http://web.archive.org/web/20140419220242/http://hindini.com/fursatiya/archives/560
नैनीताल, चाय तुड़ाई और कान से सटा मोबाइल
By फ़ुरसतिया on December 12, 2008
सुबह-सुबह छह बजे चाय वाला कमरे के बाहर चाय रख गया और हमें जगा गया!
कमरे में रात भर हीटर चलता रहा। रजाई , कंबल के गठबंधन में चल रही शरीर-सरकार बिस्तर से बाहर निकलने का मन नहीं बना पा रही थी। लेकिन चाय पीने का मन! उठ के बैठ गये और चाय पान करते हुये गंभीर चिंतन में डूब गये।
आदमी जब गंभीर चिंतन करता है तो अक्सर दूसरे के प्रति उदार और अपने प्रति कठोर हो जाता है। हम सोचने लगे कि एक तरफ़ तो हम हैं जो गर्मागर्म रजाई से निकलकर चाय लेने तक के लिये बाहर नहीं जा रहे हैं दूसरी तरफ़ चाय देने वाला है जो हमें सुबह छह बजे चाय देने के लिये ठिठुरते हुये घर से चार बजे सुबह निकलता है।
नास्ता-वास्ता सूत-सात के बस्ता संभालकर कक्षा की तरफ़ गम्यमान हुये। चेहरे पर जुगाड़ करके थोड़ी उत्सुकता और थोड़ी सीखने की इच्छा की फोटॊ लगा ली।
पहला दिन कौतूहल का था -क्लास में। व्यक्तित्व विकास जैसी कोई चीज पढ़ाई गई। उसी कड़ी में व्यक्तित्व के अलग-अलग प्रवृत्तियों की पड़ताल की गयी। कुछ सवालों के जबाब के आधार पर यह तय किया जा रहा था कि हमारे व्यक्तित्व में किस प्रवृत्ति की प्रधानता है। हमारे बारे में बताया गया कि हम प्रेम-प्यार वाले ग्रुप के आदमी हैं। लोगों को प्यार करते हैं और चाहते भी हैं। 5 नंबर करने के थे तो चार चाहने के। मतलब जित्ता देते हैं उससे कम चाहते हैं। अधिकार भावना को 2 नम्बर ही थे। मतलब कि हमारा कंट्रोल जरा ढीला टाइप का है। ये नहीं कि अकड़-पकड़ के लोगों से काम-धाम करा लें।
अब सवाल-जबाब अंग्रेजी में थे और उलझाऊ टाइप के थे तो कह नहीं सकते कि कित्ता सही है यह मूल्यांकन लेकिन यह उस समय की हमारी अंग्रेजी की जानकारी के अनुसार निकाला गया स्कोर था।
चाय तुड़ाई (टी ब्रेक) के बीच वहीं के एक कर्मचारी लक्ष्मणदास से बातें की। वहां चपरासी हैं। वो वहां के किस्से बताते रहे। बोले नैनीताल में आम आदमी का जीना नरक है। टूरिस्टों के चलते मंहगाई बहुत है। नौकरी पूरी करने के बाद वे वापस अल्मोड़ा लौट जायेंगे। अपनी आधी से अधिक जिंदगी नौकरी के सिलसिले में घर से दूर गुजारने के बाद भी आदमी घर वापस लौटना चाहता है।
लक्ष्मणदास से हमने वहां लगे तीन पेड़ों के नाम जाने। देवदार, चीड़ और पापुलर पेड़। अब एकाध बार गलती करके कम से कम दो पेड़ तो पहचान ही लेंगे कि कौन सा पेड़ कौन है।
बात वहां की सब्जियों के भाव पर भी होती रही। लक्ष्मणदास की सूचना के अनुसार वहां टमाटर के दाम साठ से पैंसठ रुपये तक पहुंच जाते हैं। हमने उस दिन की सब्जियों के भाव पर जम कर बहस की आपस में। जब घूमने गये तो सब्जी बाजार से प्राप्त सूचना , अपनी जानकारी की पुष्टि करने के लिये सब्जियों के भाव पूछते रहे।
शाम को मालरोड टहलने निकले। रास्ता ऊंचा-नीचा। वहां का हाईकोर्ट भी पहाड़ी पर बना हुआ है। एक तो वैसे ही अदालत में आदमी की सांस फ़ूल जाती है दूसरे हाईकोर्ट की सड़क की चढ़ाई-उतराई लोगों को हलकान कर देती होगी। किसी सांस के मरीज का मुकदमा वहां लग जाये तो जाने क्या होता होगा।
हमारे प्रि-पेड कार्ड के पैसे खत्म हो गये थे। बतियाने के लिये हमने उसे रिचार्ज करवाया। जब तक करवाते रहे तब तक साथ कोई साथी कुच्छ नहीं बोला। जहां पैसे भुगत के आगे बढ़े तो उन्होंने खरीद का पोस्टमार्टम करना शुरू कर दिया और दो मिनट में हमें खरीदारी के मामले में चुगद साबित करके अपने चेहरे पर वीरता भाव चिपका लिये।
उनका कहना था कि रिचार्ज करने का काम हमको कानपुर में फोन करके अपने घर फोन करके करवा लेना चाहिये था। दस रुपये कम खर्च होते। हम क्या कहते? कह भी क्या सकते थे? कुछ कह सकते थे क्या?
मालरोड में चहल-पहल बहुत नहीं तो कम भी नहीं थी। काम भर की थी। ज्यादातर लोग जोड़े से टहल रहे थे। हम इस नतीजे पर बिना किसी मतभेद के पहुंच गये कि नैनीताल जैसी जगह पर अकेले नहीं पत्नी /प्रेमिका के साथ आना चाहिये। कुछ का मत था कि अपने हीनभाव को दूर करके नये सिरे से कुछ प्रयास करने चाहिये लेकिन जनसुविधाऒं के मामले पर आपसी सहमति के अभाव के शाश्वत रोने के चलते इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ पायी।
एक सुकन्या एक बेंच नुमा सीढियों पर अपने दोनों गालों पर हाथ सटाये उकड़ू बैठी होंठ हिलाते कुछ बुदबुदा सी रही थी। हमें लगा प्रार्थना कर रही होगी। बाद में पता चला कि वो अपने एक हाथ के नीचे मोबाइल दबाये बतिया रही थी। मोबाइल भी कित्ते स्लिम तो होते जा रहे हैं। आगे क्या सोचा ऊ सब बतायेंगे तो मारे जायेंगे। आप खुद बूझिये- अपने रिक्स पर!
आप आराम से बूझ लीजिये। आगे का किस्सा फ़िर सुनायेंगे। इंशाअल्लाह। फोटू-ओटू भी सटाया जायेगा भाई!
कमरे में रात भर हीटर चलता रहा। रजाई , कंबल के गठबंधन में चल रही शरीर-सरकार बिस्तर से बाहर निकलने का मन नहीं बना पा रही थी। लेकिन चाय पीने का मन! उठ के बैठ गये और चाय पान करते हुये गंभीर चिंतन में डूब गये।
आदमी जब गंभीर चिंतन करता है तो अक्सर दूसरे के प्रति उदार और अपने प्रति कठोर हो जाता है। हम सोचने लगे कि एक तरफ़ तो हम हैं जो गर्मागर्म रजाई से निकलकर चाय लेने तक के लिये बाहर नहीं जा रहे हैं दूसरी तरफ़ चाय देने वाला है जो हमें सुबह छह बजे चाय देने के लिये ठिठुरते हुये घर से चार बजे सुबह निकलता है।
नास्ता-वास्ता सूत-सात के बस्ता संभालकर कक्षा की तरफ़ गम्यमान हुये। चेहरे पर जुगाड़ करके थोड़ी उत्सुकता और थोड़ी सीखने की इच्छा की फोटॊ लगा ली।
पहला दिन कौतूहल का था -क्लास में। व्यक्तित्व विकास जैसी कोई चीज पढ़ाई गई। उसी कड़ी में व्यक्तित्व के अलग-अलग प्रवृत्तियों की पड़ताल की गयी। कुछ सवालों के जबाब के आधार पर यह तय किया जा रहा था कि हमारे व्यक्तित्व में किस प्रवृत्ति की प्रधानता है। हमारे बारे में बताया गया कि हम प्रेम-प्यार वाले ग्रुप के आदमी हैं। लोगों को प्यार करते हैं और चाहते भी हैं। 5 नंबर करने के थे तो चार चाहने के। मतलब जित्ता देते हैं उससे कम चाहते हैं। अधिकार भावना को 2 नम्बर ही थे। मतलब कि हमारा कंट्रोल जरा ढीला टाइप का है। ये नहीं कि अकड़-पकड़ के लोगों से काम-धाम करा लें।
अब सवाल-जबाब अंग्रेजी में थे और उलझाऊ टाइप के थे तो कह नहीं सकते कि कित्ता सही है यह मूल्यांकन लेकिन यह उस समय की हमारी अंग्रेजी की जानकारी के अनुसार निकाला गया स्कोर था।
चाय तुड़ाई (टी ब्रेक) के बीच वहीं के एक कर्मचारी लक्ष्मणदास से बातें की। वहां चपरासी हैं। वो वहां के किस्से बताते रहे। बोले नैनीताल में आम आदमी का जीना नरक है। टूरिस्टों के चलते मंहगाई बहुत है। नौकरी पूरी करने के बाद वे वापस अल्मोड़ा लौट जायेंगे। अपनी आधी से अधिक जिंदगी नौकरी के सिलसिले में घर से दूर गुजारने के बाद भी आदमी घर वापस लौटना चाहता है।
लक्ष्मणदास से हमने वहां लगे तीन पेड़ों के नाम जाने। देवदार, चीड़ और पापुलर पेड़। अब एकाध बार गलती करके कम से कम दो पेड़ तो पहचान ही लेंगे कि कौन सा पेड़ कौन है।
बात वहां की सब्जियों के भाव पर भी होती रही। लक्ष्मणदास की सूचना के अनुसार वहां टमाटर के दाम साठ से पैंसठ रुपये तक पहुंच जाते हैं। हमने उस दिन की सब्जियों के भाव पर जम कर बहस की आपस में। जब घूमने गये तो सब्जी बाजार से प्राप्त सूचना , अपनी जानकारी की पुष्टि करने के लिये सब्जियों के भाव पूछते रहे।
शाम को मालरोड टहलने निकले। रास्ता ऊंचा-नीचा। वहां का हाईकोर्ट भी पहाड़ी पर बना हुआ है। एक तो वैसे ही अदालत में आदमी की सांस फ़ूल जाती है दूसरे हाईकोर्ट की सड़क की चढ़ाई-उतराई लोगों को हलकान कर देती होगी। किसी सांस के मरीज का मुकदमा वहां लग जाये तो जाने क्या होता होगा।
हमारे प्रि-पेड कार्ड के पैसे खत्म हो गये थे। बतियाने के लिये हमने उसे रिचार्ज करवाया। जब तक करवाते रहे तब तक साथ कोई साथी कुच्छ नहीं बोला। जहां पैसे भुगत के आगे बढ़े तो उन्होंने खरीद का पोस्टमार्टम करना शुरू कर दिया और दो मिनट में हमें खरीदारी के मामले में चुगद साबित करके अपने चेहरे पर वीरता भाव चिपका लिये।
उनका कहना था कि रिचार्ज करने का काम हमको कानपुर में फोन करके अपने घर फोन करके करवा लेना चाहिये था। दस रुपये कम खर्च होते। हम क्या कहते? कह भी क्या सकते थे? कुछ कह सकते थे क्या?
मालरोड में चहल-पहल बहुत नहीं तो कम भी नहीं थी। काम भर की थी। ज्यादातर लोग जोड़े से टहल रहे थे। हम इस नतीजे पर बिना किसी मतभेद के पहुंच गये कि नैनीताल जैसी जगह पर अकेले नहीं पत्नी /प्रेमिका के साथ आना चाहिये। कुछ का मत था कि अपने हीनभाव को दूर करके नये सिरे से कुछ प्रयास करने चाहिये लेकिन जनसुविधाऒं के मामले पर आपसी सहमति के अभाव के शाश्वत रोने के चलते इस दिशा में बात आगे नहीं बढ़ पायी।
एक सुकन्या एक बेंच नुमा सीढियों पर अपने दोनों गालों पर हाथ सटाये उकड़ू बैठी होंठ हिलाते कुछ बुदबुदा सी रही थी। हमें लगा प्रार्थना कर रही होगी। बाद में पता चला कि वो अपने एक हाथ के नीचे मोबाइल दबाये बतिया रही थी। मोबाइल भी कित्ते स्लिम तो होते जा रहे हैं। आगे क्या सोचा ऊ सब बतायेंगे तो मारे जायेंगे। आप खुद बूझिये- अपने रिक्स पर!
आप आराम से बूझ लीजिये। आगे का किस्सा फ़िर सुनायेंगे। इंशाअल्लाह। फोटू-ओटू भी सटाया जायेगा भाई!
आगे के इँतजार मेँ
- लावण्या
टमाटर ६० रुपये किलो…? बाप रे… अच्छा है अकेले गये .. वर्ना…:)
राम राम !
कुछ वाक्य-प्रयोग मजेदार लगे.
बाकी समय चाय-तुड़ाई और कंबल गठबंधन के चिंतन में लगा दिया..
और.. हमको एक अच्छी पोस्ट मिल गयी !
इसी तरह सबके दिन बहुरें !
तभी कहते हैं “नानक दुखिया सब संसार” लोग दुःख कम करने नैनीताल जाते हैं और जो नैनीताल में हैं वो वहां खुश नहीं…कमाल है. अजब तेरी कारीगरी रे करतार….
फोटो और कथ्य दोनों बेमिसाल…
नीरज
आदत से गजब मजबूर हैं आप… वरना हर जगह पत्नी व प्रेमिका में स्लैश नहीं लग सकता। नैनीताल सी जगह पर प्रेमिका के साथ जाएं ये तो समझ आता है वरना साठ रुपए किलो टमाटर वाली जगह कोई पत्नी के साथ जाने की है।
खैर नंबर तो बढ़िया मिला है … प्यार बाँटते चलो टाइप.
—–
अच्छा, प्रार्थनारत सुकन्या का फोटो भी लिया है आपने? बड़ा रचनात्मक कार्य किया!
ये ट्रेनरों की जांच पड़ताल पर ज्यादा विश्वास नहीं करना चाहिए…॥:)
धन्यवाद