Monday, October 20, 2008

कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को

http://web.archive.org/web/20140419215112/http://hindini.com/fursatiya/archives/500

34 responses to “कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को”

  1. - लावण्या
    लैला तो लैला आपने तो मजनूँ को भी सही लालटेन दिखालाई
    और कविता वाकई मेँ एकदम नये उपमान लिये पसँद आई ~~~
    (पलकें उसकी सेंन्सेक्स की तरह फ़ड़फ़ड़ायेंगी, मुंद जायेंगी,
    हवा हवाई फ़िजा है जो इसकी, सब कुछ हवा हो जायेगी। :-)
    – लावण्या
  2. दिनेशराय द्विवेदी
    आप की कविता बहुत अधिक सार्थक है।
  3. anitakumar
    sorry devnagari mein nahi likh paa rahi hun, temporary problem
    hameshaa ki tarah jabardast maujun post…aaj Laila Majnu ko hi lapet liye? excellent maujun poem, and deep thinking …….mere naam mein aaj bhi anita (feminine) pahle aataa hai aur kumar(masculine) baad mein aataa hai toh kya mein Shiri-Farhaad ke zamaane ki ho gayi?…:)
  4. राज भाटिया
    लोग कहते हैं लैलाजी बहुत खूबसूरत थीं। लेकिन उनका गला बड़ा स्वाभाविक, बेसुरा टाइप का था। जब गातीं तो लोगों के दिल दहल जाते। आवाज से डरकर पत्थर तक पिघल जाते,
    मुझे भी यही कारण सही लगता है, बहुत ही सुंदर लिखा है आप ने मै तो पढते समय हंसता ही रहा, चलिये टिपण्णी से निपट कर फ़िर से पढता हू.
    धन्यवाद एक बहुत अच्छॆ लेख के लिये
  5. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'
    ये हुआ न ओरिजनल फुरसतिया फॉर्म-उधर गांगुली फारम में आये और इधर आप. पता होता तो उसको पहले ही खिला लेते.
    वैसे तो डिमांड बिना डरे की थी मगर डर के ही सही..यही वाला, गाइये तो!!
    बहुत बेहतरीन सन्नाट अलेख. बनाये रहिये माहौल..हम तो रिझाये से गये. :)
  6. अजित वडनेरकर
    कविता कहें या गीत, मगर अद्भुत है। इसे श्रीमान अन्नुमलिक स्वरबद्ध करें और आनंदबख्शी के अंदाज में खुद ही गाएं तो युवावर्ग में काफी लोकप्रिय हो सकता है।
    लैला पर शोध केंद्रित है, मजनू को ज़रा झ़ाड़ कर दूर खड़ा रखा है आपने :)))
  7. डा. अमर कुमार

    .
    ऎ अनूप भाई, आपका शोधप्रबंध मध्ययुगीन संदर्भों को लेकर लिख गया प्रतीत होता है ।
    बेचारी लैला, मज़नूँ के कच्च-बच्च से इतनी कुपित थी, कि वह गा गाकर गुहार लगाती रही कि
    इसको पत्थर से न मारो ,कमीने को आग में ज़िन्दा जला दो या सूली पर चढ़ा कर तड़पती मौत दो..
    रसिक शायरों में किसी मौज़ लेने वाले ने ईश्टोरी को दूसरा ही ट्विस्ट दे दिया ।
    अपुन होते तो सच्ची की बात बता देते..
    ‘जब दे ही नहीं सकता पेट भर भात-दाल खाने को
    इसलिये कोई पत्थर से न मारो मेरे दीवाने को’

    इसका खटोला यहीं बिछा दो..

  8. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    पोस्ट भी उत्तमोत्तम है और नीचे की लविता भी। पूरा लव-मय कर दिया। इतना ज्यादा कि मैं अपनी गर्दन और घुटने का दर्द भूल गया।
    आप ऐसे ही पोस्ट लिखा करें। बड़ी मेडिसिनल वैल्यू है उसमें।
  9. Tarun
    बहुत सही लिखा है, खासकर लैला का नाम पहले आनी कि बात, अच्छा हुआ आपने ये इस दौर में लिखा है। आने वाले कुछ समय के बाद हो सकता है कुछ ऐसी जोड़ियाँ भी सुनने को मिल जाये -लैला-शीरी या मँजनू-फरहाद। गीत वही हो सकता है पत्थरों वाला लेकिन वो गाया किसी और के लिये जायेगा।
  10. Dr.Arvind Mishra
    क्या कहूं ! इस कविता को गा के सुना ही दीजिये -आप्का हमारा सभी का भ्रम दूर हो !
  11. manvinder bhimber
    ब्लॉग पर देर से आने के लिए क्षमा ………
    बहुत अच्छा और सच्चा लिखा है…..लैला की इत्ती सच्ची बातें आप को कहाँ से पता चली…..काफी हंसा दिया आपने
    अच्छी पोस्ट के लिए बधाई
  12. आलोक पुराणिक
    घणे ही प्रेमी होण लाग रे हैं आजकल तबीयत ऊबीयत तो ठीक चल री है ना।
  13. आलोक पुराणिक
    क्या केने क्या केने
  14. ताऊ रामपुरिया
    पलकें उसकी सेंन्सेक्स की तरह फ़ड़फ़ड़ायेंगी, मुंद जायेंगी,
    हवा हवाई फ़िजा है जो इसकी, सब कुछ हवा हो जायेगी।
    उसे बस कैश दिला दो!
    शुक्ल जी गजब कर दिया आपने तो ! सही में मेडिसनल वेल्यु है इसकी ! शाम को आकर आपकी स्टाइल में यानी फुर्सत से वापस पढ़ना पडेगा ! और इसको खींच कर ब्लॉग पर भी ले जाना पडेगा ! ये शायद, लगता है आपकी तरफ़ से पाठको को दीपावली का अग्रिम तोहफा है ! बहुत २ बहुत शुभकामनाए
  15. seema gupta
    कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को,
    मुफ़्तखोरी की लत बहुत उसको निपटाने को।
    उसे बस कर्ज दिला दो!
    “ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha laila ke kisse pdh kr dil khush aa gya, behtreen”
    Regards
  16. संजय बेंगाणी
    लैला मजनूं को खूब निपटाया, साथ ही आधूनिक लैला मजनूं की छवि भी क्या खूबसूरत डाली है!
    लैला को चाहिए था कि मजनूं को ब्लोगिंग के गलत रास्ते पर डाल देती….
  17. mamta
    लाजवाब और जबरदस्त ।
    पढ़कर हमारा भी मूड कुछ बदल गया है । :)
  18. SHUAIB
    बड़े दिनों बाद आपने दिल को गुदगुदाने वाला लेख लिखा है।
    आपकी ये ऊटपटांग बातें ही सही मगर हम तो आपकी इन ऊटपटांग बातों के मुरीद हैं जिसमे सच्चाई और खुलापन होता है। हां गीत (या) कविता बहुत अच्छा लगा।
    उम्मीद है इस गाने को आप अपनी आवाज़ मे गाकर उसका रिकार्ड भी सुनाएंगे :)
  19. Dr .Anurag
    इन दिनों न तो मजनू जैसा धैर्य रहा किसी आशिक में ओर न लैला जैसी प्रेमिका ……EMI ,सेंसेक्स,ओर आर्थिक मंदी के दौर ओर मोबाइल फोनों के बीच …वैसा इश्क कहाँ ?
  20. Abhishek Ojha
    अरे महाराज, इतनी व्याख्या तो तुलसी बाबा के लिखे लाइनों की भी नहीं हो पाती… लगता है बड़ा गहरा असर छोड़ा है लैला की इस लाइन ने :-)
  21. kanchan
    goodh vachan padhe …prasaad liya..!
  22. कुश
    वाह जी क्या लैला पुराण है.. वैसे आजकल की लैलाओ पर लिखना काफ़ी ख़तरनाक हो सकता है.. लिखने वाले पर पत्थर पड़ सकते है..
  23. दीपक
    अनुप जी अर्ज किया है…
    कोई पत्थर से ना मारे मेरे दिवाने को
    कोई पत्थर से ना मारे मेरे दिवाने को
    बम से उडा दो इस पैजामे को !!
  24. Sangeeta Manral
    :):):):) जब भी कभी हँसने का मन होता है तो आपके ब्लाग पर आ जाती हूँ वैसे राजू श्रीवास्तव को कङा काम्पीटीशन दे सकते हैं आपके लेख|
  25. सतीश सक्सेना
    लैला पर अधिक ध्यान दिया है आपने !
  26. anitakumar
    एक बार फ़िर से फ़ुर्सत से पढ़ा इस लेख को, पहले से भी ज्यादा मजा आया, लेख का भी और टिप्पणियों का भी, आप की जवाबी टिप्पणियां कहां हैं, कहीं आप मजनुं की मरहम पट्टी करने में तो नहीं व्यस्त हो गये। किसी ने सही कहा बम के जमाने में पत्थर की क्या जरूरत है, बेकार में टाइम वेस्ट्……आप की कविता(?) के मौलिक प्रतीक भी खूब पसंद आये॥आशा है दिवाली से पहले और कई तोहफ़े आ रहे हैं
  27. anitakumar
    एक बात तो पूछना भूल ही गयी, वो चूजे किस बात का प्रतीक हैं क्या लैला मजनूं छोटेपन में ऐसे दिखते थे
  28. sameer yadav
    आज के लैला मजनूँ कहीं पढ़ न ले इस पोस्ट को, उससे पहले आप के सस्वर पाठन का पाडकास्ट सुनने की तमन्ना हिलोरें लेने लगी मन में.
  29. SHUAIB
    कमसे कम एक बार गाकर सुना दीजिए, हम जज करेंगे :)
    अगर बेसुरा भी क्यों ना गाया हो, हम आपकी हिम्मत की दाद ज़रूर देंगे :)
  30. प्रियंकर
    बलिहारी !
    जो मजनू पत्थरों से बच जाता है वह भी क्रेडिट कार्ड और बाज़ार से नहीं बच पाता . नुस्खे कारगर प्रतीत होते हैं . आपकी नायिका लैला ज्यादा स्मार्ट प्रतीत होती है बजाय मजनू के .
    ‘लविता’ लाजवाब है . इस लैला को भारत का वित्त मंत्री/आरबीआई का गवर्नर या सेबी का चेयरपर्सन बना दिया जाय तो शेयर बाजार की समस्याएं मिनटों में सुलझ सकती हैं .
  31. मसिजीवी
    गज़ब है आपकी शोधदृष्टि।
    विश्‍ववि़द्यालयों को बख्‍श दिया आपने, अगर पीएचडी के लिए एनरोल होते तो आपके सुपरवाइजर मजनूं की जगह लेने के लिए दौड़ पड़ते :)
  32. कविता वाचक्नवी
    कमाल अनालसिस है। आपने तो प्याज के सारे छिलके उतार दिए।
  33. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को [...]

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