http://web.archive.org/web/20140419213612/http://hindini.com/fursatiya/archives/545
क्या इससे यह सिद्ध होता है कि एक चिरकुट सी पोस्ट एक ग्लोबल कविता की पैदाइश का कारण बनती है। तदनन्तर वह ग्लोबल कविता अगली किसी खालजयी कविता की जननी बनती है। क्या इत्ते से सर्वे के बाद यह कहा जा सकता है-
बड़े-बड़े कवि जब कवितागीरी करते हैं तो फ़ैशन के दौर गारण्टी की अपेक्षा न करें टाइप डिक्लेमर ठोंक के शुरुआत करते हैं- हमें कविता की समझ नहीं है। जैसे कि तुलसी बाबा ने ही कहा-
वे डरते होंगे कि कुछ अंट-शंट लिख पकड़ गया तो लोग कहेंगे देखो बड़े कवि बने फ़िरते हैं लेकिन आता कुछ नहीं सब जा ही रहा है। इसलिये पल्ला झाड़कर दुकान सजाये।
बड़े-बड़े ज्ञानी लोग भी यही अलापते हैं- मैं मूरख नादान!
वैसे भी देखा गया है कि लोग दूसरे के मामले में ज्यादा एक्सपर्ट होते हैं। एक व्यापारी मंत्री के बारे में जित्ता जानता है उत्ता मंत्री भी न जानता होगा। एक अर्थ सलाहकार जित्ती जानकारी दुर्योधन के बारे में रखता है उत्ती अगर दुर्योधन को होती तो आज उसके वंशज राज कर रहे होते।
अच्छा कवि काव्य-विवेक से संबंध खत्म कर लेता है ताकि आत्मविश्वास से कविता रच सके। नयी चीज सीखने में खासकर मैनेजमेंट में डिलर्निंग (ज्ञानसफ़ाई) का चलन है। ऐसा इसलिये क्योंकि अज्ञानी का आत्मविश्वास तगड़ा होता है। अमेरिका के बारे में जितने विश्वास से हम कोई बात कह सकते हैं उतने विश्वास से बुश क्या ओबामा तक नहीं कह सकते। भारत के बारे में बुश जित्ते विश्वास से कहते रहे उत्ते विश्वास से हमारे अपने प्रधानमंत्री नहीं कहने की सोच पाये। आपकी और हमारी बातें जाने दो- हम तो पब्लिक हैं -सब जानते हैं।
यह आजकल का चलन सा हो गया है एक अच्छा गुंडा राजनीति में घुसने से पहले गुंडई से संबंध खत्म कर लेता है, नेता चुनाव के पहले आम आदमी के प्रति एलर्जी का भाव खतम कर लेता है, एक विकसित देश किसी को लूटता है तो उसके प्रति अरुचि का भाव खत्म कर लेता है, किसी पर हमला करता है तो उस देश के लोगों के प्रति घृणा खतम कर लेता है।
बड़े उद्देश्य को पाने के लिये छोटे का त्याग करना पड़ता है। बड़ी चिरकुटई करने के लिये छोटी का मोह छोड़ना पड़ता है! है कि नहीं।
भारत भूषणजी ने आत्मकथा की झांकी दिखाते हुये लिखा है:
कुछ नमूने तुक्तक के भी देख लिये जायें:
2. गुलजार की कविता,त्रिवेणी
3.बारिश में भीगते हायकू का छाता
ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती
By फ़ुरसतिया on November 21, 2008
कवित विवेक एक नहिं मोरे
मजाक मजाक में लिखी पिछली पोस्ट में बहुत मजाक हो गया। कुछ साथियों ने इसे बड़ी उंची बात वाली कविता कह डाला और कुछ के लिये यह कविता की प्रेरणा बनी। ग्लोबल कविता लिख मारी। वह कविता इत्ती अच्छी बन पड़ी कि कई दिन से बनी पड़ी थी। हमारे ब्लाग पर पोस्ट होते ही उससे प्रेरणा लेकर झाल कवि ’वियोगी’ ने झल्लाकर एक खालजयी कविता ठेल दी। खालजयी इसलिये कहा क्योंकि कविता इत्ती अच्छी बन पड़ी कि अगर कोई कविता प्रेमी राजा सुन लेता तो खुश होकर खाल खींच लेता यह कहते हुये -बरखुरदार इत्ती अच्छी कविता पहले काहे नहीं सुनाये।क्या इससे यह सिद्ध होता है कि एक चिरकुट सी पोस्ट एक ग्लोबल कविता की पैदाइश का कारण बनती है। तदनन्तर वह ग्लोबल कविता अगली किसी खालजयी कविता की जननी बनती है। क्या इत्ते से सर्वे के बाद यह कहा जा सकता है-
फ़ुरसतिया होगा पहला कवि,डा. अनुराग ने एक बात सही कही:
चिरकुटई से उपजा होगा गान!
सब कुछ गड-मड है …..जब से ब्लॉग आया है …तबसे हर आदमी पेंटर ,डॉ ,कवि ,लेखक बन रहा है…कभी ऐड्स के रोगी को ठीक करने के दावे होते है …तो जो कविता लिख रहा है उसे कविता लिखने दीजिये ……मस्त रहियेवैसे एक बात यह भी है कि जब ब्लाग नहीं था तब से ही हर आदमी वह बनता रहा है जो वह नहीं है। जिस क्षेत्र से उसका संबंध वृत्त और स्पर्श रेखा से भी कमतर है उसके बारे में वह सबसे बड़ा एक्स्पर्ट है। हमने देखा है कि गिल्ली-डंडा जमाने के लोग क्रिकेट पर ऐसी एक्सपर्ट कमेंटरी करते रहे हैं जैसी गावस्करऊ बेचारे का करिहैं- सौरभवा को तो कान पकड़ के बाहर कर देना चाहिये ससुरे को खाली कमीज उतारने के अलावा कुछ आता नहीं, युवरजवा का मन आजकल खेल में लग नहीं रहा है वो दीपिका में लगा है, हरभजनवा एकदम बंदरै है का? आदि-इत्यादि! वगैरह-वगैरह!
बड़े-बड़े कवि जब कवितागीरी करते हैं तो फ़ैशन के दौर गारण्टी की अपेक्षा न करें टाइप डिक्लेमर ठोंक के शुरुआत करते हैं- हमें कविता की समझ नहीं है। जैसे कि तुलसी बाबा ने ही कहा-
कवित विवेक एक नहिं मोरे,अगले ने कविता लिखने के पहले ही साफ़ कर दिया कि भाई हमें कविता-वविता आती नहीं है। लिख जरूर रहे हैं लेकिन काव्य-विवेक की आशा मती करियो हमसे। ऐसा कैसे होता है कि महाकवि कविता समुद्र में गहरे उतरने के पहले शपथ पत्र ( बोले तो एफ़िडेविट) लगाता है -हम कविता के बारे में कुछ नहीं जानते।
सत्य कहहुं लिखि कागद कोरे।
वे डरते होंगे कि कुछ अंट-शंट लिख पकड़ गया तो लोग कहेंगे देखो बड़े कवि बने फ़िरते हैं लेकिन आता कुछ नहीं सब जा ही रहा है। इसलिये पल्ला झाड़कर दुकान सजाये।
बड़े-बड़े ज्ञानी लोग भी यही अलापते हैं- मैं मूरख नादान!
वैसे भी देखा गया है कि लोग दूसरे के मामले में ज्यादा एक्सपर्ट होते हैं। एक व्यापारी मंत्री के बारे में जित्ता जानता है उत्ता मंत्री भी न जानता होगा। एक अर्थ सलाहकार जित्ती जानकारी दुर्योधन के बारे में रखता है उत्ती अगर दुर्योधन को होती तो आज उसके वंशज राज कर रहे होते।
अच्छा कवि काव्य-विवेक से संबंध खत्म कर लेता है ताकि आत्मविश्वास से कविता रच सके। नयी चीज सीखने में खासकर मैनेजमेंट में डिलर्निंग (ज्ञानसफ़ाई) का चलन है। ऐसा इसलिये क्योंकि अज्ञानी का आत्मविश्वास तगड़ा होता है। अमेरिका के बारे में जितने विश्वास से हम कोई बात कह सकते हैं उतने विश्वास से बुश क्या ओबामा तक नहीं कह सकते। भारत के बारे में बुश जित्ते विश्वास से कहते रहे उत्ते विश्वास से हमारे अपने प्रधानमंत्री नहीं कहने की सोच पाये। आपकी और हमारी बातें जाने दो- हम तो पब्लिक हैं -सब जानते हैं।
यह आजकल का चलन सा हो गया है एक अच्छा गुंडा राजनीति में घुसने से पहले गुंडई से संबंध खत्म कर लेता है, नेता चुनाव के पहले आम आदमी के प्रति एलर्जी का भाव खतम कर लेता है, एक विकसित देश किसी को लूटता है तो उसके प्रति अरुचि का भाव खत्म कर लेता है, किसी पर हमला करता है तो उस देश के लोगों के प्रति घृणा खतम कर लेता है।
बड़े उद्देश्य को पाने के लिये छोटे का त्याग करना पड़ता है। बड़ी चिरकुटई करने के लिये छोटी का मोह छोड़ना पड़ता है! है कि नहीं।
मुक्तक कि तुक्तक
भारत भूषण अग्रवाल जी की किताब कागज के फ़ूल दिख गई आज! भारतजी ने मुक्तक की तर्ज पर ’तुक्तक’ लिखे हैं। शायद कुछ ऐसे ही जैसे कि रवि भोपाली वाया रतलामी , गजल की तर्ज पर व्यंजल लिखते हैं या समीरलाल जबलपुरिया ने ने तो कुंडलिया की तर्ज पर मुंडलिया लिखने की शुरुआत करके खात्मा भी कर दिया।भारत भूषणजी ने आत्मकथा की झांकी दिखाते हुये लिखा है:
मैं जिसका पट्ठा हूं
उस उल्लू को खोज रहा हूं
डूब मरूंगा जिसमें
उस चुल्लू को खोज रहा हूं!
कुछ नमूने तुक्तक के भी देख लिये जायें:
- बारह बजे मिलीं जब घड़ी की दो सुइयां
छोटी बोली बड़ी से, “सुनो तो मेरी गुइयां कहां चली मुझे छोड़”
बड़ी बोली भौं सिकोड़
-”आलसी का साथ कौन देगा अरी टुइयां।” - गाय बोली बैल से, “क्यों छेड़ते हो भाई
जानते हो, कहते हैं सब मुझे माई?” बैल बोला धत्त रे
मारूंगा दुलत्त रे
मैं भी चौपाया हूं, और तू भी है चौपाई!” - नर्तकी थी मशहूर गुलजान बाई
भाई उसका था पर एक नानबाई हुआ जब झगड़ा
भाई पड़ा तगड़ा
“भूल जिन जैहौ, केहिकर मकान बा ई!” - हाथ-पैर छोटे-से थे किंतु बड़ी नाक थी
कवि समुदाय में इसी से बड़ी धाक थी दूर से ही सूंघकर
कह देते ऊंघकर
“निरी तुकबंदी थी, कविता क्या खाक थी!”
हाले-दिन सुनाना है,मुआ कनेक्शन नहीं मिलता
कवि गण जब किसी दूसरे की कविता सुनाते हैं तो समझ लीजिये अपनी कविता झेलाने की तैयारी कर रहे हैं। अब हम कवि तो नहीं हैं लेकिन यह सच है कि कवित विवेक एक नहिं मोरे वाले पैमाने से कविता झेलाने की अहर्ता रखते हैं। तो अब जब इत्ता पढ़ लिया तो ये जो हम लिखे हैं चार-चार लाइनों में उसको भी पढ़ लिया जाये। अगर अच्छा न लगे ऊपर वाली लाइने फ़िर से पढ़ लीजियेगा। कौनौ फ़ीस तो लगनी नहीं है।- दुनिया में हर तरफ़ लफ़ड़े बढ़ रहे हैं,
भाई-भाई में देखो झगड़े बढ़ रहे हैं, इनसे निपटने का क्या तो क्या करें?
विक्स की गोली लें खिचखिच दूर करें। - कल रात मुआ चांद फ़िर सपने में आया था
बोलिस कि भैया देखो ये झंडा फ़हराया था देख लो कहीं कुछ फ़साना न हो जाये
गलत फ़हराने का कोई जुर्माना न हो जाये। - चांद लंगड़ा रहा था हम बोले ई कैसे, कैसे हुआ,
तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ? बोला पूछो न भैया डाक्टर के यहां मिला अंधेरा ,
थोड़ी पी के टहल रहे थे उनके आंगन गिरे मुंहभरा! - हाले-दिन सुनाना है,मुआ कनेक्शन नहीं मिलता
हमें तो फ़ुरसत रहती है,उनका नेटवर्क बिजी रहता है
रोना चाहते हैं तेरी याद में ,जी भर के सनम हम
सारा मेकअप बिगड़ जायेगा, बस इसका डर लगता है। - ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती,
लोग पढ़ते हैं टिप्पणी नहीं मिलती, इस ब्लाग दशा से उबरने का उपाय बतायें
टंकी पर चढ़ जायें, मनचाही टिप्पणियां पायें।
ये भी देखिये शायद अच्छा लगे
1. त्रिवेणी: एक विधा2. गुलजार की कविता,त्रिवेणी
3.बारिश में भीगते हायकू का छाता
इससे बढिया भी कुछ मिला?
muktak bare shabdaar rahe, pehli baar hi pari hongi is terah ki kuch lines.
bakiya to sabhi mast hai,
तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
बोला पूछो न भैया डाक्टर के यहां मिला अंधेरा ,
थोड़ी पी के टहल रहे थे उनके आंगन गिरे मुंहभरा!
ha ha ha ha ha ha ha chand ko aap he pilaa sktyn hain, or kise ke bus ka ye kaam to hai nahee…….wonderful writing..enjoyed each word..
regards
तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
शुक्लजी कुछ भी कहिये , सुबह सुबह चोला मस्त हो गया आपकी पोस्ट पढ़ कर ! अभ दो तीन बार और आकर पढेंगे ! बहुत धन्यवाद !
तुक्तक पर भारी –
फ़ुरसतिया होगा पहला कवि,
चिरकुटई से उपजा होगा गान!
सो, अब जल्दी से उस गान की पोडकास्टिंग करवा लीजिए। सब सुनने का आनंद लें।
कविता के नाम पर फुरसती कलम काफी लचक के चली.. मजा आया चाल देखकर.
अर्थ सलाहकार दुर्योधन की डायरी का ‘अर्थ’ ही तो निकाल रहा था. यही कारण है कि दुरजोधन के बारे में जानता है और अर्थ के बारे में नहीं.
“वैसे तो कवित विवेक एक नहीं मोरेहु”…
त झाल कवि ‘वियोगी’ की तरह कवितवा ठेलें का एक ठो?
यह अपने दिमाग के सोचे ( शौचे ) वाला डब्बा साफसुथरा रक्खे वालों के लिये नहीं, बल्कि हम जैसे ज़बरद्स्ती के लेखक विचारक चिंतक ठेलक-पेलक घोंचू मानुष के लिये नसीहत पोस्ट है !
वाह, आनन्दम आनन्दम, उल्टे पंडिताइन इस पोस्ट की तुक भिड़ा रहीं हैं, ” तारीफ़ करूँ क्या उसकी.. जिसने इन्हें बनाया ! ” सच्ची फ़ुरसत में बनाये गये होगे, तभी फ़ुरसतिया मार्का ब्लाग ढालना मुश्किल है ! वाह, आनन्दम आनन्दम.. वैसे मुझे तो इसके पीछे छिपा दर्द भी दिख रहा है सो, साधुवाद !
बढ़िया है
हमें तो फ़ुरसत रहती है,उनका नेटवर्क बिजी रहता है
रोना चाहते हैं तेरी याद में ,जी भर के सनम हम
सारा मेकअप बिगड़ जायेगा, बस इसका डर लगता है।
ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती,
लोग पढ़ते हैं टिप्पणी नहीं मिलती,
इस ब्लाग दशा से उबरने का उपाय बतायें
टंकी पर चढ़ जायें, मनचाही टिप्पणियां पायें।
वाह वाह!
वैसे टंकी पर चढ़े तो तसल्ली को साथ ले जाना अच्छा साथ रहेगा, पता नहीं कितने पल का प्रोग्राम हो टंकी पर। अब टंकी पर चढ़ ही रहे हो तो , लगे हाथ अनुराग जी का भी काम कर देना और चांद को भी ऊपर टांग आना…।
उम्मीद है कि हम अगर इसका इस्तेमाल क्लास में करें तो आप किसी रायल्टी की मांग नहीं करेंगे।
जानते हो, कहते हैं सब मुझे माई?”
बैल बोला धत्त रे
मारूंगा दुलत्त रे
मैं भी चौपाया हूं, और तू भी है चौपाई
अरे सांड भी तो चोपाया है, फ़िर गाय उसे क्या बोलेगी??
अगर हंसना है ओर खुन बढाना है तो आप का लेख जरुर पढना चाहिये.
धन्यवाद
नीरज
वैधानिक चेतावनी : ब्लागिंग राईटिंग इज इंजेरीयश फ़ार रीडर ॥
कह रहा था कि ये फुरसतिया जी को समझाइये कि मुझे ‘मुआ’और ‘लंगडा ‘ क्यों कह रहे हैं .जरा सा गिर गया तो ये ढिंढोरा पीट दिए .
अभी मै हर तरफ़ लफ़ड़े , भाई-भाई में झगड़े नहीं करा रहा हूँ वरना मुझे ऊपर से कभी कोई लाइन कभी कोई लाइन दिखाई दे रही है मै टिप्पणी में बता दूंगा .उदाहरणार्थ ;
ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती
इनसे निपटने का क्या तो क्या करें?
देख लो कहीं कुछ फ़साना न हो जाये
सारा मेकअप बिगड़ जायेगा, बस इसका डर लगता है।
लोग पढ़ते हैं टिप्पणी नहीं मिलती,
इस ब्लाग दशा से उबरने का उपाय बतायें
टंकी पर चढ़ जायें, मनचाही टिप्पणियां पायें।
तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
बोला पूछो न भैया डाक्टर के यहां मिला अंधेरा ,
थोड़ी पी के टहल रहे थे उनके आंगन गिरे मुंहभरा!
आप ने बताया था ये देख लें शायद अच्छा लगे .
त्रिवेणी :एक विधा
मैंने उसे पढ़ा .
आप ने बहुत बदिया ज्ञान दिया है .
इजाज़त हो तो हम भी एक कोशिश कर लें ;
रात भर चाँद ने छटा भी दी दिखला
सुबह का सूरज मचल कर निकला
किसको सुंदर कहें किसको नाराज़ करें