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…एक बेमतलब की पोस्ट
By फ़ुरसतिया on August 19, 2010
1.अगर आप इस भ्रम का शिकार हैं कि दुनिया का खाना आपका
ब्लाग पढ़े बिना हजम नहीं होगा तो आप अगली सांस लेने के पहले ब्लाग लिखना
बंद कर दें। दिमाग खराब होने से बचाने का इसके अलावा कोई उपाय नहीं है।
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे। : ब्लागिंग के सूत्र
बहुत दिन हो गये ब्लॉगर की डायरी लिखे हुये।
ब्लॉगजगत अद्भुत है। भांति-भांति के लोग यहां मिल जाते हैं। बस नेट के सामने बैठ जाइये। फ़िर तो मजे ही मजे। हर मिजाज का सामान मिल जायेगा आपको यहां। फ़्री फ़ंड में। हर्र लगे न फ़िटकरी रंग चोखा टाइप।
कोई भी एग्रीगेटर खोलकर कुछ भी पढ़ना शुरू कर दीजिये। मजे की फ़ुल गारंटी। सीरियस पोस्ट के नीचे जीनियस पोस्ट! जीनियस पोस्ट से सटी हुई कोई फ़ड़कती पोस्ट। फ़ड़कती पोस्ट के बगल में कोई अकड़ती पोस्ट। अकड़ती पोस्ट के ठीक नीचे कोई भावुक सी गीली-गीली पोस्ट! साथ में कई सारी सीली-सीली सी पोस्ट! उसके ठीक ऊपर एकाध दियासलाई की तीली सी पोस्ट। कुल मिलाकर मामला गठबंधन सरकार सा लगता है। जिसके हरेक घटक का आपस में छत्तीस का आंकड़ा गठबंधन की पहली शर्त है।
कोई क्रांति फ़ैला रहा है, कोई भ्रांति। किसी ने जरा सा हल्ला मचाया नहीं कि दस लोग चिल्लाते हुये शांति पाठ करने लगते हैं। मन लगाकर लड़ने भी नहीं देते। जहां घाव दिखा मरहम लगा दिया। जहां घाव नहीं हुआ बना दिया-आखिर मरहम तो लगाना ही है।
आज ही किसी ने एक एस.एम.एस. पढ़वाया। उसमें किसी ने अपने दोस्त को पीट दिया। दोस्त ने पूछा-मैंने क्या गलती की जो मुझे पीटा तुमने। उसको जबाब मिला- साले हम तुम्हारी गलती का इंतजार करने लगे पीटने के लिये तब तो हो चुका।
कुछ लोगों का लेखन तो इतना बहुरंगी , इंद्रधनुषी सा लगता है कि सुबह जो लेख फ़ड़कता हुआ दीखता है, वही शाम तक सीरियस हो जाता है। भावुक लेख दयनीय सा लगने लगता है। गीले में और गीलापन पाठक लोग जोड़ देते हैं। बजबजा जाता है मामला कभी-कभी तो। इसका उलट भी होता है, पुलट भी होता है। उलट-पुलट तो खैर होता ही रहता है-हमेशा।
ओह! भूल गये न! यह तो बताया ही नहीं कि ब्लॉगिंग क्या है! ब्लॉगिंग की परिभाषा हर ब्लॉगर अपने मन से तय करता है। समय-समय पर जाहिर भी कर देता है। कई बार तो लोग ब्लॉगिंग बाद में शुरू करते हैं इसके बारे में व्याख्या /राय पहले जारी करते हैं। लोग कहते हैं- ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है। पत्रकारिता वाले भी इसे अपनी तरफ़ खींचते हैं। कविता-कहानी-लेख-नाटक-गीत-संगीत-फ़ंगीत-तकनीक-फ़कनीक-खेल-वेल सबसे जुड़े लोग इसे अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं।
जैसा लोग कहते हैं कुछ उसी तरह बातें बाग कहते हैं। अब जब लोग-बाग कुछ कहेंगे तो वन,वाटिका,कूप,तड़ाग का मुंह कौन बंद कर सकता है। उनका भी जो मन आता है कहते हैं। कहते रहेंगे, कहने दिया जाये।
जैसे ग्राम समाज की जमीन पर दबंग लोग कब्जा करने की कोशिश करते हैं जनहित में वैसे ही जो जिस रंग का होता है उस रंग का झंडा फ़हरा लेता है ब्लॉग के लिये। वैसे मेरे हिसाब से तो ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम है। रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर वह व्यंजन बना सकते हैं जिसका सामान आपके पास है। एक तुक्कड़ कवि ने कहा भी है:
कोई अच्छा लिखे तो आफ़त। खराब लिखे तो डबल आफ़त।
अच्छा लिखे तो कहा जाता है- तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं।
खराब लिखे तो- वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये। साधुवाद!
मरन है लिखने वाले की। समझ ही नहीं पाता कि लोग कह क्या रहे हैं। वो तो भला हो अनामी-सनामी भाइयों का जो मुंह दबाकर सच बयान कर जाते हैं। कुछ सच का पता चलता है वर्ना तो पता ही न चले।
जिसे देखो वह कालजयी लेखन कर रहा है। कालजयी लेखन के चलते अकालजयी च बवालजयी लेखन दब जाता है। जैसे कालाधन सफ़ेदधन को साइडलाइन कर देता है वैसे ही कालजयी लेखन अकालजयी लेखन का टेटुआ दबा देता है।
इतना अच्छापन और भलापन पसरा है यहां पर कि चलते हुये डर लगता है। कहीं किसी अच्छाई को टक्कर न लग जाये। कोई भलमनसाहत आहत न हो जाये। जिसे देखो वह भला दिखता है। जिसे देखो वह अच्छा। भलमनसाहत और अच्छाई के मारे नाक में दम है। स्व.राजबहादुर विकल जी शाहजहांपुर के बारे में बताते हुये कविता पढ़ते थे:
कविता से लगता है कि बड़े सलीके से शहीदों के सर देख-देखकर मार्गों पर बोये गये होंगे ताकि आने वाली पीढियां पांव के बल चलने में शरमायें।
ब्लॉगिग के बारे में एक अच्छी बात है कि लोग इसके स्तर के प्रति काफ़ी चिंतित रहते हैं। इसका स्तर गिरने न पाये। स्तर ऊंचा होता रहे इसके लिये लोग बहुत पसीना बहाते हैं। परेशान रहते हैं। अब यह बात अलग है कि जैसे-जैसे इसके स्तर की चिंता करने वाले बढ़ रहे हैं लोगों में इसके गिरते स्तर के प्रति बेचैनी बढ़ती जा रही है। कोई तो बता रहा था कि किसी डाक्टर ने अपने मरीज को वजन कम करने की सलाह देते हुये बताया- ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। हर जिम्मेदार ब्लॉगर स्टुअर्ट लिटिल की तरह ब्लॉग की नैया को बचाने में पिला पड़ा है।
कुछ दोस्त भी गजब के होते हैं। एक ने मेरे लेख का एक हिस्सा अपने नाम से कहीं पेश किया। मैंने उससे बाद में धमकाते हुये अकेले में कहा- वाह बेटा, मेरा लेख मय कामा-फ़ुल स्टॉप के अपने नाम से छाप दिया। कम से क्रेडिट तो दे देते मुझे।
उसने फ़ौरन पलटवार किया- तुम क्या कामा, फ़ुल स्टॉप विरासत में लेकर पैदा हुये थे। और वो लेख तुमने कहां से टोपा बतायें क्या! उसको क्रेडिट दिया जहां से टीपा?
हम चुप हो गये। जरा सी बात पर दोस्त से क्या बहस करें। बह्स की एक बड़ी आफ़त तो यह कि जहां शुरू करो लोग टोंकने लगते हैं स्वस्थ बहस करो। इतना तो ट्रैफ़िक वाले गाड़ी का प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं मांगते जितना बहस के गवाह बहस का स्वास्थ्य प्रमाणपत्र मांगते हैं। कोई-कोई तो बिना बहस अपने पास से दे देता है प्रमाण पत्र-स्वस्थ बहस देखकर अच्छा लगा।
बहस का तो ऐसा है कि बहस में लोग तर्क,विषय, तथ्य के चक्कर में नहीं पड़ते। बात चाहे ईरान की हो चाहे तूरान की। तर्क अगर अफ़गानिस्तान के हैं तो वही पेश किये जायेंगे। न हुआ तो राजस्थान के तो हैं ही इफ़रात में। आपको मानना हो तो मानो न मानना हो तो भी मानना तो पड़ेगा ही। आखिर स्वस्थ बहस जो हो रही है। बहस में वही तो कहेंगे जो पता है। सही-गलत की चिंता करें तब तो हो चुकी बहस।
दो दिन पहले कुछ कवितायें अदबदाकर निकल पड़ीं। मैंने उनको पोस्ट कर दिया। भाई लोगों ने खूब मजे लिये। कोई कहता है बहुत खूब लिखते रहें, कोई कहता मौज लेना सामाजिक अपराध है। हालत ऐसे हो गये हमारे जैसे भीड़ में कोई उचक्का फ़ंस जाये। कोई उसे इधर घसीटता है कोई उधर। कोई कहता है मारो साले को । कोई कहता है छोड़ दो बेचारे को।
कवितायें जब भी सोचता हूं खुराफ़ात ही सूझती है। खुराफ़ाती मुखड़े आकर खड़े हो जाते हैं सामने फ़ट से। जैसे … अब जैसे के आगे क्या कहें। अपने आप समझ जाइये।
जैसे आज ही सोचना शुरू किया तो फ़ट से एक मुखड़ा सामने आ गया रूपा फ़्रंट लाइन पहनकर-
जिंदगी एक झाम है
कलट्टरगंज का जाम है
निकल गये तो सुकून है
फ़ंस गये तो हराम है।
अब देखिये डायरी से शुरू हुये थे। कविता तक आ पहुंचे- बेमतलब की बातें करते-करते।
अच्छा ही हुआ। खराब लिखने के यही फ़ायदेतो देख ही चुके हैं। अब बेमतलब लिखने के भी देख लिये जायें।
नाम लेकर इनका ही चलती हैं कितनी ही दुकान है।
मीर थे, ग़ालिब थे, चाहे दाग थे तो इसमें क्या
लिख दिया ब्लॉगर कवि ने एक मोटा सा दीवान है।
मीर-गालिब ब्लॉग पर लिखते गजल की पोस्ट औ
गर न मिलती टिपण्णी तो लुट गया होता जहान है।
है सदा रोशन तुम्हीं से बुद्धि का दीपक यहाँ
और ऐसे दीपकों से जगमगाता है मकान है।
कह दिया इक ब्लॉगर ने भी बात जो मन में रही
और कहकर दे गया अपना भी छोटा सा निशान है।
सच तो ये है ब्लॉग पर भी कितने गालिब-मीर हैं
सब मिले तो उठ गया है, ब्लॉग का ऊंचा मचान है।
आप से हमारी ए विनती ऐड कर अशआर एक
और घर पर पंहुच कर डिनर में लें सब्जी औ नान है।
शिवकुमार मिश्र की बज में बिना मतलब का सुधार करने के बाद
2.जब आप अपने किसी विचार को बेवकूफी की बात समझकर लिखने से बचते हैं तो अगली पोस्ट तभी लिख पायेंगे जब आप उससे बड़ी बेवकूफी की बात को लिखने की हिम्मत जुटा सकेंगे। : ब्लागिंग के सूत्र
बहुत दिन हो गये ब्लॉगर की डायरी लिखे हुये।
ब्लॉगजगत अद्भुत है। भांति-भांति के लोग यहां मिल जाते हैं। बस नेट के सामने बैठ जाइये। फ़िर तो मजे ही मजे। हर मिजाज का सामान मिल जायेगा आपको यहां। फ़्री फ़ंड में। हर्र लगे न फ़िटकरी रंग चोखा टाइप।
कोई भी एग्रीगेटर खोलकर कुछ भी पढ़ना शुरू कर दीजिये। मजे की फ़ुल गारंटी। सीरियस पोस्ट के नीचे जीनियस पोस्ट! जीनियस पोस्ट से सटी हुई कोई फ़ड़कती पोस्ट। फ़ड़कती पोस्ट के बगल में कोई अकड़ती पोस्ट। अकड़ती पोस्ट के ठीक नीचे कोई भावुक सी गीली-गीली पोस्ट! साथ में कई सारी सीली-सीली सी पोस्ट! उसके ठीक ऊपर एकाध दियासलाई की तीली सी पोस्ट। कुल मिलाकर मामला गठबंधन सरकार सा लगता है। जिसके हरेक घटक का आपस में छत्तीस का आंकड़ा गठबंधन की पहली शर्त है।
कोई क्रांति फ़ैला रहा है, कोई भ्रांति। किसी ने जरा सा हल्ला मचाया नहीं कि दस लोग चिल्लाते हुये शांति पाठ करने लगते हैं। मन लगाकर लड़ने भी नहीं देते। जहां घाव दिखा मरहम लगा दिया। जहां घाव नहीं हुआ बना दिया-आखिर मरहम तो लगाना ही है।
आज ही किसी ने एक एस.एम.एस. पढ़वाया। उसमें किसी ने अपने दोस्त को पीट दिया। दोस्त ने पूछा-मैंने क्या गलती की जो मुझे पीटा तुमने। उसको जबाब मिला- साले हम तुम्हारी गलती का इंतजार करने लगे पीटने के लिये तब तो हो चुका।
कुछ लोगों का लेखन तो इतना बहुरंगी , इंद्रधनुषी सा लगता है कि सुबह जो लेख फ़ड़कता हुआ दीखता है, वही शाम तक सीरियस हो जाता है। भावुक लेख दयनीय सा लगने लगता है। गीले में और गीलापन पाठक लोग जोड़ देते हैं। बजबजा जाता है मामला कभी-कभी तो। इसका उलट भी होता है, पुलट भी होता है। उलट-पुलट तो खैर होता ही रहता है-हमेशा।
ओह! भूल गये न! यह तो बताया ही नहीं कि ब्लॉगिंग क्या है! ब्लॉगिंग की परिभाषा हर ब्लॉगर अपने मन से तय करता है। समय-समय पर जाहिर भी कर देता है। कई बार तो लोग ब्लॉगिंग बाद में शुरू करते हैं इसके बारे में व्याख्या /राय पहले जारी करते हैं। लोग कहते हैं- ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है। पत्रकारिता वाले भी इसे अपनी तरफ़ खींचते हैं। कविता-कहानी-लेख-नाटक-गीत-संगीत-फ़ंगीत-तकनीक-फ़कनीक-खेल-वेल सबसे जुड़े लोग इसे अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं।
जैसा लोग कहते हैं कुछ उसी तरह बातें बाग कहते हैं। अब जब लोग-बाग कुछ कहेंगे तो वन,वाटिका,कूप,तड़ाग का मुंह कौन बंद कर सकता है। उनका भी जो मन आता है कहते हैं। कहते रहेंगे, कहने दिया जाये।
जैसे ग्राम समाज की जमीन पर दबंग लोग कब्जा करने की कोशिश करते हैं जनहित में वैसे ही जो जिस रंग का होता है उस रंग का झंडा फ़हरा लेता है ब्लॉग के लिये। वैसे मेरे हिसाब से तो ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम है। रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर वह व्यंजन बना सकते हैं जिसका सामान आपके पास है। एक तुक्कड़ कवि ने कहा भी है:
ब्लॉग लेखन भी अलग-अलग क्वालिटी का है। सब मिलकर दो भागों में बंटी है-अच्छा और खराब!
ब्लॉगिंग किसी का टाइम पास है।
किसी के लिये ये टाइमफ़ेल है।
किसी की मन की मुक्त उड़ान है।
किसी के लिये बिल्कुल अझेल है।
कोई अच्छा लिखे तो आफ़त। खराब लिखे तो डबल आफ़त।
अच्छा लिखे तो कहा जाता है- तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं।
खराब लिखे तो- वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये। साधुवाद!
मरन है लिखने वाले की। समझ ही नहीं पाता कि लोग कह क्या रहे हैं। वो तो भला हो अनामी-सनामी भाइयों का जो मुंह दबाकर सच बयान कर जाते हैं। कुछ सच का पता चलता है वर्ना तो पता ही न चले।
जिसे देखो वह कालजयी लेखन कर रहा है। कालजयी लेखन के चलते अकालजयी च बवालजयी लेखन दब जाता है। जैसे कालाधन सफ़ेदधन को साइडलाइन कर देता है वैसे ही कालजयी लेखन अकालजयी लेखन का टेटुआ दबा देता है।
इतना अच्छापन और भलापन पसरा है यहां पर कि चलते हुये डर लगता है। कहीं किसी अच्छाई को टक्कर न लग जाये। कोई भलमनसाहत आहत न हो जाये। जिसे देखो वह भला दिखता है। जिसे देखो वह अच्छा। भलमनसाहत और अच्छाई के मारे नाक में दम है। स्व.राजबहादुर विकल जी शाहजहांपुर के बारे में बताते हुये कविता पढ़ते थे:
पांव के बल मत चलो, अपमान होगा!
सर शहीदों के यहां बोये हुये हैं।
कविता से लगता है कि बड़े सलीके से शहीदों के सर देख-देखकर मार्गों पर बोये गये होंगे ताकि आने वाली पीढियां पांव के बल चलने में शरमायें।
ब्लॉगिग के बारे में एक अच्छी बात है कि लोग इसके स्तर के प्रति काफ़ी चिंतित रहते हैं। इसका स्तर गिरने न पाये। स्तर ऊंचा होता रहे इसके लिये लोग बहुत पसीना बहाते हैं। परेशान रहते हैं। अब यह बात अलग है कि जैसे-जैसे इसके स्तर की चिंता करने वाले बढ़ रहे हैं लोगों में इसके गिरते स्तर के प्रति बेचैनी बढ़ती जा रही है। कोई तो बता रहा था कि किसी डाक्टर ने अपने मरीज को वजन कम करने की सलाह देते हुये बताया- ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। हर जिम्मेदार ब्लॉगर स्टुअर्ट लिटिल की तरह ब्लॉग की नैया को बचाने में पिला पड़ा है।
कुछ दोस्त भी गजब के होते हैं। एक ने मेरे लेख का एक हिस्सा अपने नाम से कहीं पेश किया। मैंने उससे बाद में धमकाते हुये अकेले में कहा- वाह बेटा, मेरा लेख मय कामा-फ़ुल स्टॉप के अपने नाम से छाप दिया। कम से क्रेडिट तो दे देते मुझे।
उसने फ़ौरन पलटवार किया- तुम क्या कामा, फ़ुल स्टॉप विरासत में लेकर पैदा हुये थे। और वो लेख तुमने कहां से टोपा बतायें क्या! उसको क्रेडिट दिया जहां से टीपा?
हम चुप हो गये। जरा सी बात पर दोस्त से क्या बहस करें। बह्स की एक बड़ी आफ़त तो यह कि जहां शुरू करो लोग टोंकने लगते हैं स्वस्थ बहस करो। इतना तो ट्रैफ़िक वाले गाड़ी का प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं मांगते जितना बहस के गवाह बहस का स्वास्थ्य प्रमाणपत्र मांगते हैं। कोई-कोई तो बिना बहस अपने पास से दे देता है प्रमाण पत्र-स्वस्थ बहस देखकर अच्छा लगा।
बहस का तो ऐसा है कि बहस में लोग तर्क,विषय, तथ्य के चक्कर में नहीं पड़ते। बात चाहे ईरान की हो चाहे तूरान की। तर्क अगर अफ़गानिस्तान के हैं तो वही पेश किये जायेंगे। न हुआ तो राजस्थान के तो हैं ही इफ़रात में। आपको मानना हो तो मानो न मानना हो तो भी मानना तो पड़ेगा ही। आखिर स्वस्थ बहस जो हो रही है। बहस में वही तो कहेंगे जो पता है। सही-गलत की चिंता करें तब तो हो चुकी बहस।
दो दिन पहले कुछ कवितायें अदबदाकर निकल पड़ीं। मैंने उनको पोस्ट कर दिया। भाई लोगों ने खूब मजे लिये। कोई कहता है बहुत खूब लिखते रहें, कोई कहता मौज लेना सामाजिक अपराध है। हालत ऐसे हो गये हमारे जैसे भीड़ में कोई उचक्का फ़ंस जाये। कोई उसे इधर घसीटता है कोई उधर। कोई कहता है मारो साले को । कोई कहता है छोड़ दो बेचारे को।
कवितायें जब भी सोचता हूं खुराफ़ात ही सूझती है। खुराफ़ाती मुखड़े आकर खड़े हो जाते हैं सामने फ़ट से। जैसे … अब जैसे के आगे क्या कहें। अपने आप समझ जाइये।
जैसे आज ही सोचना शुरू किया तो फ़ट से एक मुखड़ा सामने आ गया रूपा फ़्रंट लाइन पहनकर-
जिंदगी एक झाम है
कलट्टरगंज का जाम है
निकल गये तो सुकून है
फ़ंस गये तो हराम है।
अब देखिये डायरी से शुरू हुये थे। कविता तक आ पहुंचे- बेमतलब की बातें करते-करते।
अच्छा ही हुआ। खराब लिखने के यही फ़ायदेतो देख ही चुके हैं। अब बेमतलब लिखने के भी देख लिये जायें।
मेरी पसंद
मीर के थे तीर तो गालिब का भी था इक कमाननाम लेकर इनका ही चलती हैं कितनी ही दुकान है।
मीर थे, ग़ालिब थे, चाहे दाग थे तो इसमें क्या
लिख दिया ब्लॉगर कवि ने एक मोटा सा दीवान है।
मीर-गालिब ब्लॉग पर लिखते गजल की पोस्ट औ
गर न मिलती टिपण्णी तो लुट गया होता जहान है।
है सदा रोशन तुम्हीं से बुद्धि का दीपक यहाँ
और ऐसे दीपकों से जगमगाता है मकान है।
कह दिया इक ब्लॉगर ने भी बात जो मन में रही
और कहकर दे गया अपना भी छोटा सा निशान है।
सच तो ये है ब्लॉग पर भी कितने गालिब-मीर हैं
सब मिले तो उठ गया है, ब्लॉग का ऊंचा मचान है।
आप से हमारी ए विनती ऐड कर अशआर एक
और घर पर पंहुच कर डिनर में लें सब्जी औ नान है।
शिवकुमार मिश्र की बज में बिना मतलब का सुधार करने के बाद
Posted in बस यूं ही | 25 Responses
मजा आ गया पढकर। ब्लागिंग का मजा ही तब है कि जब आपको ऐसे विचार पढने को मिलें जो आपको कम पसन्द हैं। यही विविधता तो बार बार इधर का रूख करवाती है। अब सुरेश चिपलूनकर जी की हर पोस्ट हम मन से पढते हैं लेकिन हर पोस्ट से सहमत नहीं होते, वो अपना धर्म निभा रहे हैं और हम अपना। इतने पर भी लगता नहीं कि सुरेशजी मेरे बारे में कुछ गलत सोचते होंगे या हम उनके बारे में।
फ़िर अभी किसी ब्लाग पर पौराणिक ग्रंथ और इतिहास की मिली जुली खिचडी देखी, टिप्पणी देखी तो लगा कुछ लोग आहत टाईप स्टेज पर पडे टिपिया रहे थे। हमें तो पढकर अच्छा लगा, एक नया विचार मिला. मानो तो मर्जी न मानो तो मर्जी
ब्लागिंग का स्तर नहीं गिरने देना चाहिये, इसके लिये टिप्पणी रणबांकुरों की फ़ौज बनानी चाहिये तो स्तरहीन लेखकों को डरा धमकाकर उनका स्तर ऊंचा कर सकें
नीरज रोहिल्ला की हालिया प्रविष्टी..हे दईया कहाँ गये वे लोग
१-ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। [शुक्र मनाईये वंदना लूथरा हिंदी ब्लोगों पर नहीं आती नहीं तो..]
२-हम तुम्हारी गलती का इंतजार करने लगे पीटने के लिये तब तो हो चुका।
[इस एक वाक्य के सहारे जितनी चाहे खुराफात कर सकते हैं!: )..
इस वाक्य के प्रचार के ज़रा दूरगामी प्रभाव तो सोचीये..?]
३-ब्लॉग अभिव्यक्ति का माध्यम है। रसोई गैस की तरह है जिसमें आप हर वह व्यंजन बना सकते हैं जिसका सामान आपके पास है![रसोई गैस??!!!!!!हर तरह का व्यंजन?]
४-ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है।[:)]
—————-
आप के इस लेख पर मेरी राय-
‘तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं.’
———————————-
‘आप से हमारी ए विनती ऐड कर अशआर एक
और घर पर पंहुच कर डिनर में लें सब्जी औ नान है
इस पर यही कहना है-
वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये।
…………………………………………………
[ हर कविता को समझना आसान नहीं होता है पर शायद हर कविता पर 'ब्लोगिया टिप्पणी' लिखना सबसे आसान होता है...:) ]
लिखते रहें ! ;-))
शुभकामनायें आपको !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..क्या हमारा मन आज़ाद है – सतीश सक्सेना
लिखने वाली की तो सच में मरन है जी !
एक दम झकाझक च भकाभक पोस्ट है. अब समझिए हम क्या कहना चाह रहे हैं.
चलिये अब यहीं से उठते हैं और आगे बढ़ते हैं।
asli vyanjan mil hi nahi raha tha. testy ka testy aur pachak ka pachak. aap itta lamba gap na de. hum akele nahi mere jaise lakho nahi to
hazaro honge.
hame jiyada nahi to utta to chahiye hi jise hamara hajma bana rahe.
rapchik…..man kilkit.cha.pulkit ho gaya. jhare raho kallatargunj……..
pranam.
यह पोस्ट बेमतलब है या मतलब वाली इस बात पर एक स्वस्थ बहस होनी चाहिए:-)
मेरी बेमतलब की ग़ज़ल को पसंद करने और उसमे बिना मतलब का सुधार करने के लिए आपको साधुवाद और मुझे बधाई!!!
हाँ, आभार तो भूल ही गए थे.
Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..दुर्योधन की डायरी – पेज ११८८
सनाम: दोहरा मजा देती पोस्ट है. मौज लेते रहें (मुझे छोड़ कर, किसी की भी)
हम भी यही करते हैं। टिप्पणी देने के लिए अगली पोस्ट का इंतज़ार नहीं करते। एक बार टिप्पणी कर दिए पोस्ट पर अगली पोस्ट आने तक टिप्पणी करते रहते हैं।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..आँच – 31 पर तेरा जूता तेरे सिर
लिखते रहिए!
तारीफ़ के शब्द तब तक ढूंढता हूं (कहीं से टीपता हूं)!
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..आँच – 31 पर तेरा जूता तेरे सिर
बवाल की हालिया प्रविष्टी..जाने क्या वो लिख चलेबवाल
किलर झपाटा की हालिया प्रविष्टी..आज़ादी की सालगिरह मुबारक़ हो दोस्तों
ऊपर नीरज की टीप एक दम धक् चिक है .
आपकी…..तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं।
- वाह, बहुत खूब! लिखते रहिये। साधुवाद!
वैसे एक ओर सामाजिक अपराध कर दिया ना………….ओर मिश्रा जी की फोटो भी लगा दी ….
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..चिरकुटाई की डेमोक्रेसी
ब्लोगिंग के सारे सूत्र कोपी कर लिए हैं,रोज सुबह हनुमान चालीसा से पहले इसका पाठ कर दिन शुरू करेंगे…
झक झक आनंद दायक पोस्ट…
शिव की रचना अब जाकर मुकम्मल हुई है… “है” लगाने के बाद…
रंजना. की हालिया प्रविष्टी..आखिरी ख्वाहिश
विवेक सिंह की हालिया प्रविष्टी..रनदीप को धन्यवाद भी तो बोलो
सत्य वचन…..एकदम ऱापचिकात्मक भाव व्यक्त किए हैं आपने तो……कभी इसी बात को लेकर पुष्पा भारती जी से एक सेमिनार में मत भेद हो चुका है…..उन्हें ब्लॉगजगत में टेंशनात्मक जैसे शब्दों के इस्तेमाल से टेंशन थी और अपन को उनके सोचने के इस सोचनात्मक ढर्रे से टेंशन थी……टेंशन पर टेंशन काट उठा और नतीजा सिफर
बढ़िया पोस्ट।
बहस के लिए बाक़ी हैं न
शुरुआत ही बहुत धांसू है. एकदम हॉरर शो के पहले आने वाली चेतावनी की तरह- ” यह धारावाहिक काल्पनिक घटनाओं…… ’
“किसी ने जरा सा हल्ला मचाया नहीं कि दस लोग चिल्लाते हुये शांति पाठ करने लगते हैं। मन लगाकर लड़ने भी नहीं देते”
किसको लपेटे में लिया है यहां? कोई तो होगा ही….. सोचना पड़ेगा
” ब्लॉगिंग साहित्य नहीं हैं। साहित्य नहीं है तो वाहित्य भी नहीं है”
“मरन है लिखने वाले की। समझ ही नहीं पाता कि लोग कह क्या रहे हैं। वो तो भला हो अनामी-सनामी भाइयों का जो मुंह दबाकर सच बयान कर जाते हैं। कुछ सच का पता चलता है वर्ना तो पता ही न चले।”
हां, सच्ची:(
“ब्लॉगिंग के स्तर के बारे में चिंता करते रहो, दुबले हो जाओगे। ”
हमारे दुबले होने का यही कारण तो नहीं?
“बह्स की एक बड़ी आफ़त तो यह कि जहां शुरू करो लोग टोंकने लगते हैं स्वस्थ बहस करो। इतना तो ट्रैफ़िक वाले गाड़ी का प्रदूषण प्रमाण पत्र नहीं मांगते जितना बहस के गवाह बहस का स्वास्थ्य प्रमाणपत्र मांगते हैं। कोई-कोई तो बिना बहस अपने पास से दे देता है प्रमाण पत्र-स्वस्थ बहस ”
कहाँ-कहाँ दिमाग दौडाते हैं…..
“कोई कहता है बहुत खूब लिखते रहें, कोई कहता मौज लेना सामाजिक अपराध है। हालत ऐसे हो गये हमारे जैसे भीड़ में कोई उचक्का फ़ंस जाये। कोई उसे इधर घसीटता है कोई उधर। कोई कहता है मारो साले को । कोई कहता है छोड़ दो बेचारे को। ”
अगर हम इसी तरह से कॉपी पेस्ट करते रहे तो पूरी पोस्ट ही कमेन्ट बॉक्स में उतर आएगी
आपकी अगली पोस्ट तक के लिए खुराक तो मिल ही गई….
वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..भारत वर्ष हमारा है
शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी.. लिखो ! न सही कविता – दुश्मन का नाम – लीलाधर मंडलोई की एक कविता
अभय तिवारी की हालिया प्रविष्टी..सदाचार और छिनार
http://kanpurbloggers.blogspot.com/