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हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने
By फ़ुरसतिया on August 21, 2013
जब मॉल
आने का हांका हुआ था तो लग रहा था कि उसके आते ही बाजार में रामराज्य
स्थापित हो जायेगा। लेकिन मॉल का हिसाब-किताब तो ऐसा गड़बड़ निकला कि उसके
सामने पंसारी भी पानी भरे।
अब आप कहेंगे कि ऐसा कैसे कह सकते हैं आप? त पहिली बात त ई है कि हम कुछ कह नहीं रहे हैं। लिख रहे हैं। अपना अनुभव बता रहे हैं। पढियेगा और मुलाहिजा फ़रमाइयेगा।
हुआ यह कि हमारे इहां कानपुर में कई मॉल हैं। दो ठो घर के पास हैं। दो-तीन घर से दूर हैं। सबमें सामान एक्कै तरह का मिलता है लेकिन जैसे कि दूर के ढोल सुहावने माने जाते हैं वैसे ही हमारे घर में भी सबसे दूर वाला मॉल सबसे अच्छा माना जाता है। कारण भी है – वहां ज्यादा जाने की सोचते हैं, आने-जाने में ज्यादा परेशान होना पड़ता है, ज्यादा बड़ा है, पैसा ज्यादा खर्चा होता है। इस तरह कई ज्यादा जुड़े होने के चलते जब कोई बहुत उत्साहित हो जाता है तब भाग के उस वाले मॉल की तरह निकल लेते हैं।
हम बता चुके हैं कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे शापिंग मॉल जैसी जगहें शहर में स्थित सबसे वाहियात जगहों में से लगती है। उसमें से कुछ कारण ये हैं:
डिकाउंट सेल भी कई तरह की होती है। कभी प्रतिशत छूट, कभी बम्पर सेल और कभी एक के साथ एक/दो/तीन फ़्री वाली। आज कल देश भी तो पूरा बाजार में बदल रहा है। कौन जाने कल को कोई इतिहास वाला पढ़ाये कि देश ने आजादी एक के साथ एक मुफ़्त वाली सेल में पायी जो कि बाद में मोलभाव करने पर एक के साथ दो फ़्री हो गयी। सेल का आकर्षण और आतंक इत्ता भीषण होता है कि आदमी वह सब खरीदने के लिये पिल पड़ता है जो उसकी जरूरत नहीं।
ऐसे ही एक दिन मॉल के डिस्काउंड ऑफ़र की बाढ़ में हमारा परिवार फ़ंस गया। हर तरफ़ छूट ही छूट। हर कपड़े के साथ दो कपड़े फ़्री। बच्चे के लिये कुछ कपड़े लेने थे। छूट इतनी कि बच्चे के कपड़े के साथ मेरे भी ले लिये गये। जबकि हम घटना स्थल पर थे भी नहीं। लेकिन हमारी नाप/नंबर तो थी। सो हमारे लिये भी कपड़े लेने का त्वरित और बोल्ड निर्णय लिया गया। निर्णय पर अमल भी फ़ौरन हो गया।
कपड़े के मामले में तो हम मैनीक्वीन हैं। जो पहनने के लिये कहा जाता है, पहन लेते हैं। खरीदने के लिये भले भुनभुनाने का नाटक करें लेकिन खरीदे हुये कपड़े पहनने से मना करने के समय हम उसी तरह नहीं उठाते जैसे सैकड़ों पत्रकारों के निकाले जाने पर दूसरे बड़का पत्रकारों की तरह चुप रहते हैं। घर में रहकर कपड़ा खरीदने वाले की नाराजगी कौन मोल ले?
तो किस्सा कोताह यह कि जब कपड़े हमारे ऊपर चढाये गये तो हाल वही हुआ जैसा स्केच के आधार पर मुजरिम पकड़ने निकली पुलिस का होता होगा। शर्ट पहनी तो सहमते हुये पूछा कि आजकल क्या बनियाइन में भी सामने जेब और कालर फ़ैशन में हैं? पैंट चढाने पर श्रीमती जी खुद बोलीं – ये चूड़ीदार पायजामा लगता है गलती से आ गया।
बहरहाल हमेशा की तरह एक बार फ़िर हीरामन की तरह कसम खायी गयी कि बिना ट्रायल के आगे से किसी के कपड़े नहीं खरीदे जायेंगे । कपड़े बदलने के लिये वापस चल दिये। मॉल में जब पहुंचे तो हर अगला हमें शक की निगाह से देखता पाया गया।
किसी की निगाह में साफ़ लिखा दिखा -डिस्काउंट पर सामान खरीदते हो और वापस भी करना चाहते हो?
किसी की निगाहों का हिन्दी अनुवाद था- इत्ते दिन बाद वापस कैसे होगा?
एक ने कहा – बिना बिल कैसे वापस होगा। उस काउंटर पर बात कर लीजिये।
उस काउंटर वाले ने कहा- इस काउंटर पर नहीं उस पर चलिये अभी आते हैं (मतलब ठंड रख)
उस काउंटर पर संकट कटै मिटै सब पीरा वाले हनुमत वीरा को सुमरते रहे। फ़िर पता चला कि इस काउंटर पर नहीं उस काउंटर पर यह पवित्र काम होगा। आखिर में काउंटर-काउंटर भटकते हुये तय हुआ कि कपड़े बदल सकते हैं। जित्ते के कपड़े थे उत्ते का वाउचर बनवाकर (साथ में हिदायत कि खबरदार जो इत्ते से कम के कपड़े खरीदे) कपड़े लेने कपड़ों के जाम में एक बार फ़िर से धंस गये।
कपड़ों के काउंटर पर पहले तो सेल्समैन ने ठेलुहई करते हुये मौज टाइप ली कि ऐसे कैसे बिना नाप के कपड़े तौला लिये। फ़िर पसीज कर दिखाये। कमीजें और पैंट अपने साथ लेकर हम फ़िर विजेता भाव से आगे बढे।
काउंटर पर शर्टें तो बदल गयीं लेकिन पैंट का पांयचा डिस्काऊंट की झाड़ी में फ़ंस गया। पता चला कि जिस चूड़ीदार पैंट को हम वापस करना चाहते थे उसके साथ जो पैंटे ली गयीं थीं वे हमारे बेटे के लिये थीं। वो अपने साथ लेकर चला गया था। हमारी वाली फ़्री वाली थी। बताया गया कि वापसी तभी संभव है जब सब कपड़े बरामद हों। मजबूरन हम चूड़ीदार पैंट को झोले में धरकर और अपना मुंह झोले जैसा लटकाये वापस आ गये। अब उस पैंट का क्या किया जाये यह समस्या हमारे घर के लिये कश्मीर समस्या सरीखी उलझी हुई है।
हमें लगा कि मॉल से भले तो अपने मोहल्ले के पंसारी जो सामान खराब होने की शिकायत पर घर आकर वापस करते हैं। शर्मिंन्दा होने की एक्टिंग अलग से। यहां मॉल में सामान वापस करना तो अलग सॉरी/ एक्सक्यूज/वी आर हेल्पलेस तक बोल के टरका देते हैं।
जब से हमारे साथ यह हादसा हुआ हम गाते फ़िर रहे हैं- हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने।
आपका क्या कहना है ?
अब आप कहेंगे कि ऐसा कैसे कह सकते हैं आप? त पहिली बात त ई है कि हम कुछ कह नहीं रहे हैं। लिख रहे हैं। अपना अनुभव बता रहे हैं। पढियेगा और मुलाहिजा फ़रमाइयेगा।
हुआ यह कि हमारे इहां कानपुर में कई मॉल हैं। दो ठो घर के पास हैं। दो-तीन घर से दूर हैं। सबमें सामान एक्कै तरह का मिलता है लेकिन जैसे कि दूर के ढोल सुहावने माने जाते हैं वैसे ही हमारे घर में भी सबसे दूर वाला मॉल सबसे अच्छा माना जाता है। कारण भी है – वहां ज्यादा जाने की सोचते हैं, आने-जाने में ज्यादा परेशान होना पड़ता है, ज्यादा बड़ा है, पैसा ज्यादा खर्चा होता है। इस तरह कई ज्यादा जुड़े होने के चलते जब कोई बहुत उत्साहित हो जाता है तब भाग के उस वाले मॉल की तरह निकल लेते हैं।
हम बता चुके हैं कि व्यक्तिगत तौर पर मुझे शापिंग मॉल जैसी जगहें शहर में स्थित सबसे वाहियात जगहों में से लगती है। उसमें से कुछ कारण ये हैं:
- जो चाय बाहर तीन रुपये की मिलती है उससे कई गुना घटिया चाय शापिंग मॉल में तीस रुपये में मिलती है।
- मॉल में सिवाय सफ़ाई, रोशनी और एअरकंडीशनिंग के बाकी सब स्थितियां अमानवीय लगती हैं। न ग्राहक और न सेल्सस्टाफ़ किसी के बैठने का कोई जुगाड़ नहीं होता।
- एक ही चीज के दाम जिस तरह वहां बदलते हैं उस तरह तो जनप्रतिनिधियों के बयान भी नहीं बदलते।
डिकाउंट सेल भी कई तरह की होती है। कभी प्रतिशत छूट, कभी बम्पर सेल और कभी एक के साथ एक/दो/तीन फ़्री वाली। आज कल देश भी तो पूरा बाजार में बदल रहा है। कौन जाने कल को कोई इतिहास वाला पढ़ाये कि देश ने आजादी एक के साथ एक मुफ़्त वाली सेल में पायी जो कि बाद में मोलभाव करने पर एक के साथ दो फ़्री हो गयी। सेल का आकर्षण और आतंक इत्ता भीषण होता है कि आदमी वह सब खरीदने के लिये पिल पड़ता है जो उसकी जरूरत नहीं।
ऐसे ही एक दिन मॉल के डिस्काउंड ऑफ़र की बाढ़ में हमारा परिवार फ़ंस गया। हर तरफ़ छूट ही छूट। हर कपड़े के साथ दो कपड़े फ़्री। बच्चे के लिये कुछ कपड़े लेने थे। छूट इतनी कि बच्चे के कपड़े के साथ मेरे भी ले लिये गये। जबकि हम घटना स्थल पर थे भी नहीं। लेकिन हमारी नाप/नंबर तो थी। सो हमारे लिये भी कपड़े लेने का त्वरित और बोल्ड निर्णय लिया गया। निर्णय पर अमल भी फ़ौरन हो गया।
कपड़े के मामले में तो हम मैनीक्वीन हैं। जो पहनने के लिये कहा जाता है, पहन लेते हैं। खरीदने के लिये भले भुनभुनाने का नाटक करें लेकिन खरीदे हुये कपड़े पहनने से मना करने के समय हम उसी तरह नहीं उठाते जैसे सैकड़ों पत्रकारों के निकाले जाने पर दूसरे बड़का पत्रकारों की तरह चुप रहते हैं। घर में रहकर कपड़ा खरीदने वाले की नाराजगी कौन मोल ले?
तो किस्सा कोताह यह कि जब कपड़े हमारे ऊपर चढाये गये तो हाल वही हुआ जैसा स्केच के आधार पर मुजरिम पकड़ने निकली पुलिस का होता होगा। शर्ट पहनी तो सहमते हुये पूछा कि आजकल क्या बनियाइन में भी सामने जेब और कालर फ़ैशन में हैं? पैंट चढाने पर श्रीमती जी खुद बोलीं – ये चूड़ीदार पायजामा लगता है गलती से आ गया।
बहरहाल हमेशा की तरह एक बार फ़िर हीरामन की तरह कसम खायी गयी कि बिना ट्रायल के आगे से किसी के कपड़े नहीं खरीदे जायेंगे । कपड़े बदलने के लिये वापस चल दिये। मॉल में जब पहुंचे तो हर अगला हमें शक की निगाह से देखता पाया गया।
किसी की निगाह में साफ़ लिखा दिखा -डिस्काउंट पर सामान खरीदते हो और वापस भी करना चाहते हो?
किसी की निगाहों का हिन्दी अनुवाद था- इत्ते दिन बाद वापस कैसे होगा?
एक ने कहा – बिना बिल कैसे वापस होगा। उस काउंटर पर बात कर लीजिये।
उस काउंटर वाले ने कहा- इस काउंटर पर नहीं उस पर चलिये अभी आते हैं (मतलब ठंड रख)
उस काउंटर पर संकट कटै मिटै सब पीरा वाले हनुमत वीरा को सुमरते रहे। फ़िर पता चला कि इस काउंटर पर नहीं उस काउंटर पर यह पवित्र काम होगा। आखिर में काउंटर-काउंटर भटकते हुये तय हुआ कि कपड़े बदल सकते हैं। जित्ते के कपड़े थे उत्ते का वाउचर बनवाकर (साथ में हिदायत कि खबरदार जो इत्ते से कम के कपड़े खरीदे) कपड़े लेने कपड़ों के जाम में एक बार फ़िर से धंस गये।
कपड़ों के काउंटर पर पहले तो सेल्समैन ने ठेलुहई करते हुये मौज टाइप ली कि ऐसे कैसे बिना नाप के कपड़े तौला लिये। फ़िर पसीज कर दिखाये। कमीजें और पैंट अपने साथ लेकर हम फ़िर विजेता भाव से आगे बढे।
काउंटर पर शर्टें तो बदल गयीं लेकिन पैंट का पांयचा डिस्काऊंट की झाड़ी में फ़ंस गया। पता चला कि जिस चूड़ीदार पैंट को हम वापस करना चाहते थे उसके साथ जो पैंटे ली गयीं थीं वे हमारे बेटे के लिये थीं। वो अपने साथ लेकर चला गया था। हमारी वाली फ़्री वाली थी। बताया गया कि वापसी तभी संभव है जब सब कपड़े बरामद हों। मजबूरन हम चूड़ीदार पैंट को झोले में धरकर और अपना मुंह झोले जैसा लटकाये वापस आ गये। अब उस पैंट का क्या किया जाये यह समस्या हमारे घर के लिये कश्मीर समस्या सरीखी उलझी हुई है।
हमें लगा कि मॉल से भले तो अपने मोहल्ले के पंसारी जो सामान खराब होने की शिकायत पर घर आकर वापस करते हैं। शर्मिंन्दा होने की एक्टिंग अलग से। यहां मॉल में सामान वापस करना तो अलग सॉरी/ एक्सक्यूज/वी आर हेल्पलेस तक बोल के टरका देते हैं।
जब से हमारे साथ यह हादसा हुआ हम गाते फ़िर रहे हैं- हमें तो लूट लिया मिल के मॉल वालों ने।
आपका क्या कहना है ?
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
बाकी गुडगाँव में मॉल की कोई कमी नहीं है , ना शोपिंग करने वालों की | माहौल चकाचक रहता है | अपन लोग तो वीकेंड में गर्मी से बचने के लिए भी निकल लेते हैं मॉल | विंडो शोपिंग हमारी फेवरेट है
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..१५ अगस्त का तोड़ू-फोड़ू दिन !!!
मेनिक्विन से तुलना करना!वाह!..यह बात बहुत बढ़िया लगी.
मॉल कल्चर ने भी आम आदमी का बजट बिगाड़ रखा है.
Alpana की हालिया प्रविष्टी..क्या बदला है अब तक? क्या बदलेगा आगे?
http://hindini.com/fursatiya/archives/163
कोइ बात नहीं!
eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
….खरीदने के लिये भले भुनभुनाने का नाटक करें लेकिन खरीदे हुये कपड़े पहनने से मना करने के समय हम उसी तरह नहीं उठाते जैसे सैकड़ों पत्रकारों के निकाले जाने पर दूसरे बड़का पत्रकारों की तरह चुप रहते हैं।
….मजबूरन हम चूड़ीदार पैंट को झोले में धरकर और अपना मुंह झोले जैसा लटकाये वापस आ गये। अब उस पैंट का क्या किया जाये यह समस्या हमारे घर के लिये कश्मीर समस्या सरीखी उलझी हुई है।
…मॉल में सिवाय सफ़ाई, रोशनी और एअरकंडीशनिंग के बाकी सब स्थितियां अमानवीय लगती हैं। न ग्राहक और न सेल्सस्टाफ़ किसी के बैठने का कोई जुगाड़ नहीं होता।
ग़ज़ब ढाए हो भैया.
अधिकतर लोगों का अनुभव आप जैसा ही रहता है पर संकोच से चुप ही रहते हैं ।
amit kumar srivastava की हालिया प्रविष्टी..“यादों के पिटारे से …….रक्षाबंधन “
ग्राहक त्रस्त, मालिक मस्त……
भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..नाग ने आदमी को डसा ….
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मन – स्वरूप, कार्य, अवस्थायें
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..सेमिनार फ़िजूल है: विनीत कुमार
Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर !
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..ब्लागिंग का ‘गर्भकाल’ और फुरसतिया को बधाई!
सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..बनारस यात्रा 10 – समापन किश्त
इस सम्पूर्ण ग्रह-मंडल वही तो एक मात्र स्थान है, जहाँ ग्रह-ग्रसित, ग्राहक की प्रतीक्षा में ग्राह बैठे रहते हैं
जब मेनिक्विन होकर गीत गा रहे हैं, मेनकिंग होकर का गज़ब करते होंगे !!:)
Swapna Manjusha की हालिया प्रविष्टी..बुलंदियों से कुछ मंज़र, साफ़ नज़र नहीं आते हैं ..!
sanjay @ mo sam kaun की हालिया प्रविष्टी..चाच्चा बैल
भाद्र पट के आगमन की वधाई !!
अच्छा प्रस्तुतीकरण !
भाद्र पट के आगमन की वधाई !!
अच्छे प्रस्तुतीकरण हेतु वधाई !!