http://web.archive.org/web/20140419215850/http://hindini.com/fursatiya/archives/2865
चलो अपन भी बोल्ड हो जायें
By फ़ुरसतिया on April 13, 2012
भाईसाहब अब आप भी ’बोल्ड’ हो जाइये। हमारे एक दोस्त ने फ़ोन पर आग्रह किया। (वैसे हम लिखना इसरार चाह रहे थे लेकिन इस्पेलिंग में कन्फ़्यूज हो गये एन टाइम कि इशरार लिखें कि इसरार तो मटिया दिये और आग्रह की शरण में आ गये)
हां तो बात दोस्त के आग्रह की हो रही थी। दोस्त बोला बोल्ड हो जाइये। आग्रह इतना तेज था कि उसका अंग्रेजी उल्था किया जाये तो कुछ ऐसा बनेगा- नत्थिंग डूइंग! बी क्विक। बी बोल्ड!
अपन ने सोचा शरमा के कह दें – अब इस उमर में क्या बोल्ड होंगे।
लेकिन फ़िर सोचा अब क्या शर्माना। सो बोल्डली कह दिये- हम तो पैदाइसी बोल्ड हैं! पैदा ही नंगे हुये थे।
दोस्त बोला- मजाक नहीं यार! देख ही रहे होगे सब लोग बोल्ड हो रहे हैं! तुम काहे को पीछे रहो। मौका है बोल्ड हो जाओ।
हमने कहा -अबे बोल्ड होना क्या दफ़्तर जाना है। कि पहन के कपड़े निकल लिये। बोल्ड होने के लिये कविता लिखनी पड़ती है। गुंडागिरी करनी पड़ती है। मां-बहन करनी पड़ती है। रिश्तों की और अकल दोनों की। इत्ती बोल्डनेस कहां से लायें।
दोस्त ने समझाया कि कविता की जिद हम थोड़ी कर रहे हैं। तुम लेख में बोल्ड हो जाओ। सब धर दो खोल के। एकदम नख सिख वर्णन कर दो। एकदम इरोटिक। उत्तेजक। जैसे उत्पादन शालाओं में किसी आपरेशन का फ़्लोचार्ट होता है वैसे ही तुम ’काम’ का फ़्लोचार्ट बना दो। बस हो गयी बोल्डनेस। या फ़िर किसी के लिये अलबेली बहुआयामी गालियां लिख डालो। हो गयी बोल्डनेस।
हम सहम गये। बोले इत्ते बोल्ड हम कहां। लेकिन दोस्त जिद किये हुये था कि बोल्ड बन के दिखाना है। कह भी दिया उसने- बोल्ड बने बिना तेरी खैर नहीं।
फ़िर अपन नेट पर पसरी तमाम बोल्डनेस का जायजा लेते रहे। कविताओं में इशारे-इशारे में बातें होती हैं। लेखों में तो एकदम खुल्ला बोल्डनेस मौजूद है। खुल्लाखेल फ़र्रखाबादी।
कालेज के जमाने में हास्टल में घर से पहली बार बाहर आये लड़के बोल्ड होना सीख रहे थे। अश्लील साहित्य को इज्जत से पढ़ते हुये और बहुआयामी गालियां देते हुये। कालेज से निकलकर वो सब खुशनुमा यादें होकर रह गयीं। खुशनुमा इसलिये कि जो बीत जाता है वो खुशनुमा होकर ही याद आता है। बुरा बीता तो इसलिये खुशनुमा कि बीत गया। अच्छा बीता तो डबल खुशनुमा।
जब नेट से जुड़े तो कुछ दिन बाद ही ब्लॉगिंग शुरु कर दी। आठ साल होने को आये। शुरू में बहुत कम हिंदी थी नेट पर। आज जो हिंदी है नेट पर उसमें हिंदी ब्लॉगिंग का भी काम भर का योगदान है।
नेट पर हिन्दी आने के बाद यौन सामग्री भी आई नेट पर। वह सब भी जिसे लोग उत्तेजक और अश्लील मानते हैं लेकिन छिपकर पढ़ते हैं। उत्तेजक में भी कुछ इतना उत्तेजक हो जाता है कि पढ़ने वाला बोल्ड हो जाता है और कहता है -ये तो अश्लील है।
ऐसा न जाने कितना लेखन समाज में मौखिक/लिखित मौजूद है। रोज रचा जा रहा है। उसको दोहराकर न अपन पहले हो जायेंगे न आखिरी। क्या फ़ायदा ऐसा बोल्ड होने से।
आज समाज में कित्ती गैरबराबरी है। कित्ती परेशानियां हैं। लोगों का जिन्दा रहना मुश्किल है। समर्थ लोग न लोगों को होश नहीं न जाने किधर भागे जा रहे हैं।
हाल ये है जनाबे अली कि दूसरे की समस्या पर किसी को सोचने का समय नहीं है। ऐसा माफ़िक हम न जाने किधर जायेंगे कुछ समझ नहीं आता। कभी-कभी लगता है ये अपने आपमें एक अश्लीलता है कि इस सबसे कन्नी काटे असहाय जिये जा रहे हैं।
इसी तरह की न जाने क्या-क्या बातें मैं दोस्त को बोलता रहा। मेरे शान्त होने के बाद दोस्त बोला – तेरे साथ यही समस्या है। जब देखो गाड़ी पटरी से उतारकर बाबागीरी बनने करने लगते हो। तू छोड़ तुझसे नहीं होने सकता बोल्ड लेखन!
दोस्त अपना मुंह झोला माफ़िक लटका के चला गया और अपन सोच रहे हैं कि बेमतलब की भावुकता भी कभी-कभी कवच का काम करती है। है न!
एक और बात याद आयी। लगभग पांच साल पहले एक ब्लागर ने संजय बेंगानी के लिये आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। टिप्पणी आपत्तिजनक थी उसमें गालियां नहीं। उसके ब्लाग को उस समय के सबसे सक्रिय संकलक नारद से बाहर कर दिया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इस प्रतिबंध के पक्ष-विपक्ष में बहुत बहस हुई । शायद इतनी बहस उसके बाद ब्लागजगत में फ़िर नहीं हुई। लेकिन उसका ब्लाग दोबारा वापस नहीं शामिल हुआ।
इस बार एक महिला ब्लागर की पोस्ट पर बेहूदी टिप्पणियां हुईं उसके बाद खुले आम गाली गलौज होने हुआ। इसके बावजूद इस मसले पर ज्यादा हल्ला-गुल्ला नहीं हुआ। इसका मतलब क्या समझा जाये- ब्लाग जगत परिपक्व हुआ है या फ़िर समझदार और संवेदनहीन।
तमाम साथी उस समय ब्लागजगत से जुड़े नहीं होंगे इसलिये उसका लिंक दे रहा हूं- नारद पर ब्लाग का प्रतिबंध – अप्रिय हुआ लेकिन गलत नहीं हुआ
हां तो बात दोस्त के आग्रह की हो रही थी। दोस्त बोला बोल्ड हो जाइये। आग्रह इतना तेज था कि उसका अंग्रेजी उल्था किया जाये तो कुछ ऐसा बनेगा- नत्थिंग डूइंग! बी क्विक। बी बोल्ड!
अपन ने सोचा शरमा के कह दें – अब इस उमर में क्या बोल्ड होंगे।
लेकिन फ़िर सोचा अब क्या शर्माना। सो बोल्डली कह दिये- हम तो पैदाइसी बोल्ड हैं! पैदा ही नंगे हुये थे।
दोस्त बोला- मजाक नहीं यार! देख ही रहे होगे सब लोग बोल्ड हो रहे हैं! तुम काहे को पीछे रहो। मौका है बोल्ड हो जाओ।
हमने कहा -अबे बोल्ड होना क्या दफ़्तर जाना है। कि पहन के कपड़े निकल लिये। बोल्ड होने के लिये कविता लिखनी पड़ती है। गुंडागिरी करनी पड़ती है। मां-बहन करनी पड़ती है। रिश्तों की और अकल दोनों की। इत्ती बोल्डनेस कहां से लायें।
दोस्त ने समझाया कि कविता की जिद हम थोड़ी कर रहे हैं। तुम लेख में बोल्ड हो जाओ। सब धर दो खोल के। एकदम नख सिख वर्णन कर दो। एकदम इरोटिक। उत्तेजक। जैसे उत्पादन शालाओं में किसी आपरेशन का फ़्लोचार्ट होता है वैसे ही तुम ’काम’ का फ़्लोचार्ट बना दो। बस हो गयी बोल्डनेस। या फ़िर किसी के लिये अलबेली बहुआयामी गालियां लिख डालो। हो गयी बोल्डनेस।
हम सहम गये। बोले इत्ते बोल्ड हम कहां। लेकिन दोस्त जिद किये हुये था कि बोल्ड बन के दिखाना है। कह भी दिया उसने- बोल्ड बने बिना तेरी खैर नहीं।
फ़िर अपन नेट पर पसरी तमाम बोल्डनेस का जायजा लेते रहे। कविताओं में इशारे-इशारे में बातें होती हैं। लेखों में तो एकदम खुल्ला बोल्डनेस मौजूद है। खुल्लाखेल फ़र्रखाबादी।
कालेज के जमाने में हास्टल में घर से पहली बार बाहर आये लड़के बोल्ड होना सीख रहे थे। अश्लील साहित्य को इज्जत से पढ़ते हुये और बहुआयामी गालियां देते हुये। कालेज से निकलकर वो सब खुशनुमा यादें होकर रह गयीं। खुशनुमा इसलिये कि जो बीत जाता है वो खुशनुमा होकर ही याद आता है। बुरा बीता तो इसलिये खुशनुमा कि बीत गया। अच्छा बीता तो डबल खुशनुमा।
जब नेट से जुड़े तो कुछ दिन बाद ही ब्लॉगिंग शुरु कर दी। आठ साल होने को आये। शुरू में बहुत कम हिंदी थी नेट पर। आज जो हिंदी है नेट पर उसमें हिंदी ब्लॉगिंग का भी काम भर का योगदान है।
नेट पर हिन्दी आने के बाद यौन सामग्री भी आई नेट पर। वह सब भी जिसे लोग उत्तेजक और अश्लील मानते हैं लेकिन छिपकर पढ़ते हैं। उत्तेजक में भी कुछ इतना उत्तेजक हो जाता है कि पढ़ने वाला बोल्ड हो जाता है और कहता है -ये तो अश्लील है।
ऐसा न जाने कितना लेखन समाज में मौखिक/लिखित मौजूद है। रोज रचा जा रहा है। उसको दोहराकर न अपन पहले हो जायेंगे न आखिरी। क्या फ़ायदा ऐसा बोल्ड होने से।
आज समाज में कित्ती गैरबराबरी है। कित्ती परेशानियां हैं। लोगों का जिन्दा रहना मुश्किल है। समर्थ लोग न लोगों को होश नहीं न जाने किधर भागे जा रहे हैं।
हाल ये है जनाबे अली कि दूसरे की समस्या पर किसी को सोचने का समय नहीं है। ऐसा माफ़िक हम न जाने किधर जायेंगे कुछ समझ नहीं आता। कभी-कभी लगता है ये अपने आपमें एक अश्लीलता है कि इस सबसे कन्नी काटे असहाय जिये जा रहे हैं।
इसी तरह की न जाने क्या-क्या बातें मैं दोस्त को बोलता रहा। मेरे शान्त होने के बाद दोस्त बोला – तेरे साथ यही समस्या है। जब देखो गाड़ी पटरी से उतारकर बाबागीरी बनने करने लगते हो। तू छोड़ तुझसे नहीं होने सकता बोल्ड लेखन!
दोस्त अपना मुंह झोला माफ़िक लटका के चला गया और अपन सोच रहे हैं कि बेमतलब की भावुकता भी कभी-कभी कवच का काम करती है। है न!
चलते-चलते
पिछले दिनों एक महिला ब्लागर की कविता पर आई टिप्पणियों के बाद एक ब्लागर ने मर्दानगी दिखाते हुये टिप्पणी करने वाले ब्लागर को जिस तरह मां-बहन की गालियां वर्तनी उलटी करके लिखीं उससे मुझे रवीन्द्र कालिया के उपन्यास खुदा सही सलामत है की महिला पात्र (नाम शायद हसीना बी) याद आयीं जो गालियां उल्टी करके बकतीं थीं ताकि लोग समझ भी लें और गाली भी न कह सकें। जो काम तीस साल पहले कालिया जी के उपन्यास की महिला पात्र ने तीस साल पहले कर डाला वो काम अबके मर्द कर रहे हैं।एक और बात याद आयी। लगभग पांच साल पहले एक ब्लागर ने संजय बेंगानी के लिये आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। टिप्पणी आपत्तिजनक थी उसमें गालियां नहीं। उसके ब्लाग को उस समय के सबसे सक्रिय संकलक नारद से बाहर कर दिया। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इस प्रतिबंध के पक्ष-विपक्ष में बहुत बहस हुई । शायद इतनी बहस उसके बाद ब्लागजगत में फ़िर नहीं हुई। लेकिन उसका ब्लाग दोबारा वापस नहीं शामिल हुआ।
इस बार एक महिला ब्लागर की पोस्ट पर बेहूदी टिप्पणियां हुईं उसके बाद खुले आम गाली गलौज होने हुआ। इसके बावजूद इस मसले पर ज्यादा हल्ला-गुल्ला नहीं हुआ। इसका मतलब क्या समझा जाये- ब्लाग जगत परिपक्व हुआ है या फ़िर समझदार और संवेदनहीन।
तमाम साथी उस समय ब्लागजगत से जुड़े नहीं होंगे इसलिये उसका लिंक दे रहा हूं- नारद पर ब्लाग का प्रतिबंध – अप्रिय हुआ लेकिन गलत नहीं हुआ
Posted in बस यूं ही | 76 Responses
हमें तो यही बात समझ में आई कि अब ब्लॉगर संवेदनहीन हो चुके हैं। यह राय शायद मेरे अकेले की भी हो सकती है, परंतु ब्लॉगिंग भी सामाजिक दायरे में आ चुकी है। तो उसके प्रभाव पड़ेंगे ही।
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..ब्रोकरों का शहर मुंबई (City of Brokers, Mumbai)
कहाँ चर्चा नहीं हुई जूतम लातम हो गया ..संकोची लोग पहली बार संकोच कम कर कुछ कहते भये …
और आप भी लिख ही मारे ..इंशा अल्ला हम भी सोच रहे हैं -बाकी तो साईब्लाग में नारी देह देशाटन में सब कुछ कह ही चुके हैं …आपने लिंक नहीं दिया ? गलत बात ..यह समवयी ईर्ष्या ठीक नहीं है !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..तेरी याद में -सतीश सक्सेना
चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..भगतसिंह के चौदह दस्तावेज
अभी हाल ही में मैंने एक अश्लील उपन्यास समाप्त किया है.. एक विशुद्ध नारी विषय पर एक पुरुष द्वारा लिखा.. किसी महिला ने बोल्डनेस के नाम पर वह विषय नहीं उठाया!! हमेशा की तरह लाजवाब पोस्ट!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..मेरा साया!!
ब्लॉगिंग में लगता है कि हिट होने के लिए टंकी पर चढ़ने के बजाय अब बोल्ड-कविता लिखने का फार्मूला ज्यादा सही है.
यहाँ मर्द होने के लिए ऐसा ब्लॉगर हिट है जो हसीनाओं को प्यारे से स्नैप दिखाकर और बुड्ढो और खूसट चेहरों पर लात-घूँसा जमाकर मजमा लूट ले !
…ब्लॉगिंग अब सुविधाजनक और साधनपरक आइटम बनती जा रही है,आप में दम है तो बचा लें !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..तुम आओ तो आ जाओ !
सबसे पहले सात्विक पोस्टें लिखीं जाय कि हम तो सीधे साधे हैं। उसके बाद थोड़ा चिंतित हो जांय की समाज में अश्लीलता बढ़ रही है। तत्पश्चात उस चिंता में खुद को घुलाना शुरू कर देना चाहिये जब तक कि खुद के मुंह से वैसी ही अश्लीलता मुखर न हो जाय। बाद में अपनी इस अश्लीलता को दूसरे पर ओढ़ा देना चाहिये कि उसने मुझे अश्लील होने पर मजबूर किया।
इसके बाद नंबर आता है कि खुद ही मैदान में पिल पड़ो। अश्लीलता-वश्लीलता गई तेल लेने। अब पूरे मैदान में आप हो औऱ आपकी अश्लीलता। लगो बोल्डनेस भांजने कि आये जिसमें दम हो। इस अश्लीलपंती का एक लाभ यह होगा कि जो वाकई अश्लील होगा वह आपको अपना मित्र समझने लगेगा और जो मुद्दा अब तक श्लील-अश्लील के झूले पर झूल रहा था, पलक झपकते ही सम पर आ जायगा, झगड़ा खत्म
अंत में एक अश्लील दूसरे अश्लील से बॉर्डर फिल्म के जैकी श्रॉफ और सन्नी देओल की तर्ज पर एक दूसरे को कहेगा – हम हीं हम हैं तो क्या हम हैं, तुम ही तुम हो तो क्या तुम हो
——————
पोस्ट झकास है, एकदम राप्चिक
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..‘परमा’
निर्मल बाबा से बोल्ड नहीं मिला आज तक कोल्ड में भी बोल्ड
अब चाहे वह गोल्ड हो, या हो रोल्ड गोल्ड (सोना)
सोने का ही खेल सारा है
पर जग सारा जग कर ही खेलता है
सोते हुए आज तक बोल्ड खेल कोई नहीं खेल पाया है
पर गोल्ड बनता है, रात को सोना, जब नींद न आए तो
बोल्ड, बोल्ड किसिम किसिम के
कोई किस करके बनता है
कोई घिस करके बनता है
कोई पिस करके बनता है
जो शोर मचाकर छिप जाता है
आज ब्लॉगिंग में वही बोल्ड कहलाता है
हम तो अब सोने जाता है
वहीं पर बोल्ड होंगे।
अविनाश वाचस्पति की हालिया प्रविष्टी..निर्मल बाबा का निर्मल मन : दैनिक हरिभूमि में 13 अप्रैल 2012 के अंक में प्रकाशित
देखिए अब हम भी फुरसत में आ गए हैं और हो गए हैं अनबोल्ड
निर्मल बाबा से बोल्ड नहीं मिला आज तक कोल्ड में भी बोल्ड
अब चाहे वह गोल्ड हो, या हो रोल्ड गोल्ड (सोना)
सीना नहीं सोना, लोगों को गलतफहमी है कि सीना चौड़ा होना
बोल्ड होना है, सीना सीने में कितनी देर लगती है
इस गलतफैमिली से महफूज रहो, तो बेहतर
सोने का ही खेल सारा है
पर जग सारा जग कर ही खेलता है
सोते हुए आज तक बोल्ड खेल कोई नहीं खेल पाया है
पर गोल्ड बनता है, रात को सोना, जब नींद न आए तो
बोल्ड, बोल्ड किसिम किसिम के
कोई किस करके बनता है
कोई घिस करके बनता है
कोई पिस करके बनता है
जो शोर मचाकर छिप जाता है
आज ब्लॉगिंग में वही बोल्ड कहलाता है
हम तो अब सोने जाता है
वहीं पर बोल्ड होंगे।
अविनाश वाचस्पति की हालिया प्रविष्टी..निर्मल बाबा का निर्मल मन : दैनिक हरिभूमि में 13 अप्रैल 2012 के अंक में प्रकाशित
कुछ लोगों का काम ही है उलटी सीधी टिप्पणियां करना, शायद इसीलिए मोडरेशन एक अच्छा विकल्प है.
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..प्रलय तो भारत ही में होगी …थोड़ा सा इंतजार करें….
इधर आप बोल्ड हुए, और उधर आपके एजीएम बनने की ख़बर आई…यानि डबल बधाई…
जय हिंद…
Khushdeep Sehgal की हालिया प्रविष्टी..क्यों कहते हो फिर बेटियों को लक्ष्मी…खुशदीप
तीस साल पहले रवीन्द्र कालिया के उपन्यास की स्त्री पात्र सलीके से गालियां बकने लायक उम्र की रही होंगी ! बस इसी लिहाज़ से अर्ज़ किया है कि हसीना बी ? बे औलाद तो ना रही होंगी
ali syed की हालिया प्रविष्टी..जिस क़दर अफ़साना-ए-हस्ती को दोहराता हूं मैं…
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..तुम आओ तो आ जाओ !
हसीना बी बे-औलाद हीं थीं/हैं उस उपन्यास में।
बाकी संतोष त्रिवेदी जी की बात क्या कहा जाये।
ए जी एम् का फुल फॉर्म बताओ और लड्डू खिलाओ …
चकाचक बधाई हो गुरु…
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..तेरी याद में -सतीश सक्सेना
बोल्डत्व के लिये शुभकामनायें!
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी वाले और क्लाउट
शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद!
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी वाले और क्लाउट
बाद ढकना परे…………….
और हाँ, प्रत्येक सामाजिक प्राणी को ये पता होना चाहिए के उसके घर भी………….मां, बहु एवं बेटिया हैं. उत्तेजना पर विना उत्तेजित शब्द-विम्ब के भी विमर्श संभव है……………..
चलते-चलते ‘अफसरी तो वाया मोती हलवाई ही आनी चाहिए’.
सुभकामनाओं का गिफ्ट पैक स्वीकार हो.
प्रणाम.
“उसकी जानिब (तरफ़) बदनजर उठने ही वाली थी मगर ,
अपनी बेटी का ख्याल आया तो दिल कांप उठा।”
बाकी मोती हलवाई अपना काम कर रहा है।
शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद ।
लेकिन शायद लोगों ने अश्लीलता को ही बोल्डनैस का पर्याय मान लिया है. जिसने जितना अश्लील लिखा, वो उतना ही बोल्ड हो गया लेकिन अगर तथाकथित बोल्डनैस दिखा ही दी हो, तो फिर अपनी बात पर अड़े रहना चाहिए, ये क्या की लोगों सही-गलत बताया और आप भाग लिए मैदान छोड़ के लिखने वाले को मालूम है तो होगा ही कि इस कविता/लेख के बाद कैसी थुक्का फजीहत हो सकती है? अच्छा हुआ, आप बोल्डनैस से क्विट कर गए
हम तो कहां के बोल्ड! बस खाली टाइटिल सटा के फ़ूट लिये।
वंदना गुप्ता जी ने जो लिखा वो मैंने पढ़ा। उस पर भी सलीके से अपनी बात लिख सकते थे लोग लेकिन फ़िर बेवकूफ़ी का मुजाहिरा करने की जगह कहां मिलती।
बाकी तो आपके और अविनाश वाचस्पति के बीच का मामला है। जब आप उनकी बैंड बजायेंगे तो वहां से भी कोई न कोई धुन जरूर निकलेगी। वैसे मुंह पर गालियां देना अगर बहादुरी है तो अपने यहां के गल्ली-मोहल्लों में न जाने कित्ते बहादुर कबड्डी खेलते हैं।
बुढ़ापे में जवान से लात खाने में सही में दर्द होता है। लेकिन आप भी कभी बुजुर्गवार होंगे भाई। रागदरबारी में एक ठाकुर दूरबीन सिंह हैं उसके जैसे हाल हो जाते हैं -ताकत खतम होने पर ।
जानते हैं अनूप जी, अभी दस-पंद्रह दिन पहले ही एक परिचित से आपका ज़िक्र हो रहा था. अब चूंकि केवल रचना-कर्म को तो हमारे यहाँ कुछ करना माना नहीं जाता, सो उसने पूछा क्या करते हैं शुक्ल जी? मैंने कहा- आयुध निर्माणी में एजीएम हैं देखा? बातें किस तरह घड़ी में पड़ती हैं?
बहुत-बहुत-बहुत बधाई हो. बोले तो हार्दिक बधाईयाँ स्वीकार करें.
हाँ, ये मेरा नाम क्यों नहीं आता यहाँ?
दो-तीन दिन इंटरनेट खराब-सा रहा और बोल्डत्व बांचने से रह गए. अच्छा ही हुआ.
Nishant की हालिया प्रविष्टी..दीवार
बोल्डनेस को भी निहारने का अलग मजा है।
आंसू कविता…जाने दीजिये:-)
शिव कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..विधायक जी
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..विधि की व्यवस्था
बाकी झाम का तो पता नहीं लेकिन ये ज़ेन दर्शन क्लीन-बोल्ड कर गया हैगा.
मुझे भी स्ट्रॉंगली लगता है कि फुसफुसे कार्टून बनाना छोड़कर खुल्लाखेल-फरूक्खावादी-कार्टून बनाना शुरू कर दूं पर कोई गारंटी नज़र नहीं आ रही कि प्रकाशक मेरे दरवाज़े गिरते-पड़ते भगदौड़ मचा देंगे या राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई फोड़ू धमाका हो जाएगा सिवाय इसके कि… आगे क्या लिखूं
कार्टून बड़े शानदार बनाते हैं आप। आगे चलकर उनकी बोल्डनेस के नम्बर आयेंगे। मेरा मन करता है कि मुझे भी स्केचिंग आती होती। तो कार्टून बनाते।
घुघूतीबासूती
ghughutibasuti की हालिया प्रविष्टी..माँ का जन्मदिन
और यहाँ पे कमेंट्स की बाढ़ है
बड़ी ताम झाम वाली पोस्ट है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..भईया हम तो तगड़ा गुंडा बनिहों!!!
बोल्ड होना इतना आसान नहीं हैं हां क्लीन बोल्ड जरुर कर दिया कुछ लोगो को वंदना की कविता ने . महिला ब्लोगर की मोरल पुलिसिंग करना एक शगल हैं हिंदी ब्लॉग में लेकिन अगर मे वही पुरुष ब्लॉगर के साथ करती हूँ तो मै “रडार ” पर होती हूँ .
और हल्ला इस बार भी कम नहीं हुआ हैं और ब्लॉगर ने खुल कर भर्त्सना भी की ही हैं .और खुल कर की हैं बिना ग्रुप बनाए . एक परिपक्व मेंटल सेट उप के साथ
पहले लोग ग्रुप देखा करते थे और अगर उनके ग्रुप से कोई गाली गलोज कर रहा हैं तो उसको वो बचाते थे लेकिन इस बार सही तरीके से अपशब्दों का विरोध हुआ हैं .
नारी का चरित्र हनन इस लिये होता हैं क्युकी उसके पास एक चरित्र होता हैं !!!
rachna की हालिया प्रविष्टी..इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
यही तो सवाल है- कि क्या समझा जाये इस बात का मतलब! पहले इस तरह की बात पर बहुत सारी पोस्टें लिखीं जातीं थी। अब लोग शायद समझदार हो गये हैं और ज्यादा परेशान नहीं होते इधर-उधर की बातों से। आपने भी अपनी बात कही।
बोल्ड होना इतना आसान नहीं हैं हां क्लीन बोल्ड जरुर कर दिया कुछ लोगो को वंदना की कविता ने . महिला ब्लोगर की मोरल पुलिसिंग करना एक शगल हैं हिंदी ब्लॉग में लेकिन अगर मे वही पुरुष ब्लॉगर के साथ करती हूँ तो मै “रडार ” पर होती हूँ .
और हल्ला इस बार भी कम नहीं हुआ हैं और ब्लॉगर ने खुल कर भर्त्सना भी की ही हैं .और खुल कर की हैं बिना ग्रुप बनाए . एक परिपक्व मेंटल सेट उप के साथ
पहले लोग ग्रुप देखा करते थे और अगर उनके ग्रुप से कोई गाली गलोज कर रहा हैं तो उसको वो बचाते थे लेकिन इस बार सही तरीके से अपशब्दों का विरोध हुआ हैं .
नारी का चरित्र हनन इस लिये होता हैं क्युकी उसके पास एक चरित्र होता हैं !!!
rachna की हालिया प्रविष्टी..इस कविता का किसी ब्लॉगर से कोई लेना देना नहीं हैं
ये आपकी समझ है। इस पर हम क्या कहें।
माने कि एतना हो-हल्ला, और लाठी बल्लम निकला, लोगन का १३वीं तक मन गया….ऊ सब किसी महिला के लिए कहे गए, अपशब्दों के लिए नहीं था…उसको सिर्फ़ बहाना बनाया गया था….एतना गारी-गुप्ता जो हुआ…ऊ था अपना व्यक्तिगत खुन्नस निकालने का वास्ते …और हम सब बुड़बक लोग, इस पूरे प्रकरण को, किसी ब्लोगर की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला मानते रहे, किसी महिला ब्लोगर का चारित्रिक हनन मानते रहे,
तो कुल मिला कर, गोया कि चुनांचे,ब्लॉग जगत, अब व्यक्तिगत खुन्नस निकालने का आखाडा हो गया है…???? बहुते कन्फ़ुसियन है….जाए दो, हमरे बाप का का जाता है…दिमाग अब काम नहीं कर रहा है…हाँ नहीं तो..!!
एक ठो और सवाल है आपसे…क्लीन बोल्ड जो खेलाडी हो जाता है, ऊ मैदान में रहता है..कि अपना बैट-पैड का दोकान बन्द करके, मैदान से बाहर जाता है…हमको किरकिट का ओतना आइडिया नहीं है..शुकुल जी…
हाँ एक बात और कहेंगे हम आपसे…आप ‘बोल्ड’ ही नहीं ‘महाबोल्ड’ हैं..अपने दोस्त को समझाए दीजिये…वर्ना …..;)
Swapna Manjusha ‘ada’ की हालिया प्रविष्टी..नाम में क्या रखा है…!!!!
बाकी आप अपने ब्लाग के कमेंट बक्से पर ताला लगाये हैं। ई ठीक बात नहीं – हां नहीं तो!
ये मोती किसी हलवाई का नाम है? कानपुर का है या जबलपुर का, कैसे पता चलेगा? बधाई स्वीकार कर लीजिये, लड्डू वगैरह की तो देखी जायेगी|
sanjay @ mo sam kaun…? की हालिया प्रविष्टी..A syndrome that is called …..(ladies, excuse me please this time) बवाल-ए-बाल
लोगों के रोटियां सेंकने की बात है तो वो शायद इसलिये कि ईंधन मंहगा है। इसलिये जहां आग दिखी वहां सेंक लेते हैं लोग रोटियां।
बधाई के लिये शुभकामनायें।
यक्ष प्रश्नों में उलझ कर रह गई बूढी सदी
ये प्रतिक्षा की घडी है क्या हमारी प्यास की
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया
सेक्स की रंगीनियां या गोलियाँ सल्फास की
रूह क्या है जिस्म तक सब कुछ खुलासा देखिये
आप भी भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये
जो बदल सकती है दुनिया के मौसम का मिजाज़
उस युवा पीढ़ी के चहरे की हताशा देखिये ……
भई अपने तो ऐसे ही सही ,,,जादा बोल्ड होने की जरूरत ही नहीं वरना अपनी सभ्यता से ही बोल्ड हो जायेंगे ….