http://web.archive.org/web/20101216163810/http://hindini.com/fursatiya/archives/592
अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
आई मौज फ़कीर को…
हां तो हम क्या बता रहे थे? गुरू जी जम्हुआते हुये उवाचे!
गुरुदेव आप फ़कीर कथा सुना रहे थे, एक सजग चेला उबासी लेते हुये बोला।
हां भली याद दिलाई बच्चा! आजकल बुद्धि ससुर एकदम सांस्कृतिक हो गयी। सब गड्ड-मड्ड हो जाता है।
हां तो बच्चा हम बता रहे थे कि वो फ़कीर मौज में आ गया और उसने झोपड़ा फ़ूंक दिया। जब झोपड़ा पूरा फ़ुंक गया तो गांव वाले फ़ायर ब्रिगेड वालों की तरह हल्ला मचाते हुये पहुंचे और बुझी हुई आग को घंटो बुझाते रहे और तमाम अल्लम-गल्लम बातें करते हुये हें हें, ठे, ठें करते रहे। हें हें, ठें ठे जब ज्यादा हो गयी तो नये पन के लिये वे झोपड़ी की बुझी हुयी राख को एक दूसरे पर मलने लगे और हंसी-ठ्ट्ठा करने लगे। तदनंतर कुछ लोग गाने-बजाने लगे। अपनी-अपनी डपली बजाने लगे। लोगों को फ़्री-फ़ंड की इस मौज-मस्ती का पैकेज इत्ता पसंद आया कि हर साल ये हरकत दोहराने लगे। बीच बीच में दोहराते रहे आई मौज फ़कीर की दिया झोपड़ा फ़ूंक ताकि कॊई उनको दोषी न ठहरा सके।
बाद में यही सब होली के त्योहार के रूप में प्रसिद्ध हो गया। और हर साल मौज-मजे से लोग मनाते हैं।
लेकिन गुरुदेव लोककथा तो प्रहलाद के बचने की और उसकी बुआ के जलने की है।
बच्चा लगता है सुबह-सुबह ज्ञानजी का ब्लाग पढ़ लिया और हौलटपना दिखाने लगा। बच्चा सच्चे शिष्य की तरह मैं जो कहता हूं वह सुन और अगर शास्त्रार्थ करना है तो जा शास्त्री के ठीहे पर और अपने दिमाग को भारतीय संस्कृति की तरह बना!
गुरुदेव अब इस मंदी के जमाने में कहां जायें, किस भरोसे जायें? आपके अड्डे पर कम से कम चाय का तो जुगाड़ है। हम तो न जायेंगे आपकी शरण से। कहिये तो वो वाला भजन भी गा दें- प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
न! न! बच्चा गाना ऊना मत गाओ। आजकल कान के डाक्टर भी बहुत पैसा मांगने लागने हैं। पिछले बार के तुम्हारे गाये भजन से अभी तक कान भनभना रहे हैं। डाक्टर भी बेचारा मर्ज पकड़ नहीं पा रहा है।
अरे गुरुजी, आप हमारे गाने में ही इत्ता हलकान हो गये। कहूं समीरगान सुन लिये तो का हाल होयेगा?
अरे बच्चा टाइम मत बरबाद कर बेफ़िजूल की बातों में। चल कथा आगे बढ़ायें! चल।
चलिये गुरुजी। हम तो चल ही रहे हैं साथ में।
अरे बच्चा तुम लोग एकदम्मै हौलट हो गये हो लगता है। आगे चलने का मतलब है कि अब तुम सवाल पूछो। हम उनका जबाब देंगे। मतलब शंका समाधान करेंगे।
लेकिन गुरूजी, आपने जो शंकायें लिख के दीं थी वो तो प्रशान्त के पास हैं। और उसके पांव में चोट लग गयी इसलिये आज आया नहीं गुरुदेव विमर्श में।
ये आजकल के लड़के भी विमर्श से बचने के लिये कैसे-कैसे बहाने बनाते हैं।
गुरुजी तो फ़िर क्या करें? हमारे पास वो वाली शंकायें हैं जो आपने प्रेम और वासना विमर्श के वाले प्रवचन में मुझे दी थी। उनको दुबारा पूछ लें।
अरे बच्चा, विमर्श और शंका में संगति दोष नहीं होना चाहिये। जिस विषय पर प्रवचन हो उसी पर शंकाये करना चाहिये। हमारा विमर्ष कोई शास्त्रीजी की पोस्ट तो हैं नहीं है कि शीर्षक ईरान का है बात तूरान की। तुम अपने मन से शंका करो। जो होगा देखा जायेगा।
गुरुदेव हम अभी आते हैं जरा कामर्शियल ब्रेक लेकर। तब सवाल पूछेंगे।
आप भी इंतजार करिये। कोई शंका हो तो बताइये। समाधान किया जायेगा।
गुरुदेव आप फ़कीर कथा सुना रहे थे, एक सजग चेला उबासी लेते हुये बोला।
हां भली याद दिलाई बच्चा! आजकल बुद्धि ससुर एकदम सांस्कृतिक हो गयी। सब गड्ड-मड्ड हो जाता है।
हां तो बच्चा हम बता रहे थे कि वो फ़कीर मौज में आ गया और उसने झोपड़ा फ़ूंक दिया। जब झोपड़ा पूरा फ़ुंक गया तो गांव वाले फ़ायर ब्रिगेड वालों की तरह हल्ला मचाते हुये पहुंचे और बुझी हुई आग को घंटो बुझाते रहे और तमाम अल्लम-गल्लम बातें करते हुये हें हें, ठे, ठें करते रहे। हें हें, ठें ठे जब ज्यादा हो गयी तो नये पन के लिये वे झोपड़ी की बुझी हुयी राख को एक दूसरे पर मलने लगे और हंसी-ठ्ट्ठा करने लगे। तदनंतर कुछ लोग गाने-बजाने लगे। अपनी-अपनी डपली बजाने लगे। लोगों को फ़्री-फ़ंड की इस मौज-मस्ती का पैकेज इत्ता पसंद आया कि हर साल ये हरकत दोहराने लगे। बीच बीच में दोहराते रहे आई मौज फ़कीर की दिया झोपड़ा फ़ूंक ताकि कॊई उनको दोषी न ठहरा सके।
बाद में यही सब होली के त्योहार के रूप में प्रसिद्ध हो गया। और हर साल मौज-मजे से लोग मनाते हैं।
लेकिन गुरुदेव लोककथा तो प्रहलाद के बचने की और उसकी बुआ के जलने की है।
बच्चा लगता है सुबह-सुबह ज्ञानजी का ब्लाग पढ़ लिया और हौलटपना दिखाने लगा। बच्चा सच्चे शिष्य की तरह मैं जो कहता हूं वह सुन और अगर शास्त्रार्थ करना है तो जा शास्त्री के ठीहे पर और अपने दिमाग को भारतीय संस्कृति की तरह बना!
गुरुदेव अब इस मंदी के जमाने में कहां जायें, किस भरोसे जायें? आपके अड्डे पर कम से कम चाय का तो जुगाड़ है। हम तो न जायेंगे आपकी शरण से। कहिये तो वो वाला भजन भी गा दें- प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
न! न! बच्चा गाना ऊना मत गाओ। आजकल कान के डाक्टर भी बहुत पैसा मांगने लागने हैं। पिछले बार के तुम्हारे गाये भजन से अभी तक कान भनभना रहे हैं। डाक्टर भी बेचारा मर्ज पकड़ नहीं पा रहा है।
अरे गुरुजी, आप हमारे गाने में ही इत्ता हलकान हो गये। कहूं समीरगान सुन लिये तो का हाल होयेगा?
अरे बच्चा टाइम मत बरबाद कर बेफ़िजूल की बातों में। चल कथा आगे बढ़ायें! चल।
चलिये गुरुजी। हम तो चल ही रहे हैं साथ में।
अरे बच्चा तुम लोग एकदम्मै हौलट हो गये हो लगता है। आगे चलने का मतलब है कि अब तुम सवाल पूछो। हम उनका जबाब देंगे। मतलब शंका समाधान करेंगे।
लेकिन गुरूजी, आपने जो शंकायें लिख के दीं थी वो तो प्रशान्त के पास हैं। और उसके पांव में चोट लग गयी इसलिये आज आया नहीं गुरुदेव विमर्श में।
ये आजकल के लड़के भी विमर्श से बचने के लिये कैसे-कैसे बहाने बनाते हैं।
गुरुजी तो फ़िर क्या करें? हमारे पास वो वाली शंकायें हैं जो आपने प्रेम और वासना विमर्श के वाले प्रवचन में मुझे दी थी। उनको दुबारा पूछ लें।
अरे बच्चा, विमर्श और शंका में संगति दोष नहीं होना चाहिये। जिस विषय पर प्रवचन हो उसी पर शंकाये करना चाहिये। हमारा विमर्ष कोई शास्त्रीजी की पोस्ट तो हैं नहीं है कि शीर्षक ईरान का है बात तूरान की। तुम अपने मन से शंका करो। जो होगा देखा जायेगा।
गुरुदेव हम अभी आते हैं जरा कामर्शियल ब्रेक लेकर। तब सवाल पूछेंगे।
आप भी इंतजार करिये। कोई शंका हो तो बताइये। समाधान किया जायेगा।
लगता है कि बडे फुरसत में बैठ कर लिखा है!!
होली के आनंदमय अवसर पर आप की इस प्रस्तुति के लिये बधाई, शुक्रिया!!
सस्नेह — शास्त्री
शंका करना पाप हैं चाहे वो लघु ही क्यूँ ना हो
निर्मूल शंका भी होती हैं , गुरु शंका करे चेला मैला ढोये पापी ब्लॉग का सवाल हैं सो लगे रहो
रामराम.
नीरज
कुश भी अच्छी मौज ले ही लिये..
मुला मौज़ तौ हमका आवा रहा,
ई बात भला आपका कउन बताय दिहिस ?
ईहाँ पर्चा लीक होय केर सीज़न आय,
अउर ससुर नफ़ा का धँधा छोड़ु
ई अंतःपुर के बतिया कउन लीक किहिस, भाई ?
तौन इनका द्याखौ.. मंडली जमाय के आपुन झाड़े परे हँय,
धकाधक धकाधक धकाधक.. धकाधक !
.. .. .. .. .. : )
” गुरु शंका करे चेला मैला ढोये पापी ब्लॉग का सवाल हैं सो लगे रहो..”
Really enjoyed this Nice jest, Rachna Didee !
ई खोया मँहगा क्या हुआ ?
गुझिया लपेटना छोड़ छाड़ अपनों को ही लपेटने लगीं ?
कुश को कुछ न कहना.. क़ाफ़ी पियेला हूँ.
नहीं भाई , क़ाफ़ी पियेला हूँ.क़ाफ़ी.. क़ाफ़ी पियेला हूँ. क़ाफ़ी !
नेसले की क़ाफ़ी … ठेके वाली क़ाफ़ी कउन कह रहा है, जी ?
हमको लगा आप भी फागुन के रंग में कही बिजी -शीजी चल रहे होगे .इधर हम भी रोजी रोटी के जुगाड़ में लगे थे सो आपके प्रवचन में लेट पहुंचे ..पर ये मुआ कमर्शियल ब्रेक बहुत लम्बा हो गया है नहीं…आप भी अपने प्रवचन में टिकटों का जुगाड़ काहे नहीं करते….पहली रो में इतनी मौज .दूसरी रो में इत्ती …तीसरी में इत्ती ..अब देखिये हमारे पहुचने तक सब ख़त्म हो गयी .वैसे भी इधर कोई भी शंका उठती है तो हम दबा देते है …ससुरा कौन नाराज हो जाये कौन दिल पे ले बैठे ….
अगला प्रवचन कौन सी तारीख तय मानु ?
– लावण्या
होली की ढेर सारी शुभकामनायें….!
आदरसहित
ताऊ रामपुरिया
होली की शुभकामनाओं सहित!!!
प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर
और समस्त ब्लॉग जगत के धुरंधरों को होली की रंगबिरंगी शुभकामनायें. हम तो गुरू, चेले और उन सभी जिनको मौज आई है का स्वागत / आदर करते हैं. भई अपन तो साथ खडे हो गये और फ्लैश चमक गई चेहरे पर तो अपनी होली / दिवाली / ईद सभी हो गई.
बाकी तो गुरूजी जाने.
आदर सहित
मुकेश कुमार तिवारी