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आहत होने पर सर्विस टैक्स
By फ़ुरसतिया on February 6, 2013
आजकल आहत होने का मौसम चल रहा है।
आजकल जिसे देखो किसी न किसी बात पर आहत हो जाता है। पिछले दिनों तमाम लोग आशीष नंदी जी के बयान से आहत हो गये। कमल हसन अपनी फ़िलिम पर बैन से आहत हो गये। उधर कश्मीर में कोई साहब लड़कियों के बैंड से आहत हो गये। बापू आशाराम का एक भक्त उनकी लात से आहत हो गया। कोई किसी के चुटकुले से आहत हो गया, कोई किसी के बयान से। जिसे देखो उसको आहत का जुखाम हुआ है।
आहत का जुखाम जकड़ते ही दनादन बयानों की छींके शुरु हो जाती हैं। मामला संक्रामक हो लेता है। जिसे देखो वह भी बयान जारी करने लगता है। काटजू साहब ने पिछले दिनों नब्बे प्रतिशत भारतीयों को बेवकूफ़ कहा। जिनको बेवकूफ़ कहा वे तो समझदार निकले- कुछ बोले नहीं। लेकिन बाकी दस प्रतिशत लोग बेगानी शादी में अब्दुल्ला की तरह दीवाना बन गये। नब्बे प्रतिशत में शामिल होने के लिये अपनी बेवकूफ़ी दिखाते रहे। काटजू साहब के बयान पर बयान फ़ुटौव्वल करते रहे।
आहत होने का मजा दिखाने में है। जो आहत होता है वो मीडिया के पास जाता है। बताता है कि देखो हम आहत हुये हैं। हमारे आहत होने की खबर को दुनिया भर को दिखा दे भाई। मीडिया का तो काम ही आहत प्रसारण का है। वह अपने काम में जुट जाता है।
आहत का जुखाम आमतौर पर दो-तीन दिन चलता है। किसी आहत केस में आमतौर पर पहले दिन बयानों छींके सबसे ज्यादा आती हैं। दूसरे-तीसरे दिन मामला कंट्रोल में आ जाता है। मीडिया डाक्टर अगले आहत रोगी के राहत कार्य में जुट जाता है।
आहत होने की सुविधा आमतौर पर खास लोगों को ही उपलब्ध है। जैसे अंग्रेजों के जमाने में कुछ क्लबों में आमजनता और कुत्तों का प्रवेश वर्जित था वैसे ही आम लोगों को आहत होने की सुविधा हासिल नहीं हैं। कल के दिन दुनिया भर में न जाने कितनी लातें चलीं होंगी। उन लातों का जिक्र किसी मीडिया वाले ने नहीं किया होगा। लेकिन बापू आशाराम ने जो लात अपने भक्त को मारी वह खास लात है इसलिये उसका जिक्र मीडिया ने किया। उनके पहले के कारनामें उनको खास बनाते हैं।
आहत होने की सुविधा केवल खास लोगों को हासिल है। खास आदमी बड़ी तेजी से आहत होता है। जैसे ही उसके मन को कोई बात चुभी, उसके पेट पर लात पड़ी वह वह अपने आहत होने का पोस्टर बनवाता है। मीडिया के होर्डिंग पर टांग आता है। मीडिया अपने होर्डिंग की जगह किराये पर देती है। दो-तीन बाद दूसरे का आहत का पोस्टर टांग देती है।
आम आदमी न जाने कित्ता रोज परेशान होता है। गरीबी, बेईमानी, असुविधाओं, जाड़ा,गर्मी, बरसात, कोहरे की मार से हलकान होता है। पानी, बिजली, सड़क, गैस, तेल, रिजर्वेशन , दाखिले की समस्याओं से परेशान है। लेकिन उसको आहत होने की सुविधा हासिल नहीं है। आहत होने के लिये उसको पहले आम से खास बनना पड़ेगा। आम आदमी आहत होने के लिये ’इन्टाइटल्ड’ नहीं है। आहत होने की सुविधा केवल खास के लिये सुरक्षित है।
पहले सरकारें आम आदमी की नुमाइंदगी करतीं थीं। जनता की तरह उसने भी अपने को आहत होने की सुविधा से वंचित कर रखा था। इधर देखा जा रहा है कि वह आम से खास होती जा रही है। जरा-जरा सी बात पर आहत हो जा रही है। कार्टू्निस्टों को जेल भेज रही है। लेखकों पर पाबंदी लगा रही है।
सरकार को खुद आहत होने की बजाय लोगों के आहत होने की आदत का फ़ायदा उठाना चाहिये। आहत पर सर्विस टैक्स ठोंक देना चाहिये। जिसको आहत होना हो वो अपने आहत होने की मात्रा के हिसाब से सर्विस टैक्स जमा करे। मजे से आहत हो। सरकार की कमाई फ़ौरन बढ़ जायेगी। लोगों की आहत होने की आदत का इससे अधिक रचनात्मक उपयोग और भला क्या होगा? सरकार सबको आहत होने की सुविधा दे रही है। आहत सर्विस टैक्स वसूल रही है। सुविधा पर टैक्स तो जायज बात है भाई।
आहत सर्विस टैक्स लगेगा तो सरकार कभी उसे माफ़ करके अपने लिये फ़ायदे भी जुगाड़ सकती है। गरीबी रेखा के नीचे वालों पर फ़ुल आहत सर्विस टैक्स माफ़। पांच लाख तक की कमाई वालों के लिये आहत टैक्स में दस प्रतिशत छूट। कंपनियां तरह-तरह के आहत राहत पैकेज ला सकती हैं। आहत टैक्स प्लानर पाठ्यक्रम बनाये जा सकते हैं। आहत राहत स्कूल, विश्वविद्यालय खोले जा सकते हैं। आहत राहत सम्मेलन किये जा सकते हैं।
आहत होने के और रचनात्मक उपयोग बताने में डर सा लग रहा है। न जाने कौन किसी बात पर आहत हो जाये।
आजकल जिसे देखो किसी न किसी बात पर आहत हो जाता है। पिछले दिनों तमाम लोग आशीष नंदी जी के बयान से आहत हो गये। कमल हसन अपनी फ़िलिम पर बैन से आहत हो गये। उधर कश्मीर में कोई साहब लड़कियों के बैंड से आहत हो गये। बापू आशाराम का एक भक्त उनकी लात से आहत हो गया। कोई किसी के चुटकुले से आहत हो गया, कोई किसी के बयान से। जिसे देखो उसको आहत का जुखाम हुआ है।
आहत का जुखाम जकड़ते ही दनादन बयानों की छींके शुरु हो जाती हैं। मामला संक्रामक हो लेता है। जिसे देखो वह भी बयान जारी करने लगता है। काटजू साहब ने पिछले दिनों नब्बे प्रतिशत भारतीयों को बेवकूफ़ कहा। जिनको बेवकूफ़ कहा वे तो समझदार निकले- कुछ बोले नहीं। लेकिन बाकी दस प्रतिशत लोग बेगानी शादी में अब्दुल्ला की तरह दीवाना बन गये। नब्बे प्रतिशत में शामिल होने के लिये अपनी बेवकूफ़ी दिखाते रहे। काटजू साहब के बयान पर बयान फ़ुटौव्वल करते रहे।
आहत होने का मजा दिखाने में है। जो आहत होता है वो मीडिया के पास जाता है। बताता है कि देखो हम आहत हुये हैं। हमारे आहत होने की खबर को दुनिया भर को दिखा दे भाई। मीडिया का तो काम ही आहत प्रसारण का है। वह अपने काम में जुट जाता है।
आहत का जुखाम आमतौर पर दो-तीन दिन चलता है। किसी आहत केस में आमतौर पर पहले दिन बयानों छींके सबसे ज्यादा आती हैं। दूसरे-तीसरे दिन मामला कंट्रोल में आ जाता है। मीडिया डाक्टर अगले आहत रोगी के राहत कार्य में जुट जाता है।
आहत होने की सुविधा आमतौर पर खास लोगों को ही उपलब्ध है। जैसे अंग्रेजों के जमाने में कुछ क्लबों में आमजनता और कुत्तों का प्रवेश वर्जित था वैसे ही आम लोगों को आहत होने की सुविधा हासिल नहीं हैं। कल के दिन दुनिया भर में न जाने कितनी लातें चलीं होंगी। उन लातों का जिक्र किसी मीडिया वाले ने नहीं किया होगा। लेकिन बापू आशाराम ने जो लात अपने भक्त को मारी वह खास लात है इसलिये उसका जिक्र मीडिया ने किया। उनके पहले के कारनामें उनको खास बनाते हैं।
आहत होने की सुविधा केवल खास लोगों को हासिल है। खास आदमी बड़ी तेजी से आहत होता है। जैसे ही उसके मन को कोई बात चुभी, उसके पेट पर लात पड़ी वह वह अपने आहत होने का पोस्टर बनवाता है। मीडिया के होर्डिंग पर टांग आता है। मीडिया अपने होर्डिंग की जगह किराये पर देती है। दो-तीन बाद दूसरे का आहत का पोस्टर टांग देती है।
आम आदमी न जाने कित्ता रोज परेशान होता है। गरीबी, बेईमानी, असुविधाओं, जाड़ा,गर्मी, बरसात, कोहरे की मार से हलकान होता है। पानी, बिजली, सड़क, गैस, तेल, रिजर्वेशन , दाखिले की समस्याओं से परेशान है। लेकिन उसको आहत होने की सुविधा हासिल नहीं है। आहत होने के लिये उसको पहले आम से खास बनना पड़ेगा। आम आदमी आहत होने के लिये ’इन्टाइटल्ड’ नहीं है। आहत होने की सुविधा केवल खास के लिये सुरक्षित है।
पहले सरकारें आम आदमी की नुमाइंदगी करतीं थीं। जनता की तरह उसने भी अपने को आहत होने की सुविधा से वंचित कर रखा था। इधर देखा जा रहा है कि वह आम से खास होती जा रही है। जरा-जरा सी बात पर आहत हो जा रही है। कार्टू्निस्टों को जेल भेज रही है। लेखकों पर पाबंदी लगा रही है।
सरकार को खुद आहत होने की बजाय लोगों के आहत होने की आदत का फ़ायदा उठाना चाहिये। आहत पर सर्विस टैक्स ठोंक देना चाहिये। जिसको आहत होना हो वो अपने आहत होने की मात्रा के हिसाब से सर्विस टैक्स जमा करे। मजे से आहत हो। सरकार की कमाई फ़ौरन बढ़ जायेगी। लोगों की आहत होने की आदत का इससे अधिक रचनात्मक उपयोग और भला क्या होगा? सरकार सबको आहत होने की सुविधा दे रही है। आहत सर्विस टैक्स वसूल रही है। सुविधा पर टैक्स तो जायज बात है भाई।
आहत सर्विस टैक्स लगेगा तो सरकार कभी उसे माफ़ करके अपने लिये फ़ायदे भी जुगाड़ सकती है। गरीबी रेखा के नीचे वालों पर फ़ुल आहत सर्विस टैक्स माफ़। पांच लाख तक की कमाई वालों के लिये आहत टैक्स में दस प्रतिशत छूट। कंपनियां तरह-तरह के आहत राहत पैकेज ला सकती हैं। आहत टैक्स प्लानर पाठ्यक्रम बनाये जा सकते हैं। आहत राहत स्कूल, विश्वविद्यालय खोले जा सकते हैं। आहत राहत सम्मेलन किये जा सकते हैं।
आहत होने के और रचनात्मक उपयोग बताने में डर सा लग रहा है। न जाने कौन किसी बात पर आहत हो जाये।
Posted in बस यूं ही | 13 Responses
ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..हमें वापस लाना होगा आठवीं शताब्दी का उभय भारती वाला काल
आशीष श्रीवास्तव की हालिया प्रविष्टी..2 जनवरी 2013 : पृथ्वी सूर्य के समीपस्थ बिंदू पर !
aradhana की हालिया प्रविष्टी..Five minutes with Kathryn Presner
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..गरीबी देना तो तमिलनाडु में
संजय @ मो सम कौन की हालिया प्रविष्टी..पहचान
सच्ची फ़िलहाल तीसरी कसम देख लूं उनिप बांचता हूं
फ़ुरसत हौयके फ़ुरसतिया जी
सच्ची फ़िलहाल तीसरी कसम देख लूं पुनि बांचता हूं
फ़ुरसत हौयके फ़ुरसतिया जी
गिरीश बिल्लोरे की हालिया प्रविष्टी..आतंकवाद क्या ब्लैकहोल है सरकार के लिये