…..और मजाक-मजाक में हमारी चिट्ठाकारी के सात साल निकल लिये! कोई गड़बड़ नहीं भाई इसके पहले
एक ,
दो ,
तीन , और
चार ,
पांच और
छह भी निकले इज्जत के साथ!
इन सात सालों के अनुभव मजेदार रहे। झन्नाटेदार भी। याद करते हैं कि
विन्डॊ 98 के जमाने में, जयहनुमान सुविधा के सहारे, छहरी की-बोर्ड के जमाने
में डायल अप इंटरनेट कनेक्शन के दिनों से शुरु हुये थे। जब भी नेट लगाते
तो किर्र-किर्र करके घर भर को पता चल जाता कि नेट-बाजी हो रही है। आये दिन
सुनने को मिलता -तुम्हारी ब्लागिंग के चलते फ़ोन बिजी रहता है। लोग शिकायत
करते हैं फोन हमेशा बिजी रहता है। कट-पेस्ट करके लिखने और टाइप करके कमेंट
करने के जमाने थे वे। ई-स्वामी ने हिंदी में
सीधे टिप्पणी करने का जुगाड़ आज से छह साल पहले लगाया था। उस पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं से उस समय की कठिनाइओं का अंदाजा लगाया जा सकता है।
ब्लागिंग अपने आप में अभिव्यक्ति का अद्भुत माध्यम है। हर एक को
अभिव्यक्ति का प्लेटफ़ार्म मुहैया कराती है यह सुविधा। क्या रेंज है जी!
शानदार से शानदार लेखन से लेखन से लेकर चिरकुट से चिरकुट विचार के लिये भी
यहां दरवज्जे खुले हैं। यही इस माध्यम की ताकत है। बड़े से बड़ा
लेखक/कवि/पत्रकार भी अंतत: प्रथमत: और अंतत: एक इंसान ही होता है। उसका
लेखन भले शानदार हो लेकिन एक सीमा के बाद वह टाइप्ड हो जाता है। ब्लागिंग
के जरिये आम आदमी की एकदम ताजा स्वत:स्फ़ूर्त अभिव्यक्तियां सामने आती हैं।
यह सुविधा अद्भुत है।
ब्लागिंग के बारे में अलग-अलग लोग अपने-अपने हिसाब से धारणायें बनाते
हैं। अपन को तो यह बहुत भली मासूम सी विधा लगती है। आप जैसे हो उसई तरह का
आपके पेश कर देती है नेट पर। कभी-कभी क्या अक्सर ही लोग ब्लागिंग के स्तर
को लेकर हलकान होते हैं। पोस्टें लिखते हैं। लेकिन ब्लागिंग में नित-नये
लोग जुड़ते जाते हैं। झमाझम पोस्टें आती रहती हैं। हू केयर्स फ़ार स्तर? हेल
विद इट! स्तर की चिंता करें कि
मन का रेडियो बजायें।
संकलक के निपटने से तमाम लोगों को असुविधा हुई है लोगों को। लोग लिखते
हैं पता नहीं चलता लोगों को। लेकिन अब दूसरे जुगाड़ फ़ेसबुक, गूगल बज ,
ट्विटर हैं अपनी पोस्टें पढ़वाने के लिये। लेकिन इत्ता पक्का है कि अगर किसी
ने कुछ अच्छा लिखा है या काम भर का विवादास्पद तो वह देर-सबेर पढ़ ही लिया
जाता है।
टिप्पणियां हिंदी ब्लागजगत की चंद्रमुखी/मृगलोचनियां हमेशा से रही हैं।
ज्यादातर ब्लागर केशवदास बने इनको हसरत से निहारते रहते हैं। टिप्पणियों का
अपना गणित है। अच्छे लेखन के अलावा नेटवर्किंग, मेहनत, पाठक के साथ
व्यवहार, इमेज पर इनका संख्या निर्भर करती है। कुछ भाई लोग तो ऐसी
टिप्पणियां करते हैं कि उनका मतलब निकालना उनके लिये ही मुश्किल हो!
ब्लागिंग में हमने देखा है कि लोग आमतौर पर अपनी आलोचना के प्रति
असहनशील हैं। किसी की बात के खिलाफ़ कोई बात लिखी जाये तो सबसे पहली धारणा
वह यही बनाता है जरूर उससे जलन के चलते यह बात लिखी है। यह प्रवृत्ति
आमप्रवृत्ति है हिंदी ब्लागिंग के मामले में। पहलवान टाइप के ब्लागरों
छोड़िये यहां तो सामाजिक समरसता , अच्छाई, भलाई के लिये हलकान रहने वाले लोग
भी अपने लेखन और व्यवहार की आलोचना पर ’ पड़सान ’ हो जाते हैं। घूम-घूम कर
अपने घाव दिखाते हैं सबको! ऐसा करते हुये वे इत्ते मासूम लगते हैं कि
उनसे “
हाऊ स्वीट , हाऊ क्यूट ” कहने का मन करता है। लेकिन कहते नहीं फ़िर इस डर से कि वे और ज्यादा
“स्वीट और क्यूट ” हो जायेंगे -हिंदी ब्लागिंग में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने का इल्जाम लगेगा सो अलग!
बीते सालों में समय के साथ ब्लागिंग की पहचान बढ़ी है। सात साल पहले -
ब्लागर -ये कौंची होता है?
की स्थिति थी। आज यह स्थिति है कि कुछ दिन पहले एक टी.वी. चैनल में एक
वार्ताकार के नाम के साथ ब्लागर की पट्टी लगी थी। हिंदी अखबार और किताबों
में ब्लागर बहुतायत में छपने लगे हैं। अब ब्लागिंग अनजान विधा नहीं रही जी।
ब्लागिंग के जरिये लोगों का मिलने-मिलाने का सिलसिला भी बढ़ा है। हमारे
तमाम जानने वालों में ब्लागर बढ़ते जा रहे हैं। हर शहर में कोई न कोई ब्लागर
दोस्त है। यह मजेदार सुकून है भाई!
पिछले सालों में हमारा लिखना-लिखाना कम हुआ है। आज देखा तो गये साल में
कुछ जमा 37 लेख लिखे। उसमें से आधे से ज्यादा रिठेलित हैं। यह हालत उन
कवियों की तरह है जो पांच साल कवितायें लिखकर पचास साल तक सुनाते हैं। वो
तो कहिये कि हमारे कुछ पाठक भले हैं और हमारा रिठेला हुआ पढ़े भले न लेकिन
यह जरूर लिख देते हैं -
दोबारा पढ़ा और उतना ही मजा आया। अब बताइये भला किसी और माध्यम में इतने भले पाठक-प्रशंसक मिलते हैं।
ब्लागिंग में कमी का कारण और कारणों के अलावा फ़ेसबुक जैसे तुरंता
माध्यमों का अवतरण भी रहा। आजकल तो फ़ेसबुक पर वह भी ठेलने लगे हैं जिसे भले
लोग शायरी के नाम से जानते हैं। एकाध शेर आप भी वो फ़र्माइये जिसे शायर लोग
मुलाहिजा के नाम से जानते हैं:
- दबोच लिया अंधेरे में, सीने से कट्टा सटा दिया,
दांत पीसकर गुर्राया – खामोशी से शेर सुन, दाद दे।
- वही घिसी-पिटी बातें, वही ख्याल- कुछ भी तो नया नही,
चल बहर में कह, तरन्नुम में पढ -गजल में खप जायेगा।
- मै कोई अदना शायर नहीं मेरे चाहने का वो वाला मतलब मत निकाल
मैंने तो तुझे सिर्फ़ ’लाइक किया है’ किसी फ़ेसबुक के स्टेटस की तरह।
- वो अपने इश्क के किस्से बहुत सुनाता है,
शायद जिन्दगी में मोहब्बत की कमी छिपाता है
- आप कहते हो कि बहुत झूठ बोलता है माना
लेकिन वो तो कभी हसीं सोहबतों में रहा ही नहीं!
- तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह ,
कि भीग तो पूरा गये पर हौसला बना रहा।
ये आखिरी वाला तो हमने अपनी श्रीमती जी का छतरी लिये हुये फोटो देखने के
बाद लिखा। इससे एक पंथ दो काज हो गये। एक शेर का शेर निकल आया और उधर
श्रीमती जी को यह जता भी दिया कि हम उनके लिये भी शेर लिख सकते हैं।
शेर लेखन में हमारी रुचि देखकर आलोक पुराणिक ने हमको सलाह दी कि हमको कनपुरिया भाषा में शेर लिखने चाहिये । तखल्लुस भी तय हो गया -’
कट्टा’कानपुरी। शाम को देखा उधर से शिव बाबू-
’कट्टा’ कानपुरी के
नाम से चालू हो गये। हमारा तखल्लुस लुट गया। हमने आलोक पुराणिक को बताया
तो उन्होंने सलाह दी -शायरों/कवियों से अपने आइडिया शेयर नहीं करने चाहिये।
बाद में हमने सोचा कि हम अपना तखल्लुस
’ कट्टा ’ कानपुरी असली वाले धर लें। साथ में नोट लगा दें-
नक्कालों से सावधान होने की कौनौ जरूरत नहीं- वे भी अपने ही भाई बंधु हैं।
और ये देखिये एक ठो शेर भी उछल के आ गया मैदाने-जेहन में! अब सुन ही लीजिये:
शाइर से गुफ़्तगू हुई , उसने तखल्लुस उड़ा लिया
दुनिया में भले आदमियों की, अभी कोई कमीं नहीं!
हां भाई यह भलमनसाहत ही है। जैसे पहली बार चिलम आपके हाथ में देखकर कोई
भला आदमी उसे आपके हाथ से छीनकर खुद सुट्टा लगाने लगे ताकि आपको नशे की
गिरफ़्त से बचा सके। और ये जो
शाइर लिखा है न वो इसलिये कि गुलजार साहब
शाइर ही लिखते हैं शायर को। हमारे तमाम पाठक गुलजार भक्त हैं। उनको अच्छा लगेगा!
खैर शायरी-वायरी अलग की बात! यहां मामला ब्लागिंग का है। सात साल पूरे
हुये थे बीस अगस्त को। आज यह पोस्ट लिख रहा हूं। ब्लागिंग के माध्यम से
जुड़े अपने तमाम साथियों को याद करके खुश हो रहा हूं कि इस माध्यम के चलते
मजाक-मजाक में लिखना शुरु किया और की-बोर्ड के फ़जल से अभी तक ठेल और रिठेल
मिलाकर छह सौ पोस्टें निकलकर सामने आ गयीं। हमारे साथ के लोगों को भी इससे
सहूलियत हुई है। हमारे बारे में और कुछ समझ न आने पर अचकचा के कह उठते
हैं -
ये ब्लागिंग करते हैं। इनका ब्लाग कम्प्यूटर पर छपता है। इनके ब्लाग का नाम फ़ुरसतिया डाट काम है!
आज के दिन डा.अमर कुमार भी बहुत याद आ रहे हैं। उनका न होना बहुत खल रहा
है। उनके बारे में सोचते हुये काशीनाथ सिंह का लिखा याद आता है जो
उन्होंने धूमिल के न रहने पर लिखा था-
उसके जाने के बाद तो ऐसा लगा घर से बेटी की डोली उठ गयी। आंगन सूना हो गया।
आज एक बार फ़िर
अभिव्यक्ति का नये माध्यम : ब्लॉग से परिचय कराने वाले
रविरतलामी और इस ब्लाग में लिखने के अलावा बाकी सब मामलों के पीर-बाबर्ची-भिस्ती-खर
ईस्वामी
का शुक्रिया कर रहा हूं। उस सभी साथियों का भी आभार जो हमें पढ़ते रहे और
यह एहसास दिलाते रहे कि हमारा लिखा पढ़ने वाले भी हैं कुछ लोग!
आभार आपका !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..वेदना -सतीश सक्सेना
यह जानकर खुशी और आश्चर्य भी हुआ कि आपकी रुचि पंगेबाजी से हटकर लिखे लेखों में भी है। इस तरह के लेखों में धोती खोलने का रिवाज अभी नहीं है। आगे आपके आग्रह पर शायद यह चलन भी शुरु हो!
शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया के लिये।
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..वेदना -सतीश सक्सेना
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..वेदना -सतीश सक्सेना
सही है! शुरु कीजिये मजा आयेगा। शुरुआत आप अपने शहर , पेशे और रुचि से जुड़ी चीजों के बारे में लिखकर कर सकते हैं। शुभकामनायें आपको।
मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..अस्पताल में नर्स का काम
सही में ऐसे लोग नमन करने लायक हैं। आपका अपने ब्लाग पर राजभाषा हिंदी के लिये किया जा रहा प्रयास और गांधीजी पर किया जा रहा काम भी इसी श्रेणी का काम है।
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..क्या हुआ तेरा वादा ?
आप भी जुडिये कारवां में! रेलवे से जुड़ी जानकारी डालिये विकि पर!
आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..टेलीपोर्टेशन : विज्ञान फंतासी कथाओं मे विज्ञान
सही है। लेकिन तुम्हारा विज्ञान विश्व पर किया जा रहा काम अद्भुत है। लगे रहो। लेकिन खाली-पीली लेख भी लिखते रहो! यह भी जरूरी है ताजगी के लिये।
शुक्रिया आपकी प्रतिक्रिया के लिये !
रमानाथ अवस्थी के बारे में लिखा एक लेख यह भी देखिये:
http://hindini.com/fursatiya/archives/६४
और इसमें सुनिये उनकी एक अद्भुत कविता उनकी ही आवाज में
http://hindini.com/fursatiya/archives/1343
सही है। आप विकि में अपने विभाग से जुड़ी तकनीकी जानकारियां, अपने शहर के बारे में डालना शुरु कर दीजिये। आपकी देखा देखी हम भी और कुछ करेंगे।
लिंकों तक जा-जाकर देखने फिर आउँगा। इस प्रेरक-कार्य की चर्चा के लिये आपको साधुवाद।
अमरेन्द्र अवधिया की हालिया प्रविष्टी..दिल्ली के दरबार कै अब हम का बिस्वास करी ? (कवि अउर कंठ : समीर शुक्ल)
ashish की हालिया प्रविष्टी..मै लिख़ नहीं सकता
आपके ब्लॉग पर सब टिप्पणीकारों की ताजा प्रविष्टि दिखती है, मेरी क्यों नहीं दिखती गुरुवर…
जय हिंद…
ऐंवेयी समझ रखा है चेलो ने …:-)
गुरु ने तुम्हारा लिंक गायब कर दिया देख लो
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..वेदना -सतीश सक्सेना
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..हर तरह का पब्लिक है ! (पटना ४)
आपने ठीक कहा है…अपने आसपास के शहर के बारे में वहां जानकारी जमा करनी चाहिए. लेख के लिए धन्यवाद…ऐसे आँख खोलने वाले पोस्ट्स बेहद जरूरी हैं.
पूजा उपाध्याय की हालिया प्रविष्टी..कुछ अच्छे लोग जो मेरी जिंदगी में हैं…
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..नीतीश कुमार के ब्लॉग से गायब कर दी गई मेरी टिप्पणी (हिन्दी दिवस आयोजन से लौटकर)
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..कुछ पल.
@.प्रशंसनीय कार्य . कुछ खुराफात अच्छी होती है . (बतर्ज कुछ दाग अच्छे होते है )…………………इस लाइन के लिए आशीषजी को आशीष मिले…………
प्रणाम
विकिपीडिया पर मैं ने भी कई लेख डाले हुए हैं…
जब भी समय मिलेगा तो अन्य लेख भी वहाँ पोस्ट करूँगी..
मैंने पहले लेख विवकिपीडिया पर डाले थे। इधर समयाभाव के कारण यह नहीं हो पा रहा है। देखियो फिर कब शुरू कर पाता हूं।
उन्मुक्त की हालिया प्रविष्टी..The file ‘Understand infinity – be close to God’ was added by unmukt
बहुत बहुत आभार…
Ranjana की हालिया प्रविष्टी..माँ सी…
रमानाथजी की कविता को हमने आपकी तरफ से ही माना है !इस पोस्ट में वह फुरसतिया अंदाज़ गायब रहा !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..हमने तो बस गरल पिया है !
Dr.ManojMishra की हालिया प्रविष्टी..क्या ऐसे ही हम 2020 तक महाशक्ति बनेंगे ? (३)
वास्तव में यह एक प्रेरक पोस्ट है.. हम भी चेष्टा करते हैं ! हमने तो हिन्दी दिवस पर अपने वक्तव्य रखते हुए सम्पूर्ण ईमानदारी से यूनिकोड का आभार व्यक्त किया जिसने हमारी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी!!
सलिल वर्मा – चैतन्य आलोक की हालिया प्रविष्टी..बधाई!!
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..डेढ़ऊ बनाम ओरल केंसर
चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..एक समीक्षा
SHARAD KOKAS की हालिया प्रविष्टी..रेल्वे स्टेशन पर एक भिखारी
वर्तमान में विकिपीडिया पर मयूर कुमार तथा आशीष भटनागर दो सबसे सक्रिय व्यक्ति हैं। लेकिन विकि के सबसे समर्पित सिपाही अनुनाद जी हैं जो विकि के शुरुआती समय से अब तक सक्रिय हैं और शायद हमेशा रहेंगे। उनकी निरन्तरता का मैं कायल हूँ। विकि पर समय-समय पर बहुत लोग आते हैं, अच्छा काम करते हैं पर एक बार जोश उतर जाने पर या किसी कारण से चले जाने पर दोबारा वापस नहीं आ पाते। इसलिये मैं अनुनाद जी को उनकी विकिपीडिया के प्रति लगन और समर्पण के लिये नमन करता हूँ।
ePandit की हालिया प्रविष्टी..मॅक्टिनी – दुनिया का सबसे छोटा कम्प्यूटर [वीडियो]