Thursday, October 25, 2007

ब्लागरों का उत्साह वर्धन के बहाने मुफ़्त सलाह

http://web.archive.org/web/20140419214550/http://hindini.com/fursatiya/archives/355

ब्लागरों का उत्साह वर्धन के बहाने मुफ़्त सलाह

तमाम् चिट्ठाकारों ने, जिसमें शास्त्रीजी शायद् सबसे आगे होंगे, पहले से लिखने वाले ब्लागरों के कन्धे यह जिम्मेदारी दे रखी है कि वे नये लिखने वालों का उत्साह बढ़ायें। हममें से कुछ् इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा भी रहे हैं।समीरलाल उनमें सबसे प्रमुख हैं। उनके घराने की जब् चर्चा होती है तो उत्साह् बढाऊ अन्दाज होने के कारण वे साधुवाद घराने के माने जाते हैं। हममें से कई के लिये उनका लोगों का उत्साह बढ़ाने का उत्साह काबिले-जलन है। कम से कम हमारे लिये तो है ही। मैं तो यह भी कहता हूं जिस पोस्ट पर समीरलाल का साधुवाद नहीं है वह या तो लिखी नहीं गयी है, या प्रकाशित नहीं है या फिर लोगों को दिख नहीं रही है।
हालांकि समीरजी ने वायदा किया है वे अपने साधुवादी हुनर् का राज् बतायेंगे लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि वे जो भी राज बतायें साधुवाद महाराज वे ही रहेंगे। कुछ् ऐसे ही जैसे कि शास्त्रीजी की बम्पर हिटस की राजबताऊ पोस्ट का मुझे नहीं लगता किसी ने उपयोग कर पाया होगा।
अब् चूंकि तीन साल हमको हो गये पोस्ट ठेलते-ठेलते सो हम मजबूरी में पुरनका ब्लागर हो गये। कुछ लोग इसे वरिष्ठ बलागर के नाम से उचारते हैं। वरिष्ठता का एक् ‘बाई डिफ़ाल्ट्’ फ़ायदा यह होता है कि आप् अपने अनुभव् का तकाजा देकर कोई सी भी ऐंड़ी-वैंड़ी सलाह् उछाल सकते हैं। लोग पसंद करें तो वाह्-वाह्, न करें तो डबल वाह- वाह कि लोग समझदार हो गये हैं।
लोग मानें या न् माने लेकिन् हम् मानते हैं कि आलोक पुराणिक् जितनी अच्छा लेखन् करते हैं उनकी टिप्पणियां उससे अच्छी होती हैं। लेखन तो वे मजबूरी में ,पेट पालने के लिये की जाने वाली नौकरी की तरह, करते हैं लेकिन् टिप्प्णियां मन लगा कर करते हैं। टिप्पणियों में उनका लेखन् खिल-खिल जाता है । तो उनको हम सलाह देना चाहते हैं वे चाहें तो अपना लेखन बंद कर दें या कम कर दें लेकिन अपनी टिप्पणी बढ़ा दें। इससे नये लोगों का उत्साह् भी बढ़ जायेगा और् उनका धांसू च फ़ांसू सृजन कर्म भी सामने आयेगा तथा मन् खुश् होगा। जिस-तिस छात्र की कापी से टीप्-टाप् कर् लेख लिखने से अच्छा है अपनी मौलिक टिप्पणियां करें। :)
इससे उनका वह् ‘इन्द्राना डर्’ ( किसी भी मुनि की तपस्या से सिंहासन् डोलने लगना) निकल् जायेगा जो किसी भी ब्लागर् की अच्छी पोस्ट् आने पर् छलकने लगता है कि हाय हमारा खोमचा कहीं बन्द् न् हो जाये! :)
पाण्डेयजी को लोग् मीका-शीका के नाम् से छीलते रहते हैं। वे जब्-तब् कहते भीं कि हमें छीलना बंद् करें। तो हमारी सलाह् यह् है कि पाण्डेयजी खुद् मीका-शीबा, इना-मिना के बारे में लिखना धक्काड़े से शुरू कर् दें। जब् आप् खुद् ही उनसे जुड़ जायेंगे तो कोई आपकओ जबरियन् जोड़ने का प्रयास् नहीं करेगा। यह् वैसे ही है जैसे कि लोग् उस व्यक्ति की तारीफ़् करना बंद् कर देते हैं जो अपनी तारीफ़् में आत्मनिर्भरता हासिल् कर् लेता है।
नये लोगों के लिये एक् सलाह् यह् है मेरी कि किसी के उत्साह बढ़ाने का इंतजार न करें। अपना उत्साह खुद बढ़ायें। अब् ब्लाग् इतने हो गये हैं कि लोग् जान् ही नहीं पाते कि नया कौन् लेखक् आ गया और् छा गया। एग्रीगेटर की अपनी सीमायें हैं। सुबह् की पोस्ट् दोपहर् तक् दिखती नहीं। अब् ब्लागर् कोई स्कोरर् तो है नहीं कि हर् गेंद् की तरह् हर पोस्ट पर निगाह् रखे। अत: लोग् आपका उत्साह् बढ़ायें इसके लिये जरूरी है कि लोग् जानें कि आपने लिखना शुरू किया है।
लोग् आपके लेखन् के बारे में जानें इसका आज् की तारीख् में सबसे मुफ़ीद् तरीका है कि आप् लोगों के ब्लाग् में जाकर् अपनी टिप्पणियां डाल् आयें। दूसरे के ब्लाग् पर् की गयी टिप्पणियां आपके विजिटिंग् कार्ड् की तरह् होती हैं। लोग् आपके ब्लाग् तक् उन् टिप्पणियों के मालिक् की खोज् में आयेंगे। शुरुआती दिनों में जीतेंन्द्र् ने जब् लिखना शुरू किया तो हर् ब्लाग् पर् जाकर् अपना टिप्पणी कार्ड् छोड़ के आते थे। समीरलाल् को नये ब्लागर् उनके लेखन
बेहतरीन् लेखन् से जानते हैं लेकिन नये ब्लागर् उन तक उनके लेखन के सहारे नहीं बल्कि उनकी टिप्पणियों के माध्यम् से पहुंचते होंगे तो उन्होंने ब्लागरों
की पोस्ट् पर् की होंगी।
नये साथियों को सलाह् है कि अपनी पोस्ट् में दूसरे ब्लागरों की पोस्ट् का लिंक् दें। इससे वे लोग् उन तक् पहुंचेंगे जिनका जिक्र् किया गया है। फिर् और् लोग् भी आयेंगे। जैसे कल् अंकुर् वर्मा ने अपना नया ब्लाग शुरू किया तो अपने ब्लाग् में मेरा, ज्ञानदत्तजी और् नीरज् रोहिल्ला का जिक्र् किया। ट्रैकबैक् से यह् सूचना हम् तक् पहुंची। अब हम उनका जिक्र करें यह् लाजिमी है। इससे उनके ब्लाग के बारे में लोग जानेंगे। लोग् उन तक् जायेंगे, उत्साह् भी बढ़ायेंगे। अनिल् रघुराज् की पोस्ट तक भी हम् कल ट्रैकबैक के सहारे ही पहुंचे।
दूसरों के ब्लाग् पर टिप्पणियां करना कुछ् उसी तरह् है जैसे अपना माल् बेचने के लिये ग्राहक् के दरवाजे जाना। अपना माल् अच्छा है तब् भी ग्राहक् को उसका परिचय् तो शुरू में देना ही होगा तभी वह् दूसरे लोगों के साथ् आप तक् पहुंचेगा।
एक् बेमांगी सलाह् पहले से जमें-जमाये ब्लागरों को भी। जब् आप् दूसरे के ब्लाग् पर् टिपियाते हैं तो लोग् उस् टीप् का पीछा करते हुये आप तक् आते हैं। कुछ् लोग् तो ब्लाग्स्पाट/वर्डप्रेस् पर् थे हैं, हैं और् शायद रहेंगे भी। मेरा मतलब् उन् लोगों से जिन्होंने अभी तक् अपने अड़्ड़े नहीं बदले हैं। जहां लिखना शुरू किया था वहीं हैं जैसे समीरलालजी प्रत्यक्षाजी, ज्ञानदत्तजी आदि-आदि। ये शुरुआत् से ही ब्लागस्पाट् के अपने ब्लागों पर् लिख् रहे हैं। लेकिन् कुछ् लोग् जिन्होंने अपने अड़्डे बदले उनके पते भी बदल् जाते हैं। ताजा उदाहरण् के लिये आलोक् पुराणिक् का ब्लाग् लें। पहले वे ब्लागस्पाट पर् लिखते थे। अब् अपनी साइट् पर् आ गये। लेकिन् टिप्पणयां अभी भी वे अपने पुराने ब्लाग् के नाम् से करते हैं (अपने ब्लागस्पाट् के खाते से )। इससे जो उनकी टिप्पणी देखेगा वह् उनके बंद् हो चुके ब्लागस्पाट् वाले ब्लाग् पर् ही जायेगा। भले ही वह् बाद् में भटकता हुआ आपके ब्लाग् पर आये। लेकिन् अपने ग्राहक् को भटकाना अच्छा नहीं न् होता जी। इसलिये मेरा सुझाव् है कि अगर् आपने अपना पता बदला है तो अपने बदले हुये पते के विवरण् के साथ् ही लागिन् करके टिपियायें। ताकि लोग् आपकी टिप्पणी के सहारे सीधे आपके पास तक् आयें। पाठक्-लीकेज बचाने के लिये यह् उपाय् है।
आलस्य् के कारण और् अक्सर् साथियों के ब्लाग् में सुविधा न् होने के कारण् हालांकि अक्सर हम भी अपने पुराने ब्लाग पते से ही टिप्पणियां करते हैं लेकिन् बेहतर् है कि हम् लोग् अपने नये पते से ही टिप्पणी करें। यहां यह् ख्याल् रखने की बात् है कि तमाम लोग ब्लाग से ज्यादा ध्यान से उसकी टिप्पणियां बांचते हैं।
ये सलाहें बस् ऐसे ही दी गयी हैं। मानने की कोई बाध्यता नहीं है। अपने इस ब्लाग के सूत्र वाक्य -हम् तो जबरिया लिखबे यार्, हमार कोई का करिहै की रक्षा के लिये जैसा सोचा वैसा लिख मारा।

16 responses to “ब्लागरों का उत्साह वर्धन के बहाने मुफ़्त सलाह”

  1. अनिल रघुराज
    आपने तो मज़ाक ही मज़ाक में तमाम बहतरीन बातें कह दीं, हंय! (इसे राजू श्रीवास्तव के अंदाज़ में पढ़ें) अब आगे लोग जानें।
  2. आलोक
    आपके लेख में कुछ अनावश्यक हलन्त नज़र आ रहे हैं। केवल मुझे, या आपको भी?
  3. ज्ञान दत्त पाण्डेय
    दुनियाँ में कई अच्छी नियामतें मुफ्त हैं। पण्डित जी, मैं यह भी कहूंगा कि आपका ब्लॉग भी उन मुफ्त नियामतों में है। भगवान करें यह नियामत शाश्वत रहे!
    (नोट: यह हृदयोद्गार हैं; किसी भी कोण से व्यंग न ढूंढ़ा जाये।)
  4. समीर लाल
    क्या बात कही है गुरुदेव…सब जान लें कि हमारी सारी हरकतें मात्र शुक्ल जी के प्रभाव में हैं…हम तो उनके मार्गदर्शन में ही चलते हैं…अगर हमारा मार्ग उचित लगता हो तो सुकुल जी की सलाह मानें.
  5. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    अच्‍छा लगा पढ़कर,
    आपसे एक बात कहनी है फिर कहूँगा, :)
  6. मीनाक्षी
    अभी तो ऐसा हो रहा है कि बहुत दिनों बाद हमें मौका मिला इतना कुछ पढ़ने समझने का तो चिट्ठाजगत की व्यवहार कुशलता , आचार व्यवहार को जानने मे वक्त लगेगा. मुफ्त के मोती चुगने मे लगे है.. सबका बहुत बहुत धन्यवाद
  7. kakesh
    ज्ञान ले लिया गया.
    कुछ बातें : खोमचा शिफ्ट करने वाले हम जैसे लोगों के साथ समस्या यह होती है की कई बार आपको अपने जी मेल अकाउंट से टिपियाना पड़ता है और तब आपका पाठक आपको खोजते हुए ब्लॉगस्पॉट वाले ब्लॉग में चले जाता है. जैसे अनीता जी गयी ,नीरज गोस्वामी जी गये हमारे पुराने ब्लॉग पर और वहीं टिपिया आये. इसका कोई उपाय हो तो बताया जाय.
    आपकी पोस्टों में ज्ञान जी,आलोक जी और समीर जी लगभग स्थायी रूप से किसी ना किसी बहाने लिंकित रहते ही हैं और बेचारे जीतू भाई उनको आप बिना लिंकित किये कलंकित करते रहते हैं.बेचारों की टांग भी खिचती है और लिंक भी नहीं मिलता.इसका कारण क्या है कुछ नये ब्लॉगर स्प्ष्टीकरण चाहते हैं कि एक वरिष्ठ ब्लॉगर को सबको समभाव से देखना चाहिये. :-)
  8. संजय बेंगाणी
    जी धन्यवाद. सलाह पर अमल करेंगे. टिप्पणीयाँ करते रहें है, अब ज्यादा करेंगे.
  9. alok puranik
    हाय अब तो आप भी खालिस व्यंग्य पर ही फोकस किये हुए हैं,
    हमरा खोमचा बंद हो जायेगा।
    अपनी टिप्पणी और लेखन जिस स्तर का है, वह हम खूब जानते हैं।
    मैंने लेखन के एक उस्ताद से यही पूछा था कि गुरुवर टिप्पणियों पर फोकस करुं, या अपने लेखन पर,
    उन्होने कहा-बेटा ये आप्शन क्यों नहीं पूछते कि इनमें से कुछ भी ना करुं, तो कैसा रहे। वही सबसे अच्छा आप्शन है।
    एक और उस्ताद से पूछा कि गुरुवर टिप्पणी या लेखन।
    वो अनमने भाव से बोले-लेखन पर ही जमे रहो।
    मैंने उत्साह से पूछा-क्या आपने मेरा लेखन देखा है।
    वो निराश होकर बोले नहीं, तुम्हारी टिप्पणियां देखी हैं।
    इन्ही उस्ताद ने मुझे सुझाव दिया कि आप मातृभाषा मराठी भाषा में क्यों नहीं लिखते।
    मैंने फिर उत्साहित होकर पूछा कि क्या आपको मेरा हिंदी का लेखन इत्ता श्रेष्ठ लगता है।
    गुरुवर ने बताया-अबे सारे ऐसी-तैसी सिर्फ हिंदी ही क्यों हो।
    साहबजी, अपना अंदाज है हमकू।
  10. Sanjeet Tripathi
    जबरिया लिक्खै मा ही ज्ञान की बातें बता गए आप तो!!
  11. सागर चन्द नाहर
    मैं भी अक्सर टिप्पणियों पर खास ध्यान देता हूँ, और इससे मुझे कई बढ़िया चिट्ठों का लिंक मिला है।
    हमारी समस्या बड़ी अजीब है, हम वर्डप्रेस पर लिखते हैं और जब टिप्पणी करते हैं तो उसका लिंक देने की कोई सुविधा ब्लॉगर के पास नहीं है। ऐसे मैं पुरानी और बंद पड़ी दुकान पर एक पोस्ट लिख दी है कि भाई नई दुकान यहाँ है; लोग बेचारे घूमघाम कर आते हैं, नई दुकान तक।
  12. Dr. Ajit Kumar
    आप सभी महानुभावों की बातें मैंने गाँठ बाँध ली है. अपने माल को बेचने के लिए जो जद्दोजहद किया जाय ,कम ही है.
  13. मसिजीवी
    हम् मानते हैं कि आलोक पुराणिक् जितनी अच्छा लेखन् करते हैं उनकी टिप्पणियां उससे अच्छी होती हैं।
    लीजिए उन्‍होंने प्रमाण भी दे दिया अपनी टिप्‍पणी से।
  14. फुरसतिया » जीतेंन्द्र, एग्रीगेटर, प्रतिस्पर्धा और हलन्त
    [...] एक पोस्ट में ब्लागरों का उत्साह वर्धन के बहाने मुफ़्त सलाह काकेश भाई ने सवाल किया था-आपकी पोस्टों में ज्ञान जी, आलोक जी और समीर जी लगभग स्थायी रूप से किसी ना किसी बहाने लिंकित रहते ही हैं और बेचारे जीतू भाई उनको आप बिना लिंकित किये कलंकित करते रहते हैं.बेचारों की टांग भी खिचती है और लिंक भी नहीं मिलता.इसका कारण क्या है कुछ नये ब्लॉगर स्प्ष्टीकरण चाहते हैं कि एक वरिष्ठ ब्लॉगर को सबको समभाव से देखना चाहिये. [...]
  15. श्रीश शर्मा
    जय हो फुरसतिया महाराज की, अच्छा ज्ञान बाँटा। सब बातें नोट कर ली हैं, ज्यादातर को हम पहले से आजमाते रहे हैं, आगे से और ध्यान रखेंगे।
  16. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] [...]

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