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rowse: Home / पुरालेख / ’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा ट्रक
’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा ट्रक
By फ़ुरसतिया on June 29, 2013
ट्रक नो इंट्री ज़ोन में फ़ंसा है। बीस मिनट पहले आ गया होता हो धक्काड़े से निकल जाता।
पक्का “दुर्घटना से देर भली वाले” सिद्धांत पर अमल करने में हुई दुर्घटना है यह। इस्पीड में निकल जाता तो शहर के अंदर होता अब तक।
खुदाई खिदमतगार की तरह एक चेहरा लपकता हुआ आता है। दूसरे मददगारों को धकेलकर पीछे करते हुये। मदद के काम में भी गलाकाट प्रतियोगिता का माहौल है आजकल। जरा सा चूके नहीं कि मदद का मौका हाथ से निकल जाता है।
’नो इंट्री ज़ोन’ है इधर। आधा घंटा पहले आते। निकल जाती गाड़ी। अब तो रात भर रुकना पड़ेगा। नौ बजे रात खुलेगा। -मददगार ने अपराध बताया।
अरे सड़क इत्ती खराब थी। इस्पीड ही नहीं मिली। -ड्राइवर ने बचाव की कोशिश की।
लेकिन अपराध साबित होकर रहा। जुर्माना सेटल होने लगा।
तीन सौ पुलिस वाले को देने पड़ेंगे। दो सौ हमको। माल पहुंचवा देंगे। दोपहर तक ट्रक खाली हो जायेगा। नहीं तो शाम को खुलेगी नो इंट्री। कल संडे की छुट्टी है। सोमवार को उतरेगा माल। दो दिन बरबाद होंगे। पड़े रहोगे बाईपास पर। खिदमतगार ने घूस का अर्थशास्त्र बताया- दो दिन की देरी से पांच सौ की घूस भली।
पूछने पर पता चला कि वह गाइड था। नो इंट्री गाइड। नो इंट्री में फ़ंसे ट्रक को गंतव्य तक पहुंचवाता है। रास्ता बताता है। समय बचाता है। देश के विकास में सहायक होता है।
मोलभाव करने पर उसने मजबूरियां गिनानी शुरु कीं। स्कूल खुल गये हैं। सड़कों पर पानी है। कई जगह धंस गयी हैं। दूसरे रास्ते ले जाना होगा।
स्कूल खुलने पर ’नो इंट्री’ पर दलाली बढ़ जाती है। नक्सली स्कूल उड़ाने के पक्ष में दलील दे सकते हैं- स्कूल उड़ाकर हम घूस के मौके कम करते हैं।
बरसात में दलाली के साथ बारिश सरचार्ज भी जुड़ जाता है। इंद्र भगवान के खाता ऑडिटर को जब पता चलेगा तो आपत्ति दर्ज करेगा- नाके पर वसूला हुआ ’बारिश सरचार्ज’ का पैसा किधर गया। ’बारिश सरचार्ज घोटाले’ का हल्ला मचेगा देवलोक के मीडिया में। इंद्र भगवान की सरकार खतरे में पड़ जायेगी। उनको भी मीडिया मैनेजमेंट करना पड़ेगा। विज्ञापन देकर सब रफ़ा-दफ़ा करना होगा।
आखिर में ड्राइवर और गाइड में कुछ सम्मानजनक समझौता हो गया होगा और सूचना आती है कि सामान पहुंच गया। अनलोडिंग जारी है।
अपन को लगता है कि ये अपने देश का विकास और खुशहाली का ट्रक भी कहीं ’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा है। तमाम तरह के गाइड उनसे सौदा कर रहे हैं। अपनी गाइड की फ़ीस वसूल करने के लिये मोल-भाव कर रहे हैं। हर जगह सौदा पटा रहा है विकास का ड्राइवर। हर जगह मोलभाव हो रहा है। हर नाके पर देरी हो रही है। ’ नो इंट्री ज़ोन’ पर खर्चा बढ़ता जा रहा है। ठीहे तक पहुंचाने की गारंटी लेने वाले ’गाइड’ बढते जा रहे हैं। हर गाइड अपनी फ़ीस वसूल करके ट्रक अगले नाके तक पहुंचा देता है। अगले नाके पर भी वही ’नो इंट्री ज़ोन’ बोर्ड मिलता है। गाइड सहायता करता है। आगे बढ़ाता है।
जिन लोगों को ट्रक के नाके में फ़ंसे होने की बात पता है वे अपने-अपने इलाके के नाके में पहुंचते हैं। अपने हिस्से की खुशहाली और विकास ट्रक से लूट जाते हैं। पता नहीं ट्रक कब तक बस्ती तक पहुंचे। हर जगह उसको रास्ता दिखाने वाले ’गाइड’ तैनात हैं। इन गाइडों का लोकपाल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि ये सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। असरकारी गाइड हैं। इनको नौकरी से बर्खास्त भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये स्वचयनित हैं। खुदाई खिदमतगार हैं। जहां मन आता है ’नो इंट्री ’ का बोर्ड लगा देते हैं। गंतव्य तक पहुंचने का रास्ता बताने लगते हैं। फ़ीस वसूलते हैं।
अब तो विकास और खुशहाली के ट्रक ड्राइवर को ’नो इंट्री ज़ोन’ के गाइड की आदत पड़ गयी है। जहां गाइड नहीं मिलता उसका जी धुकपुकाने लगता है। वह घबराहट दूर करने के लिये हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है:
क्या पता उत्तराखंड को भेजे गये राहत सामग्री के ट्रक भी किसी ’नो इंट्री ज़ोन’ में खड़े हों।
पक्का “दुर्घटना से देर भली वाले” सिद्धांत पर अमल करने में हुई दुर्घटना है यह। इस्पीड में निकल जाता तो शहर के अंदर होता अब तक।
खुदाई खिदमतगार की तरह एक चेहरा लपकता हुआ आता है। दूसरे मददगारों को धकेलकर पीछे करते हुये। मदद के काम में भी गलाकाट प्रतियोगिता का माहौल है आजकल। जरा सा चूके नहीं कि मदद का मौका हाथ से निकल जाता है।
’नो इंट्री ज़ोन’ है इधर। आधा घंटा पहले आते। निकल जाती गाड़ी। अब तो रात भर रुकना पड़ेगा। नौ बजे रात खुलेगा। -मददगार ने अपराध बताया।
अरे सड़क इत्ती खराब थी। इस्पीड ही नहीं मिली। -ड्राइवर ने बचाव की कोशिश की।
लेकिन अपराध साबित होकर रहा। जुर्माना सेटल होने लगा।
तीन सौ पुलिस वाले को देने पड़ेंगे। दो सौ हमको। माल पहुंचवा देंगे। दोपहर तक ट्रक खाली हो जायेगा। नहीं तो शाम को खुलेगी नो इंट्री। कल संडे की छुट्टी है। सोमवार को उतरेगा माल। दो दिन बरबाद होंगे। पड़े रहोगे बाईपास पर। खिदमतगार ने घूस का अर्थशास्त्र बताया- दो दिन की देरी से पांच सौ की घूस भली।
पूछने पर पता चला कि वह गाइड था। नो इंट्री गाइड। नो इंट्री में फ़ंसे ट्रक को गंतव्य तक पहुंचवाता है। रास्ता बताता है। समय बचाता है। देश के विकास में सहायक होता है।
मोलभाव करने पर उसने मजबूरियां गिनानी शुरु कीं। स्कूल खुल गये हैं। सड़कों पर पानी है। कई जगह धंस गयी हैं। दूसरे रास्ते ले जाना होगा।
स्कूल खुलने पर ’नो इंट्री’ पर दलाली बढ़ जाती है। नक्सली स्कूल उड़ाने के पक्ष में दलील दे सकते हैं- स्कूल उड़ाकर हम घूस के मौके कम करते हैं।
बरसात में दलाली के साथ बारिश सरचार्ज भी जुड़ जाता है। इंद्र भगवान के खाता ऑडिटर को जब पता चलेगा तो आपत्ति दर्ज करेगा- नाके पर वसूला हुआ ’बारिश सरचार्ज’ का पैसा किधर गया। ’बारिश सरचार्ज घोटाले’ का हल्ला मचेगा देवलोक के मीडिया में। इंद्र भगवान की सरकार खतरे में पड़ जायेगी। उनको भी मीडिया मैनेजमेंट करना पड़ेगा। विज्ञापन देकर सब रफ़ा-दफ़ा करना होगा।
आखिर में ड्राइवर और गाइड में कुछ सम्मानजनक समझौता हो गया होगा और सूचना आती है कि सामान पहुंच गया। अनलोडिंग जारी है।
अपन को लगता है कि ये अपने देश का विकास और खुशहाली का ट्रक भी कहीं ’नो इंट्री ज़ोन’ में फ़ंसा है। तमाम तरह के गाइड उनसे सौदा कर रहे हैं। अपनी गाइड की फ़ीस वसूल करने के लिये मोल-भाव कर रहे हैं। हर जगह सौदा पटा रहा है विकास का ड्राइवर। हर जगह मोलभाव हो रहा है। हर नाके पर देरी हो रही है। ’ नो इंट्री ज़ोन’ पर खर्चा बढ़ता जा रहा है। ठीहे तक पहुंचाने की गारंटी लेने वाले ’गाइड’ बढते जा रहे हैं। हर गाइड अपनी फ़ीस वसूल करके ट्रक अगले नाके तक पहुंचा देता है। अगले नाके पर भी वही ’नो इंट्री ज़ोन’ बोर्ड मिलता है। गाइड सहायता करता है। आगे बढ़ाता है।
जिन लोगों को ट्रक के नाके में फ़ंसे होने की बात पता है वे अपने-अपने इलाके के नाके में पहुंचते हैं। अपने हिस्से की खुशहाली और विकास ट्रक से लूट जाते हैं। पता नहीं ट्रक कब तक बस्ती तक पहुंचे। हर जगह उसको रास्ता दिखाने वाले ’गाइड’ तैनात हैं। इन गाइडों का लोकपाल भी कुछ नहीं बिगाड़ सकते क्योंकि ये सरकारी कर्मचारी नहीं हैं। असरकारी गाइड हैं। इनको नौकरी से बर्खास्त भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि ये स्वचयनित हैं। खुदाई खिदमतगार हैं। जहां मन आता है ’नो इंट्री ’ का बोर्ड लगा देते हैं। गंतव्य तक पहुंचने का रास्ता बताने लगते हैं। फ़ीस वसूलते हैं।
अब तो विकास और खुशहाली के ट्रक ड्राइवर को ’नो इंट्री ज़ोन’ के गाइड की आदत पड़ गयी है। जहां गाइड नहीं मिलता उसका जी धुकपुकाने लगता है। वह घबराहट दूर करने के लिये हनुमान चालीसा पढ़ने लगता है:
“होत न आज्ञा बिनु पैसा रे”बिना पैसे के कोई भी आदेश नहीं होता है रे। किसी भी ’नो इंट्री ज़ोन’ से आगे मूवमेंट के लिये की आज्ञा के लिये ’गाइड फ़ीस’ का भुगतान करना जरूरी है।
क्या पता उत्तराखंड को भेजे गये राहत सामग्री के ट्रक भी किसी ’नो इंट्री ज़ोन’ में खड़े हों।
Posted in बस यूं ही | 8 Responses
किसकी गाडी फिर नो एंट्री में फंसी है
कट्टा कानपुरी असली वाले की हालिया प्रविष्टी..हिमालय, को समझते,उम्र गुज़र जायेगी – सतीश सक्सेना
dr parveen chopra की हालिया प्रविष्टी..कुदरत का इंसाफ
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..औरतों को पूरा बदल देना चाहते हैं चेतन भगत
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..वे पिछड़े हैं जो ब्लागिंग तक ही सिमटे हैं!
बहुत ही सटीक सामयिक विचारणीय मुद्दा …
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..च से बन्नच और छ से पिच्चकल्ली