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नेकी कर, अखबार में डाल- आलोक पुराणिक
By फ़ुरसतिया on May 30, 2011
करीब चार साल पहले आलोक पुराणिक का साक्षात्कार किया। उनका परिचय लिखते हुये लिखा गया था:
[आलोक पुराणिक हिंदी व्यंग्य के जाने माने युवा लेखक हैं। गत दस वर्षों से व्यंग्य लेखन में सक्रिय आलोक पुराणिक से जब व्यंग्य लेखन के पहले के कामकाज के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला-'इससे पहले जो करते थे,उसे बताने में शर्म आती है, वैसे पत्रकारिता करते थे,अब भी करते हैं।'३० सितम्बर,१९६६ को आगरा में जन्मे आलोक पुराणिक एम काम,पीएच.डी पिछले दस सालों से दिल्ली विश्वविद्यालय में कामर्स के रीडर हैं।आर्थिक विषयों के लिए अमर उजाला, दैनिक हिंदुस्तान समेत देश के तमाम अखबारों में लेखन, बीबीसी लंदन रेडियो और बीबीसीहिंदी आनलाइन के लिए बतौर आर्थिक विशेषज्ञ काम किया है ।फिलहाल आजादी के बाद के हिंदी अखबारों की आर्थिक पत्रकारिता परियोजना पर काम। हिंदी के तमाम पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य लेखन, जिनमें अमर उजाला, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा,जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, लोकमत,दि सेंटिनल, राज एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, कादिम्बिनी आदि प्रमुख हैं। करीब एक हजार व्यंग्य लेख प्रकाशित। एक व्यंग्य संग्रह नेकी कर अखबार में डाल-2004 में प्रकाशित,जिसके तीन संस्करण पेपर बैक समेत प्रकाशित हो चुके हैं। तीन व्यंग्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आज तक टीवी चैनल के चुनावी कार्यक्रम-चुनावी कव्वालियां और हैरी वोटर बना रिपोर्टर का स्क्रिप्ट लेखन। सहारा समय टीवी चैनल के कार्यक्रम चुनावी चकल्लस, स्टार न्यूज टीवी चैनल और सब टीवी में कई बार व्यंग्य पाठ कर चुके आलोक पुराणिक पुरस्कारों के बारे में बताते हैं- चूंकि अभी तक कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं जुगाड़ पाये हैं,इसलिए अभी तक यह बयान देते हैं कि पुरस्कारों या सम्मान के प्रलोभन से मुक्त होकर लिखा है,पुरस्कार मिलने के बाद कहूंगा कि लेखन की स्तरीयता का अंदाज को पुरस्कार से ही हो सकता है ना।कुछ दिन पहले ही आलोक पुराणिक ने अपना चिट्ठा प्रपंचतंत्र भी शुरू किया था। लेकिन प्रपंच बहुत दिन तक जारी न रह सका। मजबूरन आजकल अपने नामआलोक पुराणिक से खुल कर लिखना शुरू किया और आजकल जबरदस्त हिट भी हो रहे हैं। लगभग साल भर पहले शब्दांजलि पत्रिका के लिये आलोक पुराणिक से हुआ साक्षात्कार आज भी प्रासंगिक है ऐसा मानते हुये उसे यहां पेश कर रहा हूं! ]
बीते चार सालों में आलोक पुराणिक की और कई किताबें आईं। ब्लागिंग में वे नये खोमचे पर आये, नियमित लिखते हुये धीरे-धीरे अनियमित और अब ब्लागिंग में ठप्प हो लिये। लेकिन उनका लेखन नियमित है।
आलोक पुराणिक का व्यंग्य लेख नेकी कर अखबार में डाल जब लिखा गया होगा तब वे ब्लागर न रहे होंगे। अगर कोई ब्लागर इस लेख को लिखता तो शायद इसका शीर्षक होता नेकी कर ब्लाग में डाल।
आलोक पुराणिक का साक्षात्कार आप यहां बांच सकते हैं। इस इंटरव्यू को पढकर लगता है कि कभी-कभी एक व्यंग्यकार भी काम की (बहुत ऊंची ) बात कह जाता है।
क्योंकि लोगों ने नेकी करना छोड़ दिया है। पहले लोग नेकी करके दरिया में डाल जाते थे। अब लोग जो कर रहे हैं, वही दरिया में डाल रहे हैं। इसलिये दरिया में गन्द-ही-गन्द नजर आ रहा है-
छात्र बहुत तार्किक जवाब दे रहा है।
नेकियां इधर दरियाओं में दिखाई नहीं देतीं। नेकियां अब कहीं और दिखाई देती हैं।
प्रख्यात नेकीबाज सोशलाइट ने साउथ एक्स में कमर पतली करने के सेंटर का उद्घाटन किया- अखबार में नेकी की खबर दिखाई दे रही है।
सुविख्यात सुचर्चित सोशलाइटों ने कोमागाटामारू की विशिष्ट प्रजाति की चिड़िया के संरक्षण के लिये पर्यावरण मन्त्रालय से बीस करोड़ का अनुदान लिया- अखबार में नेकी की दूसरी खबर दिखाई दिखाई दे रही है।
प्रख्यात सोशलाइट ने लक्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपनी चमकती त्वचा के राज बताये- अखबार में नेकी एक और खबर दिखाई दे रही है।
अखबार देखो, सोशलाइटों के फ़ोटो देखो, तो लगता है कि नेकियां-ही-नेकियां बरस रही हैं। छात्र गलत कह रहा है कि लोगों ने नेकियां करना छोड़ दिया है। बात यह है कि नेकी करके लोगों ने दरिया में डालना छोड़ दिया है। दरियाओं में नेकियां डालकर कुछ नहीं मिलता। अगर दरिया में डालने के लिये ही नेकी करनी हो, तो फ़िर क्यों करना। अब नया फ़ंडा यह है- नेकी कर, अखबार में डाल। पुराने मुहावरों को रिवाइज कर लिया जाना चाहिये। नेकी करके अब सीधे अखबार के दफ़्तरों में जाना चाहिये। एक बार अखबार में नेकी डल जाये, तो रिटर्न देती है।
अखबार की नेकी रिकार्ड के काम आती है। रिकार्ड के ही खेल हैं। जो रिकार्ड पर है, वही मान्यता प्राप्त है। बाकियों की नेकी बगैर रिटर्न के रह जाती है। रिकार्ड रहित नेकी उन फ़ूलों की तरह होती है, जिनमें कोई खुशबू नहीं आती। मामला अब बदल गया है। फ़ूल हों या न हों, खुशबू आनी चाहिये। मामला अब बदल गया है। फ़ूल हों या न हों, खूशबू आनी चाहिये। बेहतर यह है कि प्लास्टिक के फ़ूल लगाकर ऊपरी खूशबू का इन्तजाम कर लिया जाये। ऐसे फ़ूल परमानेंट रहते हैं। अरसे तक महकायमान रह सकते हैं।
फ़िर जो नेकी रिटर्न न दे उस नेकी का मतलब क्या! फ़िर जो नेकी तत्काल रिटर्न न दे उसका क्या मतलब! आज की नेकी कल के अखबार में न निकले तो मामला भंड है। पुराने जमाने में बताया जाता था कि इधर नेकी करो, रिटर्न ऊपर जाकर मिलेगा। अभी लगाओ, बाद में मिलेगा। पुराने लोग सब्र कर लेते थे। दीर्घकालीन निवेश में भरोसा कर लेते थे। अब जमाना दीर्घकालीन निवेश का नहीं है। अब मामला नकद ट्रान्जेक्शन का है। छात्रों को समझाता हूं-बेटा नेकी के काम करो। लड़कियों का पीछा मत करो। दारू मत पियो, सिगरेट मत पियो। वहां ऊपर इसका रिटर्न मिलेगा। एक दिन एक छात्र ने प्रामाणिक ग्रन्थों के हवाले से बताया कि सर स्वर्ग में सोमरस मिलेगा। स्वर्ग में अप्सरायें मिलेंगी। इस रिटर्न का इतना इंतजार क्यों? यहीं जिन लगा ली, सोमरस हो गया। फ़िर यहां का मामला पक्का है। वहां पता नहीं कि ब्रांड की मिले। क्या पता, अब भी वहां पुरानी टेक्नालाजी हो। वहां पुरानी टेक्नालाजी पीनी पड़ी, तो देशी पीनी पड़ेगी। क्यों घचपच में पड़ना। यहीं लगा लेते हैं। इन्तजार नहीं करते, कैश ट्रांसेक्शन।
अपसराओं के मामले में वहां जाने का इतना इन्तजार क्यों! यहां भी पर्याप्त अप्सरायें हैं। यहां की अप्सराओं से विमुख होकर वहां की अप्सराओं का इन्तजार किया जाये, यह तो यहां की अप्सराओं का अपमान है। एक छात्र ने तमाम तर्कों से यह सिद्ध किया कि अभी निवेश करके भविष्य के रिटर्न का इन्तजार करने वाले मूरख हैं। अक्लमन्द हैं वे, जो तुरन्त तत्काल रिटर्न हासिल कर लेते हैं। इन्तजार क्यों करें, कैश ट्रांसेक्शन।
नेकी कर अखबार में डाल, यह भी पुराना फ़ंडा है। नया फ़ंडा यह है कि नेकी कर या न कर, पर अखबार में जरूर डाल। करने वाले बहुत टहल रहे हैं। अखबार में नहीं डाल पा रहे हैं। जिनकी काबिलियत अखबार में डाल पाने की है, उन्हे नेकी करने की जरूरत नहीं है।
इससे ज्यादा सटीक फ़ंडा और कुछ भी हो सकता है क्या!
आलोक पुराणिक
[आलोक पुराणिक हिंदी व्यंग्य के जाने माने युवा लेखक हैं। गत दस वर्षों से व्यंग्य लेखन में सक्रिय आलोक पुराणिक से जब व्यंग्य लेखन के पहले के कामकाज के बारे में पूछा गया तो जवाब मिला-'इससे पहले जो करते थे,उसे बताने में शर्म आती है, वैसे पत्रकारिता करते थे,अब भी करते हैं।'३० सितम्बर,१९६६ को आगरा में जन्मे आलोक पुराणिक एम काम,पीएच.डी पिछले दस सालों से दिल्ली विश्वविद्यालय में कामर्स के रीडर हैं।आर्थिक विषयों के लिए अमर उजाला, दैनिक हिंदुस्तान समेत देश के तमाम अखबारों में लेखन, बीबीसी लंदन रेडियो और बीबीसीहिंदी आनलाइन के लिए बतौर आर्थिक विशेषज्ञ काम किया है ।फिलहाल आजादी के बाद के हिंदी अखबारों की आर्थिक पत्रकारिता परियोजना पर काम। हिंदी के तमाम पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य लेखन, जिनमें अमर उजाला, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता, राष्ट्रीय सहारा,जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, दैनिक हिंदुस्तान, लोकमत,दि सेंटिनल, राज एक्सप्रेस, दैनिक भास्कर, कादिम्बिनी आदि प्रमुख हैं। करीब एक हजार व्यंग्य लेख प्रकाशित। एक व्यंग्य संग्रह नेकी कर अखबार में डाल-2004 में प्रकाशित,जिसके तीन संस्करण पेपर बैक समेत प्रकाशित हो चुके हैं। तीन व्यंग्य संग्रह शीघ्र प्रकाश्य। आज तक टीवी चैनल के चुनावी कार्यक्रम-चुनावी कव्वालियां और हैरी वोटर बना रिपोर्टर का स्क्रिप्ट लेखन। सहारा समय टीवी चैनल के कार्यक्रम चुनावी चकल्लस, स्टार न्यूज टीवी चैनल और सब टीवी में कई बार व्यंग्य पाठ कर चुके आलोक पुराणिक पुरस्कारों के बारे में बताते हैं- चूंकि अभी तक कोई पुरस्कार या सम्मान नहीं जुगाड़ पाये हैं,इसलिए अभी तक यह बयान देते हैं कि पुरस्कारों या सम्मान के प्रलोभन से मुक्त होकर लिखा है,पुरस्कार मिलने के बाद कहूंगा कि लेखन की स्तरीयता का अंदाज को पुरस्कार से ही हो सकता है ना।कुछ दिन पहले ही आलोक पुराणिक ने अपना चिट्ठा प्रपंचतंत्र भी शुरू किया था। लेकिन प्रपंच बहुत दिन तक जारी न रह सका। मजबूरन आजकल अपने नामआलोक पुराणिक से खुल कर लिखना शुरू किया और आजकल जबरदस्त हिट भी हो रहे हैं। लगभग साल भर पहले शब्दांजलि पत्रिका के लिये आलोक पुराणिक से हुआ साक्षात्कार आज भी प्रासंगिक है ऐसा मानते हुये उसे यहां पेश कर रहा हूं! ]
बीते चार सालों में आलोक पुराणिक की और कई किताबें आईं। ब्लागिंग में वे नये खोमचे पर आये, नियमित लिखते हुये धीरे-धीरे अनियमित और अब ब्लागिंग में ठप्प हो लिये। लेकिन उनका लेखन नियमित है।
आलोक पुराणिक का व्यंग्य लेख नेकी कर अखबार में डाल जब लिखा गया होगा तब वे ब्लागर न रहे होंगे। अगर कोई ब्लागर इस लेख को लिखता तो शायद इसका शीर्षक होता नेकी कर ब्लाग में डाल।
आलोक पुराणिक का साक्षात्कार आप यहां बांच सकते हैं। इस इंटरव्यू को पढकर लगता है कि कभी-कभी एक व्यंग्यकार भी काम की (बहुत ऊंची ) बात कह जाता है।
नेकी कर अखबार में डाल
जिधर देखो उधर के दरिया सूखे और गन्दे क्यों नजर आते हैं।क्योंकि लोगों ने नेकी करना छोड़ दिया है। पहले लोग नेकी करके दरिया में डाल जाते थे। अब लोग जो कर रहे हैं, वही दरिया में डाल रहे हैं। इसलिये दरिया में गन्द-ही-गन्द नजर आ रहा है-
छात्र बहुत तार्किक जवाब दे रहा है।
नेकियां इधर दरियाओं में दिखाई नहीं देतीं। नेकियां अब कहीं और दिखाई देती हैं।
प्रख्यात नेकीबाज सोशलाइट ने साउथ एक्स में कमर पतली करने के सेंटर का उद्घाटन किया- अखबार में नेकी की खबर दिखाई दे रही है।
सुविख्यात सुचर्चित सोशलाइटों ने कोमागाटामारू की विशिष्ट प्रजाति की चिड़िया के संरक्षण के लिये पर्यावरण मन्त्रालय से बीस करोड़ का अनुदान लिया- अखबार में नेकी की दूसरी खबर दिखाई दिखाई दे रही है।
प्रख्यात सोशलाइट ने लक्स द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपनी चमकती त्वचा के राज बताये- अखबार में नेकी एक और खबर दिखाई दे रही है।
अखबार देखो, सोशलाइटों के फ़ोटो देखो, तो लगता है कि नेकियां-ही-नेकियां बरस रही हैं। छात्र गलत कह रहा है कि लोगों ने नेकियां करना छोड़ दिया है। बात यह है कि नेकी करके लोगों ने दरिया में डालना छोड़ दिया है। दरियाओं में नेकियां डालकर कुछ नहीं मिलता। अगर दरिया में डालने के लिये ही नेकी करनी हो, तो फ़िर क्यों करना। अब नया फ़ंडा यह है- नेकी कर, अखबार में डाल। पुराने मुहावरों को रिवाइज कर लिया जाना चाहिये। नेकी करके अब सीधे अखबार के दफ़्तरों में जाना चाहिये। एक बार अखबार में नेकी डल जाये, तो रिटर्न देती है।
अखबार की नेकी रिकार्ड के काम आती है। रिकार्ड के ही खेल हैं। जो रिकार्ड पर है, वही मान्यता प्राप्त है। बाकियों की नेकी बगैर रिटर्न के रह जाती है। रिकार्ड रहित नेकी उन फ़ूलों की तरह होती है, जिनमें कोई खुशबू नहीं आती। मामला अब बदल गया है। फ़ूल हों या न हों, खुशबू आनी चाहिये। मामला अब बदल गया है। फ़ूल हों या न हों, खूशबू आनी चाहिये। बेहतर यह है कि प्लास्टिक के फ़ूल लगाकर ऊपरी खूशबू का इन्तजाम कर लिया जाये। ऐसे फ़ूल परमानेंट रहते हैं। अरसे तक महकायमान रह सकते हैं।
फ़िर जो नेकी रिटर्न न दे उस नेकी का मतलब क्या! फ़िर जो नेकी तत्काल रिटर्न न दे उसका क्या मतलब! आज की नेकी कल के अखबार में न निकले तो मामला भंड है। पुराने जमाने में बताया जाता था कि इधर नेकी करो, रिटर्न ऊपर जाकर मिलेगा। अभी लगाओ, बाद में मिलेगा। पुराने लोग सब्र कर लेते थे। दीर्घकालीन निवेश में भरोसा कर लेते थे। अब जमाना दीर्घकालीन निवेश का नहीं है। अब मामला नकद ट्रान्जेक्शन का है। छात्रों को समझाता हूं-बेटा नेकी के काम करो। लड़कियों का पीछा मत करो। दारू मत पियो, सिगरेट मत पियो। वहां ऊपर इसका रिटर्न मिलेगा। एक दिन एक छात्र ने प्रामाणिक ग्रन्थों के हवाले से बताया कि सर स्वर्ग में सोमरस मिलेगा। स्वर्ग में अप्सरायें मिलेंगी। इस रिटर्न का इतना इंतजार क्यों? यहीं जिन लगा ली, सोमरस हो गया। फ़िर यहां का मामला पक्का है। वहां पता नहीं कि ब्रांड की मिले। क्या पता, अब भी वहां पुरानी टेक्नालाजी हो। वहां पुरानी टेक्नालाजी पीनी पड़ी, तो देशी पीनी पड़ेगी। क्यों घचपच में पड़ना। यहीं लगा लेते हैं। इन्तजार नहीं करते, कैश ट्रांसेक्शन।
अपसराओं के मामले में वहां जाने का इतना इन्तजार क्यों! यहां भी पर्याप्त अप्सरायें हैं। यहां की अप्सराओं से विमुख होकर वहां की अप्सराओं का इन्तजार किया जाये, यह तो यहां की अप्सराओं का अपमान है। एक छात्र ने तमाम तर्कों से यह सिद्ध किया कि अभी निवेश करके भविष्य के रिटर्न का इन्तजार करने वाले मूरख हैं। अक्लमन्द हैं वे, जो तुरन्त तत्काल रिटर्न हासिल कर लेते हैं। इन्तजार क्यों करें, कैश ट्रांसेक्शन।
नेकी कर अखबार में डाल, यह भी पुराना फ़ंडा है। नया फ़ंडा यह है कि नेकी कर या न कर, पर अखबार में जरूर डाल। करने वाले बहुत टहल रहे हैं। अखबार में नहीं डाल पा रहे हैं। जिनकी काबिलियत अखबार में डाल पाने की है, उन्हे नेकी करने की जरूरत नहीं है।
इससे ज्यादा सटीक फ़ंडा और कुछ भी हो सकता है क्या!
आलोक पुराणिक
Posted in बस यूं ही, मेरी पसंद, लेख, व्यंग्य | 18 Responses
ब्लागरैया = ब्लाग रचयिता.
पता नहीं……पुराणिकजी को क्षात्रों के निबंध पेपर इरफात में प्रतिदिन कहाँ से मिल जाते हैं……..क्या झक्कास
लिखते हैं……………बवंडर हैं बवंडर……………..पाठक के लूट ले जाते हैं…………
घनी प्रणाम.
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..वो क्या कहते थे तुम जिसे प्यार !
मानवी मौर्य की हालिया प्रविष्टी..गुदड़ी के लाल- अवधी कविता के सशक्त हस्ताक्षर
टनाटन पोस्ट
Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..सो माय लव- यू गेम
…एक व्यंग्यकार ने दूसरे व्यंग्यकार से परिचय कराया । इस तरह उसने बिरादरी का नाम ऊँचा किया। इसे कहते हैं नेकी का चमत्कार। पोस्ट के लिए स्वीकार करें ..आभार।
राजेंद्र अवस्थी (कांड) की हालिया प्रविष्टी..राजेंद्र अवस्थी का – हरकांड- आम आदमी
अलोक जी से परिचय अच्छा लगा.
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..यूँ ही कभी कभी
वैसे जमाना बहुत तेजी से बदला है इधर.. अब तो जमाना है “नेकी-अनेकी-पानेकी-सनकी.. जो मन में आये कर, और उसे फेसबुक अथवा ब्लॉग पर डाल..”
उनके किसी छात्र की उत्तर पुस्तिका से सम्बंधित एक पोस्ट आज भी याद है..
बहुत प्रभावशाली लिखते हैं .
आभार
http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com
——
कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..
फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।
Zakir Ali Rajnish की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉगवाणी: मानवता के ‘स्पंदन’ ही इंसान हमें बनाते हैं।