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rowse: Home / पुरालेख / जीतेंन्द्र चौधरी के जन्मदिन पर एक बातचीत
हिंदी ब्लागजगत के शुरुआती दिनों में कुछ ब्लागरों ने लोगों को ब्लाग से संबंधित जानकारी देने का काम बहुत मेहनत से किया। आलोक कुमार , देबाशीष, रविरतलामी, पंकज नरूला पहले से सक्रिय थे। इसके बाद सितम्बर 2004 में मैदान में उतरे जीतेंन्द्र चौधरी।
इनहोंने अपने सक्रियता, लेखन और नये-नये आइडिया उछालने में सबको पीछे छोड़
दिया। सबसे केवल एक मेल भर की दूरी पर रहते। न जाने कित्ते लोगों के ब्लाग
की सेटिंग इन्होंने की, टेम्पलेट बनाये, तकनीकी सलाहें दीं। नये-नये आइडिया
देते हुये ये चिंता नहीं की इन्होंने कि आइडिया सफ़ल होगा या असफ़ल!
जीतेंन्द्र के इसी सक्रियता के बारे में कभी लिखते हुये मैंने लिखा था था:
अपनी पोस्ट नींद न आये तो आजमायें में जीतेंन्द्र ने हमसे मौज ली। नींद लाने के उपाय बताते हुये उन्होंने लिखा:
न जाने कित्ते किस्से हैं जीतेंन्द्र के। हम लगभग एक्के साथ ब्लागिंग के मैदान में कूदे। न जाने कित्ते झाम किये साथ-साथ। न जाने कित्ते झगड़े हुये जीतेंन्द्र के। देबाशीष, ई-स्वामी, अतुल और भी तमाम लोगों से। लेकिन जहां सबको झगड़ा खतम करने के लिये उपदेश देने का प्रयास करें तहां पता लगा कि सब मिलके किसी तकनीकी प्रोजेक्ट में सर भिड़ा रहे हैं। हम हमेशा सर पीटते रहे- इनके झगडों में स्थायित्व नहीं है। न जाने कित्ते किस्से हैं। सब लिखने बैठें तो जीतेंन्द्र का अगला हैप्पी बड्डे आ जायेगा।
आज जीतेंन्द्र चालीस साल के हो गये। कहा जाता है कि चालीस साल के बाद नटखट हो जाता है। इस लिहाज से तो ये नाटी बच्चा चालीस साल है।
कुछ सवाल-जबाब जो हमारे और जीतेंन्द्र में हुये वो यहां दिये जा रहे हैं। नीचे जीतेंन्द्र से संबंधित पोस्टें दी जा रही हैं। आप अगर इनको पढ़ेंगे तो देखेंगे कि पिछले चार सालों के ब्लागिंग के न जाने कित्ते किस्से आपको पढ़ने को मिलेंगे इससे आप अंदाजा लगा सकेंगे कि आज हिंदी ब्लागिंग किन-किन गलियों से होकर यहां तक पहुंची है।
चालीस साल की उमर होने पर यूं तो चालीस सवाल पूछने चाहिये। पूछ भी सकते हैं। लेकिन जीतेंन्द्र की सक्रियता हमें इसके लिये मना करती है। उनकी उछल कूद के अंदाज देखते हुये वो अपनी उमर से कम से कम दस साल कम तो लगते ही हैं।
जीतेंन्द्र को उनके जन्मदिन के अवसर पर अपने पूरे मन से शुभकामनायें देते हुये उनसे हुये सवाल-जबाब यहां दिये जा रहे हैं।
जीतेंन्द्र दोस्तों की नजर में
सवाल:सितम्बर में जन्म लेने वाले लोग आम तौर पर कलाकार होते हैं। तुम अपवाद कैसे हो?
जबाब:गलतियां हर जगह होती है, ऊपर वाले के कम्प्यूटर मे भी वायरस आ गया होगा, तभी तो हमे ला पटका इधर। वैसे कलाकार हम भी कम नही है, लेकिन क्या है पारखी नज़रों की तलाश है बस।
सवाल:कभी तुम एक मेल की दूरी पर रहते थे। अब ईद के चांद हो गये दिखते नहीं क्या बात है?
जबाब:अब का करें, कम्पनी ने बाजा बजा रखा है। रोजी रोटी का सवाल है। फिर ब्लॉगिंग ब्लॉगिंग खेल कर भी थक से गए थे, फार ए चेंज, कुछ कम्पनी का काम करने मे कोई हर्जा तो है नही।
सवाल:ब्लागिंग के झंझट में कैसे फ़ंस गये?
जबाब:एल्लो! अब हमको फंसा कर बोलते हो कि कैसे फंस गए। अब अपने ब्लॉग पर इल्लम पिल्लम लिखे थे तुम, हमको जँच गया। वो कहते है ना खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है, फिर एक कानपुरी को देखकर दूसरा कानपुरी ना बदले, ऐसा कैसे हो सकता है भला। इसलिए हमने भी देखा देखी दुकान खोल ली। जो चल निकली।
सवाल:ये फ़ु्रसतिया तुम्हारी इत्ती खिंचाई काहे करते हैं? उनको और कोई काम नहीं है?
जबाब:कोई काम होता तो करते ना। कट्टे बना बना कर, जो टाइम मिलता है दूसरों की खिंचाई मे बिताते है। आजकल विरह रोग से पीड़ित है। वैसे हम आजकल बचे हुए है, वजह, फुरसतिया आजकल रेलवे वाले अफ़सरों (शिव/ज्ञान बाबू) के पीछे पड़े है।
सवाल: एक बार तुम बता रहे थे
कि फ़ु्रसतिया अमेरिकन व्हाइट हाउस की किसी कन्या से देर तक बतियाते हैं
जबकि फ़ुरसतिया का कहना है कि वो लड़की कोई और नहीं जीतेंन्द्र ही थे! सच
क्या है?
जबाब: अब लोगों से मन की बात जानने के लिए कुछ अलग करना ही पड़ता है। अब इस बारे मे ज्यादा खुलासा करेंगे तो फुरसतिया नाराज हो जाएंगे। इसलिए इसको यहीं पर दफन किया जाए।
सवाल: नारद के कर्णधार थे तुम अब उसकी हालत कैसी है? मसिजीवी कहते हैं- हां अच्छी चीज थी! क्या वो अब थी ही कहलायेगी?
जबाब: नारद प्रोजेक्ट अपने आप मे अनूठा था, काम करके काफी अच्छा लगा। सभी ब्लॉगरों मे जागरुकता जगाने वाला प्रोजेक्ट था। नारद के नए संस्करण पर काम करना था, कुछ काम हुआ भी, लेकिन बात अटकी पड़ी है। मसला ये है कि एग्रीगेटर का भविष्य है कि नही। फिर दो एग्रीगेटर अच्छा काम कर रहे है, इसलिए हम कुछ नया करने की सोच रहे है। लेकिन समय मिलने पर ही इस बारे मे कुछ किया जाएगा।
सवाल: सुना है बहुत पैसे बटोरे तुमने ब्लागिंग में। आगे कमाई कैसी होगी?
जबाब: हाँ, सही सुना है। ठीक ठाक पैसे मिल जाते है। आगे का भविष्य कारपोरेट ब्लॉगिंग और सेलीब्रिटी ब्लॉगिंग का है, वहीं से पैसे बनेंगे। हर उत्पाद, फिल्म, टीम का हिन्दी मे ब्लॉग होगा। लिखने का काम ठेके पर होगा।
सवाल: जैसे आज शास्त्रीजी को तमाम भले घर की महिलायें
मेल करके सवाल पूछती हैं वैसे कभी भले घरों के लोग तुमसे भी मेल करके
सिकवा-शिकायत करते थे!इसका चक्कर क्या है?
जबाब: अब शास्त्री जी का तो हमे नही पता, लेकिन मेरे पास फैन मेल लगातार आती है। कई लोग टिप्पणी का प्रयोग करते है, कई लोग कान्टेक्ट फार्म का और कई लोग सीधे सीधे इमेल ठेल देते है। अब किसी का हाथ तो पकड़ नही सकते, कि यहाँ लिखो, वहाँ मत लिखो । कोई महिला पाठक हुई तो? वैसे हाथ पकड़ कर पंगा लेने का रिस्क सिर्फ़ फुरसतिया ही ले सकता है, हमारी औकात नही। हमारे पास जिस रस्ते से मेल आती है, उसी रास्ते से जवाब को रवाना कर देते है।
सवाल: शुकुल की शिकायत है कि जीतेंन्द्र अपना काम दूसरों को टिका के फ़ूट लेता है? ऐसा क्यों है? सच क्या है?
जबाब: इसी को पीपुल मैनेजमेंट कहते है यार! (हीही) वैसे हमारा काम बोलता है, और फुरसतिया को कुछ ना कुछ तो बोलना होता है। ये हियां का कर रहे हैं, संसद मे काहे नही जाते प्रभु।
सवाल: लोग कहते हैं का्नपुर में तुम शुरुआती दिनों
में गंजों को कंघा बेच देते थे। हज्जारो कंघे बेचे तुमने! बाद में उन
लोगों ने तुम्हें गंजा क्यों नहीं किया?
जबाब: हां अभी पिछले दिनो गए थे, नागरिक सम्मान हुआ था। बकिया किसी भी कम्पयूटर वाले से पूछ लेना।
सवाल:तुम्हें नहाने के बाद अपनी पत्नी द्वारा बाथरूम
साफ़ करने के लिये खराब लगता था/ है। पत्नी को ये खराब नहीं लगता कि तुम
घर की बात बाहर बताते हो?
जबाब:भई हमने तो बाथरुम की बात बतायी थी, बतंगड़ तो तुमने बना दिया था। रही बात बीबीजी की, अमां शादी से पहले पाँच साल की दोस्ती थी, वो हमको सबसे ज्यादा समझती है।
सवाल: देबाशीष, ई-स्वामी, अतुल अरोरा और तमाम लोगों
से तुम्हारे पंगे हुये! लेकिन तुम लोग फ़िर एक हो जाते हो? एक तरफ़ तुम
नेताओं से नफ़रत करते हो दूसरी तरफ़ नेतागीरी की हरकतें करते हो! ये क्या
बात है?
जबाब: ह्म्म! सही सवाल। देखो भैया, जब इत्ते दिमाग वाले एक काम मे लगेंगे तो आपस मे भिड़ेंगे भी। लेकिन ये भिड़ंत विचारों की होती है, व्यक्तियों की नही। देबू, इस्वामी, अतुल या पंगेबाज, सभी से विचारों का द्वंद था, शायद ये द्वंद हमे, एक दूसरे के ज्यादा करीब लाया। आज की तारीख मे सभी गहरे दोस्तों मे शामिल है। ना मानो तो उनसे ही पूछ लो। अब इसे तुम नेतागिरी कहो तो इसका कौनो इलाज थोड़े ही है।
सवाल: एक समय ब्लागनाद का बड़ा हल्ला था! अभी उसकी क्या स्थिति है?
जबाब:ब्लॉगनाद और उसके अगले संस्करण संजय से लोग जुड़ ही नही सके। वैसे भी आडियो ब्लॉगिंग सभी के बस की बात नही। कम से कम हमारे जैसे बिन ड्राफ्टिए ब्लॉगर के बस की तो कतई नही। बाकी देखो शशि/देबू अभी भी पॉडभारती चला चला रहे है।
सवाल: कभी कानपुर लौट के वहां कुछ काम-धाम जमाने की नहीं सोचते?
जबाब: कानपुर से बेहद प्यार है, लेकिन इस बार शहर कुछ डूबा डूबा सा लगा। रही बात काम धाम की, तो अभी भी चेले चपाटी लोग, काम को चला रहे है। हम बस दूर से बैठे उनकी प्रोग्रेस देख रहे है।
सवाल: जनम से कनपुरिया रहे अब बसने के लिये जगह भोपाल में ली? माजरा क्या है?
जबाब:भैया धूल से एलर्जी है, कानपुर मे धूल बहुत है। भोपाल अच्छी जगह है, बुढापे में देबू और रवि भी उधर मिलेंगे। अब तुमने भी तो लखनऊ मे बसेरा बनाया है, काहे?
सवाल: वो तु्म्हारी सहेली जिसके हाथ में हाथ रख के छत पर से विदा हुये थे वो आजकल कहां है?
जबाब: उसके बारे में जो पूछना हो सब पूछ लो। जबाब एक साथ देंगे।
सवाल: साल भर में कित्ती बार याद करते हो उसे?
जबाब: नोट किया और पूछो!
सवाल:लोग कहते हैं आज भी वो तुमको निर्देश देती है कि
ऐसे लिखो, वैसे लिखो इसी लिये तुम तमाम खुराफ़ात नहीं करते क्योंकि तुम
पर वो निगाह रखती है?
जबाब: पूछते रहो!
सवाल: उसको ब्लागिंग काहे नहीं सिखाते?
जबाब: बस कि और कुछ उसके बारे में पूछने को?
सवाल: इस साल इत्ते ही सवाल के जबाब दो उसके बारे में बाकी अगले साल पूछेंगे!
जबाब: अच्छा तो सुनो भैया, उसने कुछ भी बताने के लिए मना किया है, इसलिए नो कमेंट।
सवाल: सिन्धी ब्लाग नियमित क्यों नहीं लिखते?
जबाब:समय की कमी और पाठको की किल्लत की वजह से। लेकिन अब फिर से चालू किया है, इस बार सिंधी, देवनागिरी और रोमन लिपि मे एक साथ।
सवाल: आगे ब्लागिंग में क्या पिलान हैं?
जबाब:लिखते रहेंगे, कभी थोड़ा कम, थोड़ा ज्यादा। अलबत्ता अब विषय आधारित लेख ज्यादा होंगे। इस विषय मे आगे अपने ब्लॉग पर खुलासा करेंगे।
सवाल: नारीवादी ब्लाग बनाम पुरुषवादी मानसिकता,
मीडिया कर्मी बनाम गैर मीडिया कर्मी मठाधीश ब्लागर बनाम नवोदित ब्लागर ! इस
बारे में क्या कहना है?
जबाब: मौसमी मुद्दे है सब। ब्लॉगर एक ऐसा जीव होता है, जो दूसरों को कुछ भी कह ले, लेकिन उसे कोई कुछ चूं भी कर दे तो बवेला खड़ा कर देता है। ये मुद्दे भी बेवजह खड़े किए गए है।
सवाल:ग्रुप ब्लाग बहुत दिन तक चल नहीं पाते! चलते भी
हैं तो अपने माडरेटर के नाम से जाने जाते हैं! क्या माडरेटर का नाम
प्रमुखता से आना इसके संचालन में बाकी लोगों को उदासीन करता है?
जबाब: ये उदासीनता ब्लॉगर की निशानी है। कई बार तो विचार नही मिलते, फिर विचार मिल गए तो टाइम नही मिलता, वो मिल जाता है, लोग बाग अपने ब्लॉग पर लिखना ज्यादा पसंद करते है। कुल मिलाकर मसला ये है कि लोग दूसरे के खोमचे पर लिखने की बजाय, अपनी गुमटी लगाना ज्यादा पसन्द करते है।
सवाल:सबसे पसंदीदा पोस्टों में तुम्हारे मोहल्ले पुराण, मिर्जा पुराण के किस्से आते हैं। क्या अब वे किस्से चुक गये?
जबाब:किस्से तो बहुत है, लिखने बैठूंगा तो हजारो पोस्ट निकल आएंगी। लेकिन बस समय का अभाव है। फिर भी समय निकालकर लिखेंगे इस पर।
सवाल: अपनी सबसे पसंदीदा पोस्ट अपने ब्लाग पर बताओ?
जबाब: कैसे कह दें, सभी अपने बच्चे है, कौन सा लायक और कौन सा नालायक। लेकिन मै समझता हूँ, मोहल्ला पुराण वाले लेख काफी अच्छे थे, आस पास अर्थचर्चा पर लिखे गए लेखों के लिए होमवर्क भी किया था।
सवाल: सबसे खराब पोस्ट?
जबाब:कई पोस्ट लिखी गयी थी, बेवजह, बेइरादतन, बस लिखने के लिए लिखी गयी थी। अब तुम खुद ढूंढो, 950+ लेखों मे से।
सवाल:किसी दूसरे के ब्लाग पर सबसे अच्छी पोस्ट जो तुरन्त याद आ रही हो?
जबाब: हिन्दी ब्लॉगर के ब्लॉग पर लिखी एक एक पोस्ट सहेजने लायक है, उन्मुक्त के यात्रा वृतांत, अमित/ तरुण के तकनीकी लेख अच्छे होते है। कई साथियों की अतीत की यादें काफी अच्छी थी। मान्या की कुछ कविताएं बेजोड़ थी। तुम्हारे कुछ सदाबहार लेख शानदार है।
सवाल: किसी दूसरे के ब्लाग पर सबसे खराब पोस्ट जो तुमको लगती हो?
जबाब: पिटवाने का इंतजाम करा रहे हो? ना बताएंगे।
सवाल:ब्लागिंग के इतने दिन के सफ़र में तमाम काम किये तुमने, तमाम से जुड़े रहे! सबसे ज्यादा मजा किस काम को करने में आया?
जबाब:नए ब्लॉगरों को सहायता करने में और नारद को पुनर्जीवित करने में।
सवाल: ब्लागिंग का कोई खराब लगने वाला अनुभव?
जबाब:जब लोगों ने बिला वजह अंगुलियां उठायी। कई बार तो लगा कि हम किसलिए ये सब कर रहे है? खैर…ये सब तो होता ही रहता है।
सवाल: जन्मदिन कैसेमनाया जायेगा?
जबाब: बस फैमिली को साथ लेकर डिनर पर जाएंगे। अब बुढापे मे जन्मदिन मनाया नही जाता, अपने आप मन जाया करता है।
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२. गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं!
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६. जीतेंद्र के लेख
तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतरकर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें
चांद-तारॊं सी अप्राप्य सच्चाइयों के लिये
रूठना-मचलना सीखें
हंसे
मुस्करायें
गायें
हर दिये की रोशनी देखकर ललचायें
उंगली जलायें
अपने पावों पर खड़े हों।
जा,
तेर स्वप्न बड़े हों।
दुष्यन्त कुमार
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जीतेंन्द्र चौधरी के जन्मदिन पर एक बातचीत
By फ़ुरसतिया on September 9, 2008
इसके अलावा सबसे ज्यादा में जो बचता है वह यह है कि शायद जीतेंद्र अकेले ऐसे शक्स होंगे जिनकी मैंने सबसे ज्यादा खिंचाई की होगी और सबसे ज्यादा पलट के जबाब भी जीतू ने दिये होंगे। उनसे मौज लेते हुये हमें कभी सोचना नहीं पड़ा कि वो क्या सोचेगा। बल्कि दूसरों ने एकाध बार कहा- कि कभी तो बख्स दिया करो जीतू को। मौज का एक नमूना इधरिच देखा जाये।
जीतेन्द्र चिट्ठाजगत के सबसे सक्रिय ब्लागर हैं।सबसे ज्यादा मेल शायद इन्होंने लिखीं होंगी ब्लाग से संबंधित। सबसे ज्यादा टिप्पणियां शायद जीतेन्द्र ने लिखी होंगी। सबसे ज्यादा (रवि रतलामी को छोड़कर) शब्द इन्होंने लिखे होंगे। सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र ने उछाले होंगे। सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र के परवान चढ़े होंगे। सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र के निरस्त किये गये होंगे। सबसे ज्यादा अपने ब्लाग में परिवर्तन जीतेन्द्र ने किये होंगे। सबसे ज्यादा जीवन्त पात्र जीतेन्द्र के होंगे.सबसे ज्यादा प्यार (हिट्स) जीतेन्द्र को मिला होगा। सबसे ज्यादा संभावनायें आगे भी हैं इनसे.
अपनी पोस्ट नींद न आये तो आजमायें में जीतेंन्द्र ने हमसे मौज ली। नींद लाने के उपाय बताते हुये उन्होंने लिखा:
उन दिनों जीतेंन्द्र नारद के लिये लगे रहते थे। जहां नारद डाउन हुआ वहां जीतेंन्द्र डबल डाउन हो जाते थे। हमने जबाबी मौज ली:शुकुल से चैट करिए:ये शायद आपको पता ना हो, जब भारत मे रात होती है तो शुकुल छ्द्म नाम से चैट करते है, नही नही मै आपको उनकी चैट आईडी नही दे सकता। शुकुल दर असल अपनी अमरीकी गर्लफ़्रेन्ड से बतिआते है (भाभी जी, यदि आप ये ब्लॉग पढ रही है तो ध्यान दीजिएगा) अमरीकन गर्लफ़्रेंड जिसने शुकुल को अपनी उमर १० साल कम बतायी है वो समझती है कि शुकुल, c.u.cool है जो व्हाइट हाउस मे काम करते है। हाँ शुकुल ने उसको यही झाम दे रखा है। शुकुल से आप दस पन्द्रह मिनट बतिया लें, नींद आने की शर्तिया गारंटी।
बहुत दिन से जबसे जीतेंन्द्र की सक्रियता कम हुयी है यह मौज-मजा कुछ कम हो गया है। मौज-मजा हरेक के बस का नहीं होता जी। जरा सा किसी को छेड़ो, बुरा मान जाता है। हमको शराफ़त ओढ़नी पड़ती है।यह पोस्ट पढ़कर हमारी एक शंका का समाधान भी हो गया। हम मानते हैं कि हम देश-विदेश की तमाम महिलाऒं से काफ़ी दिन बतियाते रहे। और ये व्हाइट हाउस वाली महिला से भी बतियाते रहे। लेकिन अभी पिछले हफ़्ते हुआ कि हम बड़े प्यार से बतिया रहे थे तो अचानक महिला ‘बाय-बाय’ कहकर जाने लगी। हम बोले-कहां जा रही हैं क्या बुश बुलाइन हैं? वो महिला हड़बड़ा के बोली- अरे बुश गया भाड़ में यहां साला नारद डाउन हो गया। देखते हैं नहीं तो गिरिराज फिर से एक पोस्ट ठोंक देगा। उसी दिन मुझे पता लगा कि जीतेन्द्र में व्हाइट हाउस की कन्या की आत्मा भी आती है। बाद में ई-स्वामी से चेक कराया कि व्हाइट हाउस की कन्या हमें जो मेल लिखती थी उनका आई.पी. पता कुवैत का होता था। आज सब सच सामने आ गया। तसल्ली हुयी! अब बढि़या नींद आयेगी
न जाने कित्ते किस्से हैं जीतेंन्द्र के। हम लगभग एक्के साथ ब्लागिंग के मैदान में कूदे। न जाने कित्ते झाम किये साथ-साथ। न जाने कित्ते झगड़े हुये जीतेंन्द्र के। देबाशीष, ई-स्वामी, अतुल और भी तमाम लोगों से। लेकिन जहां सबको झगड़ा खतम करने के लिये उपदेश देने का प्रयास करें तहां पता लगा कि सब मिलके किसी तकनीकी प्रोजेक्ट में सर भिड़ा रहे हैं। हम हमेशा सर पीटते रहे- इनके झगडों में स्थायित्व नहीं है। न जाने कित्ते किस्से हैं। सब लिखने बैठें तो जीतेंन्द्र का अगला हैप्पी बड्डे आ जायेगा।
आज जीतेंन्द्र चालीस साल के हो गये। कहा जाता है कि चालीस साल के बाद नटखट हो जाता है। इस लिहाज से तो ये नाटी बच्चा चालीस साल है।
कुछ सवाल-जबाब जो हमारे और जीतेंन्द्र में हुये वो यहां दिये जा रहे हैं। नीचे जीतेंन्द्र से संबंधित पोस्टें दी जा रही हैं। आप अगर इनको पढ़ेंगे तो देखेंगे कि पिछले चार सालों के ब्लागिंग के न जाने कित्ते किस्से आपको पढ़ने को मिलेंगे इससे आप अंदाजा लगा सकेंगे कि आज हिंदी ब्लागिंग किन-किन गलियों से होकर यहां तक पहुंची है।
चालीस साल की उमर होने पर यूं तो चालीस सवाल पूछने चाहिये। पूछ भी सकते हैं। लेकिन जीतेंन्द्र की सक्रियता हमें इसके लिये मना करती है। उनकी उछल कूद के अंदाज देखते हुये वो अपनी उमर से कम से कम दस साल कम तो लगते ही हैं।
जीतेंन्द्र को उनके जन्मदिन के अवसर पर अपने पूरे मन से शुभकामनायें देते हुये उनसे हुये सवाल-जबाब यहां दिये जा रहे हैं।
- जोशीला, जुगाड़ू और मेरा पन्ना, मेरा मतलब है मेरा अपना! आलोक कुमार
- हंसमुख स्वाभाव जीतेन्द्र भाई की मौज लेने वाले और नारद प्रोजेक्ट को गरियाने वाले ये भूल जाते हैं की ऐसे “नेकी कर जूते खा” किस्म के प्रोजेक्ट में तन-मन-धन से खुद को झोंकने वालों में अग्रणी जीतू भाई अपनी व्यवसायिक और व्यक्तिगत जीवन की तमाम आपाधापियों के बावजूद कितनी मुस्तैदी और प्रेम से नये ब्लागर्स के किसी भी काम के लिये हर वक्त हाजिर रहे है! ईस्वामी
- जितूभाई वैसे तो बड़े भाई समान है मगर उन्हे ज्यादा प्यार व सम्मान देने के लिए ताऊ कहते हैं, ब्लॉग लेखन के शरूआती दिनों में जितूभाई की सहायता व मदद से ही टिक पाए और अब तो ब्लॉग-नशेड़ी हो गए है. कुछ अनुप्रयोगो में साथ साथ काम किया और कुछ में यह सहयोग आज भी जारी है. देखा जाय तो एक परिवारीक टीम के सदस्यों सा सम्बन्ध है हमारा संजय बेंगाणी
- “ताऊ” के नाम से कुख्यात हिन्दी ब्लॉगर, इनके बारे में जितना कहें उतना कम है। यारों के यार, दिलदार व्यक्तित्व के स्वामी। ब्लॉगर के रूप में इनकी सफ़लता का राज़ इनका सरल भाषा में लेखन जिसका स्टाइल ऐसा मज़ेदार होता है कि दुखी से दुखी व्यक्ति भी मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता!अमित गुप्ता
- हमेशा एक मेल की दूरी पर रहने वाले जीतू द ग्रेट एक मेल करने के लिये भी समय नहीं निकाल पाते.इसलिये मेल नहीं कर पाते.इसी कारण उनसे आजतक बहुत ज्यादा मेल नहीं हुआ वरना उनकी तारीफों के ऐसे पुल बांधते जो कोसी की बाढ़ में भी बचे रहते. वैसे तारीफों के काबिल तो वो हैं ही क्योंकि अपने पन्ने के चार साल पूरे होने, भोपाल में घर खरीदने और नयी गाड़ी खरीदने के बाद भी पार्टी देने की नहीं सोचते (देना तो दूर की बात है) … चुपके से किसी शहर में दाखिल होते हैं और एक आद लोगों के साथ पूरे दिन कॉफी हाउस में गपियाने के बाद निकल लेते हैं.भगवान ऐसे लोगों पर ढेर सारे उपकार करे ताकि हम जैसे लोगों को पार्टी मिलने की उम्मीदें बरकरार रहें.आमीन. काकेश
- जिस तरह एक बालक को ऊंगली पकड कर उसके बडे उसे चलना सिखाते हैं, उसी तरह जीतू उन लोगों में से हैं जिन्होंने मुझे हिन्दी चिट्ठाकारी की तकनीकी बाते सिखाईं. यदि इस तरह के सौ और जीतू होते तो हिन्दी चिट्ठाकारी आज आसमान छू गई होती शास्त्री
- जीतू महाराज को जन्म दिन की बहुत मुबारकबाद. अब जन्म दिन के साथ वो बड़े हो गये हैँ तो एक उम्मीद जागी है कि शायद पुनः पूर्ववत सक्रिय हो जायें मौज मजे में लिखें. बड़े आनन्द के दिन बिताये हैं शुरुवाती दौर में..बिना जीतू के उस लेखन के वो बात कहाँ. मिर्जा को भी जगाना होगा, रंग फिर जमाना होगा.समीरलाल
- उत्सुक, अतिउत्साही, काम निकलवाने मे माहिर, प्रशंसा प्रेमी पंकज बेंगानी
- जीतेन्द्र दिल और दिमाग से साफ आदमी हैं। अपने बारे में कोई चीज छिपाते नहीं। आत्मविज्ञापन में पूरी तरह आत्मनिर्भर हैं। जब भी कभी हिंदी ब्लागिंग के शुरुआती दिनों की बात चलेगी, उसमें जीतेंद्र की सक्रियता और योगदान का जिक्र किये बिना बात हमेशा अधूरी रहेगी। हमको जीतेंन्द्र से कोई भी बात कहने के बाद यह नहीं सोचना पड़ा कि ये क्या सोचेगा! हिंदी ब्लाग जगत का दुर्लभ जीव है यह कनपुरिया बालक! अनूप शुक्ल
- जितेंद्र तुमसे सामने मिलने का मौका नहीं मिला बस अंतर्जाल से ही मुलाकात हुई इसलिए यह तो नहीं कह सकता कि मेरे मन में बनी तुम्हारी छवि सच होगी, पर मेरे मन में तुममे बच्चे जैसा भोलापन और भावुकता है, दोस्त के लिए जान देने के लिए तैयार, आवश्यकता हो तो जितनी मेहनत करवा लो, पर अगर किसी बात पर रूठ गये हो या नाराज हो गये हो, तो बहुत ज़िद्दी जिसे मनाया न जा सके! मैं तो यही चाहूँगा कि तुम्हारे यह गुण न बदलें. तुम्हें जन्मदिन पर बहुत शुभकामनाएँ सुनील दीपक
- मेरे विचार में जीतू भाई उर्फ नारद मुनि हिन्दी चिट्ठाकारों के शुरुआती जमात के ऐसे चिट्ठाकार हैं, जिन्होंने तमाम साथी चिट्ठाकारों से सबसे ज्यादा गाली खाई (संदर्भ नारद-मोहल्ला प्रकरण) मगर फिर भी मुस्कुराकर निस्पृह भाव से नारद व हिन्दी चिट्ठाजगत की सेवा करते रहे. जीतू भाई के पास आइडियाज व ऊर्जा अकूत है. पर लगता है कि वे अभी शेयर बाजार में 99 के फेर में फंस गए हैं, और इस वजह से चिट्ठाकारी में उतने सक्रिय नहीं हैं. उनके मिर्जा पुराण के नए एपीसोडों का बेसब्री से इंतजार है.रविरतलामी
- “जीतू मॉस ब्लॉगर है, क्लॉस ब्लॉगर बनने की उनकी कभी कोशिश नहीं रही इसलिये उनका पाठक वर्ग व्यापक है। लाख निरर्थक बातें सुनने और सहने के बाद भी वे नारद के लिये जूझते हैं यह काबिलेतारीफ बात है। जीतू के साथ अनेक खुराफातों में साथ रहा, वे टीमवर्क के मूरीद हैं और मुझे इससे काफी सीखने को मिला। मस्तदिल जीतु निरंतर पत्रिका के लिये पहले हंसी का टॉनिक जुगाड़ा करते थे, मुझे उम्मीद है वे वापस आयेंगे। जीतू नियमित लेखन फिर शुरु करें, निवेश की सलाह वाली पोस्टें बढ़ायें। जन्मदिन की दिली शुभकामनायें!”देबाशीष
जबाब:गलतियां हर जगह होती है, ऊपर वाले के कम्प्यूटर मे भी वायरस आ गया होगा, तभी तो हमे ला पटका इधर। वैसे कलाकार हम भी कम नही है, लेकिन क्या है पारखी नज़रों की तलाश है बस।
जबाब:अब का करें, कम्पनी ने बाजा बजा रखा है। रोजी रोटी का सवाल है। फिर ब्लॉगिंग ब्लॉगिंग खेल कर भी थक से गए थे, फार ए चेंज, कुछ कम्पनी का काम करने मे कोई हर्जा तो है नही।
जबाब:एल्लो! अब हमको फंसा कर बोलते हो कि कैसे फंस गए। अब अपने ब्लॉग पर इल्लम पिल्लम लिखे थे तुम, हमको जँच गया। वो कहते है ना खरबूजा खरबूजे को देखकर रंग बदलता है, फिर एक कानपुरी को देखकर दूसरा कानपुरी ना बदले, ऐसा कैसे हो सकता है भला। इसलिए हमने भी देखा देखी दुकान खोल ली। जो चल निकली।
जबाब:कोई काम होता तो करते ना। कट्टे बना बना कर, जो टाइम मिलता है दूसरों की खिंचाई मे बिताते है। आजकल विरह रोग से पीड़ित है। वैसे हम आजकल बचे हुए है, वजह, फुरसतिया आजकल रेलवे वाले अफ़सरों (शिव/ज्ञान बाबू) के पीछे पड़े है।
जबाब: अब लोगों से मन की बात जानने के लिए कुछ अलग करना ही पड़ता है। अब इस बारे मे ज्यादा खुलासा करेंगे तो फुरसतिया नाराज हो जाएंगे। इसलिए इसको यहीं पर दफन किया जाए।
जबाब: नारद प्रोजेक्ट अपने आप मे अनूठा था, काम करके काफी अच्छा लगा। सभी ब्लॉगरों मे जागरुकता जगाने वाला प्रोजेक्ट था। नारद के नए संस्करण पर काम करना था, कुछ काम हुआ भी, लेकिन बात अटकी पड़ी है। मसला ये है कि एग्रीगेटर का भविष्य है कि नही। फिर दो एग्रीगेटर अच्छा काम कर रहे है, इसलिए हम कुछ नया करने की सोच रहे है। लेकिन समय मिलने पर ही इस बारे मे कुछ किया जाएगा।
जबाब: हाँ, सही सुना है। ठीक ठाक पैसे मिल जाते है। आगे का भविष्य कारपोरेट ब्लॉगिंग और सेलीब्रिटी ब्लॉगिंग का है, वहीं से पैसे बनेंगे। हर उत्पाद, फिल्म, टीम का हिन्दी मे ब्लॉग होगा। लिखने का काम ठेके पर होगा।
जबाब: अब शास्त्री जी का तो हमे नही पता, लेकिन मेरे पास फैन मेल लगातार आती है। कई लोग टिप्पणी का प्रयोग करते है, कई लोग कान्टेक्ट फार्म का और कई लोग सीधे सीधे इमेल ठेल देते है। अब किसी का हाथ तो पकड़ नही सकते, कि यहाँ लिखो, वहाँ मत लिखो । कोई महिला पाठक हुई तो? वैसे हाथ पकड़ कर पंगा लेने का रिस्क सिर्फ़ फुरसतिया ही ले सकता है, हमारी औकात नही। हमारे पास जिस रस्ते से मेल आती है, उसी रास्ते से जवाब को रवाना कर देते है।
जबाब: इसी को पीपुल मैनेजमेंट कहते है यार! (हीही) वैसे हमारा काम बोलता है, और फुरसतिया को कुछ ना कुछ तो बोलना होता है। ये हियां का कर रहे हैं, संसद मे काहे नही जाते प्रभु।
जबाब: हां अभी पिछले दिनो गए थे, नागरिक सम्मान हुआ था। बकिया किसी भी कम्पयूटर वाले से पूछ लेना।
”
बहुत दिनों तक जीतेन्द्र ‘टिप्पणी मजूर ‘ का काम करते रहे. बहुत बढिया
लिखे हो,मजा आ गया आदि तमाम वाक्य जीतेन्द्र लेख पूरा पढ़ते-पढ़ते बहुत
बढि़या लिखे हो ,मजा आ गया जैसे वाक्य दाग चुके होते हैं. नवागन्तुक ब्लागर
से हमेशा केवल एक ई-मेल की दूरी बनाये रखते है. मेल लिखने में वैसे भी ये
बहुत बीहड़ हैं.अक्सर जब नेट पर बात होती है तो किसी योजना की बात होने पर
अगला वाक्य लिखने के पहले ये उसका एजेन्डा सबको मेल से भेज चुके होते हैं” जन्मदिन के बहाने जीतेंद्र की याद
जबाब:भई हमने तो बाथरुम की बात बतायी थी, बतंगड़ तो तुमने बना दिया था। रही बात बीबीजी की, अमां शादी से पहले पाँच साल की दोस्ती थी, वो हमको सबसे ज्यादा समझती है।
जबाब: ह्म्म! सही सवाल। देखो भैया, जब इत्ते दिमाग वाले एक काम मे लगेंगे तो आपस मे भिड़ेंगे भी। लेकिन ये भिड़ंत विचारों की होती है, व्यक्तियों की नही। देबू, इस्वामी, अतुल या पंगेबाज, सभी से विचारों का द्वंद था, शायद ये द्वंद हमे, एक दूसरे के ज्यादा करीब लाया। आज की तारीख मे सभी गहरे दोस्तों मे शामिल है। ना मानो तो उनसे ही पूछ लो। अब इसे तुम नेतागिरी कहो तो इसका कौनो इलाज थोड़े ही है।
जबाब:ब्लॉगनाद और उसके अगले संस्करण संजय से लोग जुड़ ही नही सके। वैसे भी आडियो ब्लॉगिंग सभी के बस की बात नही। कम से कम हमारे जैसे बिन ड्राफ्टिए ब्लॉगर के बस की तो कतई नही। बाकी देखो शशि/देबू अभी भी पॉडभारती चला चला रहे है।
जबाब: कानपुर से बेहद प्यार है, लेकिन इस बार शहर कुछ डूबा डूबा सा लगा। रही बात काम धाम की, तो अभी भी चेले चपाटी लोग, काम को चला रहे है। हम बस दूर से बैठे उनकी प्रोग्रेस देख रहे है।
जबाब:भैया धूल से एलर्जी है, कानपुर मे धूल बहुत है। भोपाल अच्छी जगह है, बुढापे में देबू और रवि भी उधर मिलेंगे। अब तुमने भी तो लखनऊ मे बसेरा बनाया है, काहे?
जबाब: उसके बारे में जो पूछना हो सब पूछ लो। जबाब एक साथ देंगे।
जबाब: नोट किया और पूछो!
जबाब: पूछते रहो!
जबाब: बस कि और कुछ उसके बारे में पूछने को?
जबाब: अच्छा तो सुनो भैया, उसने कुछ भी बताने के लिए मना किया है, इसलिए नो कमेंट।
जबाब:समय की कमी और पाठको की किल्लत की वजह से। लेकिन अब फिर से चालू किया है, इस बार सिंधी, देवनागिरी और रोमन लिपि मे एक साथ।
जबाब:लिखते रहेंगे, कभी थोड़ा कम, थोड़ा ज्यादा। अलबत्ता अब विषय आधारित लेख ज्यादा होंगे। इस विषय मे आगे अपने ब्लॉग पर खुलासा करेंगे।
जबाब: मौसमी मुद्दे है सब। ब्लॉगर एक ऐसा जीव होता है, जो दूसरों को कुछ भी कह ले, लेकिन उसे कोई कुछ चूं भी कर दे तो बवेला खड़ा कर देता है। ये मुद्दे भी बेवजह खड़े किए गए है।
जबाब: ये उदासीनता ब्लॉगर की निशानी है। कई बार तो विचार नही मिलते, फिर विचार मिल गए तो टाइम नही मिलता, वो मिल जाता है, लोग बाग अपने ब्लॉग पर लिखना ज्यादा पसंद करते है। कुल मिलाकर मसला ये है कि लोग दूसरे के खोमचे पर लिखने की बजाय, अपनी गुमटी लगाना ज्यादा पसन्द करते है।
जबाब:किस्से तो बहुत है, लिखने बैठूंगा तो हजारो पोस्ट निकल आएंगी। लेकिन बस समय का अभाव है। फिर भी समय निकालकर लिखेंगे इस पर।
जबाब: कैसे कह दें, सभी अपने बच्चे है, कौन सा लायक और कौन सा नालायक। लेकिन मै समझता हूँ, मोहल्ला पुराण वाले लेख काफी अच्छे थे, आस पास अर्थचर्चा पर लिखे गए लेखों के लिए होमवर्क भी किया था।
जबाब:कई पोस्ट लिखी गयी थी, बेवजह, बेइरादतन, बस लिखने के लिए लिखी गयी थी। अब तुम खुद ढूंढो, 950+ लेखों मे से।
जबाब: हिन्दी ब्लॉगर के ब्लॉग पर लिखी एक एक पोस्ट सहेजने लायक है, उन्मुक्त के यात्रा वृतांत, अमित/ तरुण के तकनीकी लेख अच्छे होते है। कई साथियों की अतीत की यादें काफी अच्छी थी। मान्या की कुछ कविताएं बेजोड़ थी। तुम्हारे कुछ सदाबहार लेख शानदार है।
जबाब: पिटवाने का इंतजाम करा रहे हो? ना बताएंगे।
जबाब:नए ब्लॉगरों को सहायता करने में और नारद को पुनर्जीवित करने में।
जबाब:जब लोगों ने बिला वजह अंगुलियां उठायी। कई बार तो लगा कि हम किसलिए ये सब कर रहे है? खैर…ये सब तो होता ही रहता है।
जबाब: बस फैमिली को साथ लेकर डिनर पर जाएंगे। अब बुढापे मे जन्मदिन मनाया नही जाता, अपने आप मन जाया करता है।
१. जन्मदिन के बहाने जीतेन्दर की याद
२. गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं!
३. आइडिया जीतू का लेख हमारा
४. अथ कम्पू ब्लागर भेंटवार्ता
५. जीतेंन्द्र, एग्रीगेटर, प्रतिस्पर्धा और हलन्त
६. जीतेंद्र के लेख
मेरी पसंद
जातेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतरकर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें
चांद-तारॊं सी अप्राप्य सच्चाइयों के लिये
रूठना-मचलना सीखें
हंसे
मुस्करायें
गायें
हर दिये की रोशनी देखकर ललचायें
उंगली जलायें
अपने पावों पर खड़े हों।
जा,
तेर स्वप्न बड़े हों।
दुष्यन्त कुमार
हम तो फुरसतिया चाचा के हाथों ताऊ का बर्डे सेलिब्रेट होते देख छोटे बच्चे की तरह कूद रहे हैं, :0
एक संयोग देखिये कि आज मेरी बहन का भी जन्मदिन है.
आपके इत्ते प्यारे Friend alias White House Gal;-)
जीतू भाई की सालगिरह पर
हमारी बधाई भी शामिल कीजिये
अनूप भाई बातेँ बडी रोचक लगी हैँ !
स स्नेह,
- लावण्या
जन्मदिन की हार्दिक बधाई !
इतनी लम्बी और सार्थक पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद.
जीतू भाई, जन्मदिन पर हार्दिक बधाई!
मेरा एक प्रश्न अनुत्तरित है.. जरा पूछ कर बताओ गुरु,
जितेन्दर छाँ खराबी थियों, हेड्डे इंडिया केड़ी… बुधाँय ?
तहाँ खे इंडिया केड़ी तकलीफ़ आहे, यो बुधाँयोजी.. मेहरबाणी ।
साथ में यह शुभकामनायें भी दे देना..
तहाँ खे जनमडिण दियों जी लख लख वाधायूँ ।
Regards
अब जीतू भाई सोचें तो बताए देते हैं कि पिछले साल उन्होंने जो गिफ़्ट दिया था उसी ब्रांद का हम खरीद के इनको दिए हैं, कि अपने को लगा जीतू भाई को यहीच्च पसंद है!!
तुम जियो हजारो साल, साल के दिन हो पचास हजार वाले तर्ज पर
डिनर पर जायेंगे तो एक अलग से ही एक टेबल मेरे लिये बोक कर लिजीयेगा खाते खाते हैप्पी बर्थ डे वाला गाना गाऊँगी।
है ! जिन चीजों के बारे में सहज ही जान कारी की
इच्छा होती है ? उनका बहुत कुछ जवाब और जानकारी
इस पोस्ट द्वारा सहज और दिलचस्प अंदाज में मिल जाती है !
@ ताऊ जीतेन्द्र जी आपके बारे में आज पता चला ! तो ताऊ जी
थमनै इस ताऊ रामपुरिया की तरफ़ तैं जन्म दिन की घणी
शुभकानाएं ! और भई अनुभव म्ह तो हम थारै बालक ही सै !
सो आशीर्वाद देते रहणा ! इब रामराम !
ये सवाल-जवाब कार्यक्रम शानदार रहा. ऐसे सवाल आप ही पूछ सकते हैं. और ऐसे जवाब भी जीतू भाई ही दे सकते हैं.
यह चेहरा ऐसा ही चहकता-दमकता रहे !
हमारी शुरुआती ब्लॉगरी के मार्ग के कांटे बिन्ने’इ साफ किए थे जी . सो बहुतै अहसान है जी हम पर बिनका . होर ऐसा मनई है जी कि कोई कैसी भी मदद की पुकार-गुहार करे , भाई तिनके का सहारा लिए हमेशा हाज़िर रहता है अलादीन के चिराग की माफ़िक .
हज़ारी उमर होवे जी !
SHOAIB की हालिया प्रविष्टी..नम्मा मेट्रो
हम तो उनसे गले भी मिल चुके थे ८ वेर्ष पहले.
SHOAIB की हालिया प्रविष्टी..नम्मा मेट्रो