http://web.archive.org/web/20101228224544/http://hindini.com/fursatiya/archives/513
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
खराब लिखने के फ़ायदे
1.अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका
ब्लाग पढ़े बिना हजम नहीं होगा तो आप अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना
बंद कर दें। दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।-ब्लागिंग के सूत्र
कल हमने बताना चाहा कि ब्लाग ऐसे लिखा जाता है।
उस पर मिश्रित प्रतिक्रिया रही। कुछ लोग मुद्दे की बाद छोड़ के वर्तनी की खूंटी से लटक लिये। लिंग परिवर्तन पर चर्चा करने लगे। हम हिन्दुस्तानियों में यही अच्छी आदत है। किसी भी मुद्दे की बात की अनदेखी करने, दायें-बायें करने और किसी भी गाड़ी को पटरी से उतारने का हुनर हमें अच्छी तरह आता है। हमें लगता है कि अगर कोई हमें जन्नत में ले जाये तो कहो हम कहने लगें- क्या फ़ायदा ऐसी जन्नत का जहां ससुरी लाइट एक्को मिनट के लिये भी नहीं जाती।
रवि रतलामी और डा. आर्य को भी मजा नहीं आया -अच्छा , ऐसे लिखते हैं ब्लाग! हमें पता ही न था। अच्छा किया आपने बता दिया। उनकी बात का हिंदी अनुवाद है- हुंह बड़े आये हैं हमें ब्लाग लिखना सिखाने वाले। रवि रतलामी तो यह भी कहते पाये गये – हुंह! हमसे ही सीखे कि ब्लाग क्या होता है और हमको सिखा रहे हैं कि ब्लाग कैसे लिखा जाता है!
बहरहाल हम इन बातों से बिचलित-विचलित न होते हुये मुद्दे की बात करते हैं।
हमारा आज का मुद्दा है ब्लाग जगत के सुधी पाठकों को खराब लेखन के फ़ायदे बताने का। सुधी पाठक कौन होगा? ये कोई तय नहीं है लेकिन आप भी हो सकते हैं अगर ये लेख बांच लें।
आपने देखा होगा कि ब्लाग जगत में अच्छा लिखने वालों की रेल-पेल मची है। सब अच्छा लिखते हैं, कुछ लोग बहुत अच्छा लिखते हैं, कुछ लोगों की पोस्ट तो हमेशा सबसे अच्छी होती है। वे इत्ते मजबूर होते हैं सबसे अच्छा लिखने के लिये कि अगर उनको कोई सजा देनी हो तो उनसे कहा जाये कि आप एक खराब पोस्ट लिख के दिखाओ। मेरा दावा है कि उनकी हवा खिसक जायेगी। हलक सूख जायेगा। कुंजी पटल लड़खड़ाने लगेगा। हो सकता है वे मिमियाने भी लगें- भाई मेरे अच्छा लिखता हूं। इसमें मेरा क्या कसूर। सब लोग लिखते हैं। आप हमीं को काहे खराब लिखने के लिये कह रहे हो। इतनी छोटी गलती की इतनी बड़ी सजा न दो।
आप पसीज जाओगे। क्या कहोगे? यही न कि -अच्छा जाओ लिखो। लेकिन खराब लिखने का भी अभ्यास करो। बहुत दिन चल नहीं पाओगे अच्छे लेखन के सहारे।
खराब लिखने के लिये मैं इस लिये कह रहा हूं कि मैं देखता हूं कि ब्लागजगत में खराब लिखने वाले दिखते ही नहीं। शुरुआत से ही लोग अच्छा लिखने के प्रयास में लगे हैं। किसी ने खराब लिखने की संभावनाओं पर विचार ही नहीं किया। भेड़ चाल में अच्छा, बहुत अच्छा, सबसे अच्छा लिखने में लगे हैं।
पहले तो आप बहुत अच्छा और सबसे अच्छा लिखने के नुकसान गिन लें। आपने देखा होगा कि जो लोग सबसे अच्छा लिखते हैं लोग उनके जैसा लिखने की कोशिश करने लगते हैं। आम लोगों में भेड़चाल और नकल की भावना का प्रसार होता है। लोगों में हीनभाव आता है कि -हाय, हम इत्ता अच्छा काहे नही लिख पाते हैं।
कुछ वाकये तो ऐसे हुये कि जहां किसी ने कुछ ’बहुत अच्छा’ सा लिख दिया तहां कोई उसके चरण छूना चाहता है , कोई कहता है- अपनी कलम दे दो, कोई लेखक के हाथ मांगता है, कोई कहता है- काश ये हुनर हमें भी मिला होता। कोई किसी को कवि सम्राट बता देता है, कोई ब्लाग सम्राट, कोई बादशाह कोई कुछ , कोई कुछ। मतलब जिसके मन में जो आता है वो कहके अच्छा लिखने वाले की तारीफ़ करता है। किसी से देर हो गयी तारीफ़ करने में तो वहीं ऐन ब्लाग के ही ऊपर खड़ा होकर ’टिप्पणी माफ़ी’ मांग लेता है- माफ़ करना देर हो गयी टिपियाने में। तमाम लोग इस तरह की बातें कह चुके हैं। ब्लाग अभिलेखागार में इसका ब्यौरा मौजूद है।
इस तरह ये सबसे अच्छा लिखने वाले ब्लाग जगत में गुरुडम, सामन्तवाद , अच्छा -बहुत अच्छा ब्लागरवाद फ़ैलाता हैं। इससे जाने-अनजाने लोगों के आत्मविश्वास में कमी आती है, हीनभावना बढ़ती है। लोग नकलची संस्कृति अपना कर देखा-देखी अच्छा , बहुत अच्छा, सबसे अच्छा लिखने का प्रयास करने में जुट जाते हैं। ये कुछ ऐसे ही है जैसे लोग देखा-देखी दुबले होने के लिये दिन-रात दुबले होते रहते हैं। पेट से पीठ सटाने के लिये हज्जारों रुपये फ़ूंक देते हैं।
एक अच्छी पोस्ट जहां लोगों को चकित, विस्मित और हीनभाव से ग्रसित (हाय हम क्यों न लिख पाये यह) करती है वहीं एक कम अच्छी पोस्ट लोगों में यह विश्वास पैदा करती है कि हम इन लोगों से तो अच्छे हैं। कुछ इस तरह से जैसे कि ओलम्पिक में चीन से पदक की तुलना करने में हीनभाव पैदा होता है लेकिन उन देशों से तुलना करें जो मेडल विहीन वापस गये तो कित्ता मजा आता है। कित्ता हाऊ स्वीट, हाऊ क्यूट लगता है!
इस पर ब्लाग जगत में एक सर्वे भी हुआ। एक बहुत अच्छे ब्लागर के ब्लाग पर एक बहुत अच्छी कविता पोस्ट की गयी। उसमें लोगों की प्रतिक्रियायें आयीं- वाह, बहुत अच्छे, सबसे अच्छे, स्तब्ध हूं पढकर, क्या कहूं शब्द नहीं हैं, ओह क्या लिखा है। मतलब लोगों में उस कविता की अच्छाई को लेकर आतंक का भाव था।
वहीं एक आम ब्लागर के ब्लाग पर एक साधारण सी कविता पोस्ट की। तमाम लोग ने उस पर उससे बेहतर कविता टिपिया दी। मतलब लोगों के मन में उस साधारण सी कविता ने असाधारण आत्मविश्वास का संचार किया और वे उस कविता से जुड़कर वे (कविता के प्यार में) कवि बन गये।
अच्छा लिखने के मुकाबले खराब लिखने के कुछ सहज फ़ायदे यहां बताये जा रहे हैं।
खराब लिखने के फ़ायदे
खराब लिखने से कोई आपसे ईर्ष्या न करेगा। अगर आप जैसा को तैसा के स्वर्ण सिद्धान्त को मानते हैं तो आप भी इस जंजाल से मुक्त रहेंगे।
आप के ऊपर खामखाह का अच्छा लिखने का कोई दबाब न होगा।
आपके अच्छे लेखन की संभवनायें हमेशा बनी रहेंगी। आप जित्ता अच्छा लिखेंगे उसमें सुधार के अवसर उत्ता ही कम होते जायेंगे।
अगर आप खराब लिखते हैं तो बहुमत भले ही ऊपर से आपके साथ न हो लेकिन लोग
आपको अपना जैसा मानते हुये आपके साथ सहानुभूति रखते रहेंगे। अंदरूनी तौर
पर आपकी पार्टी का बहुमत होगा।
ब्लाग जगत में जब किसी को कोसने-उलाहना देने का मन होता है तो सबसे
पहले अच्छा लिखने के लिये बदनाम लोगों से शुरुआत होती है। ये मठाधीश हमारे
यहां टिपियाते नहीं। अपने को तीसमार खां समझते हैं। खराब लिखते ही आप पर
इसका डर खतम हो जाता है।
अगर आप अच्छा लिखते हैं तो लोग आपसे अपना समूह ब्लाग ज्वाइन करने के
लिये कहेंगे, लेख मांगेंगे और न जाने क्या-क्या काम बतायेंगे। आप अगर खराब
लिखने का अभ्यास कर लेंगे तो इस सब चोचलों से दूर रहेंगे।
अगर आप अच्छा लिखते हैं तो आप एक खराब लिखने वाले के मुकाबले अपने को
श्रेष्ठ मानने लगेंगे। आपकी गरदन में बढि़या लेखन स्पांडलाइटिस हो सकता है।
गरदन अकड़ी रह सकती है।
अगर आप मेरी बात से सहमत हैं तो खराब लेखन के बारे में गम्भीरता से
सोचिये। आज नहीं तो कल आपको इस तरफ़ आना ही पड़ेगा। जो काम कल करना है वो आज
क्यों न करें।
आपको अगर अच्छा लिखने की ही आदत पड़ी है और आप जानते नहीं हैं कि एक खराब पोस्ट कैसे लिखी जाती है तो नमूने के लिये इस पोस्ट से सीख ले सकते हैं। इसी तरह आप और बेहतर खराब पोस्ट लिख सकते हैं।
खराब लिखना मुश्किल है लेकिन असम्भव नहीं। एक बार सच्चे मन से प्रयास तो करें।
उसके साथ मरते हैं
बहुत सारे लोग
थोड़ा-थोड़ा!
जैसे रोशनी के साथ
मरता है थोड़ा अंधेरा।
जैसे बादल के साथ
मरता है थोड़ा आकाश।
जैसे जल के साथ
मरती है थोड़ी सी प्यास।
जैसे आंसुओं के साथ
मरती है थोड़ी से आग भी।
जैसे समुद्र के साथ
मरती है थोड़ी धरती।
जैसे शून्य के साथ
मरती है थोड़ी सी हवा।
उसी तरह
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
इसीलिये मृत्य
जिजीविषा से
बहुत डरती है।
डा.कन्हैयालाल नंदन
इससे बढिया भी कुछ मिला?
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे।-ब्लागिंग के सूत्र
उस पर मिश्रित प्रतिक्रिया रही। कुछ लोग मुद्दे की बाद छोड़ के वर्तनी की खूंटी से लटक लिये। लिंग परिवर्तन पर चर्चा करने लगे। हम हिन्दुस्तानियों में यही अच्छी आदत है। किसी भी मुद्दे की बात की अनदेखी करने, दायें-बायें करने और किसी भी गाड़ी को पटरी से उतारने का हुनर हमें अच्छी तरह आता है। हमें लगता है कि अगर कोई हमें जन्नत में ले जाये तो कहो हम कहने लगें- क्या फ़ायदा ऐसी जन्नत का जहां ससुरी लाइट एक्को मिनट के लिये भी नहीं जाती।
रवि रतलामी और डा. आर्य को भी मजा नहीं आया -अच्छा , ऐसे लिखते हैं ब्लाग! हमें पता ही न था। अच्छा किया आपने बता दिया। उनकी बात का हिंदी अनुवाद है- हुंह बड़े आये हैं हमें ब्लाग लिखना सिखाने वाले। रवि रतलामी तो यह भी कहते पाये गये – हुंह! हमसे ही सीखे कि ब्लाग क्या होता है और हमको सिखा रहे हैं कि ब्लाग कैसे लिखा जाता है!
बहरहाल हम इन बातों से बिचलित-विचलित न होते हुये मुद्दे की बात करते हैं।
हमारा आज का मुद्दा है ब्लाग जगत के सुधी पाठकों को खराब लेखन के फ़ायदे बताने का। सुधी पाठक कौन होगा? ये कोई तय नहीं है लेकिन आप भी हो सकते हैं अगर ये लेख बांच लें।
आपने देखा होगा कि ब्लाग जगत में अच्छा लिखने वालों की रेल-पेल मची है। सब अच्छा लिखते हैं, कुछ लोग बहुत अच्छा लिखते हैं, कुछ लोगों की पोस्ट तो हमेशा सबसे अच्छी होती है। वे इत्ते मजबूर होते हैं सबसे अच्छा लिखने के लिये कि अगर उनको कोई सजा देनी हो तो उनसे कहा जाये कि आप एक खराब पोस्ट लिख के दिखाओ। मेरा दावा है कि उनकी हवा खिसक जायेगी। हलक सूख जायेगा। कुंजी पटल लड़खड़ाने लगेगा। हो सकता है वे मिमियाने भी लगें- भाई मेरे अच्छा लिखता हूं। इसमें मेरा क्या कसूर। सब लोग लिखते हैं। आप हमीं को काहे खराब लिखने के लिये कह रहे हो। इतनी छोटी गलती की इतनी बड़ी सजा न दो।
आप पसीज जाओगे। क्या कहोगे? यही न कि -अच्छा जाओ लिखो। लेकिन खराब लिखने का भी अभ्यास करो। बहुत दिन चल नहीं पाओगे अच्छे लेखन के सहारे।
खराब लिखने के लिये मैं इस लिये कह रहा हूं कि मैं देखता हूं कि ब्लागजगत में खराब लिखने वाले दिखते ही नहीं। शुरुआत से ही लोग अच्छा लिखने के प्रयास में लगे हैं। किसी ने खराब लिखने की संभावनाओं पर विचार ही नहीं किया। भेड़ चाल में अच्छा, बहुत अच्छा, सबसे अच्छा लिखने में लगे हैं।
पहले तो आप बहुत अच्छा और सबसे अच्छा लिखने के नुकसान गिन लें। आपने देखा होगा कि जो लोग सबसे अच्छा लिखते हैं लोग उनके जैसा लिखने की कोशिश करने लगते हैं। आम लोगों में भेड़चाल और नकल की भावना का प्रसार होता है। लोगों में हीनभाव आता है कि -हाय, हम इत्ता अच्छा काहे नही लिख पाते हैं।
कुछ वाकये तो ऐसे हुये कि जहां किसी ने कुछ ’बहुत अच्छा’ सा लिख दिया तहां कोई उसके चरण छूना चाहता है , कोई कहता है- अपनी कलम दे दो, कोई लेखक के हाथ मांगता है, कोई कहता है- काश ये हुनर हमें भी मिला होता। कोई किसी को कवि सम्राट बता देता है, कोई ब्लाग सम्राट, कोई बादशाह कोई कुछ , कोई कुछ। मतलब जिसके मन में जो आता है वो कहके अच्छा लिखने वाले की तारीफ़ करता है। किसी से देर हो गयी तारीफ़ करने में तो वहीं ऐन ब्लाग के ही ऊपर खड़ा होकर ’टिप्पणी माफ़ी’ मांग लेता है- माफ़ करना देर हो गयी टिपियाने में। तमाम लोग इस तरह की बातें कह चुके हैं। ब्लाग अभिलेखागार में इसका ब्यौरा मौजूद है।
इस तरह ये सबसे अच्छा लिखने वाले ब्लाग जगत में गुरुडम, सामन्तवाद , अच्छा -बहुत अच्छा ब्लागरवाद फ़ैलाता हैं। इससे जाने-अनजाने लोगों के आत्मविश्वास में कमी आती है, हीनभावना बढ़ती है। लोग नकलची संस्कृति अपना कर देखा-देखी अच्छा , बहुत अच्छा, सबसे अच्छा लिखने का प्रयास करने में जुट जाते हैं। ये कुछ ऐसे ही है जैसे लोग देखा-देखी दुबले होने के लिये दिन-रात दुबले होते रहते हैं। पेट से पीठ सटाने के लिये हज्जारों रुपये फ़ूंक देते हैं।
एक अच्छी पोस्ट जहां लोगों को चकित, विस्मित और हीनभाव से ग्रसित (हाय हम क्यों न लिख पाये यह) करती है वहीं एक कम अच्छी पोस्ट लोगों में यह विश्वास पैदा करती है कि हम इन लोगों से तो अच्छे हैं। कुछ इस तरह से जैसे कि ओलम्पिक में चीन से पदक की तुलना करने में हीनभाव पैदा होता है लेकिन उन देशों से तुलना करें जो मेडल विहीन वापस गये तो कित्ता मजा आता है। कित्ता हाऊ स्वीट, हाऊ क्यूट लगता है!
इस पर ब्लाग जगत में एक सर्वे भी हुआ। एक बहुत अच्छे ब्लागर के ब्लाग पर एक बहुत अच्छी कविता पोस्ट की गयी। उसमें लोगों की प्रतिक्रियायें आयीं- वाह, बहुत अच्छे, सबसे अच्छे, स्तब्ध हूं पढकर, क्या कहूं शब्द नहीं हैं, ओह क्या लिखा है। मतलब लोगों में उस कविता की अच्छाई को लेकर आतंक का भाव था।
वहीं एक आम ब्लागर के ब्लाग पर एक साधारण सी कविता पोस्ट की। तमाम लोग ने उस पर उससे बेहतर कविता टिपिया दी। मतलब लोगों के मन में उस साधारण सी कविता ने असाधारण आत्मविश्वास का संचार किया और वे उस कविता से जुड़कर वे (कविता के प्यार में) कवि बन गये।
अच्छा लिखने के मुकाबले खराब लिखने के कुछ सहज फ़ायदे यहां बताये जा रहे हैं।
आपको अगर अच्छा लिखने की ही आदत पड़ी है और आप जानते नहीं हैं कि एक खराब पोस्ट कैसे लिखी जाती है तो नमूने के लिये इस पोस्ट से सीख ले सकते हैं। इसी तरह आप और बेहतर खराब पोस्ट लिख सकते हैं।
खराब लिखना मुश्किल है लेकिन असम्भव नहीं। एक बार सच्चे मन से प्रयास तो करें।
मेरी पसन्द
मरने में मरने वाला ही नहीं मरताउसके साथ मरते हैं
बहुत सारे लोग
थोड़ा-थोड़ा!
जैसे रोशनी के साथ
मरता है थोड़ा अंधेरा।
जैसे बादल के साथ
मरता है थोड़ा आकाश।
जैसे जल के साथ
मरती है थोड़ी सी प्यास।
जैसे आंसुओं के साथ
मरती है थोड़ी से आग भी।
जैसे समुद्र के साथ
मरती है थोड़ी धरती।
जैसे शून्य के साथ
मरती है थोड़ी सी हवा।
उसी तरह
जीवन के साथ
थोड़ा-बहुत मृत्यु भी
मरती है।
इसीलिये मृत्य
जिजीविषा से
बहुत डरती है।
डा.कन्हैयालाल नंदन
आगे से ध्यान रहेगा कि क्या करेँ क्या ना करेँ –
As Shakespear said,
” To be or not to be” )
- लावण्या
- लावण्या
नुसताच ख़राबेस्ट का राड़ा शुरू हो जाएंगा. सबके वांदे लग जाएंगे.
हे प्रभु, हे दीनबंधु ( ई जो सामने कैलेंडर में से थप्पड़ दिखाते हुये मुस्की मार रहे हैं, उनके लिये )
ये हमारे हाथों क्या हो गया ? राम रे राम..
अपनी समझ में एक धंस्सउवल्ल पोस्ट तैयार कर के तकिया के नीचे रख के खुसी खुसी सोवे गये । पोस्ट इतना दमदार होय गवा कि रात में दुईये बजे ठेल के उठा दिहिस.. कि पहले हम्मैं ठेलो फिर चैन से बेचैनी की नींद सोओ, अबकी बार टिप्पणी न गिनना, अपनी ही टोक लग जाती है ।
सो, हरि इच्छा मान ठेलन आये..
आये थे हरि भजन को पढ़न लागै ब्लाग… पढ़न लागै ब्लाग वहू गुरु फ़ुरसतिया की
’अहमक’ कविराय करी पोस्ट की फ़ुरसत…बेदम पड़ा कराहे,करे ऊ बप्पा दैय्या की
अउर अब…
चिंता ये है कि घाट से तो गये ही
रात भर क्या किया, पंडिताइन को क्या बतावेंगे
सो, समझो सबेरे घर से भी गये
न घर के न घाट के..
उधर इलाहाबादी न हुआ सगा
इधर कनपुरिया ने भी ठगा
ऐसा कलम लें, तब तो लिखें।
कविता बहुत ही अच्छी है. शुक्रिया.
आप महान हैं , आप के बड़े- बड़े कान हैं.
आप ब्लॉग जगत के हाथी के समान हैं.
खराब लिखने के फ़ायदे तो आपने बता दिए।
अब सुनिए बिलकुल नहीं लिखने के फ़ायदे:
१)आपका अमूल्य समय बच जाएगा
२)पाठकों का और भी अमूल्य समय बच जाएगा
३)आपको विषय की तलाश नहीं करनी पढ़ेगी। चुप्पी के लिए विषय की आवश्यकता नहीं है।
४)ब्लॉग्गरों की मच्छरों से भी ज्यादा बढ़ती आबादी में कमी होगी और सारे संसार को राहत मिलेगी
५)हम टिप्पणीकारों का भी समय बच जाएगा
६)हम टिप्पणीकारों को शिष्टाचार के जाल में फ़ँसकर, लेख की झूठी प्रशंसा नहीं करनी पढ़ेगी
७)प्रिंट मीडिया वाले संतुष्ट होंगे, (आखिर पढ़ने वाले उनके छपे लेख फ़िर से पढ़ने लगेंगे)
८)आप जैसे पुराने, स्थायी, अडियल ब्लॉग्गर मित्रों के पाठकों की गिनती में कोई कटौती नहीं होगी और आप चैन की साँस ले सकेंगे
९)दफ़तर में काम लिए अधिक समय निकाल सकेंगे और बॉस खुश रहेंगे और तरक्की होगी
१०)अपने keyboard पर wear and tear कम होगा
११)अंतरजाल पर और अपने कंप्यूटर पर disk space बच जाएगा
१२)Internet traffic कम होगी और सबको इससे राह्त मिलेगी
१३)hits गिनने में या उसकी गिनती में कमी पर चिन्ता से मुक्त हो सकते है
१४) क्या कोई मेरा यह ब्लॉग पढ़ेगा भी? क्या कोई टिप्पणी करेगा? आधी रात को यह सब सोचते सोचते अपनी नींद हराम करके कंप्यूटर ऑन करके चेक करने की आवश्यकता नहीं पढेगी
१५)क्या मैं वाकई अच्छा लिख सकता हूँ जैसा मेरे ब्लोग्गर मित्र कह रहे हैं ? स्कूल और कोलेज में मेरे शिक्षकों को यह क्यों पता नहीं चला था? इतने कम नम्बर क्यों देते थे ? ऐसे प्रश्नों से जूझने नहीं पढेंगे
१६)आजकल ब्लॉग लिखने वाले ज्यादा और ब्लॉग पढ़ने वाले कम हैं। Demand & Supply position का खयाल रखकर लिखना छोड़ देना ही बेहतर है
१७)टीवी पर आजकल इतने अच्छे अच्छे और उपयोगी Ads देखने के लिए समय मिल जाएगा
१८)पान पराग, बनारसी पान, Wills Filter और Johny Walker/Diplomat वगैरह और गली की अपने पुराने यारों के संग गप शप लडाने या रम्मी खेलने के लिए खोया हुआ समय वापस मिल जाएगा
१९)डाइनिंग टेबल पर भोजन / नाश्ते के लिए जब हैरान पत्नि का बुलावा आता है तो यह “अभी दो मिनट में आया ” का झूठ नहीं बोलना पढेगा
२०)घर में इतना सारा काम जो बाकी पढ़ा है, उसके लिए समय निकाल सकेंगे
२१)बीवी खुश रहेगी और आपका विवाहित /पारिवारिक जीवन सुखद रहेगा
एक बात बताये आप ये रोज रोज खुराफ़ाति आइडिया कहां से जुटा लाते है। अब कोई आप की कलम मांग रहा है तो कोई गब्बर बना हाथ मांग रहा है। लगे हाथों हम भी डिमांड कर ही डालते हैं हमें तो जी रोज एक ऐसा फ़ड़कता धांसू आइडिया दे दिया किजिए
मरने में मरने वाला ही नहीं मरता
उसके साथ मरते हैं
बहुत सारे लोग
थोड़ा-थोड़ा!
waah
हिन्दी इन्टरनेट
हिन्दी भाषा में उपलब्ध सूचनाओं व सेवाओं की जानकारी :
तेजी से लोकप्रिय होती हुई सेवा !
एक बार अवश्य चेक करें |
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इतना ढेर सारा ज्ञान तो सारी उम्र में नही मिला
जितना यहाँ आकर तुंरत मिल गया ! इतने ज्ञान से
हमारी तो खुपड़िया उंची हो गई है ! और सारा टेंसन
ख़त्म ! बुजुर्ग सही कह गए हैं की गुणी जनो की
संगत करो ! हम भी इतने सालो कहाँ भटकते रहे ?
देर आयद दुरुस्त आयद !
खैर अच्छी चीज जब समझ में आ जाए तभी ठीक …अब देखिये हमारे चिठ्ठे में कैसे आते हैं लेख पर लेख
Pranam.
अब हमें जीवन के सभी पहलुओं में अपने लाभ का जायजा लेना चाहिए। न केवल ब्लॉग लिखने या न लिखने में । बच्चों को अब परीक्षा छोड़ना अच्छा लगता है । यह पेड़ बचा सकता है । कैसे सच!
Ps: This is the best I could produce using Google Translate and cutting n pasting letter by letter to correct it!! So very cumbersome!!!
नंदा
http://ramblingnanda.blogspot.com
http://remixoforchid.blogspot.com
नंदन जी की कविता लाजवाब है
” बहुत अच्छा लिखतें आप सबसे बडे ब्लॉगर हैं ; आप तो ब्लागरों के शिखर हैं ” धन्य धन्य भाsssss ग हम [आरे]!!!!
नमस्कार
आपके द्बारा लिखा गया बहुआयामी आलेख से हर शख्स
अपने हिसाब से फायदा उठा लेगा. उसकी अपनी मर्जी है.
नन्दन जी की रचना भी अच्छी है.
आपका
विजय तिवारी ” किसलय ”
नमस्कार
आपके द्बारा लिखा गया बहुआयामी आलेख से हर शख्स
अपने हिसाब से फायदा उठा लेगा. उसकी अपनी मर्जी है.
नन्दन जी की रचना भी अच्छी है.
आपका
विजय तिवारी ” किसलय “
“हाय मैं गिरिजेश राव जैसा क्यों नहीं लिख पाता हूं । (जलने की बू)”