http://web.archive.org/web/20140419215608/http://hindini.com/fursatiya/archives/403
आ जा खुश हो लें
By फ़ुरसतिया on March 13, 2008
सुख क्या है?
अचकचाइये नहीं। हम आपसे पूछ रहे हैं इसका मतलब ई थोड़ी कि आपको बताना भी पड़ेगा। हम ही बतायेंगे आपको। आप काहे को जहमत उठायेंगे! सब कुछ हम उठा लेंगे। आप ईजी हो जाइये। हम आपको बताने में बिजी होते हैं।
हां,तो हम पूछे थे कि सुख क्या है?
तो देखिये एक जबाब तो ई हो सकता है कि कहा जाये -सुख एक शब्द है। ‘स’ में ‘उ’ की मात्रा लगा के उसमें ‘ख’ जोड़ देने से बनता है।
अब देखिये हमको आज एकदम अब्भी ये एहसास हुआ कि वर्णमाला की रेलगाड़ी में ‘स’ का डिब्बा काफ़ी पीछे लगता है। देर से दिखता है। ‘द’का डिब्बा पहले होने के कारण लोग में लपक के दुख की बर्थ कब्जिया लेते हैं। भर-जिन्दगी दुखी रहते हैं। आलस्य और हड़बड़ी में उनको ई एहसासै नहीं होता कि जब दुख का डिब्बा लगा तो पीछे सुख का बोगी भी होगा। लोग ई कविता भी भूल जाते हैं- दुख की पिछ्ली रजनी बीच ,विलसता सुख का नवल प्रभात!
सुख देर से दिखता है इसलिये सुखाकांक्षी को इंतजार करना आना चाहिये। थोड़ा आलस्य और जरा सी बेहयायी के साथ ये काम आराम से किया जा सकता है। या फिर आप ‘सुख’ की जगह ‘खुशी’ तलाशें। ‘ख’ से खुशी होने के कारण वह दुख और सुख दोनों से पहले मिल जाती हैं। जल्दी मिलने के अलावा और अच्छाई है कि खुशी हचक के मिलती हैं। कहा भी है- मुझे खुशी मिली इतनी कि दिल में न समाये।
खुश होने के लिये आपको कोलम्बस या वास्कोडिगामा होने का दरकार नहीं है जी कि लिये लंगर बने लफ़ंदर बैठे जहाज के अंदर दुनिया भर में भटकते घूम रहे हैं।ई भी नहीं कि आप कसम खाये हैं कि जबतक सारी दुनिया के लोग खुशहाल नहीं होंगे तब तक आप मुस्कायें भी नहीं। इत्ती बड़ी-बड़ी खुशियां आउट आफ फ़ैशन हो गयी हैं। आजकल तो छोटी-छोटी खुशियों का चलन है। इसीलिये छुटभैये मगन हैं।
ई फ़िलासफ़ी बहुत हो रही है। हम आपको बताते हैं कि कैसे पिछले दो दिन में हमने छोटी-छोटी खुशियां हासिल कीं। कैसे मगन हुये।
रात को हमको मच्छरदानी लगानी थी। हम अभी-अभी करते रहे। करते-करते सो गये। नहीं लगाये तो नहिऐ लगाये। जब लगाये नहीं तो सबेरे हटाने से भी बचे। रात थोड़ा-बहुत मच्छर काटे होंगे। हम इसी में मगन हैं कि बिना मच्छरदानी लगाये भी चैन से सो लिये डबल मेहनत बचा लिये।
सबेरे उठ गये। सोचा चाय बना के ब्लागियाया जाये। देखा अम्मा चाय का कप लिये पधार रही हैं। ‘अरे हम बना लेते! लाओ अच्छा’ उचारते हुये चाय पिये। मौज आ गयी। अब बेटवा से कह रहे हैं यार जरा चाय गर्मा के ले आऒ। ऊ मना त नहिऐ करेगा। लायेगा। चाहे ला के पटक दे। लेकिन पटकेगा नहीं। काहे से कि कल दो मौके मिले उसे हड़काने के तब भी हम उसको हड़काये नहीं। उल्टा पुचकारे। ये अहसान वो भूला नहीं होगा। तो ये भी तो खुश होने का बहाना है।
कल फ़ैक्ट्री में एक जने मिले। हम उनको शक्ल से तो पहचाने लेकिन नाम बिसरा गये। असमंजस इनको रामदयाल कहें कि शिवप्रसाद। इसके बाद ऊ हमारे किसी काम का जिक्र करते हुये तारीफ़ करने लगे। हम काम भी याद न कर पाये। लेकिन हम प्रमुदित च किलकित होते हुये भी चिंतित भी होने लगे। सोचे ये अगले किसी काम की भूमिका है। लेकिन प्रशंसा करके चले गये। हम प्रमुदित च किलकित तो थे ही। खुशी को और बैठा लिया साथ में। बहुत देर साथ रहे। मजा आया।
कल सोचा एक ठो पोस्ट ठेल के ही चैन लेंगे। तमाम टापिक भड़भड़ा के बोले- हमारे पे लिखो। हमें सजाओ। हमें लगाओ। हमें चढ़ाऒ। हम परेशान होने की वाले थे कि हमें भारत की हाकी में शर्मनाक हार सबसे मौजूं लगी और हमने उसी पे एक ठो पोस्ट ठेल दी। देश के सुख से दुखी भी हो गये। खुशी भी मिल गयी कि हम देश के लिये चिंता करने में किसी से पीछे नहीं हैं। यह अपने आपमें खुशी का एहसास है।
और न जाने कित्ते छुटपुट कारण हैं जो आपमें खुशी का संचार कर सकते हैं। यह आपमें है कि आप ‘थ्रेसोल्ड लिमिट’ क्या है? कित्ते में आप मगन मन हो सकते हैं। चहकने वाले तो तो जरा-जरा सी बात पर चहक सकते हैं। महक सकते हैं।
एक व्यंग्यकार इसी में खुश हो जायेगा अगर उसने कोई डायलाग मारा और वो बिना ‘ट्रांसमिशन लास’ के जस का तस समझ लिया जाये।
आप बाजार जायें। धनिया के पैसे दें और मिर्चा आपको दुकानदार मुफ़्त में दे दे आप खुश हो जायेंगे। एक सौ पांच रुपपे का सामान लें। आपके पास एक सौ रुपये नोट है और एक पांच सौ का। आप सोच रहे हैं ई ससुरा पांच सौ का पत्ता अब विदा हुआ।
दुकानदार सौ का नोट लेकर पांच रुपये छोड़ दे। आप खुश हो जायेंगे। शायद यह सोचें भी कि विश्व बैंक भी ऐसे ही करता है क्या?
दुकानदार सौ का नोट लेकर पांच रुपये छोड़ दे। आप खुश हो जायेंगे। शायद यह सोचें भी कि विश्व बैंक भी ऐसे ही करता है क्या?
घर से आप हड़बड़ा के निकल रहे हों। पत्नी स्पीड ब्रेकर सी खड़ी हो जाये और हड़का के कहे- नास्ता करके जाओ। चाहें देर हो या अबेर। ऐसे नहीं जाना है। बच्चे भी उसमें सुर मिलायें। अम्मा भी देखकर मुस्कायें। लगेगा यार, खुश हो जाओ।
बास दफ़्तर में बुलाये। आप चार अधूरे काम के बहाने सोचते हुये जायें। वहां पांचवे के बारे में पूछा जाये जो बहुत पहले हो चुका हो। आप सोचोगे इससे अच्छा और खुशी की क्या बात हो सकती है।
तमाम कारण हैं खुश होने के। आपको खुद खोजने[पड़ेंगे। हम तो खाली इशारा कर सकते हैं।
और कह सकते हैं-
आ जा खुश हो लें।
आ जा खुश हो लें।
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
वैसे मेरे घर में आजकल मक्षिकाएँ बहुत भिनभिना रही हैं।
आपके बरे में ई सूचना भौजाई को है की नहीं जी?
जैसे छोटी-छोटी बातों पर बेवजह मूड ख़राब किया जा सकता है, उसी तरह इत्ती-इत्ती सी बात में ख़ुशी भी पाई जा सकती है.