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बुरा न मानो होली है
By फ़ुरसतिया on March 16, 2013
एक बार फ़िर होली आ रही है।
जिसे देखो वो मस्तियाने के अभ्यास में जुटा है। होली के मौके पर कोई किसी से कम हंसमुख न दिख जाये।
लोग अपनी बेवकूफ़ियों के श्रंगार में जुटे हैं। होली में झांकी निकालेंगे। पुराने चुटकुलों को नया रंग दिया जा रहा है। मार्डन शरारतों का उत्पादन चल रहा है। बजट और प्रधानमंत्री वाले मजाक थोड़े पुराने हो गये। लेटेस्ट मजाक स्वीट सिक्स्टीन वाला चलेगा लगता है होली में।
होली के मौके पर हास्य/व्यंग्य के लेखों की मांग बढ़ जाती है। दनादन उत्पादन बढ़ जाता है। मांग और आपूर्ति में संतुलन गड़बड़ाता है। हास्य सामग्री कम पड़ जाती है। जैसे होली में खोये की कमी आलू और मैदे से पूरी की जाती है वैसे ही हास्य सामग्री की कमी हास्यास्पद सामग्री से की जाती है।
होली आमतौर पर मार्च में आती है। मार्च हर वर्ग के लिये गदर कष्ट का महीना होता है। बच्चों इम्तहान देने में हलकान, अध्यापक लेने में हलकान, गुरुजी नकल कराने में मस्त, उड़नदस्ता पकड़ने में पस्त। हर तरफ़ लक्ष्य पूरा करने का हड़कम्प मचा दिखता है। उत्पादन का लक्ष्य पूरा करना, खपत का टारगेट भी। वसूली और कमाई दोनों टाप करनी है। नौकरीपेशा आदमी तो बहुमुखी मार झेलता है- इनकम टैक्स के चलते तन्ख्वाह कम, दफ़्तर देर तक। बची कसर तबादले पूरी कर देते हैं। ऐसे में बेचारा वो परेशान भी नहीं हो पाता कायदे कि उसे होली वाले पकड़ लेते हैं। हंस बेटा होली है। बुरा न मानो होली है।
होली के मौके पर आदमी परेशानियां का ’कष्टमर’ हो जाता है। तमाम तरह के कष्टों से इतना घिर जाता है मौका मिलते ही उनके चंगुल से अदाबदा के भागता है। कष्टों उसे पहचान न लें इसलिये अपने अपने को रंग डालता है। मेकअप ऐसा करता है कि कष्ट उसे पहचान न लें। एकदम रंगबिरंगा हो जाता है। अपने को कीचड़ , तारकोल, सफ़ेदा से पोत लेता है कि कष्ट को हवा न लगे कि वह छिपा किधर है। मार्च के कष्टों के मारे एकजुट हो जाते हैं। वे सब आपस में एक-दूसरे को ऐसा रंग-बेरंग कर देते हैं कि आदमी डॉन हो जाता है और उसको सात मुल्कों के भी कष्ट की पुलिस नहीं पकड़ पाती।
होली के बहाने तमाम सुन्दर कल्पनायें आंखों के आगे झिलमिलाने लगी हैं। लग रहा है मंहगाई को होली ने स्टेचू बोल दिया और वह ठहर गयी है। खुशियां तड़ से जवान हो गयी हैं। सारे कष्टों को पकड़कर कांजी हाउस में बंद कर दिया गया है। भ्रष्टाचार ने अपनी पारी घोषित कर दी है।सदाचार और ईमानदारी अब क्रीज पर आ चुके हैं। न्याय अंपायरिंग कर रहा है। दर्शक खुशी से दोनों की बैटिंग देख रहे हैं। स्कोरबोर्ड पर अच्छाइयों का स्कोर बढ़ता जा रहा है। लगता है इस बार रिकार्ड बनेगा।
हम अभी होली का सौंदर्य वर्णन लिख ही रहे थे कि अचानक संपादक का चेला आकर हमारा अधूरा लेख खैंचकर फ़ूट लिया। वो लेख ऐसे छीन के भागा जैसे गली-मोहल्लों में उचक्के महिलाओं के गले से जंजीर छीनते हैं, जैसे चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिये विपक्षी दल के विधायक लूटते हैं। भागते-भागते वह बोला -“संपादक जी ने कहा है लेख जहां है, जिस हालत में हो ले आओ, होली अंक तैयार करना है।” अब “जहां है जिस हालत में है” वाले तरीके से तो कबाड़ उठता है। अपने लेख की यह गति देखकर हीमोग्लोबीन काफ़ी कम होने के बावजूद हमारा खून खौलने को हुआ।
मेरा गुस्सा भांपते हुये वह भागते हुये बोला- बाकी का लेख अगले साल छप जायेगा। बुरा न मानो होली है।
जिसे देखो वो मस्तियाने के अभ्यास में जुटा है। होली के मौके पर कोई किसी से कम हंसमुख न दिख जाये।
लोग अपनी बेवकूफ़ियों के श्रंगार में जुटे हैं। होली में झांकी निकालेंगे। पुराने चुटकुलों को नया रंग दिया जा रहा है। मार्डन शरारतों का उत्पादन चल रहा है। बजट और प्रधानमंत्री वाले मजाक थोड़े पुराने हो गये। लेटेस्ट मजाक स्वीट सिक्स्टीन वाला चलेगा लगता है होली में।
होली के मौके पर हास्य/व्यंग्य के लेखों की मांग बढ़ जाती है। दनादन उत्पादन बढ़ जाता है। मांग और आपूर्ति में संतुलन गड़बड़ाता है। हास्य सामग्री कम पड़ जाती है। जैसे होली में खोये की कमी आलू और मैदे से पूरी की जाती है वैसे ही हास्य सामग्री की कमी हास्यास्पद सामग्री से की जाती है।
होली आमतौर पर मार्च में आती है। मार्च हर वर्ग के लिये गदर कष्ट का महीना होता है। बच्चों इम्तहान देने में हलकान, अध्यापक लेने में हलकान, गुरुजी नकल कराने में मस्त, उड़नदस्ता पकड़ने में पस्त। हर तरफ़ लक्ष्य पूरा करने का हड़कम्प मचा दिखता है। उत्पादन का लक्ष्य पूरा करना, खपत का टारगेट भी। वसूली और कमाई दोनों टाप करनी है। नौकरीपेशा आदमी तो बहुमुखी मार झेलता है- इनकम टैक्स के चलते तन्ख्वाह कम, दफ़्तर देर तक। बची कसर तबादले पूरी कर देते हैं। ऐसे में बेचारा वो परेशान भी नहीं हो पाता कायदे कि उसे होली वाले पकड़ लेते हैं। हंस बेटा होली है। बुरा न मानो होली है।
होली के मौके पर आदमी परेशानियां का ’कष्टमर’ हो जाता है। तमाम तरह के कष्टों से इतना घिर जाता है मौका मिलते ही उनके चंगुल से अदाबदा के भागता है। कष्टों उसे पहचान न लें इसलिये अपने अपने को रंग डालता है। मेकअप ऐसा करता है कि कष्ट उसे पहचान न लें। एकदम रंगबिरंगा हो जाता है। अपने को कीचड़ , तारकोल, सफ़ेदा से पोत लेता है कि कष्ट को हवा न लगे कि वह छिपा किधर है। मार्च के कष्टों के मारे एकजुट हो जाते हैं। वे सब आपस में एक-दूसरे को ऐसा रंग-बेरंग कर देते हैं कि आदमी डॉन हो जाता है और उसको सात मुल्कों के भी कष्ट की पुलिस नहीं पकड़ पाती।
होली के बहाने तमाम सुन्दर कल्पनायें आंखों के आगे झिलमिलाने लगी हैं। लग रहा है मंहगाई को होली ने स्टेचू बोल दिया और वह ठहर गयी है। खुशियां तड़ से जवान हो गयी हैं। सारे कष्टों को पकड़कर कांजी हाउस में बंद कर दिया गया है। भ्रष्टाचार ने अपनी पारी घोषित कर दी है।सदाचार और ईमानदारी अब क्रीज पर आ चुके हैं। न्याय अंपायरिंग कर रहा है। दर्शक खुशी से दोनों की बैटिंग देख रहे हैं। स्कोरबोर्ड पर अच्छाइयों का स्कोर बढ़ता जा रहा है। लगता है इस बार रिकार्ड बनेगा।
हम अभी होली का सौंदर्य वर्णन लिख ही रहे थे कि अचानक संपादक का चेला आकर हमारा अधूरा लेख खैंचकर फ़ूट लिया। वो लेख ऐसे छीन के भागा जैसे गली-मोहल्लों में उचक्के महिलाओं के गले से जंजीर छीनते हैं, जैसे चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिये विपक्षी दल के विधायक लूटते हैं। भागते-भागते वह बोला -“संपादक जी ने कहा है लेख जहां है, जिस हालत में हो ले आओ, होली अंक तैयार करना है।” अब “जहां है जिस हालत में है” वाले तरीके से तो कबाड़ उठता है। अपने लेख की यह गति देखकर हीमोग्लोबीन काफ़ी कम होने के बावजूद हमारा खून खौलने को हुआ।
मेरा गुस्सा भांपते हुये वह भागते हुये बोला- बाकी का लेख अगले साल छप जायेगा। बुरा न मानो होली है।
Posted in बस यूं ही | 13 Responses
काजल कुमार की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- रे काले कउए से तो डरियो…
रोचक लेख है ,
“जहां है जिस हालत वाले आधे -अधूरे लेख को पढ़कर लोग भी बुरा नहीं मानेंगे
क्योंकि होली है!
Alpana की हालिया प्रविष्टी..मेरा खज़ाना /मेरा पुरस्कार
aradhana की हालिया प्रविष्टी..एफ बी जेन बोले तो फेसबुकिया पीढ़ी
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..जीने का अधिकार मिला है
जे बात…………………..
समझदार चेला था जी
संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..राम और शिव की महत्ता !
shefali की हालिया प्रविष्टी..एक बार जो बना जमाई…..
श्रंगार=श्रृंगार
अदाबदा=अदबदा
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..होली की उपाधियाँ ही उपाधियाँ: कोई भी चुन लें
sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..श्रद्धाँजलि.
PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..श्मशान शयनि
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हा हा हा,
मजेदार…
आपका कष्टमर !
…
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..चचा का यूँ गुजर जाना….हाय!!