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ज्ञान जी के कम लिखने के कारण
By फ़ुरसतिया on March 10, 2008
खबर है कि ज्ञानजी ने लिखना कम कर दिया।
लोग पूछ रहे हैं ज्ञानजी लिखते क्यों नहीं?
कह रहे हैं-ज्ञानजी कुछ भी लिखिये, लेकिन लिखते रहिये।
मना रहे हैं-चाहे अपनी ही फोटो लगाइये। हम झेल लेंगे। लेकिन मोबाइल-कला के दर्शन कराते रहिये।
उलाहना दे रहे हैं-ज्ञानजी आप अपने प्रति भले निष्टुर बनें लेकिन हमारे साथ अन्याय करने का अधिकार आपको नहीं है।
आप लिखते नहीं तो मन न जाने कैसा न कैसा करने लगता है।
आलोक पुराणिक जैसे अगड़म-बगड़म चिंतक तो बाकायदे वकील से सलाह ले रहे हैं ताकि वे ज्ञानजी के लेखन में कमी के खिलाफ़ याचिका दायर कर सकें। वकील जबाब नहीं दे रहे हैं क्योंकि फ़ीस के नाम पर आलोक जी उनको केवल यह दिलासा दे रहे हैं कि मल्लिका सहरावत, विपासा बसु, राखी सावंत जैसी महान हस्तियों से वकील साहब का परिचय करा देंगे। वकील साहब इस प्रस्ताव की अहमियत समझ पाने में असफ़ल हैं। अबोध हैं। सो याचिका दायर नहीं हो पायी है।
हमसे भी लोगों ने पूछा। पूछा ही नहीं गम्भीरता से पूछा।बार-बार पूछा। फिर-फिर पूछा। मन नहीं माना तो पुन:-पुन: पूछा। इतना सब हो गया इसके बाद एक बार फिर पूंछा।
हमने हर बार कहा-पाण्डेयजी, लिखेंगे। लिखने से विरत न होंगे। सो उनके लिखना कम करने से दुखी होने वाले लोग अपने दुख के दूसरे कारण तलाशें। कारण बहुत सारे हैं। गिनाना शुरू करेंगे तो पोस्ट फ़ुरसतिया हो जायेगी। नाम पूरे न होंगे। जो कारण छूट जायेगा, बमकने लगेगा। हमको दुखदायी क्यों न माना? क्या कमी रह गयी हममें?
कुछ लोगों ने कहा-तुम हमेशा की तरह हर बात में हेंहेंहें तलाशते हो! वैसे ही जैसे प्रमोद सिंह जी हर पोस्ट में पतित होने का प्रयास करते हैं। इसकी सीरियसनेस मतलब गम्भीरता समझो। कारण तलाशो और बताओ कि ज्ञानजी ने लिखना कम क्यों कर दिया।
हमने कुछ कारण खोजे हैं। सो आपके सामने धर दे रहे हैं। आप इन पर बिना ‘टेन्सनियाये’ विचार करिये और मन करे तो आप भी एकाध कारण गिना दीजिये। बूंद-बूंद करके ही घड़ा भरता है। घड़ा चाहे पाप का हो या कारणों का। ऐसे ही भरता है। सो जो कारण हमने सोचे हैं, विचारे हैं उनका संक्षेप में विवरण यहां पेश हैं। आप फ़रमायें। फ़र्मायें मतलब मुलाहिजा फ़र्मायें। और क्या फ़र्मा सकते हैं इसके अलावा। अगर मुलाहिजा फ़र्माने से बहुतै एलर्जी है तो गौर फ़र्मा लीजिये। इसके अलावा कुछ और फ़र्माने की मनाही है।
तो आइये गिनना शुरू करें। अरे जी गिनती नहीं, कारण। पाण्डेयजी के कम लिखने के चंद कारण।
१. सब पर भारी समीर की सवारी: विश्वस्त सूत्रों और पाण्डेयजी के चलन्तू सन्देश बोले तो एस.एम.एस. से पता चला कि जिस दिन पाण्डेयजी ने स्वामी समीरानंद के दर्शन किये , उनका महकमा बदल गया। पहले ज्ञानजी जिस महकमें में थे उसमें सवारियों के ढोने की जिम्मेदारी थी। जैसे ही ज्ञानजी के ब्लाग पर समीरलाल जी की फोटो के दर्शन रेलवे वालों ने किये वैसे ही उनको ज्ञानजी की क्षमताओं का अंदाजा लगा। उनको लगा कि ज्ञानजी समीरलाल जैसे नाजुक सामान को उसी कुशलता से गन्तव्य तक पहुंचा सकते हैं जिस कुशलता से वे सवारियां पहुंचाते हैं। सो ज्ञानजी का महकमा बदल गया। ज्ञान जी ज्यादा व्यस्त हो गये। सामान ढोने सवारी ढोने के मुकाबले ज्यादा चुनौती पूर्ण काम है सो ज्ञानजी व्यस्त हो गये और इससे उनके लेखन की गति की यह गति हो गयी। गति क्या भाई,दुर्गति हो गयी।
राजधानी एक्सप्रेस मलिहाबाद पसिंजर हो गयी।
२.ईर्ष्या तू न गई इनके मन से : पाण्डेयजी चाहते न चाहते भी एक सिद्ध लेखक के रूप में बदनाम हो रहे थे। इसी के चलते वे उन सारे सद्गुणों का भी अधिग्रहण करते गये जो लेखक होने के चलते होने चाहिये। पाण्डेयजी के ब्लाग को उनके प्रशंसकों ने अपनी नेट प्रैक्टिस का मैदान बना लिया था। आलोक पुराणिक जैसे लोग अपने ब्लाग पर अगड़म-बगड़म पोस्ट ठेलकर सीधे पाण्डेयजी के ब्लाग पर आकर सार्थक लेखन का अभ्यास करते थे। टिप्पणी के बहाने। एक बार करने मन नहीं मानता दुबारा करते। फिर मन नहीं मानता तो बार-बार करते। हालत यह हो गयी कि पाण्डेयजी के ब्लाग पर लोग ब्लाग पढ़ने कम टिप्प्णी पढ़ने ज्यादा आते। जनता जनार्दन के इस तरह के सार्थक लेखन से पाण्डेयजी को अपने लेखन की निर्रथकता का अहसास हुआ होगा। लेखकीय जलन के शिकार होते हुये उन्होंने सोचा कम लिखा जाये। कम से कम हमारे लेखक के कन्धे पर रखकर लोग अपने सार्थक लेखन की बन्दूक तो न चला पायें।
३. सुमुखि-सुन्दरियों की करामात:लोगों को पता ही होगा कि आलोक पुराणिक के राखी सावंत, मल्लिका सहरावत आदि -इत्यादि से कुछ ज्यादा ही बनती है। बनती क्या छनती भी है भाई! उन्होंने ज्ञानजी का नाम भी इस चर्चित हस्तियों से जब-तब जोड़ा।इससे ज्ञानजी असहज होते रहे या ज्यादा सही अगर कहें कि असहजता दिखाते रहे। जब पानी सर से ऊपर हो गया तो लिखना कम कर दिया ताकि लोग उन पर इस तरह के अगड़म-बगड़म आरोप न लगा सकें। वैसे कुछ लोगों का कहना है कि ज्ञान जी का परिचय इन लोगों से करवा दिया आलोक पुराणिक ने , अब ज्ञानजी को ब्लागिंग करने की क्या जरूरत। ये दोनों बातें ही सकती हैं। दोनों ही गलत भी सकती हैं। आप अपनी तरफ़ से छानबीन कर इस पर विश्वास -अविश्वास करियेगा। फ़ैशन के दौर में हमारी बात सही होने की कौनो गारण्टी नहीं है जी।
४.पारिवारिक पोस्ट सारे झगड़े की जड़: सांसारिक गतियों के धुरंधर ज्ञानीजन का मानना है कि ज्ञानजी के ब्लाग पर रीता भाभी की पोस्ट छपने से सारा मामला गड़बड़ा गया। लोगों ने पारिवारिक पोस्ट की इत्ती तारीफ़ कर दी कि ज्ञानजी को आगे खतरे के लक्षण नजर आने लगे। उनको इस बात का आभास हुआ कि आज लोग पारिवारिक पोस्ट की जमकर तारीफ़ कर रहे हैं। कल को लोग कहेंगे-पाण्डेयजी, आप भाभीजी को ही लिखने दीजिये न!आप काहे लिखते हैं!
यही सब चिंतन करके पाण्डेयजी ने अपना लिखना कम कर दिया। बहाना रहेगा-जब खुद अपनी की पोस्ट नहीं लिख पा रहे हैं तो पारिवारिक पोस्ट कहां से लिखेंगे।
कुछ लोगों ने यह भी कहा कि हालांकि ज्ञानजी ने ब्लागिंग में अभी जुम्मा जुम्मा साल भर ही पूरा किया है लेकिन ब्लागिंग के सारे अवगुण उनको चुम्मा देने लगे हैं। वे साल भर की ब्लागिंग में ही मठाधीश बन गये। अपने घर के नवोदित ब्लागर को पनपने नहीं देते।
५.देवर की करामात: अंदर की बात जानने का दावा करने वाले लोग कहते हैं इस मामले के पीछे सारा हाथ अभय तिवारी का है। पता चला कि अभय तिवारी ने ज्ञानजी की शिकायत करते हुये भाभीजी को पत्र लिखा। पहले तो भाभीजी ने सोचा कि ये इन लोगों की आपसी खिचड़ी है। पकाने दो। ध्यान नहीं दिया। इस पर अभय तिवारी ‘ब्लाग अनशन‘ पर बैठ गये। लिखना बन्द कर दिया। होली के मौसम में भाभी देवर को नाराज नहीं कर सकतीं सो कुछ न कुछ किया होगा। क्या हुआ ये हम नहीं बता सकते लेकिन परिणाम सामने है। ज्ञानजी का लिखना कम हो गया, अभय तिवारी कीनयी पोस्ट आ गयी।
६.लफ़ड़ा कापीराइट का: पाण्डेयजी की तमाम पोस्टों में उनके भृत्य भरतलाल के डायलाग जस-के-तस शामिल हैं। (पाण्डेयजी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि आगे ऐसा ही करते रहना में कापीराइट का उल्लंघन न हो जाये। और आप जानते हैं कि जब कोई विचार करता है तो और कुछ नहीं कर पाता ,चाहे वह ब्लागिंग करने जैसा फ़ुरसतिया काम काहे
न हो। लिहाजा ज्ञानजी का लिखना कम हो जाना लाजिमी है।
न हो। लिहाजा ज्ञानजी का लिखना कम हो जाना लाजिमी है।
७.भाषाई प्रदूषण के खतरे: ज्ञानजी ने जब लिखना शुरू किया था तो अंग्रेजी शब्दों को बाउन्सर,बीमर की तरह इस्तेमाल करते थे। सब्जी में आलू की तरह हर पोस्ट में बलभर अंग्रेजी छितरा देते थे। साल भर में ही उनके लेखों में हिंदी और स्थानीय भाषा के शब्दों ने सत्ता संभाल ली। इसका प्रभाव ज्ञानजी के कामकाज में भी अवश्य पड़ा होगा। सरकारी अफ़सर का आत्मविश्वास और रुतबा उसके द्वारा प्रयुक्त अंग्रेजी के समानुपाती होता है। इसीलिये सरकारी अफ़सर सब कुछ छोड़ सकता है, अंग्रेजी नहीं छोड़ सकता। ज्ञानजी दिन-प्रतिदिन के काम-काज में हिंदी के शब्दों की मात्रा बढी होगी और उनके अधिकारियों ने शायद सोचा होगा कि इनके पास इतनी फ़ुरसत है कि हिंदी में लिख-पढ़-बोल-समझ सकते हैं। इसीलिये ज्ञानजी का महकमा बदल गया ,व्यस्तता बढ़ गयी। लिखना कम होना लाजिमी है। ज्ञानजी को लगा होगा कि अंग्रेजी से और संबंध कम न हों जाये इसलिये ब्लागिंग जरा बचा के की जाये।
८.ब्लागिंग ने हाय राम बड़ा दुख दीना: ज्ञानजी के लिये ब्लागिंग बवाले जान बन गयी थी। वैसे भी नींद कम आती है,कभी-कभी रात-रात भर नहीं आती। जब आती है तो कहीं फ़ुरसतिया का फोन आता है-ज्ञानजी,आपने मेरी पोस्ट पढ़ी कि नहीं? कभी शिवकुमार मिसिर कलकत्ता वाले घुमंतू-संदेश(एस.एम.एस) करते हैं-भैया नयी पोस्ट लिखे हैं देखियेगा। सब बड़े रागिया हैं। कहते हैं कि देखिये,देख ली कि नहीं,लेकिन कहने का मतलब है कि आप ऐसे देखें कि लोगों को पता चले कि ज्ञानजी भी देख चुके हैं। मतलब टिप्पणी करिये। अरे पता तो यह भी चला है कि समीरलाल इलाहाबाद सिर्फ़ अपनी उन पोस्टों की सूची देने आये थे जिनमें ज्ञानजी की टिप्पणी नहीं है। इस सबसे आजिज आकर ज्ञानजी अनुरोध करके दफ़्तर में ज्यादा व्यस्तता वाला काम मांगा ताकि व्यस्तता का बहाना बताकर कुछ राहत मिल सके। उधर आलोक पुराणिक ने उनको यह कह कर और डरा दिया है कि उन्होंने अपने अंतरंग संबंधों वाले तमाम मित्रों कों ज्ञानजी के मोबाइल का नम्बर दे दिया है।ज्ञानजी इसीलिये इस मुई ब्लागिंग से पीछा छुड़ाना चाहते हैं ताकि आराम से रह सकें। एक बातचीत में नाम न छापने की शर्त पर आलोक पुराणिक ने बताया कि ज्ञानजी ब्लागिंग से इसीलिये कटना चाहते हैं ताकि सुकून से फोन पर बतिया सकें।
८.ब्लागिंग ने हाय राम बड़ा दुख दीना: ज्ञानजी के लिये ब्लागिंग बवाले जान बन गयी थी। वैसे भी नींद कम आती है,कभी-कभी रात-रात भर नहीं आती। जब आती है तो कहीं फ़ुरसतिया का फोन आता है-ज्ञानजी,आपने मेरी पोस्ट पढ़ी कि नहीं? कभी शिवकुमार मिसिर कलकत्ता वाले घुमंतू-संदेश(एस.एम.एस) करते हैं-भैया नयी पोस्ट लिखे हैं देखियेगा। सब बड़े रागिया हैं। कहते हैं कि देखिये,देख ली कि नहीं,लेकिन कहने का मतलब है कि आप ऐसे देखें कि लोगों को पता चले कि ज्ञानजी भी देख चुके हैं। मतलब टिप्पणी करिये। अरे पता तो यह भी चला है कि समीरलाल इलाहाबाद सिर्फ़ अपनी उन पोस्टों की सूची देने आये थे जिनमें ज्ञानजी की टिप्पणी नहीं है। इस सबसे आजिज आकर ज्ञानजी अनुरोध करके दफ़्तर में ज्यादा व्यस्तता वाला काम मांगा ताकि व्यस्तता का बहाना बताकर कुछ राहत मिल सके। उधर आलोक पुराणिक ने उनको यह कह कर और डरा दिया है कि उन्होंने अपने अंतरंग संबंधों वाले तमाम मित्रों कों ज्ञानजी के मोबाइल का नम्बर दे दिया है।ज्ञानजी इसीलिये इस मुई ब्लागिंग से पीछा छुड़ाना चाहते हैं ताकि आराम से रह सकें। एक बातचीत में नाम न छापने की शर्त पर आलोक पुराणिक ने बताया कि ज्ञानजी ब्लागिंग से इसीलिये कटना चाहते हैं ताकि सुकून से फोन पर बतिया सकें।
९.वैराग्य भाव का उदय: ज्ञानजी में पिछले कुछ दिन से वैराग्य भाव का उदय होता पाया या।गाहे-बगाहे आध्यात्म,चरित्र, संस्कार की बातें करते देखे पाये गये। स्वामी समीरानंद से मिलने खासतौर पर गये। इस तरह की एकरंगी भावनाऒं के चपेटे में आकर उनको संसार-असार और ब्लागिंग बेकार लगने लगी होगी। इसीलिये कुछ किनारा-कन्नी काटना शुरू किया ब्लागिंग से। आलोक पुराणिक जैसे साथी उनकी सात्विक पोस्टों पर नितान्त सांसारिक टाइप की टिप्पणियां करने से बाज न आये। साथियों की इन रंगबिरंगी अदाओं से ज्ञानजी को अपने ब्लाग के चरित्र की रक्षा करने का एक ही उपाय समझ में आया कि लिखना कम किया जाये। इस बारे में आपको पता ही होगा -चरित्र खो गया तो सब कुछ गया हाथ से। सो अपने ब्लाग-चरित्र की रक्षा के लिये उन्होंने लिखना कम कर दिया। कुछ ऐसा समझिये जैसे कुछ लोग कन्याऒं को बदनामी से बचाने के लिये उनको खलाश तक कर देने से नहीं हिचकते।
१०. असली लेखक कोई और है जी: ब्लागिंग की दुनिया बड़ी तेज चलती है। आमतौर पर छापे का लेखक लिखते-लिखते घिस जाता है तब महान माना जाता है। ब्लागिंग में यह होता है कि लेखक साल भर में ही महान बन जाता है। ज्ञानजी के साथ तो यह और भी जल्दी हो गया। महान लेखक और विवाद का चोली-दामन का साथ है।बड़े लेखक के साथ एक आम अफ़वाह नत्थी रहती है कि उनकी रचनायें चोरी की हैं,दूसरे से लिखवायीं हैं। यह इतना कारगर उपाय माना जाता है कि लोग दूसरों के लिखे की चोरी करना शुरू कर देते हैं ताकि लोग महान लेखक कहें। लोगों को लगता है कि उनके और महान लेखक बनने के बीच में केवल उनकी चोरी पकड़े जाने का फ़ासला है। इधर चोरी पकड़ी गयी, उधर महान हुये। सो ज्ञानजी के बारे में भी यह अफ़वाह उड़ी है कि ज्ञानजी अपना ब्लाग किसी दूसरे से लिखवाते थे। लोग बताते हैं कि ज्ञानजी सबेरे-सबेरे अपना मोबाइल लिखने वाले को थमा देते और कहते -जो फोटो आज खींची उसके हिसाब से ब्लाग लिख लाओ। वो लिख लाता, ज्ञानजी पोस्ट कर देते। जिससे लिखवाते थे अब वह लम्बी छुट्टी पर चला गया। इसीलिये ज्ञानजी भी मजबूरन काम में मन लगाने लगे।
११.आरक्षण के मारे नाक में दम: लोगों को पता चल गया है कि ज्ञानजी रेलवे में अधिकारी हैं। लोग गाहे-बगाहे ज्ञानजी से रिजर्वेशन का जुगाड़ करते पाये गये। तमाम लोग तो आरक्षण के लिये ब्लाग बनाते हैं, पाण्डेयजी के ब्लाग पर टिपिताते हैं और कहते हैं ज्ञानजी आपके ब्लाग का नियमित पाठक हूं, रिजर्वेशन करा दीजिये। तमाम ट्रेवेल एजेंन्ट भी पाण्डेयजी के ब्लाग को अपनी रोजी-रोटी के लिये खतरा मानते हैं। रायपुर जाने के लिये फ़ुरसतियाजी ने भी कुछ ऐसा ही जुगाड़ किया। हद्द उस पर यह हर आदमी की तरह उन्होंने भी फ़्री टिकट का जुगाड़ चाहा । इसी आफ़त से बचने के लिये ज्ञानजी अपने ब्लाग पर कुछ दिन के गतिविधियां ठप्प कर दीं।
ये सारे कारण हमने अपने विश्वस्त सूत्रों के हवाले से बताये हैं। हमें पता है आपको भी कुछ कारण पता हैं। हमें उसी सूत्र ने बताये हैं! सो आपका भी मन करेगा बताने का। बता दीजिये। मन में धरके कोई ब्याज नहीं मिलेगा। होली के मौके पर कूड़ा-कबाड़ निकाल दें। जैसे हमने निकाल के ब्लाग पर पटक दिया। आप भी शर्मायें नहीं जी।
आइये,शुरू करिये न! देर करेंगे तो कोई और बता देगा। आप खड़े रह जायेंगे ठगे हुये।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
चलिये फिर दोहरा देते हैं.
अपन ने तो राखी सावंत से भी पूछ लिया कि कहीं ज्ञान जी उधरिच तो बिज़ी नही हो गए हैं
बहुत तलाश में हूं मैं उसकी।
यह जरूर है कि उसके गुम जाने से खाली-खाली लग रहा है। मन होता है कि सच में यूजरनेम और पासवर्ड शिवकुमार मिश्र को थमादें।