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रिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
…..जिंदगी धूप तुम घना साया
By फ़ुरसतिया on December 16, 2009
सर्दी
में चीजें सिकुड़ जाती हैं। यह बात हम तब से जानते हैं जब हमने हाईस्कूल भी
नहीं पास किया था। हालांकि यह बात वे भी जानते हैं जिन्होंने कौनौ स्कूल
कभी भी नहीं पास किया। सर्दी में लोगों को सिहरते-ठिठुरते भी देखा है। अभी
जब यह लिख रहा हूं तो लग रहा है कि कहीं सर्दी में ठिठुरना , सिकुड़ने का
प्रतिकार तो नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं न्यूटन के तीसरे नियम की बांह पकड़कर
ठंड में सिकुड़ता जीव सिकुड़ने की क्रिया का सैद्धांतिक विरोध सा करता हुआ
ठिठुरता दिखता है।
सर्दी की सुहानी सुबह् है। भगवान भुवन भास्कर अपना टीम-टामड़ा-टंडीला लेकर अंधेरे के खिलाफ़ मोर्चा संभाल लिहिन हैं। चुन-चुनकर वे बचे हुये अंधकार तत्वों की तुड़ैया करते हुये उनका भुर्ता बनाकर उनको दिवस मंच के नेपथ्य में पटक दे रहे हैं। सूरज भैया का पराक्रम देखकर ऐसा लग रहा है मानो वे अभी-अभी सहवाग की बैटिंग का रिप्ले देखकर आये हैं। वे रोशनी-राग फ़ैलाते हुये मुस्कराते भी जा रहे हैं। इससे लग रहा है कि अंधकार-संहार के साथ-साथ फ़ोटो सेशन भी चल रहा है।
रोशनी की कुछ् किरणें जब पेड़ की तरफ़ गयीं तो वहां मौजूद अंधेरे के तत्वों ने रोशनी को दबोच कर अपनी बाहों में जबरियन कस लिया। ऊपर से कोहरे की चादर डाल ली। कोहरे की चादर के नीचे दोनों में गुत्थम गुत्था होने लगी। रोशनी अंधेरे के चंगुल से छूटने के लिये छटफटाने लगी। कसमसाने लगी। रोशनी की छ्टपटाहट च कसमसाहट को अपने वीडियो कैमरे पर देखते ही भगवान भुवन भाष्कर ने फ़ौरन उजाले , रोशनी और ऊष्मा की कुमुक भेजी। रोशनी, उजाले और ऊष्मा के अंधकार निरोधी दस्ते ने देखते ही देखते कोहरे की चादर तार-तार कर डाली। अंधेरे की ऐसी कम तैसी कर दी। अंधेरा दुम दबाकर भाग लिया।
कोहरे की चादर के चिथड़े अपनी सफ़ाई में कह रहे थे ,” मेरी क्या गलती है जो मेरी हड्डी-पसली बराबर कर दी? हमारी ड्यूटी तो सुबह देर तक थी। तो हम यहां डटे हुये थे। हमको लगा कि रोशनी और अंधेरा मिलकर अपनी गठबंधन सरकार बनाना चाहते हैं तो हमने बाहर से समर्थन दे दिया। आपने हमारी बेमतलब तुडैया कर दी। ऐसा ही होता रहा तो फ़िर् हमें मानवाधिकार आयोग के पास जाना ही पड़ेगा। फ़िर आप एक्चुअली ऐसा हुआ/फ़ेक्चुअली वैसा हुआ खानदान की सफ़ाइयां देते रहियेगा।”
कोहरे ने कुनमुनाते हुये एतराज जताया— आदमियों के डायलाग हमारे ऊपर मारते हुये शर्म नहीं आती। हम इतने गये गुजरे हो गये कि हम पर मानव जाति के डायलाग से हमला किया जाये।
यह बात उस समय नहीं समझ में आई तुमको जब तुम आदमियों की तरह हरकतें करते हुये मासूम किरणों के साथ अंधेरात्कार में सहयोग प्रदान कर रहे थे। आदमियों की तरह हरकतें करोगे तो सजा भी आदमियों की तरह ही पाओगे।—.उजाले के साथ खड़ी रोशनी ने अपने अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग करते हुये कहा।
उसके आगे उन्होंने देखा बगीचे की खिली धूप में एक बच्ची साइकिल के कैरियर पर बैठी मुस्करा रही है। रोशनी भी उसको देखकर अनायास मुस्कराने लगी। उजाला भी साथ लग लिया। बच्ची उनको साथ देखकर मुस्कराती हुयी अपने हाथ हिलाने लगी। रोशनी को लगा कि दुनिया में सारी खूबसूरती इस बच्ची की मुस्कान में इकट्ठा हो गयी है। उसको एक बार फ़िर एहसास हुआ कि मुस्कराते हुये लोग कितने खूबसूरत लगते हैं। वह बेसाख्ता बच्ची को गोद में लेकर उसे चूमने ,खिलाने, मुस्कराने, खिलखिलाने लगी।
अपना दिया हुआ काम अंजाम करने के बाद पायी खुशी के रोमांच का अनुभव करने की रस्म निभाने के लिये उजाले ने रोशनी को गले लगाकर चूम लिया। रोशनी आनन्द से और चमकने च महकने लगी। इसी बीच एक नन्ही किरण ने उसके कान में फ़ुसफ़ुसाते हुये कहा—दीदी ऐसे मौके पर कोई प्रेम गीत गाया जाता हैं। इधर का ऐसाइच कस्टम है। पहले तो रोशनी ने छुटकी को झिड़कने की सोची लेकिन फ़िर यह समझकर कि इस मामले में बच्चे ज्यादा समझदार होते हैं फ़टाक से ऊंऊंऊंऊं करते हुये गला खंखार कर, आंख बंद करके, सर दायें-बायें हिलाते हुये गाना गाना शुरू कर दिया:
कोई उनको इसका कारण धरती की ग्लोबल वार्मिंग बता रहा है कोई कह रहा कि रोशनी और उजाले की सांसों के संलयन से निकलने वाली ऊर्जा-ऊष्मा के चलते तापमान बढ़ा है।
आपका क्या कहना है?
सर्दी की सुहानी सुबह् है। भगवान भुवन भास्कर अपना टीम-टामड़ा-टंडीला लेकर अंधेरे के खिलाफ़ मोर्चा संभाल लिहिन हैं। चुन-चुनकर वे बचे हुये अंधकार तत्वों की तुड़ैया करते हुये उनका भुर्ता बनाकर उनको दिवस मंच के नेपथ्य में पटक दे रहे हैं। सूरज भैया का पराक्रम देखकर ऐसा लग रहा है मानो वे अभी-अभी सहवाग की बैटिंग का रिप्ले देखकर आये हैं। वे रोशनी-राग फ़ैलाते हुये मुस्कराते भी जा रहे हैं। इससे लग रहा है कि अंधकार-संहार के साथ-साथ फ़ोटो सेशन भी चल रहा है।
सूरज
भैया का पराक्रम देखकर ऐसा लग रहा है मानो वे अभी-अभी सहवाग की बैटिंग का
रिप्ले देखकर आये हैं। वे रोशनी-राग फ़ैलाते हुये मुस्कराते भी जा रहे हैं।
रोशनी की किरणें धरती की ओर इठलाते हुये चल दी हैं। वे बेवजह मुस्कराती
भी जा रही हैं। धरती पर उनको देखते ही और लोग भी मुस्कराने लगे। ओस तो उनसे
मिलकर ऐसे चमकने लगी मानों किसी दंत मंजन के विज्ञापन की शूटिंग में भाग
ले रही हो।रोशनी की कुछ् किरणें जब पेड़ की तरफ़ गयीं तो वहां मौजूद अंधेरे के तत्वों ने रोशनी को दबोच कर अपनी बाहों में जबरियन कस लिया। ऊपर से कोहरे की चादर डाल ली। कोहरे की चादर के नीचे दोनों में गुत्थम गुत्था होने लगी। रोशनी अंधेरे के चंगुल से छूटने के लिये छटफटाने लगी। कसमसाने लगी। रोशनी की छ्टपटाहट च कसमसाहट को अपने वीडियो कैमरे पर देखते ही भगवान भुवन भाष्कर ने फ़ौरन उजाले , रोशनी और ऊष्मा की कुमुक भेजी। रोशनी, उजाले और ऊष्मा के अंधकार निरोधी दस्ते ने देखते ही देखते कोहरे की चादर तार-तार कर डाली। अंधेरे की ऐसी कम तैसी कर दी। अंधेरा दुम दबाकर भाग लिया।
कोहरे की चादर के चिथड़े अपनी सफ़ाई में कह रहे थे ,” मेरी क्या गलती है जो मेरी हड्डी-पसली बराबर कर दी? हमारी ड्यूटी तो सुबह देर तक थी। तो हम यहां डटे हुये थे। हमको लगा कि रोशनी और अंधेरा मिलकर अपनी गठबंधन सरकार बनाना चाहते हैं तो हमने बाहर से समर्थन दे दिया। आपने हमारी बेमतलब तुडैया कर दी। ऐसा ही होता रहा तो फ़िर् हमें मानवाधिकार आयोग के पास जाना ही पड़ेगा। फ़िर आप एक्चुअली ऐसा हुआ/फ़ेक्चुअली वैसा हुआ खानदान की सफ़ाइयां देते रहियेगा।”
रोशनी,
उजाले और ऊष्मा के अंधकार निरोधी दस्ते ने देखते ही देखते कोहरे की चादर
तार-तार कर डाली। अंधेरे की ऐसी कम तैसी कर दी। अंधेरा दुम दबाकर भाग लिया।
उजाला थोड़ी-बहुत अंग्रेजी जानता था और यह मानता था जब कोई तर्क न समझ
में आये तो अंग्रेजी दाग देनी चाहिये। लेकिन जाड़े के मौसम में उसकी
अंग्रेजी भी सिकुड़ गयी थी। सारे डायलाग न जाने किन-किन कोनों में दुबक गये
थे। ऐसा लग रहा था कि स्मृति नगरी पर कोई आतंकवादी हमला हुआ है और् सारे शब्द वीर
अपनी दुम को चादर की तरह तान कर सो गये हैं। अंतत: एक दीन-हीन से आम जनता
टाइप अंग्रेजी के डायलाग ने उनकी इज्जत बचाई और उजाले ने हिकारत से कोहरे
की तरफ़ देखते हुये डायलाग मारा— ये मैन इज नोन वाई द कम्पनी ही कीप्स! कहीं अनजाने में अंग्रेजी गलत न निकल गयी हो इस डर से उसने हिन्दी अनुवाद भी संग में नत्थी कर दिया—आदमी जैसे लोगों के साथ रहता है वैसी ही उसकी भी छवि हो जाती है।कोहरे ने कुनमुनाते हुये एतराज जताया— आदमियों के डायलाग हमारे ऊपर मारते हुये शर्म नहीं आती। हम इतने गये गुजरे हो गये कि हम पर मानव जाति के डायलाग से हमला किया जाये।
यह बात उस समय नहीं समझ में आई तुमको जब तुम आदमियों की तरह हरकतें करते हुये मासूम किरणों के साथ अंधेरात्कार में सहयोग प्रदान कर रहे थे। आदमियों की तरह हरकतें करोगे तो सजा भी आदमियों की तरह ही पाओगे।—.उजाले के साथ खड़ी रोशनी ने अपने अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग करते हुये कहा।
झाड़ी ने कपड़े को हटाते-हटाते भी उसमें कुछ् छेद कर ही दिया। इस पर हवा ने
उसे एक पवन कंटाप मारा तो झाड़ी मय कांटे के देर तक थरथराती रही गोया किसी
को बिना शर्त समर्थन देने का चित्रात्मक वर्णन कर रही हो।
अंध्रेरे और कोहरे को हिल्ले लगाने के बाद रोशनी और उजाले की सवारी मौका
मुआयना करने निकल पड़ी। खेत में खिली सरसों की सुनहरी आभा से रोशनी की आंखे
चौंधिया सी गयीं। वह सरसों के फ़ूल के ऊपर चढ़कर परशुरामी सी करने लगी।
लेकिन सरसों के पौधे मस्ती से झूमते –मुस्कराते रहे। फ़िर किरणों ने समझदारी
दिखाते हुये सरसों के पौधों को अपना समर्थन दे दिया और दोनों के सम्मिलित
सौंदर्य में फ़टाक से दो का गुणा हो गया। एका होते ही दोनों मिलकर अपने
आसपास की हवा और वातावरण की बुराई का फ़ेसपैक अपने-अपने चेहरे पर लगाने
लगीं। हवा इनके चोंचलों से अनजान चुपचाप आसपास की झाड़ियों, झरबेरियों
,फ़ूलॊ, कांटों को दुलराने लगीं। एक झाड़ी में फ़ंसे हुये कपड़े को आहिस्ता से
हटाकर अलग कर दिया। झाड़ी ने कपड़े को हटाते-हटाते भी उसमें कुछ् छेद कर ही
दिया। इस पर हवा ने उसे एक पवन कंटाप मारा तो झाड़ी मय
कांटे के देर तक थरथराती रही गोया किसी को बिना शर्त समर्थन देने का
चित्रात्मक वर्णन कर रही हो। इससे बेखबर हवा सड़क किनारे की
पन्नियों/पालीथीन को उठाकर किनारे लगाने लगी। कूड़े के ढेर को भी धीरे से
सहला दिया। ढ्रेर की बदबू उसके साथ ही मचलकर चलने को साथ लग ली लेकिन हवा
ने धीरे से उससे पल्ला छुड़ा लिया और इधर-उधर न जाने किधर-किधर टहलती हुई
अपना काम करने लगी।
लग
रहा था कि कोई जुझारू ब्लागर अपने ब्लाग के टेम्पलेट बदल रहा हो। उनकी
मूंछे बुजुर्गतियत में जवानी के जोश सी फ़ड़क रही हैं। हर बार जगह बदलने के
बाद वे सूरज को गरियाते जा रहे हैं कि ससुरा सूरज उसी जगह की फोटॉन सप्लाई
काट देता है जहां वे बैठते हैं।
रोशनी और उजाला आगे बढ़कर देखते हैं कि एक बुजुर्गवार खरहरी खटिया से पेड़
के नीचे, पेड़ के नीचे से चबूतरे के ऊपर, चबूतरे के ऊपर से जीने के नीचे,
जीने के नीचे से छत की मुंडेर पर लपकते-झपकते घूम रहे हैं। जहां धूप ज्यादा
दिखती वे उधर लपक लेते। जहां वे बैठते उसके अलावा हर जगह उनको धूप ज्यादा
ही दिखती। मजबूरन च नतीजतन वे धूप में बैठ पाने की बजाय अपनी जगहें ही बदल
रहे हैं। जिस फ़ुर्ती से वे पोजीशन-ए-बैठकी बदल रहे थे
उससे लग रहा था कि कोई जुझारू ब्लागर अपने ब्लाग के टेम्पलेट बदल रहा हो।
उनकी मूंछे बुजुर्गतियत में जवानी के जोश सी फ़ड़क रही हैं। हर बार जगह बदलने
के बाद वे सूरज को गरियाते जा रहे हैं कि ससुरा सूरज उसी जगह की फोटॉन
सप्लाई काट देता है जहां वे बैठते हैं। ज्यों-ज्यों सूरज गर्माता जा रहा है
बुजुर्गवार की गालियां तेज होती जा रही हैं। मोहल्ले वाले हमेशा की तरह एक
बार फ़िर कह रहे हैं कि बुजुर्गवार चलते-फ़िरते, बोलते-चालते, हल्ला
मचाते-थरथराते थर्मामीटर हैं! नया-नया डायलाग मारना सीखा एक छोकरा
बुजुर्गवार की तरफ़ देखते हुये बोला—बुढुउती इनके जीने नहीं देती जवानी इनको मरने नहीं देती।उसके आगे उन्होंने देखा बगीचे की खिली धूप में एक बच्ची साइकिल के कैरियर पर बैठी मुस्करा रही है। रोशनी भी उसको देखकर अनायास मुस्कराने लगी। उजाला भी साथ लग लिया। बच्ची उनको साथ देखकर मुस्कराती हुयी अपने हाथ हिलाने लगी। रोशनी को लगा कि दुनिया में सारी खूबसूरती इस बच्ची की मुस्कान में इकट्ठा हो गयी है। उसको एक बार फ़िर एहसास हुआ कि मुस्कराते हुये लोग कितने खूबसूरत लगते हैं। वह बेसाख्ता बच्ची को गोद में लेकर उसे चूमने ,खिलाने, मुस्कराने, खिलखिलाने लगी।
सर्दी
की सुबह चतुर्दिक धूप खिल गई है। वह हंस, विहंस खिलखिला रही है। जगह-जगह
धूप और किरणों की नदियां बह रही हैं। सड़कों पर लगता है कि रोशनी का छिड़काव
कराया गया है। जहां भी कहीं पहले अंधेरे का कब्जा था वहां –वहां घुसकर
उजाले ने अपनी सरकार बना ली है।
सर्दी की सुबह चतुर्दिक धूप खिल गई है। वह हंस, विहंस खिलखिला रही है।
जगह-जगह धूप और किरणों की नदियां बह रही हैं। सड़कों पर लगता है कि रोशनी का
छिड़काव कराया गया है। जहां भी कहीं पहले अंधेरे का कब्जा था वहां –वहां
घुसकर उजाले ने अपनी सरकार बना ली है। अंधेरा बेचारा अल्पसंख्यक सा बना
कोने-अतरे में छिपा खड़ा अपनी जान की दुआ मना रहा है। जिस रोशनी को अकेली
पाकर उसके किसी साथी ने दबोच लिया था उसकी आहट पाते ही उसकी जान से निकल जा
रही है।अपना दिया हुआ काम अंजाम करने के बाद पायी खुशी के रोमांच का अनुभव करने की रस्म निभाने के लिये उजाले ने रोशनी को गले लगाकर चूम लिया। रोशनी आनन्द से और चमकने च महकने लगी। इसी बीच एक नन्ही किरण ने उसके कान में फ़ुसफ़ुसाते हुये कहा—दीदी ऐसे मौके पर कोई प्रेम गीत गाया जाता हैं। इधर का ऐसाइच कस्टम है। पहले तो रोशनी ने छुटकी को झिड़कने की सोची लेकिन फ़िर यह समझकर कि इस मामले में बच्चे ज्यादा समझदार होते हैं फ़टाक से ऊंऊंऊंऊं करते हुये गला खंखार कर, आंख बंद करके, सर दायें-बायें हिलाते हुये गाना गाना शुरू कर दिया:
तुमको देखा तो ये खयाल आयाउजाले का गाना-ज्ञान तो एकदम्मै माशाअल्लाह सा था। वह सोचने लगा कि वो भी कोई गाना गाये या बेवकूफ़ों की तरह पलकें झपका कर काम चलाये। लेकिन उसने ऐसे मौके पर एक नया काम किया जो उसके खानदान में किसऊ ने नहीं किया था आजतक। उसने आशु कविता टाइप ठेल दी और कुछ् यूं कहा:
जिन्दगी धूप तुम घना साया।
आज तुमने उलटा राग फ़िर गायाइसके बाद क्या हुआ यह बताना रोशनी और उजाले की निजता में उल्लंघन करना होगा। लेकिन विश्वसत सांसारिक सूत्रों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि रोशनी उजाले को अपलक बहुत देर तक निहारती रही। उजाले की सांसे इस अपलक थोबड़ा- मुआइने से इत्ती तेज-तेज चलने लगीं मानों किसी योग शिविर में कोई योगगुरु कपालभाति आसन का प्रदर्शन कर रहा हो। बताते हैं रोशनी ने उसे हाऊ स्वीट, मेरे प्यारे, दुलारे बसन्तकुमार, बौढ़म पागलदास जैसे जुमले उछालते हुये गले लगा लिया। वातावरण गुनगुना होते-होते गर्मा गया है। सूरज भाईसाहब इस बात से चकित हैं कि इतने कम फ़ोटान भेजने के बावजूद धरती का ताममान क्यों बढ़ रहा है। उनका निर्गत गर्मी और फोटान इशू रजिस्टर गड़बड़ा गया है।
जिंदगी को धूप बताया मुझको साया
कड़कते जाड़ें मे ये गीत क्यों गाया
बना के साया मुझे क्यॊं ठिठुराया!
मैंने तो सजनी ये गीत कुछ यों गाया
तेरी संग-खुशबू से खुद को महकाया
तेरी याद ने हरदम मुझको गरमाया
तुम ही मेरी धूप मैं तेरा साया!
कोई उनको इसका कारण धरती की ग्लोबल वार्मिंग बता रहा है कोई कह रहा कि रोशनी और उजाले की सांसों के संलयन से निकलने वाली ऊर्जा-ऊष्मा के चलते तापमान बढ़ा है।
आपका क्या कहना है?
सूचना
: सबसे ऊपर का फ़ोटो मेरी नातिन का और नीचे का वीडियो मेरी माताजी का है। एक साल की नातिन की मुस्कान और सत्तर पार की अम्मा के गान के बीच मेरी पोस्ट है। इस वीडियो में अम्मा हीरा-मोती पिक्चर का गाना गा रही हैं !
Posted in पाडकास्टिंग, बस यूं ही | 54 Responses
54 responses to “…..जिंदगी धूप तुम घना साया”
रिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।
44 responses to “…..जिंदगी धूप तुम घना साया”
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44 responses to “…..जिंदगी धूप तुम घना साया”
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धूप की डिमांड कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी है। लगता है सूरज ने भी छ: सिलेण्डर देने की ही घोषणा कर दी है। नो सबसीडी, नगद भुगतान करो। अच्छा है पर लम्बा है।
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..निरर्थक सदवचनों से समाज का वीरत्व समाप्त हो गया है -
Hello, you used to write great, but the last several posts have been kinda boring?K I miss your great writings. Past several posts are just a little out of track! come on!
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बहुत ठण्ड होए लगी है, कटकटुआ एकदम !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..एक सपने का लोचा लफड़ा… -
[…] किरण को जान से ज्यादा चाहते हैं। कभी कोहरा उनका रास्ता रोकता है, उनको छेड़ता है तो उसके […]
हीरा मोती फिल्म की सीडी मैंने कलकक्ता से मंगाई थी। कुछ तो इस फिल्म के प्रेंमचंद से जुडी दो बैलों की कहानी के कारण और कुछ क्लासिक फिल्म पसंदगी के कारण।
पोस्ट के साथ अलग अंदाज में गीत को देख अच्छा लगा। इस विडियो के खत्म होने पर आर्काईव में एक पहाडी गीत का लिंक देखा तो क्लिक किया…..वह भी सुमधुर है……यों भी पहाडी धुनें अपने आप में एक तरह का रूमानी अंश लिये होती हैं।
‘This post is simply superb…..excellent presentation….I have never read such similes…..just great”
उम्र के दो पडावों के बीच यह पोस्ट । वाट ऐन आइडिया सर जी ।
अभी अकस्मात ही एक दिन मैने गद्य का एक टुकड़ा लिखा था..लोग उसे शेर कह कर, कविता कह कर बधाई दे गये…
लेखन के भाव पकड़ना मानो कि हवा में मछली पकड़ने के लिए हाथ लपकाने जैसा ही अधिकतर जगहों पर…
हाय!! ये मछली है!! ऐसन मछली तो पहले कभी देखबे नहीं किये..मच्छर को मछली घोषित कर भी कोई खुश हो सकता है, जान कर ग्लानि तो स्वभाविक ही है. है न!!
खैर, जाने क्यूँ यह यहाँ बतियाने लगा….हद ही करता हूँ मैं भी.
बढ़िया फुरसतिया मार्का पोस्ट. अच्छा लगा पढ़कर….मजा भी आया.
माता जी के स्वर में गीत सुनना बहुत सुखकर रहा!! आभार इस विडियों के लिए…नाती बाबू क्या स्वाति के बेटा जी हैं??
हा हा हा हा बेचारे लगता है सरकारी कर्मचारी नहीं थे तभी न देर तक ड्यूटी पर डटे थे…….बहुत अच्छा लगा ये आलेख. अम्मा जी और अपनी नातिन से मिलवाने का बेहद आभार…
regards
जिंदगी को धूप बताया मुझको साया
कड़कते जाड़ें मे ये गीत क्यों गाया
बना के साया मुझे क्यॊं ठिठुराया!
बहुत बढिया सुकुल जी, आनंद दायक शानदार पोस्ट, बधाई हो, गोड़ लागी।
मन पुलकित च किलकित हुआ। शुक्रिया।
पोस्ट…
ये बीच में है धूप में पका तज़ुर्बा…ज़िंदगी के हर खट्टे-मीठे पहलू को फुरसतिया अंदाज़ के
साथ जीने का…नए नए मुल्लाओं को ज़्यादा ज़ोर से अल्लाह अल्लाह करते देखने का…तिल
का ताड़ बनते देखने का…
जय हिंद…
मस्त अंदाज़…. माता जी का गाना घर पर सुना जायेगा…अभी आफिस वाले घेरे हैं….!
पोस्ट पर इतना ज्यादा कह दिया कि टिप्पणी के लिए
बचा ही कुछ नहीं .. जो कसर थी उसे अब तक के
लोगों ने टीप डाला .. पर का करूँ .. ” हम हन पुरान बकवादी /
टिप्पनी-ठेल के आदी |” ( आपके अनुसार ! )
अस्तु , …
जहाँ से आपने ख़त्म किया है , वहीं से कवि त्रिलोचन का मानवीकरण
देखने लायक है —
” धूप चमकती है चांदी की सड़ी पहने
मइके से आयी बेटी की तरह मगन है | ”
एक बात और …
” शादी डट कॉम ” पै इन चेहरन के लालच कै राज का है ?
सुन्दर पोस्ट की भूरिशः बधाइयाँ ..
…………. अनंताभार ,,,
आवाज में ही खो गए ..
माता जी को मेरा प्रणाम !
यह केवल हाज़िरी है, थोड़ा पढ़ा .. आधे पर रुक गये..
नहीं, भाई ई त धूप में बईठ के अमरूद कचरते हुये पढ़ने वाली पोस्ट है ।
सो कल्ह इसका मान रखा जायेगा । अगर दुबारा से टिप्पणी न दे पाये त मानहानि न समझ लीजियेगा !
दुर्लभ बिम्बों का खजाना है ये तो…एक ऐसी ही वो गर्मी से तर-ब-तर वाली आप्की पोस्ट पर जबरदस्त बिम्ब लिये कुछ जुमले थे और एक ये आज। कापी-राइट करवा लियो जल्दी-से-जल्दी, कहे दे रहे हैं हम।
एक संग्रहणीय पोस्ट इस ब्लौग-जगत का।
अम्मा का गीत भी मौसमी ही था…पूरे उतार-चढाव के बाद शांति के ठहराव सा…
जिंदगी को धूप बताया मुझको साया
कड़कते जाड़ें मे ये गीत क्यों गाया
बना के साया मुझे क्यॊं ठिठुराया!
मैंने तो सजनी ये गीत कुछ यों गाया
तेरी संग-खुशबू से खुद को महकाया
तेरी याद ने हरदम मुझको गरमाया
तुम ही मेरी धूप मैं तेरा साया!
dhaasoon post uspar ye shaandar rachna saath me ,chaar chaand lag gaye ,yahan chandni chhitak rahi rahi har taraf,aur apni sheetalta me hame nahla rahi ,hamare pass suraj hai nahi aur diya kis kaam ka rahega ,itni raushni yahan kafi nahi .sachmuch kadi dhoop me ghana saya ,umda jise man padhkar waah waah kah uthe ,
आपके कलम , कल्पनाशक्ति और रचनाशीलता को शत शत नमन !!!
अहो.. महाकवि फुरसतिया का भिनसार वर्णन!
वैसे कोपेनहेगन का हाल देखकर लगता नहीं कि बीस साल बाद जाड़े का मौसम बचेगा कर्क और मकर रेखा के बीच..
उजाला थोड़ी-बहुत अंग्रेजी जानता था और यह मानता था जब कोई तर्क न समझ में आये तो अंग्रेजी दाग देनी चाहिये।
:):)ओह…वाह..!
कोहरे-उजाले की तो अब मूर्तिमान से हो गए..वाह..!
नातिन को आशीर्वाद..अम्मा जी को अभिवादन..!
यह पैराग्राफ़ शायद ज़िंदगी में अपनों की अपनों से सिकुड़न का सबसे उम्दा उदाहरण है, फ़ुरसतिया जी।
भगवान भुवन भास्कर का टीम-टामड़ा-टंडीला और अंधेरे के खिलाफ़ मोर्चा और अंधकार तत्वों की तुड़ैया । लाजवाब।
अहा ! आप से बेहतर कौन शब्दों की ऐसी सुन्दर पगडण्डी बना सकता है, और उस पर वो सहवाग की बैटिंग के रिप्ले का दृष्टांत।
कोई जवाब नहीं। रोशनी-राग और अंधकार-संहार के साथ-साथ फ़ोटो सेशन ! आप कहाँ थे अब तक ?
रोशनी और ऊष्मा की कुमुक ! क्या कहना ! वाह वाह ! एक्चुअली और फ़ेक्चुअली की खानदानी सफ़ाइयाँ हा हा।
कोहरे का एतराज — आदमियों के डायलाग पर बहुत गहरा कथ्य लिए हुए। झाड़ी के छेद पर पवन कंटाप और झाड़ी का बिना शर्त समर्थन। बाय गॉड!
रोशनी और उजाले की सवारी का मौका मुआयना । वह सरसों के फ़ूल के ऊपर परशुरामी। सरसों के पौधों को किरणों का समर्थन। हवा का आसपास की झाड़ियों, झरबेरियों ,फ़ूलॊ, कांटों को दुलार। फिर बेखबरी में सड़क किनारे की पन्नियों/पालीथीन को किनारे लगाना। कूड़े के ढेर को सहलाना। ढ्रेर की बदबू से हवा का पल्ला छुड़ाना। जुझारू ब्लागर का टेम्पलेट बदलना। सूरज का फोटॉन सप्लाई काट देना। माइंड ब्लोइंग !
बुजुर्गवार का धूप लपकना और उसे लपकने के लिए जगह बदलना। हा हा बुढुउती इनके जीने नहीं देती जवानी इनको मरने नहीं देती। क्या बात है।
इस सब से बड़ा है बगीचे की खिली धूप में एक बच्ची का साइकिल के कैरियर पर बैठ कर मुस्कराना। सच कहा आपने मुस्कराते हुये लोग कितने खूबसूरत लगते हैं। यदि वो बच्चे हों तो।
हाँ जी हमारा भी यही कहना है :-
तुमको देखा तो ये खयाल आया
जिन्दगी धूप तुम घना साया।
नातिन के फ़ोटो और माताजी के वीडियो के बीच में सत्तर सालों का ज़बरदस्त अनुभवी साहित्य। शायद इसी को ज़िंदगी कहते हैं।
‘kale rang moongwa..safed rang motiy geet suna……video dekh kar apni dadi ji ki yaad aa gayee..
Naya saal aap ko bahut bahut shubh aur mangalmay ho.
Priya kahene ka man iss liye kar raha hai ki iss dhup chanh ouss hava pani sabhi ko uss samay ke sath jiya hi nahi mahsoos bhi kiya hai hamne. Sab kuch vahi rahta hai bas samaya badal jata hai aur bhav prasang ke mayne badal jate hain. Ujjawal bhavishya ki sadaiv shubh kamnao ke sath (Vinay)
सबसे पहले आपका धन्यवाद करना चाहती हूँ….कि आपने इस योग्य समझा…
अब बात आपके आलेख की……यह सच है क़ि आपकी लेखनी अपने आप में ही एक मिसाल है …इसके तेवर, बानगी और रफ़्तार… बस उम्दा दर उम्दा होती गयी है…..
लोगों ने बहुत कुछ कहा है और मैं उनसे कुछ ज्यादा कह भी नहीं पाऊँगी…
लेकिन इस पोस्ट में जो …दो सबसे मधुर बातें नज़र आईं हैं वो हैं ….आपकी नातिन और आपकी अम्मा…
नातिन को कमाल होना ही था क्यूँकी पर-नानी जो कमाल है…मुझे संगीत से बहुत लगाव है इसलिए सबसे पहले मैंने आपकी अम्मा जी की आवाज़ सुनी….और बसSSSSSSSSS………………
इतनी मधुर आवाज़ कि बता नहीं सकती… और सबसे बड़ी बात सुर की पूरी पकड़ रही अंत तक …..
कौन रंग मूंगवा कवन रंग मोतिया…..कवन रंग ननदी….हो जी बिजना….
सोना रंग नतिनिया, रूपा रंग अम्मा…
धवल रंग पोस्टवा जी….. !!
आभार…
aradhana की हालिया प्रविष्टी..अम्मा और मैं- एक अनोखा रिश्ता 3
अब और क्या कहूं, इत्ते लोग पहले ही कह चुके हैं!
Nishant Mishra की हालिया प्रविष्टी..इशारे