http://web.archive.org/web/20140401072225/http://hindini.com/fursatiya/archives/3588
इधर हमारी बहुत दिन बातचीत नहीं हुई ओबामा जी। होती तो भी क्या कहते वो? यही तो कि भाई साहब आपके आशीर्वाद से फ़िर से जीत गये। कोई काम हो तो बताइयेगा।
सुना है कि अमेरिका के चुनाव में बहुत पैसा, भाषण, लटके-झटके चलते हैं! पैसे वाली बिरादरी का इत्ता दखल है वहां राष्ट्रपति के चुनाव में कि किसी अमेरिकन लेखक के हवाले से ही परसाईजी ने कुछ इस तरह का लिखा था- अमेरिका में उद्योगपति किसी आदमी को पकड़कर राष्ट्रपति बना देते हैं।
ओबामाजी के चुनाव जीतने की हमें खुशी है। हमें ओबामा की जीत की खुशी है। अगर रोमनी जीतते तो उसके बारे में जानना पड़ता। उसके परिवार के बारे में भी। उसकी तमाम खूबियों के बारे में पढ़ना पड़ता। एक नोबले पुरस्कार उसको देना पड़ता। उनके बारे में तमाम किताबें छपतीं। तमाम कागज बच गया। हज्जारों पेड़ बचे। ओबामा की जीत से पर्यावरण की रक्षा हुई।
ओबामा की जगह अगर रोमनी जीतते तो रोमनी बहाने कई तरह की बहसें होती। अमेरिका बदल रहा है। दुनिया बदल रही है। रोमनी कैसे जीते। कौन उनका सलाहकार था। उनके भाषण किसने लिखे। उनका बचपन कैसा बीता। जवानी के क्या जलवे रहे। उन्होंने कैसे प्रपोज किया था। स्कूल में कैसे थे। उनका हस्तलेख कैसा है। उनकी तरह कौन लिखता है भारत। किस कलाकार के प्रसंशक हैं वे। न जाने कित्ती तरह के हेन-तेन किस्से सुनने पड़ते। साल निकल जाता यही सुनते-सुनते।
ओबामा हार जाते तो बुद्धिजीवी फ़िर से बहसियाते कि अमेरिका जनमानस मूलत: अल्पसंख्यक विरोधी, अश्वेत विरोधी ये विरोधी वो विरोधी है। न जाने क्या-क्या तुलना सुननी पड़ती।
तमाम लोग अमेरिका और भारत की तुलना करते हैं। यह एकदम असमान तुलना है। अमेरिका में चुनाव में दो उम्मीदवारों में से कोई एक चुना जाता है। भारत में चुनाव होने के तक तय नहीं हो पाता कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा। देश के किसी भी व्यक्ति को यह काम संभालने को कहा जा सकता है- ये भाई चलो , कसम खाओ पद और गोपनीयता की।
ओबामा का जीतना अच्छा ही है। वे अभी भी जवान दिखते हैं। झटका देकर बोल लेते हैं। मुट्ठी भींच लेते हैं। इसके बाद हाथ लहरा लेते हैं। भाषण के बाद अंगूठा दिखाकर मुस्करा लेते हैं। पत्नी और बच्चों का हाथ पकड़कर चल देते हैं। छुट्टी पर जा लेते हैं। मतलब सब तो है जो एक राष्ट्रपति बनने के लिये होना चाहिये।
क्रिकेट की भाषा में अगर कहा जाये तो ओबामा का राष्ट्रपति बनना इसलिये जायज है क्योंकि उनमें अभी बहुत राष्ट्रपतिता बची है।
इस बार तो जीतने के बाद ओबामा ने यह भी कह दिया – हम एक परिवार हैं। साथ जियेंगे। साथ मरेंगे। इस बयान को सुनने के बाद मुझे लगा शायद ओबामा जी ने इस बीच हिंदी सिनेमा देखा और दिल दिया है जान भी देंगे ऐ सनम तेरे लिये गाने से बहुत प्रभावित हैं। यह भी लगा कि जिसने भी ओबामा का भाषण लिखा है उसको जीने की उमंग के साथ मरने की आशंका भी सताने लगी है।
ओबामाजी का ये साथ जियेंगे, साथ मरेंगे वाला भाषण देखियेगा बहुत चलेगा। ये फ़िल्मी अंदाज में झटके में बोला भले गया हो लेकिन इसके गंभीर मतलब निकाले जायेंगे। साथ जियेंगे साथ मरेंगे को श्वेत-अश्वेत, बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक से जोड़ा जायेगा। इस डायलाग में कांट्रास्ट अलंकार है।
ओबामा दूसरी बार चुनाव जीते हैं। आखिरी बार जीते हैं। उनको शुभकामनायें देते हैं। इससे ज्यादा और एक आम भारतीय उनको दे ही क्या सकता है। वे भी हमारे देश के लोगों का ख्याल रखें। ज्यादा डराने वाले बयान जारी करके उनका रक्तचाप न बढ़ायें। ठीक है न!
ओबामा जीते बवाल कटा
By फ़ुरसतिया on November 8, 2012
बराक ओबामा
कल हम कल हम दिन भार दफ़्तर में बिजी रहे। शाम को आये तो पता चला कि ओबामा फ़िर से चुनाव जीत गये! अच्छा हुआ। बवाल कटा अमेरिकी चुनाव का।इधर हमारी बहुत दिन बातचीत नहीं हुई ओबामा जी। होती तो भी क्या कहते वो? यही तो कि भाई साहब आपके आशीर्वाद से फ़िर से जीत गये। कोई काम हो तो बताइयेगा।
सुना है कि अमेरिका के चुनाव में बहुत पैसा, भाषण, लटके-झटके चलते हैं! पैसे वाली बिरादरी का इत्ता दखल है वहां राष्ट्रपति के चुनाव में कि किसी अमेरिकन लेखक के हवाले से ही परसाईजी ने कुछ इस तरह का लिखा था- अमेरिका में उद्योगपति किसी आदमी को पकड़कर राष्ट्रपति बना देते हैं।
ओबामाजी के चुनाव जीतने की हमें खुशी है। हमें ओबामा की जीत की खुशी है। अगर रोमनी जीतते तो उसके बारे में जानना पड़ता। उसके परिवार के बारे में भी। उसकी तमाम खूबियों के बारे में पढ़ना पड़ता। एक नोबले पुरस्कार उसको देना पड़ता। उनके बारे में तमाम किताबें छपतीं। तमाम कागज बच गया। हज्जारों पेड़ बचे। ओबामा की जीत से पर्यावरण की रक्षा हुई।
ओबामा की जगह अगर रोमनी जीतते तो रोमनी बहाने कई तरह की बहसें होती। अमेरिका बदल रहा है। दुनिया बदल रही है। रोमनी कैसे जीते। कौन उनका सलाहकार था। उनके भाषण किसने लिखे। उनका बचपन कैसा बीता। जवानी के क्या जलवे रहे। उन्होंने कैसे प्रपोज किया था। स्कूल में कैसे थे। उनका हस्तलेख कैसा है। उनकी तरह कौन लिखता है भारत। किस कलाकार के प्रसंशक हैं वे। न जाने कित्ती तरह के हेन-तेन किस्से सुनने पड़ते। साल निकल जाता यही सुनते-सुनते।
ओबामा हार जाते तो बुद्धिजीवी फ़िर से बहसियाते कि अमेरिका जनमानस मूलत: अल्पसंख्यक विरोधी, अश्वेत विरोधी ये विरोधी वो विरोधी है। न जाने क्या-क्या तुलना सुननी पड़ती।
तमाम लोग अमेरिका और भारत की तुलना करते हैं। यह एकदम असमान तुलना है। अमेरिका में चुनाव में दो उम्मीदवारों में से कोई एक चुना जाता है। भारत में चुनाव होने के तक तय नहीं हो पाता कि प्रधानमंत्री कौन बनेगा। देश के किसी भी व्यक्ति को यह काम संभालने को कहा जा सकता है- ये भाई चलो , कसम खाओ पद और गोपनीयता की।
ओबामा का जीतना अच्छा ही है। वे अभी भी जवान दिखते हैं। झटका देकर बोल लेते हैं। मुट्ठी भींच लेते हैं। इसके बाद हाथ लहरा लेते हैं। भाषण के बाद अंगूठा दिखाकर मुस्करा लेते हैं। पत्नी और बच्चों का हाथ पकड़कर चल देते हैं। छुट्टी पर जा लेते हैं। मतलब सब तो है जो एक राष्ट्रपति बनने के लिये होना चाहिये।
क्रिकेट की भाषा में अगर कहा जाये तो ओबामा का राष्ट्रपति बनना इसलिये जायज है क्योंकि उनमें अभी बहुत राष्ट्रपतिता बची है।
इस बार तो जीतने के बाद ओबामा ने यह भी कह दिया – हम एक परिवार हैं। साथ जियेंगे। साथ मरेंगे। इस बयान को सुनने के बाद मुझे लगा शायद ओबामा जी ने इस बीच हिंदी सिनेमा देखा और दिल दिया है जान भी देंगे ऐ सनम तेरे लिये गाने से बहुत प्रभावित हैं। यह भी लगा कि जिसने भी ओबामा का भाषण लिखा है उसको जीने की उमंग के साथ मरने की आशंका भी सताने लगी है।
ओबामाजी का ये साथ जियेंगे, साथ मरेंगे वाला भाषण देखियेगा बहुत चलेगा। ये फ़िल्मी अंदाज में झटके में बोला भले गया हो लेकिन इसके गंभीर मतलब निकाले जायेंगे। साथ जियेंगे साथ मरेंगे को श्वेत-अश्वेत, बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक से जोड़ा जायेगा। इस डायलाग में कांट्रास्ट अलंकार है।
ओबामा दूसरी बार चुनाव जीते हैं। आखिरी बार जीते हैं। उनको शुभकामनायें देते हैं। इससे ज्यादा और एक आम भारतीय उनको दे ही क्या सकता है। वे भी हमारे देश के लोगों का ख्याल रखें। ज्यादा डराने वाले बयान जारी करके उनका रक्तचाप न बढ़ायें। ठीक है न!
Posted in बस यूं ही | 15 Responses
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..खोह, वीराने और सन्नाटे
भैया ठीक है वोट पड़े , पर कोई दावा भी नहीं करता की हम सरकार बनायेंगे | सीधे बन गए राष्ट्रपति !!! ऐसे कैसे !!! उनको मालूम नहीं है क़ि ये जो डेमोक्रेसी का त्यौहार है “चुनाव” इसे सेलिब्रेट कैसे करना है
बधाई हमारी तरफ से भी | वैसे भी हिन्दुस्तानियों ( और खासकर आई टी वालों का) ख्याल तो ओबामा साहब ही रख सकते हैं |
और हाँ ये नए अलंकार के बारे में जानने की इच्छा हमारी भी है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..हैप्पी बड्डे टू मी !!!!
………
प्रणाम.
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..चींटी और हाथी !
सादर
AKASH की हालिया प्रविष्टी..काश….
धन्यवाद!
यशवन्त माथुर की हालिया प्रविष्टी..बदलते मौसम का असर नज़र आने लगा है……
वैसे उनके दिए भाषण को इतनी गंभीरता से भारतीय ‘ भी’ लेते हैं यह जानकार उन्हें तो आश्चर्य कतई नहीं होगा.
शुभकामनाएँ अमेरिकियों और भारतवासियों को भी.
Alpana की हालिया प्रविष्टी..वो भी एक दौर था ..और ये भी….है !
kajalkumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून:- ओबामा/अमरीका के चुनाव का दूसरा पहलू
aradhana की हालिया प्रविष्टी..प्यार करते हुए