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एक फ़ेसबुकिये की डायरी
By फ़ुरसतिया on October 20, 2013
आजकल
फ़ेसबुक का जमाना है। लोग कुछ भी करते हैं उसका स्टेटस FB पर डालते हैं।
समोसा खा रहे है। बोर हो रहे हैं। अच्छा लग रहा है। झुंझला रहे हैं।
ब्लॉक/अनफ़्रेंड कर दिया। ऐसा फ़ील कर रहे हैं। वैसा महसूस हो रहा है। कुछ हो
रहा है। कुछ-कुछ हो रहा है। कुछ भी किया जाये अगर उसको फ़ेसबुक पर न डाला
जाये तो लगता है वो काम हुआ ही नहीं। फ़ेसबुक स्टेटस बिन सब सून।
हालांकि फ़ेसबुक पर लोग सब कुछ कह लेते हैं लेकिन फ़िर भी बहुत कुछ रह जाता है जिसे शराफ़त के मारे लोग साझा नहीं करते। ऐसे लोग अपने मन के भाव अपनी डायरी में लिखते हैं। ऐसी ही कुछ डायरियां हाथ लगीं। उनको देखकर लगा कि कितना कुछ छूट जाता है फ़ेसबुक आने से। उन डायरियों में से कुछ के अंश यहां प्रस्तुत हैं:
आप भी फ़ेसबुक डायरी लिखते हों तो शेयर करिये अपने विचार। कोई हिचकिचाहट हो तो अनाम नाम से मुझे भेज दीजिये। हम छाप देंगे।
हालांकि फ़ेसबुक पर लोग सब कुछ कह लेते हैं लेकिन फ़िर भी बहुत कुछ रह जाता है जिसे शराफ़त के मारे लोग साझा नहीं करते। ऐसे लोग अपने मन के भाव अपनी डायरी में लिखते हैं। ऐसी ही कुछ डायरियां हाथ लगीं। उनको देखकर लगा कि कितना कुछ छूट जाता है फ़ेसबुक आने से। उन डायरियों में से कुछ के अंश यहां प्रस्तुत हैं:
- आज फ़िर उसने अपनी प्रोफ़ाइल पिक बदली। बेवकूफ़ को पता नहीं कि प्रोफ़ाइल बदलने से शक्ल नहीं बदल जाती। मन नहीं था लेकिन लाइक करनी पड़ी। गिल्टी फ़ील हो रहा है। फ़ेसबुक के चलते कित्ता झूठ बोलना पड़ता है।
- उसने नयी फ़ोटो लगायी है। हवा में उड़ते हुये बाल देखकर मन किया कि लिखें- ये बाल नहीं तेरे सर से बची-खुची अकल निकलकर बाहर भाग रही है। लेकिन फ़िर लिखा नहीं। उसको ये खुशफ़हमी हो जाती कि उसके पास भी अकल है। किसी को क्यों धोखे में रखना। आंख मूंदकर फोटो लाइक कर दिया।
- उसने आज किसी को ब्लॉक करने की उद्घोषणा नहीं की। मन किया पूछूं कि तबियत तो ठीक है। लेकिन फ़िर नहीं पूछा। किसी के पर्सनल मैटर में क्या दखल देना। जित्ती देर में कमेंट लिखेंगे उत्ते में दस ठो लाइक कर लेंगे।
- पिछले दस दिन से एक ही आई.डी. से फ़ेसबुकिंग करते-करते बोर हो रहे हैं। खराब लग रहा है। सोचा था आज पक्का नई आई.डी. बनायेंगे। लेकिन नहीं बनाई। ये क्या हो रहा मुझे। गूगलिंग करना पड़ेगी कि ऐसी मन:स्थिति को क्या कहते हैं। कुछ इम्प्रेसिव कहते होंगे तो उसको अपना स्टेटस बना लेंगे। -फ़ीलिंग डिटरमाइन्ड।
- देख रही हूं आजकल वो मुईं उसका स्टेटस सबसे पहले लाइक करती है। घोटाले के पीछे SAG की तरह उसके स्टेटस से चिपकी रहती है। पूछना पड़ेगा उससे चक्कर क्या है? आजकल चैट भी नहीं करता। लगता है नई आई.डी. से चैट करनी पड़ेगी। ये भी औरों की ही तरह है।
- आज उसने फ़िर कुत्ते के साथ अपना फ़ोटू लगाया है। मन तो किया मेनका गांधी को लिख दें कि देखिये आपके रहते जानवरों के साथ कित्ता तो अन्याय हो रहा है। लेकिन फ़िर छोड़ दिया। कमेंट किया-(कुत्ते का) फ़ोटो बहुत अच्छा लग रहा है। ब्रैकेट के अंदर वाली बात मन में कही। ही ही ही ही
- आजकल जिसे देखो, कविता लिखने में लगा है। कितना तो क्रूर हो गये हैं लोग। शब्दों के साथ अत्याचार देखकर मन दुखी हो जाता है। कुछ शब्दों से बात हुई। बेचारे कह रहे थे -पता होता कि हमारे साथ इत्ता बेरहम सलूक होगा तो हम डिक्शनरी से भाग जाते। फ़ीलिंग ……….(खाली जगह रीता से पूछ कर भरूंगी। उसको ये सब अच्छा आता है कि कब कैसे फ़ील होना चाहिये। )
- तीन दिन से दुष्ट ने हेल्लो नहीं बोला। सोचता है मैं पहले बोलूं। माई फ़ुट। मेरे पांच हजार दोस्त हैं तीन हजार तीस फ़ालोवर। उस बेवकूफ़ के तीन सौ इक्वावन दोस्त। गुस्सा आ गया। उसके स्टेटस पर (जिसको पहले लाइक किया था) जाकर स्टेटस को सैकड़ों बार डिसलाइक/लाइक किया। स्टेटस को झिंझोड़ कर रख दिया। कूल फ़ील हुआ। फ़िर स्टेटस लगाया- भुट्टा चबा रहे हैं, ठंड़ा पीते हुये।
- कुछ भाई लोग तो ज्ञान की बातें इत्ती बेवकूफ़ी से करते हैं कि मन करता है एक उन्नाव के डौंडिया गांव में खुदाई के लिये लगी एक ठो जेसीबी इनके दिमाग में भी लगा दें। सारी अकल का मलबा निकाल के दिमाग को खाली कर दें। लेकिन फ़िर लगता है कूड़ा कूड़ेदान में ही रहे तो अच्छा। जमीन पर काहे को फ़ैलाया जाये।
- आज मंडे की भी छुट्टी थी। छुट्टी मतलब संडे समझकर मैंने टीना को संडे वाली आई.डी. से हेल्लो बोल दिया। वो घंटे भर तक मुंह फ़ुलाये रही। तरह-तरह के बेवकूफ़ी के आइकान भेज कर उसको मनाना पड़ा। ये लड़कियां भी कित्ती चूजी होती हैं यार। मन तो किया कि स्टेटस लगाऊं -टाकिंग टू फ़ूल, फ़ीलिंग इर्रीटेटेड लेकिन फ़िर लगा वो समझ जायेगी तो स्टेटस लगाया- एन्ज्वाइंग संडे, फ़ीलिंग ग्रेट
- दोस्त बता रहा था कि वो आजकल बहुत व्यस्त है। दो आई.डी. बनाई है उसने। दोनों प्रधानमंत्रियों की तरफ़ से फ़ेसबुक पर जंग लड़ता है। एक आई.डी. किसी के खिलाफ़ स्टेटस लिखता है। दूसरी से उसके खिलाफ़ तर्क। घंटे दो घंटे एक स्टेटस पर कुश्ती लड़ने के बाद अगला स्टेटस लगा देता है। बता रहा था प्रधानमंत्री कोई बने उसका चमचाइनचीफ़ बनना पक्का है। राज्यमंत्री के दर्जे की आशा है। मन किया उसको कहें ’शेखचिल्ली कहीं के’ लेकिन ’ग्रेट’ कहके बॉय कह दिया। स्टेटस सटाया- फ़ीलिंग रिलैक्ड।
- भाईसाहब ने बहुत दिन से कोई स्टेटस अपडेट नहीं किया। आज एक लड़के को फ़ुसलाकर लगभग जबरियन समोसा खिला रहे हैं। पक्का दस मिनट के अंदर स्टेटस लगायेंगे- आज एक भूखे को भोजन कराया। संतुष्ट महसूस कर रहा हूं। मैं सोच रहा हूं कि मैं कमेंट करूंगा – क्या अजब पाखंड है। लेकिन मुझे पता है कि मैं किसी को हर्ट नहीं कर सकता। फ़ाइनली दिल पर पत्थर रखकर लिखूंगा- मानवता की सच्ची सेवा।
- आज शाम एक फ़्रेंड का फ़ोन आया। कहा आज किसी से फ़ेसबुक ब्रेकअप नहीं हुआ। तबियत घबरा रही है। फ़ीलिंग लो। मैंने कहा तो मैं क्या करूं? तो उसने कहा यार तू ही मुझसे लवर बनकर बात कर ले। आई.डी./पासवर्ड भेजा है तेरी मेल में। मैंने कहा -मुझे इस सब झमेले में नहीं पड़ना। उसने फ़िर दोस्ती की कसम दी तो मुझे दया आ गयी। मैंने कहा अच्छा चल लाग इन करते हैं। मेरी किस्मत अच्छी लाइट चली थी। मैंने उसको एस.एम.एस. किया। उसका जबाब आया -कोई नहीं मैंने खुद दो ब्राउजर से चैट करके ब्रेक अप कर लिया। तूझे हिचकिचा हो रही थी। अच्छे से हो भी नहीं पाता तेरे से। नाऊ फ़ीलिंग रिलैक्स्ड। मैंने स्टेटस लगाया- कैसे-कैसे फ़ेस हैं फ़ेसबुक के, फ़ीलिंग सरप्राइज्ड।
आप भी फ़ेसबुक डायरी लिखते हों तो शेयर करिये अपने विचार। कोई हिचकिचाहट हो तो अनाम नाम से मुझे भेज दीजिये। हम छाप देंगे।
Posted in बस यूं ही | 33 Responses
देखो ये फ़ुरसतिया जी कितने फ़ुरसती हैं जो FB पर डायरी भी लिखते हैं, इधर किताब पढ़ने का समय नहीं मिल पा रहा है, FB पर स्टेटस सटाने में, लाईक और टिप्पणी मॆं ही समय निकल जाता है, वैसे जो स्टेटस समझ नहीं आता उधर लाईक कर देते हैं, या फ़िर समझ नहीं आता कि अब इसमें टिप्पणी क्या की जाये, नहीं तो ब्लॉगिंग जैसे पढ़कर निकल लेते, अगर ब्लॉगर में भी लाईक वाला ऑप्शन होता तो लाईक ज्यादा आते टिप्पणियाँ कम
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सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..दशहरे के दिशाशूल
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ऐसा लगता है जैसे बिरादरी से हुक्का-पानी बंद हो जाता है !हम नए तरह का समाज बना रहे हैं जिसमें यह सब करके आत्म-संतुष्टि पा रहे हैं ।
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प्रणाम.
और अइसे ही अंतर्यामी किस्म का मन-पाठ और परआत्माप्रवेश करते रहो और उसे हम तक पहुंचाते रहो . शानदार !
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मज़ा आ गया … फेसबुक समझ आ गया ….
मज़ा आ गया … फेसबुक समझ आ गया ….
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प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..कितनी पहचानें
आनंद आ गया पढ़कर .
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वैसे मुझे ऐसा लगता है की ऐसा फेसबुक ही नहीं वास्तविक जीवन में भी होता है (भावनाओ और विचारो का झूठा प्रदर्शन)