Saturday, April 11, 2009

मेरे मन उदास मत होइयो

http://web.archive.org/web/20140419214914/http://hindini.com/fursatiya/archives/604

29 responses to “मेरे मन उदास मत होइयो”

  1. kajal kumar
    ओह..मन, मन न हुआ….नेता हो गया…
  2. रवि
    “…मंह में राम बगल छूरी न रखियो,
    मुंह में भी छुरी तेज लगवैइयो।…”

    लगता है आपके हीरो के दांत नहीं हैं – औसत भारतीय राजनीतिज्ञ जैसे जो 70 साल के बूढ़े हो गए हैं, इसीलिए, नहीं तो आप कहते -
    अपने दांतों में धार करिवैयो….
  3. दिनेशराय द्विवेदी
    बगल में तो अब बम आ गए हैं, छुरी मुहँ में।
  4. anil kant
    राजनीति पर अच्छी रचना लिखी है …मज़ा आ गया …एकदम मस्त
    मेरी कलम – मेरी अभिव्यक्ति
  5. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    वाह-वाह !
    यह असली ‘चुनाव आचार संहिता’ है जिसका पालन कराने के लिए किसी ‘ऑब्जर्वर’ की जरूरत नहीं पड़ती।
  6. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    पर न हो निराश मन;
    क्यों कि कठिनतम चुनाव
    भी न कर सकेगा कम,
    तनिक क्षणिक तेरा भाव!
    राह में रह अग्रसर
    ब्लॉग में न रहे कसर
    शांत भाव से ठेल कर
    देख जन की हांव-हांव!
  7. nirmla.kapila
    fursatiya ji bahut samay par aapne badiya seekh de di aap kahin chunav guru ka board laga len dekhen raton rat netaon kaa tanta lag jayega
  8. समीर लाल ’उड़नतश्तरी वाले ओरीजनल’
    नहीं होंगे!!
  9. PN Subramanian
    “तबहू बात न बने तो चुल्लू भर पानी माँ डूब मरिये”
    हमारे अंतिम पंक्ति यों होते.
  10. seema gupta
    मंह में राम बगल छूरी न रखियो,
    मुंह में भी छुरी तेज लगवैइयो।
    ” हा हा हा हा हा हा हा हा हा खूब कही आज तो ..”
    Regards
  11. कविता वाचक्नवी
    आज तो मन बहुत उदास है। विष्णु प्रभाकर जी की अनुपस्थिति के साथ ही युग समाप्त।
  12. कुश
    सुन्दर अभिव्यक्ति.. ! बधाई :)
  13. संजय बेंगाणी
    मन प्रसन्न हो गया जी.
  14. मीन
    चुनावी मैदान में उतरे लोग खुद कहाँ उदास होते है..वे तो दूसरे को उदास करने के नए नए हथकंडे ढूँढते रहते हैं…देशज भाषा में लिखी कविता आज के समय पर बिल्कुल सही बैठती है..
  15. dhiru singh
    हाय इतनी अच्छी बात देर से क्यों बताई , नेतागिरी इससे अच्छी किसी ने न सिखाई
  16. anil pusadkar
    एक चुनाव चर संहिता भी बना डालिये लगे हाथों।
  17. हिमांशु
    मजेदार प्रविष्टि । ’जैइयो’ का उच्चारण मुश्किल हो रहा है । रफ्तार में तो पढ़ गया, पर खयाल से नहीं । ’जैयो’ या ’जइयो’ क्यों नहीं ? जैइयो के उच्चारण में तुक-भंग हो रहा है, शायद ।
  18. Shiv Kumar Mishra
    मन हो उदास तो टिकट पकड़
    कुछ ताम करो कुछ झाम करो
    दक्षिणपंथी या वाम करो
  19. Dr.Arvind Mishra
    बढियां है !
  20. Deepak
    ha ha ha ha !!
  21. लावण्या
    अजीब बोझिल हो रहा है राजनीति की सरगर्मियोँ से
    ‘वातावरण’…. हलकायमान है
    तभी ऐसा विषाद उपजता है !
    - लावण्या
  22. गौतम राजरिशी
    हा हा…लाजवाब
    और इस पंक्ति पर तो खूब हँसा — जगह मिले जहां धंसि जइयो।
  23. ajit ji wadnerkar saheb
    बहुतैं सुंदर कबित्त है। बलिहारी है…
  24. विवेक सिंह
    फुरसतिया मन कूँ समझावै , कैसें बनें सफल प्रत्याशी,हथकण्डे सिखलावै :)
  25. कौतुक
    टिकट मिलने तक भाषण न छपवईयो
    यदि अवसर परे गुरु को भी गरियईयो
    बहुत मजेदार.
    लगता है पहले उन्होंने ने आपकी बात आत्मसात कर ली है फिर आपने इसको हमें पढ़वाया.
  26. himmat
    bahut khub kahi Anupji
  27. navneet
    बहुत खूब सर जी
  28. फ़ुरसतिया-पुराने लेख

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