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ब्लागर हलकान’विद्रोही’, विक्रम और बेताल
By फ़ुरसतिया on October 1, 2009
हमारी और ब्लागर हलकान ’विद्रोही’ की उमर और लिंग मुझे इस बात के लिये उत्साहित न कर सकी कि हम उनके रोष से सहमकर उनसे ही चिपट जायें और वे अपने रोष को लाड़-दुलार में परिवर्तित करके हमसे कहने लगें- अरे,अरे तुम तो सच में डर गये। मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहा था।लिहाजा हमने अपनी भौंहें चालीस डिग्री और गरदन पचास डिग्री एक साथ ऊपर की और उनसे कहा- आप सीधे-सीधे अपनी बात समझाइये। संस्कृत तो मती झेलाइये। हमारे पास समय किंचित अभाव सा है। हम अनुवाद न कर पायेंगे और न करा पायेंगे किसी से। और हम मजाक के मूड में तो कत्तई नहीं हैं। देख ही रहे हैं जरा सा मजाक करते ही कित्ता बड़ा जलजला आ जाता है। इंडोनेशिया में तबाही ही मची हुई है। किसी ने वहां मजाक किया होगा उसी से आया है यह जलजला।
बाद में पता चला कि ब्लागर हलकान ’विद्रोही’ अपनी डायरी हमें दे रहे हैं ताकि उससे कुछ टीपकर हम आप तक उनके मनोभाव पहुंचा सकें। दांत वे इसलिये पीस रहे थे कि हमने उनको दशहरे की शुभकामनायें दे दीं जबकि वे चाहते थे कि हम उसमें यह भी लिखते कि आपने बहुत सुन्दर लिखा है। ऐसा सिर्फ़ आप ही लिख सकते हैं। बहरहाल जब ब्लागर हलकान ’विद्रोही’ अपने दांत पर्याप्त पीस चुके और इस बीच उनकी तारीफ़ करके मैंने उनका मूड ठिकाने लगा दिया तो हम पर खुश से हो गये। खुश होकर उन्होंने मुझे डायरी देना स्थगित करके आधुनिक विक्रम-बेताल कथा सुनाई! श्रम को भुलाने के लिये आप भी सुनें।
अथ विक्रम बेताल कथा
एक शहर में एक सुकुमार बाला रहती थी ( जिन साथियों को सुकुमार बाला से एतराज हो वे उसकी जगह किसी गबरू जवान या अपनी पसंद के अनुसार किसी और के बारे में सोच लें। बाकी जगह पर भी यथास्थान परिवर्तन कर लें! )कोई काम न धाम। इधर-उधर डांय-डांय फ़िरती थी। सुन्दर थी। अलबेली थी। भगवान ने उसे आराम से या कहें फ़ुरसत में बनाया था। लेकिन वह कभी फ़ुरसत में नहीं रहती थी। हमेशा व्यस्त रहती थी। कोई काम-धाम न रहने से उसे व्यस्त रहने की सहूलियत भी थी। जब मन चाहती व्यस्त हो जाती। अपने मन की ही करती थी। घर वालों के लाड़-प्यार में पली थी इसलिये घर वाले उसका कुछ और तो कर नहीं पाते थे खाली उसके लिये परेशान हो लेते थे। कभी उसके भविष्य के लिये, कभी उसकी सुरक्षा के लिये। कभी किसी के लिये, कभी किसी के लिये।
बाला एकदम आधुनिकतम तकनीक के बारे में अद्यतन जानकारी रखती थी। जैसे ही बाजार में कोई नयी चीज आती वो जिद करती और वो चीजे हासिल करके रहती। जब घर वाले उसको मना करते वह जान दे देने की धमकी देती और मजबूरन घर वाले उसकी इच्छा पूरी करते। अभी हाल ही में जान देने की धमकी देकर उसने एकदम नया मोबाइल हासिल किया था। मोबाइल में इन्टरनेट, झकास कैमरा और न जाने क्या हेन-तेन मौजूद था।
एक दिन बाला एक सूनसान इलाके से जा रही थी। अचानक उसने देखा कि कुछ लफ़ंगे टाइप के लोग उसके पीछे लग गये। आसपास कोई दिख भी नहीं रहा था। बाला को याद आया कि उसके घरवाले उसको अकेले अनजान राहों पर जाने से मना करते थे। कहते रहते थे कि जमाना बड़ा खराब है। कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो क्या होगा। उसको लगा कि आज कोई ऊंच नीच होकर ही रहेगी शायद!
बहरहाल जब लफ़ंगे पीछे लग ही लिये तो बाला ने भी सोचा कि इनसे भी अब निपट ही लिया जाये। उसने चुपके से अपने मोबाइल पर कोई बटन दबाया और निश्चिन्त होकर टहलती हुय़ी चलने लगी। निश्चिन्त होने के पहले उसने एक बार घबराने का नाटक भी किया। सोचा तो उसने पसीना बहाने के लिये भी लेकिन फ़िर मेकअप खराब होने की बात सोचते हुये उसने ऐसा नहीं किया।
मोबाइल पर बटन दबने के बाद पलक झपकते ही वहां वहां हाहाकार मच गया। चारो तरफ़ लोगों का हुजूम इकट्ठा हो गया। कोई उसके लिये खून देने की बात करने लगा ।कोई जान देने की। कोई जान लेने की करने लगा। कोई कहने लगा तुम बिन हम जियेंगे कैसे? किसी के दिन सूने हो रहे थे किसी की रातें। किसी की चैन उड़ गया किसी का ज्ञान! किसी की बहर बिगड़ गयी किसी की सहर। किसी ने उसको महान बताया किसी ने सबसे महान। किसी ने कहा तुम सा कोई हुआ नहीं । कोई कहने लगा कि आगे भी न होगा। एक ने दोनों को डांटते हुये कहा- अबे इसको देवभाषा में कहते हैं, न भूतो न भविष्यति। किसी ने कहा अब जरा इसे अंग्रेजी में भी कहो तो लोगों ने इन्कार कर दिया यह कहते हुये कि यह तो ज्ञानजी का काम है।
बहरहाल लब्बो और लुआब दोनों मिलाकर हुआ यह कि जनता उस बाला के चारो तरफ़ इकट्ठा होकर उसके सुरक्षा गार्ड की तरह चलने लगी। लफ़ंगे जो उसको सीटियां मारने के लिये होंठ गोलिया रहे थे उसका जैकारा लगाने लगे। सब तरफ़ वातावरण में जय-जयकार होने लगी।
कहानी सुनाकर बेताल ने हमेशा की तरह पूछा कि हे विक्रम यह कथा तुमने सुनी। अब बताओ वह बाला कौन थी? उसने मोबाइल पर क्या किया जिसके कारण इतने सारे लोग उसकी रक्षा के लिये उमड़ पड़े? वे लफ़ंगे जो उसको छेड़ रहे थे बाद में उसकी ही जै-जैकार क्यों करने लगे? इस कथा से क्या शिक्षा मिलती है?
विक्रम ने बताया कि हे बेताल! जो जरा सा भी ब्लागिंग में रुचि रखता है वह इस सवाल का जबाब बिना चुटकी बजाये ही दे सकता है। वह बाला एक ब्लागर थी। उसने जैसे ही लफ़ंगो को देखा वैसे ही उसने पहले से ही टाइप पोस्ट अपने मोबाइल से पोस्ट कर दी। उस पोस्ट में उसके ब्लाग के बंद करने की घोषणा थी। जैसे ही पोस्ट को लोगों ने देखा वैसे ही उससे ऐसा न करने का करने का अनुरोध करते हुये उसके चारो तरफ़ उमड़ पड़े। उसे छेड़ने वाले लफ़ंगे भी जै कारे में साथ इसलिये लग लिये जिससे कि पिटाई से बच सकें। इस कथा से यह सीख मिलती है कि ब्लाग का उपयोग खाली टाइम पास के अलावा अपनी इज्जत आबरू और जिन्दगी बचाने क लिये भी हो सकता है।
जबाब सुनते ही बेताल विक्रम के कन्धे पर उचक कर पास की डाल पर लटक गया।
हलकान विद्रोही भी अपनी डायरी समेटकर दूसरे किसी ब्लागर का इंतजार करने लगे।
हम वहां से निकलकर फ़ूट लिये। सोचा आपको अपनी मुलाकात के बारे में बता दें।
Posted in बस यूं ही | 30 Responses
इस प्रकार हिन्दी ब्लॉग-जगत एक अच्छी पोस्ट से वंचित हो गया और एक घटिया टिप्पणी पा गया !
बोध-कथा बहुत बढ़िया रही. आशा है अब विक्रम भी ब्लॉग बना लेंगे. चाहें तो बेताल और उस बाला के साथ एक कम्यूनिटी ब्लॉग बना लें….:-)
और विवेक की टिपण्णी घटिया है कि नहीं, इस बात को जानने के लिए एक कमीशन बैठाकर फैसला किया जाना चाहिए. टिप्पणी अगर घटिया निकले तो उसे धन्यवाद के साथ विवेक को लौटा दिया जाय.
“ब्लाग का उपयोग खाली टाइम पास के अलावा अपनी इज्जत आबरू और जिन्दगी बचाने क लिये भी हो सकता है।”
आभार ।
और उतना ही इज्जत गंवाने के लिए भी किया जा सकता है.:)
रामराम.
(पुनश्च : कमेंट फ़ालोअप का बटन लगवाईये ना.)
बहुतै लाजवाब लिख डाले हैं अनूप भाई….जय हो… कहने को मन हो आया है पढ़कर…जय जय हो……
वैसे अगर टिप्पणी जाच करवाना हो तो मेरे हिसाब से टिप्पू चच्चा काफी मददगार हो सकते है
मस्त्त रहा.
त्योहार की बधाई. कोई न कोई त्योहार तो होगा ही.
ब्लागर की इज़्ज़त और आबरू!!!!!!!!!!!!!!! जानकारी के लिए आभार:)
हर कोई आपको ही क्यों आँखें दिखाती है? शोध का मामला है.
डांय-डांय फिरने की बात तो अजब ही देखी
ये कौन सी तरह का फिरना है जी ??
कथा पर गत तीन घँटे से मनन चल रहा है,
कहीं राजन का सिर टुकड़े टुकड़े न हो जाये,
अतः हर शाख पर उल्लू प्रदेश जाने की फ़ुरसत का इंतज़ार है ।
टिप्पणी लम्बित समझा जाये, अभी तो खुदै क़फ़्यूज़ियाये अपना कान खुजा रहें हैं, जी ।
अच्छी कहानी कही.
फिर -हाल जो भी मिला कुछ अच्छा मिला ***************************************************