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जिन्दगी जिंदादिली का नाम है
By फ़ुरसतिया on August 7, 2007
हम बहुत दिन से सुनते आये हैं -जिन्दगी जिंदादिली का नाम है मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं। अलग-अलग समय पर इसका उपयोग करते रहे।
पिछले इतवार को हमने हिंदी दैनिक हिंदुस्तान में एक फोटो-परिचय देखा। फोटो बगल में लगा है। इस फोटो में दिखाये गये व्यक्ति चीन के पेंग शुई लिन हैं। वे एक ट्रक दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गये थे। २० डाक्टरों के टीम ने उनकी जान तो बचा ली, लेकिन उन्हें अपने पैरों को खोना पड़ा। डाक्टरों ने उनके सिर की त्वचा को रोपित करके धड़ को बंद कर दिया। अब वह जीवित तो थे, लेकिन चल नहीं सकते थे। पिछले वर्ष बीजिंग स्थित चाइना रिहैबिलेशन सेंटर के वैज्ञानिकों ने उनके लिये अत्याधुनिक बायोनिक पैरों को तैयार किया। अब पेंग दुबारा चलना सीख रहे हैं।
एक व्यक्ति जिसके शरीर का आधा हिस्सा कट गया हो चलना सीख है। तस्वीर देख कर पेंग की जिजीविषा के बारे में सोचता रहा। इसी के लिये कहा गया है- मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
हमारा एक मित्र है। नोयडा में रहता है। इलाहाबाद में हमसे एक साल जूनियर था। चार साल पहले गाजियाबाद रेलवे स्टेशन में एक ट्रेन दुर्घटना में उसका एक पैर पूरा और दूसरा घुटने से कट गया। बाद में कृत्तिम पैर लगाये गये। फिलहाल वह धीरे-धीरे चलना सीख गया है।
दुर्घटना के कुछ ही दिन बाद मित्र के पिताजी गुजर गये। अब उसकी मां उसकी देखभाल करती हैं।
मित्र का पारिवारिक जीवन ठीक नहीं रहा। पत्नी उससे आजिज आकर काफ़ी पहले मुम्बई चली गयी थी। शायद रिश्ते इस सीमा तक पहुंच गये थे कि दुबारा जुड़ने की सम्भावनायें समाप्त हो गयीं हैं।
पता लगने पर कालेज के मित्रों ने ,जो देश-विदेश में हैं, मित्र के लिये आर्थिक सहायता का भी इंतजाम किया। मिलकर उसकी हौसला आफ़जाई की। हर तरह के सहयोग का आश्वासन दिया।
कुछ दिन हमारा दोस्त अपने कुछ मित्रों के साथ काम करता रहा। व्यस्त रहा। लेकिन मन से वह मजबूत अभी तक नहीं हो पाया है। अक्सर निराश हो जाता है कि अब मेरा जीवन बेकार हो गया।
हम लोग समझाते, बुझाते , हड़काते भी हैं तो उस समय वह ठीक जैसा हो जाता है लेकिन फिर वही ढाक के तीन पात।
गर्मी की छुट्टियों में वह कुछ बच्चों को पढ़ाता रहा। घर बैठे। मन लगा रहा। अब फिर खाली और उदास।
उसकी मां के हौसले की मैं कदर करता हूं। अपने पति को अचानक खो देने के बाद वे अकेली हो गयीं। अब बेटे को संभालती हैं। वे सोचती रहती हैं कि उनके बाद बेटे का क्या होगा।
हम लोग अक्सर अपने दोस्त को समझाते हैं -यार तुम्हारी टांगे ही तो गयी हैं। हाथ और दिमाग तो सलामत हैं। अपना हौसला बढ़ाओ। कुछ करो बालक!
वह हां-हां करता है लेकिन फिर निराश हो जाता है।
तमाम अपाहिज अपंग लोगों के हौसले देखता हूं तो लगता है कि हमारा दोस्त ऐसा क्यों नहीं कर सकता? क्यों कमी है उसके हौसले में।
कोई साथी न होना भी इसका एक कारण है। अकेले में अपने पुरानी समय के बारे में सोचते रहना उसको और निराश कर देता है। काम में व्यस्त रहना भी एक उपचार हो सकता है लेकिन घर बैठे काम मिलने की अभी व्यवस्र्था नहीं हो पायी है। मेकेनिकल इंजीनियरिंग में एक रीजनल इंजीनियरिंग कालेज से पढ़ा लड़का इतना तो दिमाग रखता ही है कि तमाम छुटपुट काम कर सके। लेकिन हौसले की कमी है शायद।
कुछ दोस्त उसको अपने साथ ले गये ताकि वे उसको समझा बुझा सकें, कुछ काम सिखा सकें लेकिन वह फिर निराशा के गर्त में लौट जाता है।
आज ही बात हुयी उससे अभी। घर में था। कुछ काम न होने के कारण तकलीफ़ तो है लेकिन सबसे बड़ी तकलीफ़ मन की है। जब मन ही कमजोर हो तो बाकी सब बेकार हो जाता है।
यह मन की ताकत है जिसकी बदौलत हमारे मामा नंदनजी ७४ साल की उमर में हफ़्ते में दो दिन डायलिसिस करवाने के बावजूद बात करने पर दूसरे का हाल-चाल पहले पूछते हैं। विश्व हिंदी सम्मेलन में भाग लेने के लिये न्यूयार्क तक टहल आते हैं, अक्सर खुद गाड़ी चलाते हैं।
यह सृजनशील मन की ताकत है जो वे परवरदिगार से भी मौज ले सकते हैं-
सब पी गये पूजा ,नमाज बोल प्यार के
नखरे तो ज़रा देखिये परवरदिगार के।
काश मेरे दोस्त को भी यह जज्बा मिल जाता। वह अपने मन को मजबूत कर पाता।
लेकिन अब चूंकि चार साल हो गये उसके पैर कटे तो मुझे लगता है कि वो धीरे-धीरे ठीक हो जायेगा। तन से भी और मन से भी।
लेकिन फिलहाल तो उसके लिये कुछ व्यस्त रहने के लिये बहाना चाहिये। काम की तलाश है।
क्या किया जा सकता है?
मेरी पसन्द
तेरी याद का ले के आसरा मैं कहां -कहां से गुजर गया,
उसे क्या सुनाता मैं दास्तां वो तो आइना देख के डर गया।मेरे जेहन में कोई ख्वाब था उसे देखना भी गुनाह था,
वो बिखर गया मेरे सामने सारा जुर्म मेरे ही सर गया।मेरे गम का दरिया अथाह है, फ़कत हौसले से निबाह है,
जो चला था साथ निबाहने वो तो रास्ते में उतर गया।मुझे स्याहियों में न पाओगे, मैं मिलूंगा लफ़्जों की धूप में,
मुझे रोशनी की है जुस्तजू, मैं किरन-किरन में बिखर गया।
-डा.कन्हैयालाल नंदन
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
हम छोटे छोटे कारणो पर तनाव में आ जाते हैं ।
हादसों के बाद भी ज़िन्दगी को ज़िन्दादिली से जीने वालों की मिसालें बहुत हैं दुनिया में फ़िर भी इनसान बहुत जल्दी धीरज खोता है ।शायद यह परिवेश मे व्याप्त मानसिकता और पालन पोषण की विधि की वजह से है ।किसी अपन्ग को देख दया दिखा “च्च्च्चच..”करने की मनसिकता किसी की हिम्मत तोड देती है ।जब उसे असामान्य माना जाता है तो वह खुद भी इस भ्रम को सच मान कर धैर्य छोड देता है ।
शुक्रिया!!
अच्छा साहित्य भी बहुत काम आ सकता है।
नोएडा जैसी जगह पर काम की कमी नहीं होनी चाहिये अगर इच्छाशक्ति में कमी न हो तो।
फुरसतियाजी बहुत प्रेरक मामला निकाला है।
एक शेर परवाज साहब का भी सुनिये-
हौसला तो देखिए इक फूल का
सर को कांटे से लगाकर, सो गया
आप के मामा (श्री नन्दन जी) जब न्यूयार्क टहलते हुए आये थे तो उन से मुलाकात का सौभाग्य मिला था । अदभुद व्यक्तित्व है उन का । बहुत ही आत्मीयता और स्नेह से मिले ।
उन के विश्व हिन्दी सम्मेलन में हुए कविता पाठ का लिंक भेज रहा हूँ ।
http://www.youtube.com/watch?v=Wx8IlgqaArc
कवि सम्मेलन के और वीडियो यहां पर उपलब्ध हैं :
http://www.vishwahindi.com/videos.htm
आदमी हो तो चलो कुछ कर दिखाओ, क्यो विवशता बेबसी क्या है श्रम के सामने,जो पथिक है धीर है होगी विजय उसकी सदा….
I want to say some thing
dil kare to baharon को मोड़ लें
ye hausala aata hai tab
jab hum apne dil को her dil se jod lein
usko kbhi bhi kmjor nhi mamna chaniye..kyo ki yh jeevan bhgvan ka diya huaa vrdan hain………