस की बात हो और भारतीयों से कोई जीत जाये- असम्भव। इम्पासिबल। हमारा एक बच्चा तक उनको समझा देगा- देखो भाई अमेरिकाजी, अभी आप बच्चे हैं। कुल जमा पांच सौ साल की उमर है तुम्हारी। भारत के सामने लौंडे हो अभी। अभी हर जगह असफ़ल रहने के बावजूद तुम्हारे भेजे में यह बात नहीं घुसती कि ताकत से सब कुछ नहीं हासिल होता। हमारे देश में तमाम लोग तुमसे ज्यादा ताकतवर रहे लेकिन अंतत: विश्वबंधुत्व के दर्शन का पैकेज ही
सबसे अच्छा साबित हुआ। अपने तर्क की पुष्टि के लिये वह सम्राट अशोक, चंद्र्गुप्त, चाणक्य ,हर्षवर्धन और न जाने किस-किस शासक के कौन-कौन से उदाहरण पटक देगा सामने। इस रहस्योद्घाटन से बेचारे अमेरिकी की आंखे ऐसी फ़टी की फ़टी रह जायेंगी कि दुबारा किसी भी तरह सिली न जा सकेंग। फिर शायद उनका इलाज डाक्टर टंडन के होम्योपैथिक इलाज से ही किया जा सके।
९. जब इतना सब कुछ बदलेगा तब आप क्या समझते हैं कि दोनों देशों का पाठयक्रम न बदलेगा। हो सकता है कि वहां के बच्चे हिंदी ब्लागिंग का इतिहास पढ़ें और भारत से गये लोग अमेरिकी बरबादी/विकास में विवाहेतर संबंधों का योगदान पर शोध करें। कुछ भी संभव है।
१०. जो भी भारत को अमेरिका बनाने की सोच रहा है वह पछतायेगा जब यह देखेगा कि भारत तो अमेरिका नहीं बन पाया अलबत्ता अमेरिका जरूर भारत बन रहा है। देश और
समाज के संबंध सरल रेखीय नहीं होते। वहां न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का संबंध भी लगता है तो शिवपालगंज के गंजहों के नियम भी। चंबकत्व के नियम लगते हैं तो जड़त्व का सार्वभौमिक सिद्धांत भी।
भारत के अमरेका बनते ही हो सकता है तमाम लोग किसी ट्रांसपोर्टर की तलाश मे निकल पड़ें कि यार ये दो सौ वर्ग गज का प्लाट ले जाना है। बताओ कै पैसे लोगो। लौटते समय अमेरिका से भारत की ढुलाई मिल जायेगी।
और भी न जाने कित्ते धांसू च फ़ांसू आइडिया दिमाग में हैं लेकिन समय के आगे सब बेकार। समय हमारे काबू में नहीं है। सच तो यह है कि वह किसी के काबू में नहीं है। न भारतीय के हाथ में न अमेरिकी के हाथ में कहा भी है -
पुरुष बली नहिं होत है समय होत बलवान
भीलन लूटी गोपिक वहि अर्जुन वहि बान।

लिखने को तो हम पोथा लिख मारें। पांच बातें कही बताने को हमने दस तो बिना सोचे गिना दीं। आगे कभी लिखेंगे सोचकर तो पचास क्या पचहत्तर ,सौ तक गिना देंगे। और लिखंगे भी आगे कभी। लेकिन मालिक हमको अमेरिका बनने में कौनो दिलचस्पी नहीं है। अपन तो यहीं इंडिया दैट इज भारत में ही चुर्रैट हैं।
और यह भी बता दें कि हम अकेले नहीं हैं। हमारे साथ तमाम लोग हैं, शायद आप भी। अच्छा सच्ची बताओ है कि नहीं। :)

19 responses to “हिंदुस्तान अमरीका बन जाये तो कैसा होगा”

  1. aroonarora
    पक्के फ़ुरसत मे हो जी,पांच कही गई थी खास आपके लिये ही,काहे पहले से ही पता था बाकी तो सारे चाह कर भी लिख नही पायेगे छटवी पर कही अनूप जी को फ़ुरसत मिल गई तो तो पचास से कम कह लिखने बैठेगे,इसी लिये कहा गया था कि बस पाच पर ही लिखे..भाइ हमने तो उपर वाली पांच पढ ली है शेष अगले वाले के लिये रखदी है..:)
  2. संजय बेंगाणी
    के बात है? घणॉं लम्बा लिखग्या.
  3. आलोक
    नंगा के चुतरे मां बिरवा जाम तो नंगा नाचै लाग, सोचिस की छांह होई।
    बिरवा यानी? अपशब्द हो तो इशारे से ही बता दें।
  4. Sanjeet Tripathi
    हा हा, मस्त!!
  5. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    ये किन दो लोगों की पोस्टें हैं? फुरसतिया अब एक्सेण्डेड पीरियड मे लिखेंगे क्या? उनकी पोस्ट – जिसमें कमसे कम 21 बुलेट प्वाइण्ट होते हैं; कब आयेगी. हम तो गलत ब्लॉग पर आगये! :)
    लेकिन ये जो भी दो ब्लॉगर हैं – जुड़वां भाई लगते हैं. लिखते बढ़िया हैं. बस ब्लॉग का नाम ठीक रख लें – “अमुक और तमुक का ब्लॉग”. :) :) :)
  6. kakesh
    तो आप माने नहीं लिख ही दिया. अच्छा है ..अभी हम भी पांच पढ़े हैं …बांकी शाम को.
  7. आलोक पुराणिक
    सरजी अमेरिका बना भारत तो फिर ये मुहब्बतें ना रहेंगी।
    लोग शवयात्राओं मे जाने की फीस मांगेगे।
    इंसान की खोपड़ी में रिप्लेसेबल चिप हो लेगी।
    मौका-मुकाम देखकर बंदा चिप रिप्लेस कर लेगा, और साथ में रिश्ते भी।
    बहूत कुछ होगा जी।
    ये तो उपन्यास का विषय है। इत्ते छोटे में कैसे निपटायें।
    खैर जो हो या न हो, कोई फुरसतिया तो न बचेगा, तो अपने शहर के बुजुर्गों को बहुत संवेदनशील तरीके से याद करेगा।
    पर जो होना है, तो होना है रोईये जार जार क्या, कीजिये हाय हाय क्यूं।
  8. Amit
    फुरसतिया जी आखिर नाम सार्थक न करें ऐसा हो ही नहीं सकता, ही ही ही!! ;)
  9. ज्ञान दत्त पाण्डेय
    पार्ट 2 टिप्पणी:
    अनूप> …ज्ञानीजन जहां मात्र नब्बे साल में हमारी चौथी पीढ़ी को मंच पे ले आये-( पर अनूप IV शुक्ल ने बीचबचाव में कहा है कि किसी भी विवाद को फुर्सत से निपटा लिया जाये)
    हम केवल अपनी कैल्कुलेशन बताने आये हैं. देखें –
    2007 अनूप I अनुगूंज 22 पर. अनूप II दर्जा 5 में, उम्र 10 साल.
    2032 अनूप II अनुगूंज 702 पर. अनूप III का जन्म
    2065 अनूप IV का जन्म – पिता अनूप III और माता मिरण्डा सेबेस्टियेन लोपेज (माया शुक्ल)
    2097 अनूप IV उम्र 32 वर्ष, गिन्नी और सिरिल III के विवाद में जबरन टांग घुसाने का प्रकरण
    अब फुर्सत से ” -/X” कर देखें कि हमारी पोस्ट मेथमेटिकोचित है या नहीं! :)
  10. प्रियंकर
    अपनी अज़ब-गज़ब शैली में जबर्दस्त लिखा है .
    हमें किसी और के जैसा नहीं बनना . हम जैसे भी हैं ठीक हैं . और अगर बेहतर भी होना है तो अपने जीवन मूल्यों और ज़मीन के हिसाब से बेहतर होना है,किसी और की नकल में नहीं .
    और अगर अमेरिका हिंदुस्तान बन गया तो फिर वहां आइन्सटाइन की ‘थियरी ऑफ़ रिलेटिविटी’ की बजाय अपने शिवपालगंज के चक्कीवाले माट्साब का सापेक्षिकता का सिद्धांत चलेगा . रुप्पन बाबू न्यूयॉर्क में क्रिएटिव राइटिंग का (प्रेमपत्र लिखने का) ट्यूटोरिअल खोल लेंगे . छोटे पहलवान लट्ठ की डायनैमिक्स पर व्याख्यान देंगे . और ये जितने भर बुश-क्लिंटन हैं सब बैदजी महाराज से राजनीतिक दांव-पेच सीखने तो आएंगे ही साथ में वीर्यवान होने के आशीष के साथ ‘जीवन-आसव’ को गाढा करने वाला आसव और स्तम्भन वटी लेकर लौटेंगे . मुस्कुराते-लहराते हुए .
  11. श्रीश शर्मा
    भारत के अमरीका बन जाने का एक नुक्सान होगा कि फुरसतिया जी को अब की तरह तब फुरस‌त स‌े लिखने का टाइम न मिलेगा। :(
    बकिया चकाचक। :)
  12. समीर लाल
    अब जब इतना लिख ही दिये थे तो बाकि भी उतार ही देते. काहे मन में दबा गये. मगर अंतिम निष्कर्ष आपका बिल्कुल सही है कि हमको अमेरिका बनने में कौनो दिलचस्पी नहीं है। हम सहमत हूँ इस बात से. लिखे बहुत सही हैं. :)
  13. गरिमा
    लेख बढ़िया है… :) भारत अगर अमेरिका बन जायेगा तो मुश्किल ही मुश्किल .. फिर भारत माँ किसे कहेंगे… अमेरिका माँ तो होता नही हैं ना!!!
  14. नीरज रोहिल्ला
    बहुत अच्छा चित्रण किया है, हमें तो अपने यार लोगों को Translate करके सुनाना पडा, बेचारों की डर के मारे अभी तक घिग्घी बँधी हुयी है । देख लीजिये कहीं अमेरिकी सरकार भारत सरकार से आपकी शिकायत न कर दे कि बेचारे पहले से ही डरे हुये अमेरिकी लोगों को और डरा रहे हो…:-)
    बहुत दिनों के बाद फ़ुरसतिया ट्रेडमार्का बिंदास पोस्ट मिली । मजा आ गया,
  15. अक्षरग्राम » अवलोकन - अनुगूँज २२ - हिंदुस्तान अमरीका बन जाए तो क्या होगा - पाँच बातें
    [...] फ़ुरसतिया जी की प्रविष्टि रद्दी कर दी गई है क्योंकि उन्होंने पाँच के बजाय दस बातें लिख दी हैं। शायद बचपन में भी गाय पर बीस पंक्तियाँ लिखते थे। [...]
  16. swadesh kumar
    badiya time paas hei———–
  17. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] हिंदुस्तान अमरीका बन जाये तो कैसा होग… [...]
  18. चंदन कुमार मिश्र
    वसुधैव कुटुम्बकम् तो है ही सब हमारा है के लिए। अशोक और चाणक्य के नाम से अमेरिकी तो रोने-गाने लगेंगे भाई कि ये ईसा पूर्व कहाँ से आ गये। अन्तिम बिन्दु से लालू का चुटकुला याद आ गया। हाँ, अब गम्भीरता से कह रहे हैं कि कोई भी देश वही रहे। अमेरिका भारत न बने, भारत अमेरिका न बने वरना अस्तित्व और स्वतंत्र पहचान का क्या होगा।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..भगतसिंह नास्तिक और कम्युनिस्ट थे, थे और थे ( भगतसिंह पर विशेष )
  19. ओबामा जीते बवाल कटा
    [...] लोग अमेरिका और भारत की तुलना करते हैं। यह एकदम असमान तुलना है। [...]

2 comments:

  1. हिन्दुस्तान अमेरिका होगा तो लाने होंगे सात-सात भारत जैसे उपनिवेश।भले ही वे मंगल पर हों।

    ReplyDelete
  2. are hammai kauno "amerika" ban-ne ki jaroorat nahi............ib dekha jai "ek modiji'" ke boote hi hum aadha amerika ko "hindustan" banai diye rahe hain.................tapchik post

    ReplyDelete