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गुंडा पहचानने के फ़ायदे
By फ़ुरसतिया on April 9, 2012
कल खबर आई कि अमेरिकाजी ने हाफ़िज भाई पर पचास करोड़ का इनाम घोषित कर दिया।
आगे कुछ कहने के पहले साफ़ कर दें आतंकवादी हाफ़िज भाई को हाफ़िज भाई इसलिये लिखा कि अपने पाकिस्तान में गुंडो/आतंकवादियों को भी भाई कहने का रिवाज है। वैसे साझा संस्कृति के चलते यह परंपरा अपने यहां भी है। अपने यहां परंपरा से ज्यादा यह दूरंदेशी के चलते भी होता है जैसा कि पॉपुलर मेरठी साहब ने लिखा भी है-
हां तो जब खबर आई तो लगा कि अपन को फ़िर करोड़ों का चूना लग गया। अब आप पूछोगे कि लाख रुपये की औकात नहीं, करोड़ों का चूना कैसे?
हुआ कुछ ऐसा कि जैसे ही अमेरिकाजी ने हाफ़िज भाई पर पचास करोड़ का इनाम घोषित किया वैसे ही अपन को लगा कि अगर अपन पहले ही एक करोड़ का इनाम उन पर घोषित किये होते तो उनचास करोड़ का फ़ायदा हो जाता। हाफ़िज भाई को जो पकड़ के लाता उससे कहते जरा एक मिनट ठहरो। उधर अमेरिकन एम्बेसी में जाकर उनको हाफ़िज भाई को थमाकर पचास करोड़ रुपये वसूल लेते। एक करोड़ रुपये पकड़कर लाने वाले को थमा देते। उनचास करोड़ पर जो इनकम टैक्स बनता वो कटवा के साल के आखिर में रिटर्न दाखिल कर देते। बाद में कौन बनेगा करोड़पति के विजेताओं की तरह इंटरव्यू देते हुये बताते कि अपन ऐसे बने करोड़पति।
आज नहीं तो देखियेगा कल यह धन्धा बहुत चलन में आयेगा। लोग उभरते हुये गुंडों पर इनाम घोषित करेंगे। बाद में जब उनपर बड़ा इनाम घोषित होगा तो दोनों के अंतर के बराबर पैसे कमाकर मालामाल हो जायेंगे। जितनी जल्दी लोग गुंडों की काबिलियत पहचान लेंगे उतना ही उनके मालामाल होने की गुंजाइश बढेगी। जिस तरह आज शेयर पर पैसा लगाने वाले ढेर सलाहकारों की भीड़ रहती है वैसे ही आने वाले समय में गुडों के एक्सपर्ट होने लगेंगे। वे आपको बतायेंगे –इस गुंड़े पर पैसे लगा दो भाई। उभरता हुआ गुंडा है। दो साल में पैसे वसूल हो जायेंगे।
ताज्जुब नहीं कि बैंके हाउस बिल्डिंग एडवांस की तरह गुंडा आइडेंटीफ़िकेशन एडवांस भी देने लगें।
अब आप कहोगे कि भाई जब इनाम ही घोषित हुआ तो लोग आपको क्यों गुंडा सौंपेगे। वे बड़ी रकम वाले को ही गुंड़ा सौंपेगे। उससे पैसे कमायेंगे। तो अपन का कहना है कि जब इस मामले में नियम बनेंगे तो अपन यह व्यवस्था देंगे कि गुंडों के मामले में सीनियारिटी का ख्याल रखा जायेगा। पकड़े जाने पर गुंडे पर पहला हक उसका होगा जो पहले उस पर इनाम घोषित करेगा।
क्या पता कि आगे चलकर गुंड़ों बदमाशों पर इनाम की घोषणाओं के पेटेण्ट होने लगें। पहली घोषणा करने वाले को बाद की घोषणा वालों से रायल्टी मिले। तमाम देशों में सेना के रिटायर्ड आफ़ीसर हथियार विक्रेताओं के बिक्री सलाहकार बन जाते हैं। वैसे ही हो सकता है कि गुंडे लोग कुछ दिन गुंडागीरी करने के बाद राजनीति में जाने के लिये हुड़कने की बजाय गुंडा पहचानने का अपना काम शुरु कर दें। कुल मिलाकर मामला समाज के हित में रहेगा। साल भर में दस-पांच गुंडे पहचान लिये बस काम बन गया। खाली समय में उपदेश वगैरह देकर टाइम पास कर सकता है अगला।
आपको लगता होगा कि यह सब बेवकूफ़ी की बातें हैं। हम आपकी बात से इंकार कहां कर रहे हैं। बल्कि हम तो खुदै कह रहे हैं कि यह बात परम बेवकूफ़ी की है कि लेकिन हमें फ़िर भी पता नहीं क्यों यह लग रहा है कि अपन को एक ठो गुंडा पहचान दल बनाना चाहिये। गुंडागीरी जब समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त है तो उसकी अपन को उपेक्षा नहीं बल्कि इज्जत करनी चाहिये। उसके बारे में गंभीरता से शोध करना चाहिये।
गुंडागीरी वैसे भी अब उतना खतरनाक धंधा नहीं रहा। पहले डर था गुंडों को कि पकड़े गये तो जिंदगी भर के लिये जेल में सड़ना पड़ेगा। अब तो गुंडों को यह सुविधा हो गयी है कि पकड़े जाओ तो एकाध वी.आई.पी. लोगों का अपहरण करके बंधक बना लो और फ़िरौती के रूप में अपने सब साथियों को छुड़ा लो। दल में एक भी कायदे का गुंडा हुआ तो पूरा दल जेल से बाहर हो सकता है। जेल पिकनिक टाइप हो गयी है।
और भी तमाम बातें सोची थी कहने को लेकिन दिमाग उनचास करोड़ के नुकसान के बारे में सोच-सोचकर हलकान है। इसलिये आगे फ़िर कभी।
एक दिन ऐसे ही नये लड़के ने मजाक-मजाक में उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। दोनों कमरे में गये। लड़के ने जैसे ही लड़की को छुआ वह बेहोश हो गयी। उसको फ़ौरन अस्पताल ले जाया गया।
बाद में पता चला कि वह लड़की चिर कुंआरी थी।
चित्र फ़्लिकर से साभार।
आगे कुछ कहने के पहले साफ़ कर दें आतंकवादी हाफ़िज भाई को हाफ़िज भाई इसलिये लिखा कि अपने पाकिस्तान में गुंडो/आतंकवादियों को भी भाई कहने का रिवाज है। वैसे साझा संस्कृति के चलते यह परंपरा अपने यहां भी है। अपने यहां परंपरा से ज्यादा यह दूरंदेशी के चलते भी होता है जैसा कि पॉपुलर मेरठी साहब ने लिखा भी है-
मवालियों को न देखा करो हिकारत सेरही बात अमेरिकाजी की तो उनको अपन अमेरिकाजी इसलिये कहते हैं कि उनके लिये अपन के मन में काफ़ी इज्जत है। वे पूरी दुनिया में लोकतंत्र की हिफ़ाजत इस तरह करते हैं जैसे कोई बड़ा भाई अपनी छोटी बहन की रक्षा मोहल्ले के लफ़ंगों से करता है। अब यह अलग बात है कि बड़े भाई की पाबंदियों से आजिज आकर कभी-कभी बहन सोचती है कि इस भाई से अच्छे तो वे लफ़ंगे हैं जो उसको इंसान तो समझते हैं।
न जाने कौन सा गुंडा वजीर हो जाए
हां तो जब खबर आई तो लगा कि अपन को फ़िर करोड़ों का चूना लग गया। अब आप पूछोगे कि लाख रुपये की औकात नहीं, करोड़ों का चूना कैसे?
हुआ कुछ ऐसा कि जैसे ही अमेरिकाजी ने हाफ़िज भाई पर पचास करोड़ का इनाम घोषित किया वैसे ही अपन को लगा कि अगर अपन पहले ही एक करोड़ का इनाम उन पर घोषित किये होते तो उनचास करोड़ का फ़ायदा हो जाता। हाफ़िज भाई को जो पकड़ के लाता उससे कहते जरा एक मिनट ठहरो। उधर अमेरिकन एम्बेसी में जाकर उनको हाफ़िज भाई को थमाकर पचास करोड़ रुपये वसूल लेते। एक करोड़ रुपये पकड़कर लाने वाले को थमा देते। उनचास करोड़ पर जो इनकम टैक्स बनता वो कटवा के साल के आखिर में रिटर्न दाखिल कर देते। बाद में कौन बनेगा करोड़पति के विजेताओं की तरह इंटरव्यू देते हुये बताते कि अपन ऐसे बने करोड़पति।
आज नहीं तो देखियेगा कल यह धन्धा बहुत चलन में आयेगा। लोग उभरते हुये गुंडों पर इनाम घोषित करेंगे। बाद में जब उनपर बड़ा इनाम घोषित होगा तो दोनों के अंतर के बराबर पैसे कमाकर मालामाल हो जायेंगे। जितनी जल्दी लोग गुंडों की काबिलियत पहचान लेंगे उतना ही उनके मालामाल होने की गुंजाइश बढेगी। जिस तरह आज शेयर पर पैसा लगाने वाले ढेर सलाहकारों की भीड़ रहती है वैसे ही आने वाले समय में गुडों के एक्सपर्ट होने लगेंगे। वे आपको बतायेंगे –इस गुंड़े पर पैसे लगा दो भाई। उभरता हुआ गुंडा है। दो साल में पैसे वसूल हो जायेंगे।
ताज्जुब नहीं कि बैंके हाउस बिल्डिंग एडवांस की तरह गुंडा आइडेंटीफ़िकेशन एडवांस भी देने लगें।
अब आप कहोगे कि भाई जब इनाम ही घोषित हुआ तो लोग आपको क्यों गुंडा सौंपेगे। वे बड़ी रकम वाले को ही गुंड़ा सौंपेगे। उससे पैसे कमायेंगे। तो अपन का कहना है कि जब इस मामले में नियम बनेंगे तो अपन यह व्यवस्था देंगे कि गुंडों के मामले में सीनियारिटी का ख्याल रखा जायेगा। पकड़े जाने पर गुंडे पर पहला हक उसका होगा जो पहले उस पर इनाम घोषित करेगा।
क्या पता कि आगे चलकर गुंड़ों बदमाशों पर इनाम की घोषणाओं के पेटेण्ट होने लगें। पहली घोषणा करने वाले को बाद की घोषणा वालों से रायल्टी मिले। तमाम देशों में सेना के रिटायर्ड आफ़ीसर हथियार विक्रेताओं के बिक्री सलाहकार बन जाते हैं। वैसे ही हो सकता है कि गुंडे लोग कुछ दिन गुंडागीरी करने के बाद राजनीति में जाने के लिये हुड़कने की बजाय गुंडा पहचानने का अपना काम शुरु कर दें। कुल मिलाकर मामला समाज के हित में रहेगा। साल भर में दस-पांच गुंडे पहचान लिये बस काम बन गया। खाली समय में उपदेश वगैरह देकर टाइम पास कर सकता है अगला।
आपको लगता होगा कि यह सब बेवकूफ़ी की बातें हैं। हम आपकी बात से इंकार कहां कर रहे हैं। बल्कि हम तो खुदै कह रहे हैं कि यह बात परम बेवकूफ़ी की है कि लेकिन हमें फ़िर भी पता नहीं क्यों यह लग रहा है कि अपन को एक ठो गुंडा पहचान दल बनाना चाहिये। गुंडागीरी जब समाज के हर क्षेत्र में व्याप्त है तो उसकी अपन को उपेक्षा नहीं बल्कि इज्जत करनी चाहिये। उसके बारे में गंभीरता से शोध करना चाहिये।
गुंडागीरी वैसे भी अब उतना खतरनाक धंधा नहीं रहा। पहले डर था गुंडों को कि पकड़े गये तो जिंदगी भर के लिये जेल में सड़ना पड़ेगा। अब तो गुंडों को यह सुविधा हो गयी है कि पकड़े जाओ तो एकाध वी.आई.पी. लोगों का अपहरण करके बंधक बना लो और फ़िरौती के रूप में अपने सब साथियों को छुड़ा लो। दल में एक भी कायदे का गुंडा हुआ तो पूरा दल जेल से बाहर हो सकता है। जेल पिकनिक टाइप हो गयी है।
और भी तमाम बातें सोची थी कहने को लेकिन दिमाग उनचास करोड़ के नुकसान के बारे में सोच-सोचकर हलकान है। इसलिये आगे फ़िर कभी।
…चलते-चलते
गुंडों को भी अपनी पब्लिसिटी की जरूरत होती है। जैसे गब्बर भाई खुद कहा करते थे -पचास-पचास कोस दूर जब कोई बच्चा रोता है तो मां कहती है सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जायेगा। इसी तरह उदीयमान गुंडे भी अपने बारे में खुद कहानियां गढ़ते सुनाते हैं। इसी पर बात करते हुये एक दोस्त ने खुशवंत सिंह की एक कहानी के बारे में सुनाया जिसमें एक लड़की अपनी यौन सक्रियता के बारे में डींगे हांका करती थी कि उसको कोई मर्द संतुष्ट नहीं कर सकता। जो मिला उससे पराजित होकर लौटा। लड़की मर्दों के बीच आतंक के रूप में कुख्यात हो गयी थी। भले मर्द उससे बचते कि कहीं उनकी मर्दानगी भी ने टेस्ट हो जाये।एक दिन ऐसे ही नये लड़के ने मजाक-मजाक में उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। दोनों कमरे में गये। लड़के ने जैसे ही लड़की को छुआ वह बेहोश हो गयी। उसको फ़ौरन अस्पताल ले जाया गया।
बाद में पता चला कि वह लड़की चिर कुंआरी थी।
चित्र फ़्लिकर से साभार।
Posted in बस यूं ही | 36 Responses
गुंडई के फायदे तो साफ़ दिख रहे हैं !
…जिस तरह लड़की टेस्टिंग में चिर-कुंन्वारी निकली, हो सकता है कोई चिर-गुंडा निकले
प्रणाम.
वैसे हाफ़िज भाई को भाई कहने में कोई आपत्ति नहीं है जैसे गँडे को भी भाई कहकर सम्मानित किया जाता है वैसे ही उनको भी सही।
परंतु हाँ उनचास करोड़ के नुक्सान की भरपाई कौन करेगा, अपने यहाँ एक से एक फ़न्ने खाँ हैं उनसे ये भूल कैसे हो गई।
ऐसी चिर यौवनाओं जैसे चिर गुँडई हमने काफ़ी देखी है। एक बार मार करते हैं और जिंदगी भर गान करके अपनी रोजी रोटी चलाते हैं, और वह गुँडा प्राचीनकालीन गुँडों में गिना जाने लगता है। परंतु किसी को उसका महात्म्य पता नहीं होता ।
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..सरकार का मौत का धंधा Cigarette in my hand
जिस वर्ष विनोबा जी ने जबलपुर को “संस्कारधानी” कहा था उसी साल पंडित जी (नेहरु जी) इसे “गुंडों का शहर” बोल गए थे
ये बात अलग है की यहाँ के गुंडे खुशवंत जी की नायिका जैसे ही है .हा हा हा …
आशीष श्रीवास्तव
संस्कारधानी तो स्टेशन में ही लिखा हुआ – गर्व करिये कि आप संस्कार धानी में प्रवेश कर रहे हैं। पढ़ते ही शरम आ गयी यह सोचकर कि क्या अपन संस्कारहीन जगह से आये हैं।
यहां के गुंडे खुशवंतसिंह की नायिका जैसे हैं आपकी इस बात खंडन हम नहीं कर सकते। आप मूलत: जबलपुर के हैं तो आपकी बात मान लेते हैं।
सेबी को इस टाइप कि ट्रेडिंग के रूल बनाने पड़ेंगे:
१. किसी भी गुंडे का एक मिनिमम गारंटी प्राइस होगा, उससे कम उसपे इनाम नहीं रखा जा सकता|
२. “गुंडई” की रेटिंग जारी की जायेंगी | जिसकी कई संस्थाएं बनेंगी…
३. “गुंडई” के केस में “शोर्ट-सेलिंग” अलाउड नहीं होगी|
४. बिका हुआ माल ना तो वापस लिया जायेगा ना ही बदला जायेगा…
“गुंडा-ताड़ने” पे पुस्तकें लिखी जाएँगी…कई तरह के टेस्ट रेकमेंड किये जायेंगे
इस तरह काफी लोगो के रोज़गार का जुगाड़ करवा दिया आपने…
आपकी ये पोस्ट समाज सुधारने पे तुली हुई है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..पोस्ट के बदले पोस्ट!!!
http://agadambagadamswaha.blogspot.com/2012/04/blog-post_13.html
अब देखते हैं हो भी हो !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..भईया हम तो तगड़ा गुंडा बनिहों!!!
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी वाले और क्लाउट
अपनी मित्र की फटकार के बाद नेट का इस्तेमाल शुरू किया है. बहुत कुछ जानती नहीं सो जो वो कह देती है, या भेज देती है वो हम पढ़ लेते हैं. नेट पर हिंदी लिखना हमें आता नहीं, लेकिन आपके कमेन्ट के बक्से में अपने आप हिंदी आ रही है . आप बहुत अच्छा लिखते हैं.
आपकी मित्र बड़ी अच्छी हैं जो आपको घेर-घारकर /फ़टकार कर नेट तक ले आयीं। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने हमारी पोस्ट पढ़ी और पसन्द की।
कमेंट बक्से की हिन्दी तो हमारे ई-स्वामी जी की मेहरबानी है जो इस साइट का सारा तकनीकी ताम-झाम देखते हैं। उन्होंने ही सबसे पहले ब्लाग पर कमेंट बक्से में हिंदी लिखने का जुगाड़ किया था। आप भी अपना ब्लाग बनाकर लिखना शुरु करें।
शुभकामनायें !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..हम लोग – सतीश सक्सेना
रवि की हालिया प्रविष्टी..124 आसपास बिखरी हुई शानदार कहानियाँ – Stories from here and there
जय हो!!
सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..मेरा साया!!
‘जैसे कोई बड़ा भाई अपनी छोटी बहन की रक्षा मोहल्ले के लफ़ंगों से करता है।”
मुझे लगता है छोटा भाई बड़ी बहन के लिए भी ऐसा निःस्वार्थ त्याग करता है …..
एक चिर कुंवारा भी ब्लॉग जगत में नरक मचाये हुए हैं उसे भी किसी ऐसी से मिलवा दो न भाई -वह उस श्रेणी में भी खुद को घोषित करता रहता है जिस पर आपकी यह पूरी पोस्ट ही है ….कुछ करो भाई इसके पहले कि जख्म नासूर बन जाए …. वैसे मेरी नज़र में उसके लिए एक स्पेशल काउंटर पार्ट है
जहां तक काउंटर पार्ट की बात है तो मुझे शेन वार्न की याद आती है कि उसको सपने में भी सचिन की तुड़ैया आक्रांत करती है वैसे ई लगता आप भी स्पेशल काउंटर पार्ट को खोजते रहते हैं। क्या आपको भी उनकी ब्लाग धुनाई आक्रांत करती है?
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..निर्मल बाबा: एक नजरिया यह भी !
http://www.jagran.com/news/world-us-did-not-announce-bounty-on-saeeds-head-9197637.html
कहीं आपकी पोस्ट का तो असर नहीं हो गया
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..सखी वे मुझसे लड़ के जाते…
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..अच्छा-बुरा !