http://web.archive.org/web/20140403135138/http://hindini.com/fursatiya/archives/4629
….और मजाक-मजाक में फ़ुरसतिया के नौ साल भी पूरे हुये। आज के ही दिन नौ साल पहले 20 अगस्त, 2004 को पहली पोस्ट लिखी थी। कुल जमा नौ शब्द में लिखा था:
रवि रतलामी , जिनका लेख बांचकर हमने ब्लॉग लिखना शुरु किया , दो साल पहले साल में सौ पोस्ट लिखने का काम बताया था। पिछले साल तो साठ ही लिखे। लेकिन इस साल आज तक 93 निकाल दिये। 7 बाकी हैं। दिन बचे हैं 11 । लगता है इस साल उनका दिया ब्लॉगवर्क पूरा हो जायेगा।
इस साल अखबारों में कई लेख छपे। लोगों ने ब्लॉग से उठाकर अखबार में छाप दिये। फ़िर हमने भेजना भी शुरु किया अखवारों में इसी जुलाई से। कुछ छपे कुछ का जबाब ही नहीं आया। छपास कामना पीड़ित हम ब्लॉगर सुबह-सुबह उस अखबार को नेट पर ताकते हैं जिसमें लेख भेजा था। मतलब जिस अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉग लिखना शुरु किये गये होंगे वह फ़िर अखबार के आसरे हो गयी।
अखबार में छपने के चक्कर में शब्द सीमा का भी ध्यान रखने लगे। पहले हजार शब्द के नीचे प्रकाशित करने से पहले सोचते थे कि लोग क्या कहेंगे। लेकिन अब सोचते हैं पांच सौ हुये पब्लिश करो यार। न जाने कौन गरीब अखबार वाला ताक रहा हो इसे उठाने के लिये।
अपन की अखबारों में छपने की यह लालसा वैसे ही है जैसे गांव वाले घर वालों को दूध पिलाने की बजाय सुबह-सुबह डिब्बे में भरकर शहर ले जायें। अच्छा सा लिख गया तो भेज दिया अखबार में। नहीं छापेगा अखबार वाला तो पोस्ट कर देंगे हफ़्ते भर बाद ब्लॉग में।
फ़ेसबुक के चलते ब्लॉगिंग कम होने की बात होती रहती है। लेकिन ब्लॉग से जड़े लोग फ़िर-फ़िर जहाज के पंछी की तरह लौट-लौट कर ब्लॉग जहाज पर आते हैं। हम भी टहलते भले रहें दिन भर फ़ेसबुक की गलियों में लेकिन सुकून की तलाश में ब्लॉग आंगन में ही आते हैं।
ब्लॉगिंग में संकलक के अभाव में लोग एक-दूसरे का लिखा पढ़ भी कम पाते हैं। फ़ेसबुक को नोटिस बोर्ड की तरह प्रयोग करके ब्लॉग का लिंक ठेल देते हैं। लोग भी वहां ही ’लाइक’ करके फ़ूट लेते हैं। ब्लॉग तक आते ही नहीं। वो शेर है न इरफ़ान झांस्वी का:
पहले ब्लॉग पर बवालिया पोस्टों पर तमाम टिप्पणियां/प्रतिटिप्पणियां होतीं थी। अब लोग बवाल निरपेक्ष हो गये हैं। बवाल उदासीन। ऐसा न होता तो सिद्धार्थ और विनीत की पोस्टों पर घमासान टिप्पणीबाजी होती। पोस्टों की बौछार हो जाती।
ब्लॉगिंग के चलते हमें ब्लॉगिंग की दुनिया के अलावा अक्सर लोग लेखक नुमा मानने लगते हैं। हमारे आसपास के ये लोग हमारा लिखा कभी कोई ब्लॉग नहीं पढते। लेकिन गाहे-बगाहे लेखक का उत्साह बढ़ाने के लिये कहते हैं- आप तो खूब लिखते हैं। अपनी कोई कविता सुनाइये। मतलब आम धारणा है अपने यहां कि लेखक है तो कविता ही लिखता होगा।
इस मौके पर अनगिनत वे साथी याद आते हैं जो ब्लॉगिंग के इस सफ़र के दौरान साथ रहे। कुछ अभी भी गाहे-बगाहे दिखते हैं। ज्यादातर लम्बे समय से सुसुप्तावस्था में चले गये हैं। कभी-कभी कोई पुरानी पोस्ट दिखती है उनकी तो इधर-उधर की यादगलियों में भटक लेते हैं। वे भी क्या दिन थे।
ईस्वामी खुद भले न लिखें अब लेकिन हमारे लिये इतजाम बराबर किये रहते हैं। पिछले दिनों हिन्दिनी साइट हैक हो गयी तो दस-पन्द्रह दिन ब्लॉग दिखना और लिखना भी ठप्प सा रहा। स्वामीजी ने फ़िर दौड़-धूप करके ब्लॉग को छुड़वाया हैकरों के कब्जे से।
इन नौ सालों में हमारे लिखते रहने का कारण हमारा यह भ्रम है कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। यह भ्रम अभी तक बरकरार है। इसलिये लिखना जारी है।
आज ब्लॉगिंग के सफ़र के नौ साल पूरे होने के मौके पर अपने तमाम पाठकों को धन्यवाद देते हैं।
सूचना: एक , दो ,तीन , चार , पांच , छह , सात और आठ साल के पूरे होने के किस्से।
…और ये फ़ुरसतिया के नौ साल
By फ़ुरसतिया on August 20, 2013
अब कब तक ई होगा ई कौन जानता हैइन नौ शब्दों से शुरु हुई खुराफ़ात को हुये नौ साल निकल गये। अनगिनत किस्से यादे हैं इस सफ़र की। उनमें से कुछ इसके पहले की सालगिरह की कहानी बताते हुये लिखे हैं।
रवि रतलामी , जिनका लेख बांचकर हमने ब्लॉग लिखना शुरु किया , दो साल पहले साल में सौ पोस्ट लिखने का काम बताया था। पिछले साल तो साठ ही लिखे। लेकिन इस साल आज तक 93 निकाल दिये। 7 बाकी हैं। दिन बचे हैं 11 । लगता है इस साल उनका दिया ब्लॉगवर्क पूरा हो जायेगा।
इस साल अखबारों में कई लेख छपे। लोगों ने ब्लॉग से उठाकर अखबार में छाप दिये। फ़िर हमने भेजना भी शुरु किया अखवारों में इसी जुलाई से। कुछ छपे कुछ का जबाब ही नहीं आया। छपास कामना पीड़ित हम ब्लॉगर सुबह-सुबह उस अखबार को नेट पर ताकते हैं जिसमें लेख भेजा था। मतलब जिस अभिव्यक्ति के लिये ब्लॉग लिखना शुरु किये गये होंगे वह फ़िर अखबार के आसरे हो गयी।
अखबार में छपने के चक्कर में शब्द सीमा का भी ध्यान रखने लगे। पहले हजार शब्द के नीचे प्रकाशित करने से पहले सोचते थे कि लोग क्या कहेंगे। लेकिन अब सोचते हैं पांच सौ हुये पब्लिश करो यार। न जाने कौन गरीब अखबार वाला ताक रहा हो इसे उठाने के लिये।
अपन की अखबारों में छपने की यह लालसा वैसे ही है जैसे गांव वाले घर वालों को दूध पिलाने की बजाय सुबह-सुबह डिब्बे में भरकर शहर ले जायें। अच्छा सा लिख गया तो भेज दिया अखबार में। नहीं छापेगा अखबार वाला तो पोस्ट कर देंगे हफ़्ते भर बाद ब्लॉग में।
फ़ेसबुक के चलते ब्लॉगिंग कम होने की बात होती रहती है। लेकिन ब्लॉग से जड़े लोग फ़िर-फ़िर जहाज के पंछी की तरह लौट-लौट कर ब्लॉग जहाज पर आते हैं। हम भी टहलते भले रहें दिन भर फ़ेसबुक की गलियों में लेकिन सुकून की तलाश में ब्लॉग आंगन में ही आते हैं।
ब्लॉगिंग में संकलक के अभाव में लोग एक-दूसरे का लिखा पढ़ भी कम पाते हैं। फ़ेसबुक को नोटिस बोर्ड की तरह प्रयोग करके ब्लॉग का लिंक ठेल देते हैं। लोग भी वहां ही ’लाइक’ करके फ़ूट लेते हैं। ब्लॉग तक आते ही नहीं। वो शेर है न इरफ़ान झांस्वी का:
संपेरे बांबियों में बीन लिये बैठे हैं,सबको पता है कि ब्लॉग पर जायेंगे तो टिपियाना पड़ेगा। सो फ़ेसबुक की लिंक पर ही लाइक करके, मुश्किया का या फ़िर “टिप्पणी-टिप” देकर फ़ूट लेते हैं।
सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैं।
पहले ब्लॉग पर बवालिया पोस्टों पर तमाम टिप्पणियां/प्रतिटिप्पणियां होतीं थी। अब लोग बवाल निरपेक्ष हो गये हैं। बवाल उदासीन। ऐसा न होता तो सिद्धार्थ और विनीत की पोस्टों पर घमासान टिप्पणीबाजी होती। पोस्टों की बौछार हो जाती।
ब्लॉगिंग के चलते हमें ब्लॉगिंग की दुनिया के अलावा अक्सर लोग लेखक नुमा मानने लगते हैं। हमारे आसपास के ये लोग हमारा लिखा कभी कोई ब्लॉग नहीं पढते। लेकिन गाहे-बगाहे लेखक का उत्साह बढ़ाने के लिये कहते हैं- आप तो खूब लिखते हैं। अपनी कोई कविता सुनाइये। मतलब आम धारणा है अपने यहां कि लेखक है तो कविता ही लिखता होगा।
इस मौके पर अनगिनत वे साथी याद आते हैं जो ब्लॉगिंग के इस सफ़र के दौरान साथ रहे। कुछ अभी भी गाहे-बगाहे दिखते हैं। ज्यादातर लम्बे समय से सुसुप्तावस्था में चले गये हैं। कभी-कभी कोई पुरानी पोस्ट दिखती है उनकी तो इधर-उधर की यादगलियों में भटक लेते हैं। वे भी क्या दिन थे।
ईस्वामी खुद भले न लिखें अब लेकिन हमारे लिये इतजाम बराबर किये रहते हैं। पिछले दिनों हिन्दिनी साइट हैक हो गयी तो दस-पन्द्रह दिन ब्लॉग दिखना और लिखना भी ठप्प सा रहा। स्वामीजी ने फ़िर दौड़-धूप करके ब्लॉग को छुड़वाया हैकरों के कब्जे से।
इन नौ सालों में हमारे लिखते रहने का कारण हमारा यह भ्रम है कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। यह भ्रम अभी तक बरकरार है। इसलिये लिखना जारी है।
आज ब्लॉगिंग के सफ़र के नौ साल पूरे होने के मौके पर अपने तमाम पाठकों को धन्यवाद देते हैं।
सूचना: एक , दो ,तीन , चार , पांच , छह , सात और आठ साल के पूरे होने के किस्से।
Posted in बस यूं ही, संस्मरण | 72 Responses
Dr. Monica Sharrma की हालिया प्रविष्टी..आश्रित नागरिक देश क्या गढ़ेंगें
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..१५ अगस्त का तोड़ू-फोड़ू दिन !!!
आपको पढ़ने के लिए फुरसत निकालना ही पड़ता है। आपके लिखे का आकर्षण बना रहे…आप यूँ ही लिखते रहें..हार्दिक शुभकामनाएँ।
बकिया पढ़ते रहने और शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद!
इस ब्लॉग ने वाकई एक रेकोर्ड बना लिया है.जिससे नए -पुराने लेखकों को ब्लॉग लेखन में निरंतरता बनाए रखने की प्रेरणा मिलेगी.
पहले दो साल में पहले साल १०० पोस्ट्स का लक्ष्य पूरा करना आप के लिए मुश्किल नहीं है.[जहाँ तक मेरा अनुमान है कि आप की अधिकतर पोस्ट्स १००० शब्दों से अधिक होती हैं जिनसे आराम से दो -तीन पोस्ट्स बन सकती हैं.]
‘छपास कामना पीड़ित’ और आप ? लगता तो नहीं …….ऐसा होता तो अब तक आप की ३-४ किताबें बाज़ार में आ चुकी होतीं! इतनी सामग्री तो आप के ब्लॉग पर ही है.अलग से लिखने की ज़रूरत भी नहीं .
आप ब्लॉगजगत के ‘सबसे सफल और चर्चित व्यंग्यकार ‘ बिना कोई पुस्तक लिखे ही हैं.फिर भी आप की पुस्तक की प्रतीक्षा रहेगी.
एक बार फिर से बधाईयाँ और शुभकामनाएँ.
Alpana की हालिया प्रविष्टी..क्या बदला है अब तक? क्या बदलेगा आगे?
१०० पोस्ट निकाल देंगे इंशाअल्लाह। बस आप पढ़ती रहें।
किताब छपाने में आलस्य, सकोच, शरम, लिहाज के अलावा लफ़ड़े बहुत हैं। हमने एक पोस्ट में लिखा भी था- किताब छपवाने के हसीन लफ़ड़े http://hindini.com/fursatiya/archives/2702
एक बार फ़िर से बधाई और धन्यवाद!
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..नाग ने आदमी को डसा ….
naveen raman की हालिया प्रविष्टी..जनसत्ता-अखबार का एकमात्र-पाठक
Monika की हालिया प्रविष्टी..Essay on Raksha Bandhan in English, Rakhi Celebration Ideas
बधाई !
सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..अब रक्षा बंधन के दिन पर, घर के दरवाजे बैठे हैं -सतीश सक्सेना
धन्यवाद!
अभी नहीम तो २०-२१ सितंबर को वर्धा में तो घेर कर ले ली जाएगी।
साथी ब्लॉगर्स के संख्याबल का तोड़ नहीं मिलेगा आपको।
और हाँ, आपको ढेरों बधाई। आप ब्लॉग जगत के तेन्दुलकर बनते जा रहे हैं।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..सेमिनार फ़िजूल है: विनीत कुमार
मिठाई तो खिलाई जायेगी मिलने भले ही इंतजाम आपै को करना पड़े।
बकिया तेंदुलकर बताकर क्या रिटायरी का हल्ला मचाओगे क्या जी?
रहा सवाल अखबारों में छपने की लालसा का, तो गम का यह फ़ेज भी गुजर जाएगा. बहुत पहले मुझे भी लालसा रहती थी, अब तो अखबार वाले पैसे देकर लिखवाने की कोशिश करते हैं तो भी नहीं लिखता – क्या करें, हिंदी अखबार वाले बहुत कम पैसे देते हैं – दैनिक भास्कर का पिछला अनुभव बेहद कड़वा रहा – कुछ समय लगातार लिखा, और जब भुगतान की बारी आई तो एक तिहाई से भी कम पैसा दिया गया!!!
अखबारों को दूर से राम-राम, अपना ब्लॉग भला. अब यहाँ से उठा के छाप लो तो फिर कोई बात नहीं!!
रवि की हालिया प्रविष्टी..हिंदी के कवियों! जरा मात्रा गिनकर तो कविता करो!!!
छपने की सहज इच्छा इस लिये है कि ज्यादा से ज्यादा पाठक मिलें। लेखक पढ़ा जाये यह उसके लिये सबसे जरूरी होता है। पैसे – वैसे क्या देंगे अखबार। ये बात विस्तार में कही है यहां http://mishraarvind.blogspot.in/2013/08/blog-post_20.html
बाकी भास्कर वालों के क्या कहने। जय हो।
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@ अब कब तक ई होगा ई कौन जानता है
ई नौ सालन से तो हो ही रहा है… आगे भी चलत रही, सबै जानत हैं…
बधाईयाँ !
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धन्यवाद!
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गजब मौज है यह भी, एकदम फुरसत वाली… ई अब हमका ‘मास्टर जी’ काहे बनाय दिये ?
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प्रवीण की हालिया प्रविष्टी..आइये यह सब रोना-कोसना-कलपना छोड़ फिर से अपना अपना धर्म निभायें ! …
http://hindini.com/fursatiya/archives/125
उस समय एकाध पोस्टें नजर में आई थीं। बाद में तो सब नजर ही नजर आतीं गईं
शुभकामनाएं….ई सफर अइसे ही चलता रहे।
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..इन्तजार-ए-लमही…..बनारस यात्रा – 9
शुभकामनाओं के लिये धन्यवाद!
आपका ये सफ़र ऐसे ही आने वाले तमाम सालों तक चलता रहे. अशेष शुभकामनाएं.
सच्ची में ब्लॉग-जगत के ‘तेंदुलकर’ बनते जा रहे हैं.
बधाईयाँ च शुभकामनायें.
प्रणाम.
धन्यवाद!
प्रमोद सिंह की हालिया प्रविष्टी..देश जहां जा रहा है का पुरनका गाना..
आप ऐसे ही पाडकास्टियाते , स्केचियाते और लिखते-लिखाते रहे। मार्क जुकरबर्ग के सेल्समैन त चौंधिया जायेंगे
http://mishraarvind.blogspot.in/2013/08/blog-post_20.html
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..ब्लागिंग का ‘गर्भकाल’ और फुरसतिया को बधाई!
गर्भकाल पूरा करने के बाद अब ’ किलकत कान्ह घुटुरवन आवत ’काल आयेगा। फ़िर ’ मैया मोरी मैं नहिं माखन खायो।”
ashish rai की हालिया प्रविष्टी..बधशाला -13
(चुक गए या समझ गए ! )
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- चँद्रमुखी, अब फिर से क्यों बीमार है तू
लेखन की ये साधना अनंत-अनंत काल तक चलती रहे…
आपके आशीर्वाद से इस 16 अगस्त को मैंने भी ब्लॉगिंग में चार साल पूरे कर लिए हैं…
जय हिंद…
ब्लॉगिंग के चार साल पूरा करने के लिये बहुत-बहुत बधाई। मक्खन को भी शुभकामनायें।
समीर लाल “टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..पूर्ण विराम: एक कहानी
रवि रतलामी जी का दिया एक लक्ष्य मुझे भी याद है एक हजार पोस्ट तक पहुँचने का। देखें कब पूरा होता है !
Manish Kumar की हालिया प्रविष्टी..‘एक शाम मेरे नाम’ ने जीता इंडीब्लॉगर ‘Indian Blogger Awards 2013′ में सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग का खिताब !
रविरतलामी का दिया लक्ष्य पूरा हो जायेगा। बस लिखते रहिये।
समीर लाल “स्टार टिपिण्णीकार” की हालिया प्रविष्टी..पूर्ण विराम: एक कहानी
बहुत शुभकामनाएं!
क्या कहें? शरमा से गये अपने बारे में यह बांचकर। तुमसे मिले थे इलाहाबाद में वह क्षण याद आ गया।
बहुत बहुत धन्यवाद!
archanachaoji की हालिया प्रविष्टी..ऐसे बनता है तिरंगा …
बधाई के लिये धन्यवाद!
बधाई! शुभकामनाएं!!
रस्ते में हम साथ हुए थे और फिर ब्लॉग से अलग सोशल-मीडिया की ओर लार-टपकाते निकल लिये. ब्लॉग आज भी राह तकता सा बैठा है. मगर आपका संकल्प बना रहा…
“हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै?”
झाङे रहो कलट्टरगंज …. पोस्ट दर पोस्ट बुनते रहिये ….
हार्दिक शुभकामनाएं …..
दीपक बाबा की हालिया प्रविष्टी..हाल ऐ जिन्दगी
और हमारे तो ‘ब्लागाचार्य’ हैं आप ।
amit kumar srivastava की हालिया प्रविष्टी..“यादों के पिटारे से …….रक्षाबंधन “
आपका भ्रम बना रहे और ऐसे ही रिकॉर्ड बनाते चलें.. हिन्दी ब्लॉगिंग के श्रीलाल शुक्ल को बधाई और शुभकामनाएं..
सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..फेसबुक के हिन्दी साहित्य पुरोधा
वैसे अभी साईट हैक्ड ही है, जानता हूँ! मेरी प्राथमिकताएं इन चीजों पर खिन्न होने का भी समय नहीं देतीं. उदासीनता नई गहराई में.
अपने अपने लेवल की बात है. इधर घर के शेर हिन्दी के पीछे पड लिए, उधर जमाने वाले विकिलीक्स बना चुके.
eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
इहाँ सात पूरे हो गए
हम भी सोच रए हैं की
भगवान सत्यनाराण की कथा सुन लेवें
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मन – स्वरूप, कार्य, अवस्थायें
रामराम.
यूँ ही ये सिलसिला बढ़ता रहे..
बहुत बहुत बधाई।
sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..चाच्चा बैल
बधाई शुभकामनाएं
बी एस पाबला की हालिया प्रविष्टी..गूगल का नया कार-नामा