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कल सुबह-सुबह उठे तो पाया कि मोबाइल में दो-तीन मित्रता दिवस के संदेशे फ़ड़फ़ड़ा रहे थे।
देख-दाख के दोस्तों को सेम टु यू किया। एक का संदेशा दूसरे को अपने नाम से भेज दिया।
इस के बाद कई दोस्तों को फ़ोनियाया! हाल-चाल लिये-दिये। किसी को मित्रता-दिवस मुबारक बोला। किसी को नहीं। कुल जमा दस-बारह दोस्तो से दोस्ती इधर-उधर कर ली।
शाम को कुछ समझ में नहीं आया तो पत्नी-बच्चों से भी दोस्ती निपटा ली। उधर से भी पलटवार हो गये। लगा जैसे सब लोग भरे बैठे हैं। जहां आपने दोस्ती का नहला फ़ेंका उधर से दहला आ गया!
फ़ेसबुक पर तमाम दोस्ती के किस्से देखे। पूरे फ़ेसबुक पर दोस्ती छितराई हुई थी। कई ने बड़ी ऊंची-उंची बातें लिखीं थीं। वे उस समय बहुत धांसू लगीं लेकिन इस समय कोई याद नहीं आ रहीं। हमने सबको लाइक करके छोड़ दिया। जिनको कल लाइक नहीं किया उनको आज कर लें-समय बिताने के लिये करना है कुछ काम।
वैसे याद आने को यह भी याद नहीं आ रहा कि दोस्तों ने ’हैप्पी फ़्रेंड शिप’ डे के पहले अपन को क्या लिखा था।
अपन ने उनको क्या लिखा यह तो और याद नहीं आ रहा। याद करके कोई फ़ार्मेलिटी थोड़ी करनी है।
ये दोस्ती भी बड़ी विकट चीज है। हमारे कई बेहद अजीज दोस्त जिनके साथ ऐसा समय बीता कि हमेशा साथ रहते थे अब भी दोस्त हैं। वे अब भी बहुत प्रिय हैं। आपस में अंतरंग और पारिवारिक संबंध हैं। फ़ेसबुक पर भी साथ हैं। लेकिन उनसे बात करने की इच्छा नहीं होती। आनलाइन तो बिल्कुल्लै नहीं। जब मन हुड़कता है फ़ोनिया लेते हैं। फ़ोन और नेट ने यह तसल्ली दी है कि जब भी मन होगा बतिया लेंगे।
ये मित्र शुभकामना संदेशों से परे के मित्र हैं। जन्मदिन, उपलब्धि पर
बधाई का अदान-प्रदान हुआ तो अच्छा न हुआ तो और अच्छा। कभी भी रेगुलराइज कर
लेंगे। ससुरा कोई इनकम टैक्स का रिटर्न थोड़ी है जो तारीख निकल गयी तो
पेनाल्टी पड़ेगी। यह भरोसा है कि कुछ भी हो जाये यहां दोस्ती का खोमचा महफ़ूज
है! ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे का गाना भले न गाया जाये
लेकिन ऐसा लगता है कि सबंध बिजली के स्विच की तरह हैं जब जुड़ेंगे करेंट
बहने लगेगी। यहां ग्रिड कभी फ़ेल नहीं होता।
हमको याद है कि एक बार हमारे एक दोस्त ने हमको चिट्ठी चिट्ठी लिखी कि हम तुमको बहुत याद करते हैं। हमने पलट के लिखा- त का कोई एहसान करते हो। हमारा साझा समय ऐसा बीता कि याद आती होगी उसकी। कोई प्लान बना के थोड़ी याद करते होगे ये बात पचीस साल से भी ज्यादा पुरानी है। शायद दोस्त को याद भी न हो। हम संगीत का ककहरा तक नहीं जानते। मेरा वह मित्र पक्का शास्त्रीय गायक है। जब भी कानपुर में कोई कार्य्रक्रम होता है वह हमको फोन करता है। हम सुनने जाते हैं उसका गायन भले ही कुछ पल्ले न पड़े। ये दोस्ती ससुरी जो न कराये।
कुछ लोग दोस्तों के बारे में उपभोक्तावाद घराने के विचार रखते हैं। मानते हैं कि दोस्त वो जो समय पर काम आये। तुलसीदास जी भी लिखे हैं :
इसी मसले पर तमंचा तिहाड़वी लिखते हैं:
शर्तें लगाई नहीं जाती दोस्तों के साथ
By फ़ुरसतिया on August 6, 2012
देख-दाख के दोस्तों को सेम टु यू किया। एक का संदेशा दूसरे को अपने नाम से भेज दिया।
इस के बाद कई दोस्तों को फ़ोनियाया! हाल-चाल लिये-दिये। किसी को मित्रता-दिवस मुबारक बोला। किसी को नहीं। कुल जमा दस-बारह दोस्तो से दोस्ती इधर-उधर कर ली।
शाम को कुछ समझ में नहीं आया तो पत्नी-बच्चों से भी दोस्ती निपटा ली। उधर से भी पलटवार हो गये। लगा जैसे सब लोग भरे बैठे हैं। जहां आपने दोस्ती का नहला फ़ेंका उधर से दहला आ गया!
फ़ेसबुक पर तमाम दोस्ती के किस्से देखे। पूरे फ़ेसबुक पर दोस्ती छितराई हुई थी। कई ने बड़ी ऊंची-उंची बातें लिखीं थीं। वे उस समय बहुत धांसू लगीं लेकिन इस समय कोई याद नहीं आ रहीं। हमने सबको लाइक करके छोड़ दिया। जिनको कल लाइक नहीं किया उनको आज कर लें-समय बिताने के लिये करना है कुछ काम।
वैसे याद आने को यह भी याद नहीं आ रहा कि दोस्तों ने ’हैप्पी फ़्रेंड शिप’ डे के पहले अपन को क्या लिखा था।
अपन ने उनको क्या लिखा यह तो और याद नहीं आ रहा। याद करके कोई फ़ार्मेलिटी थोड़ी करनी है।
ये दोस्ती भी बड़ी विकट चीज है। हमारे कई बेहद अजीज दोस्त जिनके साथ ऐसा समय बीता कि हमेशा साथ रहते थे अब भी दोस्त हैं। वे अब भी बहुत प्रिय हैं। आपस में अंतरंग और पारिवारिक संबंध हैं। फ़ेसबुक पर भी साथ हैं। लेकिन उनसे बात करने की इच्छा नहीं होती। आनलाइन तो बिल्कुल्लै नहीं। जब मन हुड़कता है फ़ोनिया लेते हैं। फ़ोन और नेट ने यह तसल्ली दी है कि जब भी मन होगा बतिया लेंगे।
हमको याद है कि एक बार हमारे एक दोस्त ने हमको चिट्ठी चिट्ठी लिखी कि हम तुमको बहुत याद करते हैं। हमने पलट के लिखा- त का कोई एहसान करते हो। हमारा साझा समय ऐसा बीता कि याद आती होगी उसकी। कोई प्लान बना के थोड़ी याद करते होगे ये बात पचीस साल से भी ज्यादा पुरानी है। शायद दोस्त को याद भी न हो। हम संगीत का ककहरा तक नहीं जानते। मेरा वह मित्र पक्का शास्त्रीय गायक है। जब भी कानपुर में कोई कार्य्रक्रम होता है वह हमको फोन करता है। हम सुनने जाते हैं उसका गायन भले ही कुछ पल्ले न पड़े। ये दोस्ती ससुरी जो न कराये।
कुछ लोग दोस्तों के बारे में उपभोक्तावाद घराने के विचार रखते हैं। मानते हैं कि दोस्त वो जो समय पर काम आये। तुलसीदास जी भी लिखे हैं :
धीरज, धरम, मित्र अरु नारी,मतलब दोस्ती की कापियां तब जंचती हैं जब आप पर विपत्ति आई हो। ये स्वार्थी नजरिया है। पता नहीं मित्र कौन मुसीबत में फ़ंसा हो कि उसे हवा ही न लगे कि आप विपत्ति मोड में चल रहे हो। क्या पता उसको मौका ही न मिले कि वो आपके काम आ सके। या हो सकता है कि आपकी विपत्ति में सहयोग करना उसकी औकात के बाहर की बात हो। इस मामले में वसीम बरेलवी साहब बड़े समझदार हैं। वे लिखते हैं:
आपत काल परखिये चारी।
शर्तें लगाई नहीं जाती दोस्तों के साथ,लब्बो और लुआब दोनों यह कि भाई जैसे हैं वैसे निभाओ। सुधरने के लिये जान न खाओ।
कीजै मुझे कुबुल मेरी हर कमी के साथ।
इसी मसले पर तमंचा तिहाड़वी लिखते हैं:
- जिंदगी कटेगी चैन से, कोई मुरीद ना रखें
हां, अपने आंसुओं का कोई चश्मदीद ना रखें! - और दोस्ती जो चाहें, चले ताउम्र तो
दोस्तों से कोई भी उम्मीद ना रखें।
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
एक श्लोक और लिख देने का मन है
एक नसीहत दे रहा हूँ दोस्ती मे मानना
हाथ कंधे पर ही रखना जेब मे मत डालना
Padm Singh पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..गज़ल
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..खबर बहादुर
दोस्त लोग सब होते ही शानदार हैं!!!!
हमारे कई दोस्तों का कहना है कि “कसम से यार अगर तुम दोस्त न होते तो तुम्हारा गिटार बजाना न झेल पाते हम लोग”
जो बचपन वाली दोस्ती है उसमें फ्रेंडशिप दे, सौरी, थेंक्यू कहाँ होता है…. तमंचा तिहाड़वी का लास्ट वाला शेर उनके नाम जैसा ही ज़ोरदार है..
सतीश चंद्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..अन्ना आंदोलन के मायने
…कल का दिन ज़रूर हमारे लिए ख़ास बन गया,जब एक दोस्त को मजबूरी में दुश्मन बनाना पड़ा क्योंकि उसने सामान्य शिष्टाचार भी त्याग दिया था,अपने अहं की खातिर !
…यह बिलकुल दुरुस्त बात है कि कोई भी दोस्त हमें हमारी कमी के साथ स्वीकारे,पर यदि ईमान में खोट हो तो फिर कैसी दोस्ती ?
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..संयुक्त-राष्ट्र चले जाओ जी !
दोस्तों से कोई भी उम्मीद ना रखें।
इसीलिए तो हमारी दोस्ती चल रही है चकाचक और आगे भी अनंत काल तक चलेगी चकाचक
रवि की हालिया प्रविष्टी..ईमानदारों की सरकार
aradhana की हालिया प्रविष्टी..स्मृति-कलश
कीजै मुझे कुबुल मेरी हर कमी के साथ।
बहुत सही
कोलेज के ज़माने में एक शेर’ दोस्ती के नाम पे तकिया-कलाम के तरह कुछ ऐसे चिपका रहा….
“यारों को पालना तवायफों का काम है…….
मर्द के लिए एक-आध दोस्त ही काफी होते हैं…”
@ और दोस्ती जो चाहें, चले ताउम्र तो
दोस्तों से कोई भी उम्मीद ना रखें।……………जे सच्ची बात है……………
प्रणाम.
पश्चिमी समाज की यह स्थिति त्रासद है कि लोग अजनबी को देख कर मुस्कुराते तो हैं पर बात करने की अपेक्षा किसी को नहीं होती. संभवत: यही कारण है कि उन्हें फ़ेंडशिप डे और सोशल गैदरिंग की दरकार रहती है.
राहुल सिंह की हालिया प्रविष्टी..शुक-लोचन
:)))))))..हा हा हा! आप की हालत कैसी रही होती होगी ,उस समय के दौरान सोच कर ही हँसी छूट गयी!
कुछेक पंक्तियाँ तो अवश्य ही तुरंत लिखी जाती होंगी!
रोचक लेख!
और दोस्ती जो चाहें, चले ताउम्र तो
दोस्तों से कोई भी उम्मीद ना रखें।
वाह! असंभव की उम्मीद .बहुत खूब शेर है यह!
चाणक्य जी ने इससे बिलकुल अलग बात की थी कि कोई दोस्ती बिना स्वार्थ के नहीं होती.
Alpana की हालिया प्रविष्टी..वो पहली मुलाकात!
हम तुम्हें याद करते हैं
तो आप कहते कि
तो क्या कोई एहसान करते हैं!
वाह!
घुघूती बासूती
ghughutibasuti की हालिया प्रविष्टी..सत्तावनवाँ अध्याय खत्म……………………. घुघूती बासूती
विवेक रस्तोगी “पुरातनकालीन ब्लॉगर” की हालिया प्रविष्टी..जिस्म २ देह का प्रेम प्रदर्शन… (Jism 2..)
दोस्त से कभी मदद नहीं मागनी चाहिए। दोस्त है तो स्वयम् जान ही जायेगा कि मैं कष्ट में हूँ और मदद करने लायक होगा तो मदद करेगा ही। यदि कहीं वह मदद करने में असमर्थ हुआ और मैने मदद मांग ली तो सोचो, उसे मदद न कर पाने का कितना दुःख होगा! मैं उसे मदद न कर पाने का दुःख नहीं दे सकता। आखिर वो मेरा दोस्त है!
..गौर करने वाली बात यह है कि यह बात सुदामा ने कृष्ण के संबंध में कही थी जो तीनो लोकों के स्वामी थे।:)
तमाचा का फोन नंबर दीजिये जरा ,धांसू आदमी मालूम होते है .
dr anurag की हालिया प्रविष्टी..के आती है जिंदगी आते आते आते ……
तुलसीदास जी की बात नहीं कहेंगे, पिछड़े और नारी विरोधी मान लिए जायेंगे|
संजय अनेजा की हालिया प्रविष्टी..An interview with Field Marshal Sam Manekshaw
Abhishek की हालिया प्रविष्टी..‘मैं’ वैसा(सी) नहीं जैसे ‘हम’ !