Thursday, January 29, 2009

सोचते हैं उदास ही हो जायें

http://web.archive.org/web/20140419215206/http://hindini.com/fursatiya/archives/575

31 responses to “सोचते हैं उदास ही हो जायें”

  1. seema gupta
    ” ओह आज पता चला की सोच सोच के कित्ता टाइम खोटी किए आप….पर इ सोच सोच में लाल स्वेटर और लाल टुपट्टा का मामला बहुत जम गया…..हा हा हा हा ”
    Regards
  2. Manoshi
    सच्ची, आप ही से कोई लिखने की कला सीखे, कोई मतलब निकले न निकले, कोई टापिक हो न हो…
  3. PN Subramanian
    बुद्धत्व को प्राप्त करने में भी और से भी लफडा ही है.
  4. Prashant (PD)
    हद है भाई.. आप अपना टाइम बर्बाद किये तो किये.. अब फिर से आप सोचिये.. ई अल्ल-बल्ल जो लिखे हैं उसे केतना आदमी पढेगा.. चलिए मान लेते हैं कि कम से कम १०० आदमी पढेगा.. एतना लंबा लिखे हैं कि सब कोई कम से कम 10 मिनट तो पढ़बे करेगा ना? कम से कम १० आदमी हमरे जैसन लम्बा-लम्बा टिपियायेगा.. जिसमे फिर से १० मिनट मान लीजिये.. तो केतना हुआ?
    (10×100)+(10*10)=1000+100=1100
    अब ई मिनटवा को घंटवा में बदलते हैं..
    1100/60=18.33
    अब एक आदमी एक दिन में औसत ८ घंटा काम करता है.. सो इसको ८ से भागा देते हैं..
    18.33/8=2.29
    एक बिलोगर का एक पोस्ट २.२९ आदमी के बराबर काम का हर्जा करता है तो सोचिये कि एतना पोस्ट हर दिन पोस्ट होता है, ऊ केतना हर्जा करता होगा? :D
    हम तो कहते हैं कि खाली ई बिलोगर्वा के चलते भारत में आर्थिक संकट है.. सब कोई पोस्ट पढ़े लिखे में मस्त है.. कोई काम धाम करता नहीं है.. तो और का होगा? ;)
  5. seema gupta
    पंक्तियां कुछ लिखी पत्र के रूप में,
    क्या पता क्या कहा, उसके प्रारूप में,
    चाहता तो ये था सिर्फ़ इतना लिखूं
    मैं तुम्हें बांच लूं, तुम मुझे बांचना।
    फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
    शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
    अंसार कंबरी जी द्वारा रचित ये कविता पढवाने का आभार….कितने सारे भावो और विचारों ने घेर लिया मन को….अती सुंदर…
    Regards
  6. विवेक सिंह
    बहुत दिन बाद असली फुरसतिया पोस्ट आयी है . मज़ा आ गया .
    काफी दिन ऐसे ही आलतू फालतू लिखने में जाया कर दिए .
    वैसे प्रशांत ने जो समय जाया करने वाली बात कही उसमें लोचा है . पूछिए का ?
    नहीं पूछा ? चलिए हम फिर भी बता डालते हैं . आपके ऊपर तो प्रशांत का जोर नहीं चला . पर अपना टाइम तो इतनी बडी टिप्पणी लिखने में जाया होने से बचा सकते थे .
    हमारी बात अलग है . हम तो चाहते हैं कि टाइम जाया हो .
  7. ravindra.prabhat
    अभिव्यक्ति अत्यन्त सुंदर है और भावनात्मक भी !
  8. संजय बेंगाणी
    बहुत चिंतन हो गया, अब काम पर लौटें…
  9. Dr.anurag
    बहुत सोचते है जी आप….
    .वैसे हमारे एक मित्र ओर थे कही भी किसी भी अवस्था में सोचने लगते थे ….स्कूटर चलाते वक़्त भी…..ओर देखिये जी आपका ये लाल स्वेटर जो है इसे अच्छे ड्राई क्लीनर से धुलवा कर अगली सर्दी के लिए रखियेगा ..ताकि इसका रेशा रेशा ठीक रहे…..अगले साल फ़िर दूसरी फोटो का भी तो मजा लेना है …शायद कुश का ही ब्याह हो जाए …सर्दियों में…..
    कविता वाकई खूबसूरत अहसास दे गयी है.
  10. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    हम तो पहले ही उदास हैं। कोई खुश होने का आवाहन करती पोस्ट लिखें।
  11. ताऊ रामपुरिया
    पंक्तियां कुछ लिखी पत्र के रूप में,
    क्या पता क्या कहा, उसके प्रारूप में,
    चाहता तो ये था सिर्फ़ इतना लिखूं
    मैं तुम्हें बांच लूं, तुम मुझे बांचना।
    लाजवाब है जी. आज है असली फ़ुरसतिया पोस्ट का मजा. अब हम क्या करें? हमारे पास तो टाईंम ही टाईम है.:)
    रामराम.
  12. समीर लाल
    वाकई फुरसत में पढते पढ़ते घोंघा से हो गये. बहुत चिन्तन कर लिए, अब सो जाईये और हां, अंसार कंबरी जी की कविता में आनन्द आ गया.
  13. समीर लाल
    टेस्टिंग १-२-३ समाप्त.
  14. Abhishek Ojha
    ऐ महाराज ! एक तो सोचते हैं उ भी उदास होने का ? इ तो वैसे ही हो गया जैसे … ‘एक तो करेला डीजे, चड्ढा नेम’ वैसे कहाँ से कहाँ भटका ले गए आप… ये भी बढ़िया कला है आपकी.
  15. mamta
    ख़ुद भी उदास हुए और दूसरों को भी उदास कर दिया ।
    अब उदास हो लिए हो तो कुछ खुश होने की बात भी हो जाए । :)
    कौनो एजेंडा की जरुरत नही है । :)
  16. kanchan
    फ़िर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
    शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
    पूछना हूं स्वयं से कि मैं कौन हूं
    किसलिये था मुखर किसलिये मौन हूं
    प्रश्न का कोई उत्तर तो आया नहीं,
    नीड़ एक आ गया सामने अधबना।
    फ़िर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
    शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
    चित्र उभरे कई किंतु गुम हो गये,
    मैं जहां था वहां तुम ही तुम हो गये,
    लौट आने की कोशिश बहुत की मगर,
    याद से हो गया आमना-सामना।
    फ़िर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
    शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
    पंक्तियां कुछ लिखी पत्र के रूप में,
    क्या पता क्या कहा, उसके प्रारूप में,
    चाहता तो ये था सिर्फ़ इतना लिखूं
    मैं तुम्हें बांच लूं, तुम मुझे बांचना।
    फिर उदासी तुम्हें घेर बैठी न हो,
    शाम से ही रहा मैं बहुत अनमना।
    poori kavita hi achchhi thi…kis line ko quote karti
  17. कार्तिकेय
    बै महाराज, इहाँ तो रोने-धोने की बात हो रही है, हमारे जैसे लोगों का क्या काम…!
    कस्सम से, उदास हुए भी नहीं. बस सोचा ही था की हो लें, और इत्ते सारे लोगों का टाइम खोटी कर डाला. जब सहिये में उदास होएँगे तो ब्लाग-ट्रेफिके बंद हो जायेगा..
    पीडी भाई इस बूर्ज्वा मानसिकता के ख़िलाफ़ संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं…
  18. mahendra mishra
    साफ़ आईनों चेहरे भी नजर आते हैं साफ़
    धुंधला चेहरा हो तो आईना भी धुंधला चाहिये..
    सुंदर अभिव्यक्ति है …..
  19. Digamber Naswa
    फुर्सत मैं लिखी हुई बातें बहूत फुर्तीले से असर करती हैं फ़ुरसतिया जी
    पढा तो पहली बार आपका ब्लॉग…………..पर अलग अलग ब्लोग्स पर आप का ज़िक्र बहुर फुर्सत से आता है.
    मजा अ गया आपके कलम की धार देख कर………..
  20. डा. अमर कुमार

    हम तो तेरह घंटे से सोच रहे हैं,जी ।
    टिप्पणी को सही शब्द सोच ही नहीं पा रहे हैं ।
    किसी कंदरा में या वटवृक्ष के तले बैठ के सोचता हूँ,
    फिर, वापस लौटता हूँ ।
  21. लावण्या
    उदासी ,
    जब आहिस्ता से पीछे छूट जाती है
    तब सच मानिये
    खुशियाँ मुस्कुराकर और दिल लुभातीँ हैँ
    - लावण्या
  22. बवाल
    बहुत ख़ूब फ़ुर्सतिया जी, कौन टाइप के हो गए आज भाई ? एक दम सीरियस । चलो मालूम तो पड़ा के कभी इ भी हुआ करते हो। और ज़्यादा अनमने वनमने होने की ज़रूरत नहीं। आप फ़ुरसत में ही सूट करते हैं। हा हा हा
  23. नीरज रोहिल्ला
    सोचा कि टिप्पणी लिख दें, फ़िर सोचा लिखेंगे थोडे ही टाईप करेंगे। टाईपिंग एक जमाने में हमने भी सीखी थी “अरोडा टाईपिंग एंड शार्टहैंड इन्सटीट्यूट” से, लेकिन अब वो बच्चों को इंगलिश स्पीकिंग कोर्स सिखाते हैं। इंगलिश स्पीकिंग के लिये हमने रैपीडेक्स वाली किताब भी पढी है लेकिन उसको पढके हम ३० दिनों में फ़र्राटेदार इंगलिश नहीं बोल पाये, बापू को लगा कि ६० रूपये बेकार गये। बापू तो वैसे भी चिन्ता करते रहते हैं, अभी पूछ रहे थे कि अब भी दुकाने बचाकर रखें या बेच दें, हम कुछ बोलते इससे पहले बोले कि रिसेशन का जमाना है बचा के रख लेते हैं तुम्हारी नौकरी न लगी और परचूने की दुकान खोलनी पडी तो। दुकानों में परचूने की दुकान का अपना मजा है मेरे पडौसी अपनी दुकान पर मोटा से तकिये पर अजदकी मुद्रा में लेटे(बैठे) ही काम चला लेते हैं। दुकान वैसे हमें हलवाई की भी बहुत पसन्द है, कभी दुकान खोले तो या तो परचूने की वरना हलवाई की।
    अरे चले तो टिप्पणी लिखने थे लेकिन गडबड में फ़ुरसतीय़ टिप्पणी लिख गये। चलो अगली पोस्ट में इसका बदला चुका देंगे :-) कविता बहुत जोरदार रही, हमने सहेज ली है अपने कई मित्रों को जरूर पढवायेंगे।
  24. आइये घाटा पूरा करें और सुखी हो जायें
    [...] पिछली पोस्ट में प्रशान्त प्रियदर्शी हमारे टोटल टाइम वेस्ट से दुखी से हो गये और ऐसन टिपियाये: हद है भाई.. आप अपना टाइम बर्बाद किये तो किये.. अब फिर से आप सोचिये.. ई अल्ल-बल्ल जो लिखे हैं उसे केतना आदमी पढेगा.. चलिए मान लेते हैं कि कम से कम १०० आदमी पढेगा.. एतना लंबा लिखे हैं कि सब कोई कम से कम 10 मिनट तो पढ़बे करेगा ना? कम से कम १० आदमी हमरे जैसन लम्बा-लम्बा टिपियायेगा.. जिसमे फिर से १० मिनट मान लीजिये.. तो केतना हुआ? (10×100)+(10*10)=1000+100=1100 अब ई मिनटवा को घंटवा में बदलते हैं.. 1100/60=18.33 अब एक आदमी एक दिन में औसत ८ घंटा काम करता है.. सो इसको ८ से भागा देते हैं.. 18.33/8=2.29 एक बिलोगर का एक पोस्ट २.२९ आदमी के बराबर काम का हर्जा करता है तो सोचिये कि एतना पोस्ट हर दिन पोस्ट होता है, ऊ केतना हर्जा करता होगा? हम तो कहते हैं कि खाली ई बिलोगर्वा के चलते भारत में आर्थिक संकट है.. सब कोई पोस्ट पढ़े लिखे में मस्त है.. कोई काम धाम करता नहीं है.. तो और का होगा? [...]
  25. ताऊ रामपुरिया
    आपकी आज की यानि ३० जनवरी की पोस्ट पर कमेंट बाक्स नही दिखाई दे रहा है. सब जोगाड लगा लिया, जबकि दुसरे कमेंट मौजूद हैं.
    रामराम.
  26. बवाल
    ऎ फ़ुरसतिया साहब, तोहार ऊ नवा पोस्ट कमेण्टवा काहे नहीं पचावत है, भाई ? का बदहज्मी होय गई के कौनौ अऊर बातबा। द्याखा अऊर बतावा हम्का तनी। बहूत टैन्शनवा होय गवा है हियाँ।
  27. anitakumar
    साफ़ आईनों चेहरे भी नजर आते हैं साफ़
    धुंधला चेहरा हो तो आईना भी धुंधला चाहिये..
    एकदम सही और कविता बेमिसाल्। आज की ये बिना एजेंडा वाली पोस्त पढ़ कर तो सच में हम उदास हो लिए, अब उदास किए हैं तो हंसाने की जिम्मेदारी आप की है न
  28. roushan
    सोच में डाल दिया गुरु
    अब और क्या सोचें ?
  29. कविता वाचक्नवी
    इसे एक बार २-३ फ़रवरी को पढ़ा था, उन दिनों घर में जीजी को सिधारे २ दिन ही हुए थे, सो कुछ कहना मानो हुआ ही नहीं। क्योंकि इस पोस्ट का मनोविज्ञान उदास होने की कोशिश नहीं बल्कि उदासी को हँसी में टालने की कोशिश लगी थी। तब यह सोचकर नहीं लिखा कि (कहीं अपने यहाँ की परिस्थितिवश) ऐसा आरोपित किया गया न लगे। सोचा था,कभी दुबारा पढ़ कर फिर देखूँगी।
    सरपराइज़िंगली, आज पढ़ा, तो आज भी वहीं पहुँची। उदास होने की कोशिश के नाम ‘ सोचते है उदास हो जाएँ’ वस्तुत: ‘लगता है उदास हैं’ है।
    गीत की पंक्तियाँ बड़ी मधुरिम किन्तु पीड़ा में डूबी हैं। श्रॄंगार रस को इसलिए भी उज्ज्वल रस कहा जाता होगा।
    किस्सागोई के सारे सूत्र यहाँ साफ़ साफ़ दिखाई देते हैं।
  30. : आशा ही जीवन है
    [...] खराब दौर से गुजर रहे हैं। मैंने सोचा हम भी उदास हो जायें लेकिन इसी समय मुझे अपनी एक पुरानी [...]
  31. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] सोचते हैं उदास ही हो जायें [...]

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