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बिना तू तू मैं मैं वाली जिन्दगी
By फ़ुरसतिया on September 2, 2009
हम अक्सर बड़े-बड़े महापुरुषों के वैवाहिक जीवन के बारे में सोचते हैं।
क्या उनकी गृहस्थी उतनी ही झंझट प्रधान रहती होगी जितनी हम जैसी आम लोगों
की होती है। पैसे कौड़ी की तो चिन्ता तो खैर छोड़िये लेकिन किसी बात पर तो
उनमें कहा सुनी होती होगी। पत्नी रूठ जाती होंगी पति मनाता होगा या इसका
उलटा-पुलटा। हमारे गांधीजी लगता है एक इकल्ले महापुरुष थे जो अपनी डायरी
लिखते थे। उनके बारे में तो पता चलता है कि उनकी खटपट बा
से हो जाती थी। लेकिन बकिया ग्रेट लोगों के या तो किस्से पता नहीं चलते या
फ़िर केवल हंसी-खुशी के किस्से ही सुनने को मिलते हैं। कैसी रसहीन बिना तू
तू मैं मैं वाली जिन्दगी गुजारनी पड़ी बेचारों को। केवल और केवल महापुरुष
बनने के लिये।
बिना लड़ाई-झगड़े के, बगैर कहासुनी के गृहस्थ जीवन कैसा रसहीन , नीरस रहा होगा! बिना नमक की दाल सरीखा । कैसे काटते होंगे महापुरुष बिना मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो की धमकी सुने। नोक-झोंक और मैं बात नहीं करती!, गुस्सा हो क्या? , गुस्सा बाद में हो लेना अभी समोसा खा लो ये तुमसे ज्यादा गरम हैं के बिना भी जिन्दगी क्या जिन्दगी है!! धत्तेरे की टाइप! जिस महापुरुषीय पैकेज में वैवाहिक जीवन में रूठने- मनाने का स्कोप न हो ऊ त बेकारै है। टोट्ट्ली इवेन्टलेस! बिना स्पीड-ब्रेकर की सड़क सरीखी !
रामचन्द्रजी की मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं। बेचारे जंगल-जंगल भटकते रहे शादी के बाद। कोई खुराफ़ाती लेखक यह लिख सकता है कि वे जंगल वास्तव में किसी काटेज में मौज करने गये होंगे सीता के साथ। लक्ष्मण को साथ ले लिया सेवा-फ़ेवा के लिये। भरोसे का आदमी चाहिये न! कोई नौकर लेते तो उनकी सब बातें किसी टीवी चैनल को बता सकता था। निजता का उल्लंघन हो सकता था।
लेकिन अब देखिये मर्यादा पुरुषोत्तम कैसी बेचारी जिन्दगी जिये। न बेटे का कहीं एडमिशन कराया, न कभी किसी का जन्मदिन सेलिब्रेट किया, न कभी पिकनिक गये, न कभी ब्लाग लिखा न कहीं कमेंट किया। केवल सीता को छोड़ दिया। बताओ भला कहीं ऐसे किया जाता है। इत्ती अच्छी सी पत्नी को खाली कहा – सुनी के डर कर त्याग दिया। कित्ते बेचारे रहे होंगे राजा रामचन्द्रजी।
पूरा घर परिवार उजड़ गया कहा सुनी बर्दास्त न कर सकने के कारण। सबने आत्महत्या कर ली। पहले सीता -लछमण गये फ़िर राम ने भी सरयू में जलसमाधि ले ली। बताओ भला ये क्या जीवन रहा?
रामचन्द्रजी कोई विदर्भ के किसान तो रहे नहीं होंगे जो कर्जे के चक्कर में आत्महत्या किये होंगे। उनका जीवन संसार की कहा-सुनी से उचट गया होगा। घर में कहा-सुनी की आदत होती तो बाहर वाली आराम से झेल जाते। घर के झगड़े बाहर के झंझटों से लड़ने के लिये मैच-प्रैक्टिस की तरह होते हैं। आप भी देखे होंगे जो लोग बचपन में झेल-झाल के बड़े होते हैं वे आगे भी परेशानियां हंसी-खेल में झेल जाते हैं। बकिया जो बचपन में नहीं झेलते वो बाद में जरा-जरा सी बात पर बोल जाते हैं।
अगर रामचन्द्रजी ब्लाग लिखते होते तो शायद वो न हुआ होता जो हो लिया। कोई सीता के चरित्र के बारे में या रामजी के बारे में कुछ कहता तो राम झट से अपनी पीड़ा अपने ब्लाग पर लिख मारते। यह भी कह देते कि इस मानसिक पीड़ा के चलते मैं आत्महत्या जैसा कुछ करने का विचार कर रहा हूं।
जहां राम ये लिखते पूरी अयोध्या के लोग टिपिया के राम चन्द्र जी का मेल बक्सा भर देते कि नहीं प्रभु आप ऐसा नहीं कर सकते। आपके बिना तो हम बिना टिप्पणी के ब्लाग की तरह रौनकहीन हो जायेंगे। बिना माडरेटर के सामूहिक ब्लाग की तरह बेसहारा हो जायेंगे। हमारा उत्साह कौन बढ़ायेगा? हमें साधुवाद कौन देगा। आप ऐसा नहीं कर सकते। आप यह अनर्थ मत करिये। यह काम तो कलयुग में होना है! भरे सतयुग में तो मती करिये यह ताम-झाम! (जैसा अभी अमिताभ बच्चनजी और पूर्व में समीरलालजी आदि साथियों से लोगों ने उनकी ब्लाग लिखना बंद करने की बात पर ब्लागर साथियों ने कहा)
भगवान राम जनता के प्रेम से पसीजकर भाव विह्वल होकर फ़िर से ब्लाग लेखन करने लगते। लोग स्वागतम-शुभ स्वागतम कहते। कोई तो टिप्पणी माडरेशन तक हटाने की सलाह दे देता। राम इशारे-इशारे से उस ब्लागर के ब्लाग के बारे में बता भी देते जिसने सीता के ऊपर लांछन लगाया था। लोग उस पर टिपियाना तो फ़ौरनिच बन्द कर देते लेकिन हिट्स उसकी सबसे अधिक हो जातीं कि देखें अगला खुलासा क्या किया है अगले ने!
अब आप देखिये। कहां से चले थे कहां पहुंच गये। बात महापुरुषों के घरेलू जीवन की हो रही थी और लिखवाने लगे उनको ब्लाग। ई ससुर ब्लागर मन बड़ा चंचल होता है। न जाने किधर-किधर डोलता रहता है। डांय-डांय! कंट्रोल में रखना पड़ेगा। है कोई मुफ़्तिया साफ़्टफ़ेयर ब्लागर मन नियंत्रण का?
सोचते हैं कि अगर रामजी ब्लाग के बारे में कुछ कहते तो क्या कहते? लक्ष्मण से वो क्या इस तरह बतियाते?
राम कहिन सुन लछिमन भ्राता। हमको ब्लाग बहुत है भाता।
भांति-भांति के लोग लुगाई । ब्लाग बना करते ठेलुहाई।
बिना बातन की पोस्ट ठेलाई। बात मिली तो फ़िर क्या भाई!
हमहू ब्लाग बनावब भईया । रावण की करब ताता थैया।
विभीषण होगा माडरेटर मेरा । हनुमत करेगा टिप्पणी वगैरा।
सीता की जब यादैं अईहैं । झट से हम एक पोस्ट चढैंहैं।
कविता लिखिबे धांसू वाली । वार वियोग न जैहे खाली।
रावण से कहो नेट लगवाओ । वाटिका अशोक मार्डन करवाओ।
हनुमत से कहो लंका जावै । सीता को दे लैपटाप आवै।
नित सीते से चैटिंग करिबे । दुख के दिन सुख से कटिबे।
रामचन्द्र की बात सुनि लछिमन गये हरसाय,
बिनु पैसा कौड़ी बिना गये बाजार को धाय ॥
आज ही मीनाक्षीजी के विवाह की चौबीसवीं वर्षगांठ है। इस मौके पर उनको भी बधाई!
जो बड़ी मुश्किलों में बीते थे!
शाम अक्सर ही ठहर जाती थी
देर तक साथ गुनगुनाती थी
हम बहुत खुश थे खुशी के बिन भी
चांदनी रात भर जगाती थी!
हमको मालूम है कि हम कैसे
आग को ओस जैसे पीते थे!
घर के होते हुये भी बेघर थे
रत हो, दिन हो, बस हमीं भर थे
डूब जाते थे मेघ भी जिसमें
हम उसी प्यास के समंदर थे!
उन दिनों मरने की फ़ुरसत न थी
हम तो कुछ इस तरह से जीते थे!
आते-आते जो लोग मिलते थे
उनके मिलने में फ़ूल खिलते थे
जिन्दगी गंगा जैसी निर्मल थी
जिसमें हम नाव जैसे चलते थे!
लहरें गंगा की गीत थी जिनसे
हम कभी आगे, कभी पीछे थे!
कोई मौसम हो हम उदास न थे
तंग रहते थे पर निराश न थे
हमको अपना बना के छोड़े जो
हम कभी ऐसे दिल के पास न थे!
फ़ूल यादों के जल गये कब के
हमने जो आंसुओं से सींचे थे!
स्व.रमानाथ अवस्थी
बिना लड़ाई-झगड़े के, बगैर कहासुनी के गृहस्थ जीवन कैसा रसहीन , नीरस रहा होगा! बिना नमक की दाल सरीखा । कैसे काटते होंगे महापुरुष बिना मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो की धमकी सुने। नोक-झोंक और मैं बात नहीं करती!, गुस्सा हो क्या? , गुस्सा बाद में हो लेना अभी समोसा खा लो ये तुमसे ज्यादा गरम हैं के बिना भी जिन्दगी क्या जिन्दगी है!! धत्तेरे की टाइप! जिस महापुरुषीय पैकेज में वैवाहिक जीवन में रूठने- मनाने का स्कोप न हो ऊ त बेकारै है। टोट्ट्ली इवेन्टलेस! बिना स्पीड-ब्रेकर की सड़क सरीखी !
रामचन्द्रजी की मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं। बेचारे जंगल-जंगल भटकते रहे शादी के बाद। कोई खुराफ़ाती लेखक यह लिख सकता है कि वे जंगल वास्तव में किसी काटेज में मौज करने गये होंगे सीता के साथ। लक्ष्मण को साथ ले लिया सेवा-फ़ेवा के लिये। भरोसे का आदमी चाहिये न! कोई नौकर लेते तो उनकी सब बातें किसी टीवी चैनल को बता सकता था। निजता का उल्लंघन हो सकता था।
लेकिन अब देखिये मर्यादा पुरुषोत्तम कैसी बेचारी जिन्दगी जिये। न बेटे का कहीं एडमिशन कराया, न कभी किसी का जन्मदिन सेलिब्रेट किया, न कभी पिकनिक गये, न कभी ब्लाग लिखा न कहीं कमेंट किया। केवल सीता को छोड़ दिया। बताओ भला कहीं ऐसे किया जाता है। इत्ती अच्छी सी पत्नी को खाली कहा – सुनी के डर कर त्याग दिया। कित्ते बेचारे रहे होंगे राजा रामचन्द्रजी।
पूरा घर परिवार उजड़ गया कहा सुनी बर्दास्त न कर सकने के कारण। सबने आत्महत्या कर ली। पहले सीता -लछमण गये फ़िर राम ने भी सरयू में जलसमाधि ले ली। बताओ भला ये क्या जीवन रहा?
रामचन्द्रजी कोई विदर्भ के किसान तो रहे नहीं होंगे जो कर्जे के चक्कर में आत्महत्या किये होंगे। उनका जीवन संसार की कहा-सुनी से उचट गया होगा। घर में कहा-सुनी की आदत होती तो बाहर वाली आराम से झेल जाते। घर के झगड़े बाहर के झंझटों से लड़ने के लिये मैच-प्रैक्टिस की तरह होते हैं। आप भी देखे होंगे जो लोग बचपन में झेल-झाल के बड़े होते हैं वे आगे भी परेशानियां हंसी-खेल में झेल जाते हैं। बकिया जो बचपन में नहीं झेलते वो बाद में जरा-जरा सी बात पर बोल जाते हैं।
अगर रामचन्द्रजी ब्लाग लिखते होते तो शायद वो न हुआ होता जो हो लिया। कोई सीता के चरित्र के बारे में या रामजी के बारे में कुछ कहता तो राम झट से अपनी पीड़ा अपने ब्लाग पर लिख मारते। यह भी कह देते कि इस मानसिक पीड़ा के चलते मैं आत्महत्या जैसा कुछ करने का विचार कर रहा हूं।
जहां राम ये लिखते पूरी अयोध्या के लोग टिपिया के राम चन्द्र जी का मेल बक्सा भर देते कि नहीं प्रभु आप ऐसा नहीं कर सकते। आपके बिना तो हम बिना टिप्पणी के ब्लाग की तरह रौनकहीन हो जायेंगे। बिना माडरेटर के सामूहिक ब्लाग की तरह बेसहारा हो जायेंगे। हमारा उत्साह कौन बढ़ायेगा? हमें साधुवाद कौन देगा। आप ऐसा नहीं कर सकते। आप यह अनर्थ मत करिये। यह काम तो कलयुग में होना है! भरे सतयुग में तो मती करिये यह ताम-झाम! (जैसा अभी अमिताभ बच्चनजी और पूर्व में समीरलालजी आदि साथियों से लोगों ने उनकी ब्लाग लिखना बंद करने की बात पर ब्लागर साथियों ने कहा)
भगवान राम जनता के प्रेम से पसीजकर भाव विह्वल होकर फ़िर से ब्लाग लेखन करने लगते। लोग स्वागतम-शुभ स्वागतम कहते। कोई तो टिप्पणी माडरेशन तक हटाने की सलाह दे देता। राम इशारे-इशारे से उस ब्लागर के ब्लाग के बारे में बता भी देते जिसने सीता के ऊपर लांछन लगाया था। लोग उस पर टिपियाना तो फ़ौरनिच बन्द कर देते लेकिन हिट्स उसकी सबसे अधिक हो जातीं कि देखें अगला खुलासा क्या किया है अगले ने!
अब आप देखिये। कहां से चले थे कहां पहुंच गये। बात महापुरुषों के घरेलू जीवन की हो रही थी और लिखवाने लगे उनको ब्लाग। ई ससुर ब्लागर मन बड़ा चंचल होता है। न जाने किधर-किधर डोलता रहता है। डांय-डांय! कंट्रोल में रखना पड़ेगा। है कोई मुफ़्तिया साफ़्टफ़ेयर ब्लागर मन नियंत्रण का?
सोचते हैं कि अगर रामजी ब्लाग के बारे में कुछ कहते तो क्या कहते? लक्ष्मण से वो क्या इस तरह बतियाते?
राम कहिन सुन लछिमन भ्राता। हमको ब्लाग बहुत है भाता।
भांति-भांति के लोग लुगाई । ब्लाग बना करते ठेलुहाई।
बिना बातन की पोस्ट ठेलाई। बात मिली तो फ़िर क्या भाई!
हमहू ब्लाग बनावब भईया । रावण की करब ताता थैया।
विभीषण होगा माडरेटर मेरा । हनुमत करेगा टिप्पणी वगैरा।
सीता की जब यादैं अईहैं । झट से हम एक पोस्ट चढैंहैं।
कविता लिखिबे धांसू वाली । वार वियोग न जैहे खाली।
रावण से कहो नेट लगवाओ । वाटिका अशोक मार्डन करवाओ।
हनुमत से कहो लंका जावै । सीता को दे लैपटाप आवै।
नित सीते से चैटिंग करिबे । दुख के दिन सुख से कटिबे।
रामचन्द्र की बात सुनि लछिमन गये हरसाय,
बिनु पैसा कौड़ी बिना गये बाजार को धाय ॥
बधाई
ई-स्वामी की भौजी मानसी के हवाले से खबर मिली कि ई-स्वामी को तीस तारीख को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई! विशिष्ट बालक को हमारा आशीर्वाद और बच्चे के माता-पिता को बधाई!आज ही मीनाक्षीजी के विवाह की चौबीसवीं वर्षगांठ है। इस मौके पर उनको भी बधाई!
मेरी पसन्द
याद आते हैं बहुत फ़िर वे दिनजो बड़ी मुश्किलों में बीते थे!
शाम अक्सर ही ठहर जाती थी
देर तक साथ गुनगुनाती थी
हम बहुत खुश थे खुशी के बिन भी
चांदनी रात भर जगाती थी!
हमको मालूम है कि हम कैसे
आग को ओस जैसे पीते थे!
घर के होते हुये भी बेघर थे
रत हो, दिन हो, बस हमीं भर थे
डूब जाते थे मेघ भी जिसमें
हम उसी प्यास के समंदर थे!
उन दिनों मरने की फ़ुरसत न थी
हम तो कुछ इस तरह से जीते थे!
आते-आते जो लोग मिलते थे
उनके मिलने में फ़ूल खिलते थे
जिन्दगी गंगा जैसी निर्मल थी
जिसमें हम नाव जैसे चलते थे!
लहरें गंगा की गीत थी जिनसे
हम कभी आगे, कभी पीछे थे!
कोई मौसम हो हम उदास न थे
तंग रहते थे पर निराश न थे
हमको अपना बना के छोड़े जो
हम कभी ऐसे दिल के पास न थे!
फ़ूल यादों के जल गये कब के
हमने जो आंसुओं से सींचे थे!
स्व.रमानाथ अवस्थी
भांति-भांति के लोग लुगाई । ब्लाग बना करते ठेलुहाई।
जय हो प्रभु..जय हो..जय हो!
रामराम.
सीता की जब यादैं अईहैं । झट से हम एक पोस्ट चढैंहैं।
कविता लिखिबे धांसू वाली । वार वियोग न जैहे खाली।
रावण से कहो नेट लगवाओ । वाटिका अशोक मार्डन करवाओ।
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा जवाब नहीं आपका भी हा हा हा
regards
अवस्थीजी की कविता असरदार लगी… ईस्वामी के परिवार में आए नन्हे मुन्ने नए सदस्य को खूब प्यार और आशीर्वाद…
हम को ही देख लीजिए, नित्य कोई न कोई झंझट हो ही जाता है,
हमने आपका आधा प्रश्न तो हल कर दिया, बाकी आप करें
रामचंद्र जी के ब्लॉग के बारे में खबर देने के लिए साधुवाद!
ब्लॉग पोस्ट को ठेलकर राम हुए हलकान
देख बेनामी टिप्पणी टैंक चढ़े भगवान्
ये बडे़ लोगों की भी क्या नीरस ज़िन्दगी होती है:)
“सियावर रामचंद्र और हनुमान का साझा ब्लॉग”
अगर रामचन्द्र जी ब्लॉग लिखते तो खामखा तुलसीदास जी के धंधे बन्द हो जाते. वैसे भी बेचारे बिना एडसेन्स की पतली कमाई और रॉयल्टी लिये ही गुजर गये.
और वो प्लग-इन वाली बात पर कोई जवाब नहीं आया तो उसका कारण अब समझ में आया. हम जात हैं उनको भी टिपिया के ई-बधाई दे आते हैं.
ई-स्वामी को बधाई। छोरे की फोटो प्रस्तुत करें!
बहुते गजब लिख मारे हो भाई;
सीता की जब यादैं अईहैं । झट से हम एक पोस्ट चढैंहैं।
कविता लिखिबे धांसू वाली । वार वियोग न जैहे खाली।
ई-स्वामी और मीनाक्षीजी को बधाई!
स्व.रमानाथ अवस्थी जी की रचना बहुत पसंद आई. आभार.
साधुवाद!
मैं तो आपकी पसंद पर बलिहारी – रमानाथ अवस्थी जी की कविता पढ़ने का अवसर दिया आपने । वैसे फोटो भी तलाश रहा था उनकी । कुछ गीत मौका मिले तो ठेलूँगा रमानाथ जी के ।
लाजवाब ! वाह ! वाह ! वाह !!!
आपकी कल्पनाशक्ति अभिव्यक्ति और सियावर रामचन्द्र की जय.
मन महँ लिखा ब्लॉग-सुख नाही, एक टिप्पणी जो मिलि जाही
हनुमत चितवत राम की ओरा, किया मुनादी पीटि ढिंढोरा
सब बानर मिलि ब्लॉग बनावा, लिखि टिप्पणी प्रसाद चढ़ावा
जामवंत नल-नील बुलावा, अंगद संग मिलि ब्लॉग बनावा
हरिष हुए तब लछमन भ्राता, हरषे संग सुमित्रा माता
आये भरत संग सब लोगा, ख़तम हुआ रघुबीर वियोगा
भरत भये टंकड़ अधिकारी, कोप भवन पहुँची महतारी
अवधपुरी भई ब्लॉगर देशा, प्रजा बीच पहुंचा संदेशा
प्रति जन एक टिप्पणी आवे, देखि प्रभु का मन हरषावे
पुरुषोत्तम का ब्लॉग फिरि होइ गया नंबर एक
रावण बैठा क्रोध में, टाइप करता लेख
भई वाह. आखिरी लाइन तक रौ निभा ले गए, वरना मज़ा की जगह सज़ा हो जाती.
नोक झोक दायरे में रहे तो ठीक नहीं तो………ले थाली,…… ले लोटा…..
(और बेलना भी)
है की नहीं
venus kesari
तऽ हम आगे की कथा सुनाता हूँ..
दायें कँधे पर लैपटाप और बायें कँधे पर दूनाली टाँग प्रभु वन को प्रस्थान करते भये ।
हाँ तऽ प्रस्थान करते भये.. फेर्र आगे का हुआ ?
तऽ किड़बिड़ किड़बिड़ झईनन्ना झईनन्ना हाँय !
“आगे चलत राम-रघुराई,
पाछे लछिमन बीड़ी सुलगाई
राम सहरष फिरि मोहेऊ एक सुट्टा दीन्हों,
लछिमन तड़कै काहे बँडल नाहीं लीन्हों
राम निहोरत छवि सुधारि हेत पईसा नहीं लावा भ्राता
लछिमन बिफ़रे केहि विधि वानर वोट पईहो तुम ताता.. ”
पोस्ट सेर तो टिप्पनियां सवा सेर !
अच्छी पोस्ट लिखी जी आपने.
ताऊ ताऊ
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ई-स्वामी को हार्दिक बधाईयाँ.
बिनु पैसा कौड़ी बिना गये बाजार को धाय ॥nice
कोई मौसम हो हम उदास न थे
तंग रहते थे पर निराश न थे
हमको अपना बना के छोड़े जो
हम कभी ऐसे दिल के पास न थे!nice…………..nice………….nice…………
दुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )
kya andaaz hai….mazaa aa gaya…:))
par internet ke time mein Hanumanji ka role clear nahi hai:))
जोली अंकल