सेंसेक्स छलिया जीव है, बढ़त-बढ़त घटि जात।
आज छुये आकाश को, कल औंधे मुंह गिरि जात॥
मंहगाई एकल मार्ग है, एक तरफ़ ही जाये।
दुनिया चाहे जो करे, ये केवल बढ़ती जाये ॥
खुशबू निकली फ़ूल से, संगै सखी सुवास,
हमें भगाया फ़ूल ने, करता तितलिन संग परिहास॥
ब्लागिंग में हैं गुन बहुत, सदा कीजिये ब्लाग।
बिनु तबला, ढोलक बिना, बजे क्रांति का राग॥
नर-नर रंग्यो मदन-रंग, सखि अइसन आयो फाग।।
होली तो अभी दूर है आप के ब्लोग पर पहले ही अबीर गुलाल उड़ रहा है
फुरसतिया के दोहरे, ज्यों राखी के नैन
चोट भयी एक मिनट में, टीस उठे दिन रैन
आप मेरे ब्लॉग पर तो आए .
मुझे यकीन है
जो मेरी कविता में आए हैं
वे होली पर भी ज़रूर आएँगे.
या यूँ कहूँ जब वे आएँगे तब होली हो जाएगी.
आपकी निराली शैली को बधाई . . .
लिखो ज़बरिया यार कहा कर लइहे कोई !