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अमेरिका के कुत्ते और दुनिया के गरीब
By फ़ुरसतिया on April 19, 2012
आज सबेरे-सबेरे टेलीविजन देख रहे थे। तीन खबरें याद रहीं।
1. अमेरिका में कुत्तों के लिये एक टेलीविजन चैनल खुला।
2. भारत में अग्नि-5 मिसाइल का परीक्षण आज होगा।
3. कानपुर में एक प्रिंसिपल पर जान लेवा हमला।
टीवी चैनल के बारे में बताया गया कि ये फ़ालतू की टीआरपी दौड़ के चक्कर में नहीं फ़ंसेगा। न ही इसमें विज्ञापन होंगे। पांच डालर का यह चैनल उन कुत्तों के मनोरंजन के लिये होगा जिनके मालिकों के पास उनकी देखभाल का समय नहीं है। वे दफ़्तर चले जायेंगे तो उनके कुत्ते अपना टीवी चैनल देखकर मजे करेंगे। इस खबर का लोग अपने-अपने हिसाब से विश्लेषण करेंगे। सबसे पहले तो यही लगा कि अमेरिका के कुत्तों की क्या ऐश है। या कहें कि अमेरिका में कुत्तों तक की ऐश है। क्या पता कोई चिढ़ा हुआ अमेरिकी कहे- अमेरिका में केवल कुत्तों की ही ऐश है। उनके मनोरंजन के लिये टीवी का भी इंतजाम है। पांच डालर मतलब अपने देश के पांच गरीबी रेखा वालों की दिहाड़ी( 30-32 रुपये बताई गयी थी न कुछ दिन पहले)।
हमें कोई अमेरिकी कुत्तों से जलन नहीं है। सबका अपना-अपना भाग्य है। भारत में भी ऐसे कुत्तों की कमी नहीं है। बस चैनल चालू होना है। होगा भी जल्दी ही। अमेरिकी फ़ैशन भारत आने में ज्यादा समय नहीं लेता। आ ही जायेगा जल्द ही। जब तक आयेगा तब तक लोग उसकी रिकार्डिंग से काम चलायेंगे। कुत्ता सबसे सम्माननीय पालतू जानवर माना जाता है। कुत्तों के बाद फ़िर बिल्लियों और दूसरे पालतू जानवरों का नम्बर आयेगा।
अग्नि-5 मिसाइल के बारे में बताया गया कि यह बहुत दूर तक मार कर सकती है। निशाना अचूक है। आप इसको बेफ़ालतू की ही बात मानेंगे लेकिन खुदा झूठ न बुलाये एक बार सोचा कि अपने यहां की तमाम चिरकुटैयां भी एक निशाना होंती। घपला/घोटाला, भुखमरी, करप्शन, गैरबराबरी और तमाम नीचतायें। उन पर दो चार मिसाइल छोड़ देते। कुछ तो कीमत वसूल होती इन मिसाइलों की।
कीमत वसूल होने की बात इसलिये कही कि दुनिया में सबसे ज्यादा पैसा हथियार बनाने पर खर्चा होता है। लेकिन सबसे कम उपयोग इनका ही होता है। कास्ट इफ़ेक्टिवनेस इंडेक्स के मामले में दुनिया के हथियार सबसे लचर साबित होंगे।
उधर नसरुद्दीन शाह जी टीवी पर बता रहे थे कि भारत में ’बहुत से लोगों’ को पीने के लिये साफ़ पानी भी नहीं मिलता। पानी बचेगा तो हम बचेगा।
अब भाई लोगों को पीने का साफ़ पानी न मिले न मिले लेकिन अग्नि मिसाइल तो मिल रही है। ’बहुत से लोग’ कोई अमेरिका के कुत्ते सरीखे भाग्यवान तो हैं नहीं जो उनके लिये विज्ञापन बनाने से ज्यादा परेशान हुआ जाये।
आखिरी खबर के बारे में बताया गया कि कानपुर में कुछ लोगों ने एक प्रिसिपल पर गोली चलाई। पहले गोली ड्राइवर को लगी। फ़िर प्रिंसिपल को। ड्राइवर मर भी गया। प्रिसिपल जिन्दा हैं।
खबर के शीर्षक में प्रिंसिपल पर हमले का जिक्र है। प्रिंसिपल घायल है लेकिन जिन्दा है। उस पर बाद में गोली लगी। ड्राइवर पर पहले गोली लगी और वह मारा भी गया। लेकिन खबर के शीर्षक से गायब है। शीर्षक में आने के लिये आदमी का प्रिसिंपल होना जरूरी है। ड्राइवर का मरना प्रिंसिपल के घायल होने के मुकाबले महत्वहीन है।
वैसे तो मनुष्य का जीवन अमूल्य होता है। जीवन का सम्मान किया जाना चाहिये। लेकिन भारत में (शायद अमेरिका में भी) करोड़ों लोग ऐसे होंगे जिन्होंने कुत्तों के लिये टीवी चैनल वाली खबर देखकर बिना कुछ सोचे कहा होगा- काश हम भी अमेरिका के कुत्ते होते।
बात बेवकूफ़ी ही है लेकिन मुझे ऐसा ही लग रहा है। आप पता नहीं क्या सोचें इस बारे में।
फ़ोटो फ़्लिकर से साभार।
अपडेट:
दो दिन पहले फ़ुरसतिया पर लिखे इस लेख को देखिये अखबार वालों किस बेदर्दी से अखबार में ठूंसा है। लेख के कई हिस्से मेले में भाई-बहनों की तरह बिछुड़ गये हैं। पहले अमित ने इसकी सूचना दी और बाद में ये फ़ोटो संतोष त्रिवेदी ने भेजी।
Posted in बस यूं ही | 54 Responses
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..गंगा की गुहार
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..पिता परिवार से दूर और छोटे बच्चे पर उसका प्रभाव
श्वानों को मिलता वस्त्र दूध,भूखे बालक अकुलाते हैं।
मां की हड्डी से चिपक ठिठुर,जाड़ों की रात बिताते हैं।
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..सरल क्वांटम भौतिकी: भौतिकी के अनसुलझे रहस्य
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..सरल क्वांटम भौतिकी: भौतिकी के अनसुलझे रहस्य
जो कुत्ते ब्लॉग को पढ़ समझ लेते हैं उन्होंने एक एक्शन ग्रुप बनाया है और आपकी फोटुयें मुफ्त में बांटी गयी हैं …
तनिक सावधान गुरु कही यह पंगा अधिक मंहगा न पड़ जाए !
चिंतित हूँ आपके लिए !
शुभकामनायें !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..हम विदा हो जाएँ तो …-सतीश सक्सेना
चिंतित न रहें। आप चिंतित रहेंगे तो भलमनसाहत संकट में आ जायेगी। शुभकामनाओं के लिये शुक्रिया।
अब तक तो यह समझाते समझाते थक गये होगे…थोड़ा बैठकर सुस्ता लो फिर शुरु हो जाना…कौन जल्दी है!!
समीर लाल “पुराने जमाने के टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..शान्ताराम-एक नज़र!!
फ़ुरसतिया की हालिया प्रविष्टी..अमेरिका के कुत्ते और दुनिया के गरीब
यहाँ पे कुत्ते खुले बैठते हैं कारों में, इंसान को सीट बेल्ट लगा के बैठना होता है ..
एक और बात है , सारे गोरी कन्यायें कुत्ते बिल्लियों को ऐसे प्यार भरी नज़रों से देखती हैं , जलन कई गुना बढ़ जाती है
फोटो बड़ी जानदार है !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..सखी वे मुझसे लड़ के जाते…
बाकी किसी के भाग्य से जलन नहीं करनी चाहिये। न जी छोटा करना चाहिये जैसा कि महाभारत कथा में बताया गया है ( http://hindini.com/fursatiya/archives/317 )-” किसी दूसरे सेवक से ईर्ष्या न करे.हो सकता ,राजा सुयोग्य व्यक्तियों को छोडकर निरे मूर्खों को ऊंचे पद पर नियुक्त करे. इससे जी छोटा न करना चाहिये.उनसे खूब चौकन्ना रहना चाहिये.”
वैसे ऊपर वाली बात ज्यादा गंभीर हो गई. एक मजेदार बात. कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा कि अपने कुत्तों के लिए सनग्लासेज़ कहाँ से खरीदें? हम बड़े दुखी हुए और अपनी ‘गोली’ से बोले ‘प्यारी बेटू, हम तुम्हारे लिए सनग्लासेज़ तो नहीं खरीद सकते (अपने ही लिए बड़ी मुश्किल से खरीद पाए हैं) लेकिन, हम वादा करते हैं कि तुमको सन में ही नहीं ले जायेंगे ना बाहर निकलोगी, ना धूप लगेगी :)’
aradhana की हालिया प्रविष्टी..क्योंकि हर एक दोस्त – – – होता है
….और के बारे में तो पता नहीं लेकिन इस बार में दावे से कह सकता हूँ कि यह बात बेवकूफी वाली नहीं, कलेजा चीरने वाली लगती है। पता नहीं आप क्या सोचें मेरी बुद्धि के बारे में !
आप के लेख को पढ़ के मुझको भी अपनी पुराणी कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आगे ……
कुछ कुत्ते एसी में सोते हैं, कुछ बच्चे भूखे रोते हैं
कुछ चलते नित हैं गाडी पर, कुछ नंगे पैर पहाड़ी पर
कुछ महिलाएं मजदूरी करती हैं ,कुछ ब्यूटीपार्लर में सवारती हैं
कुछ महिलाएं दर दर भटक रहीं ,कुछ बच्चे रोते चिल्लाते
कुछको पीने को दूध नहीं कुछ पेप्सी कोला पीने को पाते
सब किस्मत और भारतीय व्यवस्था का खेल हैं …..तभी ये सारी समस्याएं जिनपर आपने तीक्ष्ण व्यंग किया है चरित्रार्थ हैं …….
satyavrat shukla की हालिया प्रविष्टी..अब क्रांति का नाद करो
अग्नि का प्रक्षेपण भी लगता है,फालतूये का है,उसका कौनो यूज़ हमरे नेता बिना अमेरिकी कुत्तों से तस्दीक कराये,दागेंगे नहीं !
…कुत्तों की सुविधा का ख़ास ध्यान रखते हुए अमेरिकन एयरपोर्ट पर ही कपडे उतार लिए जाते हैं,ताकि उन्हें नोचने-खरोचने में कौनो तकलीफ न हो,सीधे मांस का लोथड़ा उनके हलक में जाए !
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..तुम आओ तो आ जाओ !
अग्नि जैसे हथियारों का प्रयोग केवल हवा-पानी दिखाने के लिये किया जाता है।
बाकी अगर बहुत चिन्ता है कपड़े उतरने की तो जाते काहे हैं उधर बार-बार।
का दिल करता है के ……………’काश अपन भी अमेरिकी …….. होते’……………
‘और आपके कॉस्ट एफ्फेक्टिवेनेस इंडेक्स से अपन १००% सहमत हैं……….रात भी टीवी पे कुछ वैज्ञानिक पेनेलिस्ट इसको लेकर गर्दा उरा रहे थे……………..
कभी सुना था ‘हाथी बैठा भी हो तो कुत्ते से बरा होता है’……….तो जाहिर है के प्रिंसिपल के घायल होना महत्वपूर्ण है बनस्पति ड्राईवर के मर जाने के………………
टिपण्णी में पुरने पोस्ट का लिंक देने के लिए अतरिक्त आभार……….
प्रणाम.
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..प्रलय तो भारत ही में होगी …थोड़ा सा इंतजार करें….
काश आपने यह लेख लिखने से पहले कुछ रीसर्च और की होती तो लेख मौजिया/व्यंगिया होने के साथ साथ जानकारीप्रद भी होता.
यहां तो आम तौर पर ही पालतू पशुओं के लिये बढिया सुविधाओं वाले होटेल बने हुए हैं .. जब व्यक्ति किसी काम से शहर से बाहर जाता है तो उनकी अनुपस्थिती में उनके पशु होटल में रहते हैं.उसी तरह से कुत्तों के पार्लर या ट्रिमिंग सेंटर भी बहुत आम हैं और अमूमन हर पेट स्टोर में हैं. कुत्तों के होटेल का विडियो टूर भी ले लीजिये इस साईट से – http://petshotel.petsmart.com/
पालतू पशुओं पर अमरीकी २००७ की एक रिपोर्ट के अनुसार ४१ बिलियन खर्च करते थे हर साल -जी हाँ! यह आँकडा २०११ में ४८ बिलियन को पार कर गया था. http://articles.businessinsider.com/2012-01-03/news/30583431_1_vet-care-dental-care-pet-food
DogTv.com – कुत्तों का चैनल पहले केलिफ़ोर्निया में लांच हुआ था और वहां सफ़ल होने के बाद देश भर में हुआ.
इधर आप पांच डालर महीना के चैनल की खबर पर हैरान हो रहे हो उधर मेरी पत्नि के दफ़्तर का एक बंदा अपने बच्चे पैदा करने से पहले दो पिल्ले पाल कर टेस्टिंग कर रहा है कि बच्चे पैदा करना सही आईडिया रहेगा की नही! दुनिया रंग बिरंगी रे बाबा दुनिया रंग बिरंगी .. गरीब सोये नंगा, अमीरी नाचे नंगी
eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
aradhana की हालिया प्रविष्टी..क्योंकि हर एक दोस्त – – – होता है
अगले जनम मोहे श्वान ही कीजो, वो भी अमेरिका में!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..तीन दशक और वह, जो शेष है!
dhiru singh की हालिया प्रविष्टी..कैसी कही
ड्राइवर का मरना वो वजन नहीं पैदा कर सकता मीडिया वालों के लिए जो शीर्षक में प्रिंसिपल कर सकता है| मैंने भी अखबार की ऐसी ही एक खबर से एक पोस्ट बनाई थी – http://mosamkaun.blogspot.in/2010/04/blog-post_05.html
आपका लेख बांचा! चकाचक लगा।
पोपत्चंद कह गए पोपटी से ऐसा कलयुग आएगा सोयेगा कुत्ता ऐसी में मानुष शोर मचाएगा |
धन्यवाद |