http://web.archive.org/web/20140331065625/http://hindini.com/fursatiya/archives/2091
दीक्षितजी शहर में होने वाले हर लोकसभा हर चुनाव लड़ते। निर्दलीय। हर चुनाव हारते। जमानत जब्त होती। लेकिन अगला चुनाव फ़िर लड़ते।
कानपुर से होने वाले लोकसभा के चुनाव के अतिरिक्त वे रायबरेली से भी चुनाव लड़ते। राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़े।
चुनाव प्रचार के लिये और उसके अलावा भी ज्यादातर दीक्षितजी घोड़े पर ही चलते। सर पर हैट। फ़्रेंचकट दाढ़ी। हाथ में भोंपू वाला माइक। कुल जमा यही साधन थे उनके चुनाव लड़ने के।
लगभग हर चुनाव में उनका चुनाव भाषण एक सा ही रहता था। लेकिन आम जनता उसको इत्मिनान से सुनती थी। हर चौराहे पर वे जाते। घोड़े पर बैठे वे भाषण देते। कुछ सवाल-जबाब होते। इसके बाद वे अगले चौराहे की तरफ़ चल देते। पब्लिक उनका इंतजार करती। वे अपने लिये वोट कम मांगते जनता को यह ज्यादा बताते थे कि जनता कैसे लोगों को चुनकर भेजती है। उनकी बोले गये कुछ डायलाग याद आ रहे हैं:
कानपुर से चुनाव लड़ने के अलावा दीक्षित जी हर उस जगह से चुनाव लड़ते जहां से इंदिरा जी चुनाव लड़तीं। सन अस्सी में इंदिरा जी चिकमंगलूर से चुनाव लड़ीं थीं। दीक्षित जी वहां भी चुनाव लड़ने गये। अपने साथ घोड़ा नहीं ले जा पाये। बाकी धज वही रही। वहां की बोली-बानी से बिल्कुल अन्जान दीक्षितजी वोटों के मामले में वहां के अट्ठाइस प्रत्याशियों में छ्ठे स्थान पर रहे।
27 अप्रैल, 1929 को इटावा में जन्में दीक्षित जी कानपुर में पढ़े-लिखे। पहले हरसहाय इंटर कालेज में और फ़िर डी.ए.वी. कालेज में पढ़े। इसके बाद नगर पालिका कानपुर में अफ़सर हो गये गये। चालीस-पचास मातहतों का अफ़सर घोड़े पर चलता। कई लोगों की गड़बड़ियां उजागर की। लोग उनके खिलाफ़ हो गये। दबाब पड़े होंगे। कुछ कार्यवाहियां भी।
बताते हैं कि एकदिन वे तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता जी की सभा में अपने घोड़े पर सवार होकर पहुंच गये। मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुये कि उनके चारो तरफ़ बेईमान बैठे हैं। चापलूस और भ्रष्ट लोग उनको घेर हुये हैं।
इसके फ़ौरन बाद दीक्षितजी को निलंबित और फ़िर बर्खास्त करके पागलखाने में बंद कर दिया गया। घोड़ा मवेशी खाने में।
इस घटना को दीक्षितजी तफ़सील से बताते हुये जानकारी देते हैं- बाद में पागलखाने के डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- इनका कॊई स्क्रू ढीला नहीं है।
चुनावों के दौरान दीक्षितजी इस घटना का उल्लेख करते हुये कहते थे- देश में कोई भी चुनाव लड़ने के लिये जरूरी है कि कन्डीडेट पागल/दीवालिया न हो। मेरे पास पागल न होने का प्रमाण पत्र है। बाकी प्रत्याशियों की भी दिमागी जांच होने के बाद ही उनकी उम्मीदवारी स्वीकार की जानी चाहिये।
बहुत दिन से दीक्षितजी से मिलने की बात सोच रहा था। इस इतवार को पता करके मिलने गये। सीसामऊ में हरसहाय जगदम्बा सहाय कालेज के पास रहते हैं। कालबेल बजायी तो दीक्षितजी नीचे आये। खड़े-खड़े ही बातें हुई।
बयासी साल से भी ज्यादा उमर के हो चुके दीक्षित जी की आवाज में अभी भी दम है! बातचीत के दौरान उन्होंने कहा/सुनाया:
दीक्षितजी का कहना है कि उन्होंने कोशिश की। सफ़लता और असफ़लता की गिनती नहीं की। धारा के विपरीत चलने की कोशिश की। उन्होंने सुनाया:
हमने पूछा -आपने हमको स्वामी क्यों कहा?
वे बोले- हम सबको स्वामी कहते हैं। मैं मानता हूं कि हर आदमी बिगड़ा हुआ परमात्मा होता है। हम सब बिगड़े हुये परमात्मा होते हैं। जब हम लोग यह बात समझ जायेंगे और अपने को पहचान लेंगे तो सब ठीक हो जायेगा।
दीक्षितजी की पार्टी का दूसरा स्थायी सदस्य उनका घोड़ा अब ऊपर जा चुका है। वे अकेले हैं। एकला चलो रे का नारा बुलंद करते हुये चुनाव लड़ने वाले दीक्षितजी अब चुनाव नहीं लड़ते। उनका लाखों रुपया अभी मिलना बकाया है उनके विभाग से। पता नहीं मिलेगा भी या नहीं। एक साधारण से मकान की ऊपर की मंजिल में रहने वाले हमारे शहर के ये बुजुर्गवार उमर से भले बुजुर्ग हो गये हैं लेकिन जोश जवानों को भी मात देने वाला है। वे कहते हैं:
लौटते समय और अभी भी उनकी कही बात अभी भी याद कर रहा हूं:
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
आंसू नहीं छलकने देंगे
ऐसी कसम उठा रखी है
होंठ नहीं दाबे दांतों से
हमने चीख दबा रखी है।
माथे पर पत्थर सहते हैं,
छाती पर खंजर सहते हैं
पर कहते पूनम को पूनम
मावस को मावस कहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हमने तो खुद्दार जिंदगी के
माने इतने ही माने
जितनी गहरी चोट अधर पर
उतनी ही गहरी मुस्कानें।
फ़ाके वाले दिन को, पावन
एकादशी समझते हैं
पर मुखिया की देहरी पर
जाकर आदाब नहीं कहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हम स्वर हैं झोपड़पट्टी के
रंगमहल के राग नहीं हैं
आत्मकथा बागी लहरों की
गंधर्वों के फ़ाग नहीं हैं।
हम चिराग हैं, रात-रात भर
दुनिया की खातिर जलते हैं
अपनी तो धारा उलटी है
धारा में मुर्दे बहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
-शिवओम ‘अम्बर’
फ़र्रुखाबाद
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चलो न मिटते पद चिन्हों पर अपने रस्ते आप बनाओ- भगवती प्रसाद दीक्षित उर्फ़ घोड़ेवाला
By फ़ुरसतिया on June 14, 2011
- कानपुर मे एक प्रत्याशी हुआ करते थे (थे नही है भाई) भगवती प्रसाद दीक्षित। लोग इनको घोड़ेवाला दीक्षित कहा करते थे, ये घोड़े पर घूमा करते थे। चुनाव चाहे मोहल्ले का हो, या फिर राष्ट्रपति का, हर जगह नामांकन करते थे। जाहिर है, हर जगह हारते थे, लेकिन इनकी सभाओं मे भीड़ सबसे ज्यादा हुआ करती थी। काफी मजाकिया किस्म के भाषण हुआ करते थे इनके। कानपुर मे ऐसा कोई नही जिसने घोड़े वाले दीक्षित के बारे मे ना सुना हो।- जीतेन्द्र चौधरी।
- जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद दीक्षित- घोड़े वाला
दीक्षितजी शहर में होने वाले हर लोकसभा हर चुनाव लड़ते। निर्दलीय। हर चुनाव हारते। जमानत जब्त होती। लेकिन अगला चुनाव फ़िर लड़ते।
कानपुर से होने वाले लोकसभा के चुनाव के अतिरिक्त वे रायबरेली से भी चुनाव लड़ते। राष्ट्रपति का चुनाव भी लड़े।
चुनाव प्रचार के लिये और उसके अलावा भी ज्यादातर दीक्षितजी घोड़े पर ही चलते। सर पर हैट। फ़्रेंचकट दाढ़ी। हाथ में भोंपू वाला माइक। कुल जमा यही साधन थे उनके चुनाव लड़ने के।
लगभग हर चुनाव में उनका चुनाव भाषण एक सा ही रहता था। लेकिन आम जनता उसको इत्मिनान से सुनती थी। हर चौराहे पर वे जाते। घोड़े पर बैठे वे भाषण देते। कुछ सवाल-जबाब होते। इसके बाद वे अगले चौराहे की तरफ़ चल देते। पब्लिक उनका इंतजार करती। वे अपने लिये वोट कम मांगते जनता को यह ज्यादा बताते थे कि जनता कैसे लोगों को चुनकर भेजती है। उनकी बोले गये कुछ डायलाग याद आ रहे हैं:
- जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।
- आगे की मोर्चे हमको आवाज दे रहे हैं। कोई गलत काम करने से पहले सोचो कि आगे की पीढियां सवाल करेंगी कि अब्बा जान -अब्बा जान यू हैव बिट्रेड द कन्ट्री(आपने देश के साथ धोखा किया है)
- देश में आज लल्लू, जगधर छाये हुये हैं। ये जनता को धोखा दे रहे हैं। जनता सब समझती है लेकिन कुछ बोलती नहीं है। इसीलिये ये जनता को लूट रहे हैं।
- चुनाव में आदमी नहीं पैसा जीतता है। नोट से वोट खरीदे जाते हैं। जब तक देश में घोड़ेवाले की तरह के आम आदमी के चुनाव जीतने के हालात नहीं बनते तब तक देश की हालत नहीं सुधर सकती।
जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!
कानपुर से चुनाव लड़ने के अलावा दीक्षित जी हर उस जगह से चुनाव लड़ते जहां से इंदिरा जी चुनाव लड़तीं। सन अस्सी में इंदिरा जी चिकमंगलूर से चुनाव लड़ीं थीं। दीक्षित जी वहां भी चुनाव लड़ने गये। अपने साथ घोड़ा नहीं ले जा पाये। बाकी धज वही रही। वहां की बोली-बानी से बिल्कुल अन्जान दीक्षितजी वोटों के मामले में वहां के अट्ठाइस प्रत्याशियों में छ्ठे स्थान पर रहे।
27 अप्रैल, 1929 को इटावा में जन्में दीक्षित जी कानपुर में पढ़े-लिखे। पहले हरसहाय इंटर कालेज में और फ़िर डी.ए.वी. कालेज में पढ़े। इसके बाद नगर पालिका कानपुर में अफ़सर हो गये गये। चालीस-पचास मातहतों का अफ़सर घोड़े पर चलता। कई लोगों की गड़बड़ियां उजागर की। लोग उनके खिलाफ़ हो गये। दबाब पड़े होंगे। कुछ कार्यवाहियां भी।
बताते हैं कि एकदिन वे तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता जी की सभा में अपने घोड़े पर सवार होकर पहुंच गये। मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुये कि उनके चारो तरफ़ बेईमान बैठे हैं। चापलूस और भ्रष्ट लोग उनको घेर हुये हैं।
इसके फ़ौरन बाद दीक्षितजी को निलंबित और फ़िर बर्खास्त करके पागलखाने में बंद कर दिया गया। घोड़ा मवेशी खाने में।
इस घटना को दीक्षितजी तफ़सील से बताते हुये जानकारी देते हैं- बाद में पागलखाने के डाक्टर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा- इनका कॊई स्क्रू ढीला नहीं है।
चुनावों के दौरान दीक्षितजी इस घटना का उल्लेख करते हुये कहते थे- देश में कोई भी चुनाव लड़ने के लिये जरूरी है कि कन्डीडेट पागल/दीवालिया न हो। मेरे पास पागल न होने का प्रमाण पत्र है। बाकी प्रत्याशियों की भी दिमागी जांच होने के बाद ही उनकी उम्मीदवारी स्वीकार की जानी चाहिये।
बहुत दिन से दीक्षितजी से मिलने की बात सोच रहा था। इस इतवार को पता करके मिलने गये। सीसामऊ में हरसहाय जगदम्बा सहाय कालेज के पास रहते हैं। कालबेल बजायी तो दीक्षितजी नीचे आये। खड़े-खड़े ही बातें हुई।
बयासी साल से भी ज्यादा उमर के हो चुके दीक्षित जी की आवाज में अभी भी दम है! बातचीत के दौरान उन्होंने कहा/सुनाया:
तू स्वयं विधाता है हे मानवसमसामयिक राजनीति और अण्णा हजारे तथा बाबा रामदेव के अनशन के बारे में मैंने उनके विचार जानने चाहे तो उन्होंने कहा -जो ये कर रहे हैं वो घोड़ेवाले ने बहुत पहले किया। लेकिन तब किसी ने घोड़ेवाले का साथ नहीं दिया। जनता सब जानती है लेकिन बोलती नहीं है। जब वह जागरूक हो जायेगी और अपने हक के लिये लड़ने लगेगी तो हालात बदलेंगे।
अंतर में विश्वास जगाओ।
चलो न मिटते पद चिन्हों पर
अपने रस्ते आप बनाओ।
दीक्षितजी का कहना है कि उन्होंने कोशिश की। सफ़लता और असफ़लता की गिनती नहीं की। धारा के विपरीत चलने की कोशिश की। उन्होंने सुनाया:
मेरे हमराह बनोचलते समय उन्होंने फ़िर मिलने और विस्तार से बातचीत करने की बात कही। बोले- फ़िर मिलेंगे स्वामी और बात करेंगे।
मैंने एक शमा जलाई है हवाओं के खिलाफ़।
हमने पूछा -आपने हमको स्वामी क्यों कहा?
वे बोले- हम सबको स्वामी कहते हैं। मैं मानता हूं कि हर आदमी बिगड़ा हुआ परमात्मा होता है। हम सब बिगड़े हुये परमात्मा होते हैं। जब हम लोग यह बात समझ जायेंगे और अपने को पहचान लेंगे तो सब ठीक हो जायेगा।
दीक्षितजी की पार्टी का दूसरा स्थायी सदस्य उनका घोड़ा अब ऊपर जा चुका है। वे अकेले हैं। एकला चलो रे का नारा बुलंद करते हुये चुनाव लड़ने वाले दीक्षितजी अब चुनाव नहीं लड़ते। उनका लाखों रुपया अभी मिलना बकाया है उनके विभाग से। पता नहीं मिलेगा भी या नहीं। एक साधारण से मकान की ऊपर की मंजिल में रहने वाले हमारे शहर के ये बुजुर्गवार उमर से भले बुजुर्ग हो गये हैं लेकिन जोश जवानों को भी मात देने वाला है। वे कहते हैं:
उभरेंगे एक बार फ़िर दिल के बलबले
माना कि बुझ गये हैं गमें जिन्दगी से हम।
लौटते समय और अभी भी उनकी कही बात अभी भी याद कर रहा हूं:
तू स्वयं विधाता है हे मानवअपडेट: ऊपर का फ़ोटो पत्रकार शम्भूनाथ शुक्लजी की फ़ेसबुक वाल से साभार!
अंतर में विश्वास जगाओ।
चलो न मिटते पद चिन्हों पर
अपने रस्ते आप बनाओ।
और अंत में
अपनी आदत , चुप रहते हैं,या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
आंसू नहीं छलकने देंगे
ऐसी कसम उठा रखी है
होंठ नहीं दाबे दांतों से
हमने चीख दबा रखी है।
माथे पर पत्थर सहते हैं,
छाती पर खंजर सहते हैं
पर कहते पूनम को पूनम
मावस को मावस कहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हमने तो खुद्दार जिंदगी के
माने इतने ही माने
जितनी गहरी चोट अधर पर
उतनी ही गहरी मुस्कानें।
फ़ाके वाले दिन को, पावन
एकादशी समझते हैं
पर मुखिया की देहरी पर
जाकर आदाब नहीं कहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
हम स्वर हैं झोपड़पट्टी के
रंगमहल के राग नहीं हैं
आत्मकथा बागी लहरों की
गंधर्वों के फ़ाग नहीं हैं।
हम चिराग हैं, रात-रात भर
दुनिया की खातिर जलते हैं
अपनी तो धारा उलटी है
धारा में मुर्दे बहते हैं।
अपनी आदत , चुप रहते हैं,
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
-शिवओम ‘अम्बर’
फ़र्रुखाबाद
Posted in इनसे मिलिये, कानपुर, बस यूं ही, लेख | 51 Responses
वाकई आदमी है!
चलते हैं, स्वामी! नौकरी बजाएं.
आपने अच्छा याद दिलाया, दीक्षित जी व्यक्तित्व अध्ययन के लिये एक विशिष्ट चरित्र हैं ।
मैं उनका शत शत आभार मानता हूँ कि कम से कम उनके बहाने आप अपनी माँद से तो निकले ।
बेढब व्यक्तित्व की हालिया प्रविष्टी..एक अस्वीकृत रचना
………………ये तो कुशल भविस्यवक्ता हुए जो ९९% लोगों की मनह-स्थिति उवाचे…..
जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!..
……………. ये तो सोने से भी खरी बात कह दी…………….
आप हमें पसंद हैं…………..सो आपकी पसंद हम्में बहुत्तई पसंद हुई……………………………
प्रणाम.
इनके किस्से हमने जबलपुर में भी सुन रखे है ,आपने परिचय करा दिया ,धन्यवाद् …..
आशीष श्रीवास्तव
ईश्वर उनको दीर्घायु प्रदान करे और उनके अच्छे स्वास्थ्य की शुभकामनाओ के साथ |
उनका अनुज
-जीतू
भगवती प्रसाद दीक्षित |
इस नारे के साथ अवतरित हुए दीक्षित जी को बचपन से देखा ,
बचपन में हम दौड़ कर जाते और ज्यादातर बच्चों का हुजूम उनके साथ शोर मचाता चलता तो वह बच्चों को घुड़क देते जहाँ भी जाते बच्चे बदल जाते पर उनका अंदाज़ नहीं |
जब भी बड़ों को उनके बारे में बात करते सुना तो अधिकांशतः लोग झक्की कहते थे पर इस सबके उपरांत भी उनकी संघर्ष क्षमता अजायब सी ….. उम्र के इस पड़ाव पर उनसे सहानुभूति……..
प्राइमरी के मास्साब की हालिया प्रविष्टी..क्या है एजुकेशन
उन्होंने विपक्ष की गरिमा ऊँची रखी-प्रतीकात्मक चुनाव भी लड़े..जीवन को सार्थक किया ..
अच्छा लगा अब फुरसत में उनका एक और फ़ुरसतिया से मिलना …
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..विज्ञान गल्प और अपराध कथाओं के जाने माने उर्दू लेखक इज़हार असर-विनम्र श्रद्धांजलि
आंसू नहीं छलकने देंगे
ऐसी कसम उठा रखी है
होंठ नहीं दाबे दांतों से
हमने चीख दबा रखी है।
बहुत सुन्दर कविता है. आभार जोशी जी के माध्यम से जिजीविषा बढाने के लिए.
इस जानकारी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ,,ये वो लोग हैं जो सच में इंसान हैं
कानपुर के इस ‘इंसान ‘ को मेरा प्रणाम
हमने तो ख़ुद्दार जिंदगी के
माने इतने ही माने
जितनी गहरी चोट अधर पर
उतनी ही गहरी मुस्कानें।
बेहद उम्दा नज़्म की बेहतरीन पंक्तियाँ !!
इन पंक्तियों के भाव मन को स्पर्श करते हैं ,,इन्हें पढ़ कर मशहूर शायर स्व.वमिक़ जौनपुरी का ये शेर याद आता है
‘जहाँ चोट खाना वहीँ मुस्कुराना
मगर इस अदा से की रो दे ज़माना ‘
इस उम्दा पोस्ट के लिए बधाई और धन्यवाद
घनश्याम मौर्य की हालिया प्रविष्टी..बन्दर का पंजा – डब्ल्यू डब्ल्यू जैकब्स की विश्वप्रसिद्ध हॉरर स्टोरी
दीक्षितजी से परिचय करवाने के लिये आभार। इससे पहले हर चुनाव लड़ने वाले के तौर पर धरतीपकड़ जी के बारे में ही सुन रखा था। दीक्षितजी की बातों में दम है। सच्चा आदमी झक्की ही कहलाता है। गधों-घोड़ों वाली बात हो, पागल न होने के सर्टिफ़िकेट वाली बात हो या फ़िर स्वामी-परमात्मा वाली बात, सच एकदम सटीक लगीं।
यह पोस्ट बहुत पसंद आई, अंत तक। और अंत में, गज़बे-गज़ब।
संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..Banks of BharatBharat that is India क्षोभास्य-
तो यह था राज आपके गायब रहने का .बढ़िया इंटरव्यू लिया है.
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..शेक्सपियर के शहर के अनपढ़ बच्चे
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..मॉडल बनाम मॉडल
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..एक प्राचीन कथा
हाय !
कोई अपनी सूरत देखना ही नहीं चाहता !
सभी आईने की बदहाली से हैरान हैं।
सारा बक़ाया इन्हें मिल जाए. आमीन.
बहुत नीक लाग पढ़ि के ! भित्तर तक छहरन चढ़ि है! अउर अंतिम कै गितवा मोहि लिहिस, बधाई!!
dhirusingh की हालिया प्रविष्टी..मुफ्ते माल दिले बेरहम
vijay gaur की हालिया प्रविष्टी..सपने में भी जागने का आग्रह
बहुत बिगड़ चुका होगा, जब तक ये जानेगी।
बिल्कुल सही कहा। जय हो।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..नयी कहानी – मोहन बाबू
दीक्षित जी पर एक और पोस्ट लिखिए. उनसे एक बार फिर मिलिए. पढ़कर अच्छा लगेगा.
शुक्रिया उनसे मिलवाने के लिए।
——
अंत में दी गयी शिवोम अम्बर जी की कविता पसंद आई,
आभार
अल्पना की हालिया प्रविष्टी..आगे भी जाने न तू बिना संगीत
अल्पना की हालिया प्रविष्टी..आगे भी जाने न तू बिना संगीत
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
अपनी आदत भी कुछ ऐसी है इसलिए हम सबसे कट के रहते है ,आनी वाली हर आफत से जरा जरा बच के रहते है ,आनंद ही आनंद ,बहुत खूबसूरत पोस्ट ,
जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद दीक्षित- घोड़े वाला
ये लोग जो हर बात को अपने तराजू में तोलते है ,बहुत बढ़िया
या फिर बहुत खरा कहते हैं।
हमसे लोग खफ़ा रहते हैं॥
अपनी आदत भी कुछ ऐसी है इसलिए हम सबसे कट के रहते है ,आनी वाली हर आफत से जरा जरा बच के रहते है ,आनंद ही आनंद ,बहुत खूबसूरत पोस्ट ,
जब लड़का सरकारी नौकरी में आता है तो घर वाले कहते हैं क्या फायदा ऐसी नौकरी का जिसमे ऊपरी कमाई न हो। वही लड़का जब बाद में घूस लेते हुये पकड़ा जाता है तो कहते हैं हाथ बचाकर काम करना चाहिये था। मतलब सब चाहते हैं लड्डू फूटे चूरा होय ,हम भी खायें तुम भी खाओ।- भगवती प्रसाद दीक्षित- घोड़े वाला
ये लोग जो हर बात को अपने तराजू में तोलते है ,बहुत बढ़िया
जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!
बात तो बहुत सही कही है
आंसू नहीं छलकने देंगे
ऐसी कसम उठा रखी है
होंठ नहीं दाबे दांतों से
हमने चीख दबा रखी है।
बेचारी जनता और क्या कर भी क्या सकती है .
आपकी पोस्ट का हमेशा इंतजार रहता है .
dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..वो क्या कहते थे तुम जिसे प्यार !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..छात्रों में नशाखोरी !
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Vivek Jain की हालिया प्रविष्टी..जहां तक हो सका हमने तुम्हें परदा कराया है
eswami की हालिया प्रविष्टी..पेश-ए-खिदमत है ‘हर्बल माल’– स्व नुसरत की एक विरली कव्वाली!
Poonam की हालिया प्रविष्टी..एक दुआ अपने लिए
अव न वो घोडेवाले दिक्षित रहे और न वो घंटे वाले घरतीपकड
बचपन की यादें ताज़ा हो आईं. अनेक चुनावों में दीक्षित जी और उनके घोडे के दर्शन हुआ करते थे. फूलबागं के चौराहे पर या गणेश उद्यान के मैदान में अक्सर दीक्षित जी दिख जाते थे. हम बच्चे उनके पीछे लग लेते थे. कभी कभी तो वह बच्चों के ही सम्बोधित करने लगते. कहते थे बात गांठ बान्ध लो,जब बड़े हो जाओ तो हमीं को वोट देना. हम तब भी लड़ेंगे.
बाद में मित्रों से सुना था कि एक लोकसभा के चुनाव में वह नम्बर दो पर भी रहे. तब ही यह नारा ‘हाय हाय ना किच किच ,भगवती प्रसाद दीक्षित” चला था.
धन्यवाद.
Arvind Chaturvedi की हालिया प्रविष्टी..अमरीका में भारतीयम- एक बार फिर
Smart Indian – स्मार्ट इंडियन की हालिया प्रविष्टी..शहीदों को तो बख्श दो – भाग 1. भूमिका
………………ये तो कुशल भविस्यवक्ता हुए जो ९९% लोगों की मनह-स्थिति उवाचे…..
जिस संसद में सवा पाँच सौ गधे जा सकते है वहां मेरा एक घोड़ा क्यों नही रह सकता है!..
……………. ये तो सोने से भी खरी बात कह दी…………
यही विडंबना है देश की , “चुनाव में आदमी नहीं पैसा जीतता है। नोट से वोट खरीदे जाते हैं। जब तक देश में घोड़ेवाले की तरह के आम आदमी के चुनाव जीतने के हालात नहीं बनते तब तक देश की हालत नहीं सुधर सकती।”
इनके किस्से हमने मुलताई में भी सुन रखे है ,आपने परिचय करा दिया ,धन्यवाद् …..
कमलेश मोहबे
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..नायक
अमिताभ त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..श्रृंगार-गीत
Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..गंगा तीरे बयानी
हाथ मैं बिगुल
अंग्रेजो के ज़माने की hat
घुड़सवारी वाले बूट्स
पतलून के पायचा खुसे हुए
“स्वामी” प्रिय संबोधन
slight लिस्प इन स्पीच
एक अलग व्यक्तित्व