http://web.archive.org/web/20140419213059/http://hindini.com/fursatiya/archives/396
मौसम को बूझो मूर्खाधिराज!
By फ़ुरसतिया on March 3, 2008
चिठेरा-चिठेरी संवाद
चिठेरा: हेलो चिठेरी, हाऊ डु यू डू।
चिठेरी:उड़ी बाबा , तू त अंग्रेज हो गवा! तबियत तो ठीक है न!
चिठेरी:उड़ी बाबा , तू त अंग्रेज हो गवा! तबियत तो ठीक है न!
चिठेरा: तबियत तो ठीक है। अपन सुनावो कैसी है। मिजाज कैसा है।
चिठेरी: मिजाज दुरुस्त है। लेकिन ये मौसम बहुत छेड़खानी करता है। सीटी बजाता है।
चिठेरी: मिजाज दुरुस्त है। लेकिन ये मौसम बहुत छेड़खानी करता है। सीटी बजाता है।
चिठेरा: अरे हमारे रहते तुमको कोई और छेड़े ! ई तो हम न होने देंगे। मार जूतन कपाल बजा देंगे।
चिठेरी: कपाल बजाओगे? मौसम का? बहुत बहादुर हो?
चिठेरी: कपाल बजाओगे? मौसम का? बहुत बहादुर हो?
चिठेरा:क कौनो शक है? कौनो ‘सटिकफ़िकेट’ चहिये बहादुरी का? बोलो, बोलो! चुप काहे हो?
चिठेरी:’सटिकफ़िकेट’ नहीं बौड़म ’सर्टिफ़िकेट’ कहा जाता है। कुछ सो सीख लो अंग्रेजी।
चिठेरी:’सटिकफ़िकेट’ नहीं बौड़म ’सर्टिफ़िकेट’ कहा जाता है। कुछ सो सीख लो अंग्रेजी।
चिठेरा: एक बार फिर से कहो न! अच्छा लगता है।
चिठेरी: कित्ती बार कहा अंग्रेजी सुधारने को। हिंदी की तरह ही चौपट है तुम्हारी अंग्रेजी। दोनो पर समान अधिकार।
चिठेरी: कित्ती बार कहा अंग्रेजी सुधारने को। हिंदी की तरह ही चौपट है तुम्हारी अंग्रेजी। दोनो पर समान अधिकार।
चिठेरा: ई वाली बात नहीं। ऊ वाली बात कहो एक बार और!
चिठेरी:कौन वाली? बोलो न! शर्माओ नही।
चिठेरी:कौन वाली? बोलो न! शर्माओ नही।
चिठेरा:एक बार फिर से बौड़म कहो न!
चिठेरी:अरे, बेवकूफ़। सच बार-बार दोहराने से झूठ लगने लगता है। तुम अपना बहादुरी की कहानी सुना रहे थे। कैसे अपने बहादुर समझने का भ्रम पाते हो?
चिठेरी:अरे, बेवकूफ़। सच बार-बार दोहराने से झूठ लगने लगता है। तुम अपना बहादुरी की कहानी सुना रहे थे। कैसे अपने बहादुर समझने का भ्रम पाते हो?
चिठेरा: अरे हम पैदाइसी बहादुर हैं। जिसे कहो उसे गरिया सकते हैं। खुले आम नंग-नाच कर सकते हैं। नंगा होना बहुत बहादुरी का काम है आजकल!
चिठेरी: तेरी मति मारी गयी रे! किसी मनोचिकित्सक को दिखा।
चिठेरी: तेरी मति मारी गयी रे! किसी मनोचिकित्सक को दिखा।
चिठेरा: मनोचिकित्सक बहुत पैसा लेता है। कोई सस्ता इलाज बताओ न!
चिठेरी: भैयाजी को बुलवाते हैं! वे पाद-प्रहार करेंगे तो शायद अकल ठिकाने लग जाये।
चिठेरी: भैयाजी को बुलवाते हैं! वे पाद-प्रहार करेंगे तो शायद अकल ठिकाने लग जाये।
चिठेरा:वे कैसे आयेंगे। वे तो खुदै पटकनी खाये पड़े हैं। मुम्बई में। लेकिन ये बताओ क्या ‘पाद-प्रहार ‘से अकल ठीक हो जाती है?
चिठेरी:जिनके होती है उनकी ठीक हो जाती है। जिनकी नहीं होती उनका दूसरा इलाज किया जाता है?
चिठेरी:जिनके होती है उनकी ठीक हो जाती है। जिनकी नहीं होती उनका दूसरा इलाज किया जाता है?
चिठेरा:सो क्या?
चिठेरी: उनको पटक के धराशायी किया जाता है। इसके बाद उनके गुदगुदी की जाती है। पटकनी का दर्द और गुदगुदी की स्मित के संयोग के दुर्लभ क्षणों का दर्शन लाभ लेने के लिये अकल खिंची चली है। उसी ‘तमाशबीन अकल’ को कब्जिया के दिमाग में भर दिया जाता है। भुस के ऊपर। ‘अकल कोटिंग’ से दिमाग की बैटरी चलने लगती है। टिक-टिक!टिक-टिक!टिक-टिक!
चिठेरी: उनको पटक के धराशायी किया जाता है। इसके बाद उनके गुदगुदी की जाती है। पटकनी का दर्द और गुदगुदी की स्मित के संयोग के दुर्लभ क्षणों का दर्शन लाभ लेने के लिये अकल खिंची चली है। उसी ‘तमाशबीन अकल’ को कब्जिया के दिमाग में भर दिया जाता है। भुस के ऊपर। ‘अकल कोटिंग’ से दिमाग की बैटरी चलने लगती है। टिक-टिक!टिक-टिक!टिक-टिक!
चिठेरा: ये तुम कैसी गहन-गम्भीर बातें कर रही हो? ऐसी गम्भीरता तो समाज सुधारक, क्रांतिकारियों और भ्रांतिजीवियों में भी नहीं पायी जाती। मुझे तो डर लग रहा है।
चिठेरी:तुम क्यों डरते हो? हम हैं न! हम तुम्हारा साथ देंगे। बुद्धिजीवियों की तरह दगा न देंगे।
चिठेरी:तुम क्यों डरते हो? हम हैं न! हम तुम्हारा साथ देंगे। बुद्धिजीवियों की तरह दगा न देंगे।
चिठेरा:सच!
चिठेरी:मुच!
चिठेरी:मुच!
चिठेरा: अच्छा और सुनाओ! मौसम की क्या कह रही थी।
चिठेरी: ये मौसम को बूझो मुर्खाधिराज! कुछ बेवकूफ़ी की बातें करों।
चिठेरी: ये मौसम को बूझो मुर्खाधिराज! कुछ बेवकूफ़ी की बातें करों।
चिठेरा:बेवकूफ़ी की बात करें? मतलब नार्मल हो जायें।
चिठेरी: एक्जैक्टली!
चिठेरी: एक्जैक्टली!
चिटेरा:सोचता हूं काश मैं बूढ़ा होता तो फ़ागुन में तेरा देवर बन जाता।
चिठेरी:अरे तू तो सच में ‘गत-बुद्धि’ बन गया! ‘हत-बुद्धि’ हो गयी मैं तो!
चिठेरी:अरे तू तो सच में ‘गत-बुद्धि’ बन गया! ‘हत-बुद्धि’ हो गयी मैं तो!
चिटेरा:तो क्या करूं! समझ में आता नहीं! भांगड़ा करूं!
चिठेरी:कर। धरती हिला के रख दे। गाना भी गायेगा क्या?
चिठेरी:कर। धरती हिला के रख दे। गाना भी गायेगा क्या?
चिटेरा:न! गाना नहीं। ब्लाग लिखूंगा। ब्लागिंग के मजे ही कुछ और हैं। ब्लागिंग करूंगा!
चिठेरी: तू जा ! कर! मर! जल्दी तर! तेरा दिमाग गया है हर! हरकते ऐसी हैं जैसा कोई भरा पेट खर। तेरे साथ कैसे होगी बसर! मैं चली अपनी डगर!
चिठेरी: तू जा ! कर! मर! जल्दी तर! तेरा दिमाग गया है हर! हरकते ऐसी हैं जैसा कोई भरा पेट खर। तेरे साथ कैसे होगी बसर! मैं चली अपनी डगर!
( चिठेरी फ़ागुनी हवा की तरह लहराती चलती जाती है। चिठेरे के चेहरे पर किसी पिटे हुये बुद्धिजीवी की तरह हवाइयां उड़ रही हैं। चिठेरा उनको सहेज के बोतल में भरता है। उसी को पीकर वह क्रांतिकथायें लिखेगा। उड़ी हुई हवाइयां सड़ जाने पर विचार सुरा बन जाती हैं। ऐसा विजय माल्या जी का ‘बार टेन्डर’ बता रहा था ।)
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
ये अक्ल कोटिंग कहां होती है जी , भविष्य के लिए पता नोट किए लेते हैं ,
बाकी, शिव कुमार सामुदायिक ब्लॉग बना रहे हैं – यह तो हमसे चर्चा तक नहीं की। अलग थलग करने का विचार है शायद!
कम से कम आपका ब्लॉग पढ़ कर ये तो पता चला की होली आ रही है|