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….बरखा रानी जरा जम के बरसो
By फ़ुरसतिया on July 18, 2010
देश में मानसून आ गया है। छा गया है। लेकिन हमारे इधर अभी बारिश जम
के नहीं हुई है। न सड़कें भरी हैं न नालियां जाम। बारिश में भीगने की
तमन्ना तो खैर सालों से है। भीगने से डर से इसको हम अमल में नहीं लाते।
बहरहाल इसी बहाने एक पुराने लेख का रिठेल देखिये। सोचते हैं बरखा रानी कहीं दिखें तो उनको भी पढ़वाकर कहें – बरखा रानी जरा जम के बरसो!
बरसात का मौसम होते ही इन्द्र देवता की नाक में दम होने लगता है। हर बादल को अलग-अलग इलाके में बरसने के लिये भेजने का काम करना होता है। बादल भी अब राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह अनुशासनहीनता की हरकतें करने लगे हैं। भेजो कहीं के लिये, बरस कहीं और आते हैं…।
भगवान इन्द्र एक मनचले से बादल को फटकारते हुये बोले,’क्यों भाई,तुम्हारी ड्यूटी इस बार लगी थी झांसी जिले में और तुम ड्यूटी बजा आये मुंबई में। पिछली बार भी तुम बस्तर की बजाय सारा पानी मुंबई में उड़ेल आये थे। ये क्या मजाक है?’
बादल कुछ शर्म से तथा बाकी बेशर्मी से बोला,’साहब बरसने का मजा तो मुंबई में ही है। वहां तो हीरो-हीरोइनों तक को भिगोने का मौका-मजा मिलता है। मुझे जब आपने झांसी भेजा तो स्टेशन से बरसने की शुरूआत का डौल लगा ही था ,भूरा रंग कर लिया था,हवा चला दी। मेढक की टर्र-टर्र का इंतजाम कर लिया,कौन झोपड़ी गिरानी है यह भी तय कर लिया।कौन सा नाला उफनायेगा,कहां सड़क में पानी भरेगा सब प्लान कर लिया। हम बस ‘एक्शन’कहने ही वाले थे कि साहब हमें पुष्पक एक्सप्रेस दिख गयी। सो साहब अपना दिल मचल गया। पिछले साल की याद आ गई। दिल माना नहीं और हम लटक लिये ट्रेन में और जाकर मुंबई में बरस आये। अब आप जो सजा देओ ,सो सर माथे। ‘सजा सर माथे’ सुनते ही इन्द्र भगवान ने अपना सर और माथा दोनों पकड़ लिया।’
एक दूसरे बरसे हुये बादल को डांटते हुये भगवन बोले,’क्योंजी तुम्हें रामपुर के लिये भेजा गया था और तुम सारा पानी सीतापुर में उड़ेल आये? ये कैसी लापरवाही है? क्या भांग खाये रहते हो जो रेलवे के ड्राइवरों की तरह काम करते हो?तुम्हें पानी बरसाने भेजा गया था कोई कार्पेट बाम्बिंग करने थोडी की जहां जगह देखी गिरा दिया जखीरा।’
“साहब हम जब रामपुर जा रहे थे तो सीतापुर से होकर गुजरे। वहां देखा कि वर्षा के लिये पूजा-पाठ,शंख-घड़ियाल हो रहा था। हमने सोचा एक ही घर का मामला है। सीतापुर में जो पानी दे देंगे तो रामपुर चला ही जायेगा। हम इसी धोखे में रहे और डिलीवरी देकर चले आये। “-बादल ने अपना बचाव करते हुये कहा।
‘अरे क्या बेवकूफों की तरह बात करते हो? जहां ड्यूटी लगी है वहाँ जाना चाहिये। हमने तुम लोगों को पचास बार समझाया कि पैट्रयाट मिसाइलों जैसी हरकतें मत किया करो जो दगती किले पर हैं, गिरती आबादी पर हैं। ये पगलैटों की तरह हरकतें मत किया करो। ज्यादा बदमाशी करोगे तो फिर से लगा देंगे डाक बांटने में। बने मेघदूत थमाते रहोगे चिट्ठियां दुनिया भर में,विरहणी नायिकाऒं को।’-इंद्र भगवान आज कुछ ज्यादा ही उखड़ रहे थे।
‘लगता है साहब को आज फिर सबेरे-सबेरे डायटिंग अभियान के चलते नाश्ता नहीं मिला तभी इतना कुड़बुड़ा रहे हैं’ ,बादल ने सोचा और उवाचा- ‘साहब ,वो तो सब ठीक है लेकिन लोगों की पूजा-पाठ,जरूरत को भी तो कोई तवज्जो देनी पड़ती है कि नहीं। हमारी तो वहां यज्ञ के धुयें हालत खराब हो गयी इसीलिये हम घबरा के वहीं निपट लिये।’
‘अरे यार,तुमको क्या समझायें,कैसे समझायें। हम तो लगता है पागल हो जायेंगे समझाते-समझाते। अगर खाली चिरौरी-मिनती से हम पसीजते होते तो अब तक कालाहांडी,बस्तर,पाठा जलमग्न हो गये होते।अच्छा जाओ ज्यादा बहस मत करो। जाओ जरा दस मिनट की खेप ले जाओ। बंबई की तरफ वाला वाल्व खोल के निकल जाओ और डाल आओ जरा चौपाटी पर पानी। अगर थोड़ा-बहुत बचे तो खंडाला में गिरा आना।’
बादल के निकलते ही इंद्र भगवान फिर से अपने बादलों में बढती अनुशासनहीनता के बारे में विचार करने लगे।
इन्द्र भगवान ने बहुत कोशिश की आवारा बादलों को सुधार सकें। लेकिन आवारा ,चाहें बादल ही क्यों न हो,कहीं सुधरने के लिये आवारा बनता है! रेगिस्तान में बरसने के लिये भेजे गये बादल,चेरापूंजी में खलास हो के आ जाते हैं। जो बादल भूले -भटके वहां रेगिस्तान में पहुंच भी गये वे बादल भी बिन बरसे चले आते हैं। सारा पानी वहीं इकट्ठा होता है,जहां पहले से ही पानी जमा होता है। सूखी जगहें बादलों के विरह में सूखती रहती हैं- अंखडियां झाईं पड़ी,पंथ निहारि-निहारि।
भगवान अच्छी तरह समझते थे कि यह सब आदमियों की संगति का परिणाम है। लेकिन वे कुछ कर नहीं सकते थे। आखिर पहले वे भी तो जरा-जरा सी प्रार्थना पर फिसल जाया करते थे। योजना बना के रात में घूमते फिरते थे गांव-गांव। जहां किसी गांव में रात के अंधेरे में पानी के लिये महिलायें निर्वस्त्र होकर हल चलाती दिखीं वहीं के लिये वहीं से खड़े-खड़े पानी की डिलीवरी के लिये आदेश भेज दिया। बोरी-बोरी भर हवन सामग्री पर दिल लुटा बैठे। किसी भी छुटभैये देवता की सिफारिश पर उसके भक्त का घर पानी से तर कर दिया। भर दिये कुयें, बाबड़ी, नदी, ताल, तलैया, पोखर।
पहले तो पानी इफरात था। चल जाता था यह सब। लेकिन फ्री-फण्ड में पानी पाते-पाते मानव जाति नराधम हो गयी। पानी के साथ ‘अइयासी’ करने लगी। जहां एक चुल्लू की जरूरत है वहां बाल्टी बहा दी। पेड़ काटे सो अलग। पेड़ तो बादलों के लिये लंगर होते हैं। जहां पेड़ होंगे वहां बादल खूंटा गाड़ के बरस लेंगे। होते-करते पानी का ड्योढ़ा गड़बड़ गया। खर्चा हुआ ज्यादा ,जमा हुआ कम। अब हालत यह है कि सारे बादलों की फौज मनचली ,अनुशासनहीन हो गयी है। उनका स्टेमिना भी कम हो गया । केरल के लिये निकला बादल सउदी अरब पहुंचते-पहुंचते हांफते हुये पस्त होकर सारा पानी उड़ेल के खलास हो जाता है। पटियाला के लिये निकला बादल कबूतर बाजी करते-करते बोस्टन में ग्रीन कार्ड की दर्खास्त देते पकड़ा जाता है।
तमाम लोगों ने समझाया कि भगवन अब जमाना बहुत आगे बढ़ गया है। ये पोथी-पत्रा त्यागो। सारा डाटा कम्प्यूटर पर रख लो। सारे बादलों को माउस से कंट्रोल करो। सब गड़बड़ी दूर हो जायेगी। इंद्र भगवान ने अपने यहां के तकनीकी देवताओं को लगाया भी इस काम में लेकिन वे भी ,आदतन ,धरती के तकनीकी विशेषज्ञों की तरह किसी भी निर्णय पर न पहुंचने का लक्ष्य पूरा कर रहे हैं। पसीना सबका बह रहा है लेकिन इंद्रजी का काम नहीं पूरा हो रहा है। खुपिया जानकारी से पता चला कि सारे तकनीकी विशेषज्ञ देवता देवभूमि भारत के हैं।
इंद्र भगवान पानी की मांग और पूर्ति की चूल बैठा रहे थे। जितने पानी का हिसाब नहीं मिल रहा था उसे फुटकर खर्चे में डालते जा रहे थे। यह वे बहुत देर में जान पाये कि फुटकर खर्चे का सारा जोड़ थोक के खर्चे से कई गुना ज्यादा बैठ रहा था। भगवान सोच में पड़ गये। पड़े-पड़े(सोच में) उनको अहसास हुआ कि यहां भी हिसाब भारत दैट इज इंडिया के रुपये की तरह हो गया है जिसके जितने हिस्से का हिसाब मिलता है उससे कई गुना ज्यादा का तो मिलता ही नहीं। जितना सफेद होता है उससे कई गुना ज्यादा काला होता है।
इधर इंद्र जी हिसाब में लगे थे। उधर उन्होंने देखा कि बदलियों का झुण्ड खिलखिलाते हुये इधर-उधर डोलने का अहसास देते हुये पंखों को फ्राक की तरह समेटे सरपट ही,ही,ही करता भागा चला जा रहा था। इधर-उधर के आवारा बादल उनके आसपास घूमते-घूरते हुये उनसे सटने की तमन्ना सी लिये उनके आगे पीछे लग लिये।
इंद्रजी ने बदलियों को आवारगी के लिये झिड़कते हुये टोंका -’तुम लोगों को कुछ काम-धाम नहीं है क्या? जब देखो डांय-डांय घूमती रहती हो। अरे कुछ नहीं तो जाओ किसी जोड़े को ही भिगा कर आ जाओ। या किसी विरहणी नायिका के पास होकर उसके पिया का संदेशा दे आओ।’
इसपर बदलियां खिलखिलाती हुयी बोलीं-’साहब आज तो हम कहीं न जायेंगें। हम तो आज जा रहें हैं आपके महल में। मैडम ने बुलवाया है,हरियाली तीज के लिये। देर हो गयी सजने में। जाने दीजिये नहीं तो मैडम डाटेंगीं।’
इंद्र को अब समझ में आया कि पिछले हफ्ते से किस लिये रोज इंद्राणी उनसे लगभग हर साड़ी लपेट के पूछ चुकीं हैं -’देखो जी मैं इसमें कैसी लगती हूँ!’ उनको याद आया कि रात में नींद-बोझिल पलकों से इंद्राणी के उलाहने ,”सबके आदमी कित्ता-कित्ता तो लगाते हैं,करते हैं अपनी पत्नियों के लिये। तुम मेरे हाथ हाथों में मेंहदी नहीं लगा सकते।अभी तो मैं जवान हूँ तब ये हाल है। बुढ़ापे में जाने क्या करोगे?” सुनकर घंटों मेंहदी लगाते रहे। बाद में हमेशा की तरह काम पूरा होने पर यही सुनकर सो पाये-”हटोजी ,तुमसे कुछ नहीं हो सकता। मेंहदी के साथ हमारी साड़ी भी बरबाद कर दी।”
सुमुखि बदलियों को देखकर इंद्र भगवान का मन कुछ बदला। काली-काली मेघ सुंदरियों का समूह उनको किसी फूल के बगीचे सा लग रहा था। छोटी-छोटी बदलियों की अल्हड़ हरकतें उनके मन में वात्सल्य पूर्ण गुदगुदी करने लगी। बच्ची बदलियों के सर पर हाथ फिराते ही उनका रहा-सहा गुस्सा भी हवा हो गया। उन्होंने सोचा बेकार ‘ब्लड-प्रेशर’ के लिये इतनी दवा फांकते हैं। इन बादल-बदलियों की संगत रोज क्यों न किया करें। इंद्रजी ने बदलियों को मुस्करा कर जाने का इशारा किया।
बदलियां ,थैंक्यू,थैंक्यू कहती हुयी झरने सी इठलाती ,कोलगेटिया मुस्कान बिखेरती इंद्र के महल की तरफ चल दीं। साड़ी समेट कर गुनगुनाती,मुस्कराती एक गतयौवना सी सुंदरी से ‘बस यूं ही’ कुछ पूछने के लिये पूछते हुये इंद्र ने पूछा -’क्योंजी मिसेज बादल आज कौन सा गीत गाने जा रही हैं? मि.बादल तो गये हैं आज पानी बरसाने। जाते समय बता रहे थे कि आपको जाने के बारे में बता भी नहीं पाये क्योंकि आप गहरी नींद में सो रही थीं।’
मिसेज बादल हमेशा की तरह इठलाते हुये बोली-कहाँ गाना ,अब होता नहीं भाईसाहब! गला भी खराब है ,खांसी भी आ रही है। देखिये कुछ ऐसे ही गुनगुना दूंगी ।
पास से गुजरती मिसेज बादल के अधमुंदी आखों वाले मुंह से निकले रियाजी शब्द इंद्रजी को आज गाये जाने वाले गाने की सूचना दे रहे थे-
कुछ हो जाये सुनते ही नारद जी ने मेनका,रंभा,उर्वशी को बुलाने के लिये मोबाइल का नम्बर टटोलना शुरू किया। यह भांपकर इंद्र बोले ,’यार इनको मत बुलाओ। बोर हो गये वही चीजें देखते-देखते। कुछ नया करो यार!’
कुछ नया करो यार सुनते ही सुझावों की वर्षा होने लगी। सुझाव वर्षा में घण्टो भीगने के बाद तय हुआ कि कवि सम्मेलन कराया जाये। स्थापित कवियों को बुलाने की बजाय तय किया गया कि ब्लागर कवियों को बुलाया जाय। ब्लागर कवियों को बुलाने के पीछे कारण आर्थिक था। यह पता चला कि ब्लागर कवि फोकट में मिल जाते हैं। बिना पैसे केवल वाह-वाही टिप्पणी कर दो। बस उसी में गच्च हो जाते हैं।
कार्यक्रम तय होने के बाद नारद जी ने एक नये रंगरूट को बुलाया और कहा-’बेटा ये समीरदेव की उड़न तस्तरी ले लो। जरा पृथ्वी का चक्कर लगा आओ। जितने ब्लागर हिंदी के मिलें जो कविता लिखते हैं उन सबको आदर सहित लेकर आओ। जो मना करें उनसे कहना कि अपनी रचना ही दे दें। जो दोनों में आना-कानी करें उनको जरा अदब से समझा देना कि नारद जी ने कहीं फीड बंद कर दी तो फिर मत शिकायत करना।समझ गये न!’
रंगरूट के हां में सिर हिलाने के बाद नारद जी ने उसे हड़काना भी समयानुकूल समझा। सो थोड़ा गंभीर स्वर में बोले- ‘ज्यादा देर मत लगाना। अफवाह की चाल
से जाना,सांसदों के वेतन-भत्ते पास होने की गति से वापस आना। ध्यान रहे कि राहत सामग्री की तरह इधर-उधर मत डोलने लगना वर्ना संसद में महिला बिल की तरह तुम्हारा अगला प्रमोशन लटकवा दूंगा।’
रंगरूट बिना घबराये बोला -साहब आप चिन्ता न करें। सेवा में कोई कमी नहीं आयेगी। आपको हमारा काम पसंद आयेगा। कहते हुये रंगरूट ने उड़न तस्तरी के पायलट को तस्तरी स्टार्ट करने का हुकुम दिया।
उड़न तस्तरी उड़ गई। इंद्र भगवान तब तक फिर से बादलों के हिसाब-किताब में जुट गये हैं। नारद उचक-उचक के धरती की तरफ देखते हुये रंगरूट के वापस लौटने की राह देख रहे हैं।
मेरी पसंद
हमरी लग गयी आंख बलम का बिल्लो ले गयी रे
हम खुले में खड़े थे। आसमान महीने की अंतिम तारीख की जेब सा साफ था। अचानक मौसम किसी अवसर वादी नेता की जबान सा पलटा और बादल पिंडारियों की तरह हमारे कपड़े का सूखापन लूट कर सडकों,नालियों से होते हुये जमीन को भिगोते हुये नाले में बहने लगे ।बरसात का मौसम होते ही इन्द्र देवता की नाक में दम होने लगता है। हर बादल को अलग-अलग इलाके में बरसने के लिये भेजने का काम करना होता है। बादल भी अब राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह अनुशासनहीनता की हरकतें करने लगे हैं। भेजो कहीं के लिये, बरस कहीं और आते हैं…।
भगवान इन्द्र एक मनचले से बादल को फटकारते हुये बोले,’क्यों भाई,तुम्हारी ड्यूटी इस बार लगी थी झांसी जिले में और तुम ड्यूटी बजा आये मुंबई में। पिछली बार भी तुम बस्तर की बजाय सारा पानी मुंबई में उड़ेल आये थे। ये क्या मजाक है?’
बादल कुछ शर्म से तथा बाकी बेशर्मी से बोला,’साहब बरसने का मजा तो मुंबई में ही है। वहां तो हीरो-हीरोइनों तक को भिगोने का मौका-मजा मिलता है। मुझे जब आपने झांसी भेजा तो स्टेशन से बरसने की शुरूआत का डौल लगा ही था ,भूरा रंग कर लिया था,हवा चला दी। मेढक की टर्र-टर्र का इंतजाम कर लिया,कौन झोपड़ी गिरानी है यह भी तय कर लिया।कौन सा नाला उफनायेगा,कहां सड़क में पानी भरेगा सब प्लान कर लिया। हम बस ‘एक्शन’कहने ही वाले थे कि साहब हमें पुष्पक एक्सप्रेस दिख गयी। सो साहब अपना दिल मचल गया। पिछले साल की याद आ गई। दिल माना नहीं और हम लटक लिये ट्रेन में और जाकर मुंबई में बरस आये। अब आप जो सजा देओ ,सो सर माथे। ‘सजा सर माथे’ सुनते ही इन्द्र भगवान ने अपना सर और माथा दोनों पकड़ लिया।’
एक दूसरे बरसे हुये बादल को डांटते हुये भगवन बोले,’क्योंजी तुम्हें रामपुर के लिये भेजा गया था और तुम सारा पानी सीतापुर में उड़ेल आये? ये कैसी लापरवाही है? क्या भांग खाये रहते हो जो रेलवे के ड्राइवरों की तरह काम करते हो?तुम्हें पानी बरसाने भेजा गया था कोई कार्पेट बाम्बिंग करने थोडी की जहां जगह देखी गिरा दिया जखीरा।’
“साहब हम जब रामपुर जा रहे थे तो सीतापुर से होकर गुजरे। वहां देखा कि वर्षा के लिये पूजा-पाठ,शंख-घड़ियाल हो रहा था। हमने सोचा एक ही घर का मामला है। सीतापुर में जो पानी दे देंगे तो रामपुर चला ही जायेगा। हम इसी धोखे में रहे और डिलीवरी देकर चले आये। “-बादल ने अपना बचाव करते हुये कहा।
‘अरे क्या बेवकूफों की तरह बात करते हो? जहां ड्यूटी लगी है वहाँ जाना चाहिये। हमने तुम लोगों को पचास बार समझाया कि पैट्रयाट मिसाइलों जैसी हरकतें मत किया करो जो दगती किले पर हैं, गिरती आबादी पर हैं। ये पगलैटों की तरह हरकतें मत किया करो। ज्यादा बदमाशी करोगे तो फिर से लगा देंगे डाक बांटने में। बने मेघदूत थमाते रहोगे चिट्ठियां दुनिया भर में,विरहणी नायिकाऒं को।’-इंद्र भगवान आज कुछ ज्यादा ही उखड़ रहे थे।
‘लगता है साहब को आज फिर सबेरे-सबेरे डायटिंग अभियान के चलते नाश्ता नहीं मिला तभी इतना कुड़बुड़ा रहे हैं’ ,बादल ने सोचा और उवाचा- ‘साहब ,वो तो सब ठीक है लेकिन लोगों की पूजा-पाठ,जरूरत को भी तो कोई तवज्जो देनी पड़ती है कि नहीं। हमारी तो वहां यज्ञ के धुयें हालत खराब हो गयी इसीलिये हम घबरा के वहीं निपट लिये।’
‘अरे यार,तुमको क्या समझायें,कैसे समझायें। हम तो लगता है पागल हो जायेंगे समझाते-समझाते। अगर खाली चिरौरी-मिनती से हम पसीजते होते तो अब तक कालाहांडी,बस्तर,पाठा जलमग्न हो गये होते।अच्छा जाओ ज्यादा बहस मत करो। जाओ जरा दस मिनट की खेप ले जाओ। बंबई की तरफ वाला वाल्व खोल के निकल जाओ और डाल आओ जरा चौपाटी पर पानी। अगर थोड़ा-बहुत बचे तो खंडाला में गिरा आना।’
बादल के निकलते ही इंद्र भगवान फिर से अपने बादलों में बढती अनुशासनहीनता के बारे में विचार करने लगे।
इन्द्र भगवान ने बहुत कोशिश की आवारा बादलों को सुधार सकें। लेकिन आवारा ,चाहें बादल ही क्यों न हो,कहीं सुधरने के लिये आवारा बनता है! रेगिस्तान में बरसने के लिये भेजे गये बादल,चेरापूंजी में खलास हो के आ जाते हैं। जो बादल भूले -भटके वहां रेगिस्तान में पहुंच भी गये वे बादल भी बिन बरसे चले आते हैं। सारा पानी वहीं इकट्ठा होता है,जहां पहले से ही पानी जमा होता है। सूखी जगहें बादलों के विरह में सूखती रहती हैं- अंखडियां झाईं पड़ी,पंथ निहारि-निहारि।
भगवान अच्छी तरह समझते थे कि यह सब आदमियों की संगति का परिणाम है। लेकिन वे कुछ कर नहीं सकते थे। आखिर पहले वे भी तो जरा-जरा सी प्रार्थना पर फिसल जाया करते थे। योजना बना के रात में घूमते फिरते थे गांव-गांव। जहां किसी गांव में रात के अंधेरे में पानी के लिये महिलायें निर्वस्त्र होकर हल चलाती दिखीं वहीं के लिये वहीं से खड़े-खड़े पानी की डिलीवरी के लिये आदेश भेज दिया। बोरी-बोरी भर हवन सामग्री पर दिल लुटा बैठे। किसी भी छुटभैये देवता की सिफारिश पर उसके भक्त का घर पानी से तर कर दिया। भर दिये कुयें, बाबड़ी, नदी, ताल, तलैया, पोखर।
पहले तो पानी इफरात था। चल जाता था यह सब। लेकिन फ्री-फण्ड में पानी पाते-पाते मानव जाति नराधम हो गयी। पानी के साथ ‘अइयासी’ करने लगी। जहां एक चुल्लू की जरूरत है वहां बाल्टी बहा दी। पेड़ काटे सो अलग। पेड़ तो बादलों के लिये लंगर होते हैं। जहां पेड़ होंगे वहां बादल खूंटा गाड़ के बरस लेंगे। होते-करते पानी का ड्योढ़ा गड़बड़ गया। खर्चा हुआ ज्यादा ,जमा हुआ कम। अब हालत यह है कि सारे बादलों की फौज मनचली ,अनुशासनहीन हो गयी है। उनका स्टेमिना भी कम हो गया । केरल के लिये निकला बादल सउदी अरब पहुंचते-पहुंचते हांफते हुये पस्त होकर सारा पानी उड़ेल के खलास हो जाता है। पटियाला के लिये निकला बादल कबूतर बाजी करते-करते बोस्टन में ग्रीन कार्ड की दर्खास्त देते पकड़ा जाता है।
तमाम लोगों ने समझाया कि भगवन अब जमाना बहुत आगे बढ़ गया है। ये पोथी-पत्रा त्यागो। सारा डाटा कम्प्यूटर पर रख लो। सारे बादलों को माउस से कंट्रोल करो। सब गड़बड़ी दूर हो जायेगी। इंद्र भगवान ने अपने यहां के तकनीकी देवताओं को लगाया भी इस काम में लेकिन वे भी ,आदतन ,धरती के तकनीकी विशेषज्ञों की तरह किसी भी निर्णय पर न पहुंचने का लक्ष्य पूरा कर रहे हैं। पसीना सबका बह रहा है लेकिन इंद्रजी का काम नहीं पूरा हो रहा है। खुपिया जानकारी से पता चला कि सारे तकनीकी विशेषज्ञ देवता देवभूमि भारत के हैं।
इंद्र भगवान पानी की मांग और पूर्ति की चूल बैठा रहे थे। जितने पानी का हिसाब नहीं मिल रहा था उसे फुटकर खर्चे में डालते जा रहे थे। यह वे बहुत देर में जान पाये कि फुटकर खर्चे का सारा जोड़ थोक के खर्चे से कई गुना ज्यादा बैठ रहा था। भगवान सोच में पड़ गये। पड़े-पड़े(सोच में) उनको अहसास हुआ कि यहां भी हिसाब भारत दैट इज इंडिया के रुपये की तरह हो गया है जिसके जितने हिस्से का हिसाब मिलता है उससे कई गुना ज्यादा का तो मिलता ही नहीं। जितना सफेद होता है उससे कई गुना ज्यादा काला होता है।
इधर इंद्र जी हिसाब में लगे थे। उधर उन्होंने देखा कि बदलियों का झुण्ड खिलखिलाते हुये इधर-उधर डोलने का अहसास देते हुये पंखों को फ्राक की तरह समेटे सरपट ही,ही,ही करता भागा चला जा रहा था। इधर-उधर के आवारा बादल उनके आसपास घूमते-घूरते हुये उनसे सटने की तमन्ना सी लिये उनके आगे पीछे लग लिये।
इंद्रजी ने बदलियों को आवारगी के लिये झिड़कते हुये टोंका -’तुम लोगों को कुछ काम-धाम नहीं है क्या? जब देखो डांय-डांय घूमती रहती हो। अरे कुछ नहीं तो जाओ किसी जोड़े को ही भिगा कर आ जाओ। या किसी विरहणी नायिका के पास होकर उसके पिया का संदेशा दे आओ।’
इसपर बदलियां खिलखिलाती हुयी बोलीं-’साहब आज तो हम कहीं न जायेंगें। हम तो आज जा रहें हैं आपके महल में। मैडम ने बुलवाया है,हरियाली तीज के लिये। देर हो गयी सजने में। जाने दीजिये नहीं तो मैडम डाटेंगीं।’
इंद्र को अब समझ में आया कि पिछले हफ्ते से किस लिये रोज इंद्राणी उनसे लगभग हर साड़ी लपेट के पूछ चुकीं हैं -’देखो जी मैं इसमें कैसी लगती हूँ!’ उनको याद आया कि रात में नींद-बोझिल पलकों से इंद्राणी के उलाहने ,”सबके आदमी कित्ता-कित्ता तो लगाते हैं,करते हैं अपनी पत्नियों के लिये। तुम मेरे हाथ हाथों में मेंहदी नहीं लगा सकते।अभी तो मैं जवान हूँ तब ये हाल है। बुढ़ापे में जाने क्या करोगे?” सुनकर घंटों मेंहदी लगाते रहे। बाद में हमेशा की तरह काम पूरा होने पर यही सुनकर सो पाये-”हटोजी ,तुमसे कुछ नहीं हो सकता। मेंहदी के साथ हमारी साड़ी भी बरबाद कर दी।”
सुमुखि बदलियों को देखकर इंद्र भगवान का मन कुछ बदला। काली-काली मेघ सुंदरियों का समूह उनको किसी फूल के बगीचे सा लग रहा था। छोटी-छोटी बदलियों की अल्हड़ हरकतें उनके मन में वात्सल्य पूर्ण गुदगुदी करने लगी। बच्ची बदलियों के सर पर हाथ फिराते ही उनका रहा-सहा गुस्सा भी हवा हो गया। उन्होंने सोचा बेकार ‘ब्लड-प्रेशर’ के लिये इतनी दवा फांकते हैं। इन बादल-बदलियों की संगत रोज क्यों न किया करें। इंद्रजी ने बदलियों को मुस्करा कर जाने का इशारा किया।
बदलियां ,थैंक्यू,थैंक्यू कहती हुयी झरने सी इठलाती ,कोलगेटिया मुस्कान बिखेरती इंद्र के महल की तरफ चल दीं। साड़ी समेट कर गुनगुनाती,मुस्कराती एक गतयौवना सी सुंदरी से ‘बस यूं ही’ कुछ पूछने के लिये पूछते हुये इंद्र ने पूछा -’क्योंजी मिसेज बादल आज कौन सा गीत गाने जा रही हैं? मि.बादल तो गये हैं आज पानी बरसाने। जाते समय बता रहे थे कि आपको जाने के बारे में बता भी नहीं पाये क्योंकि आप गहरी नींद में सो रही थीं।’
मिसेज बादल हमेशा की तरह इठलाते हुये बोली-कहाँ गाना ,अब होता नहीं भाईसाहब! गला भी खराब है ,खांसी भी आ रही है। देखिये कुछ ऐसे ही गुनगुना दूंगी ।
पास से गुजरती मिसेज बादल के अधमुंदी आखों वाले मुंह से निकले रियाजी शब्द इंद्रजी को आज गाये जाने वाले गाने की सूचना दे रहे थे-
हमरी लग गयी आँख,बलम का बिल्लो ले गयी रे।भगवान इंद्र ने तुरंत नारद को बुलाया। बोले यार,’सावन का महीना है,पवन भी बहुत शोर कर रहा है। अब जिये को झुमाना ही पड़ेगा। लग रहा है वन में मोर भी नाचने लगे हैं। चलो हम भी कुछ मौज-मजा करते हैं। ये पानी की कहानी तो चलती ही रहेगी।
कुछ हो जाये सुनते ही नारद जी ने मेनका,रंभा,उर्वशी को बुलाने के लिये मोबाइल का नम्बर टटोलना शुरू किया। यह भांपकर इंद्र बोले ,’यार इनको मत बुलाओ। बोर हो गये वही चीजें देखते-देखते। कुछ नया करो यार!’
कुछ नया करो यार सुनते ही सुझावों की वर्षा होने लगी। सुझाव वर्षा में घण्टो भीगने के बाद तय हुआ कि कवि सम्मेलन कराया जाये। स्थापित कवियों को बुलाने की बजाय तय किया गया कि ब्लागर कवियों को बुलाया जाय। ब्लागर कवियों को बुलाने के पीछे कारण आर्थिक था। यह पता चला कि ब्लागर कवि फोकट में मिल जाते हैं। बिना पैसे केवल वाह-वाही टिप्पणी कर दो। बस उसी में गच्च हो जाते हैं।
कार्यक्रम तय होने के बाद नारद जी ने एक नये रंगरूट को बुलाया और कहा-’बेटा ये समीरदेव की उड़न तस्तरी ले लो। जरा पृथ्वी का चक्कर लगा आओ। जितने ब्लागर हिंदी के मिलें जो कविता लिखते हैं उन सबको आदर सहित लेकर आओ। जो मना करें उनसे कहना कि अपनी रचना ही दे दें। जो दोनों में आना-कानी करें उनको जरा अदब से समझा देना कि नारद जी ने कहीं फीड बंद कर दी तो फिर मत शिकायत करना।समझ गये न!’
रंगरूट के हां में सिर हिलाने के बाद नारद जी ने उसे हड़काना भी समयानुकूल समझा। सो थोड़ा गंभीर स्वर में बोले- ‘ज्यादा देर मत लगाना। अफवाह की चाल
से जाना,सांसदों के वेतन-भत्ते पास होने की गति से वापस आना। ध्यान रहे कि राहत सामग्री की तरह इधर-उधर मत डोलने लगना वर्ना संसद में महिला बिल की तरह तुम्हारा अगला प्रमोशन लटकवा दूंगा।’
रंगरूट बिना घबराये बोला -साहब आप चिन्ता न करें। सेवा में कोई कमी नहीं आयेगी। आपको हमारा काम पसंद आयेगा। कहते हुये रंगरूट ने उड़न तस्तरी के पायलट को तस्तरी स्टार्ट करने का हुकुम दिया।
उड़न तस्तरी उड़ गई। इंद्र भगवान तब तक फिर से बादलों के हिसाब-किताब में जुट गये हैं। नारद उचक-उचक के धरती की तरफ देखते हुये रंगरूट के वापस लौटने की राह देख रहे हैं।
मेरी पसंद
मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
आगे-आगे नाचती – गाती बयार चली
दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गली
पाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये
आँधी चली, धूल भागी घाँघरा उठाये
बाँकी चितवन उठा नदी,ठिठकी,घँघट सरके।
बूढ़े पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की
‘बरस बाद सुधि लीन्ही’
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।
PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..भुबनेश्वर का प्राचीनतम मंदिर – परशुरामेश्वर
धन्य हुए फिर से बांचकर.
वाह!
ऊ का कहते हैं तनी धोती बगलाइए और अपना चरन स्पर्श करने का अनुमति दीजिए… हमरा दिल्ली का भी ओही हाल है… लगता है इंदर भगवान भी नेताओं से मिल गए हैं… या दिल्ली में बढता हुआ क्राईम रेट से डरा गए हैं… बादल रोज देखाई देता है लेकिन जैसे एलेक्शन डिऊटी में मास्टर सब भागल चलता है नाम कटाने के लिए, वैसे ही भाग जाता है… पता नहीं कहाँ से पैरवी लगाता है कि नमवा कट जाता है एलेक्शन डिऊटी से.. इंदर भगवान को चाहिए कि इसपर भी कमीशन बिठाए, लेकिन कहीं वो भी कमीशन लेकर गलत रिपोर्ट दिया तब तो कोई सुनवाई नहीं.
गुरुदेव आज तो पंडित श्रीलाल शुक्ल और स्व. शरद जोशी दोनों का मज़ा आ गया. बरसात का फुहार में भीगे चाहे नहीं, आपका फुहार में सराबोर हो गए.एक फिर से चरन स्पर्श!!
लेखन के दौरान सामयिक को रखते जाना , आपकी विशिष्ट शैली है ! और अक्सर ब्लॉग-जगत का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता ! दाल में नमक के चटपटे सा यह भी रहता ही है ! जरूरी भी है , पर नमक ज्यादा न हो यही कुशलता है !
आपके मेघ ने खूब भूगोल भी बांचा है , दिलचस्प रहा यह ! हठीले मेघ , मुए अपने स्वामी की भी नहीं सुनते , बड़ी अराजकता है देवलोक में ! ‘बेचारे देव’ ! वहाँ कौन जाना चाहेगा ! ………. नवीन साम्य-विधानों ने कथ्य की ख़ूबसूरती बढ़ा दी है ! आभार !
कुछ हल्कों से इँद्राणी पर सरकारी सँसाधनों के दुरुपयोग के लिये जाँच कमीशन बैठाने की माँग उठायी गयी है ।
कुछेक जागरुक मेघ बारँबार तड़ित फ़ैक्स भेज रहे हैं, कि शरद पवार में उन्हें शरद प्रत्यय माफ़िक नहीं आता, अतः उनके खेती-बाड़ी मँतरू रहने तक वह इसी तरह गैरजिम्मेदार, अर्ध-लकवाग्रस्त और बेफ़ज़ूल की गरजन मचाये रहेंगे ।
कुछेक कारी मनचली बदरियाँ नज़र बचा के चुप्पै से अपने सजन के पास फूट ली हैं ।
गृह मँत्रालय के हवाले से सँगीता पुरी जी से रिपोर्ट माँगी गयी है.. उनकी विस्तृत रिपोर्ट की प्रतीक्षा है ।
कुछ भी बात होती तो लोग कहते कि क्या ’खतरा’ गाया है.. क्या ’खतरा’ शाट है… कुलमिलाकर हमे ये अपने लखीमपुर वासियो के ’भौकाल’ शब्द जैसा ही लगा… अब हमारी तरफ़ से इतना सब ज्ञानवर्धक जानकारी किसलिये..
क्यूकि बस इतना कहना था कि ’खतरा पोस्ट’.. एकदम ’खतरा’ टाईटिल तो उस्सै खतरा… सब ’खतरा’..
Sanjeet Tripathi की हालिया प्रविष्टी..पाठकों को समर्पित
शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी..खून पीकर जीने वाली एक चिड़िया रेत पर खून की बूँदे चुग रही है
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट भी!
क्या खूब कल्पना की उड़ान भरी है..
बादलों को ड्यूटी पर भेजने की इंद्र देवता की परेशानी ..हा हा हा!
-बदलियां .. झरने सी इठलाती ..कोलगेटिया मुस्कान बिखेरती..
बाहोत ही रोचक
Alpana की हालिया प्रविष्टी..गीता दत्त-एक सितारा जो आज भी जगमगा रहा है
“बादल भी अब राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह अनुशासनहीनता की हरकतें करने लगे हैं। भेजो कहीं के लिये, बरस कहीं और आते हैं…”
‘अरे क्या बेवकूफों की तरह बात करते हो? जहां ड्यूटी लगी है वहाँ जाना चाहिये। हमने तुम लोगों को पचास बार समझाया कि पैट्रयाट मिसाइलों जैसी हरकतें मत किया करो जो दगती किले पर हैं, गिरती आबादी पर हैं। ”
और क्या खूब समझाइश दी है-
पेड़ तो बादलों के लिये लंगर होते हैं। जहां पेड़ होंगे वहां बादल खूंटा गाड़ के बरस लेंगे। होते-करते पानी का ड्योढ़ा गड़बड़ गया। खर्चा हुआ ज्यादा ,जमा हुआ कम।
हमेशा की तरह सुन्दर, जीवंत पोस्ट.
फुर्सते नहीं मिली…..सांस लेने की.. :डी
बोले तो एकदम धांसू …………
Indranil Bhattacharjee की हालिया प्रविष्टी..बस हो क्षुधा निवारण
बहुत ही शानदार ,हम तो बस मज़ा लेने आते है यहाँ ,कहने को अपने पास कुछ नहीं .बरखा रानी से अपनी भी यही विनती है .
क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।
अति सुन्दर
‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।
अति सुन्दर
WAH
SHAILENDRA JHA
CHANDIGARH
बुढिया मर जाये फ़ांके से
dhiru singh की हालिया प्रविष्टी..क्वीन बेटन को कामन मैन बेटन क्यों नहीं कहते -वसीम बरेलवी
devendra pandey की हालिया प्रविष्टी..एक अभागी सड़क
लेकिन अभी बाँचने में खूबे मजा आया। सक्सेना जी की इस कविता के लिये धन्यवाद…
गौतम राजरिशी की हालिया प्रविष्टी..फटा पोस्टर निकला राइटर
सारा समय, जब तक इसको पढते रहे, चेहरे पर बिजली, मुस्कानों की, कौंधती रही। क्या कल्पना की उड़ान भरे हैं!!!!
तनी कवि सम्मेलनों करवाइए देते। पता नहीं ऊ तसतरी कहां है, हम ओकरा इन्तज़ार में बैठले हैं। हमहूं थोड़ा बहुत कबिता बांच लेता हूं।
बंगाल में त इंदर भगवान मेनका, उर्बसि,रम्भा सबको लेकर नाच रहें हैं, पता नहीं आप लोग की तरफ़ से क्यों नराज़ हैं।
इस हंसी के बाद यह भी कहना है कि आपकी इस रचना में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है।
-आसमान महीने की अंतिम तारीख की जेब सा साफ था। अचानक मौसम किसी अवसर वादी नेता की जबान सा पलटा और बादल पिंडारियों की तरह हमारे कपड़े का सूखापन लूट कर सडकों,नालियों से होते हुये जमीन को भिगोते हुये नाले में बहने लगे ।
-पेड़ तो बादलों के लिये लंगर होते हैं।
-यहां भी हिसाब भारत दैट इज इंडिया के रुपये की तरह हो गया है जिसके जितने हिस्से का हिसाब मिलता है उससे कई गुना ज्यादा का तो मिलता ही नहीं। जितना सफेद होता है उससे कई गुना ज्यादा काला होता है।
-अफवाह की चाल से जाना,सांसदों के वेतन-भत्ते पास होने की गति से वापस आना। ध्यान रहे कि राहत सामग्री की तरह इधर-उधर मत डोलने लगना वर्ना संसद में महिला बिल की तरह तुम्हारा अगला प्रमोशन लटकवा दूंगा।’
… … और आजकल आप ब्लॉगकवियों के पीछे बोरिया-बिस्तर लेकर पड़ गए हैं… बेचारे ब्लॉगकवि
aradhana की हालिया प्रविष्टी..ओढ़े रात ओढ़नी बादल की
उधर उन्होंने देखा कि बदलियों का झुण्ड खिलखिलाते हुये इधर-उधर डोलने का अहसास देते हुये पंखों को फ्राक की तरह समेटे सरपट ही,ही,ही करता भागा चला जा रहा था। इधर-उधर के आवारा बादल उनके आसपास घूमते-घूरते हुये उनसे सटने की तमन्ना सी लिये उनके आगे पीछे लग लिये।
…शानदार लेख है. ऐसा ही पढ़ने को मिलता रहे तो ज़िंदगी कितनी खुशगवार हो जाय !
…ऐसा लेख मिले पढ़ने को मन जब कीचड़-कीचड़ हो.
…सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ने तो पोस्ट में चार चाँद ही लगा दिया है.
बेचैन आत्मा की हालिया प्रविष्टी..सरकारी अनुदान
shefali की हालिया प्रविष्टी..लाल- बॉल और पॉल