http://web.archive.org/web/20140401072225/http://hindini.com/fursatiya/archives/3603
आजकल बेवकूफ़ी के बयानों के बड़े जलवे हैं।
किसी नेता/अभिनेता/सरपंच के मुंह से निकला नहीं कि बयान की नुमाइश लग जाती है। निकलते ही टीवी, फ़ेसबुक, ट्विटर, अखबार, मतलब कि जहां सींग समाई, बयान छा जाता है। हर जगह लोग बयान में अपनी अकल की छौंक भी लगा देते है। अकल के तड़के से कहीं बयान जायकेदार बन जाता है। कहीं ऐसी शक्ल अख्तियार करता है कि निगलते न बने।
फ़ेसबुकिये/ट्विटरिये तो बयानों को शिकारी कुत्तों की तरह सूंघते रहते हैं। बयान की खूशबू मिलते ही उस पर पिंडारियों की तरह टूट पड़ते हैं। उसके टुकड़े-टुकडे करके अपने-अपने खातों में डाल लेते हैं। लोग उन टुकड़ों को लाइक, शेयर, ट्विट, रिट्विट करते हैं। तुकबंदिये भी अपना हुनर आजमाते हैं। शायरी फ़रमाते हैं। जिनकी लय टाइप मिल जाती है वे लोग अपनी शायरी को कविता जाते हैं। कार्टूनिये अपनी कूची फ़िराते हैं। लोग उसको भी लाइक करते हैं। शेयर करते हैं। बहुत खूब, मजा आ गया, क्या बात है- फ़रमाते हैं।
जिस तरह रेलयात्री को प्लेटफ़ार्म पर उतरते ही ऑटो,टैक्सी,धर्मशाला,होटल वाले घेर लेते हैं। उसको अपने साथ टांगकर ले जाना चाहते हैं। उसी तरह जैसे ही कोई बेवकूफ़ी का बयान अवतरित होता लोग उसको अपने कब्जे में लेकर अपने यहां टांग देते हैं।
पुराने जमाने में राजालोग मरे हुये शेर की छाती पर पैर टिकाकर फोटो खिंचाकर अपनी बहादुरी दिखाते थे। आज के जमाने में लोग चर्चित लोगों के बेवकूफ़ी के बयानों को अपने स्टेटस पर सजाकर अपनी अक्लमंदी की नुमाइश करते हैं।
इस तरह के बयान जारी करने वाले आमतौर पर चिरकुट टाइप के लोग होते हैं। मीडिया अपनी जाहिली और काहिली मिलाकर उनको चर्चित बनाती है। मशहूर बताती है। इसके बाद उनकी कही बेवकूफ़ी की बात को उनका बयान बताती है। बार-बार उसकी झलक दिखाती है। अपनी टीआरपी बढ़ाती है।
व्यंग्यकार भी बयान पर अपना हुनर आजमाते हैं। बयान को अपनी अकल के कपड़े पहनाते हैं। चिरकुटई के मेकअप से उसको को थोड़ा मजाकिया बनाते हैं। आम आदमी के दर्द की क्रीम लगाते हैं। बेवकूफ़ी का ठिठौना लगाते हैं। अपने ब्लॉग/साइट पर सटाते हैं। उसका स्टेट्स फ़ेसबुक पर लगाते हैं। लोग लाइक करते हैं। वे खुश हो जाते हैं।
मंचीय कवियों के लिये ये बयान नये चुटकुलों की जमीन तैयार करते हैं। वे घिसे-पिटे चुटकुलों के बीच में इन बयानों में अपनी तुकबंदी मिलाकर ताजी कविता के नाम पर सुनाते हैं।
जारी किये गये बयान आमतौर पर बेवकूफ़ी के ही होते हैं। ऊलजलूल के बयानों पर बुद्धिजीवी लोग प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। बेवकूफ़ी के डम्बल वर्जिश करके बुद्धिजीवी अपनी अकल की सेहत बनाते हैं।
नेता/अभिनेता/पंचायत का बेवकूफ़ी का बयान गुड़ की गीली भेली तरह होता है जिस पर बुद्धिजीवी लोग मक्खियों की भनभनाते रहते हैं।
बयान में कही बेवकूफ़ी की बात बुद्धिजीवी के संपर्क में आकर उनकी अकल का स्टेटस बन जाती है।
जिस तरह खोटा सिक्का खरे सिक्के को चलन से बाहर कर देता है उसी तरह आजकल भले बयानों को कोई पूछता ही नहीं। हर तरफ़ चिरकुटई के बयान छाये रहते हैं। उन्हीं की पूंछ है। उन्हीं की चर्चा है। बेवकूफ़ी के बयानों की टीआरपी टॉप पर है। अकल के बयान टापते रह जा रहे हैं।
आजकल हाल यह है कि अकल की बात को भी लोग तभी समझ पाते हैं जब उसमें थोड़ी बहुत बेवकूफ़ी की बात मिली होती है।
कुल मिलाकर यही लगता है कि बेवकूफ़ी की बातों के जलवे बड़े!
बेवकूफ़ी की बातों के जलवे बड़े
By फ़ुरसतिया on November 18, 2012
आजकल बेवकूफ़ी के बयानों के बड़े जलवे हैं।
किसी नेता/अभिनेता/सरपंच के मुंह से निकला नहीं कि बयान की नुमाइश लग जाती है। निकलते ही टीवी, फ़ेसबुक, ट्विटर, अखबार, मतलब कि जहां सींग समाई, बयान छा जाता है। हर जगह लोग बयान में अपनी अकल की छौंक भी लगा देते है। अकल के तड़के से कहीं बयान जायकेदार बन जाता है। कहीं ऐसी शक्ल अख्तियार करता है कि निगलते न बने।
फ़ेसबुकिये/ट्विटरिये तो बयानों को शिकारी कुत्तों की तरह सूंघते रहते हैं। बयान की खूशबू मिलते ही उस पर पिंडारियों की तरह टूट पड़ते हैं। उसके टुकड़े-टुकडे करके अपने-अपने खातों में डाल लेते हैं। लोग उन टुकड़ों को लाइक, शेयर, ट्विट, रिट्विट करते हैं। तुकबंदिये भी अपना हुनर आजमाते हैं। शायरी फ़रमाते हैं। जिनकी लय टाइप मिल जाती है वे लोग अपनी शायरी को कविता जाते हैं। कार्टूनिये अपनी कूची फ़िराते हैं। लोग उसको भी लाइक करते हैं। शेयर करते हैं। बहुत खूब, मजा आ गया, क्या बात है- फ़रमाते हैं।
जिस तरह रेलयात्री को प्लेटफ़ार्म पर उतरते ही ऑटो,टैक्सी,धर्मशाला,होटल वाले घेर लेते हैं। उसको अपने साथ टांगकर ले जाना चाहते हैं। उसी तरह जैसे ही कोई बेवकूफ़ी का बयान अवतरित होता लोग उसको अपने कब्जे में लेकर अपने यहां टांग देते हैं।
पुराने जमाने में राजालोग मरे हुये शेर की छाती पर पैर टिकाकर फोटो खिंचाकर अपनी बहादुरी दिखाते थे। आज के जमाने में लोग चर्चित लोगों के बेवकूफ़ी के बयानों को अपने स्टेटस पर सजाकर अपनी अक्लमंदी की नुमाइश करते हैं।
इस तरह के बयान जारी करने वाले आमतौर पर चिरकुट टाइप के लोग होते हैं। मीडिया अपनी जाहिली और काहिली मिलाकर उनको चर्चित बनाती है। मशहूर बताती है। इसके बाद उनकी कही बेवकूफ़ी की बात को उनका बयान बताती है। बार-बार उसकी झलक दिखाती है। अपनी टीआरपी बढ़ाती है।
व्यंग्यकार भी बयान पर अपना हुनर आजमाते हैं। बयान को अपनी अकल के कपड़े पहनाते हैं। चिरकुटई के मेकअप से उसको को थोड़ा मजाकिया बनाते हैं। आम आदमी के दर्द की क्रीम लगाते हैं। बेवकूफ़ी का ठिठौना लगाते हैं। अपने ब्लॉग/साइट पर सटाते हैं। उसका स्टेट्स फ़ेसबुक पर लगाते हैं। लोग लाइक करते हैं। वे खुश हो जाते हैं।
मंचीय कवियों के लिये ये बयान नये चुटकुलों की जमीन तैयार करते हैं। वे घिसे-पिटे चुटकुलों के बीच में इन बयानों में अपनी तुकबंदी मिलाकर ताजी कविता के नाम पर सुनाते हैं।
जारी किये गये बयान आमतौर पर बेवकूफ़ी के ही होते हैं। ऊलजलूल के बयानों पर बुद्धिजीवी लोग प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। बेवकूफ़ी के डम्बल वर्जिश करके बुद्धिजीवी अपनी अकल की सेहत बनाते हैं।
नेता/अभिनेता/पंचायत का बेवकूफ़ी का बयान गुड़ की गीली भेली तरह होता है जिस पर बुद्धिजीवी लोग मक्खियों की भनभनाते रहते हैं।
बयान में कही बेवकूफ़ी की बात बुद्धिजीवी के संपर्क में आकर उनकी अकल का स्टेटस बन जाती है।
जिस तरह खोटा सिक्का खरे सिक्के को चलन से बाहर कर देता है उसी तरह आजकल भले बयानों को कोई पूछता ही नहीं। हर तरफ़ चिरकुटई के बयान छाये रहते हैं। उन्हीं की पूंछ है। उन्हीं की चर्चा है। बेवकूफ़ी के बयानों की टीआरपी टॉप पर है। अकल के बयान टापते रह जा रहे हैं।
आजकल हाल यह है कि अकल की बात को भी लोग तभी समझ पाते हैं जब उसमें थोड़ी बहुत बेवकूफ़ी की बात मिली होती है।
कुल मिलाकर यही लगता है कि बेवकूफ़ी की बातों के जलवे बड़े!
कुछ तुकबंदियां
- बेवकूफ़ी की बातें के जलवे बड़े,
अकल के संगी-साथी पीछे खड़े। - चर्चित वही जो चिरकुट भी बने,
बिना चिरकुटई के बात न बने। - अकल तो किताबों में भरी पड़ी,
बंदा वही जो बेवकूफ़ी भी करे। - लड़कियां बहुत हैं चमकने लगीं,
उनसे कहो वे जरा कायदे से रहें। - सोचते थे कि अकल की बातें करेंगे,
ऐन वक्त पर बेवकूफ़ी हमला हुआ। - अकल बेचारी सहमकर किनारे खड़ी,
बेवकूफ़ी के कारिदें उसको छेड़ते रहे। - एक के बिना दूजे का गुजारा नहीं
उनसे कहो कि आपस में मिलके रहें। - बेवकूफ़ी की बातें के जलवे बड़े,
अकल के संगी-साथी पीछे खड़े।
- -कट्टा कानपुरी
Posted in बस यूं ही | 22 Responses
Padm Singh पद्म सिंह की हालिया प्रविष्टी..ज्योति पर्व की हार्दिक मंगल कामनाएँ
“पूंछ कितनी ही बडी क्यो ना हो
मूंछ के जगह नही ले सकती
,
मिकी माउस कितना टीवी पर हो उछलता
पर गणेश के मूस की जगह नही ले लकता”.
डा पवन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..रात की गोद मे चाँद आकर गिरा
amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." के.वाई.सी. ……."
बाल ठाकरे की हेल्थ से ज्यादा इस बात को कवर कर रहे थे की दिग्विजय ने उनके मरने की खबर दे दी |
किसी भी दल के सबसे बड़बोले नेता से ही ये सब बयान लेने जाते हैं | और फिर उनकी बात का बतंगड़ बना डालते हैं | इस सब लफड़ों से बचने के लिए टीवी देखना बंद किया , पर अब तो ऑनलाइन न्यूज़ पेपर में भी मसाला खबरे ही हैं | दुनिया इधर की उधर हो जाये पर मजाल की टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पूनम पाण्डेय या राखी सावंत या शर्लिन चोपड़ा ( या उन्ही बिरादरी की कोई और ) की कोई खबर न हो |
बीबीसी की न्यूज़ थोड़ी सही लगती थी, पर वहां इतनी स्पेलिंग मिस्टेक हैं की पूछो मती !!!!
बाकी तुकबंदी नंबर ४ काफी जलवेदार है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..राम भरोसे की चाय भरोसे !!!!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..शिक्षा – क्या और क्यों ?
तुकबन्दियाँ कुछ कम जमी
रौशन की हालिया प्रविष्टी..राजनीति में गैंग अन्ना
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भाग दरिद्दर!
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून:-ये तस्वीर है कि बदलती क्यों नही
मुझे तो लगता है, ये नेता लोग और मीडिया, lovers हैं… गुस्ताख शब्द मुंह से निकल जाते है प्रेमिका के और प्रेमी फिर पीछे पड़ जाता है, मतलब क्या था जी आपका?
Rashmi Swaroop की हालिया प्रविष्टी.."छा जाना" कैसे किया जाए… I KnOW!
बहुत मजेदार!
Alpana की हालिया प्रविष्टी..बुरा न मानो …दीवाली है !
प्रणाम.
उनसे कहो वे जरा कायदे से रहें।
- और लड़कों को बेकायदा रहने की खुली छूट -धन्य हो !
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..अधूरे सपने- अधूरी चाहतें!!
न तुम्हे प्रसिध्ही चाहिए ….न राष्ट्रीय या किताबी मंच .मत देखाओ लोगो का मन ..
के सभी महान बनाने की होड़ में है
ये सो कॉल्ड बुद्धिमान लोगो की तोड़ .. तुम्हे कही हेट में न दाल दे ( मेरा दर )