Monday, March 31, 2008

…वर्ना ब्लागर हम भी थे बड़े काम के

http://web.archive.org/web/20140419214701/http://hindini.com/fursatiya/archives/445

19 responses to “…वर्ना ब्लागर हम भी थे बड़े काम के”

  1. दिनेशराय द्विवेदी
    जी ठहरते नहीं। उत्तर-उत्तर ध्रुव और धनात्मक-धनात्मक की तरह दूर भागते हैं कहीं भी उतर जाने का खतरा रहता है। चाहें तो मिसर जी आजमा कर देख लें (भाभी के सौजन्य) से।
  2. यूनुस
    हमारी फरमाईश करने की पुरानी और क्रोनिक आदत है ।
    तो अबकी फरमाईश ये है जी कि आप ‘पूछिये फुरसतिया से’ यहीं शुरू कर दें ।
    या फिर एक नया ब्‍लॉग ही जड़ दें ।
    मानना तो पड़ेगा ।
    वरना कानपुरए आकर भूख हड़ताल पे बैठ जायेंगे ।
    ‘ पूछिये परसाई से’ स्‍तंभ पढ़ते पढ़ते बचपन बीता है ।
    ‘वसुधा’ने इसे संकलित किया था । वो अंक हमारा कोई कमबखत दोस्‍त मांग कर ले गया और वापस नहीं किया ।
    फुरसतिया ने ये स्‍तंभ शुरू किया तो सवालों की बौछार देखते ही बनेगी ।
    तो फिर क्‍या इरादा है ।
  3. -----------------------
    अर्द्धनारीश्वर होने के नाते कंप्यूटर चोखेर बाली का मेंबार बन हैं लेकिन उस पर लोग इन केवल फ़ुरसतिया ही करेगे
  4. आलोक पुराणिक
    जमाये रहियेजी।
  5. प्रमोद सिंह
    सामांतर कोश? अरविंद कुमार ने यह कब लिखा? हमें तो समांतर की ख़बर थी..

    आपकी खबर ही सही है। गलती बताने के लिये शुक्रिया।
    :)
  6. संजय बेंगाणी
    आजीतजी, यह विपरीत लिंगी आकर्षण है…मर्द मर्द(ना) की जगह जनाना को…माने धारण करे…अमेरीका थोड़े ही है की कुछ भी चले :)
  7. Gyan Dutt Pandey
    अपने कतिपय जनाने गुणों के आधार पर क्या कम्यूटर चोखेरवाली का सदस्य बन सकता है?
    यह साइट तो खूब लड़ी मर्दानी… वाली है। उसकी सदस्यता का जुझारत्व कम्प्यूटर में शायद ही हो! :-)
    मिश्रा जी के सवाल का जबाब देने में डबल बबाल है।
    वित्त विभाग को जितने भी उत्तर देंगे, उससे दूनी क्वैरी लग कर वापस मिलेंगी। :-)
    लास्टली – फुरसतिया = फुर्र सतिया = फुर्र सती या
  8. जीतू
    क्या याद दिला दिए यार! क्या वो जमाने थे,
    वो सवालो के सिलसिले,वो लाजवाब जवाब
    हमरे कई सारे सवाल अभी भी अनुत्तरित रह गए है, ना मानो तो लिस्ट उठाकर देख लो। फिर से शुरु करो ये सिलसिला, अब ब्लॉगजगत काफी बड़ा हो गया है, सवालों की कमी ना रहेगी।
  9. balkishan
    मिश्रा जी के सवाल का जवाब तो अपन के पास नहीं हैं पर आप जरुर वो सवाल जवाब श्रृंखला यंहा ब्लॉग पर शुरू कर सकते हैं.
    पहला सवाल हम ही करते हैं.
    भगवानदीन आजकल कंहा है?
  10. Sanjeet Tripathi
    हमहूं यही कहेंगे कि इहैं शुरु कर दो न “पुछिए फुरसतिया से”
  11. समीर लाल
    जब इतने लोगों की मांग है तो शुरु कर ही दिजिये. :)
    अखबार भी नहीं निकल रहा बहुत समय से.
  12. नितिन
    “चिरकुट” का मतलब बतायें? यह महान शब्द कब और कैसे इस दुनिया में आया?
  13. vijayshankar chaturvedi
    रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ जी का वह अद्भुत संस्मरण कांतिकुमार जैन साहब ने लिखा था.
    अब यही ‘संस्मरण’ गूगल ट्रांसलितरेशन में बार-बार ‘सन्समरण’ टाइप हो रहा था, किसी तरह दुरुस्त किया है वरना ‘सन्स’ का ‘मरण’ हो जाता!
    शुक्लजी, लगे हाथ ‘रसालजी’ का आनन-फानन में भरी कक्षा के बीच रचा अभिनेत्री नूतन वाला सवैया भी कोट कर देते तो मज़ा आ जाता. हा हा हा!

    हां , विजय शंकरजी मैंने वसुधा में ही कांतिकुमार जैन जी का संस्मरण पढ़ा था रामशंकर शुक्ल ‘रसाल’ के बारे में। नूतन वाला प्रसंग बस याद करके मजा लिया जा सकता है।
    :)

  14. satish yadav
    lage raho fursatiya bhai …:)
  15. anitakumar
    हलकान का अर्थ बताने के लिए धन्यवाद, अब एक मांग पूरी कर दी तो दूसरी फ़र्माइश तो आनी ही है , है न? हमें भी चिरकुट का अर्थ बताइए, एक्जेक्ट अर्थ क्या है,। और आप का वो जुमला “मौज ले रहे हैं”या ज्ञान जी को मौज लेनी नही आती, तो मौज का परफ़ेक्ट मतलब क्या?
    सामांतर कोश जी जानकारी के लिए धन्यवाद, आप के स्तंभ फ़ुरसतिया से पूछो का बेसब्री से इंतजार है, अहम्म! शुरु हो जाइए, हम सुन रहे हैं मतलब पढ़ रहे हैं।
  16. फुरसतिया » पूछिये फ़ुरसतिया से- एक चिरकुट चिंतन
    [...] हमारी पिछली पोस्ट में तमाम लोगों ने आग्रह किया कि हम पूछिये फ़ुरसतिया से शुरू करें। कुछ लोगों ने सवाल भी भेज दिया। जीतेंन्द्र ने पुराने अनुत्तरित सवालों का हवाला दिया है। जैसा कि होता है इस तरह के काम एक तात्कालिक चिरकुटई के तहत ही किये जाते हैं। लोग एकाध सवाल पूछते हैं फिर कोई सवाल पूछता नहीं या जबाब नहीं सूझते। पूछिये फ़ुरसतिया में हमारे सवालों का संपादन देबाशीष करते थे। सौंदर्यीकरण भी उनके पल्ले ही था। देबू कभी व्यक्तिगत सवालों को लिफ़्ट नहीं देने देते थे। एक बार किसी ने सवाल जीतेंन्द्र के बारे में पूछा था। हमने ‘टनाटन’ और ‘चौचक’ जबाब बनाया था लेकिन वह देबू की संपादन के कैंची के नीचे आ गया। चिरकुटई किसी तर्क की भी मोहताज नहीं है। दूसरा भले की कितना अकल की बात करे लेकिन किसी को चिरकुट कहने का सर्वाधिकार चिरकुट की उपाधि देने वाले के हाथ में रहता है। [...]
  17. пpивидeниe
    {Читаю {ваш|этот|} блог, и понимаю, что {ничего|нифига} не понимаю. Все так запутано. :)
  18. Рубен
    Да, на самом деле в этом что-то такое есть. А раньше я был довольно наивен :) Ну что ж – времена изменились :)
  19. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] …वर्ना ब्लागर हम भी थे बड़े काम के [...]


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