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गड़े खजाने को खोजता समाज
By फ़ुरसतिया on October 18, 2013
बाबा
जी को सपना आया है। जमीन में सोना दबा है। सोना निकालने के लिये पुरातत्व
विभाग बरसाती नदी सा उमड़ पड़ा है। लिये फ़ावड़ा, केंलवा, कुदाल खुदाई अभियान
चालू हो गया है। खजाने के दावेदार हाजिर हो गये हैं। आंखे बेचैन हैं दीदार
के लिये। आसपास के लोग खजाना देखने के भागे चले आ रहे हैं। जिसे देखो
सुने-सुनाये किस्से दोहरा रहा हैं। स्कूलों ने भी छुट्टी कर दी है अपने
यहां। जाओ बेट्टा खजाना देख के आओ। स्कूल कहीं भागा थोड़ी जा रहा है।
खुदाई स्थल के आसपास मेले सा माहौल बन गया है। चाय की दुकाने खुल गयीं हैं, पकौड़ी छन रही हैं, जलेबी कड़ाही में तैरने लगीं हैं। खजाने के इंतजार में लोगों के हाल- अंखड़ियां झाईं पड़ी पंथ निहारि-निहारि टाइप हो रहे हैं। बाबा जी जब बोले हैं तो खजाना मिलेगा कईसे नहीं! मिलेगा तो है ही। बस समय की बात है। बाबाजी कोई गलत थोड़े ही बोलेंगे।
मजेदार है अपना देश। हजार टन सोना दबा के चले गये राजाजी। लड़ रहे थे अंग्रेजों के खिलाफ़। हजार टन सोना दबाये धरे रहे और पराये देश के हुक्मरान उनके ही देश के सिपाहियों को नौकर बनाकर उनको निपटाय दिेये। जित्ता सोना उनके पास था उत्ता अगर सिपाहियों को देकर अपनी फ़ौज में भर्ती कर लेते तो अंग्रेज डेढ़ दिन में निपटा के फ़ांसी पर न लटका न पाते।
डेढ़ सौ साल बाद बाबाजी के सपने पर खुदाई हो रही है। मिलता है कि नहीं यह तो समय बतायेगा। लेकिन यह सारा कुछ अपने लोगों के दीवालियेपन की कहानी है। सोचा जा रहा है कि सोना मिलते ही सब कुछ बल्ले-बल्ले हो जायेगा। पेट्रोल पांच रुपये लीटर मिलने लगेगा, अनाज दो रुपये किलो। मंहगाई देश बदर हो जायेगी, भुखमरी आत्महत्या कर लेगी। गैरबराबरी का नामोनिशान मिट जायेगा।
देश की सारी समस्यायें भुखमरी, मंहगाई बेचारी थरथर कांप रही हैं। इधर खजाना मिला नहीं उधर उनकी गरदन हलाक। नामोनिशान मिट जायेगा उनका देश से।
भ्रष्टाचार इस सबसे बेपरवाह किसी कोने में खड़ा मुस्करा रहा होगा। अगले घोटाले का नाम सोच रहा होगा- बाबा घोटाला, खुदाई घोटाला, खजाना घोटाला या फ़िर सपना घोटाला।
सोना मिलते ही जिस तरह तमाम समस्याओं के हल की बात कही जा रही है उससे लगता है कि भारतीय समाज के हाल मानसिक रूप में उस फ़टेहाल परिवार की तरह हो गये हैं जो घरैतिन के गहने कपड़े बेचकर समस्याओं के तात्कालिक हल खोजने के उपाय सोचता है।
खजाने की कीमत कई लाख करोड़ आंकी गयी है। जो खजाना जमीन के अंदर गड़ा हो सकता है उसको खोदने में कुछ लोग लगे हैं। बाकी निठल्ले ताक रहे हैं। करोड़ों लोग ऐसे ही निठल्ले बैठे किसी चमत्कार की आशा में दिन गुजारते रहते हैं। न्यूनतन मजूरी अगर तीन सौ रुपया माने तो दस करोड़ लोगों के निठल्लेपन की रोज की कीमत 3000 करोड़ होगी। साल भर के निठल्लेपन की कीमत लाख करोड़। सैकड़ों सालों से हम ऐसे ही निठल्ले बैठे इंतजार कर रहे हैं कहीं कुछ खुदेगा और हमारा कल्याण होगा। जब अंतत: कल्याण होना ही है तो ससुर काहे को मेहनत की जाये।
खुदा न खास्ता अगर खजाना मिला तो सोना मिलते ही देश में हर विभाग में ’सपना बाबा’ की भर्ती चालू हो जायेगी। बाबा लोगों का काम सिर्फ़ सपना देखना होगा। सपने पर अमल करके विभाग फ़टाफ़ट कार्यवाही करेंगे। इनकम टैक्स वाले ’सपना बाबा’ छिपे हुये काले धन का सपना देखेंगे। कोयला मंत्रालय वाले ’सपना बाबा’ खोयी हुयी फ़ाइलों को। सेल्स टैक्स वाले बाबा ट्रकों में छिपाकर ले जाते सामान का सपना देखेंगे। फ़ौरन माल पकड़ा जायेगा। फ़ौज वाले ’सपना बाबा’ बंकर में बैठकर सपना देखेंगे और बतायेंगे कि घुसपैठ किधर से हो रही है। बन्दूकें किधर ताननी हैं। किसी घपले की बात चलेगी तो बाबाजी बुलाये जायेंगे। बाबा जी सपना देखकर बतायेंगे कि घपला हुआ है कि नहीं? बाबा कहेंगे हुआ है तब FIR दर्ज होगी। नहीं तो नहीं। लोग हल्ला मचायेंगे कि घपला हुआ है भाई । ये देखो सबूत। लेकिन उनको जबाब दिया जायेगा – अरे भाई सबूत सब ठीक है लेकिन जब बाबाजी को सपना नहीं आया घपले का तो कैसे मान लिया जाये गड़बड़ी हुई है। कैसे लिख लें FIR? जाओ भागो, सोने दो।
देश के विश्वविद्यालयों में सपने के पाठ्यक्रम लागू हो जायेंगे। सपने पर एम.ए., पी.एच.डी, होगी। सबसे बढिया सपना देखने वालने ’सपना बाबा’ को शेखचिल्ली सम्मान से नवाजा जायेगा। हर तरफ़ सपने ही सपने होगे। हकीकत की ऐसी-तैसी हो जायेगी।
पहले के महापुरुष समाज निर्माण का सपना देखने थे और अमल के लिये पुरुषार्थ की बात करते थे। आज के समाज में निठल्ले बाबा खजाने का सपना देख रहे हैं और पुरुषार्थी उसे खोदने के लिये पसीना बहा रहे हैं। हरामखोरी ने पुरुषार्थ को पटखनी दे दी है। पुरुषार्थ सर झुकाये निठल्ले की गुलामी कर रहा है।
बहुत हुआ यार अब चलते हैं। फ़टाक से सोते हैं। क्या पता अपन को भी सपने में कोई खजाना दिख जाये।
अनूप शुक्ल
खुदाई स्थल के आसपास मेले सा माहौल बन गया है। चाय की दुकाने खुल गयीं हैं, पकौड़ी छन रही हैं, जलेबी कड़ाही में तैरने लगीं हैं। खजाने के इंतजार में लोगों के हाल- अंखड़ियां झाईं पड़ी पंथ निहारि-निहारि टाइप हो रहे हैं। बाबा जी जब बोले हैं तो खजाना मिलेगा कईसे नहीं! मिलेगा तो है ही। बस समय की बात है। बाबाजी कोई गलत थोड़े ही बोलेंगे।
मजेदार है अपना देश। हजार टन सोना दबा के चले गये राजाजी। लड़ रहे थे अंग्रेजों के खिलाफ़। हजार टन सोना दबाये धरे रहे और पराये देश के हुक्मरान उनके ही देश के सिपाहियों को नौकर बनाकर उनको निपटाय दिेये। जित्ता सोना उनके पास था उत्ता अगर सिपाहियों को देकर अपनी फ़ौज में भर्ती कर लेते तो अंग्रेज डेढ़ दिन में निपटा के फ़ांसी पर न लटका न पाते।
डेढ़ सौ साल बाद बाबाजी के सपने पर खुदाई हो रही है। मिलता है कि नहीं यह तो समय बतायेगा। लेकिन यह सारा कुछ अपने लोगों के दीवालियेपन की कहानी है। सोचा जा रहा है कि सोना मिलते ही सब कुछ बल्ले-बल्ले हो जायेगा। पेट्रोल पांच रुपये लीटर मिलने लगेगा, अनाज दो रुपये किलो। मंहगाई देश बदर हो जायेगी, भुखमरी आत्महत्या कर लेगी। गैरबराबरी का नामोनिशान मिट जायेगा।
देश की सारी समस्यायें भुखमरी, मंहगाई बेचारी थरथर कांप रही हैं। इधर खजाना मिला नहीं उधर उनकी गरदन हलाक। नामोनिशान मिट जायेगा उनका देश से।
भ्रष्टाचार इस सबसे बेपरवाह किसी कोने में खड़ा मुस्करा रहा होगा। अगले घोटाले का नाम सोच रहा होगा- बाबा घोटाला, खुदाई घोटाला, खजाना घोटाला या फ़िर सपना घोटाला।
सोना मिलते ही जिस तरह तमाम समस्याओं के हल की बात कही जा रही है उससे लगता है कि भारतीय समाज के हाल मानसिक रूप में उस फ़टेहाल परिवार की तरह हो गये हैं जो घरैतिन के गहने कपड़े बेचकर समस्याओं के तात्कालिक हल खोजने के उपाय सोचता है।
खजाने की कीमत कई लाख करोड़ आंकी गयी है। जो खजाना जमीन के अंदर गड़ा हो सकता है उसको खोदने में कुछ लोग लगे हैं। बाकी निठल्ले ताक रहे हैं। करोड़ों लोग ऐसे ही निठल्ले बैठे किसी चमत्कार की आशा में दिन गुजारते रहते हैं। न्यूनतन मजूरी अगर तीन सौ रुपया माने तो दस करोड़ लोगों के निठल्लेपन की रोज की कीमत 3000 करोड़ होगी। साल भर के निठल्लेपन की कीमत लाख करोड़। सैकड़ों सालों से हम ऐसे ही निठल्ले बैठे इंतजार कर रहे हैं कहीं कुछ खुदेगा और हमारा कल्याण होगा। जब अंतत: कल्याण होना ही है तो ससुर काहे को मेहनत की जाये।
खुदा न खास्ता अगर खजाना मिला तो सोना मिलते ही देश में हर विभाग में ’सपना बाबा’ की भर्ती चालू हो जायेगी। बाबा लोगों का काम सिर्फ़ सपना देखना होगा। सपने पर अमल करके विभाग फ़टाफ़ट कार्यवाही करेंगे। इनकम टैक्स वाले ’सपना बाबा’ छिपे हुये काले धन का सपना देखेंगे। कोयला मंत्रालय वाले ’सपना बाबा’ खोयी हुयी फ़ाइलों को। सेल्स टैक्स वाले बाबा ट्रकों में छिपाकर ले जाते सामान का सपना देखेंगे। फ़ौरन माल पकड़ा जायेगा। फ़ौज वाले ’सपना बाबा’ बंकर में बैठकर सपना देखेंगे और बतायेंगे कि घुसपैठ किधर से हो रही है। बन्दूकें किधर ताननी हैं। किसी घपले की बात चलेगी तो बाबाजी बुलाये जायेंगे। बाबा जी सपना देखकर बतायेंगे कि घपला हुआ है कि नहीं? बाबा कहेंगे हुआ है तब FIR दर्ज होगी। नहीं तो नहीं। लोग हल्ला मचायेंगे कि घपला हुआ है भाई । ये देखो सबूत। लेकिन उनको जबाब दिया जायेगा – अरे भाई सबूत सब ठीक है लेकिन जब बाबाजी को सपना नहीं आया घपले का तो कैसे मान लिया जाये गड़बड़ी हुई है। कैसे लिख लें FIR? जाओ भागो, सोने दो।
देश के विश्वविद्यालयों में सपने के पाठ्यक्रम लागू हो जायेंगे। सपने पर एम.ए., पी.एच.डी, होगी। सबसे बढिया सपना देखने वालने ’सपना बाबा’ को शेखचिल्ली सम्मान से नवाजा जायेगा। हर तरफ़ सपने ही सपने होगे। हकीकत की ऐसी-तैसी हो जायेगी।
पहले के महापुरुष समाज निर्माण का सपना देखने थे और अमल के लिये पुरुषार्थ की बात करते थे। आज के समाज में निठल्ले बाबा खजाने का सपना देख रहे हैं और पुरुषार्थी उसे खोदने के लिये पसीना बहा रहे हैं। हरामखोरी ने पुरुषार्थ को पटखनी दे दी है। पुरुषार्थ सर झुकाये निठल्ले की गुलामी कर रहा है।
बहुत हुआ यार अब चलते हैं। फ़टाक से सोते हैं। क्या पता अपन को भी सपने में कोई खजाना दिख जाये।
अनूप शुक्ल
Posted in बस यूं ही | 12 Responses
स्विस बैंक के खजाने को सरकार नहीं खोल रही,जहाँ मिलना तय है:-)
ऐसे ही एक बाबा यहीं कहीं आसपास के शहर में किसी व्यापारी के यहां पहुंचे और बताया कि उनके घर में खजाना गड़ा है. व्यापारी ने अपने सामने घर को खुदवाया – भय था कि खोदने वाले माल गायब न कर दें – तो खोदते खोदते आधा मकान ही धराशायी हो गया और वे व्यापारी और बाबा दोनों ही जमींदोज हो गए!
यह वाकया तो सोच और आस्था के दीवालिये-पन की पराकाष्ठा को भी लांघ गया है!
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प्रणाम.
सोना नहीं मिला तो बुरा होगा। मिल गया तो बहुत ही बुरा होगा। भगवान करे न मिले। बुरा हो, अधिक बुरा न हो। बहुत बुरा ऐसे होगा कि कल श्रीमति जी को भी सपना आ सकता है। चार-छः फुट का आंगन बचा है, उसकी भी खुदाई करनी पड़ सकती है। नये-नये बाबाओं और नए-नए अंधविश्वासी भक्तों की ऐसी फौज खड़ी हो जायेगी मुल्क में कि जीना दूभर हो जायेगा। पता चला जिसके पास जितनी जमीन है उसी की खुदाई कर रहा है। बड़े-बड़े साहित्यकार, वैज्ञानिक घर के दबाव को न झेल पाने के कारण कलम छोड़ फावड़े लिए फूट-फूट कर रोते नज़र आ सकते हैं। सीमा पर तैनात सैनिक कह सकते हैं- चलो अब गांव चलें..सुना है अपनी जमीन में खजाना छुपा है। कृष्ण का कर्मयोग, अंधविश्वासियों के आगे फीका पड़ जायेगा। भाइयों में झगड़े, पती-पत्नी में नये प्रकार के विवाद होंगे। नेता अपनी जनता को विश्वास दिलाते हांफते नज़र आयेंगे…हाँ हाँ मानता हूँ। तुम्हारे वाले गांव के बाबा बड़े सच्चे बाबा हैं। उनको भी सपना आया है। तुम्हारी वाली जमीन की भी खुदाई का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा चुका है। नये-नये नारे जन्म लेंगे…तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हारे गांव में खुदाई कराऊँगा। भारी अराजकता का सामना करना पड़ सकता है। पुष्ट वैज्ञानिक प्रमाणों के बिना, मात्र सपने के आधार पर ही सोने की लालच में यदि यह खुदाई की जा रही है तो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। सारी ‘खुदाई’ सोने पर सिमट कर रह जायेगी। सुना था कलयुग सोने पर चढ़कर आया है। लगता है सही सुना था।
अब आप अपनी चिन्ता का टोकरा कहाँ ले जाएंगे? उन्नाव के ग्रामीण अंचल के उन अनपढ़ लोगों तक या तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग के पास जो इतनी दूर की कौड़ी लाता है कि जी भन्ना जाता है। वैसे आपने इस प्रभुवर्ग की जाहिली की अच्छी खबर ली है।
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